Wednesday, July 22, 2015

प्यास लगी थी गज़ब की मगर पानी मे ज़हर था



कलम से_____

यूँ समँझ लो....

प्यास लगी थी गज़ब की
मगर पानी मे ज़हर था
देदी जो होती थोड़ी सी शराब
पल दो पल के ही लिये
जिंदगी तो जी लेते जनाब....

पीते तो मर जाते
और ना पीते तो भी मर जाते
ग़म तो नहीं मनाता ये जमाना
बस आता कभी कभी रुलाना

बस यही दो एक मसले,
जिंदगी भर ना हल हुए !!
ना नींद पूरी हुई,
ना ख्वाब मुकम्मल हुए !!

बस यूँही समझ लो
जिदंगी हम जीते रहे !!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

आगे सफर था और पीछे हम-सफर था....



आगे सफर था और पीछे हम-सफर था....
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हम-सफर छूट जाता...
मंजिल की हसरत थी और उनसे मोहब्बत भी थी..
ए दिल तू ही बता...
उस वक्त मैं कहाँ जाता...
मुद्दत का सफर भी था और बरसों का हमसफर भी था
रुकते तो बिछड़ जाते और चलते तो बिखर जाते....
ए दिल तू ही बता क्या कर जाते
पाप जिससे जीवन के कट जाते !!

का से कहूँ मैं अपने मन की बात




कलम से ____

का से कहूँ मैं अपने मन की बात
कोई नहीं है पास बीती जा रही है रात
जन्मजन्मातंर का है तेरा मेरा साथ
तूने भी प्रभु सुनी न मेरी कोई बात
दर्शन देकर कर दो मुझे निहाल
बंदा तेरे दर पे है पड़ा हो निढ़ाल

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वक़्त ने कहा.....

वक़्त ने कहा.....
काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....
काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ, आराम छोड़कर।।

"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है
और
"किस्मत" महलों में राज करती है!!
"शिकायतें तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हूँ कि, जो भी दिया तूने,
वो भी बहुतों को नसीब नहीं होता"...

Saturday, July 18, 2015

दफ्न हो गये अहसासों को जगाया न करो



दफ्न हो गये अहसासों को जगाया न करो
जब तुम्हें याद आयें तो हमें बुलाया न करो।

Wednesday, July 15, 2015

दास कबीर जतन करि ओढी ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥




झीनी झीनी बीनी चदरिया
झीनी झीनी बीनी चदरिया॥

काहे कै ताना काहे कै भरनी 
कौन तार से बीनी चदरिया॥

इडा पिङ्गला ताना भरनी
सुखमन तार से बीनी चदरिया॥

आठ कँवल दल चरखा डोलै
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया॥

साँ को सियत मास दस लागे
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया॥

सो चादर सुर नर मुनि ओढी
ओढि कै मैली कीनी चदरिया॥

दास कबीर जतन करि ओढी
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥

इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो राज़ क्या है जो छिपा रहे हो





इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो
राज़ क्या है जो छिपा रहे हो
ज़ाहिर कर दो तो हम जानें 
मन ही मन गज़ल जो गुनगुना रहे हो...

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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एक नीम अपने आगंन हो होती है इच्छा सबकी




कलम से _ _ _ _

एक नीम अपने आगंन हो
होती है इच्छा सबकी
रह जाती है कुछ की आधीअधूरी
कुछ की होती पूरी

कलुआ जाटव का आंगन है खाली
एक पेड़ नीम का हो इच्छा है भारी

विरवा होगा तो चिडियां आएंगीं,
आशाएँ जीवन की पूरी हो जाएंगी

नीम तले खाट बिछा अच्छा है लगता
नीदं आए गहरी और मजा खूब है आता

उधार किस किस का कब है देना
चिंता इसकी बिल्कुल नहीं सताती

नीम का एक विरवा जो मैं लगाऊँगा,
फल उसका पीढ़ी दर पीढ़ी पाऊँगा

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Sunday, July 12, 2015

कुहू के एहसास:-





कुहू के एहसास:-

इक लड़की थी भीगी भीगी सी
मन में ड़र लिए हुई सी
कई दिनों की भूखी सी
पालीथीन से बचती बचाती सी
आई इक दुकान पर
मांगने कुछ खाने को
पैसे थे पास नहीं
दुकानदार को मन भा गई
चट से छोले-भटूरे दिये उसे
खाके जल्दी जल्दी भागी
छम छम करती रही बरसात में
भीगी भागी सी वो इक लड़की
रहती है मेरे एहसास में


बस अभी खींच कैमरे में कैद कर लिया इस भीगे पल को। खिड़की के कोने पर आके बैठा था सुस्ताने को।





कलम से____

कुछ सुस्ता लूँ
तो चलूँ
तेरे साथ
इक बार
चलूँ देखने
आसमान
कितना है ऊँचा
आज नीचे ही
मिल जायेगा
बदरा जो आये हैं
मिलने हैं हम से.....

(बस अभी खींच कैमरे में कैद कर लिया इस भीगे पल को। खिड़की के कोने पर आके बैठा था सुस्ताने को।)

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/




जी भर के बरस भी लो.........


कुछ न बोलूँगा आज
जितना भी कहना कह ड़ालो
बहुत बरसाया नीर आँखों से
जितना बरसना है इन बरसातों में
जी भर के बरस भी लो.........
 
— with Puneet Chowdhary.




कहाँ खो गये वो मय आँखों से पिलाने वाले



कलम से____

मिलते हैं लोग दाग दिल के छिपाने वाले
लोग मिलते हैं कहाँ अब पुराने वाले

तू भी तो मिलता है मतलब से मिलता है
लग गये हैं तुझे रोग सभी वो जमाने वाले

मिन्नतें बेकार गईं दुआयें भी बेअसर हुईं
लौट के आते नहीं है छोड़के जाने वाले

पार करता नहीं आग का दरिया अब कोई
थे वो कोई और डूबके मरने वाले

अब तो सभी मिलते हैं दिल का दुखाने वाले
जाने किस राह गये वो जाने वाले

दर्द उनका जो करते हैं फुटपाथ पर बसर
क्या समझ पायेंगे महलों में रहने वाले

देखो पी रहा है वो अकेला बैठा मयखाने में
कहाँ खो गये वो मय आँखों से पिलाने वाले

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Puneet Chowdhary.

बरसोगे यहाँ या सौतन के जंहा.....

उमड घुमड करते आये तो हो
बरसोगे यहाँ या सौतन के जंहा.....

बस अभी
हमारे घर के ऊपर
आकाश में
घिर आये हैं, बदरा।



ड़गमगाती नइय्या है खिब्इया है खोया खोया।





कलम से____

बहुत सोचता हूँ स्वयं पर गर्व करूँ
पर कर नहीं पाता
बहुत सोचता हूँ कि देश पर गर्व करूँ
पर कर नहीं पाता
बहुत सोचता हूँ अपने नेताओं पर गर्व करूँ
कर नहीं पाता
विश्वास अब है बड़ा डगमगाता
कुछ भी करना चाहूँ
अब कर नहीं पाता
ड़गमगाती नइय्या है
खिब्इया है खोया खोया।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

उड़ उड़ के थक जाता हूँ




कलम से____

उड़ उड़ के थक जाता हूँ
आसमान के तारों को 
हाथ नहीं लगा पाता हूँ 
आकाश दूत को
साथ नहीं ला पाता हूँ
निराश हो बैठना फितरत है मेरी नहीं
सांस भर फिर गगन में उडान भरता हूँ
सोच कर अबके जाऊँगा
कुछ ऐसा कर जाऊँगा
नाज़ करेगी दुनियाँ
काम कुछ ऐसा कर पाऊँगा...

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

Thursday, July 2, 2015

Gorakhpur The Smart City


 Gorakhpur will soon become Smart City



Smart Cities in UP(India): Gorakhpur

गोरखपुर का भी नाम उस सूची में शामिल है जिसे Smart बनाया जायेगा।उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का एक प्रमुख शहर और कमिश्नरी हैडक्वाटर है। हमारे बीएन पांडेय जी तथा और भी तमाम मित्रगणों का निवास स्थान भी यहीं है।

अपने मनकापुर प्रवास के दौरान किसी न किसी काम से अक्सर ही यहाँ आना जाना लगा रहता था। मनकापुर से चलते समय जो गिलास-गिलसवा, बस्ती तक पहुँचते हुये गिलसुआ और फिरगोरखपुर पहुँचते ही गिलसवा हो जाता था। कहते हैं, भाषा और रहन सहन हर पांच कोस पर बदल जाता है।

कई मित्रों के बच्चों के शादी व्याह में शरीक होते रहे हैं। खाने पीने के बेहद शौकीन लोग हैं अपने गोरखपुर वाले। यहाँ के खाने पीने में अगर नानवैज न हो तो मजा नहीं। खाओ भी तो दिल खोल के और कुछ ऐसे कि अगले दिन सफाईकर्मी भी सफाई करने में शरमा जायें। पूर्वाचंल के कायस्थों का गढ़ भी है गोरखपुर। पढने लिखे और राजनीतिक परिपक्व। गुडांगर्दी में भी नामचीन लोग पाये जाते हैं यहाँ।रेलवे के ठेकेदारी और टेंडर भरने में जोर जबरदस्ती करना यहाँ आम बात है। कई बहुचर्चित चेहरे और परिवार मिल जाएंगे आपको इस धंधे में। राजपूत, भूमिहार और ब्राम्हणों के बीच पुश्तैनी द्वंद वर्षों से चला आ रहा है। अखबार पटे पडें रहते हैं इनके कारनामों से।

नेपाल के रास्ते में आने वाला महत्वपूर्ण स्थान है। स्वर्गीय वीर बहादुर सिंह मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार तथा केन्द्रीय संचार मंत्री का कार्य क्षेत्र भी रहा है। नया गोरखपुर बसा कर यहाँ वो मुम्बई की भांति चौपाटी की तरह इसे develop करना चाह रहे थे।

गोल घर मार्केट यहाँ का प्रसिद्ध मार्केट है। भीड़ भाड़ तो उतनी नहीं है पर फिर भी एक आधे इलाके में परेशान करती है। काफी फैलाव लिए हुये बसा है गोरखपुर। यहाँ के मच्छर ऐसे हैं कि आपको सोते में उठा ले जायें। तराई काफी इलाका है मच्छरों का प्रकोप तो रहेगा ही।

अब गोरखपुर भी स्मार्ट होने वाला है चलिए अच्छा है पूर्वांचल के लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति होगी।

गोरखपुर का इतिहास बहुत रोचक रहा है।
गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम,जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द जी का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसेबौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दूधार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस।

20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था परन्तु आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में बंगाल नागपुर रेलवे के रूप में जाना जाता था यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है जिससे इसके विकास में चार चाँद लग गये हैं।

गोरखपुर शहर और जिले के का नाम एक प्रसिद्ध तपस्वीसन्त मत्स्येन्द्रनाथ के प्रमुख शिष्य गोरखनाथ के नाम पर रखा गया है। योगी मत्स्येन्द्रनाथ एवं उनके प्रमुख शिष्य गोरक्षनाथ ने मिलकर सन्तों के सम्प्रदाय की स्थापना की थी। गोरखनाथ मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ गोरखनाथ हठ योग का अभ्यास करने के लिये आत्म नियन्त्रण के विकास पर विशेष बल दिया करते थे और वर्षानुवर्ष एक ही मुद्रा में धूनी रमाये तपस्या किया करते थे। गोरखनाथ मन्दिर में आज भी वह धूनी की आग अनन्त काल से अनवरत सुलगती हुई चली आ रही है।

प्राचीन समय में गोरखपुर के भौगोलिक क्षेत्र मे बस्ती,देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़ आदि आधुनिक जिले शामिल थे। वैदिक लेखन के मुताबिक, अयोध्या के सत्तारूढ़ ज्ञात सम्राट इक्ष्वाकु, जो सूर्यवंशी के संस्थापक थे जिनके वंश में उत्पन्न सूर्यवंशी राजाओं में रामायण के राम को सभी अच्छी तरह से जानते हैं। पूरे क्षेत्र में अति प्राचीन आर्य संस्कृति और सभ्यता के प्रमुख केन्द्र कोशल और मल्ल, जो सोलह महाजनपदों में दो प्रसिद्ध राज्य ईसा पूर्व छ्ठी शताब्दी में विद्यमान थे, यह उन्ही राज्यों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था।

गोरखपुर में राप्ती और रोहिणी नदियों का संगम होता है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी में गौतम बुद्ध ने सत्य की खोज के लिये जाने से पहले अपने राजसी वस्त्र त्याग दिये थे। बाद में उन्होने मल्ल राज्य की राजधानी कुशीनारा, जो अब कुशीनगर के रूप में जाना जाता है पर मल्ल राजा हस्तिपाल मल्ल के आँगन में अपना शरीर त्याग दिया था। कुशीनगर में आज भी इस आशय का एक स्मारक है। यह शहर भगवान बुद्ध के समकालीन 24वें जैन तीर्थंकरभगवान महावीर की यात्रा के साथ भी जुड़ा हुआ है। भगवान महावीर जहाँ पैदा हुए थे वह स्थान गोरखपुर से बहुत दूर नहीं है। बाद में उन्होने पावापुरी में अपने मामा के महल में महानिर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। यह पावापुरी कुशीनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। ये सभी स्थान प्राचीन भारत के मल्ल वंश की जुड़वा राजधानियों (16 महाजनपद) के हिस्से थे। इस तरह गोरखपुर में क्षत्रिय गण संघ, जो वर्तमान समय में सैंथवारके रूप में जाना जाता है, का राज्य भी कभी था।

इक्ष्वाकु राजवंश के बाद मगध पर जब नंद राजवंश द्वारा 4थी सदी में विजय प्राप्त की उसके बाद गोरखपुर मौर्य,शुंग, कुषाण, गुप्त और हर्ष साम्राज्यों का हिस्सा बन गया। भारत का महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जो मौर्य वंश का संस्थापक था, उसका सम्बन्ध पिप्पलीवन के एक छोटे से प्राचीन गणराज्य से था। यह गणराज्य भी नेपाल की तराई और कसिया में रूपिनदेई के बीच उत्तर प्रदेश के इसी गोरखपुर जिले में स्थित था। 10 वीं सदी में थारू जाति के राजा मदन सिंह ने गोरखपुर शहर और आसपास के क्षेत्र पर शासन किया। राजा विकास संकृत्यायन का जन्म स्थान भी यहीं रहा है।

मध्यकालीन समय में, इस शहर को मध्यकालीन हिन्दू सन्त गोरक्षनाथ के नाम पर गोरखपुर नाम दिया गया था। हालांकि गोरक्षनाथ की जन्म तिथि अभी तक स्पष्ट नहीं है, तथापि जनश्रुति यह भी है कि महाभारत काल में युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञ का निमन्त्रण देने उनके छोटे भाई भीमस्वयं यहाँ आये थे। चूँकि गोरक्षनाथ जी उस समय समाधिस्थ थे अत: भीम ने यहाँ कई दिनों तक विश्राम किया था। उनकी विशालकाय लेटी हुई प्रतिमा आज भी हर साल तीर्थयात्रियों की एक बड़ी संख्या को अपनी ओर आकर्षित करती है।

12वीं सदी में, गोरखपुर क्षेत्र पर उत्तरी भारत के मुस्लिमशासक मुहम्मद गौरी ने विजय प्राप्त की थी बाद में यह क्षेत्रकुतुबुद्दीन ऐबक और बहादुरशाह, जैसे मुस्लिम शासकों के प्रभाव में कुछ शताब्दियों के लिए बना रहा। शुरुआती 16वीं सदी के प्रारम्भ में भारत के एक रहस्यवादी कवि और प्रसिद्ध सन्त कबीर भी यहीं रहते थे और मगहर नाम का एक गाँव (वर्तमान संतकबीरनगर जिले में स्थित), जहाँ उनके दफन करने की जगह अभी भी कई तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है, गोरखपुर से लगभग 20 किमी दूर स्थित है।

16 वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर ने साम्राज्य के पुनर्गठन पर, जो पाँच सरकार स्थापित की थीं सरकार नाम की उन प्रशासनिक इकाइयों में अवध प्रान्त के अन्तर्गत गोरखपुर का नाम मिलता है।

इमामबाड़ा के नाम से मशहूर 18वीं सदी की एक दरगाहयहाँ के रेलवे स्टेशन से केवल 2 किमी दूर स्थित है। इसके अतिरिक्त इमामबाड़ा के रोशन अली शाह नामक एक सूफी सन्त की दरगाह भी इस शहर में है। यहाँ भी एक धूनी निरन्तर जलती रहती है। यह शहर सोने और चाँदी के ताजियों के लिये भी प्रसिद्ध है।

गोरखपुर 1803 में सीधे ब्रिटिश नियन्त्रण में आया। यह1857 के विद्रोह के प्रमुख केंद्रों में रहा और बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इसने एक प्रमुख भूमिका निभायी।

गोरखपुर जिला चौरीचौरा की 4 फ़रवरी 1922 की घटना जो भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुई, के बाद चर्चा में आया जब पुलिस अत्याचार से गुस्साये 2000 लोगों की एक भीड़ ने चौरीचौरा का थाना ही फूँक दिया जिसमें उन्नीस पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गयी। आम जनता की इस हिंसा से घबराकर महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन यकायक स्थगित कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में ही हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम का एक देशव्यापी प्रमुख क्रान्तिकारी दल गठित हुआ जिसने 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके ब्रिटिश सरकार को खुली चुनौती दी जिसके परिणामस्वरूप दल के प्रमुख सरगना राम प्रसाद 'बिस्मिल' को गोरखपुर जेल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय भाग लेने के लिये फाँसीदे दी गयी। 19 दिसम्बर 1927 को बिस्मिल की अन्त्येष्टि जहाँ पर की गयी वह राजघाट नाम का स्थान गोरखपुर में ही राप्ती नदी के तट पर स्थित है। राम प्रसाद बिस्मिल के अंतिम संस्कार में पंडित गोविन्द वल्लभ पन्त भी उपस्थित थे।

सन 1934 में यहाँ एक भूकम्प आया था जिसकी तीव्रता 8.1 रिक्टर पैमाने पर मापी गयी, उससे शहर में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था।

जिले में घटी दो अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं ने 1942 में शहर को और अधिक चर्चित बनाया। प्रसिद्ध भारत छोड़ो आंदोलन के बाद शीघ्र ही 9 अगस्त को जवाहर लाल नेहरू को गिरफ्तार किया गया था और इस जिले में उन पर मुकदमा चलाया गया। उन्होंने यहाँ की जेल में अगले तीन साल बिताये। सहजनवा तहसील के पाली ब्लॉक अन्तर्गत डोहरिया गाँव में 23 अगस्त को आयोजित एक विरोध सभा पर ब्रिटिश सरकार के सुरक्षा बलों ने गोलियाँ चलायीं जिसके परिणामस्वरूप अकारण नौ लोग मारे गये और सैकड़ों घायल हो गये। एक शहीद स्मारक आज भी उस स्थान पर खड़ा है।

यह महापण्डित राहुल सांकृत्यायन का जन्म स्थान तो है ही इसके अतिरिक्त यह पूर्वोत्तर रेलवे (एन०ई०आर०) के मुख्यालय के लिये भी जाना जाता है। क्रान्तिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल, जिन्हें दो बार आजीवन कारावास की सजा मिली, ने भी अपने जीवन के अन्तिम क्षण इसी शहर में बिताये। शचिन दा 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' के संस्थापकों में थे बाद में जब उन्हें टी०बी० (क्षय रोग) ने त्रस्त किया तो वे स्वास्थ्य लाभ के लिये भुवाली चले गये वहीं उनकी मृत्यु हुई। उनका घर आज भी बेतियाहाता में है जहाँ एक बहुत बड़ी बहुमंजिला आवासीय इमारत सहारा के स्वामित्व पर खडी कर दी गयी है। इसी घर में कभी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने वाले उनके छोटे भाई स्वर्गीय जितेन्द्र नाथ सान्याल भी रहे। इन्हीं जितेन दा ने लाहौर षडयन्त्र के मामले में सजायाफ्ता सरदार भगत सिंह पर एक किताब थी लिखी थी जिसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया।

उर्दू कवि फिराक गोरखपुरी, हॉकी खिलाड़ी प्रेम माया तथा दिवाकर राम, राम आसरे पहलवान और हास्य अभिनेता असित सेन गोरखपुर से जुड़े प्रमुख व्यक्तियों में हैं। प्रसिद्ध पत्रकार आलोक वर्मा की भी यह कर्मस्थली रहा है।दिलीप कुमार साहब भी यहाँ आकर एक फिल्म की शूटिंग रेलवे स्टेशन पर कर चुके हैं। प्रसिद्ध हिन्दी लेखक मुंशी प्रेमचन्द की कर्मस्थली भी यह शहर रहा है

गोरखपुर शहर की संस्कृति अपने आप में अद्भुत है। यहाँ परम्परा और संस्कृति का संगम प्रत्येक दिन सुरम्य शहर में देखा जा सकता है। जब आप का दौरा गोरखपुर शहर में हो तो जीवन और गति का सामंजस्य यहाँ आप भली-भाँति देख सकते हैं। सुन्दर और प्रभावशाली लोक परम्पराओं का पालन करने में यहाँ के निवासी नियमित आधार पर अभ्यस्त हैं। यहाँ के लोगों की समृद्ध संस्कृति के साथ लुभावनी दृश्यावली का अवलोकन कर आप मन्त्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सकते। गोरखपुर की महिलाओं की बुनाई और कढ़ाई, लकड़ी की नक्काशी, दरवाजों और उनके शिल्प-सौन्दर्य, इमारतों के बाहर छज्जों पर छेनी-हथौडे का बारीक कार्य आपका मन मोह लेगा। गोरखपुर में संस्कृति के साथ-साथ यहाँ का जन-जीवन बडा शान्त और मेहनती है। देवी-देवताओं की छवियों, पत्थर पर बने बारीक कार्य देखते ही बनते हैं। ब्लॉकों से बनाये गये हर मन्दिर को सजाना यहाँ की एक धार्मिक संस्कृति है। गोरखपुर शहर में स्वादिष्ट भोजन के कई विकल्प हैं। रामपुरी मछली पकाने की परम्परागत सांस्कृतिक पद्धति और अवध के काकोरी कबाब की थाली यहाँ के विशेष व्यंजन हैं।

गोरखपुर संस्कृति का सबसे बड़ा भाग यहा के लोक-गीतों और लोक-नृत्यों की परम्परा है। यह परम्परा बहुत ही कलात्मक है और गोरखपुर संस्कृति का ज्वलन्त हिस्सा है। यहाँ के बाशिन्दे गायन और नृत्य के साथ काम-काज के लम्बे दिन का लुत्फ लेते हैं। वे विभिन्न अवसरों पर नृत्य और लोक-गीतों का प्रदर्शन विभिन्न त्योहारों और मौसमों में वर्ष के दौरान करते है। बारहो महीने बरसात और सर्दियों में रात के दौरान आल्हा, कजरी, कहरवा और फाग गाते हैं। गोरखपुर के लोग हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा, मृदंग, नगाडा, थाली आदि का संगीत-वाद्ययन्त्रों के रूप में भरपूर उपयोग करते हैं। सबसे लोकप्रिय लोक-नृत्य कुछ त्योहारों व मेलों के विशेष अवसर पर प्रदर्शित किये जाते हैं। विवाह के मौके पर गाने के लिये गोरखपुर की विरासत और परम्परागत नृत्य उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गोरखपुर प्रसिद्ध बिरहा गायक बलेसर, भोजपुरी लोकगायक मनोज तिवारी, मालिनी अवस्थी, मैनावतीआदि की कर्मभूमि रहा है।

रहस्यवादी कवि और प्रसिद्ध सन्त कबीर (1440-1518) यहीं के थे। उनका मगहर नाम के एक गाँव (गोरखपुर से 20 किमी दूर) देहान्त हुआ। कबीर दास ने अपनी कविताओं के माध्यम से अपने देशवासियों में शान्ति और धार्मिक सद्भाव स्थापित करने की कोशिश की। उनकी मगहर में बनी दफन की जगह तीर्थयात्रियों की एक बड़ी संख्या को अपनी ओर आकर्षित करती है।

मुंशी प्रेमचंद (1880-1936)], भारत के एक महान हिन्दी उपन्यासकार, गोरखपुर में रहते थे। वह घर जहाँ वे रहते थे और उन्होंने अपना साहित्य लिखा उसके समीप अभी भी एक मुंशी प्रेमचंद पार्क उनके नाम पर स्थापित है।

फिराक गोरखपुरी (1896-1982, पूरा नाम:रघुपति सहाय फिराक), प्रसिद्ध उर्दू कवि, गोरखपुर में उनका बचपन का घर अभी भी है। वह बाद में इलाहाबाद में चले गया जहाँ वे लम्बे समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे।

परमानन्द श्रीवास्तव (जन्म: 10 फ़रवरी 1935 - मृत्यु: 5 नवम्बर 2013) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। उनकी गणना हिन्दी के शीर्ष आलोचकों में होती है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रेमचन्द पीठ की स्थापना में उनका विशेष योगदान रहा। कई पुस्तकों के लेखन के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी भाषा की साहित्यिक पत्रिका आलोचना का सम्पादन भी किया था। आलोचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये उन्हें व्यास सम्मान और भारत भारती पुरस्कार प्रदान किया गया। लम्बी बीमारी के बाद उनका गोरखपुर में निधन हो गया।

प्रसिद्ध संगीत निर्देशक लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का जन्म इसी शहर गोरखपुर में हुआ था।

प्रसिद्ध कवि और आलोचक मजनून गोरखपुरी भी गोरखपुर के ही थे।

प्रसिद्ध उर्दू कवि मोहम्मद उमर खाँ उर्फ उमर गोरखपुरी, प्रसिद्ध उर्दू कवि दाग देहलवी के एक शिष्य, गोरखपुर के ही हैं।

गोरखपुर में कई हिन्दू पवित्र ग्रन्थों का प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस एक दर्शनीय स्थान है। यह संस्थान संगमरमर से बनी एक भव्य इमारत में स्थित है। इस भवन की दीवारों पर पूरी रामायण और गीता के 18 अध्यायों को राम औरकृष्ण के जीवन के सजीव चित्रों के साथ उकेरा गया है।

गोरखपुर अब Smart City बनेगा और भी तरक्की होगी और पूर्वांचल का यह शहर और ताकतवर बन कर उभरेगा यही आशा है।

As per the list of towns which will be converted to Smart cities a few have been identified out of total 13 towns. I have already covered Allahabad, Lucknow, Kanpur, Varanasi(Kashi), Agra, Jhansi and Gorakhpur. Shall write inside stories of other towns when thus list is enlarged to cover remainder cities.

Dear friends I wish to say thanks and anyone willing to see these articles may please see it from my time lines and any thing which they feel need to be added and deleted please contact me or write to me.

Thanks for your patience.

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with BN Pandeyand Puneet Chowdhary.

गरज़ नहीं मुझे किसी मयख़ाने की आँखों से अश्कों के पैमाने बरसते हैं।

गरज़ नहीं मुझे किसी मयख़ाने की
आँखों से अश्कों के पैमाने बरसते हैं।


कलम से____

ख़त तेरे आज भी तूफानी मिज़ाज़ रखते हैं
बहुत सभांलके खज़ाने से सिरहाने रखते हैं।

तन्हा चलने का इरादा बनाया है क्यों
हम तो ज़माने को साथ ले के चलते हैं।

गरज़ नहीं मुझे किसी मयख़ाने की
आँखों से अश्कों के पैमाने बरसते हैं।

जब भी उठती है महक तेरी यादों की
सूखे हुये गुलाब किताबों के परीशां बहुत करते हैं।

मिल ही जायेगा इक दिन इस दिल को मुकाम
इस इरादे से फलक तक ऊँची उड़ान भरते हैं।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

Jhansi Smart City

Smart City Jhansi


Smart Cities in UP(India): Jhansi

झांसी के बारे में मुझे हमेशा एक बात याद आती है जो कभी बचपन में बाबूजी ने एक बार इसी शहर में बताई थी। उन्होंने बताया था कि झांसी के बाद रेल से चलने पर पहले उत्तर प्रदेश फिर मध्य प्रदेश और फिर उत्तर प्रदेश आते हैं और वैसे भी यह क्षेत्र बुंदेलखंड का हिस्सा है। जब मध्य प्रदेश ने 1956 रियासतों के विलय अपना दावा झांसी के ऊपर पेश किया तब भारत के गृहमंत्री पंडित गोविंद वल्लभ पंत जी हुआ करते थे। पंत जी ने नेहरू जी से साफ शब्दों में कह दिया कि झांसी उत्तर प्रदेश की नाक है उसको हम कभी भी उत्तर प्रदेश से अलग नहीं होने देंगे।

झांसी का गौरवशाली इतिहास है जो हमें 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता रहता है। कृषि के क्षेत्र में असीमित संभावना होने के बावजूद जल संसाधनों की कमी के चलते यह इलाका बहुत पिछड गया है।

प्रदेश सरकार को यदाकदा जब इस क्षेत्र की याद आ जाती है तो एक दो योजनाओं का उद्घाटन हो जाता है। वरना यह क्षेत्र विकास के पथ में पिछड़ ही गया है।

इसे ऐतिहासिक शहर को भी सुना है अब Smart City बनाने की योजना है। अगर कुछ हो जाए तो हम प्रदेश वासियों को बहुत प्रसन्नता होगी।

झांसी को अमरत्व प्रदान करने वाली आदरणीय सुभद्रा कुमारी चौहान जी के परिवार से हमारे परिवार का बहुत नजदीकी संबध है। मेरी मौसी जी का व्याह सुभद्रा जी के पुत्र के साथ हुआ था। इस विवाह में मैं भी शरीक हुआ था तब मैं मात्र आठ वर्ष का था।

झांसी अब विकास के रास्ते पर चल निकले यही आकांक्षा है। इसके इतिहास पल जो भी कहा जार कम पड़ जाता है।

झाँसी भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। यह शहर उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है और बुंदेलखंड क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। झाँसी एक प्रमुख रेल एवं सड़क केन्द्र है और झाँसी जिले का प्रशासनिक केन्द्र भी है। झाँसी शहर पत्थर निर्मित किले के चारों तरफ़ फ़ैला हुआ है, यह किला शहर के मध्य स्थित बँगरा नामक पहाड़ी पर निर्मित है।

उत्तर प्रदेश में 20.7 वर्ग कि मी. के क्षेत्र में फैला झाँसी पर प्रारंभ में चन्देल राजाओं का नियंत्रण था। उस समय इसे बलवंत नगर के नाम से जाना जाता था । झाँसी का महत्व सत्रहवीं शताब्दी में ओरछा के राजा बीर सिंह देव के शासनकाल में बढ़ा। इस दौरान राजा बीर सिंह और उनके उत्तराधिकारियों ने झाँसी में अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया।

९ वी शताब्दी मै, झॉसी का राज्य खजुराहो के राजपूतचन्देल वंश के राजाओं के अन्तर्गत आया। कृत्रिम जलाशय एवं पहाडी क्षेत्र के वास्तु शिल्प खन्डहर शायद इसी काल के है। चन्देल वंश के बाद उन्के सेवक खन्गार ने इस क्षेत्र का कार्यभार्र सम्भाला। समीप स्थित "करार" का किला इसी वन्श के राजाओं ने बनवाया था।

१४ वी शताब्दि के निकट् बुन्देला विन्ध्याच्ल् क्षेत्र से नीचे मैदानी क्षेत्र मे आना प्रारम्भ् किया और धीरे - धीरे सारे मैदानी क्षेत्र मै फ़ैल गये जिसे आज् बुन्देलखन्ड के नाम् से जाना जाता है। झॉसीकिले का निर्माण ओरछा के राजा बीर सिह देव द्वारा कर्वाया गया था। किव्दन्ति है कि ओरछा के राजा बीर सिह देव ने दूर से पहाडी पर छाया देखी जिसे बुन्देली भाषा मे "झॉई सी" बोला गया, इसी शब्द् के अप्भ्रन्श् से शहर का नाम पडा।

१७ वी शताब्दि मै मुगल कालीन साम्राज्य के राजाऔ के बुन्देला छेत्र् मे लगातार् आक्र्मण् के कारण् बुन्देला राजा छ्त्रसाल् ने सन् १७३२ मे [[मराठा] साम्राज्य से मदद् मान्गी। मराठा मदद् के लिये आगे आये। सन् १७३४ मे राजा छ्त्रसाल् की मृत्यु के बाद बुन्देला क्षेत्र का एक तिहायी हिस्सा मराठो कोदे दिया गया। मराठो ने शहर् का विकास् किया और इसके लिये ओरछा से लोगो को ला कर बसाया गया।

सन् १८०६ मई मराठा शक्ति कमजोर पडने के बाद ब्रितानी राज और मराठा के बीच् समझोता हुआ जिसमे मराठो ने ब्रितानी साम्राज्य का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। सन् १८१७ मे मराठो ने पूने मे बुन्देल्खन्ड् छेत्र् के सारे अधिकार् ब्रितानी ईस्ट् ईडिया कम्पनी को दे दिये। सन् १८५७ मे झांसी के राजा गन्गाधर् राव् की म्रत्यु हो गयी। तत्कालीन् गवेर्नल जनरल् ने झांसी को पूरी तरह् से अपने अधिकार मे ले लिया। राजा गन्गाधर राव कि विधवा रानी लक्ष्मीबाई ने इसका विरोध किया और कहा कि राजा गन्गाधर राव् केदत्तक पुत्र को राज्य का उत्राधकारी माना जाये, परन्तु ब्रितानी राज् ने मानने से इन्कार कर दिया। ईन्ही परिस्थितियों के चलते झांसी मे सन् १८५७ का संग्राम हुआ। जो कि भारतीय स्वतन्त्र्ता संग्राम के लिये नीव् का पत्थर साबित् हुआ। जून् १८५७ मे १२वी पैदल् सेना के सैनिको ने झांसी के किले पर कब्ज़ा कर लिया और किले मे मौजूद ब्रितानी अफ़सरो को मार दिया गया। ब्रितानी राज् से लडायी के दौरान् रानी लक्ष्मीबाईने स्वयम् सेना का सन्चालान् किया। नवम्बर १८५८ मे झांसी को फ़िर से ब्रितानी राज् मे मिला लिया गया और झांसी के अधिकार ग्वालियर के राजा को दे दिये गये। सन् १८८६ मे झांसी को यूनाइटिड प्रोविन्स मे जोडा गया जो स्वतन्त्र्ता प्राप्ति के बाद १९५६ में उत्तर प्रदेश बना।

उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी में बंगरा नामक पहाड़ी पर १६१३ इस्वी में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। २५ वर्षों तक बुंदेलों ने यहाँ राज्य किया उसके बाद इस दुर्ग पर क्रमश मुगलों, मराठों और अंग्रजों का अधिकार रहा. मराठा शासक नारुशंकर ने १७२९-३० में इस दुर्ग में कई परिवर्तन किये जिससे यह परिवर्धित क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ।

१९३८ में यह किला केन्द्रीय संरक्षण में लिया गया। यह दुर्ग १५ एकड़ में फैला हुआ है। इसमें २२ बुर्ज और दो तरफ रक्षा खाई हैं। नगर की दीवार में १० द्वार थे। इसके अलावा ४ खिड़कियाँ थीं। दुर्ग के भीतर बारादरी, पंचमहल, शंकरगढ़, रानी के नियमित पूजा स्थल शिवमंदिर और गणेश मंदिर जो मराठा स्थापत्य कला के सुन्दर उदाहरण हैं।

कूदान स्थल, कड़क बिजली तोप पर्यटकों का विशेष आकर्षण हैं। फांसी घर को राजा गंगाधर के समय प्रयोग किया जाता था जिसका प्रयोग रानी ने बंद करवा दिया था।

किले के सबसे ऊँचे स्थान पर ध्वज स्थल है जहाँ आज तिरंगा लहरा रहा है। किले से शहर का भव्य नज़ारा दिखाई देता है। यह किला भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और देखने के लिए पर्यटकों को टिकट लेना होता है। वर्ष पर्यन्त देखने जा सकते हैं।

झांसी का किला उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत के सबसे बेहतरीन किलों में एक है। ओरछा के राजा बीर सिंह देव ने यह किला 1613 ई. में बनवाया था। किला बंगरा नामक पहाड़ी पर बना है। किले में प्रवेश के लिए दस दरवाजे हैं। इन दरवाजों को खन्देरो, दतिया, उन्नाव, झरना, लक्ष्मी, सागर, ओरछा, सैनवर और चांद दरवाजों के नाम से जाना जाता है। किले में रानी झांसी गार्डन, शिव मंदिर और गुलाम गौस खान, मोती बाई व खुदा बक्श की मजार देखी जा सकती है। यह किला प्राचीन वैभव और पराक्रम का जीता जागता दस्तावेज है।

मैं इधर काफी दिनों से झांसी नहीं गया हूँ और last time 2005 में गया था GSM Rollout के दौरान वहाँ हमारा एक Tower damage हो गया था। मैनें तब महसूस किया था कि प्रगति तो हुई है पर इस क्षेत्र को कुछ अधिक की जरूरत है जो होना वाकी है। बहुत पहले 1964 में गया था उससे तो बदला बदला नजर आया था। चलिये Smart बन जायेगा तो चार चांद लग जायेंगे।

झांसी से मात्र 18 किलोमीटर दूर है मध्यप्रदेश का शहर और पुरानी रियायत ओरछा का महल तथा दर्शनीय राम मंदिर इत्यादि। बेतवा का किनारा बहुत मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है।

Tourism के लिए बहुत scope है।

Smart City बनेगा तो क्या क्या होगा अभी देखना वाकी है। जो भी होगा भले के लिए ही होगा ऐसी आशा ही करना उचित है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Smart City Varanasi

Smart City Varanasi (Kashi)



Smart City Projects in UP: Varanasi( Kashi)

देश का प्रधान मंत्री चुनाव जीतने के बाद पहली विदेश यात्रा पर जाता है और इसके लिए चुनता है जापान देश। वहाँ जाकर एक Agreement पर हस्ताक्षर करता है कि क्वेटो की तरह पुराने जापानी शहर की भांति काशी को विकसित किया जाएगा।

काशी(वाराणसी) भारत का एक प्राचीन शहरी है। Smart City बन जाये अपना बनारस तो यह बहुत बड़ी बात होगी। हर हिन्दू को इस पर गर्व होगा।

कम लोग ही जानते होंगे कि यह शहर गंगा-जमुनी संस्कृति की जीती जागती तस्वीर पेश करता है। यहाँ मुस्लिम समुदाय भी अपना जीवन यहाँ रम के जीता है।

मेरा यहाँ कई बार आना हुआ है और जब जब यहाँ आया लगा अपने लोगों के बीच ही आ गया। Last time जब आया था बनारस उस वक्त मैं UP East में GSM Services Roll Out का प्रोजेक्ट BSNL के लिए Nokia की तरफ से work execution के सिलसिले में आया था, 2005 में। बाबा विश्वनाथ के दर्शन भी किये थे। Shopping भी करी थी। बनारसी साडियाँ लाजबाब होती हैं। उससे पहले campus selection के सिलसिले में BHU 1998 में गया था । लंका BHU Campus के visit की तस्वीर आज भी तसुब्बर में आ जातीं हैं।बहुत आनंद उठाया था अपने Hotel Ganges के प्रवास के दौरान। सुबह जिसने बनारस की न देखी हो उसने जीवन में कुछ नहीं देखा यह सही मान लेना चाहिए। घाट पर सूर्योदय के अद्भुत,अद्वितीय दृश्य और उसके बाद पूडी कचौरी रबडी जलेबी का नाश्ता भला कोई कैसे भूल सकता है।

गंदगी हर जगह है पतली गली गलियारों में फिर भी काशी के सानी दूसरा कोई नहीं। अब यह पुराना शहर भी परिवर्तन की बयार की महक महसूस कर रहा है। अब यह भी Smart City बनने की राह पर आगे बढ़ चुका है।

गंगा तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं। हजारों वर्ष पूर्व कुछ नाटे कद के साँवले लोगों ने इस नगर की नींव डाली थी। तभी यहाँ कपड़े और चाँदी का व्यापार शुरू हुआ। कुछ समय उपरांत पश्चिम से आये ऊँचे कद के गोरे लोगों ने उनकी नगरी छीन ली। ये बड़े लड़ाकू थे, उनके घर-द्वार न थे, न ही अचल संपत्ति थी। वे अपने को आर्य यानि श्रेष्ठ व महान कहते थे। आर्यों की अपनी जातियाँ थीं, अपने कुल घराने थे। उनका एक राजघराना तब काशी में भी आ जमा। काशी के पास हीअयोध्या में भी तभी उनका राजकुल बसा। उसे राजाइक्ष्वाकु का कुल कहते थे, यानि सूर्यवंश काशी में चन्द्र वंश की स्थापना हुई। सैकड़ों वर्ष काशी नगर पर भरत राजकुल के चन्द्रवंशी राजा राज करते रहे। काशी तब आर्यों के पूर्वी नगरों में से थी, पूर्व में उनके राज की सीमा। उससे परे पूर्व का देश अपवित्र माना जाता था।

महाभारत पूर्व मगध में राजा जरासन्ध ने राज्य किया और काशी भी उसी साम्राज्य में समा गई। आर्यों के यहां कन्या के विवाह स्वयंवर के द्वारा होते थे। एक स्वयंवर मेंपाण्डव और कौरव के पितामह भीष्म ने काशी नरेश की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण किया था। इस अपहरण के परिणामस्वरूप काशी औरहस्तिनापुर की शत्रुता हो गई। महाभारत युद्ध में जरासन्ध और उसका पुत्र सहदेव दोनों काम आये। कालांतर में गंगा की बाढ़ ने पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर को डुबा दिया, तब पाण्डव वर्तमान इलाहाबाद जिला में यमुना किनारे कौशाम्बी में नई राजधानी बनाकर बस गए। उनका राज्यवत्स कहलाया और काशी पर मगध की जगह अब वत्स का अधिकार हुआ।

इसके बाद ब्रह्मदत्त नाम के राजकुल का काशी पर अधिकार हुआ। उस कुल में बड़े पंडित शासक हुए और में ज्ञान और पंडिताई ब्राह्मणों से क्षत्रियों के पास पहुंच गई थी। इनके समकालीन पंजाब में कैकेय राजकुल में राजा अश्वपति था। तभी गंगा-यमुना के दोआब में राज करने वाले पांचाल में राजा प्रवहण जैबलि ने भी अपने ज्ञान का डंका बजाया था। इसी काल में जनकपुर, मिथिला में विदेहों के शासक जनक हुए, जिनके दरबार में याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानी महर्षि औरगार्गी जैसी पंडिता नारियां शास्त्रार्थ करती थीं। इनके समकालीन काशी राज्य का राजा अजातशत्रु हुआ ये आत्मा और परमात्मा के ज्ञान में अनुपम था। ब्रह्म और जीवन के सम्बन्ध पर, जन्म और मृत्यु पर, लोक-परलोक पर तब देश में विचार हो रहे थे। इन विचारों को उपनिषद्कहते हैं। इसी से यह काल भी उपनिषद-काल कहलाता है।

महाजन पद युग संपादित करेंयुग बदलने के साथ ही वैशाली और मिथिला के लिच्छवी में साधु वर्धमानमहावीर हुए, कपिलवस्तु के शाक्य में गौतम बुद्ध हुए। उन्हीं दिनों काशी का राजा अश्वसेन हुआ। इनके यहां पार्श्वनाथ हुए जो जैन धर्म के २३वें तीर्थंकर हुए। उन दिनों भारत में चार राज्य प्रबल थे जो एक-दूसरे को जीतने के लिए, आपस में बराबर लड़ते रहते थे। ये राह्य थे मगध,कोसल, वत्स और उज्जयिनी। कभी काशी वत्सों के हाथ में जाती, कभी मगध के और कभी कोसल के। पार्श्वनाथ के बाद और बुद्ध से कुछ पहले, कोसल-श्रावस्ती के राजा कंसने काशी को जीतकर अपने राज में मिला लिया। उसी कुल के राजा महाकोशल ने तब अपनी बेटी कोसल देवी का मगध के राजा बिम्बसार से विवाह कर दहेज के रूप में काशी की वार्षिक आमदनी एक लाख मुद्रा प्रतिवर्ष देना आरंभ किया और इस प्रकार काशी मगध के नियंत्रण में पहुंच गई। राज के लोभ से मगध के राजा बिम्बसार के बेटे अजातशत्रु ने पिता को मारकर गद्दी छीन ली। तब विधवा बहन कोसलदेवी के दुःख से दुःखी उसके भाई कोसल के राजा प्रसेनजित ने काशी की आमदनी अजातशत्रु को देना बन्द कर दिया जिसका परिणाम मगध और कोसल समर हुई। इसमें कभी काशी कोसल के, कभी मगध के हाथ लगी। अन्ततः अजातशत्रु की जीत हुई और काशी उसके बढ़ते हुए साम्राज्य में समा गई। बाद में मगध की राजधानीराजगृह से पाटलिपुत्र चली गई और फिर कभी काशी पर उसका आक्रमण नहीं हो पाया।

काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्‍वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य,सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं। यहीं सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पुरा किया और काशी नरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर से शोभायात्रा खूब धूमधाम से निकाली गयी।

वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन 1780 में करवाया गया था।बाद में महाराजा रंजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा मढ़्वाया गया था।

भारतीय इतिहास के मध्य युग में मुसलमानों के आक्रमण के पश्चात् उस समय के अन्य सांस्कृतिक केंद्रों की भाँति काशी को भी दुर्दिन देखना पड़ा। ११९३ ई में मुहम्मद गोरीने कन्नौज को जीत लिया, जिससे काशी का प्रदेश भी, जो इस समय कन्नौज के राठौड़ राजाओं के अधीन था, मुसलमानों के अधिकार में आ गया। दिल्ली के सुल्तानों के आधिपत्यकाल में भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं को काशी के ही अंक में शरणमिली। कबीर और रामानंद के धार्मिक और लोकमानस के प्रेरक विचारों ने उसे जीता-जागता रखने में पर्याप्त सहायता दी। मुगल सम्राट् अकबरने हिंदू धर्म की प्राचीन परंपराओं के प्रति जो उदारता और अनुराग दिखाया, उसकी प्रेरणा पाकर भारतीय संस्कृति की धारा, जो बीच के काल में कुछ क्षीण हो चली थी, पुन: वेगवती हो गई और उसने तुलसीदास, मधुसूदन सरस्वतीऔर पंडितराज जगन्नाथ जैसे महाकवियों और पंडितों को जन्म दिया एवं काशी पुन: अपने प्राचीन गौरव की अधिकारिणी बन गई। किंतु शीघ्र ही इतिहास के अनेक उलटफेरों के देखनेवाली इस नगरी को औरंगजेब की धर्मांधता का शिकार बनना पड़ा। उसने हिंदू धर्म के अन्य पवित्र स्थानों की भाँति काशी के भी प्राचीन मंदिरों को विध्वस्त करा दिया। मूल विश्वनाथ के मंदिर को तुड़वाकर उसके स्थान पर एक बड़ी मसजिद बनवाई जो आज भी वर्तमान है। मुगल साम्राज्य की अवनति होने पर अवध के नवाब सफ़दरजंग ने काशी पर अधिकार कर लिया; किंतु उसके पौत्र ने उसे ईस्ट इंडिया कंपनी को दे डाला। वर्तमान काशीनरेश के पूर्वज बलवंतसिंह ने अवध के नवाब से अपना संबंधविच्छेद कर लिया था। इस प्रकार काशी की रियासत का जन्म हुआ। चेतसिंह, जिन्होंने वारेन हेस्टिंग्ज़से लोहा लिया था, इन्हीं के पुत्र थे। स्वतंत्रता मिलने के पश्चात् काशी की रियासत भारत राज्य का अविच्छिन्न अंग बन गई।

आधुनिक काशी राज्य वाराणसी का भूमिहार ब्राह्मण राज्य बना है। भारतीय स्वतंत्रता उपरांत अन्य सभी रजवाड़ों के समान काशी नरेश ने भी अपनी सभी प्रशासनिक शक्तियां छोड़ कर मात्र एक प्रसिद्ध हस्ती की भांति रहा आरंभ किया। वर्तमान स्थिति में ये मात्र एक सम्मान उपाधि रह गयी है। काशी नरेश का रामनगर किला वाराणसी शहर के पूर्व में गंगा नदी के तट पर बना है। गोतम गोत्री सरवरीया ब्राह्मण वंश मे उत्पन्न श्री कृष्ण मिश्र ( कित्थु मिश्र ) नामक तपस्वी ब्राह्मण की दो पत्नियों से एक-एक देव शर्मा और राम शर्मा हुए। इस वंश का मूल निवास स्थान प्राचीन दातृपुर ग्राम, वर्तमान गंगापुर ग्राम (काशी से पश्चिम लगभग२० मील) के पास का दतरिया गाँव हैं। वंश के ज्येष्ठ पुत्र देव शर्मा शास्र-धर्म के अध्ययन, अवलम्बन के पश्चात् अन्यत्र प्रस्थान कर गए, किन्तु कनिष्ठ राम शर्मा ने यहीं रहकर शास्र और शस्र दोनों में ही निपुणता प्राप्त की और यवनों द्वारा उत्पीड़ित आस-पास के भूखण्डों पर आधिपत्य जमाकर शासन करने लगे। धीरे-धीरे वंशवेलि विस्तृत होती गई जिसकी दूर की वंश परम्परा में मनुरंजन मिश्र नामक प्रतापशाली वंशज के चार पुत्रों में ज्यष्ठ पुत्र श्री मनसाराम ने इस राजवंश के संस्थापक एवं प्रभावशाली यशस्वी शासक होने का महनीय गौरव प्राप्त किया, शेष तीनों अनुजों- दशाराम, दयाराम, मायाराम ने ज्येष्ठ भ्राता के शासन को सुदृढ़ एवं स्थायी बनाये रखने में अनुगामी सहयोगी के रुप में अपना-अपना विशेष योगदान दिया | काशी नरेश का एक अन्य किला चेत सिंह महल, शिवाला घाट, वाराणसी में स्थित है। रामनगर किला और इसका संग्रहालय अब बनारस के राजाओं का एक स्मारक बना हुआ है। इसके अलावा १८वीं शताब्दी से ये काशी नरेश का आधिकारिक आवास बना हुआ है आज भी काशी नरेश को शहर में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।ये शहर के धार्मिक अग्रणी रहे हैं और भगवाण शिव के अवतार माने जाते हैं। ये शहर के धार्मिक संरक्षक भी माने जाते हैं और सभी धामिक कार्यकलापों में अभिन्न भाग होते हैं।

डॉ॰विभूति नारायण सिंह भारतीय स्वतंत्रता पूर्व अंतिम नरेश थे। इसके बाद १५ अक्टूबर १९४८ को राज्य भारतीय संघ में मिल गया। २००० में इनकी मृत्यु उपरांत इनके पुत्र शर्मदेव अनंत नारायण सिंह मिश्र ही काशी नरेश हैं और इस परंपरा के वाहक हैं।

काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं।वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत काबनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवंउस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानसयहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था।

वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ औरसंपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है।

प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबकों एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।"

वाराणसी नाम का अर्थ:-

वाराणसी नाम का उद्गम संभवतः यहां की दो स्थानीय नदियों वरुणा नदी एवं असि नदी के नाम से मिलकर बना है। ये नदियाँ गंगा नदी में क्रमशः उत्तर एवं दक्षिण से आकर मिलती हैं। नाम का एक अन्य विचार वरुणा नदी के नाम से ही आता है जिसे संभवतः प्राचीन काल में वरणासि ही कहा जाता होगा और इसी से शहर को नाम मिला।इसके समर्थन में शायद कुछ आरंभिक पाठ उपलब्ध हों, किन्तु इस दूसरे विचार को इतिहासवेत्ता सही नहीं मानते हैं। लंबे काल से वाराणसी को अविमुक्त क्षेत्र, आनंद-कानन, महाश्मशान, सुरंधन, ब्रह्मावर्त, सुदर्शन, रम्य, एवंकाशी नाम से भी संबोधित किया जाता रहा है।ऋग्वेदमें शहर को काशी या कासी नाम से बुलाया गया है। इसे प्रकाशित शब्द से लिया गया है, जिसका अभिप्राय शहर के ऐतिहासिक स्तर से है, क्योंकि ये शहर सदा से ज्ञान, शिक्षा एवं संस्कृति का केन्द्र रहा है।काशी शब्द सबसे पहलेअथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा से आया है और इसके बाद शतपथ में भी उल्लेख है। लेकिन यह संभव है कि नगर का नाम जनपद में पुराना हो। स्कंद पुराण के काशी खण्ड में नगर की महिमा १५,००० श्लोकों में कही गयी है। एक श्लोक में भगवान शिव कहते हैं:

तीनों लोकों से समाहित एक शहर है, जिसमें स्थित मेरा निवास प्रासाद है काशी।

वाराणसी का एक अन्य सन्दर्भ ऋषि वेद व्यास ने एक अन्य गद्य में दिया है:

गंगा तरंग रमणीय जातकलापनाम, गौरी निरंतर विभूषित वामभागम.
नारायणप्रियम अनंग मदापहारम,वाराणसीपुर पतिम भज विश्वनाथम

अथर्ववेद में वरणावती नदी का नाम आया है जो बहुत संभव है कि आधुनिक वरुणा नदी के लिये ही प्रयोग किया गया हो। अस्सी नदी को पुराणों में असिसंभेद तीर्थ कहा है। स्कंद पुराण के काशी खंड में कहा गया है कि संसार के सभी तीर्थ मिल कर असिसंभेद के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं होते हैं।अग्निपुराण में असि नदी को व्युत्पन्न कर नासी भी कहा गया है। वरणासि का पदच्छेद करें तो नासी नाम की नदी निकाली गयी है, जो कालांतर में असी नाम में बदल गई। महाभारत में वरुणा या आधुनिक बरना नदी का प्राचीन नाम वरणासि होने की पुष्टि होती है।अतः वाराणासी शब्द के दो नदियों के नाम से बनने की बात बाद में बनायी गई है। पद्म पुराण के काशी महात्म्य, खंड-३ में भी श्लोक है:

वाराणसीति विख्यातां तन्मान निगदामि व: दक्षिणोत्तरयोर्नघोर्वरणासिश्च पूर्वत।

जाऋवी पश्चिमेऽत्रापि पाशपाणिर्गणेश्वर:।।

अर्थात दक्षिण-उत्तर में वरुणा और अस्सी नदी है, पूर्व में जाह्नवी और पश्चिम में पाशपाणिगणेश।

मत्स्य पुराण में शिव वाराणसी का वर्णन करते हुए कहते हैं -

वाराणस्यां नदी पु सिद्धगन्धर्वसेविता।

प्रविष्टा त्रिपथा गंगा तस्मिन् क्षेत्रे मम प्रिये॥

अर्थात्- हे प्रिये, सिद्ध गंधर्वों से सेवित वाराणसी में जहां पुण्य नदी त्रिपथगा गंगा आता है वह क्षेत्र मुझे प्रिय है।

यहां अस्सी का कहीं उल्लेख नहीं है। वाराणसी क्षेत्र का विस्तार बताते हुए मत्स्य पुराण में एक और जगह कहा गया है-

वरणा च नदी यावद्यावच्छुष्कनदी तथा।
भीष्मयंडीकमारम्भ पर्वतेश्वरमन्ति के॥

उपरोक्त उद्धरणों से यही ज्ञात होता है कि वास्तव में नगर का नामकरण वरणासी पर बसने से हुआ। अस्सी और वरुणा के बीच में वाराणसी के बसने की कल्पना उस समय से उदय हुई जब नगर की धार्मिक महिमा बढ़ी और उसके साथ-साथ नगर के दक्षिण में आबादी बढ़ने से दक्षिण का भाग भी उसकी सीमा में आ गया। वैसे वरणा शब्द एक वृक्ष का भी नाम होता है। प्राचीनकाल में वृक्षों के नाम पर भी नगरों के नाम पड़ते थे जैसे कोशंब से कौशांबी, रोहीत से रोहीतक इत्यादि। अतः यह संभव है कि वाराणसी और वरणावती दोनों का ही नाम इस वृक्ष विशेष को लेकर ही पड़ा हो।

वाराणसी नाम के उपरोक्त कारण से यह अनुमान कदापि नहीं लगाना चाहिये कि इस नगर के से उक्त विवेचन से यह न समझ लेना चाहिए कि काशी राज्य के इस राजधानी शहर का केवल एक ही नाम था। अकेले बौद्ध साहित्य में ही इसके अनेक नाम मिलते हैं। उदय जातक में सुर्रूंधन (अर्थात सुरक्षित), सुतसोम जातक में सुदर्शन (अर्थात दर्शनीय), सोमदंड जातक में ब्रह्मवर्द्धन, खंडहाल जातक में पुष्पवती, युवंजय जातक में रम्म नगर (यानि सुन्दर नगर), शंख जातक में मोलिनो (मुकुलिनी) नाम आते हैं। इसे कासिनगर और कासिपुर के नाम से भी जाना जाता था। सम्राट अशोक के समय में इसकी राजधानी का नाम पोतलि था। यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि ये सभी नाम एक ही शहर के थे, या काशी राज्य की अलग-अलग समय पर रहीं एक से अधिक राजधानियों के नाम थे।

काशी(वाराणसी) या बनारस अब प्रधान मंत्री का लोकसभा क्षेत्र है इसलिए उम्मीद बनी हुई है कि अब यह भी अपनी पौराणिकता बनाये हुये smart city बनेगा। Metro दौडने लगेगी चौराहों पर लगने वाले जाम कल की बात हो जायेगी। पर्यटन को बढावा मिलेगा। शिक्षा का केंद्र बना रहेगा। बुनकरों को नई जिंदगी मिलेगी।

भगवान बस अब तुम इतना करना कि जो होना है वो 2019 तक हो जाए। गंगा जो मैली हो गई है पुनः निर्मल हो जाए और अविरल बहती रहे।बनारस शहर भी Smart City बन ही जाए।

धन्यवाद मित्रों।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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स्कूल बैग ले भागो की भागमभाग शुरू हो गई..........







गर्मी की छुट्टियों की छुट्टी हो गई
क्लास अपनी दुबारा शुरू हो गई
सुबह सुबह से उठो चलो ये करो वो करो
स्कूल बैग ले भागो की भागमभाग शुरू हो गई..........









Kanpur Smart City

Kanpur Smart City


Smart Cities in UP(India): Kanpur
British Time Spelled as Cawanpore

Kanpur भी smart city बन ही जाएगा अगर मोदीजी की मानें तो। पर एक शर्त है कि बीजेपी को कम से कम अगले चुनाव में विजय दिला देना। डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी जी को अगले चुनाव में हरा देना और मोदीजी को चुन लेना।जोशी जी ग्यानी ध्यानी और पढ़े लिखे हैं। राजनीति में पढ़े लिखे लोगों के लिए गुंजाइश नहीं है।

कानपुर एक वो शहर है जिसने गंगा जी का कूड़ा किया है। है तो पुराना शहर जाना माना अपने कपड़ा उद्योग के लिए। ब्रिटिश वक्त में इसे मैनचेस्टर के नाम से जाना जाता था। उससे पहले इसका ऐतिहासिक दर्जा भी प्राप्त है। रानी झांसी का बचपन यहीं बिठूर में नानाजी के यहाँ गुजरा था।

उद्योग की भरमार के कारण भीड़भाड़ और मारामारी लगी ही रहती है। ठेला ठिलया जाम एक आम बात। गंदगी तो यहाँ की नस नस में रमी बसी है।

जूता और टेनरी का काम इतना बढ़ा कि गंगा की रेड़ मार दी। आज कानपुर बीमार है। लचीली कानून व्यवस्था और राजनीतिक दलों की मारामारी चलती ही रहती है।

यहीं से शुरुआत हुई लाल झंडे वालों की ट्रेड यूनियन लीडर बनर्जी साहब की। बस जेके सिंहानिया उद्योग एक एक कर बीमार होते गये और कानपुर बर्बाद होता रहा। सरकारी आर्डनेंन्स फैक्टरियों ने जान फूंकने की कोशिश की पर वो पुराना कानपुर कभी गरिमापूर्ण स्थान प्राप्त न कर सका।

कानपुर में चारों तरफ से लोग आये और बस गये। भीड़ बढ़ती रही। नये नये स्कूल कॉलेज भी खुले पर सब कम पड़ते रहे। फिर भी बहुत सहारा दिया उत्तर प्रदेश को आगे आगे बढ़ने में।कहने को यहाँ IIT & HBTI भी है वह भी आज के जमाने का नहीं जब से भारत में IIT की शुरुआत हुई थी।

ग्रीन पार्क क्रिकेट का मक्का बन गया जब जस्सू पटेल ने एक इनिंग में आस्ट्रेलिया के नौ विकेट लिए और उस टेस्ट में पालीउम्रीगर की कप्तानी में जीता। गावस्कर की ससुराल भी यहीं कानपुर में ही है।

और भी बहुत कुछ है कानपुर में जैसे ठग्गू के लड्डू और जेके मंदिर, फूल बाग इत्यादि। देश विभाजन के बाद बहुत लोग पाकिस्तान से आकर बस गये और कानपुर में आया फैशन का ट्रेंड। लड़के लडकियों की सोच में आया बदलाव। कानपुर माडर्न हो चला।

सक्सेना कायस्थों का गढ़ भी कहलाता है कानपुर। कान्यकुब्जी ब्राम्हणों का भी जोर है उन्नाव जिले और देहात कानपुर की बजह से।

कपडे का थोक मार्केट बना तो और दूसरे क्षेत्रों में तरक्की हुई।

रेलवे स्टेशन के पास बस उड्डे का क्या कहना कीचड से आप अगर बच पायें तो आठवाँ अजूबा ही होगा। अब गनीमत है कि राज्य सरकार ने बस अड्डा हटा दिया है। पर टैक्सी स्टैंड तक पहुँचना अपने आप में एक बहुत बड़ा काम है।

पुराने जमाने का पनकी बिजलीघर है जो धुआँ ज्यादा ऊल है बिजली कम पैदा करता है। नार्दन रेलवे का सबसे बड़ा तेल डिपो भी है यहीं पनकी में। प्रसिद्ध हनुमान जी का मंदिर भी है पनकी में। उन्ही की कृपादृष्टि बनी हुई है कानपुर पर।

मस्ती का आलम यह है कि लोग मस्त रहते हैं। होली में रंग होली बीत जाने के सात दिन तक खेला जाता है। बाजार में से निकलते हुए आप बच नहीं सकते हैं।

अब कानपुर भी स्मार्ट हो जायेगा। मेट्रो चलने लगेगी। लोगों को रोजगार मिलने लगेगा। उन परिवारों को नई जिंदगी मिलेगी जिनकी अगली पुश्त को नौकरी की तलाश में कानपुर छोड़कर जाना पड़ा था।

चलो जो हो अच्छे के लिए हो। सब चलेगा।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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झोंपड़ी के टक्कर में हवेली हार जाती है !!!


जिंदगी कहीं जीतते जीतते हार जाती है
जिदंगी कहीं हारते हारते जीत जाती है
कमरों में रहने वाले बेफिक्र सुख़नवर 
झोंपड़ी के टक्कर में हवेली हार जाती है !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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bye bye.....






क्यों बुलाया था
जब अकेले ही जाना था
bye bye......
 

Agra Smart City



Agra Smart City



Smart Cities in UP(India): Agra

हक़ अगर किसी का था तो वो अपने आगरे का था कि मोदी सरकार इसे हिन्दोस्तान का पहला Smart City बनाये। आखिर राजधानी रहा है हिन्दोस्तान का अपना आगरा। गौरवशाली इतिहास है इसका। आज भी दुनियां का tourist आता है तो सबसे पहले अपने आगरे में ही ताजमहल देखने। वक्त ने करवट ली और शाहजहां ने दिल्ली का लालकिला क्या बनबा दिया कि सल्तनत फिर आगरे और दिल्ली से होती रही।लोग भूल गये देखने के लिए बहुत कुछ है यहाँ एक ताजमहल के सिवा।
ऐतमाउद्दौला का मकबरा
सिकंदरा अकबर का मकबरा
लालकिला
जामा मस्जिद
रामबाग
दयालबाग
शाहजहां गार्डन
और भी तमाम ऐतिहासिक इमारतें बिखरी पडीं आगरे भर में।

पूड़ी कचौड़ी और चाट देशी घी के बने खाने पीने के सामान पेठे और दालमोंठ का केन्द्र है अपना आगरा।सेठ गली की चाट और मेंगोशेक।

नान वैज का ऐसा कोई खास पकवान नहीं जिसे आगरे की पहचान बताया जा सके।हाँ खानापीना सस्ता इतना कि हिन्दुस्तान में इससे सस्ता और कहीं हो नहीं सकता। बहरहाल जूते का कारोबार खूब चला। सोने और चांदी के वर्क का काम भी खूब होता है यहाँ।

इलाज और सस्ते इलाज के लिए जाने वाला आगरा अब Health Care में पिछड़ने लगा है।

कुछ सालों में बिजली तो ठीक हुई है लेकिन पानी को लेकर चिंतायें बढ़ गईं हैं।

किनारी बाज़ार की रौनक और सेव के बाज़ार की ठसक आज भी अपनी जगह बना लेती है यहाँ आने जाने वाले के दिल में।आगरे का पागलखाना भी फेमस है।

चलो देर आयद दुरुस्त आयद। अब भी यहां कुछ हो जाये तो बड़ी बात है।

बृजभाषा चप्पे चप्पे पर मिल जायेगी सुनने को। लखनऊ वालों को खटकती है यहाँ के रहने वालों के दिल में बसती है।

आगरा का मूल निवासी कभी आगरा नहीं कहेगा। उसके मुँह से आगरे ही निकलेगा। आ+गिरे तब जाके बना आगरे।

बहुत उम्मीद है कि आगरे का कुछ होगा।मेट्रो चलेगी ट्रैफिक कुछ ठीक ठाक होगा। तब तक सड़क और चौराहों पर जूतमपैजार होता ही रहेगा। और नहीं अब अपना आगरा भी smart होगा।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Lucknow Smart City



Lucknow Smart City

Smart Cities in UP(India): Lucknow

बड़ी खबर चल रही है सत्ता के गलियारों में कि नबाबों का शहर अब Smart बनने चला है।

इस खबर को सुनके उनको बड़ा सदमा हुआ है कि अब उनके तांगो का क्या होगा? बग्घी जो रखी हैं, उनका क्या होगा? अरबी घोडों का क्या होगा? और क्या होगा जिदंगी का जिसे रफ्ता रफ्ता चलने की आदत सी हो गई है।

हज़रतगंज और कैशरबाग की उन शामों का अब क्या होगा? दिल जो धड़कते थे वहाँ, अब उनका क्या होगा?

काफी कुछ तो बदल ही गया था, जो थोड़ा बहुत बचा था, उसका अब क्या होगा?

टुन्डे के कबाब और शेखावत की बिरयानी का क्या होगा? कैसरबाग में मामू-भान्जे के मकबरे के पास पारिक काफी थे उनका क्या होगा? हाईकोर्ट तो शिफ्ट हो ही रहा है। भातखंडे संगीत महा विद्यालय के कत्थक का क्या होगा? आर्ट्स कालेज और आईटी कालेज का अब क्या होगा? सुभाष होस्टल के पास खड़े होने वाले मजनुओं का अब क्या होगा? केजी मेडिकल कॉलेज का नाम सत्ता परिवर्तन के साथ बदल जाता है, उसका क्या होगा? इमामबाड़ों पर बेमतलब ताले जड़ दिये जाते हैं थे उनका क्या होगा?

लखनऊ नया हो रहा है। मेट्रो चलने वाली है। बगैर टिकट चलने वालों का अब क्या होगा? जगह जगह पान की पीक करने वालों का अब क्या होगा?

तहजीब के लिए जाने पहचाने वाले इस शहर का slogan अब क्या होगा? मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं, अब उसका क्या होगा?

अमीनाबाद, गड़बड़झाले की भीड़भाड़ वाले इलाके में भी नजरें चार करने वालों का अब क्या होगा?

"यह कौन सी फिरदौस हैं जिसे हम नहीं जानते हैं ", कहने वालों का अब क्या होगा?

गरीबों के लिए खजाने खोलने वाले और काम करा के पगार देने वाले और रात के साये में फिर गिराने वालों के अदब का हाल अब क्या होगा? न जाने कितने गरीबों को अमीर बनते हुये देखने वाले लखनऊ को अमीर से गरीब बनते हुये देखने वालों का हाल न जाने क्या होगा?

स्मार्ट बन रहा है, लखनऊ भी अब। जो भी होगा अच्छा होगा। कभी बैलगाडी, कभी हाथी, कभी साइकिल की सवारी पर चलने वाले लखनऊ का हश्र न जाने अब क्या होगा?

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
 

मन ही मन गज़ल जो गुनगुना रहे हो...


कलम से____

इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो
राज़ क्या है जो छिपा रहे हो
ज़ाहिर कर दो तो हम जानें 
मन ही मन गज़ल जो गुनगुना रहे हो...

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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उठ जा, अब तू जाग री।




कलम से ____

उठ जाग री,
देख आज की
भोर है कितनी सुहावनी,
एक-एक कर तारे
सब डूबे,
नद की परछाईं में देख,
सूरज ने दे दी है दस्तक,
अब तू जाग री ।

रन्नो, तू सो रही है,
अभी भी उठ,
उठ जाग री ।

हरियौं ने शुरू
किये अपने करतब,
अमियाँ टपका दी हैं कितनी,
जा उठ दौड़ ले आ
कोई और ले जाऐगा,
फिर कदुआ कैसे बनेगा
अरहर की दाल में भी पड़नी है,
जा भाग री ।

मेरे भाग्य काम बहुतेरे हैं करने,
काम ही काम हैं फैले हुए,
कुछ हाथ आज बंटा री।

सब कुछ बाँट,
जो है मेरा ले सब बाँट रे,
ले मेरा,
भाग भी बाँट री।

उठ जा, अब
तू जाग री।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Alalhabad Smart City


Smart Cities in UP(India):Allahabad

खबर पुरानी है, कुछ पर बहुत पुरानी भी नहीं।

उत्तर प्रदेश की सरकार दुविधा में है कि इलाहाबाद को अब smart city बनाना है। परंतु यहाँ की मुख्य ऐतिहासिक विरासतों के संरक्षण के लिए क्या किया जाए।

सबसे प्रमुख चिंता का विषय बने हुए यहाँ के मदिरालय, जिनसे प्रेरित हो कर 'मधुशाला' महाकाव्य लिखा गया।उसके मूल स्वरूप को राष्ट्रीय धरोहर मान कर कैसे सुरक्षित रखा जाए।

सरकार की तरफ से दिए गये एक बयान में जनता जनार्दन को सूचित किया जाता है कि एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है जो इस विषय से संबंधित सभी मामलों पर विचार कर अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश करेगी।

इस बात का पूर्ण ख्याल रखा जाएगा कि दोनों प्रकार के दारू (देशी तथा विदेशी) अड्डों पर लोग खुले आम दारू खरीद सकें और सभी संसाधन दुकानों के पास उपलब्ध हों जैसे कि पकौडों की दुकान, मीट/मछली के कबाब की दुकान, सोडावाटर इत्यादि की दुकान।रिक्शे खडे करने की उचित व्यवस्था भी की जाएगी जिससे वो लोग जो पीकर टुन्न हो जाते हैं अपने घर तक आराम से जा सकेंगे। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि इन सारी गतिविधियों पर पुलिस प्रशासन कोई भी कार्रवाई नहीं कर सकेगा। महिलाओं के लिए विशेष प्रबंध किये जायेंगे।

सूचना: कृपया इस नोट को सीरियसली न लें यह एक व्यंग्य मात्र है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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