Thursday, October 15, 2015

प्रेम सदैब ही मुक्त रहता संदेह के दायरों से

ख्वाब कभी हुकूमतों के मोहताज़ नहीं होते





कलम से______

प्रेम सदैब ही मुक्त रहता संदेह के दायरों से
ख्वाब कभी हुकूमतों के मोहताज़ नहीं होते
बुलबुले फूटने के लिए जन्म नहीं लेते
पृथ्वी की हलचल और प्रकृति की भाषा
अनजान लोगों की गुफ्तगू में शरीक़ नहीं होते
सारे हौसले एकाकीपन में पस्त नहीं होते।

इस जीवन के सभी पात्र गर सजीव होते
सभी मानव मृत भावनाओं से नहीँ खेलते
समाप्ति की ओर कभी न सम्बंध बढ़ते
अपरिभाषित बंधनों से दूर दूर ही रहते.....

बासी कभी सम्बंध प्रेम के देखे नहीँ होते
सारे हौसले एकाकीपन में पस्त नहीं होते
बस अपने ही लोग जज़्बातों मेँ बहे न होते
फूल बाग़ में गर हर रोज़ खिले जो होते।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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