कलम से____
शाम होते ही
धुआं धुआं सा हो जाता है
कहने को
बहुत कुछ है
जो यह कह जाता है
दिल के किसी कोने में
धुआं धुआं सा आज भी रहता है
पीछे से कोई
झांक कर यह कहता है
भूल न जाना मुझे
मैं भी हूँ यहाँ
बसेरा था, कभी मेरा यहाँ
कैसे भूल जाऊँगा
कोहरे भरी शाम
हाथों में ले हाथ
हम निकल पड़ते थे
अपनों ही से नहीं
सबसे छिपते फिरते थे
चाँदनी में रुखसारों के
पीछे से तुम निहारा करते थे
दिन सुहाने
मंजर रंगीन हुआ करते थे
वो भी क्या दिन थे
कुछ अजीब से
हुआ करते थे
फुर्र से जोड़ा
कबूतर का उड़ पेड के पीछे से
निकल जाता था
चौंकाने
के लिए हमें काफी था
नदी के साज
पर मल्लाह
गीत गाता था
हवा के हर झकोले पर
तेरा बदन मेरी बाहों
में झूल जाता था
तसुब्बरात की परछाइयाँ
उभरतीं थीं
अपनेआप में
न जाने कितनी कहानियाँ
बयां करतीं थीं
धुआं धुआं सा हो जाता है
कहने को
बहुत कुछ है
जो यह कह जाता है
दिल के किसी कोने में
धुआं धुआं सा आज भी रहता है
पीछे से कोई
झांक कर यह कहता है
भूल न जाना मुझे
मैं भी हूँ यहाँ
बसेरा था, कभी मेरा यहाँ
कैसे भूल जाऊँगा
कोहरे भरी शाम
हाथों में ले हाथ
हम निकल पड़ते थे
अपनों ही से नहीं
सबसे छिपते फिरते थे
चाँदनी में रुखसारों के
पीछे से तुम निहारा करते थे
दिन सुहाने
मंजर रंगीन हुआ करते थे
वो भी क्या दिन थे
कुछ अजीब से
हुआ करते थे
फुर्र से जोड़ा
कबूतर का उड़ पेड के पीछे से
निकल जाता था
चौंकाने
के लिए हमें काफी था
नदी के साज
पर मल्लाह
गीत गाता था
हवा के हर झकोले पर
तेरा बदन मेरी बाहों
में झूल जाता था
तसुब्बरात की परछाइयाँ
उभरतीं थीं
अपनेआप में
न जाने कितनी कहानियाँ
बयां करतीं थीं
दूर बहुत दूर
निकल आये हैं
अंधेरा है बढ चला
चलो वापस चलें हम अपने यहाँ
शुरू हुआ था सफर
चल चलें हम फिर वहाँ।
निकल आये हैं
अंधेरा है बढ चला
चलो वापस चलें हम अपने यहाँ
शुरू हुआ था सफर
चल चलें हम फिर वहाँ।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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