Saturday, September 27, 2014

सारे सपने वहाँ रहते थे जहाँ तुम रहते थे....

कलम से_____

सारे सपने वहाँ रहते थे
जहाँ तुम रहते थे........

जीवन बदल गया है
जो तुम्हारी आँखों में दिखता था
वह सपना बिखर गया है
जो अपना लगता था
दूर हो गया है
कुछ साल पहले तक सपने अपने थे
अब सपने बंट गए हैं
कुछ वहाँ
कुछ यहाँ
रह गए हैं
सपनों की नगरी
मुम्बई
सागर तट ऊँची ऊँची बिल्डंगे
बड़ी बड़ी गाडियाँ
बड़े बड़े लोग
रहते सब वहाँ।

अंधेरा छटा
सबेरा हुआ
अब सब नहीं भागते
वहाँ कुछ और नया हुआ है
पूना बंगलूरु हैदराबाद दिल्ली
में ऐसा कुछ हुआ हैै
लोग यहाँ देखते हैैं
आशा के दीप हर रोज़ यहाँ जलते हैैं
लोग रोज़गार की तलाश में
यहाँ आते हैैं
फिर यहीं के बन रह जाते हैैं
कुछ के सपने बनते
कुछ के बिखरते हैैं ।

कुछ लोग अभी रुके हैं
अपने परिवार
अपनी सरजमीं से जुड़े हैं
उनके सपने उनके अपने हैं
सुकून उनको वहीं है
जो उनके पास है
वह और किसी के पास नहीं है।

इस चलती फिर थी दुनियाँ में
जो जहाँ है
उसका जहां वहीं है।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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