कलम से _ _ _ _
जिक्र कल ही किया था हमने,
नहीं भाते ये छोटे छोटे दबडे,
दम घुटता है यहाँ मेरा,
मेरा गाँव मुझे बुलाता है।
मेरे फाजिल,
दोस्त ने बस इतना कहा है,
कि इन दबडों को घर मैं कैसे कहदूं,
जहां इनसान बसते हैं,
हाँ, कबूतर खाना कह कर,
मेरा दिल उन्होंने दुखाया है।
दोष उनको दूगां नहीं,
किस्मत का है,
जिसने मुझे यहां ला पटक के रखा है।
चल यार चल वहां,
जहां चैन बसता है,
एक न एक दिन,
मेरे यार,
वहां सबको जाना है।
//surendrapal singh//
07202014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
जिक्र कल ही किया था हमने,
नहीं भाते ये छोटे छोटे दबडे,
दम घुटता है यहाँ मेरा,
मेरा गाँव मुझे बुलाता है।
मेरे फाजिल,
दोस्त ने बस इतना कहा है,
कि इन दबडों को घर मैं कैसे कहदूं,
जहां इनसान बसते हैं,
हाँ, कबूतर खाना कह कर,
मेरा दिल उन्होंने दुखाया है।
दोष उनको दूगां नहीं,
किस्मत का है,
जिसने मुझे यहां ला पटक के रखा है।
चल यार चल वहां,
जहां चैन बसता है,
एक न एक दिन,
मेरे यार,
वहां सबको जाना है।
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