Sunday, July 20, 2014

कलम से _ _ _ _
बूंद बन बरस,
बूंद सीप में गिरे, मोती बने,
बूंद कपोल से ढले, अश्रु बने,
बूंद बूंद कर गिरे, बूंद बूंद को तरसे।

बूंद आस बन गिरे, फसल तब उगे, 
बूंद ठहर जाय अगर तो हाहाकार मचे।

बूंद ठहर न बरस न गरज,
देख लूं तुझे तब तू बरस,
बरसे आकाश से तू मिस्ठी बन,
नमकीन है जब गिरे है अश्रु बन।

//surendrapal singh//

07192014

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