Friday, September 12, 2014

आज पार्क में

कलम से____

आज पार्क में
बैंच पर पहले से 
बैठी हुई मिली मेरी 
जिन्दगी,
कहने लगी
आओ बैठो
सुस्ता लो
थके थके से लगते हो
अभी चले ही
कितना हो
दूर बहुत दूर
चलना है
साथ मेरा जो देना है !

बैठते हुए,
मैंने पूछा तुम कैसी हो
कहने लगी
अभी तो मैं
जवान हूँ
तुझे मेरे लिए
रहना है !!

ला अपना दाहिना
हाथ आगे बढ़ा
देखूँ क्या है लिखा हुआ
हाथ मैंने अपना उसके हवाले किया
बुझे मन से कहा
लुनाई है अब कहाँ
इन हाथों में
खुरखुरे होने लगे हैं
रेखाएं भी बदलीं बदलीं सीं हैं
देख बता
तुझे क्या कहना है !!

हथेली फैला वह पढ़ने लगी
अभी तेरी जिन्दगी बहुत है वाकी पड़ी
मस्त रहेगा
खाएगा पीएगा
चिंता की कोई बात नहीं है
लंबा तुझे चलना है
चेहरे को मोल न दे
झुर्रियां आएंगीं
तेरा बिगाड़ कुछ न पाएंगी
शर्त एक है
तुझे हर रोज़
आना होगा
यहाँ बस यूँ ही मुझसे मिलना होगा !!!

हाथ की रेखाओं में
क्या रखा है
छोड़ अभी तुझे मेरे लिए लंबे चलना है !!!!

कोने के आखँ से
एक बूँद खारी टपक गई
वादा कुछ कर गई
जीने का
मरने की अभी कोई बात नहीं !!!!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

No comments:

Post a Comment