Saturday, March 7, 2015

कैसे हो किब्ला? दिल इतने में बहल जाता है......




कलम से____

कितने सुखी लगते हैं
वो लोग, जो ऐसे घरों में रहते हैं
जिन्दगी उनको रास आती होगी
हमको नहीं भाएगी
हम नहीं रह पाएगें
एक दिन भी
इतने वीराने में
ग़म बहुत सताएगें
न जाने कितने रिश्ते
जिनको हम भूले बैठे हैं
फिर याद आएगें......

हमारे लिए
हमारा ही वतन
अच्छा है,
जहाँ इन्सान को इन्सान
दिखाई देता है
माना कि भीड़भाड़
कुछ ज़ियादा है
पर जैसा भी है
बहुत अच्छा है
अकेलापन यहाँ भी
खलता है
पर कोई न कोई
आके हाल पूछ लेता है
कैसे हो किब्ला?
दिल इतने में बहल जाता है......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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