Wednesday, September 10, 2014

जब हवेली ही न रही ....

कलम से____

जब हवेली ही न रही
गौरैया भी उड़ गई फुर्र से
जैसे छोड़ गए सब ताले बंद कर
लौट कर न आने का वादा कर !!

बसेरा है अब यहाँ
एक नाग नागिन के जोड़े का
भूले भटके आ जाता है
एक मोर बरसात में
नाचता है मन भर
रो पड़ता है पैर देख कर
पास ही रहती है
मोरनी देती है दिलासा
चलो हम भी चलें वहां
दाना पानी मिले जहां !!

सामने से बैठ
हम भी नज़ारा देखते हैं
फटी फटी आँखों से
कर ही क्या सकते हैं
हालात इतने बिगड़े हैं
इन्सान आखिर वहीं जाएगा
दाना पानी जहां वो पाएगा !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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