Friday, July 14, 2017




A book:-
"एक थे चन्द्रचूड़ सिंह"
Written by Mr.S.P Singh, President, Zephyr Limited.
Price:Rs.125/= only
Published By
Zephyr Entertainment Private Limited,
B-13A, Institutional Area,
Sector-62, Noida (U.P.)-201301
www.zephyr.co.in
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लेखन के क्षेत्र में अब श्री एस पी सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इन्होंने अब तक अँगरेजी और हिन्दी में अनेक धारावाहिकों, कहानियों की रचना की है। चाहे दो धड़कते दिलों में मुहब्बत का सैलाब हो या देश अथवा समाज के विभिन्न वर्गों में एकता स्थापित करने की बात हो, इनकी लेखनी से ये विषय बच नहीं सके हैं। देश की आज़ादी और अँगरेजी हुकूमत से पहले और अँगरेजी हुकूमत के दौरान भी भारत छोटे छोटे राज्यों और रियासतों में बँटा था। इन राज्यों और रियासतों पर राजाओं और रजवाड़ों की हुकूमत चलती थी। रजवाड़े अपने तौर तरीक़ों से शासन चलाते थे। प्रस्तुत धारावाहिक “एक थे चंद्रचूड़ सिंह” में कांकर, उत्तर प्रदेश के स्थानीय राजपरिवार का विशद वर्णन है। उनके रहन सहन, शासन शैली, प्रजा के प्रति आत्मीयता, के दर्शन इस पुस्तक में बहुत ही सुंदर ढंग से मिलते हैं। श्री एस पी सिंह के लेखन में मुझे एक विशेषता बार बार परिलक्षित होती है और वह है दो विपरीत समुदायों में एकता स्थापित करने का भरपूर प्रयास जो कि वर्तमान समय में आवश्यक प्रतीत होता है। कुँवर अनिरुद्ध का विवाह भोपाल की रहने वाली मुस्लिम शाही परिवार सबा से होता है और दोनों परिवार बिना किसी हिचक इस रिश्ते को क़ुबूल करते हैं और दोनों परिवारों में मेलमिलाप का सुखद वातावरण बनता है। 

स्वयं चंद्रचूड़ सिंह की तीन रानियाँ हैं जिनमें एक हैं गौहर बेगम। इन तीनों रानियों में पारिवारिक प्रेम और सामंजस्य एक मिसाल है। कहीं भी इस बात की झलक नहीं मिलती कि यह प्रेम थोपा गया है। तीनों में वैचारिक समानता के धरातल पर पारिवारिक निर्णय लिए जाते हैं। इसके साथ ही राजपरिवार की राजनीतिक आकांक्षा के दर्शन भी हमें इस पुस्तक में मिलते हैं। कुँवर अनिरुद्ध के लिए राजनीति विलासिता का साधन नहीं है बल्कि प्रजा के प्रति समर्पण है। कुँवर का राजसी रहन सहन सार्वजनिक हित के काम में बाधक नहीं बनता है। इस धारावाहिक में हमें सत्तर के दशक की राजनीतिक हलचल भी सुनाई देती है जो नवोदित पीढ़ी के लिए जानकारी का साधन है। 

पुस्तक का विधिवत् अध्ययन हमें सच्चे प्रेम, प्रजा वात्सल्य, एक दूसरे के प्रति आदर और सम्मान के पाश में इतना बाँधे रखता है कि पाठक पुस्तक का ओर-छोर पढ़े बिना रह नहीं सकता। कहानी में अविरल प्रवाह है जो समूची कथा को सुपाठ्य और बोधगम्य बनाने में सक्षम है। आशा है कि पाठक श्री एस पी सिंह की इस नवीन रचना का आनंद उठाएँगे। सच तो यह है कि यह पुस्तक उनके व्यापक अनुभव और इतिहास के गहन अध्ययन तथा अथक परिश्रम का फल है। किसी भी रचना की सफलता तो उसके पाठकों पर निर्भर है और पाठक इस कृति को अपने स्नेह से वंचित नहीं करेंगे।

राम शरण सिंह

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