Monday, March 30, 2015

कभी देने की कभी लेने की बात बनते बनते क्यों बिगड़ जाती है?

कलम से____

बात जब जब
मैं करूँ 
व्यापार की

कुछ लेने की
कुछ देने की
कुछ खरीदने की
कुछ बेचने की
.........
..............
.................
हर बार
बार-बार
यह दिल की
बात क्यों 
बन जाती है?

कभी देने की
कभी लेने की
बात बनते बनते
क्यों बिगड़ जाती है?

प्यार, प्रेम, love
दिल-बिल, प्यार-व्यार
हो गया है ये सब व्यापार।





©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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ज़ख्म से टीस उठे तो तुमको बुलाऊँ कैसे।

ज़ख्म से टीस उठे तो तुमको बुलाऊँ कैसे।




कलम से____

छलकते हैं पैमाने होठों से लगाऊँ कैसे
ऐसे में अपनी यह गज़ल सुनाऊँ कैसे।


दर्द के साये में ज़िदंगी मनहूस सी लगती है
ज़ख्म से टीस उठे तो तुमको बुलाऊँ कैसे।

पढ़ सको तो पढ़लो ज़ज़्बात इन आँखों में
तेरे सामने मैं आँसू बहाऊँ तो बहाऊँ कैसे।

इश्क हो जो तुमसे गया है उसे छिपाऊँ कैसे
चले दूर गये हो तुम ये तुमको जताऊँ कैसे।

छलकते दर्द हैं इस दिल से छिपाऊँ कैसे
ये खामोश गज़ल सुनाऊँ तो सुनाऊँ कैसे।



©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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चैन की नींद सो रहा है वहाँ कोई।

चैन की नींद सो रहा है वहाँ कोई।


कलम से ____

जान हो तुम मेरी कह गया कोई
मर गया तन्हा इंतजार में कोई।


बयां कर न पाऊँगा उस सैर की बानी
मिले न चैन बहार में अब कोई।

आ गया हूँ छोड़कर अपनी दुनियां
पिला दे जाम साकिया अब कोई।

जिक्र उस रात का क्या करूँ मैं
सिर रखके तेरी गोद में सो गया कोई।

भूल न जाना शहीदों को
चैन की नींद सो रहा है वहाँ कोई।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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Sunday, March 29, 2015

अब 'आप' हैं कहाँ?




कलम से____

सोचता हूँ
अपने आप
और
अपने ख्वाबों को सजाकर
उनकी कीमत का
आंकलन कर लूँ
दुनियां की
हाट में
सीख जाऊँ
बोली लगवाना

सब चीज़
बिकतीं हैं यहाँ
खरीदार भी मिलते हैं यहाँ
इस्तेमाल होने लायक हो बस
इस्तेमाल की हुई हो वो भी
ज़मीर राम रहीम
नाम लेने भर
दाम देने भर
की देर है, बस अब यहाँ.....

अब 'आप' हैं कहाँ?

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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तस्वीर की मांग में !



कलम से____

मेरी एक तस्वीर
बहुत पहले जो तुमने 
कैनवस पर उतारी थी

मेरी जिंदगी में जब
दाखिल तुम हुये थे
आड़ी-तिरछी चंद लकीरों
को सलीके से लगा कर
पूरी करी थी,
मुझे आज अधूरी सी लगी
रुक न पाई मैं,
ब्रश उठ गया अचानक
बस एक रंग की
कमी सी लगी
रंग वो मैंने
भर दिए हैं,
तस्वीर की मांग में !

अब बस इंतजार है
तुम्हारे आने भर का
हर आहट पर लगता है
तुम आ गये.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015http://spsinghamaur.blogspot.in/

Friday, March 27, 2015

सुदंर पल को अंतस में कर लेते हम भी कुछ जी लेते....



कलम से____

सुबह
हर दिन
इतनी हसीन
होती है
फुर्सत
ही बस
हमें नहीं
मिलती है

काश हम
समय रहते
जग जाते

इस जग
को
सुदंर पल को
अंतस में
कर लेते
हम भी
कुछ जी लेते....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

जा पहुंचेंगे श्मशान.....



कलम से____

अबके कहां ऐसे खेत खलिहान
सिगरा जग हुआ है सुनसान
किसान हो गया है परेशान
हुआ न गेहूँ और न धान
मिट्टी में मिली शान
रीती आँखों से
देखता है रहता अब आसमान
न जाने अभी कितने और
जा पहुंचेंगे श्मशान.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Thursday, March 26, 2015

आस का इक दीपक जला तो दीजिए।


कलम से____

उस पार हो तुम, इस पार खड़े है हम
फासलों की दीवार गिरा तो दीजिये।

नश्तर-सी चुभन देती है ये खामोशी तुम्हारी
मुस्कुराकर ज़रा लबों को हिला तो दीजिए।

प्यासे खड़े हैं मुद्दत से दर पे आपके
इक जाम हमें होठों से पिला तो दीजिए।

मुरझा गया है चमन हमारी हसरतों का
बहार बनके आइये इस गुल को खिला तो दीजिए।

उल्फ़त न सही नफ़रत कबूल है मगर
आस का इक दीपक जला तो दीजिए।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Monday, March 23, 2015

कयों लिखा था




©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस दव्दं को मेरे समझा नहीं




कलम से____

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस दव्दं को मेरे समझा नहीं
शूल चुभके करते हैं क्या, तुमने यह कभी जाना नहीं !!

बरबस ही उस निशा की याद हो आई
कोशिशों के बावजूद सो पाया मैं नहीं !
जगा पाया न तुम्हें प्रयत्न सौ बार कर
नींद प्यारी सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

तन बदन मेरा दर्द से कराहता रहा,
उठ हृदय से कण्ठ फिर घुटता रहा
निकट रह कर भी, तुम दूर बहुत दूर रहीं
नींद गहरी सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

आश्वस्त बहुत मैं था, जगा लूँगा तुम्हें
घाव अंत:स्थल के दिखा दूगाँ तुम्हें
थकी मांदी सी पड़ी, स्वप्न में खोई
बेहाल सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

दूर तुम थीं नहीं, आती जाती सांस पर
जीवन की घुटन महसूस, मैं करता रहा
एक ज़िद्दी लट को, भाल से तुम्हारे मैं
हटाता रहा, पर सोती रहीं तुम रात भर !!

भाल से लटें हटाते रात पूरी कट गई
यामिनी न जाने आखिर कहां खो गई
चूमने लगीं पलकें भोर की पहली किरन
नींद अँखियों से तुम्हारी जाकर तब गई !!

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस दव्दं को मेरे समझा नहीं
शूल चुभके करते है क्या, तुमने यह कभी जाना नहीं !!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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इक मुलाकात ज़रूरी है, ज़रूरी है मेरे लिए



कलम से_____

इक मुलाक़ात ज़रूरी है, ज़रूरी मेरे लिए
भरी बरसात में मुलाकात है, जरूरी मेरे लिए।

नफरत से न यूँ देख, जरूरी है तू मेरे लिए
रुखसारों पर नज़र आता है, प्यार मेरे लिए ।

जाऊँ तो जाऊँ कहाँ मैं, ग़म अपने लिए
जख़्म जो खाये हैं दिल पर मैंने तेरे लिए।

हार फूलों का पिरो लाये हैं दुश्मन मेरे लिए
तलवार लिये सब मिलके खड़े हैं, मेरे लिए।

कतरा के निकल न जाना तू राहें मेरी
इक मुलाकात ज़रूरी है, ज़रूरी है मेरे लिए!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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कारवां गुज़र गया........



कलम से____

वक्त ने किया क्या हसीं सितम 
हम रहे न हम तुम रहे न तुम
किस रफ्तार से 
गुजरता रहा है
यह वक्त
लगता है कल की बात है जैसे
उमराव को अलविदा कह आए
गुज़रे ज़माने को पीछे छोड़ आए
हीरामन ने किसी तीजन
को अपनी बैल गाड़ी में
न बिठाने की
तीसरी कसम खाई
कल ही तो पारो देवा को छोड़
कुलीन ब्राम्हण के घर ब्याही
गंगा ने धन्नो की इज्जत खातिर
बंदूक उठाई
रोजी के इश्क में पड़कर
राजू ने जनसेवा अपनाई......

और भी न जाने कितने हसीन पल
ब्लैक एण्ड व्हाइट से रंगीन हो गए
कारवां गुज़र गया
हम खड़े खड़े गुबार देखते रहे.....

खूबसूरत हवेलियों की वो हसीन शाम
कब्बालियां मुज़रों की शाम पाकीज़ा के नाम
सब कुछ एक स्वप्न सा बनके रह गया
मैं लुटा लुटा सा देखता ही रह गया
कारवां गुज़र गया
हम खड़े खड़े गुबार देखते रहे

जमी सी रह गई है आइने पर धूल
हटाई जब अक्स धुधंला सा
अपना ही देखते रहे
कारवां गुज़र गया
हम खड़े खड़े गुबार देखते रहे

नबाब साहब की कैडेलेक दौड़ती रही
हम सड़क के किनारे खड़े खड़े
गुबार देखते रहे
कारवां गुज़र गया........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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इक शाम को नाम अपना दे जाओ..



कलम से____

शाम सिन्दूरी मेरा साथ निभाओ
रीते पलों को जीवन्त फिर कर जाओ
मेरे पैमाने में अक्स बन उतर आओ
दिन यूँही तमाम हुये जाते हैं
इक शाम को नाम अपना दे जाओ...

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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मौसम बेईमान हो गया !


कलम से____

मौसम बेईमान हो गया !

अबके मौसम बेईमान हो गया
बादल बे मौसम ही बरस गया
सर्द रातों को ठिठुरता छोड़ गया
फूलों को खिलने से मना कर गया

मौसम बेईमान हो गया !

किसान के पेट पर लात मार गया
फसल पकी तैयार थी नष्ट कर गया
बिटिया के मण्डप को भिगो गया
अखिंयन में आँसू अपार दे गया

मौसम बेईमान हो गया !

त्योहारों के रंग फीके कर गया
होली के रंग बेरंग कर गया
टेसू न खिलें कुछ ऐसा कर गया
गुजिया की मिठास कम कर गया

मौसम बेईमान हो गया !

सब कुछ उल्टा पुल्टा कर गया
बयार बसंती मन पुलकित न करे
जाड़ा चैत्र में सताये रजाई छोड़ी न जाये
ज्योतिष व्याकरण को गलत कर गया

मौसम बेईमान हो गया !

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Tuesday, March 17, 2015

कन्हाई बिन सब सूनो सौ लागे है







असली रंग तो अब आयो है
मौसम ने सारौ खेल बिगाड़ो है
गलियंन में अधिंयारो छायो है
कन्हाई बिन सब सूनो सौ लागे है
©सुरेंद्रपालसिंह 2015

यह ज़मी तेरी रहने दे आसमान मेरा





कलम से____

ज़मीं को छोड़ दिया उनकी खातिर
फलक पर लिया है दम जाकर
करना है कर ले तू अब मरज़ी अपनी

यह ज़मी तेरी रहने दे आसमान मेरा

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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चिलमन के उस ओर से....






कलम से____

ए जिन्दगी चल
जल्दी चल
है कोई जो 
इंतजार करता है
हर शाम
चिलमन के उस ओर से....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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तू मेरे लिए अहम है.....






कलम से____

दूर जा,
जाकर लौट आते हो
एक आवाज़ पर
क्या समझूँ प्यार है तेरा
या
मेरी दुआओं का असर है
जो भी है
ज़िन्दगी
तू मेरे लिए अहम है.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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क्यों अब तूफान उठा करते हैं, जो होना था, हो गया !!!





कलम से___

क्यों अब तूफान उठा करते हैं
जो होना था, हो गया !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015


Sunday, March 15, 2015

टूटते कंगूरों में





कलम से____

टूटते कंगूरों में
महलों की दीवारों में
किले की अटारी में
छिपी हैं-
कहानियाँ दर्दनाक
मज़बूर हसरतों की.....

सूखे कछारों में
टूटे कगारों में
छिपी हैं-
उदंड नदी की भयाहवता
उसका हाहाकरी ठहाका....

बच्चों, बूढों का
असहाय चीखना
हाथ-पैर मारना
डूबते लोगां का आर्तनाद....

सूखी रेत पर
लहरों के निशानों पर
बहे चूके गावों की संस्कृति
उनका इतिहास....

विनाश लीला के पीछे
पसरी हुई स्तब्धता
स्मरण कराती हुई
बीते हुए कल की
और
एकांत क्षणों में
आती है दूर से
बिलखती हुई
किसी अबोध की आवाज़....

हाय ! हाय ! कल कल.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Saturday, March 14, 2015

We are together in this journey



हा हा हा !!!




कलम से____

नजरों का भ्रम हो तो
अशोक पर भी
पलाश खिलने लगता है

दोस्तों बच कर रहना
इस रोग से
जो बड़ती उम्र में
अक्सर लोगां को
हो ही जाता है....

हा हा हा !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Thursday, March 12, 2015

समर्पण कर दिया निढ़ाल होकर






कलम से ____

भ्रमर मड़ंराता रहा
अधर रसपान को
बचा न पाई मैं
अपने आपको
समर्पण कर दिया
निढ़ाल होकर
अपना जान कर......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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 — with Puneet Chowdhary.


सरकार पर से भरोसा शनैः शनैः उठ रहा है





बच्चों को इस हालत में देख कर तरस आता है। बचपन से ही इन्हें गधे की तरह बोझा लादना पड़ता है।

पर यह सब किसी सासंद अथवा देश के शिक्षामंत्री को नहीं दिखाई पड़ता है। हम भारत को अमेरिका तो बनाना चाहते हैं पर यह छोटी छोटी समस्याओं का कोई मान्य हल निकालने में फेल हो चुके हैं।

हे शिव।हे राम। हे कृष्ण। कुछ अब कुछ तुम ही करो .......सरकार पर से भरोसा शनैः शनैः उठ रहा है।


गई बाॅल बास्केट में....




गई बाॅल बास्केट में....
 — 




कुहू की नये स्टाइल की चोटी.....





कुहू की नये स्टाइल की चोटी..... 


उलझन में उलझ के रह जाता हूँ,



कलम से____

उलझन में उलझ के रह जाता हूँ,
जब जब ऊलझनें,
सुलझाने की कोशिश करता हूँ, मैं !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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ड़र लगता है ज़माने से



कलम से____

चलता रहता हूँ
चूँकि चलना आदत है
साये में रहता हूँ
फिर भी चश्मा धूप का लगाए रहता हूँ
बरामदे में रहता हूँ
भीग न जाऊँ कहीं
इस ड़र से छतरी लगाए रहता हूँ
ड़र लगता है ज़माने से
इसलिए मुहँ छिपाए रहता हूँ.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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सोमवार एक और नया

Saturday, March 7, 2015

तेरी याद आज फिर आ गई.....




कलम से____

तू फिर आज
आकर रुला गई
तेरी याद 
आज फिर आ गई......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

प्राण मेरे हैं तुझमें समाए हुए....





कलम से____

सांसों का आना जाना चलता रहा
एक बस तुम न आए
अरमानों की दुनियाँ सजती रही
बस एक तुम न आए
तमन्ना यही थी दर्शन प्रभु दोगे अवश्य
बस एक तुम न आए
मानूँगा नहीं ऐसे मैं तुमको आना ही होगा
प्राण मेरे हैं तुझमें समाए हुए....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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कश्मकश की कहानी रंग ही हैं जो बयां करते हैं.......


कलम से____

प्रकृति
के यही रंग
मन मोह लेते हैं
कभी चितेरे का
कभी चित्रकार का
यही रंग
कुछ पल और जी लें
कह जाते हैं
कलम से____

प्रकृति
के यही रंग
मन मोह लेते हैं
कभी चितेरे का
कभी चित्रकार का
यही रंग
कुछ पल और जी लें
कह जाते हैं
जीने-मरने
कश्मकश की कहानी
रंग ही हैं जो
बयां करते हैं.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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रंगों के महापर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ












हो ऐसा बसंत का अंतिम चरण।




कलम से_ ___

सूर्य चले जब से उत्तरायण
हौले हौले बदले मौसम
ऋतु बसंत करे पदार्पण
कहलाये मधुमास का प्रथम चरण।

ऐसा है इसका बसंती व्याकरण
पतझड़ का लगता है मौसम
खिलेंगे फूल पात पर हर छण
ऐसा होगा बसंत का दूजा चरण।

सेमल पलाश खूब खिलेंगे
अमराई बौराएगी साथ साथ
रंग प्रकृति के निखरे निखरे होंगे
फाल्गुन में दिल महके महके होंगे
ऐसा होगा बसंत का तीजा चरण।

होली के रंगों का है इंतजार
होगा बृज में रसिया जोरदार
राधे संग कन्हाई खेलेंगे फाग
रंग खेलें जिनके हों बड़े भाग
हो ऐसा बसंत का अंतिम चरण।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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कैसे हो किब्ला? दिल इतने में बहल जाता है......




कलम से____

कितने सुखी लगते हैं
वो लोग, जो ऐसे घरों में रहते हैं
जिन्दगी उनको रास आती होगी
हमको नहीं भाएगी
हम नहीं रह पाएगें
एक दिन भी
इतने वीराने में
ग़म बहुत सताएगें
न जाने कितने रिश्ते
जिनको हम भूले बैठे हैं
फिर याद आएगें......

हमारे लिए
हमारा ही वतन
अच्छा है,
जहाँ इन्सान को इन्सान
दिखाई देता है
माना कि भीड़भाड़
कुछ ज़ियादा है
पर जैसा भी है
बहुत अच्छा है
अकेलापन यहाँ भी
खलता है
पर कोई न कोई
आके हाल पूछ लेता है
कैसे हो किब्ला?
दिल इतने में बहल जाता है......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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अब सो भी जाने दो...



हमें चैन से रहने दो



कलम से____

झोंपड़ी
के बाहर और भीतर
रात भर 
बरसात होती रही

खाट कभी इधर
कभी ऊधर खींचीं
रजाई बिस्तर
सब हैं भीगे भीगे

फाल्गुन में यह कैसा
मौसम हो चला
ओलों से ड़र
लग रहा है
फसल है तैयार खड़ी
होगा क्या नज़र तूने
अगर टेड़ी करी

काम सब बिगड़ जाएंगे
रास्ते पर जो आए थे
खेल सब खत्म हो जाएंगे

कृपादृष्टि बनाए रहो
बस तुम और न बरसो
हमें चैन से रहने दो

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Good morning mitron




आज सुबह से बादलों की आवाजाही हो रही है
बिन्डो एसी पर बूंदो की थपथपाहट से आँख है खुली
कल दिन तो खराब तो किया अब होली की तैयारी है
टेसू से बने रंग धरे रह जाएंगे पिचकारी में बच्चे भी रंग न भर पाएगें
अबके होली लगता है पहने थे जो स्वेटर उतर न पाएगें
बच के रहना यारो हुई तबीयत खराब इंजेक्शन भी नहीं मिल पाएगें
नसीब बालों के दिन भी अब अच्छे नहीं आएंगे.....

Good morning mitron.

सुबह सुबह से


कलम से____

सुबह सुबह से
सुन रहा हूँ
देख भी रहा हूँ
आज बजट में क्या होगा
कोई कह रहा है
यह होगा
कोई कह रहा है
वो होगा

एक पीने वाला
हरिवंशराय बच्चन की
मधुशाला को पढ़ने वाला
जीने वाला पीने वाला
है परेशान
कि शाम का प्याला
उसका सस्ता होगा
या महँगा होगा

देश आगे होगा
या पीछे होगा

इधर से निकालो
और उधर ड़ालो
बस होगा
और
कुछ नहीं होगा.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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