Saturday, June 27, 2015

मस्त निगाहों से कैसी शराब पिलाई है





मस्त निगाहों से कैसी शराब पिलाई है
फिर होश में आने का दावा न किया हमने
वो और होंगे जिन्हें मौत आई होगी
आपकी निगाह में पाई है जिदंगी हमने !

Max PatpargaFacility


कलम से____

हस्पताल के भीतर घुसते ही
दिल धक धक करने लगता है
क्या क्या होगा न जाने कैसे होगा
अपने आप से ड़र लगने लगता है

कुछ हैं जो हर रोज़ आते
फर्ज़ अपना समझ हैं निभाते
कुछ लोग अपनों को खो हैं देते
बचाने वाले भी उन्हें नहीं बचा पाते

खफ़ा होके उनसे क्या है मिलेगा
जो लिखा है किस्मत में उतना मिलेगा
अपनों को अपनों के बीच हैं जो पाना
इज्ज़त देना और इज्ज़त तब पाना
करना न कोई फसाद बबाल या बहाना
जिदंगी है छोटी सुदंर इसे तुम बनाना....

(कल ही गया था मैं अपने डाक्टर साहब मनोजकुमार जी से 
Max PatpargaFacility में मिलने अपने दिल का हाल लेने। अभी सब ठीक ठाक है।)

चला गर गया मैं, कब लौटूँगा मालूम नहीं......

चला गर गया मैं,
कब लौटूँगा
मालूम नहीं......




कलम से____

खत़ लिखे हुये एक अरसा गुजर गया
कलम उठाई भर थी
झर झर के मेघ आ गये
कहने लगे भीग जाओ मेरे साथ
खत़ का क्या है फिर लिख लेना
चला गर गया मैं,
कब लौटूँगा
मालूम नहीं......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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अब बच्चे हमारी sense of dressing पर फब्तियां कसते हैं



अब बच्चे
हमारी sense of dressing
पर फब्तियां कसते हैं
यह तुम पर नहीं फबता
यह तुम पर अच्छा लगता है
बाहर निकला करो
तो कायदे से
वगैरह वगैरह।

आज हादसा जो हुआ
जाने को तैयार था
मोहतरमा कुहू
ने जाने न दिया
dress change करा कर ही
जाने दिया.....

मन के भीतर की बात तो बात आगे बढ़े कहानी कुछ आगे चले मैं चलूँ, तू चले, जमाना चले......



कलम से____

जब से यह जाना है कि
तुम्हारी नज़र है मुझ पर
देखती हो 
अपनेपन के अंदाज में
पढ़ती हो मेरी हर रचना को
लफ्ज दर लफ्ज
समझने की कोशिश करती हो
जो मैं नहीं कहता
मतलब वो
समझती हो

तब से मैं भी
एतिहात बरतता हूँ
बेफिक्र रहता था
फिक्र अब करता हूँ
अपनी हर पोस्ट पर
ध्यान बहुत देता हूँ
कहीं कुछ छूट न जाए
कुछ ऐसा न हो जाये
कुछ वैसा न हो जाये
कुछ अनकहा रह न जाये
हर कोने से देखता हूँ
तराशता हूँ बार बार
एक शहकार की तरह

जो तुम्हें पसंद हो
तुम्हारी नज़रो को दिखे
ख्याल इसका करता हूँ
पहले ऐसा न था मैं
तुम्हारा ख्याल
अब हर बात में रखता हूँ
बदलाव जो आया है यह
क्या तुम जानती हो?
बताओ तो जरा
मन के भीतर की बात
तो बात आगे बढ़े
कहानी कुछ आगे चले
मैं चलूँ, तू चले, जमाना चले......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Sunday, June 21, 2015

कुछ तो था जो पलट पलट कर वो देखता रहा दूर फिर कुछ दूर और जा आँखो से ओझल हो गया....


कलम से_____
कुछ तो था जो पलट पलट कर वो देखता रहा
दूर फिर कुछ दूर और जा आँखो से ओझल हो गया....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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पक्षी ही आके दिल बहलाये दाना डालूँ तो चुग जाये.....


इस घर को भी 
एक आंगन की तलाश रहती है
कभी कोई आये 
बतियाते
.....और नहीं तो
पक्षी ही आके दिल बहलाये
दाना डालूँ तो चुग जाये.....



©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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साथ रहे बस तेरा कयामत तक याद में तेरी आँख फिर भर आई है ।



साथ रहे बस तेरा कयामत तक
याद में तेरी आँख फिर भर आई है ।



कलम से____

जब जब की है हमने चौबारे में खुदाई
हमें चारों ओर तेरी सूरत है नज़र आई।
खत ढूँढता रहा हूँ कोने में रखी पोटली में
हर वक्त नसीहत ही तेरी याद आई है ।
अंधेरे जिंदगी का पीछा छोड़ते नहीं
आशीर्वाद ने तेरे ऊम्मीद-ए-लौ जलाईं है।
हार न मानूँगा मैं हालात से इस कदर
लडूगाँ तूने की जो हौसलाअफजाई है।
साथ रहे बस तेरा कयामत तक
याद में तेरी आँख फिर भर आई है ।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Friday, June 19, 2015

टूटती सांसों के सहारे कौन जिंदा रहता है......




कलम से____


चराग बुझते ही
हर शाम दिल में
एक धुआँ सा उठता है
नज़र के सामने
अंधेरा छा जाता है
अंतस में तीर सा चुभ जाता है......

तनहाई में
कुछ खो जो गया है
ढूँढा करती हूँ
बिस्तर के किनारे
कभी सिरहाने
कभी पैतियाने......

टूट कर अलग हो जाते
शाख़ से सूखे पत्ते
दूर चले जाते
आंधी में उड़ जाते
रुकना भी चाहें
रुक नहीं पाते.......

मुड़ के कौन देखता है
चाहत जिसकी वाकी हो
वो ही मुड़ता है
कहाँ छूट गई परछाईं
तलाश उसकी करता है......

टूटती सांसों के सहारे
कौन जिंदा रहता है......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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तुम्हीं बचाओ अब हे नाथ बटेश्वर।


कलम से____

ए भोले तुम अभी भी न ड़ोले
हम हारे करते जै बम भोले ।
वक्त करीब है अब कितना
तुमको तांडव है अब करना।
पाप धरा पर है चरम पर
करो मुक्त इसे तुम विशधर।
धरती है विनाश के कगार पर
काले नागों से करो हे मुक्तेश्वर।
नारी सम्मान बिक रहा पल पल
तुम्हीं बचाओ अब हे नाथ बटेश्वर।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Monday, June 15, 2015

वो शहर भी आपका था, अदालत भी आपकी थी.........




कलम से____

निगाहें मोहब्बत की थीं पर आपकी थीं
शरारत थी आपकी पर दिल को अज़ीज़ थी
अगर कुछ बेवफाई थी तो वो भी आपकी थी
छोड़ आये हैं गली कूचा शहर जो कभी आपका था
हिदायत भी हमको वो आपकी थी
आखिर करते शिकायत हम किस हुक्मरान से
वो शहर भी आपका था, अदालत भी आपकी थी.........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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तुम सिर्फ तुम ही बसती हो इन आँखो में राधिके !!!




कलम से___

किसकी तलाश है
तुम्हारी निगाहों को
ढूँढ पाओगी उसको
क्या तुम,
मेरी आँखों में
तुम सिर्फ तुम ही बसती हो
इन आँखो में
राधिके !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Friday, June 12, 2015

आइ जइय्यो बजेगी जब मेरी बांसुरिया.....




कलम से____

हम सें कैसे छिपोगी मेरी राधा रानी
नहीं चलेगी तुम्हारी कोई मन मानी
कर सोलह श्रंगार पहिन धानी चुनरिया 
आइ जइय्यो बजेगी जब मेरी बांसुरिया.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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मस्ती जो इन आँखों में हैं,




कलम से____

मस्ती जो इन आँखों में हैं,
मदिरालय में कहाँ, 
अमीरी दिल की किसी महालय में कहाँ, 
शीतलता पाने को भटकता है कहाँ,
जो अपने घर परिवार में है
वो हिमालय में कहाँ...

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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प्राण मेरे हैं तुझमें समाए हुए....



कलम से____

सांसों का आना जाना चलता रहा
एक बस तुम न आए
अरमानों की दुनियाँ सजती रही
बस एक तुम न आए
तमन्ना यही थी दर्शन प्रभु दोगे अवश्य
बस एक तुम न आए
मानूँगा नहीं ऐसे मैं तुमको आना ही होगा
प्राण मेरे हैं तुझमें समाए हुए....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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मौला मेरी इतनी दुआ तू कुबूल करले।


मौला मेरी इतनी दुआ तू कुबूल करले।


कलम से____

मैंने कब तुझसे कहा तू मुझे महल अटारी दे दे,
ख्वाहिश बस इतनी सी थी मेरे हिस्से की चादर मुझे देदे,
पीने की हसरत हो जब जवां तो मेरा सागर मुझे देदे,
बैठे रहो सामने तुम, मौला मेरी इतनी दुआ तू कुबूल करले।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Wednesday, June 10, 2015

तेरे नाम से मिलके मेरा नाम राधेश्याम हो गया



Jia Shree Radhe



कलम से____

तेरे नाम से मिलके मेरा नाम राधेश्याम हो गया
तू मिल जाये गर मुझे तो समझो मेरा काम हो गया।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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कहाँ चलौ जाये है करि अखिँयां चार

Radhe Radhe


कलम से____

कैसी उठी है पीर जिया हमार
तोसों मिलवे कूँ मन करै बार बार
कहाँ चलौ जाये है करि अखिँयां चार

अइय्यो मोसूँ तू मिलवे कों जमुना पार.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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Monday, June 8, 2015

झूम कर बदली उठी कहने लगी लो मैं आ गई,

कलम से____

झूम कर बदली उठी कहने लगी लो मैं आ गई,
सुन कर सबने कहा लो हम पर जवानी आ गई !!
हाय कैसी मदमस्त निगाह थी उसकी,
जब भी उट्ठी मस्तियाँ बरसा गई !!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Sunday, June 7, 2015

कागा आवाज देकर बता जाता




कागा आवाज देकर बता जाता
कोई है आने वाला
कागा बैठा छाँव तले
खुद करता इंतजार
बारिश का.......

कान्हा तेरी याद जि कैसी बैरन है गई......


रात भर तू संग रही
भोर होत छोड़ काहे चली गई
कान्हा तेरी याद जि कैसी बैरन है गई......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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"चाँद पर चलने की ख्वाहिश है मेरी",


"चाँद पर चलने की ख्वाहिश है मेरी",
बेटी ने माँ से कहा।

झट से पानी गिरा फर्श पर माँ ने चाँद को उतार कर कहा, "आ कर ले, तू अपने मन की।"

(यह वास्तविक घटना पर आधारित है, एक रात की बात है मैं तो सो गया था पर कुहू ने अपनी मम्मा( दादी ) से कहा वह एक दिन चाँद पर चलेगी। और फिर तब कुहू की मम्मा ने झट से चाँद जमीं पर उतारा)

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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अगर हम " तुझे " समझ लेते तो इतनी मुश्किल में न पड़ते !!!

जो दूर चले जाते हैं


कलम से____

6th June, 2015/Kaushambi

छोड़कर वो गर न गये होते

तो गम़ जुदाई का कैसे समझते
आँख से आँसू न गिरते
याद आते हैं अपने कैसे समझते
गरमी इस कद़र न पड़ती
बारिशों की कीमत कैसे समझते
गुलाब में कांटे न होते
ख़ुशबू कैसी होती है कैसे समझते
जिदंगी मुश्किल न होती
जिदंगी को कैसे समझते

समझने समझाने में ही कट गई
यूँही ये जिंदगी.....
अगर हम " तुझे " समझ लेते
तो इतनी मुश्किल में न पड़ते !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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जो दूर चले जाते हैं वो वापस फिर लौट नहीं पाते हैं





कलम से____

4th June, 2015/Kaushambi

हो सके तो
कभी किसी से भी कुछ ऐसा न कह देना
जो बुरा उसे लग जाये
कहीं दूर बहुत दूर वो चला न जाये
जो दूर चले जाते हैं
वो वापस फिर लौट नहीं पाते हैं
कभी ...........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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हल्की-फुल्की सी आंधी-पानी ने हलचल दिल्ली में पैदा कर दी

आज सुबह हल्की-फुल्की सी आंधी-पानी ने हलचल दिल्ली में पैदा कर दी।


सामने विकराल रूप देख अंधड़ का
कागा के सरताज भी ड़र गये
जगह सुरक्षित ढूँढने लगे
इधर उधर छिपने लगे....

आज सुबह हल्की-फुल्की सी आंधी-पानी ने हलचल दिल्ली में पैदा कर दी।

'एकांत' में सुनना कभी तुम मेरी गज़ल .....

'एकांत' में सुनना कभी तुम मेरी गज़ल .....


कलम से____

जबसे इधर मुलाकातें बढ़ने लगीं है
तबसे तन्हाइयां अच्छी लगने लगीं हैं
दिल धड़कने लगता है महफिलों में
'एकांत' में सुनना कभी तुम मेरी गज़ल .....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Tell the winds.......

नहीं जानती साथ तुम्हारा कभी मैं पाऊँगी?





कलम से---

01-06-2015/Kaushambi

हर दिन तुम आगे बढ़ जाते हो,
छोड़ मुझे पीछे क्यों आगे हो जाते हो,
क्या कभी मैं साथ तुम्हारे चल पाऊँगी,
नहीं जानती साथ तुम्हारा कभी मैं पाऊँगी?

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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आँधी एक ऐसी चली




कलम से____

रात की बात है
आँधी एक ऐसी चली
ख्वाब जो थे बुने
मिट गये........
अम्बार धूल के
बस रह गये.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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दिल की सुनने को न मैं, न तू राजी है।



कलम से ------

फूल खिलते ही खरीदार आ जाते हैं, 
बागबां के दिल को ठेस दे जाते हैं, 
हर हसीन चेहरे की दास्तान निराली है,
दिल की सुनने को न मैं, न तू राजी है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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सुल्ताना डाकू के किस्से

Moment's maker:
बैठे-बैठे आज सुल्ताना डाकू के किस्से की याद आ गई।
इसकी दो बजह रहीं:
पहली इसलिए कि सुल्ताना डाकू उत्तर प्रदेश के अचंल में लोक संगीत की विधा नौटंकी का प्रमुख नायक रहा है और आज भी ग्रामीण अंचल में हीरो की तरह याद किया जाता है।
दूसरी बजह:
सुल्ताना डाकू की सुनार कोठी-शिवालिक(रानीपुर के निकट) की पहाडियों के किस्सों की याद जो आ गई। कहावत प्रचलित है कि सुल्ताना सुनार कोठी में लूट के सोने को गलाया करता था।
जो लोग सहारनपुर, बिजनौर तथा हरिद्वार जनपद के इतिहास की जानकारी रखते हैं, उन्हें सुल्ताना डाकू के किस्से रह रह कर याद आते रहते हैं।
नौटंकी के हारमोनियम की मस्तानी धुन, नगाडे की थाप और गर्मी की रातों में नींद उड़ाती रहती थी और बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती रहती थी। शनैः शनैः यह सभी लोक कलायें इतिहास बनती जा रहीं हैं।

नौटंकी के बाबत:
नौटंकी में कविता और साधारण बोलचाल को मिलाने की प्रथा शुरू से रही है। पात्र आपस में बातें करते हैं लेकिन गहरी भावनाओं और संदेशों को अक्सर तुकबंदी के ज़रिये प्रकट किया जाता है। गाने में सारंगी, तबले, हारमोनियम और नगाड़े जैसे वाद्य इस्तेमाल होते हैं।मिसाल के लिए 'सुल्ताना डाकू' के एक रूप में सुल्ताना अपनी प्रेमिका को समझाता है कि वह ग़रीबों की सहायता करने के लिए पैदा हुआ है और इसीलिए अमीरों को लूटता है। उसकी प्रेमिका (नील कँवल) कहती है कि उसे सुल्ताना की वीरता पर नाज़ है (इसमें रूहेलखंड की कुछ खड़ी-बोली है):
सुल्ताना:
प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
कोई मुझ सा दबंगर न रश्क-ए-कमर
जब हो ख़्वाहिश मुझे लाऊँ दम-भर में तब
क्योंकि मेरी दौलत जमा है अमीरों के घर
नील कँवल:
आफ़रीन, आफ़रीन, उस ख़ुदा के लिए
जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
मेरी क़िस्मत को भी आफ़रीन, आफ़रीन
जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम
सुल्ताना:
पा के ज़र जो न ख़ैरात कौड़ी करे
उन का दुश्मन ख़ुदा ने बनाया हूँ मैं
जिन ग़रीबों का ग़मख़्वार कोई नहीं
उन का ग़मख़्वार पैदा हो आया हूँ मैं
सुल्ताना:
प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
कोई मुझ-सा दबंग नहीं
जब मेरी मर्ज़ी हो एक सांस में ला सकता हूँ
क्योंकि अमीरों की दौलत पर मेरा ही हक़ है
नील कँवल:
वाह, वाह, उस ख़ुदा के लिए
जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
मेरी क़िस्मत को भी वाह, वाह
जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम
सुल्ताना:
पा के सोना जो कौड़ी भी न दान करे
ख़ुदा ने मुझे उनका दुश्मन बनाया है
जिन ग़रीबों का दर्द बांटने वाला कोई नहीं
उन का दर्द हटाने वाला बनकर मैं पैदा हुआ हूँ
वाह री हमारी लोक संस्कृति.....लख लख सलाम।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Snippets recorded by Arvind Kansal using Flip. Lecture-show at 125 Morrison Hall, Center for South Asia Studies, UC Berkeley, CA.

Moment'so maker:

Moment'so maker:


Moment'so maker:

आज राम की बिटिया की हालत देख कर
आज उसे भी जूठन पर जीना जो पड़ा
दिल मेरा यूँ मचल मचल गया
इन्सान ने राम के नाम का दुरुपयोग जो किया
बनाना है तो बनादो एक आशियां उनका भी
रोज़-रोज़ दिल मेरा यूँ तोडा ना किया ।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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