कलम से____
मैय्या मोरी मोय आजकी छुट्टी दैदे
हाथ पांव जड़ाय रये हैं
जमुना किनारे कछु दिखात नांय है
गोपियां सिगरी कहुं और चलीं गई हैं
अकेलौ एक मैं रह गयो हूँ
तू चाहे तो माखन मत दीजो
द्विव एक दिना की छुट्टी हमकों अब दैदे
गंइयन को तू कोय संग पठय दै
आज बस तोरे संग रहूँगो
घेर में ही हुडुदंग करूँगो
सुन कान्हा की भोलीभाली बतियां
मैय्या उठ कान्हा कंठ लगायो
हाथ पांव जड़ाय रये हैं
जमुना किनारे कछु दिखात नांय है
गोपियां सिगरी कहुं और चलीं गई हैं
अकेलौ एक मैं रह गयो हूँ
तू चाहे तो माखन मत दीजो
द्विव एक दिना की छुट्टी हमकों अब दैदे
गंइयन को तू कोय संग पठय दै
आज बस तोरे संग रहूँगो
घेर में ही हुडुदंग करूँगो
सुन कान्हा की भोलीभाली बतियां
मैय्या उठ कान्हा कंठ लगायो
(कुछ लीक से हट कर अगर अटपटा लगै तो क्षमा)
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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