Monday, March 23, 2015

कारवां गुज़र गया........



कलम से____

वक्त ने किया क्या हसीं सितम 
हम रहे न हम तुम रहे न तुम
किस रफ्तार से 
गुजरता रहा है
यह वक्त
लगता है कल की बात है जैसे
उमराव को अलविदा कह आए
गुज़रे ज़माने को पीछे छोड़ आए
हीरामन ने किसी तीजन
को अपनी बैल गाड़ी में
न बिठाने की
तीसरी कसम खाई
कल ही तो पारो देवा को छोड़
कुलीन ब्राम्हण के घर ब्याही
गंगा ने धन्नो की इज्जत खातिर
बंदूक उठाई
रोजी के इश्क में पड़कर
राजू ने जनसेवा अपनाई......

और भी न जाने कितने हसीन पल
ब्लैक एण्ड व्हाइट से रंगीन हो गए
कारवां गुज़र गया
हम खड़े खड़े गुबार देखते रहे.....

खूबसूरत हवेलियों की वो हसीन शाम
कब्बालियां मुज़रों की शाम पाकीज़ा के नाम
सब कुछ एक स्वप्न सा बनके रह गया
मैं लुटा लुटा सा देखता ही रह गया
कारवां गुज़र गया
हम खड़े खड़े गुबार देखते रहे

जमी सी रह गई है आइने पर धूल
हटाई जब अक्स धुधंला सा
अपना ही देखते रहे
कारवां गुज़र गया
हम खड़े खड़े गुबार देखते रहे

नबाब साहब की कैडेलेक दौड़ती रही
हम सड़क के किनारे खड़े खड़े
गुबार देखते रहे
कारवां गुज़र गया........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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