कलम से______
चाहतें हर रोज़ बढ़ती हैं
जा रहीं
कभी इधर कभी तू उधर चल
कहता है मेरा मन
पाँव है कि रुकते ही नहीं
चल चला चल
छाँव जहाँ मिल जाए
आँचल की ठहर जाना
बस वहीं
जा रहीं
कभी इधर कभी तू उधर चल
कहता है मेरा मन
पाँव है कि रुकते ही नहीं
चल चला चल
छाँव जहाँ मिल जाए
आँचल की ठहर जाना
बस वहीं
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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