Wednesday, October 14, 2015

ज़िन्दगी ठहरी हुई है कहने को कुछ शेष नहीँ है......

इंसानों की बस्ती
हुई अब बदनाम बहुत है
ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है......



कलम से____

ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है.....

निशब्द हो चला हूँ मैं
बात करने लायक नहीँ हूँ
ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है

रोज़ होते देखता रहा हूँ
पाप इस जगमग सी हवेली में
कातर निग़ाहों से बचा कुछ नहीँ है
कहने को कुछ शेष नहीँ है

मुस्कान मृदुल बारम्बार उसकी
छा जाती है मानस पटल पर
भयभीत थी वह अन्जान जग़ह पर
करती क्या जब ज़ुबाँ ख़ामोश है?

इंसानों की बस्ती
हुई अब बदनाम बहुत है
ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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