Thursday, July 2, 2015

उठ जा, अब तू जाग री।




कलम से ____

उठ जाग री,
देख आज की
भोर है कितनी सुहावनी,
एक-एक कर तारे
सब डूबे,
नद की परछाईं में देख,
सूरज ने दे दी है दस्तक,
अब तू जाग री ।

रन्नो, तू सो रही है,
अभी भी उठ,
उठ जाग री ।

हरियौं ने शुरू
किये अपने करतब,
अमियाँ टपका दी हैं कितनी,
जा उठ दौड़ ले आ
कोई और ले जाऐगा,
फिर कदुआ कैसे बनेगा
अरहर की दाल में भी पड़नी है,
जा भाग री ।

मेरे भाग्य काम बहुतेरे हैं करने,
काम ही काम हैं फैले हुए,
कुछ हाथ आज बंटा री।

सब कुछ बाँट,
जो है मेरा ले सब बाँट रे,
ले मेरा,
भाग भी बाँट री।

उठ जा, अब
तू जाग री।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

No comments:

Post a Comment