Tuesday, October 27, 2015

वरना तो ये ज़िन्दगी खाली खाली सी दुकान लगे.......





कलम से____

गुलों से महकते थे जो कभी
अब गमज़दे से लगते हैं
न जाने रोग कैसा है लगा 
अब बुझे बुझे से दिखते हैं

मुरझाने को तो हर गुल
खिल के मुरझा जाता है
वक़्त की मार से पहले ही
जो मर जाये वो
मुर्दादिल कह लाता है

जीने को तो लोग
हर हाल में जीते हैं
कुछ मर मर के जीते हैं
कुछ हँस हँस के जीते हैं
किसी के ग़म को
अपना बना के जिओ
अपनेपन की बात दिखे
वरना तो ये ज़िन्दगी
खाली खाली सी दुकान लगे.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

फ़लक़ से चाँद तारे लाने की बात करते हैं




कलम से____

फ़लक़ से चाँद तारे लाने की बात करते हैं
हैं भारत की हम सन्तान
सबको साथ लेकर चलने की बात करते हैं

यहाँ घर सबके एक से हैं
इंसान सब यहाँ एक साथ मिलकर रहते हैं
मसालात गरचे कुछ हैं भी
मिल बैठके सुलझाने की बात करते हैं
सिर फिरे हैं कुछ लोग
यदाकदा जो ऊलजलूल बात करते हैं
सुनता है कौन उनकी
जब दिल दो एक साथ रहने की बात करते हैं
इस सरज़मीं की बेहतरी के लिए बहाया है खून साथ साथ
होते हैं कौन वो जो अब अलग रहने की बात करते हैं

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

http://spsinghamaur.blogspot.in/


देखो पी रहा है वो अकेला बैठा मयखाने में कहाँ खो गये वो आँखों से मय पिलाने वाले





कलम से____

मिलते हैं लोग दाग दिल के छिपाने वाले
लोग मिलते हैं कहाँ अब पुराने वाले

तू भी तो मिलता है मतलब से मिलता है
लग गये हैं तुझे रोग सभी वो जमाने वाले

मिन्नतें बेकार गईं दुआयें भी बेअसर हुईं
लौट के आते नहीं है छोड़के जाने वाले

पार करता नहीं आग का दरिया अब कोई
थे वो कोई और डूबके मरने वाले

अब तो सभी मिलते हैं दिल को दुखाने वाले
जाने किस राह गये वो जाने वाले

दर्द उनका जो करते हैं फुटपाथ पर बसर
क्या समझ पायेंगे महलों में रहने वाले

देखो पी रहा है वो अकेला बैठा मयखाने में
कहाँ खो गये वो आँखों से मय पिलाने वाले

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

http://spsinghamaur.blogspot.in/

आज तुम मुझे फिर से ......


कलम से____

आज फिर से तुम मुझे
जवां दिखने लगी हो
मैं थक सा गया हूँ
मन को और भाने लगी हो
समय की मार से
ढ़ीले पड़ रहे हैं क़दम मेरे
फिर भी तुम साथ
चल रही हो मेरे
आज फिर से तुम
जवां दिखने लगी हो

जीवन के इस मोड़ पर
तुम्हारी स्नेहिल छाँव में
बोझिल पलकों के तले
तुम और भी आज
सुंदर लग रही हो

सोचता हूँ
मिलूँगा एकांत में जब तुम्हें
सुनाऊंगा एक दिन
कृतघ्न युग की दास्तां
झेला है जो तुमने मेरे लिए
झुलसे हुए रिश्तों के बोझ को
कितना मुश्किल होता है ढ़ोना
यादें वो सब अंतस चीर गईं
चहुँ ओर हो रहा है जब अँधेरा
चेहरे पर पड़ती सूरज की रेखा
तुम्हें मेरे फिर से निकट कर गई

आज तुम मुझे फिर से ......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस द्वंद को मेरे समझा नहीं


कलम से____

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस द्वंद को मेरे समझा नहीं
शूल करते हैं क्या, तुमने यह कभी जाना नहीं !!

बरबस ही उस निशा की याद हो आई
कोशिशों के बावजूद सो पाया मैं नहीं !
जगा पाया न तुम्हें प्रयत्न सौ बार कर
नींद प्यारी सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

तन बदन मेरा दर्द से कराहता रहा,
उठ हृदय से कण्ठ फिर घुटता रहा
निकट रह कर भी, तुम दूर बहुत दूर रहीं
नींद गहरी सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

आश्वस्त बहुत मैं था, जगा लूँगा तुम्हें
घाव अंत:स्थल के दिखा दूगाँ तुम्हें
थकी मांदी सी पड़ी, स्वप्न में खोई
बेहाल सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

दूर तुम थीं नहीं, आती जाती सांस पर
जीवन की घुटन महसूस, मैं करता रहा
एक ज़िद्दी लट को, भाल से तुम्हारे मैं
हटाता रहा, पर सोती रहीं तुम रात भर !!

भाल से लटें हटाते रात पूरी कट गई
यामिनी न जाने आखिर कहां खो गई
चूमने लगीं पलकें भोर की पहली किरन
नींद अखियों से तुम्हारी जाकर तब गई !!

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस द्वंद को मेरे समझा नहीं
शूल करते हैं क्या, तुमने यह कभी जाना नहीं !!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

चलते चलते




कलम से____

चलते चलते
दूर काफी निकल गया
सोचा साथ कुछ है मेरे नहीं
कर्ज किसी का चुकाना है नहीं
मुड़ के देखा
निशान कुछ साथ चल रहे थे
रेत पर
जैसे कि वो छोड़ेंगे
अकेला मुझे नहीं !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

रास्ते बदल जाते हैं , मंजिलें बदल जाती हैं



रास्ते बदल जाते हैं , मंजिलें बदल जाती हैं ,
क्यों नहीं बदलते दिल, 
जो तकदीरें बदल जाती हैं ,
दिल वहीं रहता है , 
यादों की अनगिनत परछाइयाँ ले कर, 
आँखों की नमी छुपा कर नजरें बदल जाती है ,
रुह रहती है हर लम्हा अश्‍कवार लब हंसते हैं
बाहर और अंदर किस तरह फिजाएँ बदल जाती है
कोइ होता है रफ्ता- रफ्ता जिंदगी से दूर,
हाथों की लकीरें क्यूँ अकसर बदल जाती हैं ।


Ramaa Singh

Thursday, October 15, 2015

हमने तो जिन्दगी को इस तरह करीब से जी लिया।




कलम से____

जिन्दगी को इस मुकाम
तक लाने के बाद भी
कभी यह नहीं समझ पाये
सादगी से हट कर भी
कोई और सलीका होगा
इसे जीने का,
समझने का
जो आया उसे गले लगा लिया
जो मिल गया
हाले दिल उसको बता दिया
उसका हाल है क्या
यह जान लिया।

हमने तो
जिन्दगी को इस तरह
करीब से
जी लिया।

अब कैसे कहें
लोगों ने हमें जीने नहीं दिया
जिन्दगी हमें मिली
हर मोड़ पर मुस्कुराती हुई
हमने भी उसे मुस्कुराते हुए
गले लगा लिया।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

मन करता है कोई अब ऐसा मिले जो अपना सा लगे......

मन करता है कोई अब ऐसा मिले
जो अपना सा लगे......





कलम से______

मन करता है कोई अब ऐसा मिले
जो अपना सा लगे......

दिखने को तो बहुत हँसी दिखते हैँ
मन भीतर जो समा जाये तो कुछ बात बने
मन करता है कोई अब ऐसा मिले
जो अपना सा लगे......

बनने को दोस्त हो जायेंगे वो तैयार
टकरा लेंगें जाम भी दो एक बार
ग़म हमारे जो अपना लें तो कुछ बात बने
तो वो अपना सा लगे......

मिले थे इस ज़माने में ऐसे कई लोग
कहते थे भाई से गर मिल जाये भाई
कमल सा फ़ूल ह्रदय में खिले
कोई बात अपनी सी लगे......

हाथ मेरा हाथ ले कहने लगे वो
चलो आज मेहँदी हम लगाते हैं
रची खूब हथेली मेरे अपनी सी लगे
वो आज बहुत अपने से लगे

चांदनी बिखरी है अंगना हमारे
चन्द्रमा देख हमें आसमां में हँसे
खुशिओं की कमी न आये कभी
मन बस यही सोचा करे......

जब भी मिले हो यहाँ या वहां
वापस जाने की ही बात करते हो
आओ जो इक बार फिर वापस न जाओ
मन बस अब यही कहे.......

मन करता है कोई अब ऐसा मिले
जो अपना सा लगे......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

नंगे पाँव तुम्हारे ही नहीं हमारे भी हैं


कलम से____

नंगे पाँव
तुम्हारे ही नहीं
हमारे भी हैं
पाँव में
छाले तुम्हारे ही नहीं
हमारे भी हैं
हम दाग़ दिल के छिपा लेते हैं
कुछ उनके अफसाने बना देते हैं........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

प्रेम सदैब ही मुक्त रहता संदेह के दायरों से

ख्वाब कभी हुकूमतों के मोहताज़ नहीं होते





कलम से______

प्रेम सदैब ही मुक्त रहता संदेह के दायरों से
ख्वाब कभी हुकूमतों के मोहताज़ नहीं होते
बुलबुले फूटने के लिए जन्म नहीं लेते
पृथ्वी की हलचल और प्रकृति की भाषा
अनजान लोगों की गुफ्तगू में शरीक़ नहीं होते
सारे हौसले एकाकीपन में पस्त नहीं होते।

इस जीवन के सभी पात्र गर सजीव होते
सभी मानव मृत भावनाओं से नहीँ खेलते
समाप्ति की ओर कभी न सम्बंध बढ़ते
अपरिभाषित बंधनों से दूर दूर ही रहते.....

बासी कभी सम्बंध प्रेम के देखे नहीँ होते
सारे हौसले एकाकीपन में पस्त नहीं होते
बस अपने ही लोग जज़्बातों मेँ बहे न होते
फूल बाग़ में गर हर रोज़ खिले जो होते।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

Wednesday, October 14, 2015

ज़िन्दगी ठहरी हुई है कहने को कुछ शेष नहीँ है......

इंसानों की बस्ती
हुई अब बदनाम बहुत है
ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है......



कलम से____

ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है.....

निशब्द हो चला हूँ मैं
बात करने लायक नहीँ हूँ
ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है

रोज़ होते देखता रहा हूँ
पाप इस जगमग सी हवेली में
कातर निग़ाहों से बचा कुछ नहीँ है
कहने को कुछ शेष नहीँ है

मुस्कान मृदुल बारम्बार उसकी
छा जाती है मानस पटल पर
भयभीत थी वह अन्जान जग़ह पर
करती क्या जब ज़ुबाँ ख़ामोश है?

इंसानों की बस्ती
हुई अब बदनाम बहुत है
ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

चलो चलें फिर जंगल की ओर.....



सुन यह सहारा भी छिनने वाला है


कलम से____

सुन यह सहारा भी छिनने वाला है
बिजली की यह केबल भी
स्मार्ट सिटी में
जमीन भीतर हो जायेगी
धरती के ऊपर कुछ नहीं रहेगा
पहले टेलीफोन के तार गये
फिर बिजली के
बैठने को कुछ नहीं बचेगा....

मोबाइल टावर के
आसपास हम जा नहीं सकते
कान हैं झन्नाते
गौरैया भी गई चली दूर
और साथी भी जा रहे हैं छोड़
कुछ दिन के हैं और सही
हम मेहमान यहां के
चलो चलें फिर जंगल की ओर.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

बीत गई अब मिलन की बेला !!!




बीत गई अब मिलन की बेला !!!




कलम से____
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
धुंधले मन से निकली
उर-तन्त्री की पीड़ा
कहती है समाप्त है
अब यह जीवन लीला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
आकाश में गतिविहीन सितारे
रहे मांग साथ दोनों हाथ पसारे
भाग्यविहीन से रहे आजीवन
खाली हाथों दुख दिन भर झेला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
मनवा हो रहा बिचिलित
लयताल श्वासों का टूटा
आस मिलन की लिए,
अंतस खाली खाली सा डोला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
नभ में विचरण करता
आकुल व्याकुल सा
राह नीड़ की खोज रहा है,
बिछड़ा पंक्षी एक अकेला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
©सुरेंद्रपालसिंह 2015

बापू तुम्हें आज याद जग में सारे किया जाएगा






कलम से____

बापू तुम्हें आज याद
जग में सारे किया जाएगा
तुमने जो किया
उसे दुहराया जाएगा
कोई मानेगा
खोट कोई निकालेगा
मूल रूप में
कोई तुमको न जानेगा

छोटी छोटी बातों
से जीवन
चलता है
बडी बडी बातों
के सामने छोटों
को कौन सुनता है

श्रद्धा, नम्रता और योग्यता
मिल जायें
तो
सम्मान मिलता है

http://spsinghamaur.blogspot.in/

बुझे हुए दीपक को अंजुलि भर प्रकाश तुम दे दो।

भटक गया है जो जीवन में





कलम से____

भटक गया है जो जीवन में
सही राह चले कुछ ऐसा तुम कर दो
बुझे हुए दीपक को
अंजुलि भर प्रकाश तुम दे दो।

बिखराते हो जो तुम भू पर
सोने की किरणें
एक किरण उसको भी दे दो
माथा उसका आलोकित कर दो।

जगा रहे हो तुम
दल दल के कमलों की आँखो को
उनके सोये सपनों को
एक किरण उसको भी दे दो।

बंद जो है पिंजरे में व्याकुल
भूला बैठा है जो
दुख जतलाने की भाषा
वाणी के कुछ क्षण उसको भी दे दो।

एक मात्र एक स्वप्न
उसके सोये मन में
जागृत कर दो
जीवन के कुछ पल उसको दे दो।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

कहो अभी भी तो तुम्हारे साथ लौट चलूँ।


कहो अभी भी तो तुम्हारे साथ लौट चलूँ।




कलम से____

कहो अभी भी तो तुम्हारे साथ लौट चलूँ।

करते थे जब प्यार यहाँ फिर लाकर कैसे छोड़ गए
साथ आए थे दूर और करीब के रिश्तेदार
साथ निभाया यहाँ तक फिर यहाँ लाकर छोड गए
दफन कर फर्ज अपना निभाकर मुछे यहाँ छोड गए
कहो अभी भी तो तुम्हारे साथ लौट चलूँ।

हारसिगांर की सेज पर बैठ कर कीं थीं जो बातें
उन तुम इतनी आसानी से कैसे भूल गए
रातरानी महकती थी रात भर फिजाओं में
दिए से ही सही रौशन होती रही रातें
याद आती हैं वो मोहब्बत में डूबी बातें
वो हसीन लम्हात तुम कैसे भूल गए
कहो अभी भी तो तुम्हारे साथ लौट चलूँ।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/