Wednesday, July 23, 2014

दहलीज ।

कलम से _ _ _ _
दहलीज ।

के इस ओर माँ का घर
उस ओर पिया का घर ।

इस ओर बचपन की डोर
डोर के सहारे
नाचे जीवन के मोर
नित नये सपने
कुछ अपने
कुछ सखियो के चितचोर
अचानक सब बदल गया
बचपन छूटा
छूटा खेलकूद का शोर
हम थे अब दूसरे छोर ।

दहलीज के दूसरी ओर....

पिया के घर
था सब नया-नया
मन था भरा-भरा
मिले था पिया का
ढेर सा प्यार
धीरे-धीरे
बदल रहा था संसार
बहुत डरते था जिया हमार
अब क्या होगा
कैसे होगा
फिर मन कहता
जो भी होगा अच्छा होगा
सपनों मे सजा
पिया का घरबार
हम जो थे
दहलीज के इस पार ।

दहलीज के
इस पार क्या आए
फिर कभी
उस पार न जा पाए
रिश्ते छूटे अपने रूठे
बदल गया है
मेरा संसार

दहलीज के इस पार.....


//surendrapalsingh//

07242014

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