Tuesday, September 30, 2014

It's my tribute to a Sr Citizen of Kaushambi on this Sr. Citizen's Day

कलम से ____

It's my tribute to a Sr. Citizen's of Kaushambi, Ghaziabad on this Senior Citizens Day.


सर, आपको पता है
वो साहब हैं
सबसे बुजुर्ग हैं
सुबह सुबह जो पार्क
सैर को आते हैं
अपने ज़माने के
नामी गिरामी जज़ रहे हैं
न जाने कितने लटक गए
न जाने कितने छूट गए
सख्त इन्सान बहुत रहे हैं
पर भीतर से फूल से कोमल हैं।

मैं, कौतूहल वश पूछ बैठा
कितनी उम्र होगी
पार्क का अटेन्डेन्ट बोला
नब्बे के आसपास।

मैंने मन ही मन शीष नवाया
सुन्दर काया देख मन भरमाया
स्वस्थ मन और शरीर रहे
जीवन को चार चाँद लगे
भगवन का आशीष मिले
कान्ति चेहरे पर बनी रहे
शान्ति जीवन में रहे।

देख अच्छा लगता है
कुछ का जीवन ऐसे चलता है
निश्चय किया मिलूँगा एक दिन
फिर पूछूँगा
जीवन जीने के दो एक नियम।

मिलने पर कहने लगे
कर्म प्रधान जीवन रहा
आलस कभी नहीं किया
जो किया बस ठीक किया
कल क्या होगा?
विचार इस पर कभी नहीं किया
बस जीवन यूँ ही कट गया।

आज भी बस ऐसे ही रहता हूँ
कल का भी यही इरादा है
बाकी सब उसकी मर्जी है
अब क्या इस जग से लेना है?

(कौशांबी सरकारी सेवानिवृत अफसरों के लिए स्वर्ग सा है। हर दिन मुझे सीखने को कुछ न कुछ नया  मिलता है। सुबह सुबह पार्क में सैर को आना इसलिए अच्छा लगता है।)

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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कुछ छण जीवन में ऐसे आते हैं ।

कलम से____

कुछ छण जीवन में ऐसे आते हैं
   अपने ही अपनों को दूर ले जाते हैं
      गंगा जल पिला यह आशा करते हैं
         मुक्ति मिले जो हमसे चिपके हैं ।।

शाश्वत सच को कोई ठुकराए कैसे
  अंतिम छण में भुलाए अपनों को कैसे
      दशरथ राम राम कहते ही स्वर्ग पधारे
          मिल न सके जो थे आखों के तारे ।।
     
राम अंत समय न मिल पाए
    ज्येषठ पुत्र हो मुखाग्नि न दे पाए
        राम रहे बन लछमन सीते संग
             तातश्री के हुए न अंतिम दर्शन ।।

वचन से बिंधे रहे अजोध्या से दूर
   प्रणाम अंतिम किया रहते हुए दूर
      मन ही मन लिया प्रभु का नाम
         पिताश्री को मिले उचित स्थान ।।

संकल्प लिए हैं जो पूरे करने हैं
   पाप मुक्त धरा अभी करनी है
      माँ तेरा ले नाम समर जाऊँगा
         वचन पूर्ति पर ही अजोध्या आऊँगा ।।

जै श्रीराम।।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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जब जब तुम आती हो ।

कलम से____

तुम जब जब आती हो,
नव अंगों का
शाश्वत मधुर वैभव लुटाती हो।

निशब्द पर करते नूपुर छम छम,
श्वासों का थमता स्पंदन-क्रम,
जब जब तुम आती हो
मन भीतर
अग्नि प्रज्वलित कर जाती हो।

ठगे ठगे से रह जाते मनोनयन
कह न पाते चलता रहता जो अंतर्मन,
जब जब तुम आती हो,
सोये से मन के
स्वप्नों के फूल खिला जाती हो।

अभिमान अश्रु बन बहता झर झर
अवसाद मुखर रस निर्झर,
जब जब तुम आती हो,
हिम शिखर
पिघला ज्वार उठा जाती हो।

स्वर्णिम प्रकाश में हो पुलकित
स्वर्गिक प्रीत का बन द्योतक
जब जब तुम आती हो,
जीवन-पथ पर
सौंदर्य-रस बरसाती हो।

जागृत हुआ वन में मर्मर,
कंप उठतीं हैं अवरुध्द श्वास थर थर,
जब जब तुम आती हो,
उर तंत्री में
स्वर व्यथा के भर जाती हो।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Monday, September 29, 2014

जब मैं छोटा था।

जब मैं छोटा था,
शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
 
मुझे याद है
मेरे घर से "स्कूल" तक का
वो रास्ता,

क्या क्या नहीं था वहां,
चाट के ठेले,
जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले
सब कुछ,

अब वहां "मोबाइल शॉप",
"विडियो पार्लर" हैं,

फिर भी सब सूना है..

शायद अब दुनिया सिमट रही है...
.
.
.

जब मैं छोटा था,
शायद
शामें बहुत लम्बी
हुआ करती थीं...

मैं हाथ में
पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,

वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,

वो हर शाम
थक के चूर हो जाना,

अब शाम नहीं होती,

दिन ढलता है और
सीधे रात हो जाती है.

शायद वक्त सिमट रहा है..

जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती बहुत गहरी
हुआ करती थी,

दिन भर वो हुजूम बनाकर
खेलना,

वो दोस्तों के घर का खाना,

वो लड़कियों की बातें,

वो साथ रोना...

अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,

जब भी "traffic signal"
पर मिलते हैं "Hi" हो जाती है,

और अपने अपने
रास्ते चल देते हैं,

होली, दीवाली, जन्मदिन,
नए साल पर
बस SMS आ जाते हैं,

शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
.
जब मैं छोटा था,
तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,

छुपन छुपाई,
लंगडी टांग,
पोषम पा,
टिप्पी टीपी टाप.
अब
internet, office,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..

शायद ज़िन्दगी बदल रही है.
.
.
जिंदगी का सबसे बड़ा सच
यही है..
जो अकसर क़ब्रिस्तान के बाहर
बोर्ड पर लिखा होता है...

"मंजिल तो यही थी,
बस
जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते"
.
ज़िंदगी का लम्हा
बहुत छोटा सा है...

कल की
कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल
सिर्फ सपने में ही है..

अब
बच गए
इस पल में..

तमन्नाओं से भर
इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं.

कुछ रफ़्तार
धीमी करो,
मेरे दोस्त,

और
इस ज़िंदगी को जियो..

(एक मित्र द्वारा)

Saturday, September 27, 2014

चित्र लगता बाहर का है मुझे नहीं मालूम कहाँ का है ।

कलम से _____

चित्र लगता बाहर का है
मुझे नहीं मालूम कहाँ का है
लग रहा बहुत खूबसूरत है
काश हमारे आसपास
कुछ ऐसा होता
अगर है तो पता नहीं
घर से कभी निकले नहीं
तलाश कभी की नहीं
समय शायद मिला नहीं
या इच्छा जागृत हुई नहीं।

होता तो क्या होता
कुछ फर्क नहीं पड़ता
हमारा जीवन बस यूँही चलता
जैसे चल रहा है
हम सोते रहते
सूरज रोज़ आता है
चला जाता है
काम है उसका वो करता रहता है
हमको भी काम अपना करना होता है।

आलस छोड़
चलें घर के बाहर
पूरब की ओर देखें
लालिमा है फैली हुई
आओ देखो, कुछ ऐसा कहती हुई
हर रोज़ मुझे नये परिधान में पाओगे
नज़र उठा कर जो देखोगे
खुश हो जाओगे
पल दो पल के लिए ही सही
तुम अपने हो जाओगे
यही अपनापन तो खो गया है
खोखले रिश्तों में ढूंढते फिरते हो
जो तुम्हारा अपना है
उसकी ओर न देखोगे
आ जाया करो मेरे पास भी कभी
मिलेगी तुमको अनंत खुशी
आचँल में मेरे खुशियाँ ही खुशियाँ है
ले सको ले लो जो तुमको लेनी हैं
बाजार में नहीं बिकतीं
यह बस मेरे पास ही मिलतीं हैं।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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स्वर्णिम प्रकाश में हो पुलकित ।

कलम से____

स्वर्णिम प्रकाश में हो पुलकित
स्वर्गिक प्रीत का बन द्योतक
तुम आती हो,
जीवन-पथ पर
सौंदर्य-रहस बरसाती हो।

//surendrapalsingh © 2014//

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सारे सपने वहाँ रहते थे जहाँ तुम रहते थे....

कलम से_____

सारे सपने वहाँ रहते थे
जहाँ तुम रहते थे........

जीवन बदल गया है
जो तुम्हारी आँखों में दिखता था
वह सपना बिखर गया है
जो अपना लगता था
दूर हो गया है
कुछ साल पहले तक सपने अपने थे
अब सपने बंट गए हैं
कुछ वहाँ
कुछ यहाँ
रह गए हैं
सपनों की नगरी
मुम्बई
सागर तट ऊँची ऊँची बिल्डंगे
बड़ी बड़ी गाडियाँ
बड़े बड़े लोग
रहते सब वहाँ।

अंधेरा छटा
सबेरा हुआ
अब सब नहीं भागते
वहाँ कुछ और नया हुआ है
पूना बंगलूरु हैदराबाद दिल्ली
में ऐसा कुछ हुआ हैै
लोग यहाँ देखते हैैं
आशा के दीप हर रोज़ यहाँ जलते हैैं
लोग रोज़गार की तलाश में
यहाँ आते हैैं
फिर यहीं के बन रह जाते हैैं
कुछ के सपने बनते
कुछ के बिखरते हैैं ।

कुछ लोग अभी रुके हैं
अपने परिवार
अपनी सरजमीं से जुड़े हैं
उनके सपने उनके अपने हैं
सुकून उनको वहीं है
जो उनके पास है
वह और किसी के पास नहीं है।

इस चलती फिर थी दुनियाँ में
जो जहाँ है
उसका जहां वहीं है।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Friday, September 26, 2014

पार्क की सुबह

कलम से____

प्रातः की पार्क यात्रा वृतांत:-

एक लंबा अरसा गुजार
कर लौटे हैं हिन्दोस्तां
आना नहीं चाहते थे
सुख सुविधाओं का ध्यान धर
आखिर जीता मोह
माटी का
यहां के यहीं मिल जाने का।

सुबह सुबह हो जाती है मुलाकात
मियां बीबी रहते जो सदैव साथ
टाइट फिटिंग्स को करते हैं प्यार
दिखते हैं सुबह सुबह बिल्कुल तैयार।

पार्क की बैन्च पर हर रोज
होती है छोटी मोटी तकरार
फिर हसँते हैं
मिल कर बढ़ते हैं
लिफ्ट ली एक्सक्यूज मी कह कर
जा बैठा उनके पास।

मकसद था
कुछ होगी बातचीत
दिल से निकलेगी दिल की बात
भीतर जो छिपी रहती है
गुमसुम सी किसी कोने में करती
अपनेपन की तलाश।

चुप्पी तोड़ते हुए
पूछ बैठे क्या करते हैं
कविता, हाँ कविता लिखता हूँ
अब और क्या कँरूगा
हसँ कर कहने लगे सैम्पल है
तो पेश करिए
सुना दी, जो थी रेडीमेड तैयार।

कहने लगे प्रतिक्रया मेरी है
लिखते सुदंर हैं
पर कविता हमेशा
बिछड़े पलों में खोई रहती है
सुना है मैंने और कइयों को
अक्सर हम रोते रहते हैं
कभी इनकी याद
कभी उसकी याद में भटकते रहते हैं
जिन्दगी सिमट गई
चंद से दायरे में
नया कुछ करने को नहीं है
इधर उधर की लिखा करिए
बहुत हसीन है प्रकृति हमारी
कुछ उस पर कहिए
नदी नाले पर्वत हैं पुकारते रहते
हम हीं बस उनकी ओर नहीं देखते।

कहने लगे यूरोप में
लोग वर्तमान में हैं रहते
इतिहास को पढ़ते जीते हैं
पर ऐश खूब करते हैं
अपने लोग न आज अपना
न कल के लिये जीते हैं
फर्क है नज़रिए का
कश्मक्श जिन्दगी की वहाँ भी यही है
यहाँ भी वही है।

उत्सव मान कर जियो यारो
चार दिन की है बची
खुशी खुशी जियो यारो
दूसरों से भी यही कहो प्यारो।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Thursday, September 25, 2014

घना जंगल सुनसान नीरव सनसनाहट करती पवन

कलम से____

घना जंगल
सुनसान नीरव
सनसनाहट करती पवन
चिड़ियों का चहचहाना
झरने का कलरव
हरियाली ही हरियाली
छलनी सी छन छन कर
धरती पर सूरज की रौशनी
मन की पुकार
कहीं आसपास तुम हो
हर श्वास में
हृदय की धड़कन
साफ़ सुनाई पड़ती है
अहसास दिलाती है
दूर रह कर भी
तुम हमेशा साथ हो।

पृक्रति के यह नज़ारे
दूर नहीं होते हैं
बस हम ही दूर बहुत रहते हैं
निकल पड़े घर से
यह सब दिल के करीब होते हैं।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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बहुत अच्छा बदलाव आ रहा है ।

कलम से____

बहुत अच्छा बदलाव आ रहा है
संसार में वेजिटेबल्स
का चलन आ रहा है
लोगां के दो कोर्स
वेजिटेरियन हो गए हैं
एक हम इन्डियन
नये नये
नान वेजिटेरियन बन रहे हैं।

हैं शौक निराले
अपोजिट चलने का मजा
अपना है
जब जग चले दाहिने
तो हम बाएं चलते हैैं
कहीं ब्रिटिश कहीं अमेरिकी ट्रेन्ड्स
कहीं धोती कहीं जीन्स
आइसक्रीम कहीं कुल्फी
का मजा ही अपना है
सब घूमें
क्लाकवाइज़ तो एन्टीक्लाकवाइज़
का मज़ा ही अपना है
सामने से धक्का मारने
और पीछे से धक्का खाने
में मज़ा दोगुना है।

हम न सुलझे हैं
न सुलझेंगे
धागे उलझाने का मज़ा दूसरा है
उड़ती पतंग को लगंड़ से गिराना
हो लडाई किसी की
टांग फसाने में मज़ा अपना है।

टेढ़े रहने का मज़ा अपना है
कनहाई को देखो कभी सीधे न दिखेंगे
टेढ़े हैं हमेशा टेढ़े ही रहेंगे।

फिर भला हम कैसे सीधे रहेंगे....

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Tuesday, September 23, 2014

बाजार में कीमत कल से बढ़ जाएगी

 कलम से ____

बाज़ार में कीमत कल से बढ़ जाएगी
किस्मत फूलों की बदल जाएगी ।

     कल से पूजा के स्थल पर भीड़
     का रेलमपेला खूब बढ़ जाएगा ।

पूजा करने वालों का तांता लगा रहेगा
जै माता दी तो कोई सियाराम कहेगा ।

     साल भर जिनको याद न आएगें
     भगवान आज उनके सपने में आएगें ।

झूठ फरेब का अब जोर रहेगा
मंदिर में पुजारी ऐंठ में रहेगा।
 
      किस पर प्रसन्न हों किस पर नहीं
      उलझन में बड़ी भगवान रहेगा ।

दिखावे की दुकान तब तक चलेगी
जब तलक तू खुद मना न करेगा।

      ढूंढते हो जिसको तुम गली गली
      रहता है वो तुम्हारे बीच ही सही।

बंद करो यह बेमतलब का दिखावा
बेकार ही मंदिर में चढ़ाते हो चढ़ावा।

     बंद आखँ कर के नाम उसका लोगे
     होगा सामने जिसे प्रभु तुम कहोगे।



//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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गांव जाने को मन बहुत कर रहा.....

कलम से____

गांव जाने को
मन बहुत कर रहा
धान है खड़ा खेत पका
इतंजार कर रहा !

मौसम भी सुहाना हो चला
सुन उसकी पुकार
मैं, अपने गांव चला !

रात जोहती है
राह मेरी
बाहर आगंन में
चारपाई है पड़ी
सोने से पहले
कुहू पूछती है
दादा तुम कहते थे
चलेगें गांव
अबके वहाँ बाबा मिलेंगे
हाँ, देख आसमां की ओर
हैं वहाँ बाबा तेरे
दूर बैठे चमक रहे हैं
हसँते हुए कह रहे हैं
बेटी आज घर आई है
रौनक देखो कितनी छाई है
बुढ़िया दादी चादँ में बैठ
चरखे पर सपने बुन रही है
आशीष तुम्हें दे रही है
सपने में तुम आओ
सदा खुश रहो
रात हो गई बहुत है
अब तुम सो जाओ
जीवन में आगे बढ़ती ही जाओ
ऐसा कुछ वो कह रहीं है !

कहानी सुनते सुनते
कुहू सो जाती है
माँ, मुझे आ कानों में
कह जाती है
आ जाया करो
तबीयत हम सबकी
बहल जाती है !

चार पुश्त का मिलन देख
आखँ चादँ की भर आती
आगंन की तुलसी के पत्ते पर
सुबह सुबह एक बूँद
अश्रु की दिख जाती .........

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Monday, September 22, 2014

आये थे वादा निभाकर चले गये जाते जाते अक्स फलक पर छोड़ गये...

कलम से ____

आये थे
वादा निभाकर चले गये
जाते जाते अक्स फलक पर छोड़ गये..........

कहा था
जब मन करे चले आना
मैं इतंजार करूँगी तेरा !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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बगिया का माली आज यह कहने लगा


कलम से ____


बगिया का माली आज यह कहने लगा
सुबह फूलों की खुशबू सूघंनी है अगर
तो कल जल्दी आइयेगा।

मैनें पूछा यह अचानक क्या हो गया
कहने लगा हसँ कर साहब त्योहार आ गया
कल से नव दुर्गा का आव्हान होगा
और बगिया में फूल एक न बचेगा
भक्त जन सब तोड़ ले जाएंगे
सब अपने अपने फूल कल भगवन शीष चढ़ाएंगे
पता नहीं वह कितना खुशी महसूस करेंगे
पर भक्त जन यह काम कर बड़ा प्रसन्न होगें
उनकी की खुशी में हम भी शरीक रहेगें
आखिर यह हमारी मेहनत है
फल उसका हमको ही मिलेगा
भगवान जानता है
भले ही उन्हें इस बात का पता भी न चलेगा
मन ही मन कितना खुश है बागवां
भगवान को सब पता है
जानकर कितना खुश हो रहा है।

दूसरों की खुशी से अपना हिस्सा
चुराने का अहसास कितना सरल है।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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जाते जाते भी शूल बो जो गए



कलम से_____


जाते जाते भी शूल बो जो गए
आज वही शूल उनको दर्द दे गए
जुदाई का गम इनसे बेहतर 
अब कौन समझेगा
जब स्काटलैंड ही ने कह दिया
चलो कुछ दिन और रह लेगें
बहुत दिन साथ निभा न पाएगें
घृणा के बीज बोए थे हमारे लिए
आज स्वयं को ही शूल बन चुभ रहे होगें
डिवाइड एण्ड रूल की पालिसी
रंग ला रही है इनको मज़ा
अच्छा चखा रही है।
इनके साथ और भी जो खड़े हैं
मज़ा अपने कर्मों को वह भी ले रहे हैं
तालिबान लाए थे रूस के खिलाफ
वही आज जिन्हें लोहे के चने चबाने को दे रहे हैं।
दोस्तों जग की रीति यही रही है
जो बोये काटां तो कहां से खिलते फूल ।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

Good morning dear friends. सुप्रभात दोस्तों। 09 23 2014

Good morning dear friends.
सुप्रभात दोस्तों।
09 23 2014
फेसबुक एक ऐसा मीडियम बन रहा है जहां आप अपनी बात निर्भीक होकर रख सकते हैं। आपके मित्रों को भी पूरा मौका मिलता है अपनी बात कहने का। इतनी अच्छी बहस होती है कि मज़ा आ जाता है।इससे सुंदर और क्या हो सकता है, कह नहीं सकता।
शेर बच्चे हो शेर की तरह तुम रहना
जगंल में तुम श्रेष्ठ हो
आन बान शान से सदैव तुम रहना
कभी गुर्राये अगर कोई
जबाब तुरंत तुम देना
ज़मीन अपनी तैयार खुद तुम करना
सहारे किसी के कभी भी न रहना !!
घर पर तुम्हारे
आचं आने वाली है
उससे बचकर तुम रहना
जगंल कटते जाते हैं
कभी विकास के नाम पर
कभी खुदगर्जी की खातिर
इस आपदा के लिए
तैयार तुम रहना !!
आशादीप दिल में जलाए हुए
दूसरों की मदद हमेशा करते रहना
फूल सी खुशबू तुम्हारे काम से झलके
ऐसा प्रयास तुम जीवन भर करना !!
हम जीवन में हर पल अपनी मान मर्यादा बनाए रहें यही प्रयास करें यही सही मार्ग भी है और अपेक्षित भी।
मगंल मंगलकारी हो यही कामना है।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

निगाहें तक हमें रहीं हैं

कलम से____
निगाहें तक हमें रहीं हैं
जा आप किसी और के साथ रही हैं
बुलाया हमको था चाय पर
छोड़ कर यूँ हमें आखिर कहाँ जा रही हैं !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

Sunday, September 21, 2014

सुप्रभात।
Good morning dear friends.
09 22 2014

ख्यालों में डूबा हुआ था, मैं
भूल ही गया था
कल शाम की वो बात
जब रामू को उसकी
एक गलती के लिए
डांट जोर से दिया था।

रहा नहीं गया
मुझसे
रात आधी उठ
मैं उसके पास गया था
न मैं सोया
न वो सोया
हुआ था
उठा कर सीने से
चिपकाया मैंने
वो भीतर से
बहुत टूटा हुआ था।

मुआफी माँगी मैंने
अब मैं कभी ऐसा न कँरूगा
परेशान न हो मेरे बच्चे
तू भी वैसा न करना।

दोनों ही हम
रो रहे थे
एक दूसरे को
तसल्ली बस दे रहे थे।

कभी कभी
ऐसा हो जाता है
जब दिल टूट जाता है
मलहम की जरूरत
महसूस होती है
इन्सान ही इन्सान को समझता है।

सोमवार नये हफ्ते की शुरुआत।
आप सभी का अपने अपने काम में मन लगे, खुशियों से आफिस और घर आबाद रहे। बस यही दुआ है आज तेरे लिए।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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He was here killing people.

कलम से____

He was here killing people.
Got himself killed
During First World War
He was hated the most
French's in hundreds died; but gave him decent burial near St. Salvin Church
Discovered his grave in Mercy-Le-Haut village.
Near Parry.

Came back with tears in my eyes.
Three generations back
For what happened
Long back .........

Glad that years after: peace prevails
Scars disappeared
Foes have become friends
An oldo lady kept service records
Of my grand dad (Johan Lennefer): perhaps her mother fell in love with him
Was happy to wipe her tears
Sorry really sorry: what all happened
Came few words from me
Patted she, my back n' blessed me
With a kiss on my forehead.
Knowing well, I was bearing the blood of a German

Aamin !!!

//surendrapalsingh © 2014//

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शिख से सूख रहा हूँ ।

कलम से____

शिख से सूख रहा हूँ
हृदय काम नहीं कर रहा शायद
हाल यह इसीलिए हुआ है
हरा भरा था कभी
धढ़ ये कह रहा है !!

कमर टेड़ी हो गई है
सीधी अब क्या होगी
जैसी है वैसी ही अब रहेगी !!

गुमान बहुत करता था
अपनी जवानी पर
वो सब छूमंतर हो गई है !!!

कुछ साल और चलूँगा
फिर किसी की चिता में
लकड़ी बन जलूँगा !!!

अंत सभी का होना है
शाश्वत सच मैं जान गया हूँ
इसीलिए अपने पैर खड़ा हूँ !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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दस्तक दी भी नहीं दौड़ कर आते हुए ।

कलम से____

दस्तक दी भी नहीं
दौड़ कर आते हुए
झट से दरवाज़ा उन्होने खोल दिया !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Good morning friends 09 21 2014

सुप्रभात।
Good morning friends
09 21 2014

कलम से____

"What is adventure? If a lone wolf lifts his plaintive call into the moonlight near your campsite, you might call that adventure. While you’re sweating like a horse on a climb over a 12,000 foot pass, that could be adventure. When howling head winds press your lips against your teeth, you face a mighty struggle. When your pack grows heavy on your shoulders as your climb a 14,000 foot peak, you feel the adventure. When you suffer freezing temperatures and 20 inches of fresh powder on a hut to hut trip in the Rockies, that could be called adventure. But that’s not what makes an adventure. It’s your willingness to conquer it, and to present yourself at the doorstep of nature. That creates the experience. No more greater joy can come from life than to live inside a moment of adventure. It is the uncommon wilderness experience that gives your life expectation.”

       - Frosty Wooldridge, Golden, Colorado"

मित्रों,

शहरों और बंद कमरों में रहते रहते अपना बहुत कुछ खो चुके हैं और जीवन में कुछ हट के करने की तमन्ना तो बिल्कुल समाप्त प्रायः ही है। खाने कमाने के अलावा कुछ सोच ही नहीं पा रहे हैं, आज हम।

आज रविवार है। हम कहीं बाहर नहीं जा रहे हैं पर life में adventure बना रहे इस आशा से यह उपरोक्त भेंट आपको समर्पित है।

धन्यवाद।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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हे माँ मझे दे वरदान ।

कलम से____

हे माँ मझे दे वरदान
  मैं तुझसे हूँ यह माँगता
     खड़ा रहूँ मै यूँही सदा
        पुकारे तू मुझे जब सदा ।।

हे माँ तू है मेरा आदर्श
   तेरा नित दिन गाऊँ उत्कर्ष
      कभी मुझे न होने दे निश्चिंत
         रात्रि भर जाग कर तेरा वदंन ।।

हे माँ तू ही है सर्वश्व
   बना रहे तेरा बर्चस्व
      भक्त तेरे आते यहाँ आते रहें
          गुणगान तेरा हृदय से करते रहें।।

हे माँ ऐसा दे वरदान
   जग में तेरा ही हो नाम
       घर घर में आश्रय हो तेरा
           आशीर्वाद बना रहे सदा तेरा।।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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ऐसा नहीं होता है कि सब कुछ आजकल गलत हो रहा है ।

कलम से____

ऐसा नहीं कि सब आजकल गलत हो रहा है
कुछ अच्छा बुरा मिलाजुला ठीक हो रहा है।।

गांव में हाँ कह सकते हैं सब ठीक नहीं है
बिजली पानी दवाई की व्यवस्था ठीक नहीं है।।

आखिर वहाँ भी हमारे जैसे इनसान हैं बसते
हक उनको वैसे मिलें जैसे कि शहरों में हैं मिलते।।

बहुत दिनों तक यह घोर अन्याय न चलेगा
ऐसा ही रहा तो वहाँ का किसान शीघ्र ही जगेगा।।

सुधर जाओ ए दिल्ली में रहने वाले हुक्मरानों
हक देश पर तुम्हारा नहीं अब उनका भी चलेगा ।।

शहर के नौजवानों अब तैयार हो जाओ
कुछ रोज़ कभी जाकर गांव में बिताओ।।

दर्द आह का उस दिन महसूस करोगे
दो एक दिन जब तुम खुद भूखे रहोगे ।।

दाने दाने को रहते थे हम कभी मोहताज
शुक्रिया किसान का दो भरा पड़ा है अब अनाज।।

मेहनत रंग लाई है फसल खेत में तब  लहलहाई है
मार हर मौसम की झेलता है वो मिलती तब दूध मलाई है।

उसका भला न अब सोचेंगे तो कब सोचेंगे
पलायन शहर को नहीं रुका खेत तब कौन जोतेंगे।।

शहर में बढ़ती भीड़ को अभी रोकना होगा
रुकी यह न तो हर तरफ कोहराम मचेगा।।

तबाही का मंजर न देखना चाहो मेरे यारो
समय की पुकार पर सबको बदलना ही होगा ।।

शहर और गाँव की प्रगति में सामजस्य बना रहे
विकास का ऐसा माडल हमें तलाशना होगा।।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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आओ बैठो जराजरा सामने ।

कलम से____

आओ बैठो जरा सामने
देखूँ तो वक्त ने क्या असर किया है
चेहरे पर तेरे नूर कैसे छा गया है
मेरी नज़रों में जो भरमाया हुआ है
ज़माने के लिए बहुत बदल गए होगे तुम
मेरे लिए वैसे ही हो जैसे आए थे तुम
मेरे हाथों में भले झुर्रियां पड़ गईं हों
लुनाई तुम्हारी चेहरे से न कम हुई है
पहले से ज्यादा और हसीन हो गई हो
बस देखा करो अपने को मेरी निगाह से तुम
चितां न किया करो फिजूल में
चलेंगे एक दिन दिखा देगें हम दोनों
कहीं निगाह तो बदल नहीं गई है
लगा लेगें चश्मा जो लगेगा
बढ़ती उम्र में आखिर कुछ तो होगा
गाज़ उसकी गिर गई होगी निगाह पर
चल चलें चलते हैं डाक्टर के पास हम !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Saturday, September 20, 2014

गये हुए थे पहाड़ पर घूमने को हम ।

कलम से____

गये हुए थे पहाड़ पर घूमने को हम
झरने के साथ अचानक आ कुछ गिरा
उठा मैं लाया निकाल कर जहां वो गिरा
पत्थर था छोटा सा
हिस्सा किसी बड़े पहाड़ का...........

बड़े बड़े लोग जुदा हो जाते हैं
अपनी जमीन से
आँखें उदास रहतीं हैं
हसँते हैं फिर भी हम........

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Friday, September 19, 2014

क्या बेच रहे हो गुरू आजकल।

कलम से____

क्या बेच रहे हो
गुरू आजकल।

पूछ बैठा मेरा एक मित्र
वह भी आसपास से नहीं
सीधे दूर देश अमरीका से।

कहा सपने देखता हूं
अहसास बेचता हूँ
अच्छीखासी हो जाती है
कमाई घर चल जाता है।

लोगों के गम बाटँता हूँ
कुछ अपने सपने उनको देता हूँ
लेनदेन के इस व्यापार में
सब ठीक चल रहा है।

फेसबुक से सुबह सुबह
जुड़ जाता हूँ
कुछ शेर कुछ गज़ल कुछ गीत
लिख जाता हूँ फिर दिन भर
चर्चा में व्यस्त रहता हूँ
नाम मिलता है काम करने से
शांति मिलती है चंचल मन को
सबसे बड़ी विशेषता है
जो करता हूँ अपने चित्त शांतिं के लिए करता हूँ।

मैंने पूछा हाल तेरा कैसा है
कहने लगा बहुत बुरा है
देश की मांटी याद बहुत आती है
सारी कमाई सामने उसके
फीकी हो जाती है।

वापस आकर वही रहूँगा
वही कँरूगा तू जो कर रहा है ।

अहसास बेचने का काम
दूसरों के गम बटोरने का
मिलजुल के बाँटने का
मेरे लिए काम अच्छा है।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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सुप्रभात 09 20 2014

Good morning dear friends.
सुप्रभात
09 20 2014

What a wonderful thought for the day.

तुम मुझे पसंद करो तो कोई बात बने
साथ साथ हम चलें जग अपनाते हुए ।।

नापसंद करो तो भी कोई बात नहीं
मैं रहूँगा सदा तेरे मेरे भले के लिए ।।

निकालना चाहोगे फिर भी नहीं निकलूँगा
मष्तिष्क में रहूँगा बना मैं सदा के लिए ।।

हम दोनों का वजूद ही है एक दूसरे से
प्रभु ने भेजा है जग में इक दूजे के लिए ।।

मित्रता बहुत मुश्किल से होती है। जब हो जाती है तो चुभन गहरी होती है। फेसबुक पर नित नए मित्र बनते जा रहे हैं। पुराने लोग जुड़ते जा रहे हैं।विचार का दायरा बढ़ता जा रहा है। सुदंर है।

आज कुछ के लिए छुट्टी का दिन और कुछ के लिए काम काम दिन है। सभी को आज का दिन शुभ और मंगलमय हो यही मनोकामना है।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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मन भज ले प्रभु का नाम ।

कलम से____

मन भज ले प्रभु का नाम
  करले कुछ आज ऐसा काम
     प्रीत रीत से चलती रहे
       आस मेरी तुझे तकती रहे !!

राम राम सब कोई करें
    सियाराम भी कुछ लोग करें
        मइय्या उनको है प्यारी
            सियाराम करते जो नर नारी !!

मइय्या कहै भोर भई
   चल कान्हा अबदेर भई
      गइयां खड़ी बुलाय रही हैं
         राधेरानी खड़ी सियाय रही हैं !!

लक्ष्मी मइय्या मोहे पुकार रही हैं
    ठाकुर जी पर पंखा झूलाय रही हैैं
        नारद जी तिकड़म लगाय रहे हैैं
            भगवन मन ही मन मुश्काय रहे हैं !!

बम बम भोले आय गये हैं
   शिव शंकर नैना दोऊ खोले
     मेरे अगंना धीरे धीरे पधार रहे हैैं
        मृग आसन बैठ जग को निहार रहे हैं !!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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जिन्दगी एक एक पल सरकती जाती है ।

कलम से____


जिन्दगी एक एक पल सरकती जाती है
लाख रोकना चाहो पर रुकती नहीं है !!

सपने सजोंओ लाख पूरे होते नहीं है
आस एक है खुशी की जो बनी रहती है !!

कभी कोई चुपके से आकर जगा जाता है
वही आकर थपकी दे सुला जाता भी है !!

तू बस एक दिन के लिए ही मिल जा
इतंजार तेरा करते करते थक गया हूँ मैं !!

एक बार बस मिलने को आजा, मेरी माँ !!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Thursday, September 18, 2014

भय कैसा ।

सुप्रभात मित्रों।
Good morning dear friends.
09 19 2014

भय कैसा
भय अपने से
भय लगता जब
भय भीतर है समाता
या भय होता अपना कुछ खोने का
जब खोने के लिए
होगा न कुछ
तो भय काहे का
और भय किसका !!!

देने वाला वही
लेने वाला भी वही
तो फिर भय काहे का !!!

मय पीकर भय भगाते हैं कुछ लोग
सही मायने पकड़े जाते ऐसे लोग !!!

पीकर है भूलना तो भूल जाओ स्वयं को
लगा है मन प्रभु चरणों में तो भय काहे का !!!

भयमुक्त होना भी एक मानसिक प्रक्रिया है जो भयमुक्त हो गया जग उसने जीता है।

धन्यवाद ।

लव जेहाद ।

कलम से____

"लव जेहाद"
क्या सुदंर नाम दिया
एक नई सोच को जन्म दिया
लोगों को बहकाने का काम किया।

मीडिया इन्गेजमेन्ट
का काम सारा है
उन्होंने ने पाक इश्क को भी बदनाम किया।

नीच और कौन होगा इनसे
जिसने भगवान और अल्लाह को
मिल एक साथ गुमराह किया।

माना औरंगज़ेब ने
काम कुछ गलत किया
कृष्ण दरबार में हाज़िरी लगा
गोकुल में राधा मन्दिर नाम किया
क्या उसने यह ठीक नहीं किया।

कुछ और भी गलत किया होगा
इतिहास को भला कौन बदलेगा
हालात वैसे थे तब
जो किया शायद ठीक किया।

कई खानज़ादे ऐसे हैं
जो आज भी रोते हैं
अपनों से अलग क्या हुए
परेशान अभी भी रहते हैं
दिल तड़पता है उनका
वो कौन है जो आज भी
अपनों को अपनों से
मिलने नहीं देता
धर्म ही तो है
जो बदल गया
किसने चाहा था
पर उसको वह मिल गया
जीवन रक्षा में कुछ बिक गया
सो बिक गया।

आज भी खाई गहरी है
दो भाइयों को अलग अलग जो करती है
मिलने को थे तैयार
पर फिर उठे प्रश्न हजार
ले लेगें पर देगें नहीं
अपने घर की बिटिया
शादी ब्याह इकतरफा होगें
नहीं हुआ इस पर कोई करार
बढ़ और गई दोनों के बीच तकरार
आमने सामने रहते हैं
दिल दोनों के ही रोते रहते हैं
पर अलग हुए सदा को ऐसे
न मिल सकेंगे कभी जैसे।

खत्म हो मनमुटाव
है कोई सुझाव
दो दिलों का अलगाव
मिल बैठें होने लगें
बातें दो एक चार
मतभेद खत्म हो
बात हम कल की करें
मिलजुल कुछ ऐसा करें
दोनों है भाई
भाई बन फिर रह सकें।

(हिन्दू-मुस्लिम एकता को समर्पित)

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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बस स्टॉप।

कलम से____

एक बस स्टॉप
हर रोज़ यहाँ अनगिनत
लोग हैं आते और जाते
पर मुझे कोई अपना नहीं समझते
यहाँ वहाँ थूकते फिरते
पान खा पीक यहां करते
गंदगी का स्थान बनाया है
झाडू वाला भी आज नहीं आया है।

बारिशों के दिन
गिरते पड़ते आते हैं
भीग न जाएं कहीं
शरण यहीं पाते हैं।

एक लड़के को मैं
कई दिनों से देखा करता हूँ
एक लड़की भी
फिक्स टाइम पर आती है
उनकी भी कहानी
यहीं शुरू हो जाती है।

कुछ बेगाने
कुछ दीवाने
कुछ भिखारी
कुछ खिलाड़ी
सारी दुनियाँ आती है
बस सबको वहाँ
जाने की मिल जाती है
कुछ उतर सुस्ता
चल देते हैैं
राह पकड़ राही
अपनी धुन गाते फिरते हैं।

सब सोते होगें
मै नहीं सोता
जग के क्रिया कलाप
देखने को हूँ जगता रहता।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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पावं तले कुचले जाते जो शीष चढ़ने जग में आते ।


कलम से____

पावं तले कुचले जाते
    जो शीष चढ़ने जग में आते
       ऐसा क्यों होता है प्रभु
          हमको भी आ बतला जाते।

कुछ दिन बाद दृश्य बदलेगा
     आज जिसे हम दुतकार रहे
         वो सिर चढ़ फिर बोलेगा
             यह राज हमें तुम समझा जाते।

क्वार का दशहरा करीब है आया
    शीष एक नहीं दस कटने का दिन आया
        राम भक्त पूजा में तल्लीन हो रहेगें
           हनुमान भक्त पुल बनाने लग जाएगें।

विजय दशमी का होगा इतंजार
    जब प्रभु राम शीष उतार फेंकेंगे
        रावण का होगा अंत जग महकेंगे
           सीते संग अजोध्या राम मेरे लौटेगें।


//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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क्यों टपक गए ।

कलम से____

क्यों टपक गए
आखँ से यह दो बूँद गरम गरम आसूँ
कहता रहा न निकलना
निकलते ही रहे आसूँ।

बस अपना चलता कहाँ है
जब चाहते हैं
निकल पड़ते है आसूँ।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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दीवारों से दूर रहा करो ।

कलम से_____

दीवारों से दूर रहा करो,
ज़ालिम हुक्मरानों ने कइयों को चुनवा दिया था।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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दूर बहुत निकल आए हैं हम ।

कलम से____

दूर बहुत निकल आए हैं हम
राह अलग अलग पर चल दिए
मिलन की बात अब कैसे होगी
चादँनी भरी रात अब कैसे कटेगी।

जीवन की धार बस यूँ ही बहेगी
तुम बिन ए बाँसुरी प्रभो कैसे बजेगी
थक रही हूँ मन भी टूट गया है
सेज जब से प्रभु किसी और की सजी है।

आजाओ प्रियतम वादा अब निभाने
दुख भरी घड़ी अब कटती नहीं है
लताओं को भी साँप सूँघ गया है
मन की बगिया का फूल खिला नहीं है।

देर न करना प्रभो दासी की सुनना
मथुरा आओगे तो खरीखोटी सुनना
बस गए हो दूर इतने मैं क्या करूं
आने की चाह करूँ तो भी आऊँ कैसे।।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Wish I could go up above the sky.

कलम से ____

Wish I could go up above the sky
Enjoy riding on happy clouds
And pleasent musical winds
Side by side lovely birds
Chest filled with fresh air
Feel on top of the world
When look down our Earth so beautiful
Deep green seas surrounding
Rivers flowing with waters
Lights here and there
All colors looking bright and shining
Hills with snowy caps !

Only worry if I go down
And fall.

//surendrapalsingh © 2014//

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सुप्रभात 09 18 2014

सुप्रभात मित्रों।
Good morning dear friends.
09 18 2014

मेरे यह दो हाथ उठें
हमेशा आदर सत्कार में
इस अजुंरी में देना भगवन
जो ठीक तुम्हें लगे।

हम तो भौतिक सुख में डूबे
ना जाने क्या क्या मागेंगे
दे दोगे कुछ एक बार
फिर हम और अधिक मागेंगे।

तुम हो जग पालक
तुम ही हो हम सबके रक्षक
तुम्हारे पास ही आएंगे
दूजे दरवाजे को न खटकाएंगे।

//सुरेन्द्रपालसिंह//

इस गली में शाम से ही आ जाते हैं लोग कुछ दीवाने कुछ थके हुए।

कलम से____

इस गली में
शाम से ही
आ जाते हैं लोग
कुछ दीवाने
कुछ थके हुए
कुछ हारे हुए
कुछ मौज मस्ती के लिए
भीड़ इस कदर हो जाती है
आना जाना दूभर
कोई बहिन बेटी माँ
इधर से निकल नहीं सकती ।

ठेका मिला है
बेचने का शराब
बन गई है गली खुली एक बार
क्या चाहिए
मटन चिकन टिक्का
या बिरयानी
या फिर कबाब
मिलेगा सब यहां ज़नाब।

पुलिसिया इंतजाम बेकार हुआ है
हराम की कमाई का ज़रिया बढ़िया बना है
नीचे से ऊपर तक जाती है सौगात
चुप रहते हैं सभी अफसर देख यह हालात।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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दिल की धड़कन को दिल ही समझता है ।

कलम से____

दिल की धडकनों को दिल ही समझता है,
हम बेखबर थे तुम भी नादान थे,
हम लोगों के दरम्यान कुछ हुआ ही नहीं था
शोर ज़माने में न जाने क्यों मचा हुआ था।

एक अफसाना जो न शुरू हुआ
और हुआ न खत्म,
दुनियां समझती रही
मुझे तेरा हमदम।

वह दिन अजीब थे
दूर से देख कर हम खुश हो लिया करते थे
उनके नजर के इशारे भी न हम समझते थे
ऐसे ऐसे बुद्धू उस वक्त हुआ करते थे।

जब याद करते हैं
हँसी आती है औ' कभी आँख दुख जाती है
कहानी बचपन की याद बहत आती है।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Wednesday, September 17, 2014

मयखाने में मय के सेवन के वक्त ।

कलम से____

मयखाने में मय सेवन के वक्त
ज़नाब एक मिल गए
कहने लगे मियाँ
क्या बात है आजकल दिखते नहीं हो
छोड़ दी है इधर कुछ रोज़ के लिए
माँ बाप की याद आ रही है...........

(श्राद्घ के दौरान)

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Tuesday, September 16, 2014

मैं नींद में सोया हुआ था ।

कलम से____

मैं नींद में सोया हुआ था
मोबाइल की घंटी ने जगा दिया
एक मेरे मित्र ने मुझे सोते से उठा दिया।

पूछ बैठा मैं उनसे
क्या हुआ
दिखते नहीं हो आजकल।

वायरल हो गया
एक बार नहीं
दो दो बार सता गया
हड्डी पसलियों को दर्द दे गया।

मौसम बदल रहा है
रंग आसमां में नित नये
आ रहे हैं
पुष्प की सुगंध से बाग महकने लगा है
परिवासी पंक्षी भी लौट रहे हैं
ऐसे में ख्याल रखा करो
दिल को बचाना
देखना यह सुहाना मौसम ही
कहीं कुछ खेल न खेले
कविता करते कराते
खुद से न रूठे।

आ जाया करो
मिल बैठ कुछ कह लेगें
दर्द अपने आपस में शेयर कर लेगें।

कहने लगे
जब उधर निकलूँगा
मिलूँगा जरूर
वेैसे भी तो हम अन्जान हैं
फेसबुक के अलावा
मिले ही कहाँ हैं।

धन्य हो फेसबुक
कितने हसीन लोग मिले हैं
अपने ही अपनों से दूर
बहुत दूर हुये हैं।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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अब क्या कहें इस ज़माने से ।

कलम से_____

अब क्या कहें इस ज़माने से
यह होर्डिंग देख मेरा दिल पिघल गया
जाना था जिसको
वो आखिर चला गया
जाते जाते कुछ काम ऐसा कर गया
जो मुझे जिंदगी से जुदा कर गया।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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पेड़ की नोंक पर बैठ कर इतंजार हूँ करता ।

कलम से____

पेड़ो की नोंक पर बैठ कर
करता हूँ इतंजार
वो निकलें इधर से तो सलाम मैं करूँ...........

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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रात भर जाग कर पहरा देता हूँ ।

कलम से____

रात भर जाग कर
पहरा देता हूँ
हर अनजाने को
इस गली में
आने से रोकता हूँ।

अब तो सो लेने दे यार
पल दो पल नीदं चैन की मुछे
हक मेरा भी ख्वाबों पर
अपना खाली अख्तियार न समझ......

( निरीह जानवरों पर दया भाव दिखलाएं। पत्थर से न मारें इन्हें। धन्यवाद)

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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भाजपा जब से केन्द्र में आई है ।

कलम से____

भाजपा जब से केन्द्र में आई है
निक्कर वालों पर जवानी छाई है
गतिविधियां बढ़ अचानक गईं हैं
शाखाओं में भीड़ की बाढ़ आई है।

बरसात में मेढ़क मिल गाते हैं
टर्र-टर्र का राग मधुर सुनाते हैैं
कुछ भी कहो यारो कभी कभी
काम अच्छा कर यह दिखाते हैैं।

कश्मीर हो या हो जम्मू आपदा
जहां आती है यह वहाँ दिख जाते हैं
कांग्रेसी खाली गाल बजाते हैैं
दान देने लोग अब नहीं आते हैं।

मित्रों पावर का सारा यह खेल है
देश भक्ति की होढ़ में मची रेलमपेल है
खून चूस जनता का मोटी चमड़ी
इनकी की खूब हो गयी है ।

चेहरे पर नकाब लगाने की आदत इन्हें है
बेबकूफ बना जनता को सब आगे बढ़े हैं
शायरी के नाम भीड़ इकठ्ठी कर रहे हैं
केजरीवाल भी दुबारा कमर कस रहे हैं।

बाइ इलैक्शन के नतीजे सामने आ गए हैं
राजनीति देश की दुबारा से गरमा रही है
शीला सीना ठोकने की तैय्यारी में हैं
दूसरे कांग्रेसी उनकी टाँग खींच रहे हैं।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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राह तकते तकते थक गईं हैं निगाहें ।

कलम से____

राह तकते तकते थक गईं हैं निगाहें
आसमां के रंग भी गहरा चुके हैं
नहीं आओगे तुम पंक्षी बता यह गए हैं
मन के किसी कोने से आवाज आ रही है
नहीं, तुम अभी बस अभी आ रही हो।

गोधूलि बेला है लौटने का वक्त हो चला है
मेरा मन भी अब डोल रहा है कह रहा है
कि शायद अब नहीं आरही हो।

कुछ देर और बैठता हूँ
इतंजार मैं करता हूँ
चाँद तारे फलक पर उभरने लगे हैं
यामनी वाट जोह रही है
अब वह भी कह रही है
आज वो आने वाले नहीं हैं ।

सच क्या है
बता दो मुझको
तुम आज आ रही हो
या नहीं आज आ सकोगी
मजबूरी समझ लूगां मैं तेरी
कुछ न कहूँगा
दोष दूगां अपनी किस्मत को
समछा लूगां इस पगले मन को !!

कभी कभी अपने से बात करना सुहाता है
दर्द दिल का कुछ कम हो जाता है !!!

 //सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Monday, September 15, 2014

परी एक आसमां से उतर आई ।

कलम से ____

परी एक
आसमां से उतर आई
घर में मेरे रौनक छाई है
हर दिन अच्छा लगता है
जीवन का पल पल महका लगता है
हसँती है खिलखिला के
फूल से झड़ते हैं
मकसद नया मिल गया हो
जीने की तमन्ना
फिर से जगा गया कोई ।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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मैं रात भर उसके पीछे भागता रहा ।

कलम से____

मैं रात भर उसके पीछे भागता रहा
और वह मुझसे दूर और दूर होता गया
जब जब मुझे लगा मैं उसके नजदीक आ गया
उतनी ही दूर मुझसे वह चला गया.............

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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चाल चलते हैं ।

कलम से_____

चल चलते हैं
नभ के तारे दिन में गिनते हैं
सुफेद कहीं काले बदरा दिखते हैं
सपनों की चादर पर उतराते लगते हैं।

दूर कहीं दिखता है
एक मंगलयान उडता जाता
दूर दृष्टि ओझल हो जाता
छाप तिरंगे की नभ में बिखराता
आगे आगे ही है बढ़ता जाता
तारों के घर वो जाता
हाल पूछ आगे बढ़ जाता
है करीब लक्ष्य के हौसले से भरपूर
सारे जहां का बन जो रहा है नूर।

आइए हम सभी मिल मंगलयान मिशन की सफलता के लिए प्रभु से निवेदन करें।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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हर दिन को विभाजित किया है ।

कलम से_____

हर दिन को
विभाजित किया है
अष्ट प्रहर में
हर प्रहर की
भूमिका है निराली
अगर इसे अपनाएगा
जीवन सुखमय हो जाएगा
कर्म प्रधान ध्येय तेरा बन जाएगा
सुखी होगा तू औ' तेरा जीवन स्वतः सुंदर हो जाएगा।

करना है क्या, सुनले तू अब:-

दिन के चार प्रहरों को इस तरह जाना जाता है- पूर्वाद्ध, मध्याह्न्, अपराह्न् और सायं, जबकि रात के चार पहर को कहते हैं- प्रदोष, निशीथ, त्रियामा और उषा।

पूर्वार्ध :  प्रातः काल के निस्वार्थ भावना से निहित कार्य।

मध्याह्न्, : जन भावना से जुड़े जीवन यापन सम्बंधी कार्य।

अपराह्न् : उपरोक्त वर्णित कार्य ।

सायं :  जीवन से जुड़े कार्य समाप्ति पर घर को वापिसी और पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वहन।

प्रदोष : सांसारिक सुख दुःख का आकंलन करना। जीवन में आवश्यक बदलाव लाना इत्यादि।

निशीथ : शैय्या विश्राम।

त्रियामा : उपरोक्त कार्य अर्थात गहरी नींद सोना।

उषा : प्रातः उठना । नित्यकर्म के पश्चात ईश वन्दना तथा पारिवारिक जीवन में रस घोलना।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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मेरे हाथों को ले अपने हाथों में चूम भर लिया ।

कलम से____

मेरे हाथों को ले अपने हाथों में चूम भर लिया
कहने लगीं चलो चलते आसमां की सैर पर
वहीं से देख लेगें
चादँ कैसा दिखता है !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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सुप्रभात 09 15 2014

Good morning dear friends.
सुप्रभात मित्रों ।
09 15 2014

आशा का सूरज
आने वाला है
दुखियारों को नवजीवन का
संदेश सुनाने वाला है
सब के जीवन को
सरस बनाने आया है !!

आज की भोर आपके जीवन में नया जोश भरे प्रभु से यही कामना है ।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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राम गेशू खोल तुमने गुनाह क्यों किया ।

कलम से____

रात गेशू खोल तुमने गुनाह क्यों किया
दिल जो मेरे काबू में था उसे बेकाबू क्यों किया !!

मोंगरे की खुशबू ओढ़ तुम सामने आ गईं
बिंदिंया का रंग बदल मुझे मदहोश क्यों किया
रूप तुम्हारा लाल साड़ी में उभरता बहुत है
दिल जो मेरे काबू में था उसे बेकाबू क्यों किया !!

आँखों में काजल तुम्हारी फबता बहुत है
शाम को कातिल बना इल्जाम क्यों लिया
रौशनी को बुझा मुझे आमंत्रण क्यों दिया
दिल जो मेरे काबू में था उसे बेकाबू क्यों किया !!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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Saturday, September 13, 2014

पार्क से अभी लौट कर घर में दाखिल ही हुआ था

कलम से____

पार्क से अभी लौट कर
घर में दाखिल ही हुआ था
कानों ने यह सुना
अजी आप कैसे हो?
मैंने पूछा क्या हुआ?
झट से जबाब सुनने को मिला।

कल मैं यमुना स्पोर्ट्स काम्पलेक्स में
घूम रही थी
एक पति और पत्नी भी थे वहां
पत्नी बोलती ही जा रही थी
रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी
पति हाँ में हाँ मिला रहा था
एक आप हो
मैं बक बक करती रहती हूँ
आप हाँ भी नहीं करते हो।

मैनें मन ही मन कहा
वह दोनों धन्य हैं
कम से कम
उन्होंने जीवन का रहस्य समझ लिया है
इसीलिये वह दोनों साथ साथ हैं।

जब एक बोले दूसरा चुप रहे
इसी में भला है.............

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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मैं अपनी बात हिंदी मे कहता हूँ

कलम से____

मैं अपनी बात हिंदी मे कहता हूँ
हिंदी को हिंदी में सुनता हूँ
साधारण बोलचाल की भाषा मेरी है
मैं भी समझता हूँ औ' वो भी समझती है
अभिव्यक्ति का साधन है बनी
है यही मेरी प्यारी
साधारण हिंदी.........

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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एक कली को आज फिर मसल दिया...

कलम से____


एक कली को
आज फिर मसल दिया
खिलने पर खिलखिला के जो हसँती उसकी हँसी को छीन वो ज़ालिम दो आसूँ दे गया !!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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सुप्रभात 09 09 14 2014।

Good morning friends.
सुप्रभात।
09 14 2014

छोड़ो कल की बातें
कल की बात हुई पुरानी
आज Sunday है
लिखते हैं फिर एक नयी कहानी ।

थोड़ी है पुरानी
पर नशा देगी वही तूफानी
1968-69 का ज़माना था
bhel Ranipur Haridwar की बात है
Sunday का दिन था
तीन दोस्त और हमारा नौकर बिष्ट साथ था
निकल पड़े थे सबेरे सबेरे
साइकिल से घर से
चिल्ला घाट से गंगा पार उतरे
साइकिल साथ थी नाव पर सवार
चल पड़े जगंल के रास्ते
भीतर दूर पहुँच गये
बिष्ट के मामा ने
खिलाया मावा पिलाया दूध
जंगल भी घुमाया
रास्ता भी बताया
और फिर कहा
सूरज है ढलने को
चलना है वापस आपको
देर हो जाएगी
तो मुश्किल बढ़ जाएगी।

निकल पड़े हम वहाँ से
लौटने लगे पहाड़ी रास्ते से
थोड़े ही दूर चले
मिल गए हाथी महाराज
दौड़ लिया हम चारों को
जान बचा भागे थे
राह हम भूले थे
जाना था चण्डी घाट
बिजनौर की ओर चले गए
प्यासे परेशान
साइकिल से जंगल में
राह ढूढं रहे
गूजरों का गावँ मिला
एक गूजरी से मागँ पानी पिया
बड़ी मुश्किल से
वापसी का रास्ता पता किया
लौटते लौटते शाम हो गई
अन्धेरा छाने लगा
दिल हमारा धक धक करने लगा
लेट और हुए अगर
मिलेगी न नाव कोई
रात काटनी पड़ेगी
चण्डी घाट पर
हाफंनी निकल रही थी
जान सूख रही थी
क्या होगा क्या नहीं
समझ कुछ नहीं आ रहा था
पैडल पर जोर पूरा लग रहा था
भागते भागते किसी तरह
घाट पकड़ लिया
नाव थी बीच में
चिल्ला चिल्ला कर
वापसी उसे बुला लिया
किनारे आते ही हम नाव में गिर पडे
दूसरे लोगों ने साइकिल नाव पर चढ़ा लीं
बेहोश से पड़े पड़े गंगा पार की
माँ गंगा को प्रणाम किया
दुबारा ऐसी गलती न करने का वचन लिया
देर रात अपने घर लौटे
साइकिल सवारी का आनंद ऐसे लिया ।।

यह वास्तविक घटना पर आधारित पिकनिक वृतांत था। मित्रों, उस वक्त में हरिद्वार में गंगा पार करने के लिये नाव से जाना पडता था और पुल जो अब है नहीं था।

आज मुझे अपने वह दो साथी अनुपम अवस्थी और दिनेश सक्सेना जी की याद आ रही है जो हमारे साथ इस tour में गये थे। वह उम्र ही कुछ ऐसी थी कि कुछ साहसिक करने की ललक मन में बनी रहती थी।

आज के Sunday का यह सुबह सुबह का कलम का कमाल आपकी भेंट।

शुक्रिया।

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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खुशनुमा मौसम का आगाज़ हो गया ।

कलम से____

खुशनुमा मौसम का आगाज़ हो गया
सोते सोते हुए एक करवट जब ली
धुन्ध हल्की ही सही
पहली मरतबा आज सुबह दिखी !!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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चोटी के गेशू अचानक खुल गए , कल रात

कलम से____

चोटी के गेशू अचानक खुल गए, कल रात
बेला के फूल मसल गए आधी रात
कुछ और भी अफसाने थे जो चादर की सिलवटों में कैद हो गए........

//सुरेन्द्रपालसिंह//

Friday, September 12, 2014

जीवन एक उत्सव है नाचो गाओ ।

कलम से____

जीवन
एक उत्सव है
नाचो गाओ
गम को दिल पर न लगाओ
लगाने से क्या होगा
आग गम की जो लगी है
उसे बुझाओ।

मन जो करे
खुशी खुशी करो
कल क्या होगा
जो भी होगा
सब ठीक ही होगा
इसलिए नाचो गाओ
पहाड़ पर घूमने जाओ
जो ड्रिंक ना पी हो
उसे पियो
नाचो गाओ।

कल के लिए
क्या है बचाना
जो है सब यहीं छोड़ जाना
तब चिंता कैसी
हाँ, एक बात
जीना अपने लिए
मरना है वह भी अपने लिए।

इज्जत में बट्टा ना लगे
जो कमाया है वो साथ चले
नज़रिया यही जीवन भर बना रहे।

नाचो और गाओ !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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स्कूल के लिए निकलते थे

कलम से____

स्कूल के लिए निकलते थे
वह आगे आगे हम ऊनके पीछे पीछे होते थे
रास्ते भर हम उनका ख्याल जो रखते थे........!!!!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//
 

नज़ारे और भी हैं

कलम से____

नज़ारे और भी हैं जो मन को लुभाएगें 
खुदा को हम शायद यहाँ न पाएगें !!!

(एक गरीब बन्दे की अर्जी)

//surendrapalsingh//

सुबह से ही

कलम से____

सुबह से ही
आ जाते थे
चाहने वाले
एक दो कागा
दो एक टिटहरी
और एक मोर
कुछ और भी पुराने यार दोस्त
महफिल सजी रहती थी
अखबार की खबर
पर चाय ठंडी होती रहती थी।

अब कोई नहीं आता
खाली कुर्सी देख
लौट जाते हैं........

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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पहली बार तेरे दर आये हैं खुशीयों को हम देने तुम्हें जन्म दिन की शुभेच्छा और बधाई बस देने

पहली बार तेरे दर आये 
हैं खुशीयों को हम देने 
तुम्हें जन्म दिन की शुभेच्छा
और बधाई बस देने 
पहली---
बहुत उडा परदेश देश में
पंक्षी अपने धरे भेष में
बहुत कमाया खाया पीया
और कि अब हम क्या मानें
पहली ----
दिल के साफ बहुत भोले हो
मन उदार खब्बू थोडे हो
भूल गये तेरी खुवाईश को
संग लाये नही मिठाई देने
पहली----
बूरा दही मटर की भाजी
टपके लार मिले जो प्राजी
बिटिया रानी नातिन के संग
काट रहे दिन हम जाने
पहली---
अब पड चले कदम जिस ओर
खींच रही मां राधे डोर
तेरी पूर्ण कामना होगी
मां की ममता हम पहिचाने
पहली---
रहे फूलों सा महके धाम
तुम्हारे मन चाहे हो काम
रहें सलामत मेरे भईया
दुवा खडे ये हम मांगे
पहली----Harihari Singh

आज पार्क में

कलम से____

आज पार्क में
बैंच पर पहले से 
बैठी हुई मिली मेरी 
जिन्दगी,
कहने लगी
आओ बैठो
सुस्ता लो
थके थके से लगते हो
अभी चले ही
कितना हो
दूर बहुत दूर
चलना है
साथ मेरा जो देना है !

बैठते हुए,
मैंने पूछा तुम कैसी हो
कहने लगी
अभी तो मैं
जवान हूँ
तुझे मेरे लिए
रहना है !!

ला अपना दाहिना
हाथ आगे बढ़ा
देखूँ क्या है लिखा हुआ
हाथ मैंने अपना उसके हवाले किया
बुझे मन से कहा
लुनाई है अब कहाँ
इन हाथों में
खुरखुरे होने लगे हैं
रेखाएं भी बदलीं बदलीं सीं हैं
देख बता
तुझे क्या कहना है !!

हथेली फैला वह पढ़ने लगी
अभी तेरी जिन्दगी बहुत है वाकी पड़ी
मस्त रहेगा
खाएगा पीएगा
चिंता की कोई बात नहीं है
लंबा तुझे चलना है
चेहरे को मोल न दे
झुर्रियां आएंगीं
तेरा बिगाड़ कुछ न पाएंगी
शर्त एक है
तुझे हर रोज़
आना होगा
यहाँ बस यूँ ही मुझसे मिलना होगा !!!

हाथ की रेखाओं में
क्या रखा है
छोड़ अभी तुझे मेरे लिए लंबे चलना है !!!!

कोने के आखँ से
एक बूँद खारी टपक गई
वादा कुछ कर गई
जीने का
मरने की अभी कोई बात नहीं !!!!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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Thursday, September 11, 2014

क्या करता खुदा जो काम हमने हमने कर दिया ।

कलम से____

क्या करता खुदा जो काम हमने कर दिया
दुश्मन ता उम्र वो समझते रहे आखिर हमने दिल उनका जीत ही लिया...........

//सुरेन्द्रपालसिंह//

Indian army on rescue mission in J&K.

गुज़रे ज़माने को पीछे छोड़ आया हूँ

कलम से____

गुज़रे ज़माने को पीछे छोड़ आया हूँ
बार बार मुझे अब बुलाया न करो....................  !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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मेरे ख्वाब तेरे ख्वाब से टकरा गए !

कलम से____

मेरे ख्वाब तेरे ख्वाब से टकरा गए !

मैं पली बड़ी हुई आदर्शों से घिरी हुई
पिता मेरे अध्यापक
अच्छी शिक्षा दीक्षा देकर बड़ा किया
उचित समय जान मेरा विवाह किया
तुमको जाना उन्होंने जैसे दूसरे पिता जानते
अच्छा वर समझ मुझे तुम्हारे साथ विदा किया !

शुरू शुरू में तुमने भी मुझे सब कुछ दिया
धीरे धीरे रंग तुम्हारा बदलने लगा
पैसा और पैसा ही तुम्हारे लिए अहम हुआ
सबंध बिखरे स्वप्न टूटे
तुमने कभी मेरा ध्यान न किया !!

आज मै बिखर रही हूँ
मैं अब वह नहीं रही हूँ
आचार व्यवहार से मैं बंधी हुई हूँ
तुम आज़ाद पंछी बन उड़ रहे हो
आकाश अपने तय कर रहे हो !!!

सामंजस्य टूट गया है
साथ अब निभाने से भी नहीं निभ रहा है
राह तुमने कोई और पकड़ ली है
सोचती हूँ अब मैं क्या करूँ !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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मोती दूब पर बिखरे दिखे

कलम से____


मोती दूब पर बिखरे दिखे
मन की चाहत हुई सब आँचल में बटोर लूँ
किसी के पैरों की आहट सुनी
मैं थमा सा रह गया।

मौसम में ठहराव था जो खत्म हुआ
कुछ परिवर्तन हो गया
कानों मे आ कर कह गया
आज से में बदलने लगा
दूब की नोंक पर
हर रोज़ मिला करूँगी मैं,
ओस,
बस आ जाना सूरज के पहले
पूरब में आने की आहट से पहले।

(दिल्ली में खुशनुमा मौसम की सुगबुगाहट हो गयी है)

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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Wednesday, September 10, 2014

जब हवेली ही न रही ....

कलम से____

जब हवेली ही न रही
गौरैया भी उड़ गई फुर्र से
जैसे छोड़ गए सब ताले बंद कर
लौट कर न आने का वादा कर !!

बसेरा है अब यहाँ
एक नाग नागिन के जोड़े का
भूले भटके आ जाता है
एक मोर बरसात में
नाचता है मन भर
रो पड़ता है पैर देख कर
पास ही रहती है
मोरनी देती है दिलासा
चलो हम भी चलें वहां
दाना पानी मिले जहां !!

सामने से बैठ
हम भी नज़ारा देखते हैं
फटी फटी आँखों से
कर ही क्या सकते हैं
हालात इतने बिगड़े हैं
इन्सान आखिर वहीं जाएगा
दाना पानी जहां वो पाएगा !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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संतोष प्राप्ति के पैमाने अलग अलग हैं ।

कलम से____

संतोष प्राप्ति के पैमाने अलग अलग हैं
खुश कोई होता है अपनी ही खुशी में ।

कोई सुख अनुभव करता दूसरे की खुशी में
संतोष प्राप्ति के पैमाने अलग अलग हैं ।

मैं जाता पहाड़ पर तब खुशी मिलती
संतोष प्राप्ति के पैमाने अलग अलग हैं ।

कभी कभी जंगल में आपाधापी में खुशी पलती
संतोष प्राप्ति के पैमाने अलग अलग हैं ।

साधू बाबा को धूनी में है अच्छा लगता
संतोष प्राप्ति के पैमाने अलग अलग हैं ।

मंदिर के पुजारी को फूल चढ़ाना मन भाता
संतोष प्राप्ति के पैमाने अलग अलग हैं ।

शराबी को अपनी बोतल से प्यार बहुत
संतोष प्राप्ति के पैमाने अलग अलग हैं ।

नशा किसी के सुदंर नयनों का है मन भाता
संतोष प्राप्ति के पैमाने अलग अलग हैं ।

मैं अपनी दुनियां में ही खोया हूँ रहता
संतोष प्राप्ति के पैमाने अलग अलग हैं ।

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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ख्वाहिश और ख्वाब ।

कलम से____

ख्वाहिश और ख्वाब
कोई रोक नहीं पाया
दोनों ही रोज़ जमते हैं
मौत भी अपनी मरते हैं।

याद पड़ रहा
एक ख्वाहिश का ख्याल
एक देखा था किसी ने ख्वाब
जिक्र हुआ था
दोनों का अग्रेंजी की किताब !

एक खूबसूरत घर हो
एल्पाइन जंगलों से घिरा
बर्फ से ढ़के हों पहाड
सामने समंदर का किनारा हो
एक अदद खूबसूरत ही नहीं बेहद खूबसूरत
बेगम का मिले साथ
बेटा एक
एक बेटी भी हो
घूमने फिरने को एक फरारी हो
बिजनेस एम्पायर बना हुआ हो
खर्च करने पर रोक न हो
जिन्दगी ऐसी हमारी हो.......
........!!

ख्वाब और ख्वाहिश
का मिला जो साथ
सपने तो बुन ही जाएगें
ख्वाबों में
रेत के महल बन ही जाएगें
मुठ्ठी में लेते ही
रेत से निकल जाएगें !!!

//surendrapal singh//

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कुछ लोगां के जुबान चढ़ी ।

कलम से____

कुछ लोगां के जुबान चढ़ी
कुछ ने दुत्कार दिया
जिसने मुझे छोड़ दिया
समझो भगवन ने उसका उपकार किया !!

मैं चीनी ( शुगर )
धन्यवाद मित्रों !!!

इलाहाबाद के
सुलाखी की बालूशाही
याद बहुत आती है
इटावा की देशी घी की
सोहन पापड़ी मुहँ में रखते ही घुल जाती है !!!

कम्बख्त चीनी
फिर अपनी याद दिलाती है !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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मनुवा ।

कलम से____

मनुवा
कभी बैठ सागर किनारे
होजा तल्लीन सुदंर नज़ारों में
मन भीतर की आग को
छींट दे योग के जल से !!

मन आज चल बैठ सागर किनारे !!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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एक फर्क साफ नज़र आता है ।

कलम से_____

एक फर्क साफ नज़र आता है
वो होते हैं अकेले बहुत अकेले
फिर भी खुश रहते हैं
हम ही हैं, जो अपने कल के चक्कर में अपना आज भी नहीं जीते हैं........

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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तुझे देखा कर

कलम से_____

तुझे देख कर
मन उदास हो गया
हाय यह क्या हो गया
अभी कुछ रोज़ पहले ही तो मिले थे
अच्छे खासी तुम हरे थे !

अचानक यह क्यों हो गया
क्या तुम्हारा ही मन बुझ गया
जीवन जीने की चाह क्या खत्म हुई
या कोई दुश्मन दुश्मनी निभा गया !!

बताओ तो क्या हुआ
क्या कहूँ मैं किसी ने भी मेरा ध्यान नहीं किया
बूढ़ा समझ बस सबने मुझे अपने हाल पर छोड़ दिया !!

हाल सबका यही होता है
मेरा भी वही हुआ
मैं अब किसी के काम आऊँगा
जाते जाते भी किसी की मैय्यत में मदद कर जाऊँगा
मुझसे जो बन पड़ा मैने वह किया
रुख़सती का आलम है कहता हूँ मैं अब अलविदा !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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Tuesday, September 9, 2014

सुपर मून 2014

कलम से_____

कल रात चाँद
कुछ ऐसा दिखा था
मेरी छत पर तो नहीं
शायद
वो तेरी छत पर था........ !!!

Super moon of 2014 as viewed on Monday.

//surendrapalsingh//

सिर फिरे दीवानों की फेहरिस्त में ।

कलम से____

सिरफिरे दीवानों की फेहरिस्त में
हमारा भी नाम जुड़ गया
जब शहर की दीवारों
पर किसी ने तुम्हारा और मेरा नाम लिख दिया.....

//सुरेन्द्रपालसिंह//

सोते सोते में भी ख्वाब में सीढ़ी चढ़ने लगता हूँ ।

कलम से____

सोते सोते में भी ख्वाब में सीढ़ी चढ़ने लगता हूँ
तारों से भरी टोकरी तुझे देने को आने लगता हूँ
बहुत है मुझे तुझसे प्यार मेरी माँ
दिन रात मैं तेरे ही सपने बुनता रहता हूँ।

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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कुछ कर्ज रहने भी दे अगले जन्म के लिए।

कलम से____

कुछ कर्ज रहने भी दे अगले जन्म के लिए।

लेकर आए हो तुम मुछे इस जहान में
अहसान बहुत किया नाम जो अपना दिया है
दे जाऊँगा सब कुछ जो तूने मुझे दिया है
कुछ कर्ज रहने भी दे अगले जन्म के लिए।

मैंने जानता न था प्यार होता ही क्या है
तुमसे मिल के जाना दिल धडकता क्यों है
लेकर न जाऊँगा जो मुझे तूने दिया है
कुछ कर्ज रहने भी दे अगले जन्म के लिए।

मेरे घर में खुशियों की बारात आई है
तू जबसे आया है बहार ही बहार छाई है
देकर जाऊँगा मुझे थोडा बहुत जो मिला है
कुछ कर्ज रहने भी दे अगले जन्म के लिए।

जाने का दिन जब मेरा करीब बहुत आएगा
सीने से लगा के तेरे सारे गम मैं मागँ लूगां
सलामत रखे खुदा से बस यही दुआ कँरूगा
कुछ कर्ज रहने भी दे अगले जन्म के लिए।

//surendrapal singh//

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कलम से____

ख्वाहिश और ख्वाब
कोई रोक नहीं पाया
दोनों ही रोज़ जमते हैं
मौत भी अपनी मरते हैं।

याद पड़ रहा
एक ख्वाहिश का ख्याल
एक देखा था किसी ने ख्वाब
जिक्र हुआ था
दोनों का अग्रेंजी की किताब !

एक खूबसूरत घर हो
एल्पाइन जंगलों से घिरा
बर्फ से ढ़के हों पहाड
सामने समंदर का किनारा हो
एक अदद खूबसूरत ही नहीं बेहद खूबसूरत
बेगम का मिले साथ
बेटा एक
एक बेटी भी हो
घूमने फिरने को एक फरारी हो
बिजनेस एम्पायर बना हुआ हो
खर्च करने पर रोक न हो
जिन्दगी ऐसी हमारी हो.......
........!!

ख्वाब और ख्वाहिश
का मिला जो साथ
सपने तो बुन ही जाएगें
ख्वाबों में
रेत के महल बन ही जाएगें
मुठ्ठी में लेते ही
रेत से निकल जाएगें !!!

//surendrapal singh//

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Monday, September 8, 2014

जल भराव ।

कलम से___

जल भराव
में
पैदा होते होगें
मच्छर
चलो
आज कुछ
मस्ती करते हैं
उन्हें
भगाते हैं।

बैठ
जब वह
न पाएगें
तो
अन्डे
कहाँ से
आएँगे।

रोगमुक्त
हम
सभी
हो जाएगें।

मस्ती की मस्ती
और
खेल का खेल।

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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मन भीतर जन्मा था ।

कलम से____

मन भीतर जन्मा था
एक विचार
काम पूरा हुआ
लगाया पेड कदम्ब का
होगा जब बड़ा
झूले उस पर पडेंगे
सावन में
झूलने
मेरे मेहमान आएगें।

सखियाँ पैंग भरेंगी
ढ़ोलक की थाप पर
मल्हार सावन के गीत
राग रागिनी गाएंगी।

राधे भी होगी
होगा मेरा कन्हाई भी !!

(भगवान को आप किसी भी रूप में स्मरण करें। सभी रूप उसके मनमोहक हैं।)

//surendrapalsingh//

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शाम का धुंधलका होने लगा है ।

कलम से____

शाम का धुंधलका होने लगा है
मेरा दिल फिर बहकने लगा है !!

बैठ आगंन में इतंजार मेरा कोई कर रहा है
अहसास इसका मुझे हो चला है !!

मै हूँ मज़बूर अपने हालात से
मन तुमसे मिलने को बहुत कर रहा है !!

नैट आफिस का खराब हुआ पड़ा है
न जाने कब ठीक होगा सारा प्रोग्राम रुका पड़ा है !!

अपडेट्स हैड आफिस को देने पड़े हैैं
कम्बख्त यह काम यूँ ही पड़ा है !!

कैसे आऊँ घर आज समझ मेरे कुछ नहीं आ रहा है
इतंजार कर लो कहूँगा बस इतना इतंजार में भी अपना मज़ा है !!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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इन खंडहरों में बहुत कुछ छिपा रखा है ।

कलम से_____

इन खंडहरों में बहुत कुछ छिपा रखा है
न जाने कितने लोग आ चुके हैं
और अभी न जाने कितने आएगें..........

//सुरेन्द्रपालसिंह//

देखते देखते ही मैं खुदा बन गया ।

कलम से____

देखते देखते ही
मैं खुदा बन गया
यह मैं नहीं लोग कह रहे हैं
कह भी नहीं कर के दिखा रहे हैं
सुबह शाम
लोगां आते जाते
खड़े रह जाते हैं
कुछ तो ताली बजा
पूजा सी करते हैं
कुछ बाकायदा
रीत अनुसार
पूजा पाठ करते हैं !

चंद साल पहले तक
मैं एक ठूंठ पेड़
हुआ करता था
जीडीए की निगाह
पड़ गई मेरे चारों ओर
चबूतरा बनबा दिया
फिर क्या था
देखते हो देखते लोग
फूल तोड़ लाने लगे
शीस मेरे चढ़ने लगे
और मैं भगवान बन गया !!

जिस देश में
ऐसे परिवेश में
साधारण इन्सान भी
भगवान बन जाते हैं
मैं तो कम से कम
काम करता हूँ
(दिन रात कार्बन डाइ आक्साइड को आक्सीजन में बदलता हूँ)
कुछ तो बेकार
ही पूजे जाते हैं !!!

पीपल मेरी कहानी मेरी जुबानी !!!

//surendrapal singh//

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हर सांस में तू है बसा ।

कलम से_____

हर सांस में तू है बसा
तुझे कैसे ओढूँ कैसे और पाऊँ, समझ न पाऊँ
अनजान हूँ जीवन की इस ड़गर में
राह भटक गर जाऊँ
समझाने आ जाना
सही मार्ग दिखा जाना
प्रभु हर कोने पर खड़े दिख भर जाना !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

यहाँ लाकर दफ़न कर मुझे कब्र में छोड गए ।

कलम से_____

यहाँ लाकर दफ़न कर मुझे कब्र में छोड गए
फूल बिखेर एक चद्दर चढ़ा कर वो चले गए।

कहते थे बेपनाह मोहब्बत करेगें ता उम्र भर
यहाँ लाकर दफ़न कर मुझे कब्र में छोड गए।

हुस्न की दीवानगी इतनी जल्दी क्या काफूर हो गई
यहाँ लाकर दफ़न कर मुझे कब्र में छोड गए।

वो वादे वो कसमें रहेगें सदा साथ कहाँ गए
यहाँ लाकर दफ़न कर मुझे कब्र में छोड गए।

शादी के लिवास में बडे प्यार से लाए थे अपने घर
यहाँ लाकर दफ़न कर मुझे कब्र में छोड गए।

यह भी न पूछा कि मेरा अंज़ाम क्या होगा
यहाँ लाकर दफ़न कर मुझे कब्र में छोड गए।

//surendrapal singh//

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Sunday, September 7, 2014

आजकल ऊपर वालानाराज के।

Good morning friends.
सुप्रभात मित्रों।
09 08 2014

आजकल ऊपर वाला
नाराज चल रहा है
इसीलिये कहीं आधीं और तूफान है
चाहे जम्मू हो या कश्मीर
निगाह डालो चाहे जहाँ
इन्सान हर जगह परेशान है।

कुछ गड़बड़ तो की है
मिल रही सजा उसी की है
इन्सान को इन्सान तो मार ही रहा है
अब तो अल्लाह भी बना नादान है।

अपने अपने लालच में सब हैं पड़े
कोई यहाँ खड़े कोई वहाँ खड़े
हर जगह बसूली का चल रहा व्यापार है।

मित्रों यह दुनियां है ऐसे ही चली है और शायद ऐसे ही चलेगी। आज सोमवार है हम सब भी चलें अपने काम से लगें।

शुभ दिन रहे इसी मंगल कामना के साथ ।

//surendrapalsingh//

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कहने लगे चलो चलते हैं ।

कलम से_____

कहने लगे चलो चलते हैं
एक ऐसी जगह
कोई और न होगा
आसपास,
जहाँ बस हम दोनों ही होगें !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

देखते देखते ही वह दूर इतना चला गया ।

कलम से____

देखते देखते ही वह दूर इतना चला गया
अब आवाज देने से ड़र लगता है !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

Saturday, September 6, 2014

सोने भी नहीं देते हैं दुश्मन मेरी जां के ।

कलम से____

आज प्रातः का दृश्य !

सोने भी नहीं देते हैं दुश्मन मेरी जां के
आकर जगा जाएगा कोई यह कह के
यह भी कोई सोने की जगह है यार
सोना ही है तो सो
महबूबा के आगोश में जाके
मेरा महबूब है कि मुझे बुलाता भी नहीं है
कहता है जा कमा के ला घर में अब कुछ भी नहीं है
खाने के पड़े हैं लाले तुझे चाय कैसै पिलाऊँ
दूध भी अब ललुआ के लिए बचा नहीं है !

जा, बाहर जा घर से निकल
कुछ तो करेगा
और नहीं तो टूटते रिश्तों को भरेगा
आस पर ही अब कट रही है
यह जिन्दगी
जा इस गांव अब तेरा बचा ही क्या है !!

सब तो चले गए शहर
तू ही अकेला रह यहाँ क्या करेगा !!!

(गावँ से पलायन का दर्द किसी को नहीं कचोट रहा है। हे भगवन, यह कैसी विडम्बना है?)

//surendrapal singh//

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सोलर पावर प्लांट ।

कलम से____

कोयले की कमी
खलने लगी है
देश में किल्लत
बिजली की बढ़ने लगी है।

प्रगति की राह में
लोग आने लगे हैं
कानूनी दाँवपेच
दिखने लगे हैं ।

टीवी की जगह
रेडियो से बात
करने की चर्चा
आम हो रही है ।

प्रधानमंत्री निवास
पर गूंज बढ़ गई
बिजली अब नहीं
मिल रही है।

सोलर प्लांट ही
अब एक आप्शन
बचा है अपनाना
इसे मजबूरी
बन रहा हैै ।

सोचो यार सोचो
सोचने में बुराई
नहीं है
हाँ, सब्सिडी अभी मिली नहीं है ।

हम तो सुधर गए हैं
तुम भी सुधर लो
नहीं तो फटेहाल
हो जाओगे गरमी
में मारे मारे
कभी यहाँ
कभी वहाँ जाओगे ।

We have since installed 2 KW solar plant at our village and are now happy and not dependent on Uttar Pradesh government electricity for domestic consumption.

//surendrapal singh//

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एक फूल ड़ाली से बिछड़ शीस चढ़ता है ।

कलम से_____

एक फूल ड़ाली से बिछड़ शीस चढ़ता है
वहीं दूसरा पावं तले कुचला जाता है !!

ऐसा क्यों होता है समझ नहीं आता है
इस दुनियां में अक्सर ही ऐसा होता है !!

दो बहनों के बीच नाता बड़ा निराला है
अपना पुत्र दोनों का बड़ा ही प्यारा है !!

पिता एक माता दो लगता बहुत न्यारा है
धर्म नीत चुप हो जाए तब ठीक लगता है !!

देवकी जाया जसोदा की आँख का तारा
कृष्ण हमारा भी तो यही कहता फिरता है !!


//surendrapal singh//

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नौचंदी के मेले में

कलम से____

नौचंदी (मेरठ) में...
मेले में हम खो गए....
रेले में तुम खो गए....
अच्छा हुआ खोकर जो हम फिर मिल गए !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

मैं तो निकला था

कलम से_____

मैं तो निकला था !
रेत पर पैरों के निशान बनाता हुआ !!
हवा का एक झोंका सब यादें बहा ले गया !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

चलते चलते मुसाफिर दोस्त बन गए

कलम से_____

चलते चलते मुसाफिर दोस्त बन गए
पता ही न चला मोहब्बत कब हो गई !!!!!

 //सुरेन्द्रपालसिंह//

सुप्रभात 09 09 07 09 09 07 2014 Good morning friends.

Good morning dear friends.
सुप्रभात दोस्तों ।
09 07 2014

रविवार है आज
छुट्टी का दिन
फिजीकल एक्सरसाइज़ का दिन
हम निकालते हैं
अपनी फरारी
दुपहिया साइकिल
करेगें मेराथन की तैयारी
वह पैदल दोड़ेंगे
हम साइकिल पर रहेगें
दूरी उतनी होगी
फर्क बस इतना होगा
हमको तय उनसे पहले करना होगी !

चलिए चलते हैं
शुरू करते हैं
स्टार्ट और फिनश
पौइन्ट एक ही होंगे
दौड़ रीगल से शुरू होगी
इडिंया गेट होती हुई
दस किलोमीटर का रूट कवर करेगी
और फिनिश लाइन
पर आकर खत्म होगी !!

अबके कोई headturner
अपने साथ नहीं होगा
कुछ लोगों को बुरा लगा था
इसलिये यह तब्दीली की है !!!

रेस पूरी करने पर
जलेवी समोसे चाय की व्यवस्था होगी
आप सभी आवें
रेस में भाग लें।

स्वास्थ्य तो ठीक होगा
पेट्रोल की खपत भी कम होगी
राष्ट्र हित में यह रेस रहेगी
चलिए अब चलते हैं
रेस शुरू करते हैं।

Go out and enjoy bicycle ride for a while. Keep yourself fit and healthy.

Enjoy your Sunday.


//surendrapalsingh//

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Friday, September 5, 2014

खालीपन ।

कलम से____

खालीपन
अब सहा नहीं जाता
सुबह सुबह घर बैठा नहीं जाता
पारक आज गीला है
सड़कें पानी से पटी हैैं
निकलें तो कैसे निकलें
अब तो मजबूरन ही सही
बालकनी ही एक सहारा है !

बालकनी में रहेंगे
यहीं बैठेगें
आज अपनी सुबह यहीं बीतेगी
ख्याल कुछ नये नहीं बनेगें
ख्वाब सुबह सुबह दूर ही रहेगें
चल छोड़ यार गम न कर
कर जो तू मन आए कर
कुछ और नहीं
एक प्याला चाय का पानी चढ़ा
चाय बना
और
अखबार का इंतजार कर !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

Good morning dear friends.

Good morning dear friends.
सुप्रभात दोस्तों ।
09 06 2014

क्या गज़ब हुआ
आखँ खुलते ही यह नज़ारा आम हुआ है
बादल बहुत जोर से रो रहा है !

इतने पहले न बरसे थे
जितने आज बरसे हो
अचानक यह परिवर्तन
कैसे और क्यों हुआ है !!

सावन सूखे गए
भाद्रपद में ऐसा क्यों हुआ है
समझ नही आ रहा
यह संकट तो कहीं नहीं
पर जो भी है सुन्दर हुआ है
किसान खुश है
लग रहा है यह आशीष
प्रभु तूने ही दिया है।

आज झमाझम बारिश हो रही है। मित्रों जिनके आफिस खुले हैं उन्हें जल्दी निकलना होगा जल भराव दिल्ली को आज सुबह से ही परेशान करेगा। रास्ते में कहीं गाडियाँ खराब भी होंगी जो ट्रेफिक जाम का सबब भी बनेगीं।

चलो आज टेलीविजन वालों को कुछ काम मिलेगा। इस बरसात में कैमरे भीगे लोगों की फोटो खींचने में बिजी रहेगें।

मित्रों शनिवार शानदार शानदार शानदार रहे इस शुभ कामनाओं के साथ ..........

//surendrapalsingh//

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दिन की खूबसूरती बढ़ जाती है ।

कलम से____

दिन की खूबसूरती
बढ़ जाती है
जिस दिन मुलाकात
उनसे हो जाती है।

पार्क में
फूल खिल जाते हैं
फिजाओं में खुशबू छा जाती है
भ्रमर रसपान को आ जाते हैं
बाग की रंगत ही बदल जाती है।

तुम जब नहीं दिखते
उदास हो जाता हूँ
थका थका सा महसूस करता हूँ
सोचता हूँ आखिर
तुम में क्या है ऐसा
जिसको देख
मौसम भी पलट जाता है
बिन बादल बरसात का आलम बन जाता है।

मेरे जहां में रख दो
कदम अपने हौले से
दुनियां ही मेरी
बदल जाएगी
तुम्हारे आने भर से
रौनक चेहरे की बढ़ जाएगी
हासिल मैं वह कर लूँगा
सपना सा जो लगता है।

तेरा दर्जा सबसे ऊँचा है
खुदा के बाद तेरी बंदगी ही मैंने की है।

//surendrapal singh//

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भीड़ भाड़़ वाली इस दुनियाँ में......

कलम से_____


भीड़ भाड़़
वाली इस दुनियाँ में
हर एक दूसरे को धकिया रहा है
सब विरोधों के बाबज़ूद
आगे, आगे बढ़ जाने में लगा है
जो रूठ गया वह छूट गया
रूठने मनाने का वक्त अब गया
जो भी कहना है
साफ कहो
रहना है साथ रहो
नहीं
तो जो करना है, वो करो !!

मुझे आगे बढ़ना
मुझे बढ़ने दो
तुमको साथ नहीं देना है
मत दो
आसूँ बहाने का
औ' पौंछने का अब समय गया
नया वक्त अब है आ गया !!!

नया वक्त अब है आ गया............

//surendrapal singh//

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Thursday, September 4, 2014

परदे के पीछे रहने से क्या होगा?

कलम से____

परदे के पीछे रहने से क्या होगा
नज़र हमारी तुम्हें वहाँ भी न छोड़गी !!!

//surendrapalsingh//

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ज़ख्म दिया गहरा था......

कलम से____

ज़ख्म दिया गहरा था
एक हम ही थे जो चोट खाके भी दुबारा मचल गए !!!

//surendrapalsingh//

नजर मिलाने से......

कलम से____

नज़र मिलाने से आजकल कतराने लगे हो
क्या कोई और सपनों में आने लगा है !!!

//surendrapalsingh//
09 03 2014

Wednesday, September 3, 2014

मैं सोचता हूँ अगर हम जड़ होते ।

कलम से____

मैं सोचता हूँ
अगर हम जड़ होते
न हम हिलते
न हम चलते
न हीं हम पर
मौसम असर अपना करते
बस हम अगर जड़ होते।

मौसम दुलारते हैं
प्यार से निखारते हैं
अपने आने जाने का
अहसास दिलाते रहते हैं।

मौसम ही न होते
हम शायद जड़ हो गए होते।

आज मौसम है भारी भारी
आसमां है घिरा घिरा सा
भादों का है महीना
कह यह रहा है
सावन न बरसे
अब बरसेगें
सारी कमी पूरी कर देगें
किसान की आँखों के आँसू न दिखेंगे
सभी सन्तान हैं मेरी
किसी को भी न रोने दूँगा
ख्याल सबका मैं रखूँगा।

एक काम अब तुम करलो
पेड़ पौधों का ध्यान तुम धरलो
यह धरा है तुम्हारी
सभाँलो इसको
बेटे सा पालो तुम इसको

बस बेटे से पालो तुम अब इसको.........

//surendrapalsingh//

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" जो जल बाढ़े नाव में घर में बाढ़े दाम , दोऊ हाथ उलीचिए यह सज्जन का काम |"

Good morning dear friends.
सुप्रभात दोस्तों ।
09 04 2014

कलम से____

आज कबीर का दोहा याद हो आया जो हमने बचपन में पढ़ा था । कल बड़ी सार्थक चर्चाएं फेसबुक पर देखने को मिलीं। उसी सोच आगे बढ़ाते हुए आज मुझे कहना है कि :-

कबीर ने बाह्य आडम्बरो का विरोध किया है | उन्होंने हिंदू -मुसलमान दोनों के बाह्य दिखावे का विरोध किया है | आत्म ज्ञान पर बल दिया है | प्रेम ,सदभाव परोपकार ,दया आदि पर बल दिया है | वे कर्म करना आवश्यक मानते है | वे चाहते हैं कि जिसके पास धन -दौलत है ,वह समाज के उस वर्ग की सहायता करे जिसके पास साधन नही हैं |

कहा है ------- " जो जल बाढ़े नाव में घर में बाढ़े दाम , दोऊ हाथ उलीचिए यह सज्जन का काम |"

अपनी बात :

आजकल फेसबुक पर
नालेज शेयरिंग का दौर चल रहा है
मेरा मित्र आशीष बहुत सुंदर ज्ञान बाँट रहा है
कभी इधर उधर भटक जाता है
राह सही पकड
फिर सीधा हो जाता है।

मेरे जेहन में एक प्रश्न आता है
सच है, जो वह बतलाता है
कहाँ से प्रमाण लाएगा
अपनी बात साबित कैसे कर पाएगा
दुश्मनों ने नेस्तनाबूद कर दिए थे
जेहाद के नाम पर
न जाने कितने घर मंदिर उजाड दिए थे
सभ्यता के निशान मिट जो गए हैं
कैसे बनेगें ?

अब नहीं बन सकेंगे
दरार जो आगई है कैसे पटेगी
मिलजुल कर अगर हम न चलेगें।

एक झुक जाए
समस्या हल हो जाएगी
वरना तो तस ही तस ही रह जाएगी
सियासी अखाड़ा बन गया है
खेल बना बनाया बिगड़ गया है।

मानवता के क्रमिक विकास की कहानी - आदमी में परिवर्तन की निशानी को सहज कर रखने की जिम्मेदारी हम सभी की बनती है।

सियासत को सभंल कर चलना होगा आपसी भाईचारा और सहिष्णुता को बढ़ावा देना होगा।चुनावी महौल बनाते वक्त हमें इन बातों का ध्यान रखना होगा।

//surendrapalsingh//

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पुरवइया बयार बहै धीरे धीरे ।

कलम से____

पुरबइया बयार बहै धीरे धीरे
बदरी का टुकड़ीं
संग चलें धीरे धीरे
कुछ काली कुछ सुफैद
मिल कै बरसेंगी अनेक
सावन-भादों फिर आएगें
बुंदियन की झड़ी लगाएगें
अबके गए फिर साल पीछें लौटेगें
यादन वे हमेशा रहैगें
जाओ जाओ चाहे जहाँ बरसौ तुम
हमारे अगंना आज बरसौ तुम
इतनो ख्याल हमारौ धरो तुम ....

चल हम आय रहे हैं
बरसेंगें तेरे अगंना
खेलत हैं जिसमें
मेरे ललना
ऐसो है तेरो अगंना
शान तेरे अगंने की बनी रहेगी
बगिया तेरी महकेगी
फूलन सें लदी रहेगी
प्यार की बारिश होती रहेगी
चल हम आय रहे हैं
बरसेगें तेरे अगंना ......

//surendrapal singh//

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Tuesday, September 2, 2014

कल था राधा माई का जन्मदिन ।

सुप्रभात मित्रों !
Good morning friends
09 03 2014

कल राधा माई को जन्मोत्सव था। मुझे ध्यान ही न रहा जब नैट में गूँज सुनी तो क्षोभ हुआ। शान्ति के लिए कुछ पढने का मन कर रहा था सो यह आर्टिकल सामने पड़ा मिल गया, आज भोर के सुप्रभात में मित्रों के साथ बांटने को ठीक लगा सो यह अब आपकी नज़र है।

जीवन एक उत्सव है और इसे इसी रूप में भगवान का प्रसाद समझ ग्रहण करना चाहिए।

राधा! होली ही खेल रहा हूं। कभी होली, कभी होला। चौबीस घंटे वही चल रहा है, तुम्हें रंगने के ही धंधे में लगा हूं। रंगरेज ही हो गया हूं। काम ही कुछ और नहीं कर रहा। जो आदमी मुझे दिखता है, बस मैं उसे रंगने में लग जाता हूं। इसलिए जो रंगे जाने से डरते हैं, वे मेरे पास ही नहीं आते। वे दूर—दूर रहते हैं। कहीं रंग की कोई बूंद उन पर न पड़ जाए!

मैं अपने रंग में ही तुम्हें रंग रहा हूं। यहां होली वर्ष में एकाध दिन नहीं आती, होली ही चलती है। सब दिन एक से हैं। और सब दिन रंगने का काम ऐसे ही चलता रहता है।

एकाध दिन होली क्या खेलनी!

एकाध दिन होली खेलने के पीछे भी मनोविज्ञान है। यह जो दिन की होली है, इस तरह के उत्सव सारी दुनिया में हैं— अलग— अलग ढंग से, मगर इस तरह के उत्सव हैं। यह सिर्फ इतना बताता है कि मनुष्यता कितनी दुखी न होगी। एक दिन उत्सव मनाती है, और तीन सौ पैंसठ दिन शेष—दुखी और उदास। यह एक दिन थोड़े मुक्त भाव से नाच—कूद लेती है। गीत गा लेती है। मगर यह एक दिन सच्चा नहीं हो सकता। क्योंकि बाकी पूरा वर्ष तो तुम्हारा और ही ढंग का होता है। न उसमें रंग होता है, न गुलाल होती है। तुम पूरे वर्ष तो मुर्दे की तरह जीते हो और एक दिन अचानक नाचने को खड़े हो जाते हो! तुम्हारे नाच में बेतुकापन होता है। तुम्हारे नाच में जीवंतता नहीं होती। जैसे लंगड़े—लूले नाच रहे हों। बस वैसा तुम्हारा नाच होता है। या जिनको पक्षाघात लग गया है, वे अपनी— अपनी बैसाखी लेकर नाच रहे हैं, ऐसा तुम्हारा नाच होता है। तुम्हारा नाच जब मैं देखता हूं होली इत्यादि के दिन, तो मुझे शंकर जी की बरात याद आती है। तुम्हें नाच भूल ही गया है। तुम्हें उत्सव का अर्थ ही नहीं मालूम है। इसलिए तुम्हारा उत्सव का दिन गाली—गलौज का हो जाता है।

जरा देखो, तुम्हारे गैर—उत्सव के दिन औपचारिकता के दिन होते हैं, शिष्टाचार—सभ्यता के दिन होते हैं। और तुम्हारे उत्सव का दिन गाली—गलौज का दिन हो जाता है! यह गाली—गलौज तुम भीतर लिए रहते होओगे, नहीं तो यह निकल कैसे पड़ती है? यह होली के दिन अचानक तुम गाली—गलौज क्यों बकने लगते हो? और रंग फेंकना तो ठीक है, लेकिन तुम नालियों की कीचड़ भी फेंकने लगते हो। तुम कोलतार से भी लोगों के चेहरे पोतने लगते हो। तुम्हारे भीतर बड़ा नर्क है। तुम उत्सव में भी नर्क को ले आते हो। और तुम्हारा उत्सव जल्दी ही गाली—गलौज में बदल जाता है। देर नहीं लगती! तुम्हारी असलियत प्रकट हो जाती है। तुम्हारा शिष्टाचार, तुम्हारी औपचारिकताएं सब थोथी हैं। ऊपर—ऊपर हैं। गाली ज्यादा असली मालूम होती है। क्योंकि जैसे ही तुम्हें मौका मिलता है, जैसे ही तुम्हें सुविधा मिलती है, तुम्हारे भीतर से गाली निकल आती है। काटे निकलते हैं जब तुम्हें सुविधा मिलती है। वैसे तुम बड़े भले मालूम पड़ते हो। वह भलापन तुम्हारा पुलिस के डर से है। वह भलापन तुम्हारा स्वर्ग—मोक्ष—नर्क इत्यादि के भय और लोभ से है। तुम्हारा परमात्मा भी एक बड़े पुलिसवाले से ज्यादा और कुछ भी नहीं है तुम्हारी आंखों में। वह तुम्हें डरा रहा है, डंडा लिए खड़ा है, कि सताऊंगा। लेकिन फिर भी इन सभी रुग्ण समाजों ने एकाध दिन छोड़ रखा है, क्योंकि नहीं तो आदमी पागल हो जाएगा। निकास के लिए ये दिन छोड़े गये हैं। नहीं तो गंदगी इतनी इकट्ठी हो जाएगी कि आदमी बर्दाश्त न कर सकेगा। और एक सीमा आ जाएगी जहां गंदगी अपने ही से बहने लगेगी। एक सीमा है, उसके बाद मैं ऊपर से बहने लगेगी। ये निकास के दिन हैं। ये असली उत्सव नहीं है। रंग वगैरह फेंकना ऊपर है, भीतर हिंसा है। तुमने देखा जब रंग एक—दूसरे पर लोग चुपड़ते हैं? तो उसमें कोमलता नहीं होती, न हार्दिकता होती, न प्रेम होता। एक तरह की दुष्टता होती है। तुम जाकर देख सकते हो! जैसे दूसरे को सताने की इच्छा है, रंग तो बहाना है। और रंग ऐसा पोत देना है कि बच्चू को याद रहे! दो—चार दिन छुड़ा—छुड़ा कर मर जाएं तो न छुटे! तुम्हारे भीतर कुछ गंदा, कुत्सित भरा हुआ है।

मेरी दृष्टि में जीवन पूरा उत्सव होना चाहिए। तो फिर होली इत्यादि की जरूरत न रहेगी। दीवाली एक दिन क्या? साल भर दिवाला, एक दिन दिवाली, यह कोई ढंग है जीने का? साल भर अंधेरा, एकाध दिन जला लिए दिये! साल भर मुहर्रम, एकाध दिन मना लिया जश्न; पहन लिये नये कपड़े चले मस्जिद की तरफ! मगर तुम्हारी शकल मुहर्रम हो गयी है। तुम लाख उपाय करो, तुम्हारी शकल पर मुहर्रम छा गया है। तुम्हारे सब उत्सव इत्यादि थोथे मालूम पड़ते हैं, उपर से मालूम पड़ते हैं। उत्सव का आधार नहीं है, बुनियाद नहीं है। उत्सवपूर्ण जीवन होना चाहिए। इसलिए मेरे इस आश्रम में न तो कभी दिवाली है, न कभी होली है। यहां सदा होली है, सदा दीवाली है। यहां चल ही रहा है, यहां नृत्य शाश्वत है। यहां जो भी नाचना चाहे उसे निमंत्रण है। और ख्याल रखना, एकाध दिन कोई नाच ही नहीं सकता। नाचता ही रहे, नाचता ही रहे, तो उसे नाचने का प्रसाद होता है, उसके नाचने में गुणवत्ता होती है, उसके नाचने में अपूर्व भाव होता है। और उसके नाचने में कोमलता, सरलता। उसके नाच में हिंसा नहीं होती। नहीं तो तांड़व नृत्य बन जाता है जल्दी ही नाच। तुम्हारे सब उत्सव तांड़व नृत्य हो जाते हैं। जल्दी ही गाली—गलौज पर नौबत उतर आती है। तुम्हारे सब उत्सवों में हिंदू—मुस्लिम दंगे हो जाते हैं।

यह बड़ा आश्चर्य की बात है!

उत्सव के दिन दंगा क्यों? मारपीट क्यों? एक—दूसरे को सताने की इच्छा क्यों? गाली— गलौज क्यों? गंदे— अश्लील नाच क्यों? ‘कबीर’ के नाम से गालिया दी जा रही हैं—हद्द हो गयी! गालिया बकते हो, उसको कहते हो— ‘कबीर’! कबीर को तो बख्‍शो !

पीछे कारण है।

तुम्हारा जीवन दमित जीवन है। एकाध दिन के लिए तुम्हें छुट्टी मिलती है, जैसे साल भर को कारागृह में बंद रहते हो, एकाध दिन के लिए छुट्टी मिलती है, सड्कों पर आकर शोरगुल मचा कर फिर अपने कारागृहों में वापिस लौट जाते हो। अब जो आदमी कभी—कभी सड़क पर आता है साल में एकाध बार, अपने काल—कोठरी से छुटता है, वह उपद्रव तो करेगा ही! उसके लिए स्वतंत्रता उच्छृंखलता बन जाएगी। लेकिन जो आदमी सदा ही रास्तों पर है, खुले आकाश के नीचे वह उपद्रव नहीं करेगा।

मैं चाहता हूं, तुम्हारा पूरा जीवन उत्सव की गंध से भरे, तुम्हारे पूरे जीवन पर उत्सव का रंग हो, इसलिए तुम्हें रंग रहा हूं। यह मेरा गैरिक रंग तुम्हारे जीवन को उत्सव में रंगने के लिए प्रयास है। यह गैरिक रंग सुबह ऊगते सूरज का रंग है। यह गैरिक रंग खिले हुए फूलों का रंग है। यह गैरिक रंग अग्नि का रंग है। जिससे गुजर कर कचरा जल जाता है और सोना कुंदन बनता है। यह गैरिक रंग रक्त का रंग है—जीवन का, उल्लास का; नृत्य का, नाच का। इस रंग में बड़ी कहानी है। इस रंग के बड़े अर्थ है। तो राधा! जिस रंग में मैं तुम्हें रंग रहा हूं उसमें पूरी तरह रंग जाओ। तो होली भी हो गयी, दीवाली भी हो गयी। और यही पृथ्वी तुम्हारे लिए स्वर्ग बन जाएगी।