Thursday, July 31, 2014

कचनार।

कचनार।

तोडी नहीं जाती है कच्ची कली कचनार की
फूलों के बाजार में यह कहावत सुनी होगी।

गुलाबी और सुफेद रंगो से रहती है सजी
हरे भरे पेड पर लगे कली कचनार की ।

माली बाग का वोले यही दिल में है समाती
अदब में कही किसी की सुदंर तारीफ लगती।

भगवान के सामने कहता है बात पुजारी
यही बात कानों को कितनी है सुहाती।

कोठे लखनऊ के पर खालाजान जब ये बोले
दिल को चुभती है खराब गाली सी है लगती।

अक्सर कहते हैं कहावतें यूँ ही नहीं बनतीं
हर एक के पीछे आसूँ भरी दासतां है रहती।

जीवन की संध्या में

कलम से____

जीवन की संध्या में
कभी कभी आ जाना
पास होने का अहसास दिला जाना
हाथ कोमल नहीं रहे वैसे
थक गये हैं दर्द सहते सहते
हथेलियों में गरमाहट वैसी ही है
खुरखुराहट मुझे भी खलती है
चेहरे पर पडी झुर्रियां
अपनी कहानी कहती हैं
इतंजार न जाने किसका करतीं हैं।

आ जाते हो तुम तो दर्द कम हो जाता है
वरना परेशान जालिम बहुत करता है
गुजरे वक्त की याद कर अच्छा लगता है
मन कभी रोने को कभी हंसने को करता है।

//surendrapalsingh//
07 31 2014

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Wednesday, July 30, 2014

आज की बात करें तो कहना ही होगा

कलमसे____

आज की बात करें तो कहना ही होगा
तुम और तुम्हारी यादें अच्छी लगती हैं।

आने वाले दिन कुछ ऐसे ही गजब होगें
मेरे हमदम, न तुम होगे - न हम होंगें।

//surendrapal singh//

07 29 2014

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कान्हा यशोदा मैया से..........

कान्हा यशोदा मैया से..........

मैया मेरी रोटी मोय खिलायदे
गइय्यन कों लै जानो है
माखन थोडो सो लगायदे
रोटी के ऊपर
और मठा संग दै दे।

मैया वोली रुक जा लाला
थोडी देर लगैगी
रोटी बनाय लेन दे
लकडिय़ां गीली हैं
परेशान करे हैं।

थोडी देर बाद जब रोटियाँ बन जातीं हैं। मैया मठा लोटे में डाल और रोटी पर मक्खन लगाने जाती हैं तो पता लगता है कि माखन तो है ही नहीं। हांडी तो खाली पडी है। मैया जान लेती है कि लाला सारा माखन पहले ही ऊडा चुके हैं। वह हौले से लाला के पास जा कान पकड बोलती हैं।

अब जानू हूँ कि माखन किनने खायो है
वो मैं सोचूँ हूँ कि लाला क्यों जल्दी मचाय रयो है।

फिर मैया मुहं आचंल छिपा जोर से हंसने लगती है और कान्हा की पीठ पर प्यार भरी थपकी देती है।

भक्तों के लिए कृष्ण की यह एक और लीला है।

लगा दे आग दुबारा

कलमसे____


लगा दे आग दुबारा
ऐसी कोई चिन्गारी नहीं है
अतीत के पन्नों में
कोई ऐसी बात छिपी ही नहीं है।

नये सिरे से शुरू करो
तो कोई बात बने
बुझी आग में
शोलों की तलाश बेमानी लगे है।

आओ मिल कर जलायें
चिराग एक हम
हो सके इस जहाँ के
मिटा सकें सभी गम।

अंधेरे दूर हो जांय
हो जाए ऊजाला
जग जंहा सुदंर लगे
बन जाय निराला।

विश्वास पर टिकी है
किसी की आस
टूट न जाए,
यही हो हमारा प्रयास।

//surendrapal singh//
07 30 2014

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प्रश्न उठ खडे हुए हैं?

07 31 2014


इधर हाल के दिनों में हुई कुछ घटनाओं ने जिनमें मुजफ्फरपुर, मुरादाबाद,रामपुर और अब सहारनपुर प्रमुख हैं कई ज्वलंत प्रश्न पैदा कर दिये हैं। समाधान कोई नजर नहीं आता। नजर भी इन प्रश्नों से हटाई भी नहीं जाती। मन कुंठित है।

प्रश्न उठ खडे हुए हैं
जबाब जिनका मिल नहीं रहा है
ढूढां बहुत किया
रात भर भटकता रहा हूँ
कभी यहाँ
कभी वहाँ
कभी भीतर
कभी बाहर
मैं टहलता रहा
जबाब न मिला कहीं से
तो मैं तेरे सामने आ गया
बता ये मारपीट क्यों है
मचा घमासान क्यों है
यह घर भी तेरा है
वह घर भो तेरा है
मैं भी तेरा हूँ
वह भी तेरा है......

सुन मेरे बच्चे
वो मेरा है औ' तू भी मेरा है
बस छा गया है इनकी आँखों में
गहरा अंधेरा है।

जब आएगें दोनों यहां
बैठेंगे मन शातं यहां
जान जाएंगे खुदा बंदे
भगवान को चाहने वाले
गुरू को पूजने वाले
रूप एक है
जो सिर्फ मेरा अकेला है।

मैं हूँ सिर्फ मैं हूँ
मैं सबका हूँ
सबके लिए हूँ
मैं गरीब का हूँ
मै अमीर का हूँ
मैं बच्चों का हूँ
मै बडों का हूँ
मैं बलवान का हूँ
मैं असहाय का हूँ
मै अबला का हूँ
मै सबला का हूँ
मैं मैं हूँ
रूप कई हैं पर हर किसी को दिखता हूँ
मैं ही उनके दिल में बसता हूँ.............

कल ही की बात है

कलम से ____

कल ही की बात है जिक्र उनका महफिल में हुआ था
खिलती हुई कली है यूँ किसी ने बडे अदब से कहा था।

कली से फूल खुदारा वो एक दिन बनेगें
कत्ल सरेआम न जाने कितनों का करेगें।

चढती जवानी के आलम की क्या बात क्या करेंगें
सामने बैठ महफिल में गिगाहों से खून हजारों करेंगें।

दिन हरेक के पलटते हैं हमारा भी एक दिन होगा
उस दिन का इंतजार हम तहेदिल से करेगें।

न जाने फिर कौन सी बात हो जाएगी
मैं उनका औ' वो फिर हमारी हो जांएगी।

गुजारा हमारा यूं ही चलेगा रहबर का साथ हमको मिलेगा
गुजारिश है मेरी खुदा तुझसे निगाहों में करम तेरा रहेगा।


//surendrapal singh//

07 31 2014

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तू और तेरा खुदा

कलम से _ _ _ _

तू और तेरा खुदा तेरी मोहब्बत पाक है,
मै और मेरा इश्क तेरी नजर मे नापाक है।

//surendrapal singh//

07 28 2014

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Tuesday, July 29, 2014

मरु के लोग निराले है, बियाबान रेत के मतवाले हैं,

कलम से ____

मरु के लोग निराले है,
बियाबान रेत के मतवाले हैं,
पेड ठूंठ से दिखते हैं,
परछाईं अपनी देखा कर हंसते है ।

मरु के लोग निराले हैं।

रंग अजीब इनके प्यारे हैं,
लाल काले पीले रंगीले हैं,
मूंछों से भरा है चेहरा,
पगडी सिर चढ बोलती है।

मरु के लोग न्यारे हैं।

जूती है कुछ बडी बडी
छप्पर की है झोपडी
गरम रहे जितना भी
ठंडी रहे है खोपडी।

मरु के लोग प्यारे हैं।


कलम से _ _ _ _

चल मन चल आज जैन साहब के घर,
मिल बैठेगें सुदंर सुदंर सी बात करेगें
उनके दिल क्या है
हमारे दिल क्या है
बैठेगें जानेंगे।

जैन साहब आप हमेशा
उल्टे पावं क्यों चलते हैं,
भौंचके रह गये हमारी सुन कर बात
समझ न आई क्या गये आप
पूछा उनने हमसे?

करते हैं स्पष्ट हम अपनी बात,
हमने यह नोटिस किया है
आप हमेशा पार्क में
ऐन्टीक्लोकवाइज क्यों चलते हो?

कुछ आदत सी ही है
और कोई बात नहीं है।
सुन इतनी भडक गईं
जो चुप सी बैठी थीं
श्रीमती जैन यह बोल रहीं थी,
जैन साहब हैं ऊत खोपडी के
काम करें सब इस जग उल्टी खोपडी वाले
मैने तो इनको झेला है
दूसरा न कोई इनको झेल सकेगा
पर यह भी सच है
अब तक न यह बदले
आगे क्या बदलेंगे
इनकी तो ऐसे ही कटी है ये ऐसे ही रहेंगे।

दोस्तों, Old habits die hard. At old age people are not amenable to change.


//surendrapal singh//

07 30 2014

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वैस देखा जाए तो इनसां ता उम्र बच्चा रहता है, हालात ही कुछ ऐसे होते हैं वह बदला बदला लगता है।

कलम से _ _ _ _

वैस देखा जाए तो इनसां ता उम्र बच्चा रहता है,
हालात ही कुछ ऐसे होते हैं वह बदला बदला लगता है।

माँ को किलकारियाँ अच्छी लगतीं है जब वह छोटा होता है
सकूल जाता है जब मिठाइयां मोहल्ले भर में बटतीं हैं।

थोडा जब और बडा वह होता है निगाहें उस पर बनी रहतीं हैं
आसपास की सुन्दरियां भी उसको तडा करतीं हैं।

बच नहीं सकता है वह इश्क मुश्क के चक्कर से
फंस ही जाता है आखिर किसी न किसी हसींना से।

शादी हो जाय तो मुबारक न हो तो उसे निकालो चक्कर से
ढूंढ़ो एक अदद लडकी शादी के बन्धन में बंधने के लिए ।

खुशियों में डूब जाते हैं माता औ' पिता दोनों ही
आगई जो गई है घर में एक नई नवेली दुलहन सी।

धीरे धीरे जिदंगी अपनी राह चलती रहती है
दो से तीन फिर चार की गिनती बढ़ती रहती है।

मुश्किलातों के बीच कभी हँसते तो कभी रोते जिंदगी चलती है
हौले हौले न चाहकर भी बंटवारे के द्वार जा खडी होती है।

अब कोई क्या करे क्या न करे समझ नहीं आता
अच्छों अच्छों की बोलती बंद होती जाती है।

हालात नाजुक होते जाते हैं काबू के बाहर जब हो जाते हैं
टिकट हरिद्वार की कटा एक दिन माँ बाप को ट्रेन पर बिठा देता है।

यहां तक साथ निभा कोई बचपन में लौट जाता है
कोई अपने जीवन की आखिरी सांस गिनता रहता है।

//surendrapal singh//

07 30 2014

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अक्सर तुम याद आते हो, सोये अहसास जगा जाते हो

कलम से____


अक्सर तुम याद आते हो,
सोये अहसास जगा जाते हो

ऐसा भी भला क्या कभी होगा,
तुम तो होगे बस मैं न होऊंगा।

ढूंढते रहोगे मुझे तुम हर उस जगह,
जो लगती है बहुत प्यारी तुम्हें बेबजह।

हसीन ख्वाब सजोंए थे कुछ हमने औ' तुमने
लगने लगेगें जो कभी भी थे ही नहीं अपने।

मेरी हमकदम साथ चलने का वादा कर
चली जाना नहीं जान मेरी हमें छोड इस कदर।

//surendrapal singh//

07 29 2014

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हर शाख पर कली एक खिल रही है देख कर उन्हें मेरी तबीयत मचल रही है।

कलम से____

बागवां की मेहनत रंग ला रही है
बाग में बहार फिर से आ रही है।

हर शाख पर कली एक खिल रही है
देख कर उन्हें मेरी तबीयत मचल रही है।

चम्पा चमेली मोंगरा महक रहा है
गुलाब की कली अभी बस खिल रही है।

तोड लूं इस कली को किसी के लिए
आशिकी मन भीतर की बोल रही है।

कली तोड आज एक मैं गुनाह न कँरूगा
फूल न बन जाये तब तक इतंजार कँरूगा।

कली गुलाब की हो या फूल दोनों सजेंगे
जब मैं उन्हें देकर पूछूँगा कि ये कंहा लगेंगे।

झट मुँह से उनके यूं निकल जायेगा
जहां तू चाहेगा यह फूल वहां सज जायेगा।

फूल की किस्मत तो देखिए गेसुओं में उनके टंक गया
फूल एक किसी को भा गया जो मैयत पर चढ गया।

//surendrapalsingh//
07 30 2014

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Photo: कलम से____

तुरंत लिखी है आपके लिए...........

बागवां की मेहनत रंग ला रही है
बाग में बहार फिर से आ रही है।

हर शाख पर कली एक खिल रही है
देख कर उन्हें मेरी तबीयत मचल रही है।

चम्पा चमेली मोंगरा महक रहा है
गुलाब की कली अभी बस खिल रही है।

तोड लूं इस कली को किसी के लिए
आशिकी मन भीतर की बोल रही है।

कली तोड आज एक मैं गुनाह न कँरूगा
फूल न बन जाये तब तक इतंजार कँरूगा।

कली गुलाब की हो या फूल दोनों सजेंगे
जब मैं उन्हें देकर पूछूँगा कि ये कंहा लगेंगे।

झट मुँह से उनके यूं निकल जायेगा
जहां तू चाहेगा यह फूल वहां सज जायेगा।

फूल की किस्मत तो देखिए गेसुओं में उनके टंक गया
फूल एक किसी को भा गया जो मैयत पर चढ गया।

//surendrapalsingh//
07 30 2014

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Monday, July 28, 2014

सावन मल्हार लोकगीत

( सावन मल्हार लोकगीत):-

सावन झूला झूले सखि राधिका संग
       ऐजी कोई हम्बे हाँ हाँ कोई हम्बे

झूलावें घनश्याम सावन---
       घर सों निकर कै आई ननदीया
           बरसें फुहारें उडे रे बदरिया
               ऐजी कोई हम्बे हाँ हाँ कोई हम्बे

करे दिल घात सावन---
      तीज मनावन बाबूल घर हौ
            सेमी खाजा खाये जीभर हौ
                 ऐजी कोई हम्बे हाँ हाँ कोई हम्बे

नैहर कटे रात सावन---
      जौवन छायो भरे हिलोरें
            आग लगावे पवन झकोरें
                 ऐजी कोई हम्बे हाँ हाँ कोई हम्बे
 
पिया को बताय सावन---
      ऐजी--


हरिहरि सिहं द्वारा रचित............
 — 

कल चर्चा का विषय गौ रक्षा बना रहा, गऊ की रक्षा हो ऐतराज़ नहीं हो रहा।

कलमसे____

कल चर्चा का विषय गौ रक्षा बना रहा,
गऊ की रक्षा हो ऐतराज़ नहीं हो रहा।

मुलायम दूध पिला रहे हैं बडी मेहनत काम कर रहे हैं,
भैसों को दुह रहे अहीर हैं कुछ नकली भी बना रहे हैं।

दूध दही की नदियां सब मिल कर बहा रहे हैं,
हिन्दोस्तान को अपनी औकात दिखा रहे हैं।

सुझाव इक मेरा है नहो राजनीति इस प्रश्न पर,
मिल बैठ तय यह करलो मनको पक्का कर।

सभी पीने वालों को असली चीज मिलेगी,
जरूरत अगर पडी गाय-भैंस की गिनती होगी।

रक्षा का वचन हर गाय-भैंस को दिया जायेगा,
बेमतलब इन्हें यूं ही न कटने भेजा जायेगा।

//surendrapal singh//
07 29 2014

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Sunday, July 27, 2014

एक वो भी जमाना था.....

कलम से _ _ _ _

एक वो भी जमाना था.....
आपने अक्सर सुना होगा अपने बुजुर्गों से,
आज की पीढ़ी बडा ताज्जुब करती है
इस कथनी पर,
वह यह भूल जाती है कि लोग आज के लिए भी तो कहते है कि,
इक ये भी जमाना है।

दोस्तों, फर्क है यह दो और दो से अधिक पीढ़ियों का।

मुझे याद पड़ता है,

मेरे दादी अम्मा ने कभी यह मुझसे कहा था,
तेरे बाबूजी को तेरी माँ ने प्रपोज किया था।
इक वो भी जमाना था....

(1939-40)

मैंने अपनी दादी अम्मा से पूछा,

ये सब कैसे हुआ था,
हँस के बोली कि सुन हुआ था कुछ ऐसे,
तेरी माँ ने देखा था किसी
अपने दोस्त की शादी मे तेरे बाबूजी को,
बुला भेजा था अपने पिताजी को
उनसे कहा था कि वो शादी करेंगी तो केवल तेरे बाबूजी से।

बस फिर क्या था,

तेरी माँ थी बहुत सुदंर
कर दी थी हाँ हमने भी भन के अंदर,
आनन फानन व्याह हुआ अति सुंदर ।

इक वो भी जमाना था....

इक ये भी जमाना है.......

(2013-14)

लड़का बोले महबूबा से,
बहुत हुआ मिलना मिलाना,
आ कर लें शादी,
घर है जो बसाना,
लड़की बोले क्या रखा,
घर बसाने में?

रहते हैं ऐसे ही,
लिविगं रिलेशनशिप में,
हमें नहीं बढ़ाना है
कुनबा अपना
नहीं बढाएगें सिर दर्द अपना।

दोस्तों, एक वो भी जमाना था
इक यह भी जमाना है
हमको तो यहाँ यूं ही आना है
और ऐसे ही जाना है।

//surendrapalsingh//
07 27 2014

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 — with Puneet Chowdhary.
Photo: कलम से _ _ _ _

एक वो भी जमाना था.....
आपने अक्सर सुना होगा अपने बुजुर्गों से,
आज की पीढ़ी बडा ताज्जुब करती है 
इस कथनी पर,
वह यह भूल जाती है कि लोग आज के लिए भी तो कहते है कि,
इक ये भी जमाना है।

दोस्तों, फर्क है यह दो और दो से अधिक पीढ़ियों का।

मुझे याद पड़ता है,

मेरे दादी अम्मा ने कभी यह मुझसे कहा था,
तेरे बाबूजी को तेरी माँ ने प्रपोज किया था।
इक वो भी जमाना था....

(1939-40)

मैंने अपनी दादी अम्मा से पूछा,

ये सब कैसे हुआ था,
हँस के बोली कि सुन हुआ था कुछ ऐसे,
तेरी माँ ने देखा था किसी
अपने दोस्त की शादी मे तेरे बाबूजी को,
बुला भेजा था अपने पिताजी को
उनसे कहा था कि वो शादी करेंगी तो केवल तेरे बाबूजी से।

बस फिर क्या था, 

तेरी माँ थी बहुत सुदंर
कर दी थी हाँ हमने भी भन के अंदर,
आनन फानन व्याह हुआ अति सुंदर ।

इक वो भी जमाना था....

इक ये भी जमाना है.......

(2013-14)

लड़का बोले महबूबा से,
बहुत हुआ मिलना मिलाना,
आ कर लें शादी,
घर है जो बसाना,
लड़की बोले क्या रखा,
घर बसाने में?

रहते हैं ऐसे ही,
लिविगं रिलेशनशिप में,
हमें नहीं बढ़ाना है 
कुनबा अपना 
नहीं बढाएगें सिर दर्द अपना।

दोस्तों, एक वो भी जमाना था
इक यह भी जमाना है
हमको तो यहाँ यूं ही आना है
और ऐसे ही जाना है।

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07 27 2014

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  • Harihar Singh बहतरीन आपने दोनों पीढी की सून्दर ठंग से सटीक मनमोहक चित्रण कियाSee Translation
    15 hours ago · Unlike · 2
  • Ram Saran Singh आदरणीय । यह पीढ़ी का अंतराल है । हमें समय के प्रवाह के साथ बहना है वरना बहुत पीछे छूट जाने का भय रहता है । धन्यवाद ।
    14 hours ago · Unlike · 1
  • Potty Kc Supper.. Sir
    14 hours ago · Unlike · 1
  • S.p. Singh दो विभिन्न परिवेश की कहानी है आज जो हमको जीनी है। आज भी एक वर्ग है जो पुरानी मान्यताओं में बधां है और एक उनमुक्त जीवन जीने की चाह कर रहा है। इसी भाव को उकेरने की कोशिश की है। आपकी टिप्पणियों से भी इसी धारणा को बल मिला है।
    धन्यवाद मित्रों।
    14 hours ago · Like · 1
  • Kunwar Bahadur Singh reality.ek jamana emotions ka dusra kewal need ka.
    13 hours ago · Unlike · 1
  • BN Pandey MERI TABAAHI KAA VAYAS JAHAA ME KOI NAHI....MUJHE FAREB DIYAA KHUD MERI TAMANNA NE..........
    2 hours ago · Unlike · 1

बडे तो बडे छोटों को भी है इंतजार बारिशों का छाता लगा पानी में घर से बाहर रह घूमने का।

This painting is done by my grand daughter Kuhu Singh.

बडे तो बडे छोटों को भी है इंतजार बारिशों का
छाता लगा पानी में घर से बाहर रह घूमने का।
 — with Ramaa Singh and Puneet Chowdhary.
Photo: This painting is done by my grand daughter Kuhu Singh. 

बडे तो बडे छोटों को भी है इंतजार बारिशों का
छाता लगा पानी में घर से बाहर रह घूमने का।