Tuesday, January 13, 2015

दुनियां सिमट कर indoor हो गई है

कलम से____

दुनियां सिमट कर
indoor हो गई है
धूप भी झांकती नहीं है
उन दरीचों के पीछे से
बस निगाहें ही
झांका करतीं हैं
बाहर की तरफ
कब
यह कुहासे की भाप
जो हो गई जमा
शीशों से हटे

नाम तुम्हारा जो
कभी रेत पर लिखके
मिटा दिया करता था
लिख दिया है
कुहासे पर......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
 

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