Thursday, May 28, 2015

कोई प्यार से पूछे तो उसे हम क्या कहें

शब के होते होते दोनों ही जल गये
किसको समझें शमा-ये-महफिल किसको दीवाना कहें !



कलम से____

27th May, 2015/ Kaushambi

कोई प्यार से पूछे तो उसे हम क्या कहें
हम तो वो हैं जिसे अपने भी बेगाना कहें !

क्या कहके पुकारे जायेंगे हम जैसे वहाँ
होश वालों को जहाँ लोग दीवाना कहें !

तनहाई में आज फिर आँख से टपके हैं आँसू
बहलाने को जी आज हम अपना अफसाना कहें !

उनसे बनी हुई है रौनक कत्ले-निगाह की
कहने वाले मुझे बेकार ही उनका दीवाना कहें !

शब के होते होते दोनों ही जल गये
किसको समझें शमा-ये-महफिल किसको दीवाना कहें !

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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लोगों के साथ लेके चलने में कुछ बात और है।



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नदी में तैरने का मजा ही कुछ और है
धारे के खिलाफ चलने की अपनी ही मौज है
अपने ही अंदाज में जीने का मजा ही कुछ और है
लोगों के साथ लेके चलने में कुछ बात और है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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माटी के भी दिन फिरने वाले हैं


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माटी के भी दिन फिरने वाले हैं
सोहनी-महिवाल जैसे दिन फिर लौटने वाले हैं
सुराही गुल्लक फिर बाजार में दिखने जो लगे हैं
यह बाजार ही तो है भाव गिराता-बढ़ाता है
बाजार चाहे तो मिट्टी को सोना बना दे
नींद नयनों की अच्छे-अच्छों की उड़ा दे।

इस गर्मी के सीजन में कुछ तो अजीब होने वाला है
तरबूज बीस रुपये
खरबूजा पचास रुपये
लीची अस्सी रुपये
बेल का शर्बत दस रुपए
आम अभी आया नहीं है
लगता है वो भी अस्सी रुपये
नीचे नहीं रहने वाला है.....

सब्जियों में आग लगी है
दिलों में ठंडक जो पड़ी है....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Wednesday, May 27, 2015

बरस जाओ बरस बरस कर तब जाओ।

कलम से____

कैसी अजीब फितरत है इन्सान की
कभी खराब कभी भली लगती है धूप भी
मौसमी फितरत के यह रंग निराले हैं
कभी बरसात तो कभी धूप के लाले हैं
हम भी देखो कितने नसीब वाले हैं
गरमी सरदी बरसात से भरे परनाले हैं।

मेरी प्रार्थना में प्रभु तुम हो
तुम ही रखवाले हो
तुम ही तारणहार हो
ध्यान धरो चहुँओर हुआ हा हा कार है
बरस जाओ बरस बरस कर तब जाओ।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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घरोंदे का बनाना


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आसां नहीं होता है
घरोंदे का बनाना
लाना पड़ता है 
एक एक तिनका
चुनकर हर उड़ान में

तिनके भी हर मौसम में
नहीं मिलते

दिल वालों के दिल भी
हर मौसम में नहीं खिलते

टूट न जायें
ख्वाब कहीं वक्त की मार से
ध्यान बड़ा रखना पड़ता है

मकान बनाना इतना आसां नहीं होता है
बनी रहे इज्जत इसका ख्याल रखना पड़ता है .......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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चंदा मामा मैगजीन


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बचपन की बात हो और चंदा मामा मैगजीन की बात न हो तो क्या मतलब है बातचीत का।

नीहारिका साइंस मैगजीन की बात न हो तो क्या?

सन्डे के पेपर की बात हो और मैनड्रेक ली फाक एण्ड लोफर की बात न हो तो क्या मतलब?

बचपन की बात हो और चोरी सिपाही खेल की बात न हो तो क्या मतलब।

कंचो की, गुल्लक की, दूध-मलाई की बात न हो तो क्या.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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रफूगर की तलाश




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रफूगर की तलाश 
कभी कभी
अभी भी
महसूस होती है ......

बमुश्किल उनसे मुलाकात होती है।

ज़रा सा रफू करा के देख लीजिये
जिदंगी बड़े काम की चीज़ है
इसे यूँही बेकार न जाने दीजिए....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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बर्फ के गुल्ले फिर लौट आये हैं।





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गर्मियों की छुट्टियों में बचपन के दिनों में ननिहाल-ददिहाल में सिल्ली वाली बर्फ का गोला खाने का आनंद ही कुछ और था।

अब यह बर्फ के गुल्ले फिर लौट आये हैं।

दुबारा आपके मन बहलाने के लिए। घर से बाहर निकल कर कभी दुनियां फिर से देख यार मेरे......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Thursday, May 21, 2015

फिर आ गया है, बच्चों को मनभाता है और नाम शायद Candy Puff कहलाता है।


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बायसिकल के पीछे टिन के कैन में लाता था, वो गर्मियों की छुट्टियों में। हम बचपन में खाते बहुत थे बुढ़िया के बाल कहके बेचा करता था।

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फिर आ गया है, बच्चों को मनभाता है और नाम शायद Candy Puff कहलाता है।

याद आते ही बचपन, हमें अपना बहुत हँसता / रुलाता है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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कलई करनेवाले अब नहीं दिखते हैं.......




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नहीं मालूम कितने लोगों को याद है कि माँ हर तीसरे-चौथे महीने चौके के बर्तनों पर कलई कराया करती थी।

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कलई करनेवाले अब नहीं दिखते हैं.......

न जाने कहां खो गये?

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ताउम्र काटा किये फसल ख़ून की



कलम से____

20th May, 2015/Kaushambi

ताउम्र काटा किये फसल ख़ून की
ज़ख़्म नफरत के बीज ऐसे बो गये।
बेगुनाह कैद में रहे ज़ुल्म किये बगैर
दाग़ किसके आके समंदर धो गये।
देख कर मज़बूरी इन्सान की
शाम से ही पहले परिन्दे सो गये।
ढूँढा किये दिन रात परीशां हो गये
मंजिल मिली तो रास्ते खो गये।
यादें अनगिनत साथ यूँही चल पड़ीं
हम ही बीच में रास्ता भूल गये।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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रंग कुछ तेरा, कुछ मेरा बदला हुआ होता है।




कलम से___

अक्सर ऐसा होता है
सांस से सांस का मिलन जब होता है
रंग कुछ तेरा, कुछ मेरा बदला हुआ होता है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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इन्हें यूँही गुजर जाने दे.....


कलम से____

कहने को बहुत कुछ है
गर कहने पे आते
प्यार के लमहे हैं
चंद ही अपने पास
बस प्यार कर लेने दे
इन्हें यूँही
गुजर जाने दे.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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दिल्ली के लोग मस्त अधिक होते हैं


कलम से....

18th May, 2015/Kaushambi

दिल्ली के लोग
मस्त अधिक होते हैं
खाते पीते रहते हैं
कुछ ज्यादा खाते है
थोड़ा ज्यादा ही पीते हैं।

जो खाते हैं
वह जग जाहिर हो जाता है
इधर-उधर नज़र आ ही जाता है
लाख छिपाने की कोशिश हो,
अमीरी भला कहीं छुपती है
वो तो दिख ही जाती है
जोर फैशन का रहता है
सोना-चाँदी यहाँ खूब बिकता है।

हम तो लखनवी हैं
नज़ाकत जहाँ बसती है
नाजुक से लोग यहाँ रहते हैं
यहाँ भी खाते पीते हैं
पर लिमिट में रहते हैं
हुस्न गली-गली रहता है
लोगों को दीवाना करे रहता है
लैला की उगंलिया मजनू की पसंलिया
कोई ऐसे ही थोड़े कहता है
कहते हैं
बेगम जब पीक निगलती थीं
तो गले में उतरता दिखता था
हाँ, अब उतना न सही फिर भी
हुस्न गली गली दिखता है।

दोस्तों, दिल्ली दिल वालों की रही है और रहेगी,
लखनऊ, अपने अंदाज और अदा के जानिब जाना जाता है, कुछ ऐसा है, वैसा ही रहेगा ।

मुश्किल होती है उनको जब कहना पड़ता है,
बाजारे हुस्न, अदब, नज़ाकत, नफ़ासत से रंगा लखनऊ है अपना
दिल्ली भी अपनी और दिल्ली का दिल भी अपना

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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सात घोड़ों के रथ पर हो सवार







लाल गोला 
सात घोड़ों के रथ पर हो सवार
रंगो की छाप छोड़ता हुआ
आँखों से ओझल हो गया
कल शाम फिर खो गया....

जिस शहर में रहता हूँ मैं




कलम से____

जिस शहर में रहता हूँ मैं
बढ़ कितना गया है न पूछो
फंस गई है मछली जाल में
कितना रोया है ताल मत पूछो
संध्या ने छिपा लिया है सूरज
अधेंरो की चाल के बाबत न पूछो
मिलने का वादा था उनका
आये न क्यों हमसे मत पूछो
दुश्मन जो न कर पाये
दोस्तों के कमाल मत पूछो
जियेंगें जहान में किसकी खातिर
यह सवाल हमसे ने पूछो

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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इत्तेफ़ाक ही होगा




कलम से____

इत्तेफ़ाक ही होगा
शायद
शाख़ से क्या जुदा हुये
फिर जगह जो मिल गई

एक तेरी हुई
एक मेरी रही........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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तू फिर आज आकर रुला गई तेरी याद आज फिर आ गई......





कलम से____

तू फिर आज
आकर रुला गई
तेरी याद 
आज फिर आ गई......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Thursday, May 7, 2015

उनके मेरे आलिंगनपाश मे आने का उदघोष कर रहे हैं

उनके मेरे आलिंगनपाश
मे आने का उदघोष कर रहे हैं 



कलम से____

7th May, 2015

हे मन
तू सध जा
तनिक
और
रुक जा !

संध्या
हो गयी,
निमंत्रण
नहीं आया,
इंतजार
कुछ और करना होगा,
चाँदनी रात को,
कुछ देर और ठहरना होगा !

जुगनू
मेरे आगे-पीछे,
घूम-घूम,
कुछ कहने
का प्रयास कर रहे हैं,
खुद-ब-खुद
उनके मेरे आलिंगनपाश
मे आने का उदघोष कर रहे हैं !

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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न जाने क्या ख़ास था उसमें जो मेरा यह हाल कर गया !







कलम से_____

7th May, 2015/Kaushambi

न जाने क्या ख़ास था उसमें जो मेरा यह हाल कर गया !

अजीब शक्स था जो आँखो में ख्वाब छोड़ गया
दिल में मेरे वो अपनी ख़ास एक बना गया !

नज़र मिली तो झुकाके निगाह वो चला गया
एक सवाल के मेरे जबाव कई छोड़ गया !

पता था उससे तन्हा न रह सकूँगी मैं
गुफ्तगू के लिए महताब छोड़ गया !

गुमान हो मुझे उस पर काम वो कर गया
कैसी पहेली है जो अनसुलझी छोड़ गया !

बुझते हुये चराग रौशन वो कर गया
हरेक दरीचे पर जो आफताब छोड़ गया।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Tuesday, May 5, 2015

हर रात चाँद नदिया में उतर आता है



कलम से____

5th May, 2015/ Kaushambi

हर रात चाँद
नदिया में उतर आता है
मन को दूर कहीं ले जाता है....
लगता है जैसे
कोई मल्लाह नदी के साज पे गीत गाता है,
हवाऔं के झकोलौं पे तुम्हारा शरीर मेरी बाँहों में झूल जाता है,
कुछ ऐसा ताना-बाना ख्यालात में उभरता जाता है ।

नदिया के इस पार.....

एक गुज़रा हुआ ज़माना है,
जहाँ जिंदगी रफ्ता-रफ्ता चलती रहती है,
सुकून है फिजाऔं में मस्ती है,
भगदड़ से दूर है जो मोहब्बत,
हरपल जिंदा जो रहती है,
लगता है जिंदगी बस यहीं बसती और रहती है।

नदिया के उस पार.....

कुछ नया सा हो रहा है
एक शहर नया बस रहा है
नये लोगों के लिए
हर चीज नयी होगी
ऐसा लग रहा है,
चौड़ी-चौड़ी सड़कें,
ऊँचे-ऊँचे बंगले,
सजे-धजे रौशन बाज़ार,
सब कुछ तो नया नया सा है,
कहीं पर किसी का कुछ लगता है
जो खो गया है,
सब बिकता है
सब मिलता है,
बस एक मोहब्बत भरा दिल नहीं मिलता है।

नदिया के इस पार,
नदिया के उस पार,
लोगों का इक जहां बस रहा है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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चंबे दी इॅक कुड़ी,



कलम से____

चंबे दी इॅक कुड़ी,
दा व्याह,
दिल्ली दे इॅक मुँडे,
नाल हो गिआ,
अोहदे नाल समझो,
वड्डा गुनाह हो गिया;
अोहदी तबियत दिल्ली विच नइंयों लगदी,
हाय अो रॅब्बा, हुण की करे,
चंबे जावै जां दिल्ली रवै।।
दिल्ली रवै तां अोहदा दिल ना लॅग्गे,
हर वेले अो चंबे नूँ याद करे,
हे जगदम्बे माँ,
सुब्हो-शाम इॅको गॅल करे,
तॅुस्सी कॅुझ वी करो,
सानूँ कॅुझ नी जे चाहीदा,
बस चंबे वापस लै चलो


©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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पुष्प बनती सिरमौर होती



कलम से____

पुष्प बनती सिरमौर होती
मंजरी बन ही झर गई
कदमों तले मैं आती रही
रंग रूप से यूँ मैं हार गई !!!

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कुछ अपनी कह लेंगें कुछ तेरी सुन लेंगे

कुछ अपनी कह लेंगें
कुछ तेरी सुन लेंगे



कलम से____

हम तो फुर्सत से हैं
जब तुम्हें फुर्सत हो 
तो आ जाना
मिल बैठ
दो चार बात कर लेंगे
कुछ अपनी कह लेंगें
कुछ तेरी सुन लेंगे

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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तस्वीर पुरानी यादों को ताजा जो कर गई...




रात एक बात खास हो गई
पार्टी एक फिर हो गई......

तस्वीर पुरानी यादों को
ताजा जो कर गई....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

गहन अंधेरे हैं बहुत चरागों का पता दे दो नजर कुछ भी आता नहीं नज़ारों का पता दे दो !


गहन अंधेरे हैं बहुत चरागों का पता दे दो
नजर कुछ भी आता नहीं नज़ारों का पता दे दो !



कलम से____

2nd May, 2015/Kaushambi

गहन अंधेरे हैं बहुत चरागों का पता दे दो

नजर कुछ भी आता नहीं नज़ारों का पता दे दो !

चुप्पी तेरी बरदाश्त अब होती नहीं है
भटका हूँ बहुत मेरे सवालों के जबाब दे दो !

रंग देखे हैं खूब फिजाओं में पलाशों में
खुशबू की चाहत है गुलाबों का पता दे दो !

न रोको परिन्दों को खुले अम्बर में उड़ने से
पर कटे हैं तो क्या उनकी हसरतों को उड़ान भरने से मत रोको !

बिना खिड़की के बंद कमरों में ए रहने वालो
शहर की तंग गलियों को हवाओं का पता दे दो !

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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रात कल तुम फिर बरस गये



कलम से ____

रात कल तुम फिर
बरस गये
बिनु बुलाये से आये
आवाज भी न की
और वापस चले गये...

यह कैसा खेल
खेल रहे हो प्रभु
कुछ तो बोलो
अब तो कुछ बोलो...

NCR में रात फिर बारिश हुई।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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एक दिन और हुआ तमाम किसको है किसका इंतजार....

कलम से_____

एक दिन और 
हुआ तमाम
किसको है किसका

इंतजार....


©सुरेंद्रपालसिंह 2015

सूर्यास्त कल का बहुत कुछ कह गया


सूर्यास्त कल का बहुत कुछ कह गया


कलम से_____

सूर्यास्त
कल का बहुत कुछ
कह गया
बादल फिर
धिरने लगे
बेमौसम मार सहते सहते
खेत खलिहान चौपट हुये
आस का दीपक
भी बुझ गया
विश्वास अब
तुझसे भी उठ गया
मैं जीते जी टूट गया।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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भूल न जाना शहीदों को चैन की नींद सो रहा है वहाँ कोई।




कलम से ____

जान हो तुम मेरी कह गया कोई
मर गया तन्हा इंतजार में कोई।

बयां कर न पाऊँगा उस सैर की बानी
मिले न चैन बहार में अब कोई।

आ गया हूँ छोड़कर अपनी दुनियां
पिला दे जाम साकिया अब कोई।

जिक्र उस रात का क्या करूँ मैं
सिर रखके तेरी गोद में सो गया कोई।

भूल न जाना शहीदों को
चैन की नींद सो रहा है वहाँ कोई।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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हर आहट पर लगता है तुम आ गये.......

हर आहट पर लगता है
तुम आ गये.......





कलम से____

मेरी एक तस्वीर
बहुत पहले जो तुमने 
कैनवस पर उतारी थी
मेरी जिंदगी में जब
दाखिल तुम हुये थे
आड़ी-तिरछी चंद लकीरों
को सलीके से लगा कर
पूरी करी थी,
मुझे आज अधूरी सी लगी
रुक न पाई मैं,
ब्रश उठ गया अचानक
बस एक रंग की
कमी सी लगी
रंग वो मैंने
भर दिए हैं,
तस्वीर की मांग में !

अब बस इंतजार है
तुम्हारे आने भर का
हर आहट पर लगता है
तुम आ गये.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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फूलों पर बहार कुछ ही दिनों की है





कलम से____

फूलों पर बहार कुछ ही दिनों की है
मेरा बजूद बस इन्हीं की जरूरत है
ज़माने ने तो भुला ही दिया है... See More
 — with Puneet Chowdhary.

पतझड के बाद, नई कोपलें मन को भाने लगीं है,


पतझड के बाद,
नई कोपलें मन को भाने लगीं है,






कलम से ........

पतझड के बाद,
नई कोपलें मन को भाने लगीं है,
पेड़ों पर रंगत आने लगी है,

अगंड़ाई मौसम लेने लगा है
दुपहरिया गरम अब होने लगी है,
हवाओं का रुख भी बदलने लगा है,
न बदला और न बदलेगा,
बस एक उनका रुख,
उम्मीदेवफा कायम है अभी
वो सुबह फिर आयेगी
तू लौट फिर एक दिन आयेगी
यादों को नया जीवन दे जायेगी.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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लौ उम्मीद की मुझे अब, तब दिखती है जिदंगी ज़द्दोज़हद में ही सही, रफ्ता रफ्ता चलती रहती है !!

कलम से _____

लौ उम्मीद की मुझे अब, तब दिखती है
जिदंगी ज़द्दोज़हद में ही सही, रफ्ता रफ्ता चलती रहती है !!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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