Thursday, May 7, 2015

न जाने क्या ख़ास था उसमें जो मेरा यह हाल कर गया !







कलम से_____

7th May, 2015/Kaushambi

न जाने क्या ख़ास था उसमें जो मेरा यह हाल कर गया !

अजीब शक्स था जो आँखो में ख्वाब छोड़ गया
दिल में मेरे वो अपनी ख़ास एक बना गया !

नज़र मिली तो झुकाके निगाह वो चला गया
एक सवाल के मेरे जबाव कई छोड़ गया !

पता था उससे तन्हा न रह सकूँगी मैं
गुफ्तगू के लिए महताब छोड़ गया !

गुमान हो मुझे उस पर काम वो कर गया
कैसी पहेली है जो अनसुलझी छोड़ गया !

बुझते हुये चराग रौशन वो कर गया
हरेक दरीचे पर जो आफताब छोड़ गया।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
 

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