Wednesday, July 15, 2015

दास कबीर जतन करि ओढी ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥




झीनी झीनी बीनी चदरिया
झीनी झीनी बीनी चदरिया॥

काहे कै ताना काहे कै भरनी 
कौन तार से बीनी चदरिया॥

इडा पिङ्गला ताना भरनी
सुखमन तार से बीनी चदरिया॥

आठ कँवल दल चरखा डोलै
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया॥

साँ को सियत मास दस लागे
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया॥

सो चादर सुर नर मुनि ओढी
ओढि कै मैली कीनी चदरिया॥

दास कबीर जतन करि ओढी
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥

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