कलम से____
क्रदन से हुई शुरुआत इस जिदंगी की
माँ की आँखों से छलके दो बूँद खुशी के
फिर क्या था, आवागमन लगा रहा
खुशियाँ आतीं रहीं, जातीं रहीं
जीवन उतार चढ़ाव में उतर गया
शुरू हुआ मांगने का सिलसिला
आजतक न जो खत्म हुआ
हर रोज खड़े रहते हैं
कभी यहाँ कभी वहाँ
कुछ और नहीं तो तेरे यहाँ
हाथ जोड़, यह दे दो कभी वह दे दो
लेने देने का व्यापार यूँही है चलता रहता
होता बंद उस दिन, जिस दिन
साथ लेकर तू चल देता
देना है, अब तो ज्ञान दे
कुछ और अब न दे
जो तेरा है तू लेले
मेरा मुझको देदे
कृपा तू इतनी कर दे
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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