Wednesday, February 19, 2020

एक थे चन्द्रचूढ़ सिंह ------ एस पी सिंह

एक 
थे
चन्द्रचूड़ सिंह
( पार्ट I )

एस. पी. सिंह
अस्वीकारोक्ति
मैं एतदद्वारा घोषणा करता हूँ कि इस पुस्तक में वर्णित व्यक्ति और घटनाएँ काल्पनिक हैं| वास्तिविक जीवन से इनका कोई सरोकार नहीं हैं| तथापि पुस्तक में उल्लिखित यदि किसी व्यक्ति या घटना का वास्तविक जीवन से सम्बन्ध है, तो यह मात्र संयोग माना जाये|
अपनी बात:
आप सभी मित्रों की कृपा से गत दिनों में आप सभी के सहयोग से मेरे दोनों कथानक ‘रिंनी खन्ना की कहानी’ एवम ‘मैं उसकी ख्वाहिश हूँ’ फेसबुक पर धारावाहिक रूप में प्रकशित हुए और आशातीत सफलता प्राप्त की। हमारी अन्य पुस्तकें अब Amazon पर ‘ऑन लाइन’ भी उपलब्ध हैं, इसके साथ-साथ आप इन्हें ‘ज़फायर एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड’ से आप इन्हें हार्ड/सॉफ्ट कवर में भी प्राप्त कर अस्कते हैं।
फेसबुक पर धारावाहिक प्रस्तुतीकरण में उपरोक्त दोनों रचनाओं ने एक इतिहास तो कायम किया ही साथ ही साथ साहित्य जगत में इस उपन्यास की भूरि-भूरि प्रशंशा भी हुई। इसी क्रम में यह कृति “एक थे चंद्रचूड सिंह” अब आपके कर कमलों में प्रस्तुत है, आप पूर्व की भांति इस रचना को भी अपना पूरा प्यार देंगें ऐसी हमारी अभिलाषा है।
कहानी के विषय में यहाँ इतना ही कहना अधिक होगा कि राजा रजवाड़ों की कहानियाँ हमेशा से ही लेखन क्षेत्र में आकर्षण का केंद्र रहीं हैं।​ यह कथानक अवध क्षेत्र उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर ‘कल’ जो बीत गया और ‘आज’ जिसमें हम सभी जी रहे हैं दोनों को ही बहुत खूबसूरती के साथ लेकर लिखा गया है।​ यह एक अनूठा प्रयास है। अपने आप में यह बिलकुल ही नई किस्म की रचना है।
अपनी बात यहीं समाप्त करते हुए बस यही उम्मीद है कि आप इस कथानक को पढ़ें और आनंद उठायें।​
बस इतना ही......
धन्यवाद,
गाज़ियाबाद एस पी सिंह
10-07-2017
प्रस्तावना
लेखन के क्षेत्र में अब श्री एस पी सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इन्होंने अब तक अँगरेजी और हिन्दी में अनेक धारावाहिकों, कहानियों की रचना की है। चाहे दो धड़कते दिलों में मुहब्बत का सैलाब हो या देश अथवा समाज के विभिन्न वर्गों में एकता स्थापित करने की बात हो, इनकी लेखनी से ये विषय बच नहीं सके हैं। देश की आज़ादी और अँगरेजी हुकूमत से पहले और अँगरेजी हुकूमत के दौरान भी भारत छोटे छोटे राज्यों और रियासतों में बँटा था। इन राज्यों और रियासतों पर राजाओं और रजवाड़ों की हुकूमत चलती थी। रजवाड़े अपने तौर तरीक़ों से शासन चलाते थे। प्रस्तुत धारावाहिक “एक थे चंद्रचूड़ सिंह” में कांकर, उत्तर प्रदेश के स्थानीय राजपरिवार का विशद वर्णन है। उनके रहन सहन, शासन शैली, प्रजा के प्रति आत्मीयता, के दर्शन इस पुस्तक में बहुत ही सुंदर ढंग से मिलते हैं। श्री एस पी सिंह के लेखन में मुझे एक विशेषता बार बार परिलक्षित होती है और वह है दो विपरीत समुदायों में एकता स्थापित करने का भरपूर प्रयास जो कि वर्तमान समय में आवश्यक प्रतीत होता है। कुँवर अनिरुद्ध का विवाह भोपाल की रहने वाली मुस्लिम शाही परिवार सबा से होता है और दोनों परिवार बिना किसी हिचक इस रिश्ते को क़ुबूल करते हैं और दोनों परिवारों में मेलमिलाप का सुखद वातावरण बनता है।
स्वयं चंद्रचूड़ सिंह की तीन रानियाँ हैं जिनमें एक हैं गौहर बेगम। इन तीनों रानियों में पारिवारिक प्रेम और सामंजस्य एक मिसाल है। कहीं भी इस बात की झलक नहीं मिलती कि यह प्रेम थोपा गया है। तीनों में वैचारिक समानता के धरातल पर पारिवारिक निर्णय लिए जाते हैं। इसके साथ ही राजपरिवार की राजनीतिक आकांक्षा के दर्शन भी हमें इस पुस्तक में मिलते हैं। कुँवर अनिरुद्ध के लिए राजनीति विलासिता का साधन नहीं है बल्कि प्रजा के प्रति समर्पण है। कुँवर का राजसी रहन सहन सार्वजनिक हित के काम में बाधक नहीं बनता है। इस धारावाहिक में हमें सत्तर के दशक की राजनीतिक हलचल भी सुनाई देती है जो नवोदित पीढ़ी के लिए जानकारी का साधन है।
पुस्तक का विधिवत् अध्ययन हमें सच्चे प्रेम, प्रजा वात्सल्य, एक दूसरे के प्रति आदर और सम्मान के पाश में इतना बाँधे रखता है कि पाठक पुस्तक का ओर-छोर पढ़े बिना रह नहीं सकता। कहानी में अविरल प्रवाह है जो समूची कथा को सुपाठ्य और बोधगम्य बनाने में सक्षम है। आशा है कि पाठक श्री एस पी सिंह की इस नवीन रचना का आनंद उठाएँगे। सच तो यह है कि यह पुस्तक उनके व्यापक अनुभव और इतिहास के गहन अध्ययन तथा अथक परिश्रम का फल है। किसी भी रचना की सफलता तो उसके पाठकों पर निर्भर है और पाठक इस कृति को अपने स्नेह से वंचित नहीं करेंगे।
बेंगलूरु राम शरण सिंह
10-07-2017
“एक थे चन्द्रचूड़ सिंह”
रामनवमी के सुअवसर पर राजा चंद्रचूड़ सिंह सूर्य महल के एक छोर पर बने मंदिर में पूजा अर्चना करने गए हुए थे और दूसरी ओर गौहर बेग़म भगवान राम जन्म के उपलक्ष्य में भजन गाने में तल्लीन थीं।
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियां।
किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय धाय मात गोद लेत दशरथकी रनियां।
अंचल रज अंग झारि विविध भाँति सो दुलारि तन मन धन वारि वारि कहत मृदु बचनियां।
विद्रुमसे अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर सुभग नासि कामें चारु लटकत लटकनियाँ
तुलसीदास अति आनंद देख के मुखारिंद रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां।
रामनवमी का त्यौहार चैत्र शुक्ल की नवमी में मनाया जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था।
राम जन्म कथा:
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेता युग में रावण के अत्याचारो को समाप्त करने तथा धर्म की पुन: स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था. श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था
रामनवमी पूजन:
रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदू धर्म की सभ्यता में महत्वपूर्ण रहा है। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है।
रामनवमी का महत्व:
यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते हैं।
आज का दिन गौहर बेग़म के लिये रामनवमी के साथ इसलिये भी महत्वपूर्ण था कि आज संध्या काल में राजा साहब नौ दिनों के बाद उनसे मिलने आने वाले थे।
अब आप "एक थे चन्द्रचूड़ सिंह" कथानक पढ़िए और आनंद लीजिये।
धन्यवाद। एस.पी.सिंह


कथांश:1

वर्ष-1943, यूनाइटेड प्रोविंस

राजा चंद्रचूड सिंह ‘कांकर’ रियासत अवध क्षेत्र के जनपद रायबरेली के दक्षिण में और प्रतापगढ़ जनपद (अब उत्तर प्रदेश) के उत्तरी दिशा में स्थित ‘कांकर’ गाँव के रहने वाले थे। उनके पूर्वज करौली रियासत, जनपद धौलपुर (राजस्थान) से तक़रीबन तीन सौ साल पहले यहाँ आये थे और यहाँ आकर उन्होंने गंगा के पूर्वी तट पर अपनी एक आलीशान पाँच आँगन वाली हवेली और एक शिव मंदिर की स्थापना की और साथ ही साथ गंगा के किनारे किनारे कई एकड़ जमीन भी खरीद ली, जिस पर खेती बाड़ी की जाने लगी। आम, अमरुद, आँवला, अनार और फलदार लगाकर बाग़ बगीचे भी लगवा दिए। खादर की जो ज़मींन थी, उसमें तालाब बना कर मछली पालन का काम भी साथ ही साथ शुरू करा दिया जो बाद में मालगुजारी के लिहाज़ से रियासत के लिए वरदान साबित हुआ और साथ में आसपास के किसान और दलित परिवारों के लिए रोज़ी रोटी का भी एक अमूल्य संसाधन बना जिससे इस परिवार की प्रतिष्ठा को चार चाँद लग गए।

ब्रिटिश हुक़ूमत के दिनों में इस परिवार के मुखिया ने बाद में यहाँ के आसपास के चौरासी गाँव की ज़मींदारी खरीद ली इस तरह उनके परिवार के मुखिया को राजा का दर्जा हासिल हो गया और उनके खून का रंग भी ‘लाल’ से ‘नीला’ हो गया। इस तरह वे भी राज परिवारों की लंबी जानी मानी फ़ेहरिस्त में शामिल हो गए।

चन्द्रचूड़ सिंह ‘कांकर’ रियासत के आखिरी अधिकृत राजा थे जिनका राज्याभिषेक स्वयं उनके पिताश्री राजा चूड़ावत सिंह जी ने अपने कमलों से कर उन्हें गद्द्दीनशीं किया था और उसके तुरंत बाद वे वानप्रस्थ आश्रम के लिए अपनी पत्नी रानी महिमा सिंह के लिए प्रस्थान कर गये।

कांकर में एक प्रचलित किवदंती के अनुसार कुंवर चंद्रचूड़ सिंह का विवाह रायबरेली जनपद की खजूरगाँव रियासत की राणा जितेन्द्र नारायण सिंह ‘देव’ जी की एकमात्र पुत्री राजकुमारी करुणा सिंह के साथ अपने बाल्यकाल में किये गए वचन को निभाते हुए कर दिया था परंतु जब राजकुमारी कांकर पधारीं तो उनके सांवले रंग रूप होने के कारण वे रानी महिमा सिंह और कुंवर चंद्रचूड सिंह के मन को न भाईं। अपने पिताश्री के वचन का पालन करते हुए तथा अपनी कुलपरम्परा का मान सम्मान रखते हुए अपने पिताश्री को यह वचन दिया कि वे कभी भी राजकुमारी करुणा सिंह को कोई कष्ट न होने देंगे और उनके मान सम्मान में कोई कमी नहीं आने देंगे पर साथ ही उन्होंने उस समय अपने पिताश्री से इस बात के लिए अनुरोध भी किया कि वे उचित समय पर अपनी मनपसंद का एक विवाह और करना चाहेंगे, परंतु इस बात को सुनकर राजा चूड़ावत जी बहुत दुखी हुए और उन्होंने उसी क्षण वानप्रस्थ आश्रम जाने का निश्चय कर लिया।

वर्ष-1970 के बाद

राज परिवार के वर्तमान मुखिया चन्द्रचूड़ सिंह जी जो अपनी दो धर्मपत्नियों महारानी करुणा देवी और छोटी रानी शारदा देवी के साथ कांकर गाँव में ही अपनी नदी किनारे वाली हवेली, जिसका नामकरण पूर्व में ही “सूर्य महल” कर दिया गया था, रहते थे। उनके महारानी करुणा देवी से एकमात्र पुत्र अनिरुद्ध सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से फिजिक्स में एमएससी करने के बाद अमेरिका से एप्लाइड फिजिक्स में रिसर्च हेतु कोलंबिया यूनिवर्सिटी गए हुए थे और छोटी रानी से एकमात्र पुत्री शिखा डीयू के मिरांडा हाउस से बीएससी करने के लिये दिल्ली में थी। इसके अलावा चन्द्रचूड़ सिंह को अपनी जवानी के दिनों चौक़, लखनऊ की नाचने वाली गौहर जान से जब वह एक जलसे में कांकर आईं तो इस कदर प्यार हो गया की फिर गौहर बेग़म बन कर वहीं सूर्य महल के पास ही नदी के किनारे बने एक अलग भवन जिसका नाम ही ‘ऐश महल’ था, वहाँ रहा रहने लगीं। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि उस वक़्त की अवध की अन्य रियासतों की तरह ही चन्द्रचूड़ सिंह जी की ज़िंदगी भी बड़े ऐशो आराम से गुजर रही थी जिसमें काम धाम कम ऐश, मौज मस्ती और खाना पीना अधिकायत से था। आये दिन कभी इस रियासत के तो कभी किसी दूसरी रियासत के राजा आ जाया करते और नाच गाना खाना पीना चलता रहता। उनके इन्हीं शौकों की बदौलत कभीकभी तो चन्द्रचूड़ सिंह जी के यार दोस्त इंग्लैंड वग़ैरह से भी आकर खूब मौज किया करते थे।

कांकर कहने को तो एक गाँव था पर एक बार आप ‘सूर्य महल’ में दाखिल हुए नहीं कि फिर आपको नहीं लगेगा कि आप किसी छोटे मोटे गाँव में हैं चूंकि महल में सुख सुविधा के सभी सामान उपलब्ध थे।

अचानक एक दिन सुबह सुबह ऐश महल से राजा साहब के लिये बुलावा आया कि गौहर बेग़म ने उन्हें याद किया है। कुछ देर बाद राजा साहब ऐश महल आ पहुंचे और गौहर बेग़म से पूछा, “बेग़म ऐसा क्या हो गया कि आज आपने सुबह सुबह याद किया”

“जल्दी में तो नहीं है न आप”, गौहर बेग़म ने बड़ी अदा से राजा साहब से पूछा।

“नहीं कोई खास नहीं, आज हमें लखनऊ जाना था राजकुमारी शिखा आज दिल्ली से आ रहीं है उनको लेना था और कुछ अदालत का ज़रूरी काम भी निपटाना था”

“क्या मैं भी आपके साथ चल सकती हूँ?”

“चलिये, अगर आपकी यही मर्ज़ी है तो चलिये”

“....और भी कोई जा रहा है आपके साथ”

“छोटी रानी साहिबा साथ में रहेंगी”

“तो फिर आप उन्हीं के साथ जाइये, मेरा उनके साथ जाना ठीक नहीं रहेगा”

“आप फिर कभी चली चलिएगा”

“जी यही बेहतर होगा”

“ये तो बताइए कि आपने हमें याद क्यों किया था”

“रहने भी दीजिये, छोड़िए भी”

“नहीं नहीं अब रहने भी दीजिये”

“अगर आप नहीं बतायेंगी तो मेरा मन उलझा रहेगा”

“बस आपकी याद आ रही थी और कुछ नहीं”

“आप बताना नहीं चाह रही हैं तो और बात है, वैसे आप कुछ भी कह देंगी तो हमारे मन को तसल्ली बनी रहेगी”

“मुझे पता लगा था कि आप बाहर जाने वाले हैं बस सोचा था कि हम भी सैर सपाटे पर आपके साथ चले चलेंगे, चलिए फ़िलहाल आज आप चलिए हम बाद में कभी फिर चले चलेंगे और कोई खास बात नहीं थी। आप लखनऊ जा ही रहे हैं तो एक काम करियेगा कि हमारे लिए भी कुछ लेते आइयेगा”

"क्या यह तो बताइए?"

"हाय अल्लाह अब हमारी हैसियत यह हो गई है कि हमें यह बताना होगा कि क्या"

“जी अगर आप कुछ भी नहीं कहना चाह रही हैं तो ठीक है, हम अपनी मन मर्ज़ी के माफ़िक कोई माकूल चीज लेते आएंगे। अब इज़ाज़त दीजिये देर हो रही है"

"खुदा आपका ख़्याल रखे और सफर कामयाब रहे", कह कर गौहर बेग़म ने राजा चन्द्रचूड़ सिंह को विदा किया.....

क्रमशः

कथांश:2

लखनऊ में राजा चन्द्रचूढ़ सिंह अपनी बेटी शिखा से जब मिले तो उन्हें पहली बार लगा कि उनकी बेटी यकायक बड़ी हो गई। हर पिता की तरह उनके मन के एक कोने में चितां होने लगी कि अब शिखा के लिए भी उचित वर ढूँढ़ने की कोशिशों को और तेज करना पड़ेगा। चन्द्रचूढ़ सिंह और छोटी रानी शारदा देवी अपनी बेटी को साथ ले अपने कैसरबाग निवास स्थान 'कांकर हाउस' में रुके। कैसरबाग के परकोटे में अवध की रियासतों के लिये उनके रुतबे के लिहाज से रिहायसी इंतज़ाम गुज़रे वक़्त में ही इंतज़ामिया द्वारा कर दिया गया था कि जब कभी वे लोग यहाँ आएं तो अपने ही निवास स्थान पर आराम से रुकें।

राजा चन्द्रचूड़ सिंह पूरे परिवार सहित शाम को अपने मित्र राजा साहब माणिकपुर के निवास ‘माणिकपुर हाउस’ में उनसे सपरिवार मिलने गए। दोनों परिवारों में अच्छा मेलजोल था इसलिये कोई औपचारिकता की आवश्यकता ही नहीं थी। राजा साहब माणिकपुर मानवेंद्र सिंह और उनकी धर्मपत्नी महारानी रत्ना देवी ने उन लोगों की खूब आवभगत की। शाम के समय जब सभी लोग साथ बैठे हुए थे महारानी रत्ना ने शिखा से खूब खुल कर बात की और उसके शौक़ वग़ैरह और उसका आगे क्या करने का इरादा है इत्यादि विषयों पर विस्तार से पूछताछ की। बातचीत में राजा साहब मानवेंद्र सिंह ने पाया कि राजकुमारी शिखा अत्यंत मेधावी और अपने लक्ष्य पर अर्जुन की निग़ाह रखने वाले व्यक्तित्व की धनी और सर्वसम्प्पन्न युवा है, उनके मन में बस यही चल रहा था कि क्या अभी बात करना उचित होगा या फिर कुछ समय इंतज़ार किया जाय।

इतने में राजा चन्द्रचूढ़ सिंह ने कुँवर महेंद्र के महेंद्र के बारे में पूछा कि वह आजकल वह कहाँ हैं और उनका क्या करने का इरादा है? राजा साहब मानवेंद्र सिंह ने बताया कि आजकल महेंद्र इंग्लैंड गये हुए हैं और लग रहा है वह वहीं से अपनी डॉक्टरेट पूरी करेगा। रानी शारदा देवी ने महारानी रत्ना की ओर देखा और यह प्रस्ताव रखा कि दोनों राजपरिवारों के बीच हम लोगों के जितने मधुर संबंध हैं अगर हम इन रिश्तों के कोई नया नाम दे पाएं तो उन्हें बड़ी प्रसन्नता होगी। महारानी रत्ना ने इस बात पर उत्साहित होते हुए कहा, “रानी शारदा देवी आपने तो हमारे मुहँ की बात छीन ली, मुझे शिखा बेटी बहुत पसंद है”

राजा साहब चन्द्रचूढ़ सिंह ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “कुँवर महेंद्र का भी कोई जबाब नहीं वह तो हमारी आँखों के भी तारे हैं”

बातचीत में दोनों ओर से ऐसी बातें कहीं गईं जिससे यह साफ हो गया कि वे लोग कुँवर महेंद्र के साथ राजकुमारी शिखा के विवाह की बात सोच रहे हैं।

राजा मानवेंद्र सिंह ने यह प्रस्ताव रखा कि जब अबकी बार छुट्टियों में ये दोनों बच्चे यहाँ हों तो इन लोगों को कुछ वक़्त साथ साथ बिताना चाहिये जिससे कि वे आपस में एक दूसरे को समझ सकें और जब इन दोनों का एक दूसरे में रुझान हो तभी आगे कोई बात करना उचित होगा।

यह सब चर्चा चल रही थी और राजकुमारी शिखा चुपचाप दोनों ओर की बातें बड़े ध्यान से सुनती रहीं पर उन्होंने अपनी ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी। लग रहा था कि उनके मन में कुछ और ही चल रहा था।

देर रात जब वे सब कांकर हाउस लौटे तो घर के केअर टेकर ने बताया कि ऐश महल से फोन आया था और बेग़म साहिबा पूछ रहीं थीं, "कांकर हुज़ूर कहाँ हैं?"

"तो तुमने क्या कहा?" राजा चन्द्रचूड़ सिंह ने पूछा।

"मैंने उन्हें बता दिया कि आप रानी साहिबा ओर राजकुमारी जी के साथ माणिकपुर हाउस गए हैं और देर रात गए ही लौटेंगे"

"फिर उन्होंने क्या कहा?"

"कहने लगीं कि कोई बात नहीं"

इसके बाद बात आई गई हो गई पर जब राजा साहब और रानी साहिबा सोने के लिये बिस्तर पर लेटे हुए थे तो रानी शारदा देवी ने अपने दिल की बात बड़ी शालीनता से रखी और कहा, "बड़ी चिंता करतीं हैं आपकी बेग़म साहिबा, बहुत आशिक़ाना जो है आपसे। लगता है कि एक रात भी वह आपके वगैर नहीं रह सकतीं हैं"

राजा साहब ने रानी को अपनी बाहों में लेते हुए कहा, "हमें तो सभी प्यार करते हैं क्या आप नहीं करतीं हैं?"

"एक मिनिट रुकिये पहले मेरी इन तीन उंगलियों में से कोई एक पकड़िए", और यह कहते हुए रानी साहिबा ने अपने दाएं हाथ की तीन उंगलिया राजा साहब के सामने कर दीं।

"यह क्या मज़ाक है रानी शरद जी?"

"आप एक पकड़िए तो सही"

राजा साहब धर्म संकट में थे कि क्या करें क्या न करें इसी पशोपेश के बीच उन्होंने तर्जनी उंगली पकड़ी और रानी साहिबा के चेहरे के भाव को पढ़ने की कोशिश करने लगे।

तभी रानी साहिबा खुशी से झूम उठीं और बड़े प्यार से बोलीं, "हम तो आपको दिलोजान से चाहते हैं पर हम यह नहीं जानते थे कि आपके दिल के सबसे करीब कौन है? आज आपने मेरी तर्जनी पकड़ कर यह साबित कर दिया कि आपके करीब कोई भी रहे पर दिल पर राज हमारा ही चलता है। हम आज अपने आप को बहुत खुश किस्मत मानते हैं। अब बताइये कि हम आज आपको कैसे खुश करें?"

"इधर और करीब आइए", राजा साहब ने रानी साहिबा को अपनी बाहों में लेते हुए कहा, "जरा इधर करीब तो आइए और अब बताइये कि आप हमें कितना प्यार करतीं हैं?"

क्रमशः

कथांश:3
अगले दिन राजा साहब रानी शारदा देवी और शिखा के साथ कचहरी गये और अपने वकील विवेक कुमार सिंह से मिले। मंदिर के ट्रस्ट की ज़मीन के सम्बंध में जो मुक़द्दमा इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में लंबित था उसके सम्बंध में जानकारी हासिल की। विवेक ने उन्हें आश्वासन दिया कि चिंता की कोई बात नहीं है और यह भी कहा कि वह निश्चिंत रहें।
विवेक कुमार सिंह की ससुराल भी पास के जिले रायबरेली के 'गढ़ी' गाँव के ठाकुर साहब के यहाँ थी और दोनों परिवारों में उठना बैठना था इसलिये राजा साहब ने विवेक को निमंत्रण देते हुए कहा, “जब कभी ससुराल आना जाना हो तो हमारे गरीब खाने पर भी आओ एक दिन शाम को कुछ खाने पीने का मज़ा लिया जाय”
विवेक ने अपनी ओर से वायदा किया कि अबकी बार जब गढ़ी जाना होगा तो एक रात वह सूर्य महल में ज़रूर ज़रूर आएंगे। दुआ सलाम के बाद राजा साहब जब हाई कोर्ट की बिल्डिंग से निकले तो रानी साहिबा ने पूछ लिया, “विवेक से तो आप बहुत घुल मिल कर बात कर रहे थे जैसे कि आपकी उनसे बहुत पुरानी जान पहचान हो”
“हाँ, इन लोगों से हमारे पारिवारिक सम्बंध हैं। विवेक से पहले इनके पिताश्री लक्ष्मण सिंह जी हमारे केस करते थे। अब वह हाई कोर्ट के जज हैं, इसलिए इन लोगों से बड़ी मदद मिलती रहती है”
“मुझे यह पता नहीं था, मुझे क्षमा करें”, रानी साहिबा ने कहा।
“अरे रानी साहिबा आप तो बेवजह तकल्लुफ़ कर रहीं हैं”
राजा साहब और सब लोग उसके बाद चौक़, लखनऊ के सबसे बड़े ज्वैलर्स खुन खुन जी के यहाँ आ पहुंचे और उन्होंने अपनी बेटी शिखा से कहा कि उसे जो सामान अच्छा लगे, वह अपने लिये ले ले। उसके बाद रानी साहिबा की ओर देखते हुए बोले, "आप भी कुछ अपने लिये पसंद कर लीजिए बार बार कहाँ आना हो पाता है। आज फ़ुर्सत से हैं लगे हाथ यह काम भो हो जाए"
रानी साहिबा ने राजा साहब के कहने पर एक माणिक जड़ाऊ सेट अपने लिये और उससे कुछ भारी सेट महारानी के लिए पसंद किया। राजा साहब ने जब पूछा, “कुछ और भी लेना हो तो ले लीजिए आज हम बहुत खुश हैं"
रानी साहिबा ने उत्तर में कहा, “नहीं आपका दिया हुआ सब कुछ है यह तो आपका दिल रखने भर के लिए ले लिया है और दूसरा सेट महारानी के लिये है”
“ये बात है तो आज हमारी भी एक फ़रमाइश पूरी कर दीजिए एक सेट गौहर बेग़म के लिये भी ले लीजिए”
“जो हुक़्म”, कह कर रानी साहिब ने अपनी टक्कर का एक सेट गौहर बेग़म के लिये भी ले लिया।
जब शिखा की पसंद के जवाहरात निकल आये तो वे तीनों लोग वहाँ से कांकर के लिये निकल लिये। देर शाम को वे लोग कांकर पहुंचे थे तो राजा साहब सबसे पहले महारानी के पास आए और उन्हें जो जवाहरात वे लखनऊ से उनके लिये लाये थे उनको देते हुए बोले, “यह आपकी छोटी बहन रानी साहिबा की पसंद है”
“वाह यह तो बहुत सुंदर है, आखिर वह हमारी छोटी बहन जो है वह हमारा ख़्याल नहीं रखेगी तो कौन रखेगा?", महारानी ने रानी शारदा देवी की प्रशंसा करते हुए कहा।
“ये बात तो है”, राजा साहब ने यह कहते हुए उनसे आज रात गौहर बेग़म के यहाँ रहने की इज़ाज़त मांगी।
“जाइये जाइये उनके सामने हमारी क्या बिसात?”, कहते हुए महारानी ने ताना कसा।
“ऐसी बात नहीं है आज रात उन्होंने हमें अपने पास बड़े प्यार से बुलाया है और हम उनसे यह वायदा भी कर चुके हैं”
“उनकी अदाओं का जबाब हम लोगों के पास कहाँ?”
“अगर आप हुक्म करें तो हम आपके पास ही रुक जाते हैं और उनसे हम कल माफ़ी मांग लेंगे”
“नहीं मैं तो बस आपको यूँही छेड़ रही थी, जाइये आप हमारी तरफ से बेफिक्र हो कर जाइये, आपके ऊपर उनका हमसे अधिक हक़ है”
“शुक्रिया”, कह कर महारानी के दाएं हाथ को राजा साहब ने चूमा और वहाँ से कार में बैठ कर वह ऐश महल की ओर निकल गए।



क्रमशः

कथांश:4
राजा साहब अपनी कार से उतर कर ऐश महल में भीतर चले गए और ड्राइवर राम सिंह ने गाड़ी महल के पोर्च में खड़ी कर दी।
राम सिंह के दो छोटे भाई श्याम सिंह और बदन सिंह महारानी और रानी साहिबा के व्यक्तिगत ड्राइवर थे। वे सभी महल के परकोटे में दूसरे सेवकों के साथ ही रहते थे। जब कभी गौहर बेग़म को गाड़ी चहिये होती थी तो श्याम सिंह या बदन सिंह में से कोई न कोई उनके साथ चला जाता था।
राजा साहब के इंतज़ार में नज़रें बिछाए हुए गौहर बेग़म ऐश महल के पश्चिमी हिस्से में उस जगह बैठीं हुईं थीं जहाँ से गंगा नदी की शांत बहती हुई जलधारा दूर तक नज़र आती थी। हवेली के पिछवाड़े से कोई भी सीधा सीढ़ियों से गंगा नदी की तलहटी तक जा सकता था। बरसात के दिनों में गंगा जब अपने पूरे शबाब पर होती तो हवेली की चार पांच सीढियां ही डूबने से बचतीं थीं। वर्षों पहले बनी हवेली में ऐसा एक बार भी नहीं हुआ कि गंगा चाहे जितने भी उफान पर हो और हवेली की सीढ़ियां पार कर हवेली की चारदीवारी तक उसका पानी पहुँच पाया हो। बनाने वालों ने इन सब बातों को ध्यान में रख कर ही यह हवेली नदी के किनारे एक पथरीले और ऊँचाई वाली जगह इस तरह बनाई थी कि गंगा के पानी की ठंडक भरी गर्मियों में भी हवेली के मौसम को कभी भी गरम नहीं होने देती थी। गंगा नदी हवेली के दो तरफ की चारदीवारी को छूती हुई बहती थी। शाम के वक़्त डूबते हुए सूरज का अक्स नदी के ऊपर इस क़दर डूबता था जैसे मानो कायनात सारे ग़म अपने दामन में सिमेट कर क्षितिज के पीछे चला जा रहा हो इस वायदे के साथ कि कल की सुबह हरेक की ज़िंदगी मे खुशियों की बहार ले कर आऊँगा।
हवेली में अंदर दाख़िल होते हुए राजा साहब ने गौहर बेग़म की खाला जान से पूछा, "ख़ानम जान आप ठीक से तो हैं न। कभी भी कोई तक़लीफ़ हो तो ख़ाकसार को याद करियेगा"
ख़ानम जान ने जबाब में कहा, "हुज़ूर आप ही तो हमारे सब कुछ हैं। आपका ही दिया हुआ खाते पीते हैं और ओढ़ते हैं। बाकी ऊपर वाले कि निगाहें करम बनी हुईं हैं। आपके फ़ज़ल से खुदारा सब ठीक है"
"बेग़म कहाँ तशरीफ़ रखतीं हैं?"
"बिटिया तो न जाने कब से आपके इंतज़ार में आँखिया बिछाए बैठी है। वहीं है, ऊपर वाली अटरिया में है"
"हम जाकर उनसे मिल कर उनकी ख़ैरियत का पता करते हैं, शुक्रिया ख़ानम जान", राजा साहब ने उनकी ओर देखते हुए कहा।
गलियारे से होते हुए हवेली के पिछवाड़े जाने वाली जीने के रास्ते तीसरी मंजिल पर बनी अटरिया में जब आ पहुँचे तो दरवाज़े की ओट से देखा तो गौहर बेग़म अपनी मधुर आवाज़ में ठुमरी दादरा गुनगुना रहीं थीं :
लागी बेरिया पिया के आवन की,
हो गई बेरिया पिया के आवन की,
दरवजवा पर ठाड़ी रहूँ
हो गई बेरिया पिया के आवन की,
रैन अंधेरी बिरहा की मारी,
रैन अंधेरी बिरहा की मारी
अँखियन बरने बूंदिया मानव की,
लागी बेरिया पिया के आवन की......
जैसे ही गौहर बेग़म की नज़र राजा साहब पर पड़ी तो उन्हें देख कर गौहर बेग़म के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। वे दौड़ कर राजा साहब के सीने से इस तरह चिपकीं जैसे कि एक महबूबा अपने महबूब से एक अरसे बाद मिल रही हो।
“गौहर जान हम आ गए हैं, आपके सामने हैं, आपके करीब हैं। देखिये तो सही ज़रा हमारी ओर….”, राजा साहब ने बहुत प्यार से सम्हाल कर उन्हें दीवान पर बिठाया ओर खुद भी उनके पास बैठ गए।
जब कुछ समय बीत गया और गौहर जान ने होश सम्हाला तो शिकायत के लहजे में बोलीं, “आप कहाँ थे आपके बिना हमारी न तो सुबह थी न कोई शाम। हमें इस कदर तन्हा छोड़ कर न जाया कीजिये”
“अब तो हम आपके करीब हैं। आपके पास ही तो हैं। आइये आप हमारे पास और पास आइये”
गौहर बेगम खिसक के राजा साहब के और करीब आ गईं तब उन्होंने अपने हाथों से उन्हें वह जड़ाऊ सेट पहनाया और कहने लगे, “ये आप पर खूब फबता है। इसकी खूबसूरती चौगुनी हो गई”
“है तो बहुत खूबसूरत, आपकी पसंद जो है, मुझे भी बेहद पसंद है”
“बेगम ये सेट आपकी बहन रानी साहिबा की पसंद का है उन्होंने ही यह आपके लिये भिजवाया है”
“अरे वाह फिर तो आप उन्हें हमारी तरफ से शुक्रिया कहियेगा”
राजा साहब धीरे से मुस्कुराये ओर मन ही मन प्रसन्न भी हुए कि उनकी दोनो धर्मपत्नियाँ इस मामले में कभी गौहर बेग़म को उतना प्यार और सम्मान देती हैं जितनी कि राजा साहब खुद देते हैं। राजा साहब को सोचते हुए देख गौहर जान ने पूछा, "शाम होने को है और हम यह चाहते हैं कि आप आज रात यहीं गुजारिये। हमने आज अपनी आँखों की चौके से उठते हुए धुँए के गुब्बार की भी चिंता किये वगैर आपके लिये बहुत बढ़िया पकवान बनाये हैं"
“आज हम आपके यहाँ ही रहेंगे, आपकी नज़रों के सामने ही रहेंगे”
“यह बताइये कि क्या पीजियेगा”
“जो आप पिलाएँगी”
“चलिये फिर नीचे ही दस्तरख़ान हॉल में चलते हैं आप वहीं आराम फरमाइयेगा और हमने आज एक ठुमरी तैयार की है वह हम आपकी खिदमत में पेश करने की इजाज़त भी चाहते हैं”
दस्तरख़ान हाल में आने के बाद राजा साहब आराम से बैठ गए और उनके हाथों में जाम थमा गौहर बेग़म सामने बैठ कर साजिंदों के सुर ताल पा ठुमरी गुनगुनाने लगीं….
हाँ हाँ
नज़र का वार था दिल कि तड़प ने छोल दी
चली थी बरछी किसी पर किसी को आन लगी
हो
नजरिया की मारी
हाय
नजरिया की मारी मरी मोरी गुईयाँ
कोई जरा जाके बैध बुलाओ
आके धरे मोरी नारी
हाय राम आके धरे मोरी नारी
नजरिया की मारी मरी मोरी गुईयाँ
नजरिया की मारी मरी मोरी गुईयाँ....
क्रमशः


कथांश:5

एक दिन की बात है राजा साहब महारानी करुणा देवी के साथ थे। महारानी ने राजा साहब से कहा, "राजा साहब आप सबकी मुराद पूरी करते हैं, क्या आप एक हमारी भी ख़्वाहिश पूरी करेंगे?"

"आप हुक्म तो करिये महारानी साहिबा आपके कहने भर की देर है"

"तो लीजिये पहले यह पढ़ लीजिये", कह कर महारानी ने एक किताब का एक मुड़ा हुआ पन्ना खोलते हुए किताब राजा साहब की ओर बढ़ा दी।

राजा साहब ने किताब हाथ मे लेकर पढ़ना शुरू किया:

उमरिया धोखे में खोये दियो रे।
धोखे में खोये दियो रे।
पांच बरस का भोला-भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो।
उमर सब ....
चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।
धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।
बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो।
लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।
बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो।
वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो।
न हरि भक्ति न साधो की संगत, न शुभ कर्म कियो।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुट गयो।


पूरी कविता पढ़ लेने के बाद राजा साहब ने महारानी से कहा, "जिस किसी ने भी लिखा है अच्छा लिखा है पर कबीर जी का लिखा हुआ तो नहीं है पर यही जीवन का सत्य है"

"किसने लिखा है वह तो हम भी नहीं जानते पर इधर कुछ दिनों से हमारा मन उचट रहा है। अगर आपकी इज़ाज़त हो तो हम पशुपतिनाथ जी के दर्शनार्थ नेपाल जाना चाहते हैं", महारानी ने राजा साहब से विनती की।

"जाइये, जाइये अवश्य जाइये हम राजा साहब माणिकपुर को फोन कर देंगे उनके छोटे भाई की ससुराल नेपाल के राणा अजेय सिंह के यहाँ है वे लोग आपकी सम्पूर्ण रहन सहन से लेकर नेपाल के दूसरे पूजा स्थलों के देखने की व्यवस्था करा देंगे। आप कब जाना चाहेंगी"

"हमारी इच्छा तो आपके साथ चलने की थी"

"महारानी आप अच्छी तरह जानती हैं कि जब तक कुँवर अपनी शिक्षा पूरी कर नहीं लौट आते हैं तब तक हम यह राजपाट छोड़कर कहीं नहीं जा सकते हैं"

महारानी ने हँसते हुए कहा, "हम आप से कौन सन्यास लेने के लिये कह रहे हैं, बस हम यही चाह रहे थे कि इस बार आप हमारे साथ देशाटन पर चलें"

"देखिये अभी हम न निकल सकेंगे चूँकि राजकुमारी शिखा भी अभी यहीँ हैं। आप ऐसा करिये अबकी बार आप घूम आइए हम अगली बार आपके साथ अवश्य चलेंगे"

"वायदा रहा"

"जी राजपूती वायदा रहा"

"तो हमारा इंतज़ाम करा दीजिये हम जितना भी जल्दी हो सके वहाँ के लिए निकलना चाहेंगे"

"जी समझिये कि आपकी तीर्थ यात्रा का इंतज़ाम हो गया"

क्रमशः

कथांश:6

कुछ दिनों के उपरांत महारानी करुणा देवी ने अपने ड्राइवर श्याम सिंह तथा एक सेवक संतू और सेविका रनिया के साथ नेपाल के लिए प्रस्थान किया।

काठमांडू तक की दूरी एक दिन में आराम से तय नहीं की जा सकती थी इसलिए राजा साहब ने महारानी के गोरखपुर में रुकने की व्यवस्था गोरक्षनाथ मठ के गेस्ट हाउस में करवा दी। जिससे कि महारानी को रास्ते में आराम रहेगा और इसी मंतव्य से मठाधीश मंहत जी का आशीर्वाद भी प्राप्त हो जाएगा। उनके अनुदेश की प्राप्ति पर पशुपतिनाथ के दर्शन और पूजा पाठ की भी उचित व्यवस्था हो जाएगी।

इधर सूर्य महल अब केवल रह गए थे राजा साहब, रानी शारदा देवी तथा राजुकुमारी शिखा।

राजा साहब सुबह सुबह से ही राजकुमारी के साथ व्यस्त रहते। कभी बैडमिंटन खेलना, तो कभी महल की छत से गंगा नदी के विस्तार के दृश्यों को देखना, कभी कभी उनके साथ अपने मछली पालन केंद्र को देखने चला जाना, नदी में नाव में सैर करना इत्यादि। कुल मिला कर राजा साहब और रानी साहिबा ने राजकुमारी शिखा के साथ बहुत अच्छा समय बिताया। दोनों ने मिलकर भरसक प्रयास किया कि उनकी पुत्री का मन कांकर में लगा रहे।

एक दिन तीनों पारिवारिक सदस्य गंगा किनारे बने शिव मंदिर पूजा अर्चना के लिये सुबह के समय ही आ गए। वहाँ पंडित विजय शाश्त्री जी ने बहुत भक्तिभाव के साथ राजपरिवार को पूजा पाठ कराया।

राजा साहब ने पंडित जी से प्रार्थना की, "पंडित जी आपतो बहुत ज्ञानी-ध्यानी हैं आज शिखा बेटी हमारे साथ बहुत समय बाद भगवान के दरबार मे आई है तो हम चाहते हैं कि हम सभी आपके श्रीमुख से भागवत पुराण की कोई कथा सुनें"

पंडित जी ने उत्तर में कहा, "महाराज, आपकी जैसी आज्ञा"

गणपति पूजन के साथ भागवत कथा का आरंभ आचार्य पंडित विजय शास्त्री जी महाराज के मुखारविन्द से कुछ इस प्रकार हुआ कि जिसमें सर्वप्रथम भगवत महाम्य, फिर परीक्षित श्राप व शुकदेव जन्म का वर्णन हो।

उसके बाद शाश्त्री जी ने कथा के अगले चरण में कहा कि भक्ति से ज्ञान, वैराग्य पैदा होता है, संसार में पुण्य कार्य करना चाहिए, पुरुषार्थ प्राप्त करने के लिए भगवान की आराधना करना चाहिए, जिससे भक्ति में वृद्धि होती है। शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षित से कहा कि भागवत अज्ञान से ज्ञान और सत्य की ओर ले जाने वाली है। संसार के प्राणी अनेक चीजों से पीडि़त है उसका एक ही समाधान है कथा का श्रवण करना, हरि नाम सिमरन करना, इससे संसार की चिंताएं दूर होती हैं, सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है।

कथा में व्यास जी के अनुसार कहा गया है कि भगवान की शरण में आने से मनुष्य का जीवन सार्थक हो जाता है, सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, व्याधियों और ङ्क्षचताओं का एक ही समाधान है श्रीमद्भागवत कथा सुनना। दैविक, भौतिक, तापों से जो पीडि़त है उनके कष्ट दूर हो जाते हैं।

विजय शास्त्री जी महाराज ने यह भी बताया कि भक्ति रूपी तत्व के जीवन में आने पर व्यक्ति का आत्मबल बढ़ने लगता है तथा प्रभु की कृपा होती है। इसलिए मानव को अपने जीवन में भक्ति भाव से ही रहना चाहिए।

उन्होंने संतों की महिमा बताते हुए कहा कि सच्चे संत के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के जन्म जन्मातरों के पाप नष्ट हो जाते हैं। आह्वान करते हुए उन्होंने ने कहा कि मनुष्य को निंदा चुगली से बचना चाहिए ताकि बुर व्यसनों में फंसकर जीवन व्यर्थ न जाए।

कथा के अंत में पंडित जी ने राजा साहब से मुख़ातिब होते हुए कहा, "महाराज अगर आपकी अनुमति हो तो अबकी बार शारदीय नव दुर्गा में हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी विशेष आयोजन किया जाय और अबकी बार हमारी इच्छा अवधूतमण्डलाश्रम, ज्वालापुर, हरिद्वार के प्रमुख श्री श्रीपति महाराज जी को आमंत्रित करने का मन बनाया है"

"अवश्य बुलाइये पंडित जी, अति उत्तम सुझाव है तब तक तो कुँवर अनिरुध्द भी अमरीका से वापस आ जाएंगे। आयोजन भव्य हो बस इसका विचार रहे"

"जी हम इसके लिए मुखिया जी से संपर्क कर पूरी व्यवस्था करा देंगे। महाराज हमें आपका आशीर्वाद शुरू से ही मिलता रहा है और हम आशा करते हैं कि भविष्य में भी आपका वरदहस्त बना रहेगा"

"प्रभु जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा", राजा साहब ने पंडित जी की ओर देखते बोले, "अब चलने की अनुमति दें"

"कल्याणमेवस्तु राजन", कह कर पंडित जी ने राजपरिवार को आशीर्वाद दिया और वे सभी सूर्य महल वापस आ गए।

क्रमशः



कथांश:7
शाम को मुखिया बहादुर सिंह, जो कि राजा साहब के महल के मुख्य कर्ताधर्ता थे, इस लिहाज़ से कि वही लठैतों से लेकर उगाही तक सारा कामकाज देखते थे, को बुला कर पूछा, "मुखिया जी आपने पता किया कि महारानी साहिबा गोरखपुर पहुँच गईं हैं या नहीं?"
"जी महाराज, मैंने आधा घँटे पहले महंत जी के कार्यालय में फ़ोन किया था तो पता लगा था कि तब तक महारानी साहिबा वहाँ नहीं पहुँची थीं"
"कुछ देर बाद दुबारा फ़ोन कर पता कर लीजियेगा और जैसे ही कोई खबर मिलती है तो मुझे बताइयेगा"
"जी महाराज"
"देखिये कल दस बजे पाण्डेय जी और अकाउंटेंट साहब को बुलवा लीजिएगा कल हिसाब किताब करना है और इनकमटैक्स के बारे में दरियाफ़्त करनी है। बारह बजे के आसपास कॉलेज के प्रिंसिपल को भी बुलवा लीजियेगा"
"जी महाराज"
इतना कह कर राजा साहब महल के ऊपरी भाग में चले गए। कुछ देर बाद आकर मुखिया जी ने महाराज को बताया कि महारानी साहिबा सही सलामत महंत जी के मठ में पहुँच गईं हैं।
"धन्यवाद मुखिया जी, मुझे उनकी चिंता थी। अगर दुबारा बात हो तो उनसे कहिएगा कि वे हमसे किसी समय आज नहीं तो कल प्रातः वहाँ से निकलने के पहले हमसे बात कर लेंगी"
शिखा भी राजा साहब के पास बैठी हुई थी जो राजा साहब की बात पर बोल उठी, "दुनिया में हर जगह मोबाइल चालू हो गया है। आप चलते फिरते कभी भी किसी से बात कर सकते हैं पता नहीं अपने देश में यह सब कब होगा?"
"होगा बेटी धीरे धीरे सब होगा अभी तो हम रेडियो और ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के ज़माने में ही लटके हुए हैं। टीवी के लिये भी कितना ऊँचा एंटेना लगाना पड़ता है तब जाकर कहीं थोड़ा बहुत पिक्चर दिखाई देती है", राजा साहब ने शिखा को समझाया।
बातों बातों में राजा साहब ने शिखा से पूछा कि वह हिंदुस्तान में अपना किस तरह का भविष्य देखती है। शिखा ने उत्तर दिया, "सबसे पहले तो वह बीएससी अच्छे नम्बरों से पास करना चाहती है उसके बाद ही वह यह सुनिश्चित करेगी कि उसे क्या करना है?"
"चलो अभी तो यह नज़रिया सही लग रहा है पर हर व्यक्ति को हमेशा अपनी तैयारी आने वाले कल को देख कर करनी चाहिए"
शिखा ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, "मेरा मानना है कि हरेक को अपने लिये छोट छोटे लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए और उनको पूरा करने के साथ साथ भविष्य की योजना बनाना चाहिए"
राजा साहब के साथ रानी शारदा देवी भी बैठीं हुईं थी। शिखा की बात पर बोल उठीं, "शिखा तुम बहुत भाग्यशाली हो कि तुम्हारे पिताश्री राजा साहब ने तुम सबको अपने अपने विचारानुरूप जीवन में तरक़्क़ी करने की स्वतंत्रता दी हुई है नहीं तो राजपूत परिवारों में लड़की जवान हुई नहीं कि उसके मातापिता उसके विवाह की चिंता करने लगते हैं"
राजा साहब ने रानी साहिबा से मुखातिब होते हुए कहा, "हमको भी शिखा बेटी के विवाह की चिंता होने लगी है इसीलिये तो उस दिन लखनऊ में राजा साहब माणिकपुर के पुत्र राजकुमार महेंद्र के बारे में जानकारी की थी"
रानी साहिबा ने अपनी बात रखते हुए कहा, "जी, अबकी बार छुट्टियों में जब कुँवर महेंद्र आएं तो हमें उन्हें अपने यहाँ बुलाना है, जिससे अपनी बेटी उनको समझ और परख सके"
"लेकिन रानी माँ मैं अभी शादी वादी के चक्कर में नहीं फँसने वाली हूँ, अभी तो मेरा सारा ध्यान अपनी पढ़ाई पर है"
"बेटी तू अपना काम कर और हमें अपना काम करने दे", कह कर रानी साहिबा ने फ़िलहाल इस बात को टालने की कोशिश की। जब यह सब बात चल ही रही थी कि मुखिया जी ने आकर बताया कि महारानी साहिबा का फोन आया है और वह महाराज से बात करना चाह रहीं हैं।
"फोन किस नंम्बर पर आया है?"
"महाराज नीचे ऑफिस वाले नंम्बर पर"
"चलिये हम वहाँ आ रहे हैं", कह कर रानी साहिबा की ओर देखते हुए राजा साहब नीचे की ओर जाने लगे।
शिखा ने रानी माँ से कहा, "कल मैं अपना पूरा एक दिन और एक रात ऐश महल में गुजारूँगी गौहर बेग़म माँसी के साथ। उनसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लगता है"
"चली जाना पर बस एक बार महाराज को बता देना। गौहर बीबी नेकदिल इंसान हैं। उनसे तू अदब और अवध की रवायत सीख तेरे जीवन में बहुत काम आएंगी"
"जी रानी माँ"
महारानी से बात करके जब राजा साहब लौटे तो उन्होंने रानी साहिबा को बताया, "गोरक्षनाथ मठ के महंत जी से भी हमारी बात हुई। उन्होंने हमें आस्वाशन दिया है कि वे महारानी का स्वयं ध्यान रख रहे हैं और कल अपना एक वरिष्ठ पुजारी भी महारानी के साथ काठमांडू भेज रहे हैं"
"जी यह तो बहुत अच्छा रहा अब दीदी को कम से कम रास्ते में कोई परेशानी नहीं होगी। पशुपतिनाथ महाराज के दर्शन और पूजा पाठ भी अच्छी तरह हो जाएंगे। आपकी सभी लोग बहुत इज़्ज़त करते हैं"
"रानी शरद जी हमने जीवन में यही कमाया है। आप भी तो हमें बहुत चाहती हैं। बताइये हम सही हैं या नहीं?'
"आप भी न बस हर समय कुछ न कुछ छेड़खानी करते रहते हैं'"
राजा साहब रानी साहिबा के उत्तर पर मुस्कुरा भर दिए।

क्रमशः
कथांश:8
भोर होते ही राजकुमारी ऐश महल बदन सिंह ड्राइवर के साथ आ पहुँची। चूँकि उन्होंने अपने आने की सूचना पहले ही करा दी थी तो गौहर बेग़म भी उनका नाश्ते की टेबल पर इन्तज़ार कर रहीं थीं। नाश्ते के साथ साथ बातचीत का दौर भी चल रहा था। शिखा ने अपने दिल की बात करते हुए गौहर बेग़म से कहा, "माँसी जान आपको अगर यह कहूँ कि रानी माँ के बाद अगर मैं कहूँ तो महल में सबसे अधिक आपको चाहती हूँ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी"
"मेरी बेटी मुझसे कहे कि वह मुझे सबसे अधिक प्यार करती है तो भला इसमें बुरा मानने की कौन सी बात है। सच में कहूँ तो हम औरतों की ज़िंदगी मे बहुत कुछ हर पल होता रहता है पर अगर मैं ये कहूँ कि मैं यहाँ आकर बड़े सुकून से हूँ तो तुम क्या कहोगी?"
"जी मैं कहूँगी कि आप इस सरज़मीं पर बहुत ही किस्मत वाली इंसान हैं"
"ठीक उसी तरह जैसे कि तुम कांकर हुकम की बेटी हो और हमारे दिल के बहुत करीब हो। सही कहूँ तो हमें तुम पर नाज़ है", गौहर बेग़म ने राजकुमारी शिखा का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए कहा और उनकी पेशानी बड़े प्यार से चूम कर दुआ दी कि वह हमेशा इसी तरह खुश रहें।
"मैं आपसे अगर गुज़ारिश करूँ कि एक बार मेरे साथ भोपाल चलिये तो आप मेरे साथ चलना पसंद करेंगी?"
"भला तुम कहो और हम मना कर दें यह तो हो ही नहीं सकता पर मुझे हुकम से पूछना पड़ेगा। भोपाल देखने का हमारा भी बहुत मन है। हमारी एक चचेरी बहन वहाँ रहती हैं पता नहीं अब वह किस हाल में हैं"
"यही तो मैं नहीं चाहती हूँ कि आप अभी पिताश्री को इसके बारे में कुछ भी बताएं"
"बेटी ये कैसे होगा? उनकी इज़ाज़त के बिना तो इस हवेली में एक पत्ता भी नहीं हिलता। पर तुम बताओ कि भोपाल चलने का मक़सद क्या है?"
"दरअसल हमारे साथ कि एक लड़की है जो भोपाल की रहने वाली है और वह बहुत ज़िद कर रही है कि मैं उसके साथ भोपाल चलूँ"
"तो जाओ न कौन रोक रहा है? मैं हुकुम से बात कर लूँगी"
"अभी नहीं बस आप वायदा करिये कि आप हमारे साथ चली चलेंगी"
"है तो बड़ी टेढ़ी खीर पर चल अपने बेटी के लिये इस राज़ को राज़ ही रखूँगी पर चल पाऊँगी या नहीं अभी कोई वायदा नहीं करती"
"फ़िलहाल चलिये इतना ही बहुत है"
इसके बाद राजकुमारी और गौहर बेग़म के बीच इस तरह बातचीत चली जैसे कि दो दोस्त मिल कर बातें करतीं हैं। राजकुमारी ने गौहर बेग़म को इस बात के लिये भी तैयार कर लिया कि वह उनके साथ हर शाम बैडमिंटन खेलने के लिये हवेली में आ जाया करेंगी।
जब शाम घिरने लगी तो राजकुमारी शिखा ने हवेली के ऊपरी हिस्से में चलने की फ़रमाइश की। गौहर बेग़म उन्हें लेकर सबसे ऊपर की अटरिया में ले आईं। शिखा तो गंगा नदी पर शाम कर गहराते रंगों को निहारती रहीं और जब पीछे मुड़ के देखा तो उन्हें लगा कि बेग़म कुछ उदास हैं। राजकुमारी उनके पास जा बैठीं और बोलीं, "माँसी जान आज कुछ सुनाइये हमारा मन बहुत कर रहा है एक अरसा हुए आपकी आवाज़ में कुछ सुने हुए"
"रहने भी दे मेरी राजकुमारी क्या करेगी ग़म के अफ़साने सुन कर"
"नहीं, नहीं मैं आपसे मिन्नत करती हूँ बस एक ग़ज़ल"
"साज और साजिंदे तो हैं नहीं चलो ऐसे ही कुछ गुनगुना देती हूँ'"
तू नहीं है तो मिरी शाम अकेली चुप है
याद में दिल की ये वीरान हवेली चुप है।
हर तरफ़ थी बड़ी महकार मेरे आँगन में
अपने फूलों के लिए मेरी चमेली चुप है।
बोलते हाथ भी ख़ामोश हुए बैठे हैं
इक मुक़द्दर की तरह मेरी हथेली चुप है।
भेद खुलता ही नहीं कैसी उदासी छाई
बूझ सकता नहीं कोई वो पहेली चुप है।
इतना हँसती थी कि आँसू निकल आते थे
'सबा' ये नई बात बहारों की सहेली चुप है।
ग़ज़ल सुनके राजकुमारी के मुहँ से निकला, "वाह वाह सुभानअल्लाह कितने सुंदर अल्फाजों से सजाया है आपने इस ग़ज़ल को और क्या सुर था मैं तो आप पर कुर्बान हो गई"
क्रमशः
सबा बेग़म की एक रचना।
कुछ कही कुछ अनकही सी बात:
हर कहानी कुछ कहने की कोशिश करती है। यह तो कहानी के पाठक के अपने विचारों पर निर्भर करता है कि किस कहानी से वह अपने लिये वह अपने भाग्य का क्या प्राप्त कर पाता है।
बचपन से ही हम लोग अपने दादा-दादी, नाना-नानी वगैरह से राजा रानी की कहानियाँ सुनते आए हैं 'एक थे चन्द्रचूड़ सिंह' भी उसी श्रंखला की एक कहानीमात्र है। केवल इसे मूर्त रूप देने के लिये कुछ विशिष्ट लोगों का नाम और कुछ ख़ास स्थान के नामों से जोड़ा गया है जिससे कि पाठकगण अपने आपको एक ऐसे धरातल से देख सकें जहाँ यह लगे कि ये चरित्र तो पहले कहीं देखे या सुने हैं।
अभी तक जो आपने देखा या पढ़ा है उसमें एक थे राजा चन्द्रचूड़ सिंह हैं जो अपनी तीन- तीन रानियों और पट रानियों के साथ बड़े आराम का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वहीं उनकी रानियां भी कितनी भाग्यशाली हैं कि उनके बीच कोई द्वेषभाव नहीं है और वे एक दूसरे के साथ आनंदपूर्वक रह रहीं हैं। लग रहा है सौतन की बात हवा हवा हो गई है।
इसी कहानी में यह भी दर्शाया गया है कि parental property आज से नहीं एक अरसे से महत्वपूर्ण रहीं हैं। बच्चे चाहें तो इन्हें और आगे बढ़ाए या ख़त्म कर दें। इतिहास भी उन्ही की क़दर करता है जो ईंट के ऊपर ईंट जोड़ता है।
इतिहास अनादि काल से ही इस बात का साक्षी रहा है कि जिस राजा के तीन रानियाँ रही हैं उनके जीवन में अभूतपूर्ण घटनाएं घटी हैं। वह चाहे राजा राम के तातश्री हों या चाहे चित्तौड़गढ़ के शासक महाराणा उदय सिंह। इस्लाम धर्म में भी शायद तीन निकाह की परंपरा भी इन्हीं पारवारिक क्लेशों के कारण चर्चा के विषयवस्तु बने रहे हैं।
इस कहानी के अगले घटनाक्रम अपने पाठक को कहाँ-कहाँ ले जाएँगे ये अभी से कहना मुश्क़िल है पर यह बात निश्चित है कि अभी बहुत कुछ घटने वाला है जिस पर आपकी पैनी नज़र बनी रहनी चाहिए।

आज का यह दिवस आप सभी के लिए हितकारी और शुभ हो यही हमारी कामना है......

कथांश:9

अगले दिन महारानी करुणा देवी काठमांडू देर शाम तक पहुँच गईं। उनके साथ महंत जी के एक वरिष्ठ सहयोगी तथा सेवक और सेविका भी साथ थे। वहाँ पहुंच कर वे सभी लोग राणा अजेय सिंह जी के निवास स्थान पर जाकर उनसे मिले। राणा जी ने सभी लोगों की व्यवस्था अपनी ही कोठी पर की हुई थी। सभी लोग लंबी यात्रा के कारण थकान महसूस कर रहे थे, अतः शाम होते ही पूजा पाठ, भोजन इत्यादि कर निवृत हो गए और अपने अपने कमरे में आराम करने चले गए। वैसे भी पहाड़ों में अँधेरा होते ही जीवन शांत सा हो जाता है। नेपाल के लिए वैसे भी एक कहावत प्रसिद्ध है कि 'जैसे ही हो सूर्यास्त उधर नेपाल मस्त'। मतलब अगर आप खाने पीने और कैसिनो जाने के जुआ खेलने के शौकीन हैं तो वहाँ की रातें रंगीन नहीं तो सूखी साखी सी।

कांकर में राजा साहब और रानी शारदा देवी अपनी पुत्री के साथ सुबह से ही अपने बाग़ बगीचे, मछली पालन केंद्र और कृषि फार्म की व्यवस्था का अवलोकन किया। दोपहर होते होते वे आम के बगीचे के बीचोबीच बने फार्म हाउस पर आराम करने के लिये आ पहुँचे। दोपहर के भोजन की व्यवस्था बहादुर सिंह मुखिया जी ने फार्म हॉउस पर ही कर रखी थी। मुखिया जी ने देशी घी में बनी दाल बाटी बनवा कर राजपरिवार के सदस्यों को खुश तो कर दिया और राजा साहब से वाह वाही लूटी पर वहीं वे मछली पालन केंद्र की अव्यवस्था के लिये डाँट-फटकार के पात्र भी बने।

राजा साहब ने उन्हें समझाया कि मछलियाँ अगर तालाब के एक टुकड़े में अधिक दिनों तक रहें तो उनकी बढ़ोत्तरी ठीक नहीं होती है। लिहाज़ा हर मत्स्य पालन केंद्र पर यह व्यवस्था की जाय कि एक हफ़्ते के बाद उनकी जगह बदल दी जाए। इस काम को सुचारू रूप से करने के लिये हर केंद्र पर एक लॉग बुक रखी जाए और उसमें से सैंपल मछली का वजन नोट किया जाय। मछली कितनी बढ़ी और अगर कोई कमी पेशी है तो उसके लिए दाने पानी की व्यवस्था ठीक की जय। राजा साहब ने उन्हें यह भी सलाह दी कि अबकी बरसात के दिनों में अपने गाँव की ओर से आने वाली बरसाती नदी पर बाँध बना लिया जाय जिससे कि किसी भी तालाब में सूखे की परिस्थिति में मछलियों को कोई नुकसान न हो।

हर हफ़्ते में दो बार मछली का जाल डाला जाय और फिर उन्हें बाद में रेलगाड़ी से कोलकता भेज देने की व्यवस्था की जाए।

राजा साहब ने मुखिया जी से कहा कि अबकी बरसात के सीजन में वे आसाम से बाँस की उत्तम वैराइटी का प्रबंध कर रहे हैं जिन्हें हर तालाब की मेढ़ पर लगा कर एक ओट जैसी पर्दी बना दी जाय जिससे कि गर्मियों में गरम हवाओं और आंधियों के समय पानी का भाप बन कर उड़ जाने पर नियंत्रत किया जा सके।

राजा साहब ने मुखिया जी से कहा कि पिछले वित्त वर्ष में मछली के व्यापार से रियासत को लगभग सवा करोड़ रुपए की लगान वसूली हुई थी। इस वित्त वर्ष में यह आय हर हालत में कम से कम बीस प्रतिशत बढ़ोत्तरी होनी चाहिए। इसी तरह आम के बगीचों में समय रहते दवाई का छिड़काव करा दिया जाय जिससे दशहरी, लंगड़ा और फज़ली आम की फसल पर कोई दुष्प्रभाव न हो। अबकी बार आसपास के गाँव वालों के यहाँ मुनादी करा दी जाय कि इस वर्ष से मार्च की पंद्रह तारीख़ को नीलामी होगी और जो सबसे अधिक बोली लगाएगा उसे ही दो साल के लगान पर बाग़ उठाये जाएंगे।

इसी तरह राजा साहब ने अमरूद, अनार और आँवला के बाग़ से भी लगान को बढ़ाने की सलाह ही नहीं दी बल्कि उन्हें यह भी कहा कि वे कुछ लीक से हट कर सोचें।

मुखिया जी ने राजा साहब की बातों को बहुत ध्यान से सुना और उनसे वायदा भी किया कि उनके सभी निर्देशों का पालन होगा।

राजकुमारी ने राजा साहब के साथ घूमते हुए महसूस किया कि उनके पिताश्री अपने हर काम पर कितनी पैनी नज़र रखते हैं तभी रियासत के ख़र्चे और आमदनी में सामजस्य बना है अन्यथा दूसरी रियासतों की तरह अपने यहाँ का भी हाल ख़राब हो सकता था। रियासत की आय ठीक है इसलिये राजपरिवार और उनके आसपास रहने वालों को सही देखरेख हो पा रही है। महलों और हवेलियों की साफ सफाई और रँग रोगन हो पा रहा है देखभाल हो पा रही है नहीं तो कभी के खंडहर हो गए होते।

दिन भर इधर उधर घूमने के बाद राजा साहब अभी-अभी सूर्य महल पहुँचे ही थे कि एक सेवक ऐश महल से भागा-भागा आया और उसने हाँपते हुए टूटी फूटी आवाज़ में राजा साहब को बताया कि गौहर बेग़म दुमंज़िले से नीचे गिर गईं हैं, बेहोश हैं और उनको बहुत चोट आई है। राजा साहब ख़बर सुनते ही परेशान हो गए और रानी शारदा देवी और राजकुमारी के साथ तुरंत ऐश महल आ पहुँचे। वहाँ पहुँच कर गौहर बेग़म की जो हालत उन लोगों ने देखी तो राजा साहब पल भर के लिये हक्के बक्के रह गए। उनकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय?

क्रमशः



कथांश:10

राजा साहब, रानी साहिबा और राजकुमारी ने गौहर बेग़म को अपने हाथों बहुत सम्हाल कर उठाया और उनको कार में लेकर वे लोग तुरंत ही राणा बेनी माधव सिंह जिला हस्पताल रायबरेली के लिये निकल पड़े क्योंकि वही एक आसपास ऐसी जगह थी जहाँ उनका प्राथमिक उपचार हो सकता था। 

निकलते निकलते राजा साहब ने मुखिया जी से कहा, "मुखिया जी आप चंदापुर कोठी फ़ोन कर बता दें कि हम गौहर बेग़म को लेकर आ रहे हैं कोठी से जाकर वे लोग डॉक्टर बोस को लेकर हमसे लगभग एक घँटे बाद सरकारी जिला हस्पताल में मिलें"

सरकारी हस्पतालों की जो हालत होती है वह सबको पता थी कि अगर पहले से न कहा जाय तो वहाँ किसी डॉक्टर के मिलने की उम्मीद ही कम थी इसलिये राजा साहब ने यह इंतज़ाम किया था।

वे लोग जब बीच रास्ते पहुँचे होंगे तब जाकर कहीं गौहर बेग़म ने आँख खोली और राजा साहब की तरफ इस कदर देखा कि जैसे पूछ रहीं हों कि उन्हें कहाँ ले जा रहे हैं? 

राजा साहब ने उन्हें इशारे से कहा कि वे चुप रहें और कुछ न बोलें खुदा सब ठीक करेगा। 

रास्ते भर राजा साहब भगवान से प्रार्थना करते रहे कि गौहर बेग़म को कुछ न हो और वे ठीक हो जायं। आज उन्हें पहली बार इस बात का अंदाज़ा हुआ कि ये महल, ये हवेली और ये राजपाट सब बेकार हैं जहाँ इंसान की हिफाज़त, देखभाल और इलाज़ के लिए कुछ भी इंतज़ामात आसपास न हों। उन्होंने इसी बात को सोचकर अपने गाँव में एक अच्छा हस्पताल खोलने का मन बना लिया था।

कुछ देर बाद उनकी कार रायबरेली की जिला हस्पताल के सामने आकर रुकी और तुरंत ही गौहर बेग़म को ने स्ट्रेचर पर लिटा कर डॉक्टर बोस और डॉक्टर मलिक उन्हें आपरेशन थिएटर में ले गए। लगभग एक घँटे की जद्दोजहद के बाद डॉक्टर बोस बाहर आये और उन्होंने राजा साहब को बताया कि चिंता की कोई बात नहीं है। बेग़म साहिबा के सिर में अंदरूनी चोट आई है और कूल्हे की हड्डी में क्रैक आ गया है। कूल्हे की हड्डी का आपरेशन तो कर दिया है पर उनके सिर की चोट का इलाज़ के लिये दवाई दे रहे हैं जिससे उन्हें उम्मीद है कि दिमाग के एक हिस्से को जो खून की सप्लाई नहीं हो पा रही है वह भी शीघ्र ही ठीक हो जाएगी।

राजा साहब ने डॉक्टर बोस से पूछा, "बेग़म ठीक तो हो जाएंगी"

"आप हम पर भरोसा करिये और उनके लिये ऊपर वाले से दुआ मांगिये। बाकी हम लोग कल उन्हें दुबारा चेक करेंगे"

"अगर आप कहें तो हम उन्हें मेडिकल कॉलेज लखनऊ ले जाएं" राजा साहब ने डाक्टर बोस से पूछा।

"अभी इसकी ज़रूरत नहीं है अगर ऐसी कोई बात होती तो हम ही आपको खुद सलाह देते। बाद में आप कभी उनका चेकअप एक बार मेडिकल कॉलेज में ज़रूर करवा दें" डाक्टर बोस ने राजा साहब से कहा।

डॉक्टर साहब की बात सुनकर राजा साहब की जान में जान आई। उसके बाद उन्हें सबके रुकने रुकाने की व्यवस्था के लिये चंदापुर के राजा साहब की कोठी में इंतज़ाम कराया और वे रात भर हस्पताल में ही रहे।
खजूरगांव कोठी के कुँवर वीरेंद्र विक्रम सिंह भी राजा साहब के साथ ही हस्पताल में रहे। राजा साहब ने कुँवर वीरेंद्र विक्रम से कहा कि वे अपनी बहन महारानी करुणा देवी का हालचाल ले लें और उन्हें भी खबर कर दें। महारानी करुणा देवी खजूरगाँव के राणा साहब की एकमात्र सन्तान थीं और कुँवर वीरेंद्र विक्रम सिंह राणा साहब के चचेरे भाई के पुत्र थे इसलिये वे कुँवर वीरेंद्र विक्रम सिंह की चचेरी बहन हुईं। कुँवर वीरेंद्र विक्रम ने राजा साहब को बताया कि उन्होंने करुणा को पहले ही ख़बर कर दी है और उम्मीद है कि वह कल सुबह नहीं तो दुपहर तक सीधे यहीं आएंगी।

राजा साहब ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा, "ये आपने ठीक किया" 

राजा साहब ने अपने मन की बात कहते हुए रानी शारदा और राजकुमारी शिखा से यह भी कहा कि परिवार के सभी सदस्य इस संकट की घड़ी में साथ रहते हैं तो एक दूसरे को संबल प्राप्त होता है।

राजकुमारी शिखा ने राजा साहब से कहा, "पिताश्री मैं और माँ दोनों ही गौहर माँसी को आपसे ज्यादा प्यार करते हैं आप चिंता न करें हमारी प्रार्थनाएं उनके साथ हैं उन्हें कुछ भी नहीं होगा"

बेटी के मुहँ से गौहर बेग़म के लिए इतने अच्छे उदगार सुनकर राजा साहब गदगद हो गए।

अगले दिन सुबह गौहर बेग़म साहिबा को डॉक्टर ओपेटेशन थिएटर ले गए उनकी पूरी जाँच की और उन्हें खतरे से बाहर घोषित किया। जब बेग़म गौहर ने आँख खोलीं तो सभी लोग उनके पास थे। गौहर बेग़म ने महारानी करुणा का हाथ पकड़ा और उनके पशुपतिनाथ महाराज के दर्शनों के बारे में जानकारी करनी चाही तो उन्होंने बताया कि वे उनके लिये वहाँ से प्रसाद ले कर आईं हैं, वे चिंता न करें भगवान सब ठीक करेगा।

इस बीच ख़ानम जान ने गौहर बेग़म का साथ एक मिनिट के लिये भी नहीं छोड़ा और वे साये की तरह उनके बराबर साथ बनी रहीं। ख़ानम जान ने अपनी ओर से ख़िदमत में कोई कसर नहीं की।

धीरे धीरे बेग़म की तबियत ठीक होने लगी और उन्हें एक हफ्ते बाद हस्पताल से छुट्टी मिल गई। राजा साहब उनको लेकर ऐश महल वापस ले आये। राजा साहब और सभी लोगों की प्रार्थनाओं का असर था कि गौहर बेग़म दो महीनों में बिल्कुल ठीक हो गईं। बस याद रहा तो बस इतना कि एक हादसा सा हुआ था और उन्हें चोट लग गई थी।

राजा साहब की तो दीन दुनिया ही मानो ठहर गई थी। जब बेग़म ठीक हो गईं तो उन्होंने होश सम्हाला।

इस बीच कुँवर छुट्टियाँ मिलते ही अमेरिका से कांकर आ गए थे। कांकर पहुँचने के बाद सबसे पहला काम जो किया वह था गौहर माँसी के लिये जो शाल लेकर आये थे उन्होंने खुद अपने हाथों से राजपरिवार के सदस्यों के सामने पहना कर ऊपर वाले से दुआ माँगी कि वे एक लंबी उम्र जियें और सदैव खुश रहें।

यदि दृष्य देख कर राजा साहब की आंखों में खुशी के आँसूं झलक आये।

क्रमशः

कुछ कही कुछ अनकही सी अपनी बात:

मित्रो यह स्मरण रहे कि जिस वक़्त का ऊपर ज़िक्र आया है यह लगभग 1971-72 का पीरियड था जबकि रायबरेली में मूलभत सुविधाएं नहीं थीं। वह तो नाम मात्र का एक पूरे जिले के लिये हस्पताल था। जिसमें डाक्टर भी कभी पूरे समय नहीं मिलते थे दवाइयों के मिलने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था।

रायबरेली, प्रतापगढ़ और मैंनपुरी जिले आय और तरक़्क़ी के हिसाब से बेहद पिछड़े हुए जिले थे। होटल के नाम पर बस एक हमारे मित्र लक्ष्मी शंकर पाण्डेय जी का 'लक्ष्मी होटल' बस अड्डे के पास था, जहाँ पेट भरने के लिये दाल सब्ज़ी और रोटी चावल मिल जाती थी। उस वक़्त बोतल वाली कोल्ड ड्रिंक क्या होती है शायद कोई भी नहीं जानता था और न वहाँ बिकती थी। हाँ, एक चीज जो बहुतायत में थी तो वह थी पान की दुकान और उस पर खड़े फालतू लोग जो राजनीति के ऊपर बहस के माहिर होते थे।

एक और चीज जो याद आ रही है वह थी वहाँ के गधे जिन की पीठ पर धोने वाले कपड़े लाद कर वहाँ के धोबी मुंशीगंज के पास सई नदी घाट तक ले जाया करते थे जो हैड पोस्ट आफिस के सामने ही खड़े दिख जाते थे।

एक चीज और याद आई वह थी राम कृपाल की दुकान की जलेबी और समोसे जो सुबह सुबह से मिलना शुरू होते थे तो शाम तक बेधड़क ख़ूब बिका करते थे। 

गर्मियों की छुट्टी में रिक्शे वाले फसल कटवाने के लिये अपने अपने गाँव चले जाते थे इसलिए कभी कभी तो वहाँ पैदल ही चल कर आना जाना होता था। टैक्सी वगैरह बहुत बड़ी चीज हुआ करती थी।

रेलवे स्टेशन भी एक टुटही सी पुराने ज़माने की बिल्डिंग में था हाँ वहाँ एक टंडन साहेब का रेस्तरां हुआ करता था जहाँ आप बैठ कर चाय पी सकते थे।

यह तो आईटीआई के वहाँ 1974-75 में खुलने के बाद ही जो कुछ हुआ वह हुआ। लोगों को नौकरी मिली, व्यापार बढ़ा और कुछ मूलभूत सुविधाएँ बढ़ी।

.......अभी भी कहने को रायबरेली कोई पेरिस या लंदन नहीं बन गया है, फिर भी थोड़ा बहुत वहाँ काम ज़रूर हुआ है।

यही हाल या यूँ कहें रायबरेली से और अधिक बद्दतर हालात में आईटीआई मनकापुर की शुरुआत 1983-84 में हुई थी। रायबरेली तो कम से कम जिला हेड क्वार्टर था मनकापुर को तो वह भी नसीब न था।


धन्यवाद।
कथांश:11
कुँवर अनिरुद्ध के आने से सूर्य महल में खुशी का माहौल था। सभी लोगों की आँखों के तारे जो थे कुँवर अनिरुद्ध। राजा साहब ने कुँवर के हाथों से एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का महल के बाहरी हिस्से में बने तीन कमरों के एक हिस्से में उद्घटान कराया जिसमें एक डॉक्टर के बैठने की व्यवस्था तथा फर्स्ट ऐड सेंटर था, एक दवाई की दुकान भो थी, जिससे कि आसपास के लोगों को प्राथमिक उपचार मिल सके। राजा साहब के इस कदम की इलाके के लोगों ने भूरि-भूरि प्रशंशा की।
कुँवर एक मिनिट के लिए भी दिन में महल में न बैठते वह कभी मत्स्य पालन केंद्र पर तो कभी अपने बाग बगीचों में तो कभी अपने कृषि फार्म पर घूमते ही रहते। लोगों से मिलते उनकी तक़लीफ़ सुनते और जो मदद हो सकती अपनी तरफ से वह मदद करते।
कांकर क्षेत्र के लोग अक्सर जब उनकी बात करते तो यही कहते कि कुँवर का हृदय तो राजा साहब से भी अधिक गरीबों की दशा देख पसीजता है। उनसे जो बन पड़ता है वह करते हैं। इलाके में जिधर भी निकलते उनको लोग बड़ी श्रद्धा और सम्मान से बिठाते और आवभगत करते। वैसे भी कुँवर अनिरुद्ध का आचार व्यवहार एक साधारण आदमी की तरह का था और उनको तो यह अच्छा नहीं लगता था कि लोग उनको कुँवर या राजकुमार कह कर पुकारें।
एक दिन की बात है जब वह शाम को मुखिया जी के साथ कांकर गाँव में घूम रहे थे कि उनकी नज़रों के सामने ही मिठुआ जमादार के बच्चे को एक बिगड़ैल बछडे ने सींग से घायल कर दिया, कुँवर ने उसे गोदी में उठाया और एक चारपाई पर लिटा कर महल ले आये वहाँ उसकी पट्टी करवाई और उसे अपने साथ लेकर रायबरेली हस्पताल में लाकर इलाज़ कराया और फिर वापस उसे उसके घर पर छोड़ा। आये दिन जब भी वे मिठुआ के घर के सामने से गुजरते तो उसके लड़के से वगैर मिले न आते।
राजा साहब को उनकी हर गतिविधि की खबर तो मिलती ही रहती थी। वे भी कुँवर के इस वर्ताव से बहुत खुश होते।
एक दिन दिल्ली से आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के ऑफिस के यशपाल जी का फोन राजा साहब के लिए आया और उन्होंने यह खबर कराई कि कांग्रेस अध्यक्ष उनसे मिलना चाह रहे हैं इसलिये वे दिल्ली आकर उनसे मिलें। राजा साहब दिल्ली से खबर मिलने के बाद अगले दिन कांग्रेस के दफ्तर में जाकर यशपाल जी से मिले जिन्होंने उन्हें बताया कि कांग्रेस पार्टी उनको उनके संसदीय क्षेत्र से आने वाले चुनावों के लिये अपना प्रत्याशी बनाना चाहती है। इसी सिलसिले में आपसे अध्य्क्ष महोदया मिलना चाहती हैं।
यशपाल जी राजा साहब को साथ ले अपने अध्यक्ष जी के पास ले गए। अध्यक्ष जी ने राजा साहब से कहा, "चंद्रचूड़ सिंह जी आपको तो पता ही है कि कुछ महीनों में ही लोकसभा के चुनाव होने को हैं। हमारी पार्टी आपके क्षेत्र से हमेशा से जीतती आई है और आपके परिवार का सहयोग हमें हमेशा प्राप्त हुआ है। अबकी बार पार्टी चाहती है कि आप अपने क्षेत्र का प्रतिनिधत्व करें"
राजा साहब ने आभार व्यक्त करते हुए कहा, "मुझे प्रसन्नता है कि कांग्रेस पार्टी ने मुझे इस क़ाबिल समझा। मुझसे जितना बन पड़ेगा मैं उतना सहयोग पार्टी के साथ करूँगा। मेरी एक विनती है कि आप मेरे स्थान पर अगर आप मेरे पुत्र अनिरुद्ध सिंह को चयनित करें तो मैं आपका आभारी होऊँगा"
"हमारी नज़र में तो आप एक श्रेष्ठ वक्ता और साफसुथरी छवि के इंसान हैं और आपका अपने क्षेत्र में बहुत नाम है इसलिए हमारा सुझाव है कि आप ही कांग्रेस के प्रत्याशी बनें"
"मेरी विनती पर आप पुनर्विचार करें, मैं तो यही कहूँगा क्योंकि मैं ज़मीन से जुड़ा हुआ व्यक्ति हूँ और यह भलीभांति जनता हूँ कि मुझसे अधिक योग्य मेरा पुत्र अनिरुद्ध है। वह आपकी पार्टी के लिये एक श्रेष्ठ प्रत्याशी सिद्ध ही नहीं होगा बल्कि एक लंबे समय तक पार्टी के साथ जुड़ कर लोगों की सेवा कर सकेगा", राजा साहब ने अपनी ओर से यह विनती कांग्रेस के अध्यक्ष महोदय से की।
"चलिये हम इस सुझाव पर विचार करते हैं और आपके पुत्र के बारे में कुछ जानकारी कर हम प्रधानमंत्री जी से चर्चा करने के बाद ही आपको इस विषय में कुछ बता पाएंगे"
"आपका बहुत बहुत आभार", कह कर राजा साहब कांग्रेस अध्यक्ष के कार्यालय से चले आये।
कांकर लौट कर उन्होंने इस बात की चर्चा राजपरिवार के सदस्यों से की जबकि कुँवर भी उपस्थित थे....

क्रमशः

कथांश:12
राजा साहब ने जब कांग्रेस पार्टी का प्रस्ताव कुँवर अनिरुध्द को बताया तो उस समय महारानी करुणा, रानी शारदा और राजकुमारी शिखा सभी लोग उस्थित थे। शिखा से मिलने राजा साहब उसके होस्टल में गए तो वह उसे भी अपने साथ लेते आये थे चूँकि गर्मियों की छुट्टियां हो चुकीं थी।
कुँवर ने पिताश्री के प्रस्ताव पर अपनी नपी तुली प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मुझे राजनीति ने कभी भी प्रेरित नहीं किया। मैंने इसी लिये साइंस पढ़ी। अगर आप मुझे इस झँझट से दूर ही रखें तो मुझे खुशी होगी"
रानी शारदा ने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा, "अगर महाराज स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे हैं तो मेरी समझ में कुँवर को चुनाव लड़ना चाहिए"
राजा साहब ने महारानी की ओर देखा और उनकी इच्छा जाननी चाही। महारानी जब मुस्कुरा रह गईं तो राजा साहब ने उनसे पूछ ही लिया कि आख़िर क्या बात है? राजा साहब के बार-बार पूछने पर वह बोलीं, "मुझे तो हँसी इस बात पर आ रही है कि कोई आप दोनों को अपना मेहमान बना कर अपने घर बुला कर न्योता दे रहा है और हम देख रहे हैं कि न तो महाराज और न ही अनिरुध्द ही चुनाव लड़ने के लिये हाँ कह रहे हैं"
रानी शारदा ने भी महारानी की बातों को दुहराया और जोर देते हुए कहा कि उनके विचार और महारानी के विचार एक समान हैं।
राजा साहब ने शिखा की ओर देखते हुए पूछा, "बता बेटी तुझे क्या कहना है?"
राजकुमारी हँसते हुए बोली, "अगर आप दोनों चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे हैं तो मैं खड़ी हो जाती हूँ"
राजा साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, "यह सुझाव भी ठीक है पर तेरी तो अभी चुनाव लड़ने लायक उम्र भी नहीं हुई है"
इतना कह चुकने के बाद राजा साहब का ध्यान कुँवर की ओर गया और बोले, "अनिरुध्द आख़िर यह बताओ कि तुम कि तुम चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाह रहे हो?"
"क्योंकि मेरी विचारधारा में राजनीति के लिये कोई स्थान नहीं है। दूसरा मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहता हूँ। अगर मुझे अपने पुराने इलाहाबाद विश्वविद्द्यालय में काम मिलता है तो मैं वहाँ रह कर पढ़ाना पसंद करूँगा"
"तुम ऐसा क्या समझते हो जिससे कारण तुम राजनीतिक क्रिया कलापों से प्रसन्न नहीं हो?"
"जी पिताश्री आपको याद होगा जब दो तीन साल पहले राष्ट्रीय बैंकों का अधिग्रहण किया गया था तो उस वक़्त माणिकपुर राजा साहब ने क्या कहा था कि सत्ता का हर कदम देश और जनता को बेबकूफ़ बनाने के लिये होता है। देश का लाभ चाहे हो या न हो बस उन्हें कुछ ऐसा करना है जिससे जनता उनकी वाहवाही करती रहे"
राजा साहब कुँवर की ओर देख रहे थे और मन ही मन यह भी तौल रहे थे कि उसके विचारों में कहाँ तक सच्चाई है? कुँवर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "उसके बाद राजा साहब माणिकपुर स्वतंत्र पार्टी से चुनाव लड़े और अपने बलबूते डंके की चोट पर चुनाव जीते"
राजा साहब ने कुँवर से कहा, "तुम्हारी बात अपनी जगह सही है पर यह भी जानो कि भारत एक विशाल देश है और यहाँ हर प्रदेश की अपनी भाषा है, लोगों की अपेक्षाएँ अनेक हैं जिन्हें कोई भी सरकार हो पूरा नहीं कर सकती है। भारत तरक़्क़ी करते करते ही आगे बढ़ेगा। खैर तुम इन सब बातों को छोड़ो और मेरे विचार में चुनाव लड़ो"
"अगर यह आपका आदेश है तो मैं आपकी आज्ञा मानूँगा वैसे इसमें मेरा कोई रुझान नहीं है"
"अभी हम हैं न, इसलिये तुम चिंता नहीं करो बस अपना मन बनाओ और बाकी सब हम पर छोड़ दो"
"जैसी आपकी आज्ञा"


क्रमशः

कथांश:13
एक दिन सुबह के वक़्त राजकुमार अनिरुद्ध और राजकुमारी शिखा महल के ऊपरी हिस्से में बैठे हुए चाय पर गपशप कर रहे थे। बातचीत के दौरान शिखा ने कहा, "भइया मेरा मन यहाँ देहात में बिल्कुल नहीं लगता है। यहाँ क्या करें क्या न करें समझ ही नहीं आता"
राजकुमार अनिरुध्द ने राजकुमारी शिखा से कहा, "शिखा तू सोच और अहसास कर कि ऐसे ही माहौल में अपने पूर्वजों ने अपना पूरा जीवन बिताया। आज मैं अमेरिका में और तू दिल्ली में रह रही है तो हमें यहाँ तनिक भी अच्छा नहीं लगता तो उन लोगों का मन कैसे लगता होगा। उन्होंने भी कोई न कोई शौक अपने ज़माने के अपनाए होंगे। तू भी न दिल लगाने के लिए कोई काम शुरू करदे"
"क्या करूँ मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता?"
"कुछ भी जो तेरा मन करे। एक बात कहूँ यहाँ जितनी शांति है, खुला खुला आसमान है, शुद्ध ऑक्सीजन है वह भला बड़े शहरों में कहाँ? फिर भी मैं मानता हूँ कि यहाँ की जिंदगी बड़ी ही एकाकी सी है। तू भी कुछ ऐसा काम कर जो तुझे पसंद हो और तेरे भीतर के एकाकीपन को जो दूर कर सके। कुछ न हो तो पेंटिंग ही किया कर"
"हाँ ये आईडिया ठीक है"
"मैं भी सोच रहा हूँ कुछ नया शुरू करूँ जो आज तक नहीं किया है"
"वो क्या?"
"हॉर्स राइडिंग"
"वो तो मैं भी सीखूँगी"
"चल हम लोग कुछ दिन के लिये बैंगलोर चलते हैं"
"बैंगलोर ही क्यों? घुड़सवारी तो भइया मैं और आप एक और जगह सीख सकते हैं"
"वो भला कहाँ?"
"भोपाल। मेरे साथ एक लड़की पढ़ती है। बहुत बड़े घर से है उसका वहाँ बड़ा फार्म वहीं चलते हैं"
"चल तो ये पक्का रहा भोपाल ही चलते हैं"
"माँसी को भी ले चलेंगे उनका मन भी बहुत कर रहा है भोपाल चलने का"
"तुझे कैसे मालूम?"
"मालूम है, मेरी एक बार उनसे बात हुई थी"
"पर उसके लिये तो पिताश्री से बात करनी पड़ेगी"
"नहीं, वह माँसी खुद कर लेंगीं"
"वाह क्या आईडिया लगाया है"
शाम के वक़्त जब अनिरुद्ध और शिखा दोनों भाई बहन मिल कर ऐश महल गए और गौहर बेग़म से मिले। उन्होंने थोड़ा ना नुकुर करने के बाद भोपाल चलने का प्रोग्राम फाइनल कर दिया और बोलीं, "चलो इस बहाने ही सही अपने बिछड़े हुए मिल जाएंगे"
क्रमशः



कथांश:14
भोपाल स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी तो राजकुमारी शिखा की दोस्त सबा उनके कम्पार्टमेंट के ठीक सामने आकर खड़ी हो गई जो अपने भाई सईद को लेकर उन लोगों को रिसीव करने के लिये आई हुई थी। शिखा से गले मिलने के बाद सबा ने सईद की मुलाक़ात शिखा से कराई और शिखा ने राजकुमार अनिरुद्ध और गौहर बेग़म से। उसके बाद वे लोग सभी भोपाल शहर की कहीं तंग गलियों से तो कहीं खुली-खुली सड़कों पर सर्राटे से भागती हुई कार में, श्यामला हिल्स की तलहटी में फारेस्ट रोड के ऊपर वीआईपी एरिया की ओर बढ़ चले और बड़े तालाब के किनारे बनी 'शौक़त मंजिल' पर आ पहुँचे।
'शौक़त मंज़िल' पहुँचने के बाद जैसे ही कार पोर्टिको में रुकी तो बढ़ कर एक खाबिंद ने दरवाज़ा खोला और हवेली के अंदर से दो खाबिंद आये और उन्होंने मेहमानों का सामान उठा मेहमानदारी में ले जाकर सजा दिया। सबा ने मेहमानों को एक बड़े से दुमंजिला ऊँचाई वाले ड्रॉइंग रूम में सोफ़े पर बैठने के लिये कहा, "आइये आंटी तशरीफ़ रखिये। आओ शिखा तुम भी बैठो", और फिर राजकुमार अनिरुद्ध की ओर देखते हुए बोली, "आप भी तशरीफ़ रखिये"
सईद ने सबा से कहा, "मैं ऊपर अम्मी को ख़बर करके आता हूँ। तुम मेहमानों के लिये चाय नाश्ते का इंतजाम करो "
कुछ देर में ही चाय और बिस्किट्स लेकर एक नौकर डाइनिंग टेबल पर लगाने लगा। इसी बीच सईद अपनो अम्मी के साथ आ पहुँचा। सबा ने अपनी अम्मी का तार्रुफ़ गौहर बेग़म से यह कह कर कराया कि अम्मी आप हैं राजकुमारी शिखा और राजकुमार अनिरुद्ध की माँसी। जैसे ही सबा की अम्मी की निगाह गौहर बेग़म के चेहरे पर पड़ी, वह एक दम सकते में आ गईं, उन्हें लगा कि ये चेहरा तो कुछ जाना पहचाना सा है। गौहर बेग़म भी सबा की अम्मी की ओर ध्यान से देखती रह गईं। सबा की अम्मी, जो पहले ही से अचंभित थीं, ने धीरे से कहा, "गौहर तुम"
"शौक़त, आपा आप", गौहर बेग़म ने सबा की अम्मी को अपनी बाहों में लेते हुए कहा। उसके बाद गौहर बेग़म और शौक़त बेग़म एक दूसरे से चिपक कर जोर-जोर से रोने लगीं। शौक़त बेग़म गौहर बेग़म के चेहरे को अपने हाथों में लेकर दर्द भरी आवाज़ में बोलीं, "कहाँ चली गई थी गौहर? अब्बू और अम्मा ने तुझे इतना ढूँढा पर तू कहीं नहीं मिली, हमने तो फिर आस ही छोड़ दी थी कि अब हम ज़िंदगी में कभी मिल सकेंगे"
"जी आपा, मेरा भी यही हाल था। हम कलियर शरीफ़ की मजार पर सर पटक-पटक कर रोते रहे, हमारी आँखें आप लोगों को ढूँढ़ती रहीं, हमारा रो-रो कर बुरा हाल था, हमतो नहर में डूब कर मरने जा रहे थे जब हमें मोहम्मद हनीफ़ चचा जान ने बचाया और वे हमें अपने साथ लखनऊ ले आये"
दोनों बहनें फिर गले लग कर खूब रोतीं रहीं और उन्हें कुछ समय तक तो ये ख़्याल ही नहीं आया कि बच्चे उनके चेहरों को असमंज की निगाह से देखे जा रहे हैं।
जब कुछ वक़्त गुजरा और हालात नॉर्मल हुए तो यह कह कर शौकत बेग़म ने सबा की ओर देखा, "ये बच्चे कौन हैं, कोई हमारा तार्रुफ़ इनसे कराने की जहमत उठायेगा"
सबा जैसे ही बोलने बाली थी कि बीच में ही टोकते हुए गौहर बेग़म बोल उठीं, "ये है मेरा बेटा आंखों का तारा राजकुमार अनिरुद्ध सिंह और ये है मेरी प्यारी-प्यारी बेटी राजकुमारी शिखा"
इसके बाद शौक़त बेग़म ने शिखा बेटी की पेशानी चूम कर दुआ दी और अनिरुद्ध के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले चूम कर शौक़त बेग़म बोलीं, "बेटा तू सौ साल जिये यही मेरी दुआ है तेरे लिये", उसके बाद गौहर बेग़म की ओर पलट कर बोलीं, "शिखा का नाम तो सबा हर वक़्त रटती रहती थी कौन जानता था कि आप लोगों का हमारे यहाँ तशरीफ़ लाना कितना मुबारक़ रहा कि हम बता नहीं सकते हैं दो बिछड़ी हुई बहनें एक अरसे बाद मिलीं। आज आप सब हज़रात से इन अजीब हालात में मुलाक़ात होनी थी। मेरे तो नसीब ही खुल गए कि मेरी एक ज़माने की खोई हुई बहन जो मिल गई"
उसके बाद सभी लोगों ने बैठ कर गपशप की और इधर उधर की बातें की। जब काफी वक़्त गुज़र गया तो शौक़त बेग़म सईद की ओर देखते हुए बोलीं, "सईद इन हज़रात का सामान ऊपर वाले कमरों में लगवा दो ये हमारे अपने घर कर लोग हैं कोई मेहमानदारी में थोड़े ही रुकेंगे। चलिये आप लोग हमारे साथ आइये सामान सईद भिजवा देगा"
शौक़त बेग़म सभी को अपने साथ लेकर हवेली के ऊपरी हिस्से में ले आईं।
क्रमशः
कुछ कही कुछ अनकही अपनी बात:
जो लोग रुड़की के पढ़े लिखे हैं या सहारनपुर -रुड़की इलाके के बारे में कुछ भी जानकारी रखते होंगे वे शर्तिया पिरान कलियर शरीफ़ के बारे में अच्छी तरह जानते होंगे। पिरान कलियर शरीफ़ हरिद्वार-रूड़की नहर के किनारे तकरीबन रुड़की से हरिद्वार की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर स्थित है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सूफ़ियाना ख़यालात का जाना माना पूजा स्थल है, जहाँ गर्मियों के दिनों में हर साल उर्स का मेला लगता है और वहाँ हिन्दू-मुस्लिम दोंनो समाज के लोग दुनिया भर से बड़ी तायदाद में इकठ्ठे होते हैं और ज़ियारत करते हैं। इसके अलावा और कुछ कहना यहाँ ठीक न होगा। जहाँ तक मुझे याद पड़ता है कलियर शरीफ़ के मेले के ठीक बाद ही मेरठ का मशहूर नौचंदी मेला लगता है।
मित्रो, भोपाल शहर एक लिहाज़ में कहा जाय तो कुछ हद तक लखनऊ जैसा ही है। वहाँ का खान पान, पहनावा और बातचीत का लहज़ा वही नबाबी है। बल्कि बल्कि यूँ कहा जाए तो वहाँ का सूरमा भोपाली टच कुछ अपनी ही पहचान रखता है। लखनऊ में दरिया-ए-गोमती जहाँ लखनऊ के हुस्न में चार चाँद लगाती है वहीं भोपाल में छोटा और बड़ा तालाब भोपाल की शामों को रँगीन करता है।
भोपाल और उसके आसपास के क्षेत्रों की यात्रा जैसे-जैसे सीरियल आगे बढ़ेगा उसके साथ ही होगी। आज के लिये बस इतना।शुभ दिन की कामनाओं के साथ


कथांश:16

शौक़त बेग़म जैसे ही अपने बारे में गौहर बेग़म बताना ही चाह रही थीं कि सबा अंदर आई और बोली, "अनिरुद्ध और शिखा दोनो आपको ढूंढ़ रहे हैं और आप यहाँ है, चलिये-चलिये आप लोग बाहर आइये चाय पर सब आपका इंतजार कर रहे हैं"
सबा के पीछे-पीछे शौक़त और गौहर बेग़म भी आ गईं और सभी लोगों ने मिलकर चाय पी। चाय के दौरान ही अनिरुद्ध ने सईद से भोपाल के बारे में कुछ बताने के लिये कहा। 

सईद भी जो बातों का बड़ बोला शेर था बड़ी शान के साथ बोला, "अपने शहर के बारे में भला हम कैसे तारीफ़ के क़सीदे पढ़ें, उसे तो हम आप हज़रात को दिखा कर पूछेंगे कि आप लोगों को कैसा लगा हमारा भोपाल?"


इधर से शिखा बोल पड़ी, "हमें कैसे पता लगेगा कि भोपाल आप ही का है?"


इस पर शौक़त बेग़म ने तपाक से कहा, "एक ज़माने में भोपाल हमारा ही हुआ करता था। नबाबी वक़्त के ख़ात्मे के साथ ही खानदान के वारिसों में बँटते-बँटते हमारा हिस्सा बहुत कम रह गया है। फिर भी जितना बचाखुचा है जो अभी सात पुश्तों तक काफी है"


गौहर बेग़म जो कि शौक़त बेग़म के बारे में जानने की इच्छा रखतीं थीं वह अपनी अदा में बोलीं, "माशाअल्लाह मैं आप पर कुर्बान जाऊँ आपा। खुदा ने जितनी नेमत आपको बख़्शी है काश वह सबके हिस्से में आती"


शौक़त बेग़म बोलीं, "अरे ये बच्चे क्या जानें भोपाल के गुज़रे ज़माने की बात? चलो हम बताते हैं तुम्हें सिलसिलेबार कि भोपाल अपने वजूद में कैसे आया?


आप लोग ये तो जानते ही होंगे कि एक ज़माने में यहाँ पर एक राजा है करते थे जिनका नाम था भूपाल जिनके नाम से इस शहर का नाम पड़ा 'भोपाल'।


समय गुज़रने के साथ-साथ यह शहर उजड़ गया। अठ्ठारहवीं सदी में यह यहाँ के गोण्ड राज्य का एक छोटा-सा गाँव हुआ करता था।


भोपाल शहर की बसाया मुगल सल्तनत के एक अफ़्गानी जिनका नाम दोस्त मुहम्मद खान था। उन्होंने इस शहर को अपने हिसाब से खुद की रिहाइश और उनके साथ के जो लोग थे उनके लिए बनाया था। इस लिहाज़ से भोपाल को नवाबी शहर भी माना जाता है, आज भी यहाँ मुगलई रवायात और संस्कृति देखी जा सकती है।


आप लोगों को ये तो याद होगा ही कि हिंदुस्तान की तारीख में एक वक़्त ऐसा भी आया जब कि दिल्ली की मुगलिया हुक़ूमत बेइंतिहा कमज़ोर हो गई थी। इस बात का फ़ायदा उठाते हुए दोस्त मोहम्मद खान ने बेरासिया तहसील हड़प ली। कुछ समय बाद गोण्ड रानी कमलापती की मदद करने के लिए दोस्त मोहम्मद खान को भोपाल जो उस वक़्त एक छोटा सा गाँव हुआ करता था, उसे तिज़ारत में दे दिया। रानी की मौत के बाद दोस्त मोहम्मद खान गोण्ड पर खुद काबिज़ हो गया।


तवारीख़ गवाह है कि 1720-1726 के दौरान दोस्त मुहम्मद खान ने भोपाल गाँव की किलाबन्दी कर इसे एक शहर में तब्दील कर दिया। साथ ही उन्होंने नबाब का ओहदा भी हासिल कर लिया और इस तरह से भोपाल रियासत अपने वजूद में आई।


मुगल दरबार के सिद्दीकी भाइयों से दोस्ती के नाते दोस्त मोहम्मद खान ने हैदराबाद के निज़ाम मीर क़मर-उद-दीन (निज़ाम-उल-मुल्क) से दुश्मनी मोल ले ली। सिद्दीकी भाइयों से निपटने के बाद 1723 में निज़ाम ने भोपाल पर हमला बोल दिया और दोस्त मुहम्मद खान को निज़ाम की हुकूमत माननी पड़ी।


1737 में पूना के मराठा पेशवा की फ़ौज ने मुगलों को भोपाल की लड़ाई में मात दी। पेशवाई के हुक़्म के चलते भोपाल रियासत की कमाई पर एक चौथाई लगान की वसूली की जाने लगी।


दोस्त मोहम्मद खान के खानदान के लोगों ने 1818 में ब्रिटिश हुक़ूमत के साथ इकरारनामा किया और भोपाल रियासत ब्रिटिश राज का एक हिस्सा बन गया।


1947 में जब भारत को आज़ादी मिली, तब भोपाल रियासत की वारिस आबिदा सुल्तान खुदमर्जी से पाकिस्तान चली गईं। उनकी छोटी बहन बेगम साजिदा सुल्तान को रियासत का मालिकाना हक़ मिला।


1949 में भोपाल रियासत को काफी जद्दोजहद के बाद हिंदुस्तान का हिस्सा बना लिया गया और इस तरह भोपाल को उस वक़्त के मध्य भारत प्रान्त की राजधानी होने का रुतबा हासिल हुआ।


क्रमशः




कथांश:17
सईद अपनी अम्मी की बात ख़त्म होने पर बोला, "चलिए आज शाम आपको भोपाल घुमा लाते हैं"
शौक़त बेग़म ने झिटकते हुए कहा, "रहने भी दे इतनी क्या जल्दी पड़ी है अब तो ये लोग यहीं रहेंगे, कभी बाद में घुमा लाना"
"ये लोग तो यहाँ घुड़सवारी सीखने के चक्कर मे आये हैं", गौहर बेग़म ने बीच मे टोकते हुए कहा।
"इनको कौन किसी के यहाँ जाना है, पीछे वाली पहाड़ी की ओर ही तो अपना क्लब हाउस और ब्रीडिंग सेंटर और उसके पीछे ही घोड़ों के दौड़ने की जगह। सईद जरा इनको ले जा और घुमा ला", शौक़त बेग़म ने सईद से कहा।
"जी अम्मी", सईद बोला, "आइए चलें। सबा, तू भी चलेगी या अम्मी के साथ रहेगी?"
सबा ने जबाब दिया, "वाह भाई वाह। तुम लोग ऐश करो और हम घर में सड़ें, ये नहीं चलेगा"
"तो चल न", सईद के कहने पर सबा, कुँवर और राजकुमारी उनके साथ हो लिये। हवेली के पिछवाड़े से ही रास्ता था तो सभी लोग पैदल ही निकल पड़े। सबा रास्ते भर हवेली और भोपाल की खूबसूरती की बात करती रही और शिखा अपने कांकर की। कांकर की तारीफ़ सुन कर सबा बोली, "यार फिर तो तेरा मज़ा ही मज़ा है। जब मन किया ऐश महल माँसी के पास चले गए जब मन किया तो अपने फार्म और बाग बगीचों में निकल गए"
"वो तो है", शिखा ने भी छोटा सा जबाब दिया।
"मेरा मन तो तेरे यहाँ चलने का कर रहा है"
"चली चलना, हमारे साथ ही चली चलना अभी कौन कॉलेज खुलने वाले हैं'
"चल देखते हैं, अम्मी से बात कर लेंगे"
"अब तो वे मेरी मौसी हैं मैं ही बात कर लूँगी", शिखा ने कहते हुए सबा का हाथ अपने हाथ में लिया।
अनिरुद्ध जो अब तक खामोश-खामोश से दिख रहे थे आज पहली बार सबा के यह पूछने पर कि कुँवर जी आपके क्या क्या शौक हैं, हँस कर बोले, "समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या कहूँ ऐसा जो आपको लगे कि आपकी पसंद बने दिल के करीब रहे?"
इतने में शिखा बोल उठी, "सबा तुम्हें क्या बताऊँ कि मेरे भाई के क्या-क्या शौक़ हैं। बड़े रंगीन मिज़ाज़ हैं मेरे भइया"
"तू क्या उनकी स्पोकपरसन है, उन्हें ही बोलने दे न"
"चलो भइया तुम ही बता दो कि तुम्हें गाना गाने और सुनने का, फोटोग्राफी का और भी कई और जैसे कि बाग़बानी, मछली पालन, खेतीबाड़ी करने और कराने का शौक़ तो है ही और साथ में.....", शिखा बीच में बोल पड़ी।
"....और साथ में, क्या कहना चाह रही है तू मेरे बारे में?", शिखा की ओर देखते हुए अनिरुध्द ने कहा।
"कुछ भी तो नहीं भइया। हम लड़कियाँ समझ जाती हैं कि लड़कों को क्या अच्छा लगता है"
"शिखा तू घर चल न तेरी शिकायत नहीं की छोटी माँ से तो मेरा नाम भी अनिरुध्द नहीं...."
"यही कि कुँवर अनिरुद्ध सिंह बल्द श्रीमन राजा कांकर चंद्रचूड़ सिंह के पुत्र .....", अपने भइया की ओर देखते हुए पर इशारा सबा की ओर करके बोली।
दोनों भाई बहनों की नोंक झोंक सुन कर सईद और सबा का दिल तो बाग़-बाग़ हो गया।
वे लोग चलते-चलते अस्तबल तक आ पहुँचे थे। उन्हें देखकर अस्तबल के चौकीदार हिमायत अली ने सभी को सलाम किया और बढ़ कर गेट खोला। सईद ने मेहमानों के बारे में हिमायत अली को बताया और उससे पूछा कि अभी अस्तबल में कितने घोड़े बचे हैं?
हिमायत अली ने बताया, "हुज़ूर अभी होंगे तकरीबन चालीस पचास के बीच। आज कुछ घोड़े बैंगलोर जाने वाले थे उसके बारे में मुझे पक्की जानकारी नहीं है"
"मियाँ बूढ़े हो गए हो काम करते-करते। अरे भाई इतना तो दरियाफ़्त कर लिया करो कि अब कितने घोड़े अस्तबल में बचे हैं?
"जी हुज़ूर"
"क्या जी हुज़ूर?"
"यही कि घोड़े कितने बचे हैं...?"
"जाइये कुछ कुर्सी वगैरह निकलबाइये हम लोग अस्तबल का दौरा करके क्लब हाउस के पास आते हैं और कुछ देर वहीँ बैठेंगे"
"जी हुज़ूर"
"हमारे यहाँ भो एक से बढ़ के एक सूरमा भोपाली के खानदान के नायाब इंसान हैं, पूछो कुछ तो जबाब कुछ और देते हैं", कहते हुए सईद सबको लेकर अस्तबल में दाख़िल हो गए।
वहाँ एक-एक घोड़े से मेहमानों का तार्रुफ़ कराया जैसे कि कोई अपने बहुत अज़ीज़ से मुलाक़ात कराता हो। घोड़ों के सामने से निकलते हुए सईद बोला, "जब तक आपकी दोस्ती इन हज़रात से नहीं हो जाती है तब तक इनकी रास पकड़ना आसान नहीं होगा"
"भइया ये काम तो आप कल से शुरू करने वाले हैं या आपका थ्योरी का क्लास चालू हो गया"
"अच्छा याद दिलाया, सबा शुक्रिया, मैं तो भूल ही गया था", कह कर सईद चुप हो गया और वे लोग धीरे-धीरे टहलते हुए क्लब हाउस आ पहुँचे। वहाँ बैठ कर चारों लोगों में आम इंसान की तरह बातचीत होने लगी।
अनिरुद्ध ने घोड़ों के बारे में जितनी हो सकती तो जानकारी हासिल की। सईद ने भी अपने इस बिजनेस के बारे में खूब देर तक अनिरुद्ध को बताया कि उनके तैयार किये हुए घोड़े देश के मशहूर क्लब्स में भेजे जाते हैं जहाँ ये अधिकतर हॉर्स रेस में हिस्सा लेते हैं और फिर उसके बाद ये रखरखाव के लिये हमारे यहाँ वापस आ जाते हैं। जो घोड़े रेस में हिस्सा लेते हैं वो अलग किस्म के होते हैं और जो शौक़िया खेलकूद जैसे कि पोलो वगैरह के लिए जाते हैं वे अलग तरह के होते हैं। दोनो किस्मों के घोड़ों की ख़िदमत और खानापीना यहाँ तक कि ट्रेनिंग बिल्कुल अलग किस्म की होती है।
अनिरुद्ध द्वारा यह पूछे जाने पर, "पोलो के लिये घोड़े भी सईद यहीं से जाते हैं"
"कुँवर अनिरुद्ध आपको यह जानकर हैरत होगी कि पूरे हिदुस्तान के घोड़ों की ज़रूरत हम अकेले ही पूरी करते हैं। हमारे पास घोड़े इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट करने का बाकायदा सरकार की ओर से लाइसेंस मिला हुआ है, हमारी अपनी ट्रांसपोर्ट फ्लीट है, अपना स्टाफ है जो इन घोड़ों की देखभाल हर जगह रह कर करता है", सईद ने अपने बिजनेस मॉडल के बारे में और भी कई पेचदार जानकारी कुँवर को दी।
जब अंधेरा कुछ अधिक हो गया तब वे लोग हवेली की ओर मुड़ पड़े। कुँवर ने सईद की तारीफ़ करते हुए यह कहा, "आई एम इम्प्रेस्सेड"
ये पूछे जाने पर कि साल भर का टर्नओवर कितना रहता होगा। सईद ने हँस कर कहा, "लगता है कि आप हमारे राइवल बन कर ही रहेंगे", हँसते हुए वह यह भी बोला, "अभी-अभी तो आप आये हैं कुछ वक्त तो गुजारिये हमारे यहाँ फिर सब कुछ आपके साथ शेयर करेंगे आपको पूरा एक्सपर्ट ही बना कर भेजेंगे"
रास्ते भर सबा की नज़र कुँवर की ओर ही लगी रही। वह कुछ बातचीत करना चाह रही थी पर दिल की बात दिल में ही रह गई.....
क्रमश:



कथांश:18
"आपा तो बताइए आप क्या बताने वाली थीं जब सबा अचानक आ गई थी" गौहर बेग़म ने पूछा।
"बताती हूँ बताती हूँ। जब तू हम लोगों को कलियर शरीफ़ में नहीं मिली तो अब्बू और अम्मी बेहद परेशान हुए और वहाँ कई दिन इंतज़ार करने के बाद हम लोग सहारनपुर अपने घर लौट आये", इतना कह कर शौक़त बेग़म चुप हो गईं जैसे कि अंधेरे में कुछ ढूँढ़ रही हों। जब उन्हें कुछ याद आया तो वे फिर से बोल उठीं, "सहारनपुर आते ही मोहल्ले में सभी लोग तुम्हारे बारे में बार-बार पूछते तो अब्बू सबको जो हम लोगों के साथ बीता वह बताते पर उनकी बताई बात पर कोई भी भरोसा नहीं जताता और उल्टे यह तोहमत लगाते कि अब्बू अपनी बेटी को कलियर शरीफ़ के उर्स में किसी रईसजादे को बेच कर फुरसत पा गए हैं। अब्बू जब ये सब सुनते तो उनके दिल को चोट लगती और उन्हें ये सब बातें बहुत ही नागवार गुजरतीं"
"फिर क्या हुआ?"
"होना क्या था कुछ दिन तक तो अब्बू ये सब सुनते रहे एक दिन परेशान हो कर उन्होंने आरा मशीन, दुकान और मकान बेच दिया और रातों रात वगैर किसी को बताए सहारनपुर को छोड़ कर भोपाल आ गए"
"फिर"
"यहाँ आकर अब्बू काम की तलाश करते रहे जो पैसा सब बेच कर मिला था उससे वह कोई काम शुरू करना चाह रहे थे। एक भले इंसान जिनका नाम था लाला भगवान दास उन्होंने अब्बू की बड़ी मदद की और उन्हें लेकर वे बेग़म साहिबा से मिले। बेग़म साहिबा के बड़े जंगलात थे। उन्होंने उसी जंगल में अब्बू को कुछ ज़मीन मुहैय्या करा दी और जंगलात से लकड़ी काट कर बेचने की इजाज़त भी दे दी। बस फिर क्या था अब्बू ने धीरे-धीरे आरा मशीन लगा ली और नक्कासीदार फर्नीचर बनाने का भी काम शुरू कर दिया"
"आपा जो इंसान अच्छा होता है तो किस्मत भी मदद करती है, अपने अब्बू का क्या कहना वे तो खुदाबन्दे थे पाँचो वक़्त की नमाज़ अदा करते थे"
"एक दिन की बात है कि बेग़म साहिबा को किसी ने बताया कि अब्बू तो नक्कासीदार फर्नीचर के जाने माने कारीगर हैं और उनके बनाये फर्नीचर भोपाल शहर में खूब चल रहे हैं। फिर क्या था खान बहादुर के साथ एक शाम बेग़म साहिबा अपनी कार से आये और जब उन्होंने हम में क्या खास देखा कि अपने सबसे छोटे बेटे हमीदुल्लाह के लिये हमारा हाथ माँग लिया। बस इसके बाद तो हमारी दुनिया ही बदल गई। निकाह में हमें ज़ेवरात के साथ-साथ हमें शौक़त महल मेहर में मिला। वहीं हमारे सईद और सबा हुए। सब ठीक ठाक था कि एक दिन हमीदुल्लाह खान बहादुर को दिल का दौरा पड़ा और बस एक झटके में ही हमारी दुनिया मे अंधेरा छा गया। हमारी तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय उस वक़्त सईद इंटर में था और सबा आठवें क्लास में। वो तो भला हो सईद के दोस्त का जिसने उसे घोड़ों का फ़ार्म और क्लब हाउस खोलने की सलाह दी और हम लोग फिर शौक़त महल से इस पहाड़ी वाली हवेली में आ गए। हवेली के पीछे ही पहाड़ी वाली ज़मीन पर क्लब हाउस बना लिया था। तब से हम लोग यहीं रह रहे हैं"
"आपा आपके साथ भी वैसा ही हुआ जो हमारे साथ। आपको खान बहादुर मिले और हमें राजा साहब इस तरह हम दोंनों ही अच्छे लोगों के बीच हैं"
"ये बात तो है गौहर। जब ऊपरवाला मेहरबान हो तो सब ठीक हो जाता है। देख न सबा को शिखा न मिली होती तो हमारी मुलाक़ात कैसे होती जो खुदा करता है ठीक ही करता है"
ये सब बातें हो ही रही थी तभी सभी बच्चे क्लब हाउस से लौट कर आ गए। पास आते ही सबा बोली, "लो अम्मी हम तो दिखा लाये इनको अपना फार्म और क्लब हाउस। बस कल से इनकी ट्रेनिंग शुरू"
शौक़त बेग़म ने कहा, "जिस मक़सद से ये लोग आए हैं वो तो पूरा होना ही चाहिए"
"उसके लिये अम्मी मैं इन लोगों को अपने साथ ले जा रहा हूँ पहले इनके कपड़े और बूट वगैरह तो घुड़सवारी इनके पास होने चाहिये। आप लोग भी चलतीं तो अच्छा रहता" सईद बोला।
"एक काम करो तुम आज इन लोगों को ले जाओ कल हम इन्हें अपने साथ लेकर शौक़त महल चलेंगे और फिर रात को बाहर ही खाना पीना करके लौटेंगे", शौक़त बेग़म ने सईद से कहा।
"जैसी आपकी मर्ज़ी"

क्रमशः

कथांश:19
सईद और सबा अनिरुद्ध और शिखा को लेकर भोपाल के पॉश मार्किट में ले गया और वहाँ से दोनों के लिये हॉर्स राइडिंग किट ख़रीदी और लौटते में बड़े तालाब के किनारे-किनारे गाड़ी घुमाता हुआ रात लगभग साढ़े आठ बजे 'शौक़त मंज़िल' लौट आया।
सब लोगों ने मिल कर खाना खाया और फिर आपस में बातचीत की। शिखा और अनिरुद्ध ने राजा साहब से फोन पर बात भी की और उन्हें शौक़त मंज़िल की बातें बताईं। राजा साहब ने उसके बाद गौहर बेग़म से भी बात की और अपनी ओर से मुबारक़बाद दी कि उनकी बचपन जो बहन खो गई थी बच्चों के कारण उन्हें मिल गईं। जब गौहर बेग़म ने कहा, "आप आपा से बात करना चाहेंगे"
तो उन्होंने इतना ही कहा कि जब वे उनसे मिलेंगे तो दिल खोल कर बात करेंगे और ये वादा भी किया कि बच्चों के वहाँ रहते वे दो एक रोज़ के लिये भोपाल आएंगे।
जब ये बात गौहर बेग़म ने सभी को बताई तो सबके चेहरे खुशी से खिल उठे। शौक़त बेग़म को इस बात से बहुत खुशी हुई कि राजा साहब ने भोपाल आने का दावतनामा कुबूल फ़रमाया।
खाने के बाद जब सबा सबके लिये पान पेश कर रही थी तो सईद ने गौहर खाला जान से एक फरमाइश की कि आपके गले की और ग़ज़ल अदायगी की बहुत तारीफ़ सुनी है तो आज एक ग़ज़ल हो जाये। शौक़त बेग़म ने भी अपनी तरफ से जोर देकर कहा, "जब बेटा कह रहा है तो एक ग़ज़ल हो ही जाए"
साज़ तो नहीं था फिर भी गौहर बेग़म ने ग़ज़ल सुनाई जो सबके दिलों में उतर गई:
जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है
यादों के दरीचों में चिलमन सी सरकती है|
लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए
यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है|
यूँ प्यार नहीं छुपता पलकों के झुकाने से
आँखों के लिफ़ाफ़ों में तहरीर चमकती है|
ख़ुश-रंग परिंदों के लौट आने के दिन आए
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है|
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है|
ग़ज़ल की तारीफ़ में सभी ने कुछ न कुछ कहा पर सईद ने पूछा, "खाला जान ये ग़ज़ल आपकी खुद की लिखी हुई है"
गौहर बेग़म ने जबाब में कहा, "नहीं मियाँ ये ग़ज़ल आपके शहर के ही मशहूर शायर बशीर बद जनाब्र की है हमने तो बस इसे अपनी आवाज़ भर देने की कोशिश भर की है"
"आप मिलना चाहेंगीं जनाब बशीर बद्र से"
"ज़हे नसीब, क्या ये हो सकता है?"
"आप जो चाहें और न मुमकिन हो, वो भी भोपाल में ये तो हो ही नहीं सकता। मैं इस सनीचर के रोज़ के लिये उनको दावतनामा भेज कर आपकी मुलाकात मुक्करर करता हूँ"
देर रात तक महफ़िल सजी रही, जब सबकी आँखे नींद से बोझिल हने लगीं तो वे आराम करने के लिये गए।
क्रमशः
डॉ॰ बशीर बद्र (जन्म १५ फ़रवरी १९३६) को हुआ था। उर्दू का यह वह शायर माना जाता है जिसने कामयाबी की बुलन्दियों को फतेह कर बहुत लंबी दूरी तक लोगों की दिलों की धड़कनों को अपनी शायरी में उतारा है। साहित्य और नाटक आकेदमी में किए गये योगदानो के लिए उन्हें 1999 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
डॉ॰ बशीर बद्र उर्दू शायरी के वो सशक्त हस्ताक्षर हैं जिनका आज की दुनिया में कोई सानी नहीं है। इनका पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है। भोपाल से ताल्लुकात रखने वाले बशीर बद्र का जन्म कानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। मशहूर शायर और गीतकार नुसरत बद्र इनके सुपुत्र हैं।
डॉ॰ बशीर बद्र 56 साल से भी ऊपर हिन्दी और उर्दू में देश के सबसे मशहूर शायर हैं। दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा मुल्कों में मुशायरे में शिरकत कर चुके हैं। बशीर बद्र आम आदमी के शायर हैं। ज़िंदगी की आम बातों को बेहद ख़ूबसूरती और सलीके से अपनी ग़ज़लों में कह जाना बशीर बद्र साहब की ख़ासियत है। उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया। यही वजह है कि उन्होंने श्रोता और पाठकों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बनाई है।
शुक्रिया दोस्तो।




कथांश:20
अगले दिन सुबह-सुबह घुड़सवारी की ट्रेनिंग शुरू हो गई। सबसे पहले तो सईद ने कुँवर अनिरुद्ध और राजकुमारी शिखा की घोड़ों से मुलाक़ात कराई गई, उनके नाम, काम, धाम के बारे में बताया और फिर ये बताया कि किसी भी जानवर पर सवारी करने के पहले उसके बदन को सहलाया जाता है जिससे वह आपके और आप उसके करीब आ सकें। उसके बाद दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए आप उसे उसकी मर्जी के खाना खिलाइये उसके करीब आइये उससे कुछ प्यार भरी बातें कीजिये। जब वह आपको और आप उसे अच्छी तरह समझने लगे तो फिर धीरे से उसकी रास पकड़ कर रिंग में लेकर आइये। अपना बायाँ पैर का पँजा ऐड़ में फ़साइये और एक झटके में घोड़े की काठी पर बैठ जाइए। घोड़े की पीठ थपथपाइए कुछ उससे बात करने की कोशिश कीजिये। जब आपको लगे सब ठीक है फिर धीरे से उसे चलने के लिये कहिये।
इसके बाद सबा के साथ अनिरुद्ध और शिखा के साथ सईद घोड़े पर बैठ साथ-साथ रिंग में चलने लगे। अनिरुद्ध से मज़ाक करते हुए सबा बोली, "ये अरबी घोड़ा बहादुर है जो कभी कभी अपने सवार को गिरा देता है इसलिये सम्हल कर ही रहियेगा मेरे राजकुमार साहब"
सबा की बात को कोई जबाब तो अनिरुद्ध ने नहीं दिया बस उसकी ओर भरी निगाहों से देख कर अपने मन की बात कह दी। कुछ देर के बाद सबा अनिरुद्ध से बोली, "अरे वाह आप तो बड़ी जल्दी ही सवारी करना सीख जाएंगे"
अब कुँवर से न रह गया तो उन्होंने भी पलट कर जबाब दे ही दिया, "जब सिखाने वाला इतना माहिर हो तो सवारी करना हम सीख ही जायेंगे"
"शुक्रिया मेरे राजकुमार"
"सबा तुम मुझे बार बार राजकुमार कह कर शर्मिंदा न करो, मुझे खुशी होगी कि तुम मुझे अनिरुद्ध ही कह कर पुकारो", कुँवर ने सबा से कहा।
"चलो आप कहते हो राजकुमार न सही क्या मैं तुम्हें 'राजा' कहके बुला सकती हूँ"
"हे अभी हम कोई राजा बाजा नहीं हैं। तुम हमें बस अनिरुद्ध ही कह कर बुलाओ"
"चलो आप नहीं मान रहे हो वो आपकी मर्ज़ी हम तो आपको कुँवर जी कह कर ही बुलाएंगे", सबा ने भी ज़िद पकड़ते हुए अपनी बात रखी।
इतने में अनिरुद्ध ने घोड़े को ऐड़ लगा कर रास अपनी ओर खींची तो बहादुर उन्हें ले उड़ा। अनिरुद्ध को दूर जाते हुए सबा चिल्लाई, "सईद बहादुर कुँवर को लेकर भाग गया है कहीं उन्हें आगे जाकर पटकनी न दे दे"
सईद बोला, "तू चिंता मत कर मैं उनके पीछे पीछे जाता हूँ तू शिखा के घोड़े को सम्हाल"
सईद ने दूसरा घोड़ा लिया और अनिरुद्ध के पीछे भाग लिया। इधर सबा ने शिखा का घोड़े की रास अपने हाथ मे पकड़ी और धीरे धीरे शिखा को राइडिंग के गुर बताने लगी।
सबा ने शिखा से कहा, "तेरे भैया का आज ही टेस्ट हो जाएगा कि डरपोक हैं या बहादुर"
"मेरा भाई है वह भी राजकुमार देख लेना बहादुर को काबू करके ही लौटेगा", शिखा ने सबा को उत्तर देते हुए कहा।
सईद जो अनिरुद्ध के पीछे पीछे अपने घोड़े को दौड़ा कर उनके बगल में जा पहुँचा था उसे लगा कि कहीं बहादुर अनिरुद्ध को पटकी न मार द पर ऐसी कोई बात नहीं हुई।
अनिरुद्ध बाकायदा बहादुर पर सवारी करके ही क्लब हाउस वापस लौटे।
अनिरुद्ध के सही सलामत वापस आ जाने पर सबा ने अपनी खुशी ताली बजा कर जताई और अनिरुध्द से बोली, "वाह मेरे कुँवर जी वाह"
अनिरुद्ध और शिखा ने तकरीबन घोड़ो के साथ दो घँटे कबायद की। वे लोग बाद में क्लब हाउस आ गए। वहाँ सभी लोगों ने नीबूं पानी पिया और कुछ देर बाद चाय पी।
दोपहर होने के पहले ही ये लोग शौक़त मंज़िल लौट आए। कपड़े वग़ैरह चेंज कर के घर वालों के साथ लंच किया और फिर कुछ आराम। शाम को बाहर चलने का प्रोग्राम तो पहले ही तय हो गया था इसलिये चार बजे के करीब दो गाड़ियों में सभी लोग शौक़त महल देखने के लिए जा पहुँचे। एक कार में सबा, शिखा और अनिरुद्ध थे और दूसरी में सईद अपनी अम्मी और खाला जान गौहर थीं।
शौक़त महल मध्य प्रदेश के भोपाल शहर के इक़बाल मैदान के बीचोंबीच चौक क्षेत्र के प्रवेश द्वार पर स्थित है।
इस महल का निर्माण सन् 1830 ई. में भोपाल राज्य की प्रथम महिला शासिका नवाब कुदसिया बेगम ने कराया था। यह महल इस्‍लामिक और यूरोपियन शैली का मिश्रित रूप है। यहाँ पश्चिमी वास्तु और इस्लामी वास्तु का नायाब संगम है। शौक़त महल समन्वयवादी स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस महल का आकल्पन एक फ़्रान्सीसी वास्तुविद ने किया था। यह महल लोगों की पुरातात्विक जिज्ञासा को जीवंत कर देता है। इस महल में नवाब जहांगीर मोहम्मद ख़ान और उनकी बेगम नवाब सिकन्दर जहां अपने शुरुआती दौर में रहे थे। उनके बाद शासिका बनने के पहले शाहजहां बेगम अपने शौहर नवाब उमराव दूल्हा के साथ रहती थीं। शौक़त महल के सामने एक विशाल गुलाब उद्यान हुआ करता था।
जब वे लोग गौहर महल देख कर निकले तो कुँवर ने सबा से उसके पास जाकर धीरे से पूछा, "एक बात बताओ तो सबा कि यहाँ की लड़कियाँ अपने मुँह पर ये कपड़ा क्यों बाँधे रहती हैं?"
सबा ने भी छेड़खानी भरा जबाब दिया, "सही सही बताऊँ या बस दिल रखने के लिये'"
"सही सही बताओ'
जब से कुँवर भोपाल आये हैं सबा अपनी ओर से हर वो कोशिश कर रही थी जिससे वह कुँवर के करीब ही नहीं और करीब दिखे, उसने कुँवर की खिचाईं करते हुए जबाब दिया, "आप जैसों की निगाह से बचने के लिये, वो सब जानती हैं न सबा आपके साथ जो है"


क्रमशः




कथांश:21
शौक़त बेग़म शौक़त महल देखने के बाद सबको साथ लेकर गौहर महल आ गईं। गौहर महल भोपाल शहर के बड़े तालाब के किनारे वी.आई.पी.रोड पर शौक़त महल के पास बड़ी झील के किनारे बनी हुई पुराने वक़्त की याद दिलाते हुए आज भी मज़बूती से खड़ा है और हर यहाँ आने वाले का दिल जीत लेता है।
गौहर महल में कदम रखते ही गौहर बेग़म का बचपना जैसे लौट आया हो। वो कभी इधर तो कभी उधर भाग-भाग कर कभी इस दरीचे से बड़े तालाब की ओर झाँकती तो कभी दूसरे दरवाज़े से बाहर चली जातीं। उनकी इन हरकतों पर शौक़त बेग़म ने ताना कसते हुए पूछा, "गौहर तू ठीक से तो है"
"हाँ मैं बिल्कुल ठीक हूँ। आपा, न जाने मुझे यहाँ आकर ये क्यों लग रहा है कि इस महल से मेरा कोई पिछले जन्म का नाता है", गौहर बेग़म ने कहा।
"तू पगला गई है, अब चुप चाप हमारे साथ रह और महल की खूबसूरती को निहार", इतना कह कर शौक़त बेग़म ने गौहर का हाथ थामा और महल के ऊपरी हिस्से की ओर चल पड़ीं।
गौहर महल वास्तुकला का ख़ूबसूरत नमूना कुदसिया बेगम के वक़्त का है। इस तिमंजिले महल को का बनबाया था भोपाल रियासत की तत्कालीन शासिका नवाब कुदसिया बेगम ने 1820 ई. में।
कुदसिया बेगम का नाम गौहर भी था इसलिए इस महल को 'गौहर महल' के नाम से जाना जाता है। यह महल भोपाल रियासत का पहला महल है। इस महल की ख़ासियत यह है कि इसकी सजावट भारतीय और इस्लामिक वास्तुकला को मिलाकर की गई है। यह महल हिंदू और मुग़ल गंगा-जमुनी तहज़ीब का एक अद्भुत संगम है। इस महल में दीवान-ए आम और दीवान-ए-ख़ास हैं। गौहर महल के आंतरिक भाग में नयनाभिराम फ़व्वारे थे जो कालान्तर में नष्ट हो गये हैं। फ़व्वारों की हौज़ अब भी विद्यमान है। महल के ऊपर के हिस्से में एक ऐसा कमरा है जिससे पूरे शहर का नज़ारा दिखता है और इसके दरवाज़ों पर कांच से नक़्क़ाशी की गई है। गौहर महल की दीवारों पर लकड़ी के नक़्क़ाशीदार स्तंभ, वितान और मेहराबें हैं। स्तंभों पर आकृतियां और फूल-पत्तियों का अंकन है। आंतरिक हिस्से में बेगम का निवास था जिसकी खिड़कियों से बड़े तालाब का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
भवन की दूसरी मंज़िल पर एक प्रसूतिगृह था, जिसकी दीवारों पर रंगीन चित्र बने थे। जिनको आज भी देखा जा सकता है।
गौहर महल से निकलते-निकलते शाम का धुँधलका होने लगा था। शौक़त महल घूमते-घूमते वे सभी लोग थक गये थे लिहाज़ा बड़े तालाब के किनारे बैठ कर कुछ समय बिताया।
कुँवर और शिखा ने बड़े तालाब के किनारे बैठने के बाद सबा के साथ कुछ देर बोटिंग का लुत्फ़ उठाया।
उसके बाद वे लोग नूर - ए - सबाह ( The Light of Dwan ) जो कि भोपाल के सबसे खुबसूरत महलों में से एक था। जिसे नवाब हामिद उल्लाह खान ने अपनी बड़ी बेटी बेग़म आबिद सुल्ताना के लिये 1920 ई में बनवाया था। इस सुफेद रँग के आलीशान महल की रँगत देखनी हो तो इसे पूर्णमासी के दिन जब चाँद आसमान में खिलखिला के हँस रहा हो तब इसे पूरे शबाब में देखा जा सकता है। सन 1983 में नादिर और यावर रशीद, जनरल ओबैदुल्लाह खान के पड़ पोते जो कि इस महल के मालिक थे ने 2011 ई में 'जेहन नुमा' होटल खोलने के लिये एक जाने माने ग्रुप से इकरारनामा किया। तबसे आजतक जेहन नुमा अपने आप में भोपाल शहर और नवाबियत की कहानी कहता है। आज ये भोपाल शहर का अब्बल दर्ज़े का होटल माना जाता है।
शौक़त बेग़म को देखते ही जेहन नुमा होटल के स्टाफ ने बढ़ कर उनका इस्तकबाल किया और उन्हें पूरी इज़्ज़त बख़्शते हुए एक बड़ी सी टेबल पर बैठने के लिये दरख़ास्त की। शौक़त बेग़म और गौहर बेग़म टेबल के एक तरफ और उनके एक बगल में कुँवर बैठे और उनके ठीक बगल वाली सीट पर सबा जाकर बैठ गई इससे पहले कि कोई और बैठता। इन लोगों के सामने वाली सीट पर सईद और राजकुमारी शिखा बैठ गए।
डिनर के दौरान सबा कुँवर के साथ छेड़खानी करती रही कभी ये कहके कि ये भोपाल के खास नरगिसी क़बाब हैं जिन्हें जरूर कुँवर जी चखना, तो कभी भेजा मटन फ्राई की तारीफ़ करती। कुँवर भी समझ रहे थे कि सबा का रुझान उनकी ओर बढता ही जा रहा है। कुँवर ने भी टेबल के नीचे हाथ कर सबा की बाँह में चिकोटी काटते हुए कहा, "लगता है कि भोपाल के मच्छर जरा ज्यादा ही शोख़ होते हैं जिनका खून मीठा होता है उसे वे रात भर परेशान करते हैं।
शौक़त बेग़म ने कुँवर की बात पर एक वेटर को बुला के लोभान जलाके लाके रखने के लिये कहा। शौक़त बेग़म की बात पर शिखा सबा की ओर देख कर शैतानी भरी मुस्कुराहट में बोली, "सबा मौसी ने अब मच्छरों का तो इंतज़ाम कर दिया है, तुझे कोई और दिक्कत तो नहीं है"
सबा ने भी शिखा को शैतानी भरा जवाब देते हुए बोली, "काटने भी दे कितना खून चूसेंगे कल सुबह तक पूरा हो जाएगा'
इसके बाद फिर शिखा सईद से गुफ़्तगू करने लग गई। एक शानदार शाम गुजारने के बाद वे देर रात सब शौक़त मंज़िल लौट आए।
क्रमशः
कुछ कही कुछ अनकही सी अपनी बात:
मित्रो, एक बार मैंने दिलीप कुमार साहेब के बारे में पढ़ा था कि जब उन्हें फ़िल्म के लिए कोई गमगीन शॉट देना होता था तो उस शॉट के लिये वे बहुत मानसिक तैयारी करते थे जिससे कि वह शॉट की इंटेंसिटी के साथ पूरा justification कर सकें।
इस सीरियल के लिए हॉर्स राइडिंग के सीन को और उसके बाद कुँवर और सबा के बीच बढ़ते रिश्तों को लिखते वक़्त मैंने भी वही ज़िन्दगी जी है तभी ये love scene इतने इंटेंस हो कर उभरे हैं।
I remember it was one of the finest evenings that I enjoyed at 'Jehan Numa Palace'. It brought memories alive.
उम्मीद है कि आप भी इन सीरियल को पढ़ते वक्त ऐसा ही महसूस कर रहे होंगे। अगर ऐसा है तो बस 'हाँ' भर कह दीजिये, मैं समझूंगा कि मैं कुछ ऐसा लिख सका जो आपको अपने गुज़रे वक़्त में ले जाने में सफल हुआ।


धन्यवाद।




कथांश:22
अनिरुध्द और शिखा को भोपाल आये हुए तक़रीबन बीस दिन हो गए थे। हॉर्स राइडिंग में कुँवर तो कुछ हद तक माहिर हो गए थे पर शिखा के बारे में ये नहीं कहा जा सकता था। वह अभी भी घुड़सवारी के गुरु सीख ही रही थी।
एक दिन कांकर से मुखिया जी का फोन आया और उन्होंने गौहर बेग़म से बात करके बताया कि राजा साहब दिल्ली पहुँच रहे हैं और कुँवर जी से कहिएगा कि वे भी सीधे दिल्ली पहुँचे। दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के दफ़्तर में लोकसभा के इलेक्शन के बारे में अहम मीटिंग है। गौहर बेग़म ने कुँवर से बात की और कुँवर पिताश्री की आज्ञानुसार दिल्ली के लिए निकल गये।
दिल्ली में जब राजा साहब और कुँवर की मुलाक़ात आर पी सिंह, जो कि एक मशहूर ब्रिटिश एयरक्राफ्ट कंपनी में कार्यरत थे और उनके भारत में रेजिडेंट रिप्रेजेन्टेटिव भी थे। आर पी सिंह बस्ती जिले की एक छोटी सी रियासत या यूँ कहें जमींदारी के मालिक थे जिन्हें दिल्ली की राजनीति की हलचल की अच्छी जानकारी थी। जब उनसे ऐसे ही कुँवर के भविष्य को लेकर राजा साहब ने उनसे बातचीत की तो पता लगा कि हिंदुस्तान की राजनीति करवट लेने के लिये तैयार हो रही है। पूर्वी पाकिस्तान में गृह युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं इधर काँग्रेस में भी बड़े परिवर्तन हो चुके हैं। राष्ट्रपति के चुनाव ने इशारा कर दिया है कि सियासत में काँग्रेस(इ) का अहम रोल होने वाला है इसलिये अगर कुँवर को चुनाव लड़ने का मौका अगर काँग्रेस(इ) पार्टी की तरफ़ से मिल रहा है तो यह सही समय है और उनको यह चुनाव अवश्य लड़ना चाहिए।
दिल्ली में राजा साहब और कुँवर की मीटिंग कांग्रेस अध्यक्ष से बहुत अच्छी रही और उन्होंने राजा साहब से कहा, "जाइये और आप इलेक्शन लड़ने की तैयारी करिये, कुँवर अनिरुध्द सिंह की सीट पक्की है"
दो दिन बाद राजा साहब और कुँवर जब भोपाल पहुँचे तो राजा साहब का स्वागत शौक़त मंज़िल में ऐसे किया गया जैसे किसी दामाद के पहली बार घर आने पर किया जाता है। शौक़त मंज़िल के दरवाज़े से ही उन्हें बड़ी शानोशौकत के साथ घर के अंदर लाया गया।
हवेली के बीच वाले हिस्से के बड़े से ड्राइंग रूम में उनकी ख़ातिरदारी की गई। वहीं उनकी मुलाक़ात शौक़त बेग़म से, बेटे सईद और बेटी सबा से कराई गई। शौक़त बेग़म ने राजा साहब से कहा, "हमारे पास लफ्ज़ नहीं हैं कि हम किस तरह आपका शुक्रिया अदा करें कि आपने भोपाल आने की जहमत उठाई और आप हमारे गरीबखाने पर तशरीफ़ लाये हम आपके तहेदिल से शुक्रगुज़ार हैं। हम इस बात के लिये भी शुक्रगुज़ार हैं कि आपने हमारी गौहर बहन को अपना हमदर्द बनाया और अपनी बेग़म का रुतबा दिया"
राजा साहब ने भी अपनी ओर से शौक़त बेग़म का इतने अच्छे इस्तकबाल के लिये शुक्रिया अदा करते हुए कहा, "हमें भोपाल आकर बेहद सुकून मिला है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारी बेग़म को अपनी बिछड़ी हुई बहन मिल गईं। अब इस दुनिया में कम से कम हमारे अलावा उनका कोई तो है जिसे वह अपना कह सकतीं हैं"
"जी शुक्रिया"
राजा साहब ने फिर सबा को अपने पास बुलाते हुए कहा, "इधर तो आओ बेटी। भगवान करे इतनी खूबसूरत बेटी सबको दे"
इसके बाद घर परिवार के लोगों ने कुँवर को एमपी के इलेक्शन की कांग्रेस की टिकट मिल जाने पर बधाइयां पेश कीं और उम्मीद ज़ाहिर की कि वे खुदा के फ़ज़ल से इलेक्शन में शर्तिया जीत हासिल करेंगे।
सबा से अपनी खुशी रोके नहीं रुक रही थी वह उठी और उसने कुँवर से हाथ मिलाते हुए उन्हें मुबारक़बाद दी।
उसके बाद तो सब लोगों से एक-एक करके राजा साहब ने मुलाक़ात की और चाय नाश्ते के बाद वह गौहर बेग़म के साथ उनके कमरे में आराम करने के लिए चले गए।
राजा साहब अगले दिन सईद के साथ हॉर्स राइडिंग के लिये निकले। कुँवर, शिखा तथा सबा भी उनके साथ थे। सईद सोच रहा था कि राजा साहब ने शायद पहले घुड़सवारी नहीँ की होगी पर क्लब हाउस पहुँचते ही उन्होंने सईद से कहा, "सईद बेटे तुम्हारा सबसे तेज तर्रार घोड़ा कौन सा है?"
सईद ने एक काले रँग के घोड़े की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, "हमारे अस्तबल का सबसे तेज तर्रार घोड़ा यही है जिसे हम लोग इसकी तेजी की वजह से शेरखान कहके बुलाते हैं"
राजा साहब ने सईद को एक तरफ हटाते हुए शेरखान की पीठ पर हाथ रखा और बाद में उसके गर्दन के बालों में हाथ डाल कर सहलाया और फिर सईद से कहा, "शेरखान को तैयार करो हम भी देखना चाहते हैं कि हमें घुड़सवारी आती भी है या नहीं"
उसके बाद राजा साहब शेरखान पर सवार हुए और देखते-देखते ही सब लोगों की आंखों से ओझल हो गए। जब कुछ समय बाद वे लौट कर आये तो शेरखान उनके काबू में था। सईद से रहा नहीं गया और बोल पड़ा, "अंकल आपतो बहुत अच्छे घुड़सवार हैं। हॉर्स राइडिंग आपने कब सीखी?"
"जब हम कॉल्विन ताल्लुकेदार, लखनऊ में पढ़ते थे उस ज़माने में हम लोगों को घुड़सवारी सीखना कम्पल्सरी होती थी", राजा साहब ने सईद की ओर मुड़ते हुए कहा।
उसके बाद कुँवर और शिखा ने अपने घुड़सवारी के करतब दिखलाये। शिखा की ओर देख कर राजा साहब बोले, "शिखा अभी तुम्हारी ट्रेनिंग पूरी तरह नहीं हुई है। कुँवर तो फिर भी कुछ सीख गए हैं"
सईद की तरफ इशारा करते हुए शिकायत भरे लहज़े में शिखा बोली, "सईद ने मुझे सिखाया ही नहीं है ये तो कुँवर को सिखाने के पीछे ही पड़े रहते थे"
"अरे भाई शिखा को भी अच्छी तरह ट्रेनिंग देकर एक्सपर्ट बना दो"
"जी जनाब", कह कर सईद ने शिखा की ओर देखा। शिखा की निगाह में शरारत भरी अदा देखी तो वह चुप ही रह गया।


क्रमशः

कथांश:23
शाम को जब राजा साहब वहीं भोपाल में थे एक दिन ज़नाब बशीर बद्र, सईद के दावतनामे पर शौक़त मंज़िल में तशरीफ़ लाये। उस दिन शानदार महफ़िल सजी और गौहर बेग़म की चंद ग़ज़लें सुनकर ज़नाब बशीर बद्र ने उनकी गायकी की खुले दिल से तारीफ़ की। बातों ही बातों में कांकर, तिलोई, अमेठी, टिकारी, खजुरगांव, रायबरेली वगैरह के बारे में बातें होने लगीं तो बशीर बद्र ने अपने कानपुर के दिनों की याद करते हुए बताया कि वे अपने नाना के यहाँ जाकर खूब मौज करते थे।
गौहर बेग़म ने बशीर बद्र से बातचीत में अर्ज़ किया, "एक आधा ग़ज़ल हमको भी लिख कर दे दीजिए हम भी कुछ आपकी लिखी हुई पढ़ लिया करेंगे। आपके ता ज़िंदगी शुक्रगुज़ार रहेंगे"
"जी बिल्कुल, बस आप खाना वग़ैरह लगवाइए और मै राजा साहब के साथ बैठ कर आपके लिये ग़ज़ल तैयार करता हूँ", बशीर बद्र ज़नाब ने शौक़त और गौहर बेग़म की ओर देखते हुए कहा।
कुछ देर बाद जब गौहर बेग़म लिविंग हाल में आईं तो जनाब बशीर बद्र ने ग़ज़ल उनको थमाई जिसे पढ़ कर गौहर बेग़म के मुँह से निकला, "वाह वाह क्या चीज लिख दी आपने ये मेरी सबसे पसंदीदा ग़ज़ल बनी रहेगी"
"ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में
माँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में

तुम छत पे नहीं आये वो घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत लटका सावन की घटाओं में

इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी
फूलों की बदन वाली ख़ुशबू-सी अदाओं में

दुनिया की तरह वो भी हँसते हैं मुहब्बत पर
डूबे हुए रहते थे जो लोग वफ़ाओं में"

राजा साहब जब तलक भोपाल में रहे तो घर के सदस्य कभी यहाँ तो कभी वहाँ घूमते ही रहे। शौक़त बेग़म ने एक दिन राजा साहब से पूछा कि अगर उनका मन हो तो सब लोग कुछ दिन भोपाल की गर्मी से बचने के लिये पंचमढ़ी चले चलें। राजा साहब ने कहा, "हमारे लिये तो भोपाल का मौसम ही बड़ा ख़ुशगवार और सुहाना है जैसे यहाँ छोटा और बड़ा ताल वैसे ही हमारे यहाँ माँ गंगे हैं पर बच्चों के साथ कुछ अच्छा वक़्त गुजरेगा चलिये चले चलते हैं"
बस राजा साहब के हाँ कहनेे भर की देर थी सब लोग तैयार हुए और वे सब लोग कार से होशंगाबाद होते हुए पंचमढ़ी के लिये रवाना हो लिये। वहाँ पहुँच कर वे लोग वहाँ के अंग्रेजों के वक़्त के 'हेरिटेज गोल्फ व्यू' में रुके। वहाँ के सुकून भरे मौसम और वादियों में घूमते हुए सभी लोगों को बेहद अच्छा लगा।
राजा साहब जहाँ गौहर बेग़म और शौक़त बेग़म के साथ अधिक वक़्त बिताते तो दूसरी ओर सबा और अनिरुध्द तथा शिखा और सईद मिल कर कभी इधर तो कभी उधर घूमने निकल जाते।
पंचमढ़ी जो कि सतपुड़ा पर्वतों के बीच मध्य प्रदेश का एक मात्र हिल स्टेशन है जहाँ गर्मियों के सीजन में अच्छी खासी रौनक रहती है। एक दिन शाम के वक़्त सबा ने अनिरुध्द से बात कर प्रियदर्शिनी पॉइंट देखने का प्रोग्राम बनाया और साथ मे शिखा और सईद को भी अपने साथ ले कर निकल पड़े। रास्ते मे सबा कुँवर से हर रोज़ की तरह छेड़खानी करती पर कुँवर अपनी ओर से कुछ भी न कहते। जब रास्ते मे सईद और शिखा कुछ आगे निकल गए तो सबा ने कुँवर का हाथ पकड़ा और बोली, "कुँवर आप कैसे ठंडे इंसान हैं एक हम जो आपके करीब आना चाह रहे हैंऔर एक आप हैं कि मुझसे दूरी बनाए रहते हैं"
कुँवर जो अब तक सबा की हर कोशशि को अनदेखा कर दिया करते थे आज उसकी आँखों के भीतर झाँकते हुए पिघल ही गये और सबा को अपनी बाहों में लेकर बोले, "ऐसी बात नहीं है पर मुझे शौक़त मौसी से बड़ा डर लगता है कि कहीं वह मुझे तुम्हारे साथ देख कर कुछ और ही मतलब न निकाल बैठें"
"कैसा मतलब?"
"वही कि हमारे बीच कुछ चल रहा है"
"फिर क्या होगा जो उन्हें पता लग जायेगा तो लग जाने दीजिए। मैं तो आपको बहुत चाहती ही हूँ"
"बहुत जल्दी में लगती हो"
"वो इसलिए कि कोई और बाज़ी न मार ले"
"इसका मतलब यह कि खुद पर भरोसा नहीं है"
"खुद पर तो है पर आपकी ओर से डर लगता है"
"मैं कोई शेर हूँ जो तुम्हें खा जाऊँगा। चलो छोड़ो भी एक काम जो तुम कर सकती हो वो ये करो कि तुम मुझे तुम कह कर पुकारा करो तुम्हारे मुहँ से ये आप आप अच्छा नहीं लगता"
"नहीं अल्लाह कसम ये हमसे न होगा, हम आपको कुँवर कह कर ही बुलायेंगे"
"इतनी भी फॉर्मेलिटी आख़िर क्यों"
"वो इसलिये कि हम आपका रुतबा किसी से कम नहीं करना चाहते हैं आप हमारे लिये बेहद ख़ास हैं"
"नहीं मानोगी तो तुम्हें जो समझ में आये वह कह के बुलाओ"
"ठीक है इसका सबब ये हुआ कि हमने अपनी जगह आपके दिल मे बना ली है"
"अगर मैं कहूँ हाँ तो क्या करोगी"
इतना सुनते ही सबा कुँवर के सीने से जा चिपकी। कुँवर ने भी उसे अपनी बाहों में लेकर उसे आश्वस्त किया कि उसे चिंता करने की ज़रूरत नहीं वह भी उसे उतना ही चाहते हैं जितना कि वह उन्हें।
उधर सईद और शिखा साथ साथ चलते बहुत दूर निकल गए। जब शाम को सब लोग डिनर के पहले मिले तो राजा साहब ने सबा से पूछा, "हमारे कुँवर के बारे में क्या ख़्याल है?"
"जी मैं कुछ समझी नहीं"

क्रमशः


कथांश:24

बीच मे गौहर बेग़म बोल पड़ीं, "अरे सबा हुकम ये पूछ रहे हैं कि तुम्हें कुँवर अच्छे लगते हैं"

"जी उन्हें कौन नहीं चाहेगा हम चीज़ ही क्या हैं उनके सामने?"

गौहर बेग़म इस पर बोल उठीं, "ये हुई न दिल वालों जैसी कोई बात"

राजा साहब गौहर बेग़म की बात के बाद कुछ न बोले पर अपने मन के भीतर ही भीतर कुँवर की शख्शियत पर नाज़ करने लगे।

दो दिन पंचगढ़ी में बिताने के बाद सभी लोग भोपाल लौट आए। इधर कांकर से निकले हुए बहुत दिन हो गए थे तो एक दिन राजा साहब ने गौहर बेग़म से पूछा, "अब हम कांकर वापस जाना चाहेंगे आपका क्या ख़्याल है"

"आप बताइए"

"अभी शिखा की हॉर्स राइडिंग की ट्रेनिंग चल ही रही है तो हम चाहेंगे कि आप अभी कुछ दिन और रुकें, कुँवर को हम अपने साथ ले जाएंगे क्योंकि हमें उनके इलेक्शन की अब चिंता सताने लगी है"

गौहर बेग़म ने कहा, "आपका जो हुक़्म होगा हम वही करेंगे"

तीन चार दिन और रह कर राजा साहब और कुँवर भोपाल से लखनऊ के लिये निकल लिये। जाते-जाते राजा साहब ने सबा से कहा, "आम का सीजन आने वाला है। दशहरी तबियत से खानी हो तो एक बार शौक़त बेग़म को साथ लेकर तुम गौहर बेग़म के साथ कांकर-ज़रूर ज़रूर आना"

शौक़त बेग़म ने भी राजा साहब के भोपाल आने के लिये फिर से शुक्रिया किया और कांकर आने का वायदा किया।

राजा साहब ने कांकर पहुँचते ही कुँवर के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। आसपड़ोस के ग्राम पंचायत के प्रधानों की मीटिंग बुलाई और उनसे कहा कि कुँवर अगला चुनाव लड़ना चाह रहे हैं। जब सभी लोगों ने कुँवर के लिए काम करने का वायदा किया तब जाकर राजा साहब को चैन आया। कुँवर और राजा साहब ने अलग-अलग गाँवों का दौरा करना शुरू किया। एक-एक दिन में वे दोनों ही कम से कम बीस से पच्चीस गाँव जाते और लोगों से मिलते जन संपर्क करते और व्यक्तिगत जान पहचान बढ़ाते। कुँवर की क्षमताओं का कोई ज्ञान पहले राजा साहब को भी नहीं था पर उनकी ये याददाश्त देख कर वह बेहद खुश हुए कि जिस व्यक्ति से कुँवर एक बार मिलते तो उसे अपना बना कर ही छोड़ते साथ ही साथ यह कि वह हर व्यक्ति का नाम अपने मन में सजो लेते।

राजा साहब और कुँवर जब प्रचार के अपने कार्यक्रमों में व्यस्त थे। इधर एक दिन उन्हें खबर मिली कि कुँवर के नानाजी की तबियत बहुत खराब है। राजा साहब महारानी करुणा देवी और कुँवर के साथ खजूरगांव के लिये निकल पड़े। वहाँ पहुँच कर डॉक्टर्स ने उन्हें बताया कि राणा साहब की किडनी फेल हो चुकीं है और फेफड़ों में भी पानी भर गया है और उनकी हृदय गति भी ठीक नहीं है। राजा साहब के बार-बार पूछे जाने पर कि क्या उनको इलाज़ के लिए बाहर ले जाएं। जो डॉक्टर इलाज़ कर रहे थे उन्होंने बताया कि राणा साहब को उन्होंने बहुत पहले ही कहा था पर वह खजूरगांव छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहते थे और उन्होंने ज़िद पकड़ ली थी कि वे अपनी अंतिम सांस खजूरगांव में ही लेंगे।

राणा साहब की हालत और बिगड़ती गई और कुछ दिनों में ही वह स्वर्ग सिधार गए। राजा चंद्रचूड़ सिंह वहीं रुके रहे और महारानी के दुःख की इस घड़ी में वे उनके साथ बने रहे। राणा साहब के अंतिम संस्कार के लिये मिलने आने वालों की भीड़ आने लगी।

महारानी के पिताश्री राणा साहब के अंतकाल की ख़बर सुन कर गौहर बेग़म, शिखा को लेकर कांकर आ गईं। वहाँ से वे सभी लोग रानी शारदा देवी के साथ राणा साहब के अंतिम संस्कार और अन्य कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए खजूरगांव पहुँच गए।

कुँवर अनिरुध्द सिंह ने राणा साहब के मृत शरीर को दाग क्रिया कर के पवित्र अग्नि के हवाले किया। राणा साहब की पुत्री एकमात्र महारानी करुणा देवी थीं, इसलिए राणा की पदवी कुँवर अनिरुध्द सिंह को प्राप्त हुई और तेरहवीं के बाद बिरादरी भोज की भोज की रस्म के साथ ही उन्हें गद्दीनशीं किया गया।

राजा साहब के परिवार का रुतबा खजूरगांव रियासत के उनके परिवार में मिलने की वजह से समाज में और बढ़ गया जिसका लाभ उन्हें अनिरुध्द के इलेक्शन में शर्तिया मिलने वाला था।

क्रमशः

कथांश:25

कुछ दिनों बाद जब स्थित सामान्य हो गई तो शौक़त बेग़म, सबा को साथ लेकर एक रोज़ कांकर आ गए। कांकर में सबा को देख कर राजा साहब बहुत खुश हुए और बोले, "आज ही दशहरी की ताजा-ताजा खेप आई है मन भर खाओ और यहाँ देहात के इलाक़े में मौज करो"

"जी", कह कर राजा साहब का सबा ने शुक्रिया अदा किया।

शौक़त बेग़म और सबा ऐश महल आ गईं। होने को आई और तब तक सबा की मुलाक़ात कुँवर से जब नहीं हो पाई तो वह कुछ उदास हो गई। पहले तो उसे ये अच्छा नहीं लगा कि वह यहाँ ऐश महल में थी और शिखा वहाँ सूर्य महल में।

शाम होते ही जैसे ही कुँवर अपने जन संपर्क कार्यक्रम के बाद जब महल लौटे और शिखा से मुलाक़ात हुई तब शिखा ने उन्हें बताया, "भइया सबा भी आई है"

"कहाँ है?", कुँवर ने पूछा।

"ऐश महल में माँसी के पास"

"चल मेरे साथ उससे मिल कर आते हैं नहीं तो वह यहाँ आकर बोर ही हो रही होगी"

"जी चलिये"

कुँवर ने अपनी गाड़ी निकाली और शीघ्र ही वे लोग ऐश महल आ पहुँचे। महल की चौपड़ में उन्हें ख़ानम बेग़म देखीं और उनसे जानकारी कर वे दोनों गौहर बेग़म के ड्रॉइंग रूम में उनका इंतजार करने लगे।

सबा अपनी खाला जान गौहर के पास बैठी हुई थी उसकी निगाह जब कुँवर पर पड़ी तो उसकी जान में जान में जान आई और बोली, "कुँवर जी मैं आपको कह नहीं सकती कि मैं आज बहुत खुश हूँ क्योंकि मुझे यहाँ आकर पता लगा कि आप खजूरगांव रियासत के राणा बन चुके हैं तो मैं अब आपको राणा जी ही कह कर बुलाया करूँगी"

शिखा भी वहीं कुँवर के साथ खड़ी थी। उसे शरारत सूझ रही थी तो वह सबा को चिढ़ाने के लिये बोल पड़ी, "ये मेरा तो भाई है मैं तो इन्हें भाई ही कह कर बुलाती हूँ तेरा मन करे तो तू भी इन्हें भइय्या कह कर बुला लिया कर"

"मारूँगी शिखा भाई होंगे तेरे मेरे तो ये राणा जी हैं"

"ये सबा अभी से तूने तेरे मेरे करना शुरू कर दिया पता नहीं तू आगे जाकर क्या करेगी?"

"कुछ नहीं करूँगी मैं तेरे साथ वही सुलूक़ करूँगी जो अभी करती हूँ तू मेरी दोस्त है और दोस्त ही रहेगी"

कुँवर इन दोनों की छेड़छाड़ भरी बातें चुपचाप सुन रहे थे और मन ही मन खुश भी हो रहे थे। दोनो के बीच आते हुए बोले, "बन्द भी करो ये बेकार की बातें और काम की बात बताओ कि मौसी कहाँ है?"

"अंदर हैं खालाजान के पास"

"क्या हम मिल सकते हैं उनसे?"

"मज़ा आ गया इस 'हम' में अब हुकम वाली खनक लगती है", सबा ने एक बार फिर कुँवर से छेड़खानी करते हुए कहा, "आइये मेरे राणाजी, आइये न अंदर आइये न"

सबा के पीछे-पीछे कुँवर और शिखा दोनो जनानखाने में शौक़त बेग़म से मिलने चले आये।

क्रमशः
कतांश:26

कुँवर ने शौक़त बेग़म का हाल चाल पूछते हुए कहा, "मैं इलेक्शन के काम मे लगा हुआ था इसलिये पिताश्री ने आपके आने की ख़बर ही नहीं की नहीं तो मैं खुद ही लखनऊ रेलवे स्टेशन आकर आपको अपने साथ ही लेकर आता"

"अरे नहीं कुँवर आप क्यों जहमत करते, मैं मुखिया जी के साथ आराम से आ गई थी। ...और बताइये आपके इलेक्शन की तैयारी कैसी चल रही है?" शौक़त बेग़म ने कुँवर से पूछा।

"अभी तो शरुआती दौर है, सब ठीकठाक है। लगता तो नहीं कोई दिक्कत होगी। मौसी इस इलेक्शन के चक्कर मे मेरी पढ़ाई बीच में ही रह गई नहीं तो मैं दो साल में डॉक्टरेट कर लेता। अब तो मैं भी वगैर पढ़े लिखे लोगों की जमात में शामिल हो गया हूँ"

"अरे छोड़िये भी आपको कौन किसी की नौकरी करनी है। आप तो अपनी मर्ज़ी के खुदमुख्तार हैं। आपको तो हुक़ूमत करनी आनी चाहिये, घुड़सवारी वग़ैरह सीखिए और मौज करिए"

"आपा, आज आपने वही बात जो हुकम को उनके प्रिंसिपल ने कही थी जब वह कॉल्विन ताल्लुकेदार में पढ़ा करते थे", बीच मे टोकते हुए गौहर बेग़म बोल पड़ीं।

"शौक़त जो हक़ीक़त है उससे क्या मुँह मोड़ना"

"जी आपा"

शिखा बीच मे बोल पड़ी, "हम लोगों ने मौसी आपके यहाँ घुड़सवारी सीखी थी। यहाँ सबा हाथियों को कैसे काबू करती हैं सीखेगी। हमारे यहाँ कई हाथी हैं"

"छोड़ मुझे महावत नहीं बनना है। हाँ, एक दिन तेरे साथ घूमने ज़रूर चलूँगी", सबा न शिखा से कहा।

कुँवर ने अपनी ओर से सुझाव देते हुए कहा, "ऐसा करते हैं हम लोग कल ही हाथियों पर सवार हो अपनी अमराई में चलेंगे और वहीं दाल बाटी का प्रोग्राम रखते हैं। मौसी आप और माँसी आप साथ रहियेगा"

गौहर बेग़म बोल उठीं, "बड़ा मजा आएगा कल हम लोग अपने साथ महारानी और रानी साहिबा को भी साथ ले चलेंगे। हुकम रहेंगे तो और भी मज़ा आएगा"

शिखा, सबा की ओर देखते हुए बोली, "देखा मेरा भाई तेरा कितना ख़्याल रखता है"

"मेरे लिये ये सब थोड़े ही हो रहा है, मैं तो उस दिन का इंतज़ार कर रही हूँ जब ख़ास मेरे लिये कोई प्रोग्राम राणा जी बनाएंगे"

कुँवर ने सभी के सामने कुछ जबाब नहीं दिया पर मन ही न एक प्रोग्राम ख़ास सबा के लिये बना लिया। कुछ देर वहाँ रह कर कुँवर जब चलने लगे तो शिखा बोली, "सबा तुम चलो आज मेरे साथ ही रहना"

सबा शिखा की बात सुनकर बहुत खुश हुई और बेग़म शौक़त की ओर देखने लगी। शौक़त बेग़म ने भी उसकी ओर देखते हुए कहा, "जा तेरा मन है तो जा, यहीं क्या करेगी? अपने कपड़े वग़ैरह लेती जाना"

गौहर बेग़म बोल पड़ीं, "तू जा मैं तेरे कपड़े चोबदार के हाथों भिजवा दूँगी"

शिखा, सबा और कुँवर कुछ देर ऐश महल में बिता कर सूर्य महल आ गए।

क्रमशः
कथांश:27

रात को जब गौहर बेग़म राजा साहब से मिलीं तो उन्होंने पूछा, "बच्चे कल अमराई जाना चाह रहे हैं, आप चलेंगे?"

"मुझे तो बताया गया है कि आप और शौक़त बेग़म भी तो जा रहीं हैं"

"कल पूरा परिवार रहेगा महारानी और रानी साहिबा भी रहेंगी आप चलेंगे तो हम सभी को अच्छा लगेगा"

राजा साहब ने जबाब दिया, "हम ज़रूर ज़रूर पहुँचेंगे पर कुछ देर से हमारी एक मीटिंग है उसे निपटा कर हम आपको अमराई में ही मिलेंगे। मुखिया जी को हमने सभी इंतज़ाम करने के लिये कह दिया है"

"आपका बहुत बहुत शुक्रिया"

राजा साहब ने गौहर बेग़म को अपने पास बुलाते हुए उनसे पूछा, "हमारा एक सवाल है और हम उम्मीद रखते हैं कि आप हमें सही-सही जबाब देंगी"

"जी पूछिये", गौहर बेग़म ने कहा।

राजा साहब यह सोचते हुए कि अभी पूछना ठीक होगा है या नहीं आख़िर में गौहर बेग़म से बोले, "बेग़म बड़ी ईमानदारी से बताइये कि कुँवर क्या सबा को चाहने लगे हैं?"

"मैं तो डर ही गई थी पता नहीं आप क्या पूछने वाले है? अगर मैं कहूँ जी नहीं तो आप क्या कहेंगे?"

"हम क्या कह सकते हैं, हम तो तीन-तीन बेग़मो के साथ रहते हैं हम कुँवर को क्या कहेंगे। जब हमारे दिल मे मज़हब का कोई ख़्याल नहीं है तो हम बस ये जानना चाहते हैं कि उनके बीच कुछ है या नहीं?

"मुझे आपसे यही उम्मीद थी। अब अगर आप चाहते हैं कि हम सबा को यहीं रोक दें तो हम आपकी इस ख़्वाहिश को हुक्म मानकर अंजाम तक पहुँचा देंगे"

"नहीं बेग़म हम अपने कुँवर के ख़िलाफ़ कोई भी साजिश नहीं करना चाहते हैं, बस ये चाहते थे कि ये लोग अभी बस ज़माने की निग़ाह से बच कर रहें ख़ासतौर पर जब कि अभी इलेक्शन होने वाले हैं हम तब तक बस ये चाहते हैं कि कहीं कोई इसे मुद्दा न बना दे"

"मैं आपसे इन मुआमले में इत्तफ़ाक़ रखती हूँ और आप चिंता न करें, मैं सब सम्हाल लूँगी और वैसे भी अब कुछ ही दिनों में इनके कॉलेज खुलने वाले हैं। ये लोग यहीं से दिल्ली को रवाना हो जायेंगी बस आपा कुछ दिन और रहेंगी"

"अरे बेग़म वो हमारी मुअज़्ज़िज़ मेहमान हैं वो यहाँ रहेंगी ये तो हमारी शान में चार चाँद लगने वाली बात है"

गौहर बेग़म ने उठते हुए राजा साहब से पूछा, "आपकी मेहमानदारी की दुनिया यूँही मिसाल देती है। आप अपने मेहमानों को खातिरदारी में कुछ भी कसर नहीं छोड़ते"

"बेग़म आपका बहुत-बहुत शुक्रिया"

"हुकुम कुछ पीजियेगा?"

"नहीं बेग़म मन नहीं है। चलिये अभी कुछ देर हम शौक़त बेग़म के साथ गुफ़्तगू करना चाहेंगे आज वह वैसे भी अकेली हैं। सबा तो शिखा के साथ है"

"जी बेहतर है। आइये मैं उन्हें ऊपर वाली अटारी पर बुला भेजती हूँ, हम लोग वहीं बैठ कर खाना खाएंगें"

"शायद यही बेहतर रहेगा"

इसके बाद राजा साहब और गौहर बेग़म ऊपर अटारी पर चले गए। ख़ानम बेग़म से ख़बर करा कर शौक़त बेग़म को भी उन्होंने वहीं बुलवा लिया। थोड़ी ही देर में शौक़त बेग़म भी तैयार होकर आ गईं। बातचीत का दौर जब चल निकला तो बेग़म शौक़त ने ऐश महल की तारीफ़ में न जाने क्या-क्या में कहा कि राजा साहब का दिल बाग़-बाग़ हो गया और उनके मुँह से निकल पड़ा:

"ऐश महल हमारे पितामह ने मेहमानों की ख़िदमत के लिये गंगा किनारे इसलिए बनबाया था कि जब वे लोग यहाँ आएं तो उन्हें कांकर की मेहमानदारी ता ज़िन्दगी याद रहे। उनके दोस्त अक़्सर यहाँ आते और रात भर नाच गाना और खानापीना होता। जिले का हर अफ़सर इस महल में ही आकर रुकता था। यहाँ तक कि जब देश का स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था तब भी यहाँ बड़े-बड़े नेता यहाँ आकर रुके थे। इस तरह हमारा कांकर भले ही एक गाँव हो पर मेहमानदारी के लिये दुनिया भर में जाना जाता है। एक बार तो यहाँ शाम की दावत में यूनाइटेड प्रोविंस के लाट साहब भी आकर रुके थे"

तीनों लोगों ने मिलजुल कर खाना खाया। खाना खाते वक़्त भी शौक़त बेग़म राजा साहब ने और भी कई किस्से कहानियां सुना कर पुराने वक़्त की यादें ताज़ा कीं। राजा साहब इतने खुश थे कि उन्होंने अपनी विदेश यात्रओं के कई दिलचस्प वाक़्यात सुनाये जो पहले कभी भो गौहर बेग़म ने भी नहीं सुने थे।

गौहर बेग़म से जब नहीं रहा गया तो आखिर में वह बोल हो पड़ीं, "आशिक़ाना मिज़ाज़ तो आपका शुरू से ही रहा है ये हम तीनों बेगमात को बहुत अच्छे से मालूम है पर आज आपसे जाना कि आपने दूसरे मुल्क के दौरों पर भी खूब गुल खिलाये हैं"

राजा चंद्रचूड़ सिंह भी आज बहुत खुश थे और इसी अंदाज़ में बेग़म से बोल, "बेग़म ये जिंदगी अल्लाहताला एक बार ही बख्शता है। यहाँ आकर हँस लो या रो लो वह आपके खुद के ऊपर है"

क्रमशः

कुछ कही कुछ अनकही सी अपनी बात:

कुछ मित्रों ने लिखा है कि आपकी कल्पना के पात्र अधिकतर अपनी बिरादरी से सम्बंधित लोगों को ही क्यों सदैव अपनी कहानी, किस्से, धारावाहिको के केंद्र बिंदु क्यों बनाते हैं। इस पर मुझे ख़्याल आया कि इसी तरह का प्रश्न एक बार रोम में माइकेल एंजेलो से भी पूछा गया था कि आप हमेशा शिल्पकारी करते समय पुरुषों को ही अपनी शिल्पकला में क्यों ढालते हैं। आप कभी स्त्रियों को अपनी कला का हिस्सा क्यों नहीं बनाते?

उस वक़्त माइकेल एंजेलो, डेविड का ही नहीं बल्कि न जाने कितने ही जाने माने रोम (इटली) के दर्शनीय स्थलों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनमाने वाले महान शिल्पकार ने यह उत्तर दिया था, "मैंने अपनी नग्नता को देखा है। जिसे मैंने भीतर से देखा ही नहीं है उसको मैं अपनी कृति का हिस्सा कैसे बना सकता हूँ"

धन्यवाद।




कथांश:28
अगले दिन तयशुदा प्रोग्राम के हिसाब से सभी लोग चार हाथियों पर सवार हो कर दो मील दूर अमराई तक आये जहाँ मुखिया जी ने पहले ही पूरा इंतज़ाम कर रखा था। तीन बड़े-बड़े शिकार वाले टेंट लगे हुए थे, एक तरफ खाना बनाने वालों के लिए इंतज़ाम था। रात को हल्की सी बारिश हुई थी इसलिये मौसम भी सुहाना हो गया था, सही मायने में एक आदर्श दिन पिकनिक करने के लिए था।
एक टेंट में महारानी, रानी, गौहर और शौक़त बेग़म थीं तो दूसरे टेंट में शिखा और सबा के साथ कुँवर थे। वहाँ पँहुचते ही सबको ठंडा पानी पिलवाया गया और उसके बाद एक कप चाय। बाद में वे सभी बाग़ में घूमने निकल पड़े। अमराई मीठे-मीठे दशहरी आमों से लदी पड़ी थी। सबा के लिये यह ज़िंदगी का यह पहला मौका था तो उसे सबसे ज्यादा मज़ा आ रहा था। वह चिड़ियों की तरह कभी इधर फुदकती तो कभी दूसरी ओर। उसने हाथों से डाल के पके-पके आम तोड़े जो वह आज खाना खाने के बाद खाना चाह रही थी। कुँवर ने उसको आम तोड़ते हुए जब देखा तो उससे बोले, "देखना पके-पके आम ही तोड़ना। कच्चे-कच्चे आम की चैंप गाल से चिपक गई तो चेहरे पर घाव हो जाएगा"
सबा ने भी इसी तरह के हल्के फुल्के माहौल को देखते हुए कुँवर से कहा, "हमारे चेहरे की जिसको इतनी चिंता है तो हमारी मदद क्यों नहीं करते"
"तुम हटो मैं किसी को बोलता हूँ वो आम तोड़ कर ठंडे पानी मे भिगो के रखेगा। जब खाओगी तो अच्छा लगेगा", कुँवर ने सबा से कहा और एक सेवादार से कह कर आम तुड़वाने के लिये कह दिया।
जब सबा बाग़ के जब भीतरी हिस्से में पहुँची तो उसे तीन चार बटेर दिख गईं फिर क्या था वो उनको पकड़ने के लिये ऐसे भागी जैसे कि कोई बच्ची हो। शौक़त बेग़म जो उसे दूर से निहार रहीं थीं उसे इन हरकतों को करते इतना अच्छा लग रहा था कि उनकी आंखों से खुशी के दो आँसू निकल आये और उनके मुहँ से बरबस ही निकल गया, "आजतक मैंने अपनी बच्ची को कभी इतना खुश नहीं देखा। अल्लाह ये खुशियाँ उसके दामन में जी भर के डाल देना"
महारानी जो शौक़त बेग़म के साथ थीं उनकी ये हालत देखकर बोल उठीं, "बेग़म आपकी बेटी बहुत भोली है। उसमें वह अल्लहड़पन है जो हमने कभी अपने बचपन में महसूस किया था। भगवान उसे हमेशा खुश रखे यही हमारी दुआ है"
रानी शारदा देवी ने भी कुछ इसी तरह के अल्फ़ाज़ सबा की शान में कहे जिन्हें सुनकर दोनो बहनें शौक़त और गौहर बेग़म बहुत खुश हुईं। कुछ देर इधर-उधर घूम कर सभी लोग झूला झूलने चली गईं।
सबा शिखा के साथ थी जब कुँवर ने अपनी राइफल से दो उड़ती हुई चिड़ियों को मार गिरा कर सबा को ये दिखा दिया कि वह एक बहुत बढ़िया निशाने बाज़ भी हैं। जब कुछ देर बाद एक सेवक उन दोनों सोनापतारियों को उठाकर लाया तो सबा को एक मौका मिल गया कुँवर की खिंचाई करने का और वह बोल पड़ी, "वाह-वाह क्या निशाना मारा है जबाब नहीं, इन आँखों के हम भी तो इसी तरह शिकार हो गए थे पर हमको तो किसी ने नहीं सहलाया था"
कुँवर अपने को जब नहीं रोक पाए तो बोल उठे, "सबा ऐसा कुछ नहीं है जब उस दिन पंचमढ़ी में तुम मेरे सीने से आ चिपकीं थीं तो तुम्हें किसने सम्हाला था"
"आपने और किसने"
"तो झूठ तो न बोला करो"
शिखा जो थोड़ी दूर पर थी पर दोनों के बीच हुई बातचीत सुन पा रही थी ताली बजाते हुए बोली, "मान गए, भाई मान गए। सबा तू एक ज़िंदगी और खुदा से माँग के जियेगी तब भी मेरे भइया की बराबरी न कर पायेगी"
शिखा की बात का कोई जबाब सबा के पास था ही नहीं बस इसके अलावा कि वह कुँवर के सीने से जा लगी। कुँवर ने उसे धीरे से सम्हाला और वे लोग टेंट में लौट आये जहाँ राजा साहब भी आ गए थे और इन्ही लोगों का इंतज़ार कर रहे थे।
मुखिया जी ने राजा साहब से पूछ कर सबके लिये खाना परसवाया जो सभी ने बड़े स्वाद से खाया। बाद में देशी घी में बना मूँग का हुआ हलवा परोसा गया।
एक सुहाना दिन राज परिवार के साथ बिता शाम होने के साथ शौक़त बेग़म और सबा ऐश महल लौट आए।



क्रमशः


कथांश:29
गर्मियों के दिन थे इसलिये चुनाव प्रचार सुबह के समय ठंडे-ठंडे वातावरण में ठीक प्रकार से हो जाता था इसलिये राजा साहब और कुँवर दोनों ही जल्दी महल से अपने निश्चित प्रोग्राम के हिसाब से निकल जाते थे। दूसरी पार्टियों के लोग परेशान थे कि राजा साहब और कुँवर इतनी मेहनत करेंगे तो उनको हराना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाएगा। चूँकि किसी दूसरी पार्टी ने अपने पत्ते नहीं खोले थे इसलिये उनके पास सिर्फ़ देखने भर के और कोई चारा भी न था।
कुछ दिन गुजर जाने के बाद जब जुलाई में स्कूल कॉलेज खुलने के लिये हुए तो एक शाम कुँवर ने ऐश महल के पीछे वाले प्लेटफॉर्म पर ताज़ी-ताज़ी मछली और कुछ और पकवान के साथ खाने का प्रोग्राम बनाया। उन्होंने सुबह ही मुखिया जी को सब इंतज़ाम करने के लिए कह दिया था।
सूरज डूबने के एक घँटे पहले ही कुँवर तैयार हो कर शिखा और सबा के साथ ऐश महल पहुँच गए। महल के गलियारे के रास्ते होते हुए वे पीछे जाने वाली सीढ़ियों से वे गंगा जी के किनारे आ पहुँचे। मुखिया जी ने अपनी ओर से वहाँ एक मोटर बोट पहले ही से लगवा दी थी जिससे कि अगर मेहमानों का मन करे तो वे लोग बोटिंग का भी मज़ा लें। नाव को देखते ही कुँवर बड़े ख़ुश हुए और उन्होंने मुखिया जी से कहा, "मुखिया जी महल में ऊपर मौसीजी और माँसी को खबर करा दीजिये कि हम लोग उनका यहाँ इंतज़ार कर रहे हैं"
कुछ देर बाद वहाँ शौक़त और गौहर बेग़म आ गईं। सबको बोट में बिठा कर कुँवर नदी में बहुत दूर तक चले गए। गंगा नदी का विशाल पाट और उस पर डूबते हुए सूरज की किरणें पानी की सतह पर जगमग करती हुईं अठखेलियां कर रहीं थी। गंगा नदी के दूसरे पाट पर दूर तक लगी हुई जंगली खरपतवार के बीच डूबते हुए सूरज का दृश्य अपने आप मे अनोखा था।
बहुत देर गंगा नदी में बोटिंग का मज़ा लेने के बाद जब बोट को एक जगह लाकर कुँवर ने खड़ा कर दिया और सबा से पूछा, "सबा बताओं कि तुम्हें हमारे कांकर में बोटिंग में उतना ही मज़ा आया जितना कि तुम्हें भोपाल के बड़े ताल में आता है"
"कांकर-कांकर है और भोपाल-भोपाल, दोनो का अपना-अपना मज़ा है", सबा ने जबाब दिया।
शौक़त बेग़म को लगा कि सबा ने जो जबाब दिया वो अखलाखन ठीक नहीं था इसलिये वह बोल पड़ी, "कुँवर बहते हुए पानी मे बोटिंग का अपना ही मज़ा है। जो मज़ा यहाँ है वह भोपाल के बड़े तालाब में कहाँ"
इस पर शिखा बोली, "मौसी कांकर में सिवाय इस गंगा नदी और महलों के अलावा और है ही क्या? मैं तो यहाँ कुछ दिनों में ही बोर होने लगती हूँ"
"बेटी तू अभी सुकून भरी जिंदगी की अहमियत नहीं समझती है, इसलिए तुझे शहरी ज़िंदगी की चटक-मटक अच्छी लगती है। तू हम से पूछ कितना सुकून है यहाँ की ज़िंदगी में", अबकी बार गौहर बेग़म ने बीच मे बोलते हुए अपनी बात रखी।
सबा ने गौहर बेग़म की बात पर अपनी ओर से ये कहा, "जब इंसान की ज़िंदगी में मोहब्बत बेहिसाब हो तो जंगल भी मंगल लगता है पर जब ज़िंदगी में और कुछ न हो करने के लिये तो ऐसी जगह काटने को दौड़तीं हैं"
शिखा ने सबा का हाथ दबाते हुए कहा, "तुझे तो यहाँ फिर बड़ा मज़ा आया होगा"
"वो तो है मैंने यहाँ आकर अपना एक एक पल जिया है और राजसी ठाठ बाट भरी जिंदगी जी है। मुझे तो यहाँ आकर बड़ा अच्छा लगा", सबा ने कहा।
"अगर ये बात है तो सबा तुम तैयार हो जाओ तुम्हें और शिखा को अपने साथ कम से कम आठ दस लड़कियाँ और लानी हैं", कुँवर बोले।
सबा ने बीच में ही में उनकी बात काटते हुए कहा, "क्या एक से मन नहीं भरा जो दस बीस और चाहिए?"
"हठ पगली कहीं की मैं इसलिये कह रहा था जब कुछ लोग डीयू के रहेंगे तो इलेक्शन में यहाँ के युवा वर्ग से अच्छा संपर्क बनाया जा सकेगा"
"ये बात है तो फिर तो मैं अपने साथ आठ दस नहीं बीस तीस लेकर आऊँगी। कुँवर उनके यहाँ रहने और खाने पीने का इंतज़ाम तो हो जाएगा न"
"तुझे यहाँ खाने पीने को कुछ नहीं मिला रहा है क्या?"
"नहीं मैंने तो यहाँ खूब ऐश करी है"
इस पर बोट को ऐश महल की ओर मोड़ते हुए कुँवर ने कहा, "सबा देखो हमारा ऐश महल कितना लाज़बाब लगता है"
सबा ने ऐश महल की खूबसूरती निहारते हुए और अपनी खाला जान की ओर देखते हुए कहा, "इस महल में रहने वाली शख्शियत भी तो बेमिसाल हुस्न की मलिका जो है"
"वो हमारी सबसे खूबसूरत माँसी जो हैं", शिखा और कुँवर के मुँह से एक साथ ये सुनने को मिला जिसे सुनकर गौहर बेग़म को बेइंतिहा खुशी हुई और वो बोल पड़ीं, "मुझे अपनी बेटी और बेटे पर नाज़ है"
कुछ देर में बोट महल के पिछवाड़े आ गई और सब लोग उतर कर वहाँ पड़ी कुर्सियों पर आराम से बैठ गए। उसके बाद ऐश महल के बाबरची ने उनके लिये एक से बढ़ कर एक लज़ीज़ डिश पेश कीं।
कुँवर और शिखा ने मिलकर सबा की खूब खिंचाई की। दो दिन बाद सबा और शिखा दिल्ली चली गईं क्योंकि उनके कॉलेज जो खुल गए थे।
क्रमशः


कथांश:29
वक़्त धीरे-धीरे गुज़रने लगा। कॉलेज खुलने के साथ ही शिखा और सबा दिल्ली चलीं गईं और कुँवर ने अपने क्षेत्र में पकड़ बनाना शुरू कर दिया। मौसम के बदलाव ने जन संपर्क के काम में कुछ व्यवधान डाला पर बारिशों के समाप्त होते ही राजा साहब और कुँवर ने अपने प्रयास दोगुने कर दिये।
एक दिन मुखिया जी ने राजा साहब से बातचीत कर शारदीय दुर्गा नवरात्रि के आयोजन के बारे में बात की तो राजा साहब ने कहा, "बिल्कुल मुखिया जी अवश्य ही यह कार्यक्रम होना चाहिए। आप शास्त्री जी से पूछ कर अवधूत आश्रम के मण्डलाधीश को निमंत्रित करिए और अबकी बार होने वाले बिरादरी भोज की तैयारी में कुँवर को भी शामिल करिए जिससे कोई भी मेहमान छूटने न पाए। एक बात और मुखिया जी कि खजूरगांव वालों को भी की निमंत्रण अवश्य-अवश्य जाना चाहिए"
"जी महाराज"
'सूर्य महल' में शारदीय दुर्गा पूजन की भव्य तैयारी की गई। महल के प्राँगण में हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग बैठने की व्यवस्था की गई। कुँवर और मुखिया जी ने हर एक व्यवस्था का स्वयं अवलोकन किया।
नव दुर्गा के प्रथम दिवस पर सबसे पहले रियासत के पुजारी शास्त्री जी का प्रवचन हुआ जिसमें उन्होंने इस वर्ष होने वाले आयोजन का विस्तार में वर्णन किया गया और कांकर राज परिवार की भगवान राम में अपार श्रद्धा का भी खूब बखान किया। शास्त्री जी यह बताना नहीं भूले कि भगवान राम, माता सीता और उनके अनुज लक्ष्मण कांकर से कुछ ही दूर गंगा घाट पर पधारे थे इसलिये भी वे हमारे कांकर क्षेत्र में बहुत आदर और सम्मान के साथ पूजे जाते हैं। श्रीराम श्रृंगवेरपुर पहुँचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार कराने को कहा था।
इलाहाबाद से 22 मील उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित 'सिंगरौर' नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से परिज्ञात था। रामायण में इस नगर का उल्लेख आता है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था। महाभारत में इसे 'तीर्थस्थल' कहा गया है।
इलाहाबाद जिले में ही कुरई नामक एक स्थान है, जो सिंगरौर के निकट गंगा नदी के दूसरे तट पर स्थित है। गंगा के उस पार सिंगरौर तो इस पार कुरई। सिंगरौर में गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम इसी स्थान पर उतरे थे।
कुरई ग्राम में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहाँ गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था।
चित्रकूट के घाट पर कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुँचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है। यहाँ गंगा-जमुना का संगम स्थल है। हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा तीर्थस्थान है। प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर अपनी वन यात्रा के अगले पड़ाव चित्रकूट पहुँच गए।
शास्त्री जी ने राम कथा को बहुत ही मार्मिक ढँग से इस क्षेत्र के साथ जोड़कर जो वर्णन किया वह सभी भक्तगणों के मन को बहुत भा गई।
तदोपरांत हरिद्वार से आये हुए अवधूत आश्रम के महामंडलेश्वर का प्रवचन हुआ जिसमें उन्होंने आने वाले नौ दिवस की महत्ता और मंत्र इत्यादि के बारे में बताते हुए कहा:
नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग-अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं।
आप सभी ध्यान से सुनें इस श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमबद्ध तरीके में बताए गए हैं--
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जातीं हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधि-विधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है। आइए अब हम आपको बताते हैं प्रथम देवी शैलपुत्री के बारे में :-
मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहाँ पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहाँ जाना उचित नहीं है।
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुँची तो सिर्फ माँ ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव था। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया।
इस दारुण दुख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का ही विध्वंस कर दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

अंत में शास्त्री जी ने घोषणा की कि महामंडलेश्वर जी का प्रवचन अब आने वाले नौ दिनों तक अनवरत चलेगा। उन्होंने यह भी आशा व्यक्त की कि भक्तगण अधिक से अधिक संख्या में आकर भगवान श्रीराम से सम्बंधित कथा का रसास्वादन कर आनंद की अनुभूति करेंगे।


क्रमशः

कथांश: 30
शाश्त्री जी के शुरुआती प्रवचन के बाद अवधूत आश्रम के महामंडलेश्वर महाराज ने अपनी बात रखते हुए कहा:
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजाअर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए सब हम जानते हैं ‍दूसरी देवी ब्रह्मचारिणी के बारे में अपने पुराणों में क्या कहा गया है।
भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
माँ दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहाँ ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। माँ दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फलफूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा, "हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति के रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।"
मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजनआराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है।
चंद्रघंटा : मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए जानते हैं तीसरी देवी चंद्रघंटा के बारे में :-
नवरात्रि में तीसरे दिन इसी देवी की पूजा का महत्व है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाई देने लगती हैं।
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति हैं चंद्रघंटा। नवरात्रि में तीसरे दिन इसी देवी की पूजाआराधना की जाती है। देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इसीलिए कहा जाता है कि हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखकर साधना करना चाहिए। उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है। इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इसीलिए इस देवी को चंद्रघंटा कहा गया है। इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है। इस देवी के दस हाथ हैं। वे खड्ग और अन्य अस्त्रशस्त्र से विभूषित हैं।
सिंह पर सवार इस देवी की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने की है। इसके घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस काँपते रहते हैं। नवरात्रि में तीसरे दिन इसी देवी की पूजा का महत्व है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाईं देने लगती हैं। इन क्षणों में साधक को बहुत सावधान रहना चाहिए।
इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। इसलिए हमें चाहिए कि मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विहित विधि-विधान के अनुसार परिशुद्ध-पवित्र करके चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना आराधना करना चाहिए। इससे सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। यह देवी कल्याणकारी है।
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
तीसरे दिन के प्रवचन की समाप्ति पर शास्त्री जी द्वारा महामण्डलेश्वर जी को धन्यवाद ज्ञापित कतरे हुए आशा व्यक्ति की कि भक्तगण माँ दुर्गे के आदर्शों को अपने जीवन में ढालेंगे तो उनके जीवन हितकारी होगा।
अगले दिन भी महामंडलेश्वर जी का प्रवचन हुआ और उन्होंने अपनी कथा के तीसरे दिन
माँ दुर्गा के कुष्माण्डा स्वरूप के बारे में बताया कि नवरात्रपूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है।

कुष्मांडा : मां दुर्गा का चौथा स्वरूप है।
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए अब हम जानते हैं चौथी देवी मां कुष्मांडा के बारे में :-
नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हँसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।
इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा।
इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।
अचंल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजाआराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है।
विधिविधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। यह देवी आधियोंव्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंततः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।
चतुर्थ दिन के महामंडलेश्वर के प्रवचन के बाद शास्त्री जी ने उपस्थित जन समूह से कहा कि किसी भी भक्त को माँ दुर्गा के बारे कुछ भी जानकारी हासिल करनी हो तो वे उनसे संपर्क करें और इसी तरह आने वाले छै दोनों तक सत्संग में पधार कर लाभ उठाएं।


क्रमशः

कथांश: 31

महामंडलेश्वर जी के अगले दिन के प्रवचन में उन्होंने माँ नवदुर्गा के पंचम दिन के बारे में बताते हुए कहा:

नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।

स्कंदमाता : माँ दुर्गा का पांचवा स्वरूप हैं।

नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए जानते हैं माँ दुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता के बारे में :-

इस देवी की चार भुजाएं हैं। यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।

पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पाँचवें दिन इस देवी की पूजाअर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं।

यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। यह कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।

शास्त्रों में इसका पुष्कल महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है।

उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।

सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥


महामंडलेश्वर ने अगले दिन के कार्यक्रम में माँ दुर्गा के अगले अवतार की महिमा बताते हुए कहा कि

माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

कात्यायनी : माँ दुर्गा का छठवां स्वरूप

नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए जानते हैं छठवीं देवी कात्यायनी के बारे में :-

नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

इस देवी को नवरात्रि में छठे दिन पूजा जाता है। कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। माँ भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। इनका गुण शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। यह वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं।

माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी।

इसीलिए यह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। यह स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाँयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।

इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।

चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥


अगले दिन के प्रवचन में उपस्थित जन समूह को बताते हुए महामंडलेश्वर ने बताया कि माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।

कालरात्रि माँ : दुर्गा का सातवां स्वरूप

नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए जानते हैं सातवीं देवी कालरात्रि के बारे में :-

कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं।

नाम से अभिव्यक्त होता है कि माँ दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।

इस देवी के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। यह गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो।

बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए यह शुभंकरी कहलाईं। अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।

कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। यह ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥


क्रमशः

क्रमशः 32
माँ दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं।
महागौरी : माँ दुर्गा का आठवां स्वरूप
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए अब हम जानते हैं आठवीं देवी महागौरी के बारे में :-
यह अमोघ फलदायिनी हैं और भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजनअर्चन, उपासनाआराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।
नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। चार भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको।
इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी वजह से इनका शरीर काला पड़ गया लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए यह महागौरी कहलाईं।
यह अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजनअर्चन, उपासनाआराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥
नव दुर्गा के नौवें दिन महामंडलेश्वर जी ने जन समूह को बताया कि माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रपूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधिविधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
सिद्धिदात्री : मां दुर्गा का नौवां रूप
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए जानते हैं नौवीं देवी सिद्धिदात्री के बारे में :-
भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से यह तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।
इस देवी की पूजा नौंवे दिन की जाती है। यह देवी सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी हैं। उपासक या भक्त पर इनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी चुटकी में संभव हो जाते हैं। हिमाचल के नंदापर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ है। अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियां होती हैं। इसलिए इस देवी की सच्चे मन से विधि विधान से उपासनाआराधना करने से यह सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं।
भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से यह तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। इनका वाहन सिंह है और यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। विधिविधान से नौंवे दिन इस देवी की उपासना करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यह अंतिम देवी हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
माँ के श्रीचरणों में शरणागत होकर हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उपासना करना चाहिए। इस देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।
नव दुर्गा के आखिरी दिन महामंलेश्वर जी ने अपने उपदेश में नौ दिन की महिमा को एक सूत्र में पिरोकर सभी उपस्थित नर नारियों को सूचित किया:
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारणी त्रतीयं चंद्रघंटेति कुष्मांनडेति चतुर्थकम पंचमं स्कन्दमातेती षष्ठम कात्यायनीति च सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम नवमं सिद्धि दात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः
शैलपुत्री: सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहिला स्वरूप हैं पत्थर मिटटी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को महसूस करना। ब्रह्मचारिणी: जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं। चंद्रघंटा-भगवती: का तीसरा रूप है यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है। कुष्मांडा: अर्थात अंडे को धारण करने वाली: स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है। स्कन्दमाता: पुत्रवती मातापिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान मातापिता स्कन्द माता के रूप हैं। कात्यायनी के रूप में वही भगवती कन्या की मातापिता हैं। यह देवी का छटा स्वरुप है। कालरात्रि: देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है। भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है। महागौरी का आठवां स्वरूप गौर वर्ण है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मांतर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है।
महामंडलेश्वर जी के प्रवचन पर शाश्त्री जी ने उनका हार्दिक धन्यवाद किया कि वे इतनी दूर से हमारे महाराज चन्द्रचूड़ सिंह जी के निवेदन पर कांकर पधारे और भविष्य में भी वह अपनी कृपादृष्टि हमारे कांकर क्षेत्र पर बनाये रखेंगे।
भक्तगणों का भी धन्यवाद ज्ञापित करते हुए शाश्त्री जी ने कांकर राजपरिवार के प्रति भी अपनी कृतज्ञता जताते हुए कहा कि हर साल उनकी मदद से यह आयोजन किया जाता है और इससे जनजागरण में भगवान राम के प्रति अपार श्रद्धा का भाव तो जागृत होता ही है साथ ही साथ माँ से भी लगाव बना रहता है।
शारदीय नवदुर्गा का कार्यक्रम का समापन कुँवर अनिरुध्द सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ समाप्त हुआ। कुँवर ने आशा व्यक्त की कि हर वर्ष की भाँति कांकर राजपरिवार ने जो यह यह भव्य आयोजन कर माँ के प्रति और अपनी जनता के प्रति जो अगाध प्रेमभाव दिखाया है। यही बीज भक्तिभाव का सदैव बना रहे और भगवान राम का आशीर्वाद उन्हें सदैव मिलता रहे।
कुँवर ने अवधूत आश्रम के महामंडलेश्वर के कांकर आगमन को एक बड़ी घटना बताया और उनका हार्दिक धन्यवाद किया। कुँवर ने इस अवसर पर शास्त्री जी और मुखिया जी का भी हृदय से धन्यवाद किया जिनके अथक प्रयासों से यह कार्यक्रम सफल हो सका।
अंत मे कांकर के लोगों का भी धन्यवाद ज्ञापित किया कि वे सभी बड़ी तादात में यहाँ आये और महामंडलेश्वर जी के ओजस्वी और ज्ञानबर्धक प्रवचनों से लाभान्वित हुए। मुझे आशा है कि आप सभी अपने जीवन में राम नाम के महत्व को अपनाएंगे।जनसमूह ने करतल ध्वनि कर कुँवर और सभी उपस्थित गणमान्य लोगों का अभिवादन किया। सम्पूर्ण कार्यक्रम ने आशातीत सफलता प्राप्त की। सभी गुरुजनों और समाज के वरिष्ठ लोगों का कांकर राजपरिवार की ओर से समुचित आदर और सम्मान देते हुए यह आशा की कि आने वाला समय सभी के लिए हितकारी होगा।
अवधूतमण्डलाश्रम के महामंडलेश्वर ने कुँवर को आर्शीवाद दिया।

क्रमशः



कथांश :33
माँ दुर्गा के नौ दिवसों की समाप्ति पर राजपरिवार के पुरोहित शाश्त्री जी तथा अवधूताश्रम के महामंडलेध्वर जी के सहयोग से पूजा के अंतिम दिन हवन किया गया तथा कन्या भोज का विशाल आयोजन हुआ जिसमें आम भक्तों हेतु विशाल भंडारा तथा का आयोजन किया जिसमें सभी भक्तों को माँ का प्रसाद का वितरण किया गया।
राजा साहब और कुँवर ने व्यक्तिगत रूप से करबद्ध हो सभी लोगों को धन्यवाद किया।
दशहरे वाले दिन शाश्त्री जी ने महामंडलेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि महाराज आज आपका प्रवचन विशेष रूप से राजपरिवार के सदस्यों के लिये है अतः आप कृपया अपने श्रीवचनों से सम्पूर्ण कांकर राजपरिवार को समुचित ज्ञान दें और इस पर्व की श्रीमहिमा के बारे में बताने का कष्ट करें।
महामंडलेश्वर महाराज ने अपने प्रवचन में कहा:
सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि आप सभी दशहरा पर्व: की पूजा अर्चना के संबंध में जानें, यह क्यों की जाती है और आज के दिन शस्त्र पूजा का महत्व क्या है:
दशहरा (विजयदशमी या आयुधपूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त की। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है (दशहरा = दशहोरा = दसवीं तिथि)। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा।
इस दिन लोग शस्त्रपूजा करते हैं और नया कार्य प्रारम्भ करते हैं (जैसे अक्षर लेखन का आरम्भ, नया उद्योग आरम्भ, बीज बोना आदि)। ऐसा विश्वाश है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है उसमें विजय मिलती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रणयात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन जगहजगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।
असत्य पर सत्य की विजय का पर्व विजयदशमी या दशहरा आज देशभर में परंपरागत ढ़ंग से धूमधाम से मनाया जा रहा है। देशभर के अलगअलग शहरों में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के ऊंचे ऊंचे पुतले खड़े किए जाते हैं और शाम के समय रावण वध के साथ ही दशहरा पर्व मनाया जाएगा।
दशहरा एक ऐसा पर्व है जिसे माँ दुर्गा और भगवान श्रीराम से जोड़कर देखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि माँ दुर्गा ने महिषासुर राक्षस से लगातार नौ दिनों तक युद्ध करके दशहरे के दिन ही उसका वध किया था। इसीलिए नवरात्रि के नौ दिनों के बाद दसवें दिन को नौ शक्ति के विजयदिवस के रूप में विजयदशमी के नाम से मनाया जाता है।
जबकि भगवान श्रीराम ने नौ दिनों तक रावण से युद्ध करके दसवें दिन ही रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में भी विजयदशमी के रूप में मनाते हैं। साथ ही इस दिन रावण का वध हुआ था, जिसके दस सिर थे, इसलिए इस दिन को दशहरा यानी दस सिर वाले के प्राण हरण होने वाले दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
दशहरा के दिन शस्त्र पूजन का भी विधान है। इस दिन क्षत्रिय शस्त्रपूजा करते हैं जबकि ब्राम्हण इसी दिन शास्त्र-पूजा करते हैं। पुराने समय में राजा महाराजा जब किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण कर उस पर कब्जा करना चाहते थे, तो वे आक्रमण के लिए इसी दिन यानी विजयदशमी के दिन का चुनाव करते थे, जबकि ब्राम्हण विद्यार्जन के लिए प्रस्थान करने इस दिन का चुनाव करते थे।
हिन्दू धर्म की मान्यता अनुसार इस दिन जो भी काम किया जाता है, उसमें विजय यानी सफलता प्राप्त होती है और इसी मान्यता के कारण ही व्यापारी नए व्यापार या प्रतिष्ठान का उद्घाटन करने या शुरुआत करने के लिए इस दिन को उतना ही महत्व देते हैं जितना दीपावली से पहले धनतेरस के दिन को दिया जाता है।
दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिन जगदम्बा की उपासना करके शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य विजय प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है। इस दृष्टि से दशहरे अर्थात विजय के लिए प्रस्थान का उत्सव का उत्सव आवश्यक भी है।
भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है। प्रत्येक व्यक्ति और समाज के रुधिर में वीरता का प्रादुर्भाव हो कारण से ही दशहरे का उत्सव मनाया जाता है। यदि कभी युद्ध अनिवार्य ही हो तब शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा ना कर उस पर हमला कर उसका पराभव करना ही कुशल राजनीति है। भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक निश्चित है। भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था। मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन विजयप्रस्थान करते थे।
इस पर्व को भगवती के 'विजया' नाम पर भी 'विजयादशमी' कहते हैं। इस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे। इसलिए भी इस पर्व को 'विजयादशमी' कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं।
ऐसा माना गया है कि शत्रु पर विजय पाने के लिए इसी समय प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग और भी अधिक शुभ माना गया है। युद्ध करने का प्रसंग न होने पर भी इस काल में राजाओं (महत्त्वपूर्ण पदों पर पदासीन लोग) को सीमा का उल्लंघन करना चाहिए। दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी। तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के यहँ नौकरी कर ली थी। जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र धृष्टद्युम्न ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। विजयादशमी के दिन भगवान रामचंद्रजी के लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था। विजयकाल में शमी पूजन इसीलिए किया जाता है।
बस इतना कह कर महामंडलेश्वर जी ने अपनी वाणी को विराम दिया। शास्त्री जी ने हर साल की तरह इस साल भी राजपरिवार के अस्त्र शस्त्र का विधवत पूजन कराया और उसके बाद राजा साहब और कुँवर को आशीर्वाद दिया।
सन्ध्याकाल में राजभवन के प्रांगण में बिरादरी भोज का आयोजन हुआ और उसमें कांकर रियासत के पुराने जाने माने लोग और आसपास के इलाके के जाने माने राजपूत और राजा रजवाड़े भी कांकर राजपरिवार के सदस्यों के साथ शरीक़ हुए। सभी ने एक मत हो कुँवर के चुनाव में उनको विजयी बनाने के लिए सहयोग करने का वचन भी दिया।
क्रमशः




कथांश:34
दशहरे के बाद राजा साहब ने लोगों से मिलना जुलना और बढ़ा दिया। कुँवर ने इस बीच सभी लोगों से संपर्क साध कर अपने चुनाव की तैयारी में एक कदम और आगे बढ़ाया।
दीपावली त्योहार के साथ ही भारत के पूरब में राजनीतिक उठक पठक शुरू हो गई। भारत सरकार भी अपनी रणनीति बनाने में जुट गई। एक दिन सेना प्रमुखों की मीटिंग सरकार के शीर्षस्थ लोगों के साथ हुई जिसमें प्रधानमंत्री के ये पूछे जाने पर कि क्या हमारी सेना किसी भी विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में अपना काम करने के लिए तैयार है। तो उस समय के सेना अध्यक्ष ने उत्तर दिया, "हम सदैव तैयार रहते हैं और हर उस काम को अंजाम देने के लिये तैयार हैं जो काम को करने के लिये सरकार इज़ाज़त देगी"
इधर अन्तराष्ट्रीय मंच पर गतिविधियां अचानक तेज होने लगीं। पूर्वी पाकिस्तान में बंगला देश के निवासियों ने मुक्तवाहिनी की रचना कर अपनी स्वतंत्रता का बिगुल फूँक दिया। पूर्वी पाकिस्तान के जनमानस में वहाँ के हुक्मरानों के प्रति घोर विद्रोह की ज्वाला धधक रही थी। सुअवसर देख कर वहाँ की प्रजा ने एक साथ मिलकर अपनी स्वतंत्रता के लिए जोरदार संघर्ष छेड़ दिया।
जब पाकिस्तान ने भारत के ऊपर बंगला देश की मदद का आक्षेप लगाते हुए हवाई हमला किया जिसमें आठ भारतीय हवाई अड्डों को यहाँ तक कि आगरा और दिल्ली के साथ बॉर्डर के पास वाले हवाई अड्डों को नुकसान पहुँचाने के इरादे से निशाना बनाया तो भारत की सेनाओं ने मुँह तोड़ जबाब दिया। बदले की कार्यवाही में भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान के भीतर तक घुसती गई और पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को पाकिस्तानी अत्याचार से मुक्त कराया। बंग बन्धु शेख मुजीबुर्रहमान जो कि उस समय पश्चिमी पाकिस्तान की एक जेल में क़ैद में थे उनकी रहनुमाई में बंगला देश के लोगों ने एक नए देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पूर्वी पाकिस्तान का वजूद दुनिया के नक्शे से ख़त्म हो गया। पाकिस्तान की फ़ौज के 90 हज़ार फौजियों ने हिंदुस्तानी फौज के सामने घुटने टेक दिए और उन्हें बंदी बना कर देश के कई हिस्सों में रखा गया।
इस अभूतपूर्व विजयश्री प्राप्त होने के उपरांत कांग्रेस दल की संसदीय कमेटी की मीटिंग सँयुक्त रूप से यह निर्णय हुआ कि जो चुनाव मार्च, 1972 में होने हैं उन सामान्य चुनाव को मार्च, 1971 में ही करा लिए जायँ। देश मे राजनीतिक गतिविधियां अचानक तेज हो गईं। दिल्ली में एक मीटिंग के बाद चुनाव में कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की सूची जारी होते ही राजनीतिक माहौल गरमा गया और कुँवर अनिरुध्द सिंह के चुनाव लड़ने की अधिकारिक घोषणा कांग्रेस हेड क्वार्टर से कर दी गई।
दिन भर तो राजा साहब और कुँवर अपने चुनाव प्रचार में लगे रहते और देर रात जब कांकर थके हारे लौटते उसके बाबजूद अगले दिन की तैयारी करते। मुखिया जी और कांकर राजमहल के अन्य पदाधिकारियों से देर रात तक मीटिंग करते।
एक रात जब राजा साहब रानी साहिबा के साथ सूर्य महल में थे तो कुँवर गौहर बेग़म से अपने दिल की बात कहने के लिये आ पहुँचे।
गौहर बेग़म ने अनिरुध्द से पूछा, "कुँवर मुझे साफ साफ बताना क्या तुम सबा को चाहने लगे हो"
अनिरुध्द कुछ नहीं बोले तो गौहर बेग़म ने फिर पूछा, "कुँवर अगर तुम कहोगे तो मैं खुद भोपाल या दिल्ली जाकर सबा को अपने साथ लेकर आऊँगी पर पहले तुम अपना मन पक्का कर लो। सबा को लेकर तुम क्यों परेशान हो रहे हो पहले मुझे पता तो लगे कि ऐसा क्या है सबा में जिसके लिये मेरा कुँवर इतना परेशान हो रहा है"
अब अनिरुध्द के पास कोई रास्ता नहीं बचा तो उसे यह बताना ही पड़ा कि वह सबा को चाहने लगे हैं। इस पर गौहर बेग़म ने उस बात का ज़िक्र किया जो एक बार राजा साहब ने उनसे दिल्ली में काँगेस के दफ्तर में हुई पहली मीटिंग में जिसमें कि राजा साहब को ही चुनाव लड़ाने की बात हुई थी उस वक़्त राजा साहब ने उनसे कहा था, "गौहर बेग़म जब अचानक आज मेरे सामने ये सवाल आ खड़ा हुआ तो मुझे सोचने का मौका ही न मिला पर मेरे दिल में एक बात बैठ गई और उसे लेकर मैंने कुँवर को ही सीट देने की बात कही थी"
अनिरुध्द ने पूछा, "वह कौनसी बात थी माँसी"
"बेटा उन्होंने तब यह कहा था कि समाज मे मेरा नाम मान सम्मान है अच्छी बात है पर राजनीति बहुत गंदी चीज होती है और वे जानते थे कि अगर वह चुनाव लड़ने का फैसला लेते तो तमाम हिंदू वादी संगठन और पार्टियां मेरे और उनके संबधों को लेकर राजा साहब का नाम सड़क पर उछालते इसलिये उन्होंने तुम्हरा नाम वहाँ टिकट के लिये चला दिया। अब तुम सोचो जब लोगों को तुम्हारे और सबा के बीच मोहब्बत की बात चलेगी तो कितनी छीछालेदर होगी उसे तुम ही समझ सकते हो"
"माँसी ये तो कोई बात नहीं कि लोगों से डर कर हम किसी से प्यार करना ही छोड़ दें"
"बेटा मैं नहीं कह रही ये ज़माना कह रहा है। अभी भी यहाँ के लोग हिन्दू मुस्लिम समाज के बीच शादी व्याह को लोग ठीक नज़र से नहीं देखते हैं"
"मैं अब क्या करूँ?"
"तुम कुछ न करो बस मुझे कुछ वक़्त मुझे दे मैं देखती हूँ कि क्या करना है?"
क्रमशः


कथांश:36
एक रात जब राजा साहब ऐश महल में थे तब गौहर बेग़म ने कुँवर की यह इच्छा राजा साहब पर ज़ाहिर की कि कुँवर ने शिखा से वायदा किया था कि चुनाव प्रचार के आख़िरी दस दिनों में वह उसे और सबा को और कुछ उनके साथ पढ़ने वाली लड़कियों को बुलवा लेंगे। उन लोगों ने कुँवर के चुनाव में भाग लेने की बात भी की थी। आपका क्या ख़्याल है?
राजा साहब ने पल दो पल के लिए कुछ सोचा फिर बाद में बोले, "चलो बुलवा लेते हैं, हम अपने कुँवर के दिल को नहीं तोड़ना चाहते हैं हालाँकि हमें एक डर भी है कि चुनावी माहौल में कहीं कोई सबा को लेकर दिक्कत न खड़ी कर दे"
"अगर आप ठीक नहीं समझ रहे हैं तो रहने दीजिए"
"नहीं, नहीं बेग़म हमारे लिए हमारा कुँवर ही सब कुछ है। बस आप यह देखती रहिएगा कि चुनाव के इस आख़िरी दौर में उसका दिल सबा की चाहत में सब कुछ न भूल बैठे"
"हुकुम उसकी आप चिंता न करें। दिल्ली वाली लड़कियों की टोली का पूरा मैनेजमेंट मैं अपने हाथ मे रखूँगी"
"चलिये हम कल ही कुछ इंतज़ाम करते हैं, शिखा और सबा को बुलवाने का"
दो तीन दिन बाद दिल्ली से सभी लड़कियां एक बड़ी सी बस से कांकर आ गईं। वे सभी ऐश महल में ही आकर रुकीं। उनके लिये चुनाव प्रचार की पूरी प्लानिंग गौहर बेग़म ने पहले ही से कर रखी थी। गौहर बेग़म ने लड़कियों के पाँच ग्रुप बनाये जो हर रोज़ अपने अपने विधान सभा क्षेत्र में चलीं जातीं और देर रात लौटतीं।
लड़कियों की टोलियों ने दिल लगा कर मेहनत की और विशेषरूप से देहात के इलाक़े में महिलाओं के बीच जाकर कुँवर का खूब प्रचार किया।
एक दिन रात को जब ऐश महल में कुँवर गौहर बेग़म के साथ लड़कियों के काम की रिपोर्ट ले रहे थे तो सबा ने कहा, "खाला जान आप देखेंगी कि हमारे कुँवर बहुत बड़े मार्जिन से जीतेंगे जो अपने आप में एक रिकॉर्ड होगा"
"तेरे मुँह में घी शक़्कर। सबा खुदा करे ऐसा ही हो। आज मैं एलान करती हूँ कि अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम सबको दिल्ली आकर एक बहुत धमाकेदार पार्टी दूँगी", गौहर बेग़म ने लड़कियों से वायदा किया।
इस पर सबा ने अपनी ओर से एक सुझाव रखा, "हम लोगों ने अभी तक देहात में बहुत काम किया है। अब हम चाहते हैं कि चुनाव जब इतना नज़दीक आ गया है तो हमें कस्बों और शहरों में भी काम करने की ज़रूरत है"
कुँवर ने सबा की इस बात को मानते हुए कहा कि सबा का यह सुझाव मानने योग्य है और माँसी आपको इस पर विचार करना चाहिए। गौहर बेग़म ने सबा से पूछा कि उसका क्या प्लान है। तो सबा ने बताया कि हम सब जगह साईकल पर चढ़ कर प्रचार करेंगे जिससे यहाँ के युवा और युवतियों हम लोगों को देख कर एक अजीब प्रोत्साहन मिलेगा।
गौहर बेग़म ने सभी के लिये साइकल और रँग बिरँगे कपड़ों की व्यवस्था की। इस तरह दिल्ली की लड़कियां कांकर की गलियों में चुनावी सामग्री बाँटते हुए जगह जगह दिखने लगीं।
जब वे सब अगले दिन फिर मिले तो कुँवर ने शिखा और सबा के साथ आई हुईं सभी मेहमानों को शुक्रिया अदा किया और कहा कि कल रात वाले प्रोग्राम ने जनता के बीच एक अच्छा मैसेज दिया है कि अगर समाज को प्रगति करनी है तो युवावर्ग के साथ के बिना कुछ भी कर पाना मुश्क़िल है।
जब कुँवर सबा से अकेले में मिले तो सबा को अपनी बाहों में भरते हुए बोले, "हमको क्या पता था कि आप इतनी कमाल की चीज हैं। जिन्होंने इस पिछड़े इलाके में अपने एक आईडिया से धूम मचादी है"
"हम चीज ही ऐसी हैं। हम सूरमा भोपाली के गाँव के जो हैं। अभी आपने देखा ही क्या है अभी आगे आगे क्या होने वाला है। उस पर अपनी नज़र बनाये रखिये"
"हमारी नज़र तो तुम पर लगी रहती है"
"हटिये छोड़िये भी अपना ध्यान अभी आप अपने चुनाव में ही लगाइए", कह कर सबा कुँवर की बाहों से छिटक कर दूर हो गई।
इसी बीच शिखा भी वहाँ आ गई फिर उन लोगों में इलेक्शन की व्यवस्था में किस तरह के और सुधार किए जायं उस पर इधर उधर की बातें होने लगीं।
आखिरकार चुनाव का दिन आ ही गया। राजा साहब का दिमाग़, महारानी का चुनावी प्रचार, रानी शारदा देवी का बूथ मैनेजमेंट, गौहर बेग़म की लड़कियों की पार्टी और जनता के सहयोग से कुँवर अपने चुनाव में भारी मतों से सफलता प्राप्त कर कांकर परिवार और क्षेत्र के लोगों के दिलों में एक विशिष्ट स्थान बनाया।
कुँवर अनिरुध्द सिंह जो कि अपने पिताश्री राजा चन्द्रचूड़ सिंह जी के साथ मिलकर एक लंबे समय से तैयारी कर रहे थे और युवा वर्ग का प्रतिनिधत्व कर रहे थे। चुनाव परिणाम प्राप्त होने पर कुँवर ने अपना चुनाव एक शानदार तरीके से जीता। उनके सभी विरोधियों की ज़मानत ज़ब्त हो गई विरोध नाम की कोई चीज बची ही नहीं।
काँग्रेस ने इस लोकसभा के चुनाव में आशातीत सफलता प्राप्त की यहाँ तक कि विरोधी राजनीतिक दलों के श्रेष्ठतम नेता भी इस चुनाव में हार गए। मार्च, 1971 में लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने आशातीत सफलता प्राप्त कर सरकार बनाई।
राजनीति में एक नई चेतना दिखाई दी। नव निर्वाचित सदस्यों के बीच जोर का उत्साह था। कुँवर को भी पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। उनकी कार्यप्रणाली को देख कर प्रधानमंत्री जी ने उन्हें रेलवे विभाग की पार्लियामेंट्री कमेटी का सदस्य मनोनीत कर दिया।
जुलाई 1971 में प्रिवी पर्स अबॉलिशन बिल लोकसभा में पारित हुआ और एक प्रस्ताव के बाद सभी हिदुस्तानी रियासतों के पूर्व राजा, महाराजा, नवाब वग़ैरह के रुतबे समाप्त कर दिए गए।
इधर अनिरुध्द सिंह ने भी भारत की राजनीति में आये बदलाव को बड़े सहज ढंग से स्वीकारा। उन्हें जब कोई कुँवर कह कर संबोधित करता तो वह बड़े विनम्र भाव से कहते कि अब न तो कोई राजा रहा न अब कोई महाराजा। अब अपने देश के हर नागरिक को एक समान अधिकार प्राप्त हैं। राजा चंद्रचूड़ सिंह जी के समर्थक अभी भी उन्हें राजा कह कर संबोधित करते तो उन्हें भी वह भो बड़े प्यार और आदर सम्मान के साथ समझाते कि वे अब ऐसा न करें यह संविधान का अनादर है। सूर्य महल में इस बदलाव को सभी ने स्वीकारा पर महारानी करुणा देवी ने इसे सहजता से नहीं लिया। तब एक दिन चंद्रचूड़ सिंह ने अनिरुध्द की उपस्थित में उन्हें बहुत समझाया कि हम लोग तो बहुत छोटी रियासत के राजा थे हमसे बहुत बड़े-बड़े राजा राजवाड़े तो आसमान से एक दम धरती पर आ गए हैं। जब अनिरुध्द ने भी अपनी माँ को प्यार से समझाया तब जाकर कहीं उनकी समझ मे आया। शारदा देवी जी ने भी यह बदलाव बड़ी सहजता से स्वीकार किया। महल में काम करने वाले इस बदलाव के लिये कभी तैयार न हुए और वे हमेशा चन्द्रचूड़ सिंह जी को राजा साहब और अनिरुध्द सिंह को कुँवर साहब ही कह कर बुलाते रहे।
जब एक रात चंद्रचूड़ सिंह गौहर बेग़म के पास बैठे थे तो उन्होंने हँसते हुए कहा, "गौहर बेग़म महारानी और रानी का ओहदा तो एक साधारण व्यक्तियों जैसा हो गया और लोग उन्हें अब करुणा देवी और शारदा देवी कहते हैं पर आपके रुतबे में कोई कमी नहीं आई। आप पहले भी बेग़म कहलातीं थीं और आज भी बेग़म कहलातीं हैं"
गौहर बेग़म ने चद्रचूड़ सिंह से कहा, "हमारा जो भी रुतबा है वह आपसे है। जब तक आप हमारे और हम आपके हैं, हमें हमारे हुकुम से कोई नहीं छीन सकता है"
चद्रचूड़ सिंह मुस्कुरा भर दिए।
अनिरुध्द सिंह को अब अक़्सर ही दिल्ली तो कभी लखनऊ रहना पड़ता था। दिल्ली में एमपी बनने के बाद उन्हें अशोक मार्ग पर बँगला मिला था तो अब वह जब लोकसभा का सेशन चलता तो वहीं रहते। वहीं लोगों से मिलते जुलते और उनका काम करते।
एक दिन शिखा सबा को साथ लेकर अनिरुध्द से मिलने उनके बँगले पर जा पहुँची।
क्रमशः
कुछ कही कुछ अनकही सी अपने बात:
उपरोक्त कथांश में उन पोलिटिकल events को दर्शाने के पीछे सिर्फ़ एक मकसद है कि इस वक़्त भारतीय उप महाद्वीप में राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेजी से घट रहा था। मानसून की समाप्ति पूर्वी क्षेत्र में जो नदिया उफान पर होती थीं धीरे धीरे शांत होने लगीं थीं पर प्रधानमंत्री जी के हृदय में पूर्वी पाकिस्तान के घटनाक्रम पर तूफान उठ रहा था। उस वक़्त श्रीमती इंदिरा गाँधी ने सेनाध्यक्ष मानेकशॉ से पूछा कि क्या वे तैयार हैं तो उनका जवाब था, "I'm always ready my sweety"
शायद इतनी लिबर्टी कोई और दूसरा व्यक्ति इंदिरा गाँधी जी से नहीं ले सकता था पर वह भी एक शेर दिल आर्मी अफसर थे जिन्हें अपने पद और आने वाले घटनाक्रम की पूरी जानकारी थी वही ऐसी बात कह सकता था। बंगला देश की स्वत्रंत्रता संग्राम में अहम रोल निभाने के लिये मानेक शा को भारत के फील्ड मार्शल के पद से सम्मानित किया। वह देश के गौरव थे। वह भारत के एक महान सपूत थे।
वक़्त बहुत तेजी से बढ़ रहा है, समय पर नियंत्रण किसी के बस में नहीं पर समयानुकूल दिग्दर्शन करने की जिम्मेदारी प्रशासन की ही है।
धन्यवाद।


कथांश:35
सबा को देखे हुए एक अरसा हो चुका था इसलिये अचानक जब वह इस तरह सामने पड़ गई तो न जाने कितने ही बीते पलों की याद कुँवर के दिमाग़ में ताज़ा हो गईं।
शिखा ने पूछा, "भइय्या जब से आप राजनीति में आये हैं, हम लोगों के लिये तो एक दम बदल ही गये हैं"
"नहीं शिखा, ऐसी बात नहीं पर हाँ जब आप पब्लिक फिगर बन जाते हैं तो आपका समय आपका नहीं रहता है बंट ज़रूर जाता है। हम जिनके करीब रहना चाहते हैं उन्ही से हम बहुत दूर हुए जाते हैं", कुँवर ने जबाब दिया पर निगाह सबा की ओर लगी रही।
कुछ देर ही शिखा और सबा अनिरुध्द के साथ रह पाईं क्योंकि इसी बीच पार्टी हेड क्वार्टर से फ़ोन आ गया और उन्हें मीटिंग के लिये निकलना पड़ गया।
अनिरुध्द का राजनीति में जिस तरह कद बढ़ रहा था उसे देख लोगों को लगा कि आने वाले दिनों में वे बहुत कद्दावर नेता होंगे। बीकानेर, किशनगढ़ और राम गढ़ के भी राजपरिवार के सदस्य लोकसभा का चुनाव जीत कर आये थे पर उनकी लोकप्रियता इस क़दर न थी जिस तरह की अनिरुध्द सिंह की। अनिरुद्ध एक तो साफ दिल और नीयत के युवा नेता और उस समाज मे जहाँ एक से एक धूर्त बैठे हों ऐसे लोगों की माँग बहुत जल्दी बढ़ जाती है। अनिरुध्द ने अपने क्षेत्र में कई जगह आई टी आई खुलवा दिए जिससे वह बच्चे अपने घर रह कर ही विभिन्न क्षेत्रों कौशल प्राप्त कर सकें और नौकरी के लिए कहीं बाहर न जाना पड़े। उन्होंने अपने क्षेत्र में एक ट्रैक्टर मैन्युफैक्चरिंग फैक्ट्री खोलने के लिये भी प्रयास किए पर प्रस्ताव अभी तक केंद्रीय सरकार के पास लंबित था। केंद्रीय सरकार के जल विभाग से बात कर अपने क्षेत्र में लिफ्ट इर्रीगेशन प्रोजेक्ट पर भी काम करने के लिए कहा जिससे कि गंगा नदी के जल को उन क्षेत्रों तक नहर के माध्यम से पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने इस विषय को लेकर लोकसभा में एक दिन पुरजोर अपील भी की कि अगर यह योजना उनके क्षेत्र में लागू होती है तो इससे उन किसानों को खेती किसानी के लिये पानी मिल सकेगा जिनके पास अभी तक कोई भी सिंचाई की व्यवस्था नहीं है और वे लोग बरसाती पानी पर निर्भर हैं। कई उनके समकक्ष सदस्यों ने अनिरुध्द सिंह की इस बात के लिए खुले दिल से तारीफ़ की और यह पुरजोर अपील भी कि सरकार को उन सब जगहों के लिए लिफ्ट इरीगेशन प्रोजेक्ट्स कर बारे में सोचना चाहिए जहाँ पानी की उपलब्धता अभी तक सुनिश्चि की जा सकी है बाबजूद इसके कि वहाँ नदियों में पानी की कोई कमी नहीं है।
एक बार जब राजा चन्द्रचूड़ सिंह और कुँवर अनिरुध्द दिल्ली में साथ साथ थे तो उन्हें बीकानेर के पूर्व महाराजा ने एक शाम को अपने बीकानेर हाउस पर डिनर के लिये बुलाया। राजा चन्द्रचूड़ सिंह और कुँवर अनिरुध्द जब वहाँ पहुँचे तो देखा कि महाराजा बीकानेर के छोटे भाई कुँवर दीप सिंह भी वहाँ उपस्थित थे। सब लोगों ने सौहार्द और प्रेम के वातावरण में डिनर लिया और अंत मे बीकानेर के महाराजा ने अपना मंतव्य बताते हुए राजा साहब से कहा कि वे अपने परिवार के साथ कभी बीकानेर पधारें तो उन्हें बेहद खुशी होगी। राजा साहब ने मज़ाक में महाराजा बीकानेर से कहा कि उनका कुनबा बहुत बड़ा है जिसमें तीनतीन तो रानियां हैं मैं किसको अपने साथ लेकर चलूँ किसे नहीं ये परेशानी का सबब बन जाता है। महाराजा बीकानेर ने भी हँसते हुए कहा कि वे चिंता न करें उनके भी दो रानियां हैं इसलिये वे अपनी तीनों रानियों को साथ लेकर बीकानेर तशरीफ़ लाएं। चन्द्रचूड़ सिंह जी ने पूर्व महाराजा बीकानेर का निमंत्रण सहर्ष स्वीकार किया और आश्वासन दिया कि वह प्रोग्राम फाइनल कर उन्हें सूचित करेंगे।
इसके बाद राजा साहब चन्द्रचूड़ सिंह और कुँवर अनिरुध्द बीकानेर हाउस से विदा लेकर अपने यहाँ वापस लौट आये। रास्ते में उन्होंने अनिरुध्द से कहा, "कुँवर मुझे शक़ है कि महाराजा बीकानेर के छोटे भाई के कोई न कोई लड़की है जिसके सिलसिले में वे हमें बीकानेर बुला रहे हैं"
अनिरुध्द ने उत्तर में कहा, "हो सकता है पर मैं ऐसा नहीं समझता"
इसके बाद बात आई गई ही गई और राजा साहब चन्द्रचूड़ सिंह और कुँवर कांकर वापस आ गए।
देश की राजनीति में अहम रोल मिलने के बाद अनिरुध्द की अपनी ज़िंदगी के मसायल कुछ वक़्त के लिए पीछे छूट गए। जब कुछ फ़ुरसत मिली तो एक दिन गौहर बेग़म से कहा, "माँसी सबा को कुछ दिन के लिये कांकर बुलावा लीजिये उससे मिलने का मन कर रहा है उसे देखे हुए एक अरसा हो चुका है"
क्रमशः


कथांश:37
मन पर एक बोझ लिये जब राजा साहब ऐश महल आये। उन्होंने अपने मन की बात जब गौहर बेग़म से कही तो गौहर बेग़म ने राजा साहब से कहा, "हुकम आप मर्द हम औरतों का दर्द कभी नहीं समझेंगे और शायद यही दर्द हम तीनों के बीच एक बहुत बड़ी कड़ी सिद्ध हुआ है कि हम तीनों के बीच कहीं कोई मनमुटाव या रंजिश का भाव नहीं है। आपने कितना समय जिसको ठीक समझा दिया। जितना हमारी क़िस्मत में था उतना साथ जितना मिलना था मिला और हमने इसे अपने कर्मों का भाग्यफल मान कर जिया। मैं महारानी की बात से इत्तेफ़ाक़ रखती हूँ और आपसे यह गुज़ारिश करती हूँ कि आप कुँवर की शादी में किसी भी तरह की जल्दबाज़ी न करें और जो महारानी ने कहा है उसका पालन करें। राजा साहब एक वचन आप हमें भी दीजिये कि हमसे वगैर बात किये आप कुँवर की शादी कहीं भी तय नहीं करेंगे"
राजा साहब आज अपने आपको बड़ी दुविधा में पा रहे थे कि एक बेटे पर उसकी तीन तीन माँ हक़ जता रहीं थी और वह यह समझ नहीं पा रहे थे कि वे क्या करें किसकी सुनें किसकी न सुनें? आखिर में राजा साहब ने गौहर बेग़म से पूछ ही लिया, "बेग़म हम वचनबद्ध होने के पहले यह जानना चाहेंगे कि कुँवर के लिये आप क्या सोच रखती हैं?"
गौहर बेग़म ने हँसते हुए कहा, "हुकम मैं कैकयी नहीं बनूँगी, मैं कुँवर को उतना ही प्यार करती हूँ जितना महारानी। मेरा प्यार निश्छल है। कुँवर भी मुझे उतना ही प्यार करते हैं जितना कि महारानी से। मेरा प्यार कुँवर के लिए शायद महारानी से कुछ अधिक नहीं तो कुछ कम भी नहीं"
"मुझे यह जानकर बेहद खुशी हो रही है कि कुँवर सबकी आँखों के तारे हैं पर फिर भी...."
".....फिर भी क्या महाराज? कुँवर जितने मेरे दिल के करीब हैं उतने तो वह आपके भी नहीं। जितना कुँवर को मैं जानती हूँ उतना तो आप या शायद महारानी भी नहीं जानती हैं। लिहाज़ा आप मेरी शर्त मान लीजिये"
"पहले आप अपने दिल का राज़ ज़ाहिर करिए उसी के बाद हम आपकी शर्त मानेगें"
"चलिये तय रहा तो मिलाइये हाथ और आपका ये वायदा रहा कि कुँवर की शादी आप वहीं करेंगे जहाँ मैं कहूँगी"
"वादा रहा, एक राजपूत का वादा बेग़म"
"चलिये अब आप अपने दिल का राज़ खोल ही दीजिये" राजा साहब ने गौहर बेग़म की आँखों में आँखे डालते हुए पूछा।
"बता देंगे, ज़रूर बता देंगे। ठीक मौका तो आने दीजिये। अभी नही..."
"चलिये जैसी आपकी मर्ज़ी" कह कर राजा साहब ने गौहर बेग़म की ओर देखा और बड़े प्यार से बोले, "बेग़म इधर एक अरसे से आपने कुछ सुनाया नहीं आज कुछ ऐसा सुना दीजिये जिससे मन खुश हो जाए''
"जो हुक़्म मेरे हुकुम का" इतना कह कर गौहर बेग़म ने अपने दिल के गुब्बार को यूँ हवा दी:
जब भी किसी ने ख़ुद को सदा दी
सन्नाटों में आग लगा दी
मिट्टी उस की पानी उस का
जैसी चाही शक्ल बना दी
छोटा लगता था अफ़्साना
मैं ने तेरी बात बढ़ा दी
जब भी सोचा उस का चेहरा
अपनी ही तस्वीर बना दी
तुझ को तुझ में ढूँढ के हम ने
दुनिया में तेरी शान बढ़ा दी

क्रमशः




कथांश:38
राजा साहब ने भी गौहर बेग़म से कौल ले लिया कि इस मसले पर वह किसी और से कोई बात नहीं करेंगी। गौहर बेग़म ने भी यही कहा, "सिवाय कुँवर के, हुकम"
इस बात से आश्वस्त हो राजा साहब ऐश महल से सूर्य महल आये और उन्होंने जो सवाल उनके मन मे अहम बन चुका था वह था अपने कुँवर और शिखा की शादी। तो उन्होंने अपने मन की बात अपनी प्रिय रानी शारदा देवी से की, "रानी साहिबा हम सोचते हैं कि हमें एक दिन लखनऊ चल कर राजा साहब माणिकपुर से शिखा बेटी के सम्बंध को लेकर बात आगे बढ़ानी चाहिए"
रानी शारदा देवी ने कहा, "आपने मेरे मुँह की बात छीन ली मैं भी आपसे इसी सिलसिले में बात करना चाह रही थी"
"आप ही बोलिये कि आपके मन मे क्या चल रहा है?"
"यही कि अब हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं और अब इनके विवाह की बात शुरू करनी चाहिए"
"रानी साहिबा, आप तैयार रहिये हो सकता है कि हमको बीकानेर चलना पड़े"
"बीकानेर में ऐसा क्या महाराज?"
इसके बाद राजा साहब ने रानी साहिबा को दिल्ली वाली बात विस्तार से बताई। इस पर रानी साहिबा ने कहा, "महाराज कुँवर की शादी में कोई जल्दबाज़ी करना ठीक न होगा। आप जो भी करें उसे बड़ा ठोक बजा के देख लें उसके बाद ही कोई निर्णय लें"
राजा साहब थोड़ा चक्कर में आगये कि यही बात महारानी और गौहर बेग़म ने भी कही थी। उन्हें लगा कि कहीं कुछ उनके पीछे पीछे चल तो नही रहा जिसका उनको ज्ञान नहीं है। वह कुछ कहना चाह रहे थे पर कुँवर की शादी के प्रश्न को टालते हुए वे शिखा की शादी के बारे में बात करने लगे क्योंकि कल रात ही वे गौहर बेग़म को कौल दे चुके थे कि इस विषय में वह और किसी से बात नहीं करेंगे। शिखा की शादी की बात करते हुए राजा साहब बोले, "हम आज ही राजा साहब माणिकपुर से बात कर मीटिंग तय करते हैं"
"जी वही ठीक रहेगा", रानी साहिबा ने भी अपनी सहमति इस बात के लिए जताई।
राजा साहब ने मानवेन्द्र सिंह, राजा माणिकपुर से बात की और उनको अपने लखनऊ निवास पर अगले दिन शाम को आने का निमंत्रण भी दे डाला। राजा साहब ने उधर कुँवर को भी दिल्ली में खबर कर दी कि वह भी लखनऊ पहुँच जाए!
जब शाम के वक़्त राजा साहब माणिकपुर महारानी रत्ना के साथ पधारे तो दोनों मित्र खुल कर गले मिले और दिल खोल कर बातचीत की। बातों हो बातों में पता चला कि कुँवर महेंद्र अगले हफ़्ते ही इंग्लैंड से छुट्टी पर आ रहे हैं। राजा साहब ने इस मौके का लाभ उठाते हुए पूरे माणिकपुर राजपरिवार को कांकर आने का निमंत्रण दे डाला, जो राजा माणिकपुर ने स्वीकार भी कर लिया। राजा साहब ने अपने दोस्त मानवेन्द्र सिंह से कहा, "शिखा बेटी भी अगले हफ़्ते दिल्ली से छुट्टी आ रही है तो ये मौका हम सभी के लिये ठीक रहेगा"
राजा साहब मानवेन्द्र सिंह ने कुँवर अनिरुध्द की तरफ बातों का रुख करते हुए पूछा, "....और सांसद महोदय आजकल क्या चल रहा है?"
कुँवर ने उत्तर देते हुए कहा, "सरकार ठीक ठाक काम कर रही है और प्रधानमंत्री जी की निगाह आजकल अवध क्षेत्र के विकास पर लगी हुई है। शीघ्र ही वह बहुत बड़ी बड़ी परियोजनाओं को लेकर इस इलाके में तूफ़ानी दौरा करने वालीं हैं"
"अरे ये तो अच्छी बात है अवध बहुत पिछड़ भी गया है इसी बहाने कुछ काम हो जाये तो ठीक ही है। तुम भी अपने क्षेत्र में कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स लगवा कर अगला इलेक्शन जीतने की तैयारी अभी से शुरू कर डालो", राजा माणिकपुर ने अपने विचार रखते हुए कुँवर से कहा।
"मैं भी यही सोच रहा हूँ और इस दिशा में कुछ शरुआती काम किया भी है"
फिर दोनों मित्रो के बीच एक लंबी बातचीत हुई। राजा माणिकपुर ने कहा, "हमारा क्षेत्र भी बहुत पिछड़ा हुआ है देखना कि एक दो प्रोजेक्ट्स हमारे इलाके में भी लग जाएं तो लोगों लो कुछ कम काज मिले। आजकल युवा वर्ग में काम न होने के कारण बहुत असन्तोष व्याप्त है"
कुँवर ने एक सधे हुए राजनीतिज्ञ की तरह कहा, "अरे महाराज हम क्या कर पाएंगे आप तो स्वयं ही सक्षम हैं"
इस पर राजा माणिकपुर बोले, "चन्द्रचूड़, हमारा कुँवर, अब पक्का राजनीतिज्ञ हो गया है अब इसकी शादी वादी कर दो नहीं तो ये हाथ से निकल जायेगा और कोई मेमसाहिब ले जाएगा तब तुम परेशान हो जाओगे"
राजा साहब ने भी मज़ाक में कहा, "अरे मानवेन्द्र तुम अपने कुँवर को लेकर अबकी बार कांकर आओ और अगर दोनों बच्चे तैयार हों तो हम कुँवर महेंद्र को तो कम से कम अपने यहीं की राजपूतानी लड़की से बांध कर उनके इंग्लैण्ड से मेम साहिबा लाने से रोक सकें"
"हाँ ये बात तो है। अबकी बार हम लोग इसे फाइनल कर हो देंगे", राजा माणिकपुर ने बात कह कर राजा चद्रचूड़ सिंह को आश्वस्त किया।
आज की बातचीत में कुँवर की भूमिका अहम रही और रानी शारदा देवी ने कुँवर की दिलखोल के तारीफ की। राजा साहब ने भी यह मानते हुए कहा, "रानी साहिबा यही तो होता है जब बच्चे बड़े होने लगते हैं तो वे अपने माँ और पिता का गौरव बनते हैं"
"कुँवर मेरी आँखों का तारा जो है", रानी शारदा देवी न कह कर राजा साहब तथा कुँवर दोनो का दिल रख दिया।

क्रमशः





कथांश:39
जब कुँवर महेंद्र के कांकर आने का प्रोग्राम तय हो गया तो राजा साहब ने मुखिया जी से कहा कि वे दिल्ली चले जाएं और शिखा और सबा दोनों को ही अपने साथ लेते आएं। उन्हें कांकर किस लिये बुलाया जा रहा है इसके बारे में कुछ भी न बताया जाय।
तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार जब राजकुमारी शिखा और सबा जब कांकर पहुँच गईं तो राजा साहब ने राजा माणिकपुर से फोन पर बातचीत कर उनको सपरिवार कांकर आने की दावत दी।
कुँवर ने जब देखा कि शिखा और सबा दोनों ही साथ-साथ आये हैं तो उन्हें लगा कि ये गौहर माँसी का ही का किया हुआ काम है तो वह उनसे मिलने ऐश महल जा पहुँचे। वहाँ उन्हें सबा दिखाई दी। जब वे दोनों एक दूसरे के सामने आए तो वे इस तरह मिले जैसे कि बरसों के बिछड़े दो दिल मिलते हैं। सबा कुँवर के सीने से इस क़दर चिपकी कि जैसे वह अब उन्हें छोड़ेगी ही नहीं। कुँवर ने प्यार से धीरे-धीरे उसे समझाया और उसे बताया कि उन्होंने किस तरह गौहर माँसी को इस मुलाक़ात के लिए पटाया था। सबा ने अपनी ओर से शिकायत भरे लहजे में कहा, "आप दिल्ली में रहते हैं और आपसे ये नहीं होता कि कभी-कभी मिलने ही आ जाया करें"
कुँवर ने सबा को बहुत समझाया, "एमपी बनने के बाद अब उनकी ज़िंदगी निज़ी ज़िंदगी नहीं रह गई है। हर वक़्त लोगों की निगाह उन पर लगी रहती है। कहीं किसी ने हम दोनों को साथ-साथ देख लिया तो बेमतलब ही बबाल हो जाएगा"
सबा ने डरते हुए पूछा, "इस तरह तो हम कभी भी न मिल सकेंगे"
"मिल तो रहे हैं जैसे यहाँ मिल रहे हैं वैसे ही मिलते रहेंगे"
सबा ने कुँवर के सीने पर थपकी देते हुए कहा, "ये हमें मंज़ूर नहीं है"
वे लोग एक दूसरे के आगोश में थे तभी अचानक गौहर बेग़म वहाँ आ गईं। दोनों लोग गुनहगार से एक दूसरे से अलग होकर खड़े हो गए। सबा तो मन ही मन बहुत डर रही थी कि आपा उसे कहीं एक आधा थप्पड़ ही रसीद न कर दें पर ऐसा कुछ जब न हुआ तो वह ताज़्जुब करने लगी और लड़खड़ाती जुबान में बोली, "खालाजान... बस... मैं यूँ ...ऐसे ही..."
गौहर बेग़म ने पूछा, "क्या ऐसे ही। इतना डरती है तो इश्क़ क्यों करती है? इश्क़ करने वाले कुर्बानी देने को तैयार रहते हैं तेरी तरह डरपोक नहीं होते हैं। ....मुझे कुँवर ने सब बता दिया है जो तुम दोनों के बीच क्या चल रहा है"
क्रमशः



कथांश:40
कुवँर अनिरु्द्ध को आए कांकर दो तीन रोज़ कब गुज़र गए पता ही न लगा। सबा के साथ कुछ मौच मस्ती भरा माहौल कांकर में बना रहा। शिखा बहुत नर्वस थी कि पता नहीं कुँवर महेंद्र किस तरह के इंसान होंगे। कहीं पुराने ज़माने के खूसट जैसे न दिखते हों। उसने अपनी यह चिंता अपनी सहेली सबा को जब बताई तो सबा ने उससे कहा, "तू घबरा क्यों रही है? अगर तुझे पसंद न आये या वो पुराने ज़माने के जैसे लगें तो रिजेक्ट कर देना"
"तेरा क्या है? तुझे तो मिल गया है न इस दुनिया का सबसे हैंडसम इंसान कुँवर अनिरुध्द सिंह, इसलिये तुझे क्या चिंता?"
"ये बात तो है मेरे राणा जी का कोई जबाब नहीं है"
शाम होते-होते राजा मानवेन्द्र अपनी रानी रत्ना और कुँवर महेंद्र के साथ कांकर आ गये। उनका राजपूत रीति रिवाज से सबसे पहले महारानी करुणा देवी ने स्वागत किया उसके बाद रानी शारदा देवी ने और सबसे आखिर में गौहर बेग़म ने।
कांकर महल के अंदरूनी हिस्से को आज बहुत सुंदर और कलात्मक ढंग से सजाया गया था और यहीं कुँवर महेंद्र की पहली मुलाक़ात राजकुमारी शिखा से जो होने वाली थी।
जब सभी लोग अपनी-अपनी जगह बैठ गए तो राजकुमारी शिखा सबा के साथ सभी लोगों के बीच पधारीं और रानी रत्ना के पास आकर बैठ गईं। सबा देख रही थी कि शिखा कनखी-कनखी कुँवर महेंद्र को देखे ही जा रही थी। पहली नज़र में कुँवर महेंद्र एक भले और सुंदर छवि रँग रूप के मालिक लगे। उसे लगा कि वह उनके बारे में विचार कर सकती है। कुछ देर तक रानी रत्ना शिखा से बात करती रहीं फिर उसके बाद वह उठ कर रानी शारदा देवी के पास चली गईं और उनसे बात करने लगीं। वहीं महारानी करुणा और गौहर बेग़म भी आ गई और जैसा ऐसे मौकों पर होता है महिलाएँ एक तरफ और सभी पुरुष एक ओर हो जाते हैं जिससे कि लड़का और लड़की आपस में बात कर सकें और एक दूसरे के करीब आ सकें। शिखा की किस्मत से सबा उसके आसपास ही थी जिससे कि वह कोई उलझन महसूस न करे। सबा कुँवर महेंद्र को छेड़े ही जा रहा थी जिसे देख कुँवर ने शिखा से कहा, "कुछ भी हो हमें आपकी सहेली बड़ी अच्छी लगी। बहुत ही हँस मुख और जिंदादिल इंसान है"
राजकुमारी शिखा ने कुँवर की बात का कोई जवाब नहीं देना उचित समझा पर मौका मिलते ही कुँवर से उनके शौक क्या क्या हैं? बस इसके बाद दोनों के बीच आपस में बातचीत का सिलसिला जो शुरू हुआ तो फिर उसने थमने का नाम ही नहीं लिया।
रात्रि भोजन के लिए जब सभी लोग चलने लगे तब राजा मानवेन्द्र और रानी रत्ना ने कुँवर से अलग से मुलाक़ात की और उनके विचार राजकुमारी शिखा के बारे में जानने की कोशिश की। कुँवर महेंद्र ने जब यह बताया कि राजकुमारी शिखा उन्हें पसंद हैं तो वे राजा चंद्रचूड़ सिंह के परिवार के लोगों के बीच आये और उन्होंने कुँवर की पसंद के बारे में बताया। उनकी बात सुनते ही कांकर राजपरिवार खुशी से झूम उठा। महारानी करुणा ने सबसे पहले हीरे का एक हार कुँवर महेन्द्र के गले मे पहना कर अपने परिवार की स्वीकृत को दर्शाया। उसके बाद एक-एक करके रानी शारदा देवी और उसके बाद गौहर बेग़म ने उन्हें कुछ न कुछ अपनी श्रद्धानुसार कुँवर को भैंट दी।
रानी रत्ना ने अपनी ओर से राजकुमारी शिखा के गले मे कुंदन का सेट डाला और हाथों में कंगन पहना कर उन्होंने भी अपने परिवार की स्वीकृत प्रदान की।
इधर उधर की बातचीत जब समाप्त हुई और खाने का समय हो गया तो सभी लोग एक बड़ी सी डाइनिंग टेबल के चारों ओर बैठ गए। शिखा और कुँवर महेंद्र आसपास बैठे और उनके ठीक पास बैठी सबा। खाना खाते समय कुँवर महेन्द्र और शिखा एक दूसरे से घुलमिल कर बातें करते दिखे।
सबा भी अपनी ओर से कुँवर महेंद्र की खिंचाई करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रही थी।
अगले दिन सब लोग जब हाथियों पर बैठ कर अमराई जा रहे थे तो कुँवर महेंद्र ने अपने घुड़सवारी के शौक के बारे में बताया कि वह तो इंग्लैंड में भी घुसडवारी के लिये हर शनिवार और रविवार जाते हैं। इस पर सबा बोल पड़ी, "फिर तो आपको कुछ रोज़ के लिये हमारा मेहमान बनना पड़ेगा। हमारा भाई भी बहुत अच्छा हॉर्स राइडर ही नहीं बल्कि पूरे हिदुस्तान को ट्रेंड घोड़े सप्लाई करता है"
शिखा भी उत्साहित हो कर बीच मे ही बोल उठी, "मैंने भी हॉर्स राइडिंग की ट्रेनिंग उन्हीं से ली है"
"ये बात है और सबा जैसी हसीन लड़की अपने यहाँ बुलाये तो भला हम कैसे मना कर सकते हैं", कुँवर महेंद्र ने भी सबा के ऊपर तीर छोड़ते हुए कहा।
राजा साहब माणिकपुर दो दिन कांकर राजपरिवार के आथित्य में रहे और फिर लखनऊ वापस लौट आये।
क्रमशः

कथांश:41
राजा साहब जब रानी शारदा देवी के कक्ष में थे और आपस में शिखा के बारे में बात कर रहे थे तो उनके मुँह से निकला, "रानी शरद आज हम बहुत प्रसन्न हैं कि हमारी बेटी को माणिकपुर राजपरिवार ने अपने घर की बहू के रूप में स्वीकार कर पहला पग बढ़ा लिया"
"राजा साहब माणिकपुर हैं भी तो आपके बचपन के मित्र", रानी शारदा देवी ने जवाब में कहा।
"रानी मित्रता अपनी जगह, बच्चों की ख़्वाहिश अपनी जगह। एक बार के लिये मान लीजिये कि कुँवर महेंद्र को हमारी शिखा बेटी पसंद न आई होती तो मानवेन्द्र और रत्ना भी क्या कर सकते थे?"
"ये बात तो है महाराज पर हमारी बेटी में ऐसी कोई कमी है ही नहीं कि कोई उसे पसंद न करे"
"मैं आपकी इस बात से एक दम सहमत हूँ कि हमारी शिखा जहाँ एक ओर देखने में चाँद का टुकड़ा लगती है वहीं हम लोगों ने उसको जिस तरह की शिक्षा प्रदान की है और जिस तरह से उसका लालन पोषण किया है और उसे सब सांसारिक विधाओं में पारंगत किया है उसकी भी कोई मिसाल नहीं है"
"जी महाराज शिखा को देख कर कोई भी माँ और पिता उस पर नाज़ कर सकते हैं"
"जी रानी शरद आपने हमारी मुँह की बात छीन ली"
"चलिये महाराज शिखा के जीवन का निर्णय तो हो गया पर अब आपको अपने कुँवर के बारे में सोचना चाहिए", रानी साहिबा ने कुँवर अनिरुध्द के बारे में कहा।
राजा चद्रचूड़ सिंह कुछ पल के लिये शांत हो गए और सोचने लगे कि अभी कुछ दिन पहले तो रानी शारदा देवी जी यह कह रहीं थी कि हमें कुँवर के विवाह में कोई जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, ऐसा क्या हो गया जिसके कारण रानी ने अपनी सोच ही बदल दी? राजा चंद्रचूड़ सिंह ने यही बात रानी शरद से जब कही तो उनकी प्रतिक्रिया कुँवर को लेकर कुछ इस तरह की रही कि अब कुँवर अपने भविष्य की योजनाओं पर काम कर रहे हैं और अपने समकक्ष राजनीतिक लोगों में अपनी पैंठ बना चुके हैं तो यही समय सर्वथा उचित है कि हम उनके विवाह के लिये कोई उपयुक्त कन्या ढूँढ कर उनके विवाह की बात आगे बढ़ाएं।
राजा चद्रचूड़ सिंह ने रानी शारदा देवी से कहा, "कुछ दिन पहले उनकी मुलाक़ात बीकानेर के महाराजा और उनके छोटे भाई राजा दीप सिंह जी से हुई थी, हमें लगता है कि वे लोग भी हमारे कुँवर के बारे में कुछ इसी तरह विचार रखते हैं इसिलए उन्होंने हमें सपरिवार बीकानेर बुलाया है। हम लोग शीघ्र ही बीकानेर चलेंगे आप वहाँ चलने की तैयारी शुरू कर दें"
"जी महाराज जैसी आपकी आज्ञा"
इसी बीच एक सेविका आई और उसने रानी साहिबा से कहा, "रानी जी कुँवर आपसे मिलने की इच्छा रखते हैं और बाहर आपकी अनुमति चाहते हैं"
"अरे उन्हें तुरंत लेकर आओ", रानी शारदा देवी ने कहा।
कुँवर ने अंदर आते ही रानी शारदा देवी से पूछा, "माँ शिखा कहाँ है? आपको कुछ उसके बारे में पता है?"
राजा साहब बीच मे ही बोल पड़े, "क्या हुआ शिखा को, वह ठीक तो है?"
रानी शारदा ने उत्तर देते हुए कहा, "जी महाराज वह बिल्कुल ठीक है और मुझसे पूछ कर ही वह ऐश महल सबा के पास गई है"
क्रमशः

कथांश:42
"जी रानी माँ में उससे वहीं जाकर मिल लेता हूँ", कुँवर ने रानी शारदा देवी से कहा।
"क्या कोई खास बात है?"
"ऐसी कोई खास भी नहीं फिर भी मैं उससे यह पूछना चाह रहा था कि क्या वह हमारे साथ खजूरगांव चलना चाहेगी?"
"कुँवर तूम क्या खजूरगांव जाने का मन बना रहे हो?", राजा साहब बीच में टोकते हुए कुँवर से पूछा।
"जी पिताश्री माँसा का मन कर रहा था, उन्हें वहाँ की याद आ रही थी"
"अरे उन्होंने मुझसे इस बारे में कभी कोई चर्चा ही नहीं की। मैं उन्हें ले जाता अपने साथ"
"ऐसा नहीं है मैं कुछ देर पहले उनके साथ बैठ हुआ था तो नाना और नानी जी की बात शुरू हुई तो इस पर अचानक उनकी आँखों से दो बूँद आँसू आ गए तो मैंने ही उनके सामने प्रस्ताव रखा कि खजूरगांव कौन विलायत में है चलिये अभी चले चलते हैं"
"ओहो यह बात है। तुम लोग बात करो, मैं चलता हूँ मुझे महारानी से कुछ ज़रूरी बात करनी है। तुम्हारे साथसाथ और कौन जा रहा है?", राजा साहब ने कुँवर से पूछा।
"जी अभी तो किसी और से बात नहीं हुई है पर बहुत दिन पहले माँसी ने अपनी इच्छा ज़ाहिर की थी कि वे भी खजूरगांव चलना चाहेंगी"
"तो उन्हें भी साथ ले जाना", राजा साहब ने कुँवर की ओर देखते हुए कहा और वह उठ खड़े हुए। इसी बीच कुँवर ने उन्हें बताया कि वे अबकी बार कार से न जाकर मोटर बोट से खजूरगांव जाना चाह रहे हैं। इस पर राजा साहब पूछ बैठे, "कोई खास प्रयोजन है या बस ऐसे ही?"
"पिताश्री अगर आपकी अनुमति हो तो मैं कांकर और खजूरगांव के बीच टूरिस्ट लोगों के लिये एक योजना पर काम करना चाहता हूँ"
"अरे कुँवर यह तो बहुत अच्छी बात है अवश्य इस योजना पर काम करो इससे हमारे क्षेत्र को बहुत लाभ मिलेगा"
"जी पिताश्री, जैसे ही कुछ फाइनल होता है मैं आपसे बात करूंगा", कुँवर ने रानी शारदा देवी की ओर पलटते हुए पूछा, "छोटी माँसा क्या आप चलना चाहेंगी हमारे साथ?"
"नहीं वत्स अभी तुम घूम कर आओ। हमें कुछ और काम महाराज ने सौंपे हैं जो पूरे करने हैं। महाराज हम सभी को साथ ले कर बीकानेर चलने का मन बना रहे हैं"
कुँवर ने कुछ जवाब नहीं दिया सिर्फ राजा साहब की ओर देखा।
राजा साहब रानी साहिबा के कक्ष से निकल कर सीधे महारानी के कक्ष में गए और उन्होंने उनसे बात करते हुए कहा, "महारानी क्या बात है आज आपको पिताश्री राणा जी और माताश्री की याद अचानक कैसे आ गई?"
"बस ऐसी ही कुँवर से खजूरगांव की बात चली तो मेरी आँखें नम हो गईं, चितां की कोई बात नहीं है, महाराज"
"सुना है कि आपका वहाँ जाने का बड़ा मन कर रहा है, आप कहें तो मैं भी चलूँ आपके साथ?"
"आपकी मर्ज़ी वह आपकी भी तो ससुराल है"
"महारानी ससुराल सास और ससुर से होती है, अब वहाँ कोई भी तो नहीं है"
"ये बात तो है महाराज", इतना कहने के बाद ही महारानी फफक कर रोने लगीं। राजा साहब ने महारानी को सम्हाला, उनका तस्सली दी, समझाया बुझाया और उनसे कहा कि वे कुँवर को जाने दें, वे उनके साथ शाम को खजूरगांव ज़रूर चलेंगे।
कुँवर रानी साहिबा से कुछ देर बाद तक बात करते रहे और फिर बाद में ऐश महल की ओर निकल लिये। ऐश महल में ही उनकी मुलाक़ात शिखा और सबा से हुई। कुँवर ने शिखा से पूछा कि क्या वह उनके साथ खजूरगांव चलेगी? शिखा ने यह कह कर मुआफ़ी मांग ली कि आज उसे कुछ थकान सी लग रही है इसलिये वह खजूरगांव उनके साथ न आ सकेगी।
शिखा के मना करने पर खजूरगांव चलने वाले अब चार सदस्य ही बचे और वे थे महारानी साहिबा, गौहर बेग़म, कुँवर और सबा। सबा से यह कह कर, "दो घँटे में वह और माँसी तैयार रहें हम अभी आते हैं", कुँवर ऐश महल से शिखा के साथ चल पड़े।
सूर्य महल आते ही कुँवर महारानी के कक्ष की आये तो उन्होंने देखा कि राजा साहब भी वहीं पर हैं। कुँवर ने अंदर आकर अपनी माताश्री से पूछा, "माँसा आपकी तैयारी पूरी हो गई हो तो हम चलें"
महारानी सहिबा ने जवाब में कहा, "कुँवर तुम चलो हम और महाराज शाम को कार से खजूरगांव पहुँचेंगे"
"क्या पिताश्री भी चल रहे हैं?"
"हाँ, वह भी हमारे साथ चलेंगे लेकिन अभी नहीं शाम को"
"ठीक है माँसा तो मैं निकलता हूँ"
कुछ ही देर में कुँवर गौहर बेग़म और सबा को मोटर बोट से खजूरगांव के लिये निकल पड़े। खुला हुआ मौसम, मदमस्त चलती हुई हवाएं, गंगा नदी की मुख्य धारा के ऊपर तेजी से चलती हुई मोटर बोट की यात्रा का अपना ही मज़ा था। कुँवर मोटर बोट को खुद ही चला रहे थे और उनका मन भी आज बहुत खुश था। शायद इसलिये कि सबा उनके साथ थी। गौहर बेग़म और सबा को भी खूब आनंद आ रहा था। मोटर बोट के इंजिन की आवाज़ के चलते आपस में बात करना मुनासिब नहीं हो पा रहा था फिर भी गौहर बेग़म ने सबा से तेज आवाज़ में उसके कान के पास मुँह रख कर कहा, "कुँवर आज पहली बार मोटर बोट से खजूरगांव जा रहे हैं, वो भी भला किस लिये तुझे कुछ अंदाज़ा भी है, क्योंकि तू हमारे साथ है"
"मेरी वजह से मौसी"
"हाँ पगली कहीं की तेरी वजह से"
"ज़हेनसीब ये तो मैंने कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि कोई भला ख़ास मेरे लिये ये सब इंतज़ामात करेगा"
"सबा इसी बहाने कुँवर तुझे खजूरगांव भी दिखा देना चाह रहे थे", गौहर बेग़म ने सबा से कहा।
"वो क्यों?"
"वो तुझे वहाँ पहुँच कर ही बताऊँगी"
क्रमशः
कथांश:43
एक जगह गंगा के किनारे कुछ बच्चे कूदकूद कर नहा रहे थे, उनको इस तरह कूद फांद करते हुए सबा को बहुत अच्छा लगा और वह गौहर बेग़म से बोल उठी, "कितनी मस्ती कर रहे हैं बच्चे उन्हें देख कर मेरा भी मन कर रहा है में भी गंगा में कूद के नहा कर खूब मस्ती करूँ"
"रहने भी दे अब तेरी वो उम्र नहीं है। अब तू जवान हो गई है जरा ऐसी वैसी बात किसी और के सामने न कर बैठना", गौहर बेग़म ने उसे यह कहते हुए टोका।
उनकी मोटर बोट अभी कुछ ही और आगे बढ़ी थी कि कुँवर को कुछ मगरमच्छ नदी के किनारे दिखाई दिए जो गंगा नदी की रेती में धूप सेक रहे थे। कुँवर ने उनके पास जाकर अपनी मोटर बोट रोक दी ओर सबा से कहा, "लो देख लो इन मगरमच्छों को। क्या इनके पास जाकर देखना है"
"मुझे नहीं जाना है उनके पास। मेरा शिकार कर डालेंगे एक ही निवाले में मैं उनके पेट मे होऊँगी। मेरे लिये तो बस आप बस आप ही एक शिकारी अच्छे हो", सबा ने कुँवर के पास जाकर कहा।
कुछ देर वहाँ बिता कर कुँवर ने अपनी मोटर बोट एक बार फिर से शुरू की और खजूरगांव की ओर चलने लगे। खजूरगांव का किला गंगा नदी के किनारे ही बना हुआ था ठीक ऐश महल की तरह और बहुत दूर से दिखाई पड़ने लगता था। किले को देख कर सबा गौहर बेग़म से पूछ बैठी, "मौसी वो कौन सी इमारत है"
"वही तो है खजूरगांव का किला। तेरे राणा जी का महल"
"ये तो बहुत बड़ा है"
"हाँ, ये किला कुँवर के पर नाना जी ने बनबाया था। एक वक़्त में इसकी बहुत अहमियत थी। कहते हैं अंग्रेजों के ज़माने में एक एक रुपया जुर्माना यहाँ के लाट साहब ने खजूरगांव रियासत पर किसी वजह लगा दिया। राणा जी ने एक रुपया तो जमा नहीं किया उसके ऐवज़ में रायबरेली शहर में एक आलीशान गवर्ननेंट इंटर कॉलेज बनवा दिया जिसमें आज भी बच्चे और बच्चियां पढ़ने जाती हैं", गौहर बेग़म ने यह बाकया सबा को सुनाया तो उसके मुँह से निकला, "वल्लाह ये तो बड़ा नेक काम किया राणा जी ने"
"बहुत बड़े दिल वाले इंसान थे कुँवर के पर नाना जी"
गौहर बेग़म ने सबा को बताते हुए कहा, "एक वक़्त में खजूरगांव रियासत को रायबरेली जिले में सबसे ज़्यादा मालगुज़ारी मिला करती थी"
इसके बाद तो न जाने और भी कितने ही किस्से गौहर बेग़म ने सबा को खजूरगांव रियासत के सुनाए। गौहर बेग़म ने बताया कि खजूरगांव की एक बहुत बड़ी कोठी नाका हिंडोला, लखनऊ और दूसरी रायबरेली शहर के ठीक बीचों बीच बनी हुई है। दोनों जगह खजूरगांव रियासत के वारिस अभी भी रह रहे हैं।
सबा को भी लग रहा था वह सब कुछ जान लेना चाहती थी जिससे कि वह कभी कुँवर को यह बता सके कि कितनी गहन जानकारी है उसके पास, उनके ख़ानदान के बारे में।
यहीं सब बातें करते करते कुँवर खजूरगांव किले की नदी वाली दीवार के पास जब पहुँचे तो देखा कि वहाँ उनकी ख़िदमत के लिये पहले ही से तीन चार आदमी बैठ कर उनका इंतजार कर रहे थे। उन्होंने मोटर बोट देखते ही उसे किनारे लगवाने में मदद की और सभी मेहमानों का सामान वगैरह उतारा और क़िले के भीतर उनको ले गए।
क्रमशः
कुछ कही कुछ अनकही सी अपनी बात:
कोई कहानी अपने आप जन्म नहीं लेती हरेक कहानी के पीछे कोई न कोई बात होती है। वैसे तो बुलबुले भी पैदा होते रहते हैं मरने के लिये वैसे ही विचार आते हैं विचार जाते ही रहते हैं ठीक पानी के बुलबुलों की तरह।
जब "रिंनी खन्ना की कहानी ..." नामक धारावाहिक लिखना शुरू किया था तो बस एक विचार मन में था कि हमारी रिंनी कुछ हट कर होगी। बस वही विचार आखिर तक बना रहा। सबसे बड़ी जो बात हई वह थी आप सरीखे मित्रों की समय समय पर जो टिप्पणियां होतीं थी उससे कहानी आगे बढ़ती रही। कमोवेश यही हुआ जब कश्मीर एक केंद्र बिंदु बना और कहानी के पात्रों केशर, शौरेन, दीदा, प्रेमनाथ, ख़ालिख मियाँ जैसों का जन्म हुआ और कहानी चल निकली। कुछ दिन पहले "मैं उसकी ख़्वाहिश हूँ" धारावाहिक अपने चरम पर पहुँच कर समाप्त हुआ तो हमारे मित्र नीलेश (राँची) ने कहा, "सिंह साहब कहानी जोरदार है इसे कृपया एक संकलन में प्रस्तुत करने की कोशिश करिये। जो कहानी आप सभी को लगभग चार महीने तक रोमांचित करती रही उसका एक संकलित रूप भी अब लगभग तैयार है। दो एक दिन में प्रकाशन हेतु चला जाना चाहिए।
जब "मैं उसकी ख़्वाहिश हूँ" कथानक समाप्त हुआ तो लगा कि अब कुछ करने को नहीं है तभी मुझे हरी शंकर पाण्डेय, जो हमारी आईटीआई, रायबरेली इकाई के सहयोगी हैं, उनका सुझाव मिला कि सर आपने अपनी कहानियों में मनकापुर और बंगलोर प्रमुख रूप से जगह प्राप्त करते रहते हैं यहाँ तक कि मेरा पहला अंगेरजी का उपन्यास "indian tiger caged in the cupboard" मनकापुर के घटनाक्रम पर आधरित था तो मैं एक कहानी रायबरेली के ऊपर भी लिखूँ जहाँ जीवन के 23 महत्वपूर्ण साल गुजारे हों। बस उसी समय "एक थे चन्द्रचूड़ सिंह" का चरित्र मानसपटल पर बना और यह धारावाहिक अब आपके समक्ष पिछले चालीस दिनों से ऊपर हो गये हर दिन कुछ न कुछ नया लेकर आ रहा है। कुछ पात्र इस कथानक के जीवंत पात्र थे और उनमें से कुछ घटना मेरे व्यक्तिगत जीवन मे घटित हुईं जिनके बारे में आज चर्चा करना ज़रुरीं बन गया।
ये उस वक़्त की बात है जब आईटीआई (1974-75) रायबरेली का शुरुआती दौर था। हमारा उठना बैठना रायबरेली के कई पुराने दमदार और रियासतदानों के यहाँ था। उनमें से एक थे कुँवर वीरेंद्र सिंह, खजूरगांव राजपरिवार से।
कुँवर वीरेंद्र सिंह, रतापुर रोड पर रेलवे क्रासिंग के पास, अपनी खजूरगांव कोठी में ही रहते थे। दिन में कुछ करने को हो और लोगों से मुलाक़ात वग़ैरह की एक जगह बनी रहे इसलिये उनकी एक अस्त्र शस्त्र की दुकान विक्रम शस्त्रालय, चन्द्रचूड़ मार्किट, चंदापुर कोठी, संजय पैलेस मार्किट के पास थी।
एक दिन शाम को मैं उनके यहाँ बैठा हुआ था बातों बातों में मैंने उनसे ज़िक्र किया कि कुँवर साहब हमारा भी रिवाल्वर का लाइसेंस बनवा दीजिये तो हम भी गाँव से पिताश्री की एक रिवाल्वर ले आयें। इस पर उन्होंने तपाक से जवाब दिया कि भाई साहब आजकल उच्च वर्ग के लोगों का विशेष कर राजपूतों को लाइसेंस प्रशासन नहीं दे रहा है इसलिये आप रिवाल्वर की बात तो भूल ही जाइये। एक काम हो सकता है कि एक छुट्टी वाले दिन मौका निकाल कर आप हमारे साथ खजूरगांव चले चलिये। किले से आपको दो तोप उठवा देते हैं, आप उन्हें अपने घर के सामने रखवा दीजियेगा।
उस वक़्त की और हमारे खजूरगांव दौरे की कुछ यादें शेष भर हैं जो आज इस एपिसोड में खूब उभर कर आईं हैं।
मुझे याद है तब मैंने उनसे कहा था कि भाई साहब आईटीआई के किराए के मकान में ये तोप कहाँ सजेंगी। इतनी सी बात पर उन्होंने मुझे नेहरू नगर में दस बिस्वा ज़मीन खरीदवा कर ही चैन लिया और बोले, "लीजिये भाई साहब अब आप अपना कॉटेज और बाग़ बगीचा बनवा ही लीजिए"
नेहरू नगर में हमारे प्लाट के ठीक सामने लक्ष्मी होटल के पाण्डेय जी की बगिया थी। जब एक दिन हम अपनी कॉटेज में थे तो वहाँ साधु बाबू पाण्डेय, जो हमारे मित्र लक्ष्मी पाण्डेय के पिताश्री थे और जिनका उस ज़माने में कांग्रेस में काफी दबदबा था, आये और बोले ठाकुर साहब बगिया में कुछ दशहरी, चौसा, अमरूद वगैरह के बिरवा लगवा दो तो बहुत आनंद रहेगा।
आज जब यह एपिसोड लिख रहा था कि अचानक यह सब बरबस ही याद हो आया।
शुक्रिया।






कथांश:44
खजूरगांव किला का निर्माण बहुत पहले 1860 -1865 के बीच हुआ था, जब तक आय के स्रोत ठीक ठाक रहे यहाँ की देखभाल भी अब्बल दर्ज़े की थी पर रियासतों के कमाई के ज़रिए ख़त्म गए तो धीेधीरे ये महल और किलों की देखभाल भी बदहाल होती गई। जो राजा राजवाड़े वक़्त के साथ बदल गए वही अपने किलों और महलों की रँगाई पुताई भी करा पाए जो नाचगाने में लगे रह गए उनकी जमीन जायदाद भी धीरेधीरे बिकने लगी। खजूरगांव के राणा लोग समय के बदलाव को नहीं भाँप पाए अतः इतना बड़ा किला और कई महल होते हुए भी इनकी माली हालत अब यह उतनी अच्छी नहीं थी जितनी कि कांकर रियासत की। इतना सब हो जाने के बाद भी खजूरगांव किला अभी भी बेहद मजबूती के साथ गंगा किनारे खड़ा हुआ अपने वजूद की कहानी कह रहा है।
गोधूलि बेला के साथ ही राजा साहब महारानी के साथ कांकर से खजूरगांव आगए। कुँवर पहले ही से वहाँ थे तो सभी प्रबंध चाक चौबस्त थे। राजा साहब और महारानी महल के लोगों से बात करके उस कक्ष में आराम करने के लिये चले गए जो कक्ष एक समय में राणा और उनकी महारानी रहा करते थे।
देर रात खाने पीने की व्यवस्था की जिम्मेदारी किले के केअर टेकर शत्रुघन सिंह की थी। गौहर बेग़म ने अपने लिये किले के सबसे ऊपरी वाले हिस्से में रहने का इंतज़ाम एक अटारी में करवाया और वह सबा के साथ वहीं आराम फरमा रहीं थीं। अपने अकेले पन को दूर करने के लिये वे धीरेधीरे ठुमरी गुनगुना रहीं थीं जो सबा अपने दिल के ज़ज़्बात के बहुत करीब पा रही थी उसके मन में भी यही चल रहा था कि किसी तरह कुँवर बस उससे मिलने आ जायें।
हमरी अटरिया पे आओ संवरियां,
देखा देखी बलम हुई जाए,
हमरी अटरिया पे....

प्रेम की बिक्षा मांगे भिखारन लाज हमारी राखियो साजन
आओ सजन हमारे द्वारे सारा झगड़ा खत्म होइ जाए
हमरी अटरिया पे...

तुम्हरी याद आंसू बन के आई, चश्मे वीरान मे
ज़हे किस्मत के वीरानों में बरसातें भी होती है

हमारी अटरिया पे......
कुँवर तो नहीं आये पर राजा साहब गौहर बेग़म को ढूँढते हुए ऊपर अटरिया पर आ गए। उनके हाल चाल पूछे यह जानकारी हासिल की कि बोट का सफ़र उन्हें रास आया कि नहीं। गौहर बेग़म ने जवाब में कहा, "जिसका माँझी खुद का कुँवर जैसा बेटा हो तो उसके सफ़र के बारे में क्या चिंता करना। हुकुम ये तो आप सबा से पूछिए कि उसे नाव से दरिया का सफ़र कैसा लगा"
"कहाँ है हमारी बेटी सबा?", राजा साहब ने सबा को जब गौहर बेग़म के साथ नहीं देखा तो उसके बारे में पूछ बैठे।
"अभी तो यहीं थी। यहीं कहीं निकल गई होगी दरिया के नजारे देखने के लिये। आप रुकिये मैं उसे आवाज़ देती हूँ", कह कर अटरिया की बाहरी दीवार के पास आकर आवाज़ लगाई, "सबा...सबा..."
गौहर बेग़म की आवाज़ सुनकर सबा तुरंत ऊपर अटरिया में आ गई जहाँ राजा साहब उसका इंतजार कर रहे थे।
राजा साहब ने सबा से पूछा, "कहाँ चली गई थी मेरी बेटी?"
"कहीं नहीं हुकुम बस नीचे जाकर दरिया के ख़ुशनुमा हुस्न और आसमान डूबते हुए सूरज के बदलते हुए रंगों को निहार रही थी। अपना अकेलापन कुछ देर के लिये भूलने की कोशिश कर रही थी"
"शिखा नहीं आई है न अबकी बार इसलिये तुझे अकेलापन लग रहा है। एक दो दिन रह लेगी तो तुझे यहाँ भी अच्छा लगने लगेगा। यहाँ का किला बहुत बड़ा है कल दिन में कुँवर के साथ घूमने चली जाना", राजा साहब ने सबा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा।
जब वे तीनों लोग बैठ कर गपशप कर ही रहे थे कि शत्रुघन सिंह आ गए और बोले, "हुकुम खाना लग गया है, महारानी साहिबा आप सभी का डाइनिंग हॉल में इंतज़ार कर रहीं हैं"
राजा साहब ने कहा, "चलो हम लोग भी आते हैं। कुँवर को भी बुलावा भेज दो"
कुछ ही देर में सभी लोग किले के डाइनिंग हॉल में मिले तो सबा तो वहाँ की सजावट देखती ही रह गई। पुराने ज़माने की काली शीशम की लकड़ी की बनी हुई खूब लंबी सी डाइनिंग टेबल जिस पर एक साथ चौसंठ व्यक्ति एक साथ भोजन कर सकते थे।
डाइनिंग हॉल की दो आमने सामने वाली दीवारों पर बड़े बड़े आईने लगे हुए थे जो शायद इसलिये लगाए गए थे जिससे कि जब झाड़फानूस में शमा जलाईं जाती होंगी तो पूरा हाल जगमग जगमग करता होगा, एक दीवार पर पुराने ज़माने की पिस्तौल, बंदूक, तलवार, बल्लम, भाले और ढाल वग़ैरह बहुत करीने से लगीं हुईं थी, उसके ठीक सामने वाली दीवार पर दो शेर की खाल, कई हिरन और बारहसिंघों के सींग बढ़िया डिजाइनदार तरीके से लगे हुए थे, डाइनिंग हॉल के ठीक बीचों बीच में बहुत बड़ा सा झाड़फानूस लगा हुआ था, उसके साथ मिलते जुलते दो झाड़फानूस बीच वाले के अगल बगल लगे हुए थे। लगता था कि बहुत पुराने वक़्त के थे क्योंकि आज भी उनमें मोमबत्ती ही जलाईं जातीं थीं। रौशनी कम न पड़े इसलिये दीवार के चारों ओर पीतल के नक्कासीदार और ग्लास पर सुनहरी काम किये हुए लैंप शेडस में बिजली के बल्ब भी शायद बाद में लगवाए गए होंगे।
राजा साहब बीच की कुर्सी पर, उनके एक तरफ महारानी साहिबा और कुँवर तो उनके ठीक सामने गौहर बेग़म और सबा बैठ गए। एक के बाद लज़ीज़ डिशेज़ मेहमानों के लिये परोसी गईं।
राजा साहब बीचबीच में महारानी साहिबा को उनके बचपन की बातें याद दिलाते रहे। महारानी साहिबा ने भी खासतौर पर सबा से बात करते हुए इस किले में अपने गुज़ारे दिनों के किस्से कहानियां सुनाई। आख़िर में ख़ालिस दूध में बनी खीर पड़ोसी गई।
राजा साहब, महारानी और गौहर बेग़म आपस मे हँसी मज़ाक करते हुए बीच वाले बगीचे में आकर बैठ गए। कुँवर ने राजा साहब की ओर देखते हुए कहा, "आप लोग बैठ कर बातें करिये। मैं और सबा महल की छत वाली अटारी में जा रहे हैं कुछ देर वहीं बिताएंगे खुले आसमान के नीचे"
कुँवर और सबा घूमतेघूमते चाँदनी रात में किले की छत पर निकल गए और जब वे एक दूसरे से नितांत अकेलेपन में मिले तो बस एक दूसरे से लिपट कर रह गए....
राजा साहब ने महारानी और गौहर बेग़म की ओर देखते हुए कहा, "आप दोनों से मैं आज वह कहने जा रहा हूँ जो मैं इधर कई महीनों से महसूस कर रहा हूँ। नहीं जानता कि इस मुद्दे पर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी"
महारानी ने राजा साहब से पूछा, "महाराज ऐसी कौन सी बात है जो आप हमसे इतने दिनों से महसूस कर रहे हैं और हमको आपने कभी बताई भी नहीं"
गौहर बेग़म ने भी कुछ वही कहा जो महारानी ने कहा, "हुकुम अगर ऐसी कोई भी बात जो आपको भीतर भीतर चुभ रही है और आपने वह बात कम से कम मुझे नहीं तो महारानी को तो बतानी ही चाहिए थी"
राजा साहब गंभीर होते हुए बोले, "मैं जब तक किसी बात की गहराई में नहीं जाता हूँ तब तक किसी से भी उसके बारे में कोई बात नहीं करता हूँ"
महारानी और गौहर बेग़म ने एक साथ कहा, "महाराज आप अपने दिल की बात हमसे आज कह ही डालिये"
राजा साहब दोनों स्त्रियों के चेहरे की भावभंगिमा देख कर मुस्कुराते हुए बोले, "अरे परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे कई दिनों से यह अहसास हो रहा है कि हमारा कुँवर सबा को चाहने लगा है"

क्रमशः



कथांश:46
राजा साहब की बात सुनकर गौहर बेग़म ने चुप रहना ही बेहतर समझा पर महारानी अपने आपको न रोक पाईं और बोल पड़ीं, "अगर कुँवर को सबा पसंद है तो हमें भी कोई एतराज नहीं है। मैं आज ही उससे पूछूँगी कि आखिर उसकी क्या मर्ज़ी है। शिखा बेटी की शादी तो अब तय हो ही गई है तो अब हम कुँवर की शादी भी जल्दी कर देंगे"
राजा साहब ने महारानी से कहा, "आप इतना जल्दी भी न कीजिये। पहले हमें पूरी तहकीकात कर लेने दीजिये। दूसरा खाली ये कुँवर की मर्ज़ी का सवाल नहीं है, शौक़त बेग़म का क्या रुख है यह भी पता लगाना पड़ेगा। यह भी विचार करना पड़ेगा कि कुँवर और सबा के बीच अगर कोई रिश्ते की बात चलती है तो हमारा राजपूत समाज क्या कहेगा। कुँवर जितने हमारे हैं उससे ज्यादा वह अब जनता के पसंदीदा नेता हैं"
महारानी से रुका न गया और वह बोल ही पड़ीं, "महाराज आपने भी तो गौहर बेग़म से निकाह किया तब तो किसी ने कुछ नहीं कहा पर जब मसला हमारे बेटे का है तो अब आप ऐसी बातें कर रहे हैं?"
"महारानी आप हमें गलत समझ रहीं हैं। हम बस यह कह रहे हैं कि हमें कोई जल्दबाज़ी नहीं करनी है। रही बात कुँवर की तो हम उसकी हर इच्छा पूरी करने के लिये तैयार हैं"
राजा साहब की बात पर गौहर बेग़म ने भी बस इतना कहा, "महारानी साहिबा आप परेशान न होइए पहले मुझे इस मसले की जड़ तक जाने दीजिये और अगर सबा और कुँवर के बीच कोई भी बात है तो सबसे पहले मैं चाहूँगी कि उनकी खुशियाँ बरकरार रहें"
"गौहर बेग़म हम आपकी बात समझते हैं और हम यह भी जानते हैं कि कुँवर हम तीनों के बीच सबसे ज्यादा वह आपसे प्यार करते हैं", महारानी ने गौहर बेग़म की तरफ रुख करके कहा।
राजा ने साहब ने महारानी को समझाते हुए कहा, "महारानी आप निश्चिंत रहें कुँवर की खुशी में ही हमारी सब की खुशियाँ हैं पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। कल ही महाराजा बीकानेर का फोन आया था वह भी जोर देकर पूछ रहे थे कि हम लोग कब बीकानेर आने वाले हैं?"
इस पर गौहर बेग़म ने ही राजा साहब से कहा, "महाराज आप बीकानेर के महाराजा साहब के यहाँ उस वक़्त ही जायेंगे जब हम तीनों लोग आपके साथ चलने को तैयार होंगे। कृपया अभी आप उनसे कोई वायदा नहीं कर लीजिएगा"
"नहीं गौहर बेग़म। रानी शरद और आप दोनों से बात कर ही हम बीकानेर चलने का प्रोग्राम तय करेंगे", राजा साहब ने उनकी बात मानते हुए कहा।
इसके बाद तीनों लोगों के बीच कुछ और भी मसायल पर देर रात तक बात होती रही।
उधर दूसरी ओर कुँवर और सबा घूमते घूमते किले के सबसे ऊपरी हिस्से में चले आये और ऊपरी वाली अटरिया में आकर बैठ गए। चाँदनी रात, आसमान में पूर्णमासी का हँसता हुआ चाँद, दरिया के ऊपर से होकर आते हुये ठंडी ठंडी मद मस्त हवा के झोंके, किले की अटारी अपनी महबूबा से मिलने के लिये इससे बढ़िया और कोई दूसरी जगह दुनिया मे हो ही नहीं सकती। सबा जब कुँवर के साथ हाथ में हाथ डालके घूमते रहने के बाद एक जगह आकर बैठ गए। कुँवर ने सबा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, "सबा तुम्हें पता है, जब तुम दिल्ली में थी और हमको मिले हुए बहुत दिन हो गए थे तो मैंने गौहर माँसी से कहा था कि वह तुम्हें कांकर बुला लें"
"मुझे मालूम है मौसी ने मुझे बताया था। मेरे राणा जी अब तो शिखा की शादी तय हो गई है, मुझे अपनी चिंता सताने लगी है कि मेरा क्या होगा?", यह कहते हुए सबा कुँवर के सीने से चिपक गई।
कुँवर ने भी सबा को अपनी बाहों में जकड़ते हुए कहा, "सबा तुम्हें मुझ पर भरोसा है तो तुम इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए। मैं माँसी से बात करके हम दोनों के रिश्ते के बाबत महाराज से बात कराता हूँ। महाराज उनकी बात नहीं टालेंगे"
"मुझे बड़ा डर लग रहा है कि हमारे बीच कहीं ये ज़ालिम दुनिया और ये हिन्दू मुसलमान की बात न खड़ी हो जाय"
"ऐसा कुछ भी न होगा। तुम मुझ पर और माँसी पर भरोसा करो। आखिकार महाराज ने भी तो माँसी से निकाह किया है कि नहीं। मेरे पिताश्री इतने दकियानूसी ख़यालात के आदमी नहीं हैं"
"में ये सब कुछ नहीं जानती। मैं अगर जानती हूँ तो सिर्फ तुम्हें। तुम बस मुझे अपनी निगाह से न गिरा देना"
"कभी नहीं जानम कभी नहीं", कह कर कुँवर ने सबा को अपने सीने से चिपका लिया। सबा भी प्यार के इज़हार में कहाँ पीछे रहने वाली थी उसने भी आगे बढ़ कर कुँवर के होठों पर अपने होंठ सजा कर अपने प्यार की गहराई को जताते हुए कुँवर से कहा, "एक लड़की के पास बस उसकी इज़्ज़त होती है और वह मैंने आज तुम्हारे हवाले की है अब चाहे तुम मुझे अपनाओ या ठुकराओ अब यह तुम पर है"
कुँवर ने सबा को अपनी ओर खींचते हुए कहा, "दिल जोड़ने की बात करो जो बात दिल को लग जाये ऐसी बात कभी करना भी नहीं"
बस इतना सुनते ही सबा कुँवर के सीने से जा लगी। कुँवर ने सबा के चेहरे को अपने चेहरे की ओर करते हुए कहा, "सबा तुम ये न समझना कि हमें कुछ आता नहीं है। हम भी सब जानते हैं कि तुम्हारे दिल मे इस वक़्त क्या चल रहा है। अगर मैं इनको अपने अल्फ़ाज़ में कहना चाहूँ तो कुछ इस तरह कहूँगा:
रवाँ है छोटी-सी कश्ती हवाओं के रुख पर
नदी के साज़ पे मल्लाह गीत गाता है
तुम्हारा जिस्म हर इक लहर के झकोले से
मेरी खुली हुई बाहों में झूल जाता है
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं
मैं फूल टाँक रहा हूँ तुम्हारे जूड़े में
तुम्हारी आँख मुसर्रत से झुकती जाती है
न जाने आज मैं क्या बात कहने वाला हूँ
ज़बान खुश्क है आवाज़ रुकती जाती है
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं
मेरे गले में तुम्हारी गुदाज़ बाहें हैं
तुम्हारे होठों पे मेरे लबों के साये हैं
मुझे यकीं है कि हम अब कभी न बिछड़ेंगे
तुम्हें गुमान है कि हम मिलके भी पराये हैं।
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं
मेरे पलंग पे बिखरी हुई किताबों को,
अदाए-अज्ज़ो-करम से उठ रही हो तुम
सुहाग-रात जो ढोलक पे गाये जाते हैं,
दबे सुरों में वही गीत गा रही हो तुम
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं
"वाह वाह मुझे अहसास हो चला है मेरे राणा जी के सीने में भी एक दिल है जो किसी के लिये धड़कता है", सबा के मुँह से ये उ्दगार कुँवर ने जो कहा उस पर निकल गए।
"हर किसी आम की ख़ातिर नहीं सिर्फ़ तुम्हारी ख़ातिर मेरी जान", कुँवर ने सबा को अपनी बाहों में लेकर एक बोसा प्यार का सबा के दायें गाल पर रख दिया। इसके बाद लगा कि दरिया में तूफ़ान सा कुछ उठा जो अपने साथ उनका जो भी था सब कुछ बहा कर ले गया।
दो प्रहर जब गुज़र गए तब गौहर बेग़म अपनी अटरिया में लौटीं तो सबा को वहाँ न पाकर चिंतित हुईं। उसे ढूंढते हुए जब महल के ऊपरी हिस्से में आ पहुँची तो सबा और कुँवर को देख कर कुछ तस्सली हुई और बोलीं, "तुम लोग यहाँ हो और मैं तुम्हें न जाने कहाँ न कहाँ ढूंढती रही"
कुँवर और सबा गौहर बेग़म को इस तरह देख खड़े हो गए। कुँवर ने गौहर बेग़म से पूछा, "आप तो महाराज के साथ थीं। मुझे लगा आज आप नीचे ही रहेंगी"
"हुक महारानी के कक्ष में हैं और वैसे भी सबा यहाँ अकेले कैसे रह पाती?"
"मैं तो उसके साथ था"
"चलो कुँवर तुम भी चलो अब रात बहुत हो गई है"
"जी बेहतर है, अच्छा सबा और माँसी शब्बाखैर" कहके कुँवर वहाँ से निकल लिये।
क्रमशः
(चंद टुकड़े उस ग़ज़ल से जिसे लोगों ने अपने वक़्त की सबसे सुंदर ग़ज़ल कहा था। ये 'परछाईयाँ' नामक ग़ज़ल, जो मशहूर शायर साहिर लुधियानवी ने किसी वक़्त लिखी थी, से उध्दृत हैं)

कथांश:47
जब अगली सुबह नाश्ते के लिये सब लोग इकट्ठे हुए तो कुँवर की निगाह में सबा के लिये कुछ सवालात थे कि उनके चले आने के बाद गौहर बेग़म ने उससे क्या कहा? इधर गौहर बेग़म के दिलो दिमाग़ में ये चल रहा था अब जब कि राजा साहब को सबा और कुँवर को लेकर शक़ हो गया है तो इस मसले को अब बहुत नहीं टाला जा सकता है। उधर महारानी लगातार सबा को देखे जा रही थीं जैसे कि वह मन ही मन उसे तौल रही थी कि उसकी जोड़ी कुँवर के साथ किसी लगेगी? राजा साहब यह सोच रहे थे कि अगर कुँवर वाकई सबा को चाहने लगे हैं तो वह अगला क़दम क्या उठाएं? इस सब के बीच सबा सपनों की दुनिया मे खोई हुई थी कि कल रात के बाद तो कुँवर को उसने अपने जीवन का हिस्सा बना लिया।
सभी लोग अपने अपने ख्यालों में व्यस्त थे जैसे कि वे एक दूसरे से बहुत दूर दूर हों कि अचानक कुँवर को एक दो नहीं लगातार कई छींक आ गईं। महारानी ने उनकी तरफ देखा और बोलीं, "लगता है कि तुम रात बहुत देर तक सबा के साथ बाहर खुले में घूमते रहे हो इसलिये कुछ ज़ुखाम हो गया है"
"ऐसा कुछ नहीं है माँसा, हो जाता है कभी कभी वैसे भी छींक आना अच्छी बात है, इससे शरीर के सब अंग खुल जाते हैं", कुँवर ने महारानी को उत्तर में कहा।
इधर सबा को अचानक हिचकी आने लगीं तो गौहर बेग़म पूँछ बैठीं, "अब तुझे क्या हुआ सबा?"
महारानी ने सबा की ओर देखते हुए कहा, "बेटी तू कुछ पानी पी लगता है कि तुम्हें कोई बहुत याद कर रहा है"
"मुझे कौन याद करेगा जो लोग याद करने वाले हैं वो तो सब यहीं बैठे हैं", इतना कह कर सबा ने हसरत भरी निगाह से कुँवर की ओर देखा और ग्लास उठा कर पानी पिया।
राजा साहब की निगाह से कुछ छिपने वाला नहीं था पर फिर भी उन्होंने गौहर बेग़म की ओर देखते हुए कहा, "लगता है शौक़त बेग़म को सबा की याद आई होगी, इधर बहुत दिन हो भी तो गए हैं इसे भोपाल से आए हुए"
गौहर बेग़म ने राजा साहब की बात से इत्तफ़ाक़ करते हुए कहा, "जी हुकुम मुझे भी यही लगता है पर अब शौक़त बेग़म को तो अपना मन पक्का करना ही पड़ेगा कब तक वह बेटी को अपने घर बिठा के रखेंगी। बेटी तो वैसे भी पराया धन होतीं हैं"
"गौहर बेग़म आप बिलकुल बज़ा फरमा रही हैं अब तो शौक़त बेग़म को सबा के लिये कोई अच्छा लड़का ढूँढना शुरू कर ही देना चाहिए", महारानी ने सबा की ओर देखते हुए कहा।
"महारानी साहिबा गुस्ताख़ी माफ़ हो पर हम लोगों के यहाँ तो रिश्ता उल्टा लड़के वाले लेकर आते हैं", गौहर बेग़म ने महारानी से कहा।
जब राजा साहब को यह लगा कि अब महिलाओं में ये चर्चा गंभीर रुख लेती जा रही है तो वे बीच में बोले, "चलो अभी तो यह तय करना है कि लड़के वाले कौन हैं जो सबा को अपने घर की बहू बनाना चाह रहे हैं? आपको इसके बारे में कोई जानकारी है गौहर बेग़म"
"जी हुकुम कुछ कुछ अंदाज़ है पर मैं अभी पक्के तौर पर कुछ कह नहीं सकती"
"चलिये गुजरते वक़्त के साथ यह भी पता लग जायेगा", कह कर राजा साहब ने भी बात को टालने की कोशिश की और कुँवर से बोले, "कुँवर तुम सुबह के वक़्त सबा को किला और आसपास की जगह दिखा लाओ और दोपहर के बाद हम लोग आपस मे बात करेंगे कि तुम्हारी क्या योजना है इस किले और महलों के लिये, गंगा के किनारे डेवलपमेंट के लिये जिसका जिक्र तुम कांकर में कर रहे थे"
कुँवर कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि परिवार में उनको लेकर क्या चल रहा है फिर भी उन्होंने राजा साहब से यही कहा, "जी यही बेहतर होगा"
कुँवर ने उठते हुए सबा का हाथ अपने हाथ में लिया और उसके साथ वह किले से बाहरी हिस्सों की ओर निकल गए। कुँवर भी अपनी तरफ से सबा को यह दिलासा देना चाह रहे थे कि वह उसके साथ हैं।
क्रमशः


कथांश:48
कुँवर का सबा के साथ निकलना भर था कि राजा साहब ने महारानी से कहा, "करुणा जी आप कुँवर से बात करके हमें बताइये कि उनकी आखिर क्या मर्ज़ी है? अब हम इस मसले को बहुत दिनों तक नहीं टाल सकते हैं। कुँवर के भविष्य की हमें बहुत चिंता है"
"जी महाराज मैं मौका देख कर कुँवर से बात करती हूँ", महारानी ने राजा साहब से कहा और इसके बाद वे लोग अपने अपने कक्ष में चले गए।
दूसरी ओर कुँवर सबा को लेकर किले की परिसर के शिव मंदिर तक आ पहुँचे। उन्हें देख पुजारी जी ने उन्हें मंदिर में बिठा कर पूजा अर्चना करवाई और सबा को प्रसाद देकर आशीर्वाद दिया। शिव मंदिर से निकलते हुए कुँवर ने सबा को बताया कि खजूरगांव के परिवार में भगवान शिव का विशिष्ट स्थान है, इसलिये राजपरिवार और किले में रहने वालों के लिये यह मंदिर आज से नहीं सदियों से प्रेरणा का स्रोत रहा है। साधारण जन समाज के लिये गंगा नदी किनारे एक शिव मंदिर अलग है जिसके रख रखाव की जिम्मेदारी भी खजूरगांव राज परिवार की ही है।
शिव मंदिर से बाहर आने के बाद कुँवर किले के परकोटे की तरफ चल पड़े और सबा को किले की संरचना के बारे में विस्तार से बताते रहे कि किले के चारों ओर परकोटा बना हुआ है जिसमें किले के लोग और कुछ रियासत के पुराने जान पहचान वाले लोग रहते हैं। इस किले में कुल छोटे बड़े सब मिला कर लगभग चौरासी घर हैं। इस किले में राजपरिवार के रहने वाले सदस्यों के लिए चौरासी ही कमरे हैं कुछ नीचे कुछ पहली और दुमंजिले पर। कुँवर ने सबा को यह भी बताया कि हिंदुओं के लिये ये चौरासी का आँकड़ा कुछ विशिष्ट महत्व रखता है इसीलिए अक्सर देखा जाता है कि विभिन्न जगहों पर राजपूत समाज एक स्थान पर चौरासी गाँव में अपने अपने कुनबे के साथ पाए जाते हैं। कई जगह मंदिरों के निर्माण में भी चौरासी ख़म्बे बनाये जाते हैं और शरारत भरे अंदाज़ में सबा से कुँवर बोले, "एक और चीज भी होती है जो चौरासी से ही सम्बंधित है पर उसके बारे में जानकारी अभी नहीं जब हम लोगो की शादी ही जाएगी उसके बाद दूँगा"
कुँवर को चिड़ाने के लिए सबा बोली, "ऐसा क्या है, जो अभी नहीं बता सकते हो?"
"कहा न अभी नहीं बता सकता हूँ"
"बाद में तो बताओगे"
"हाँ भाई हाँ"
कुँवर ने सबा का हाथ पकड़ा और गाड़ी में बिठाया और उसे 'हथियान गाँव' लेकर चल दिए। हथियान गाँव वो स्थान था जहाँ रियासत के हाथी रखे जाते थे। कुँवर ने वहाँ पहुँच कर सबा को बताया कि अब तो यहाँ एक भी हाथी नहीं हैं, जितने थे भी तो वे सब नाना राणा जी के स्वर्गवास के बाद कांकर भिजवा दिए गए थे।
हथियान गाँव से निकल कर कुँवर सबा को बड़ा बाग़ दिखाने ले गए जहाँ खजूरगांव के पूर्व रियासतदारों और परिवार के सदस्यों की छतरियाँ बनी हुईं थीं। वहाँ सबा को हरेक राणा और महारानियों और रानियों के बारे में बताया। नाना राणा जी की छतरी जिस पर अभी भी काम चल रहा था। राजस्थान से आकर कई पत्थर के कारीगर संगमरमर के ऊपर नक्कासी का काम कर रहे थे, उनके साथ उनकी पत्नियां भी काम कर रही थीं और बच्चे भी वहीं खेल रहे थे। एक राज मिस्त्री की पत्नी ने कुँवर के पाँव छुए और पूछा, "हुकुम ये के कुंवरानी साहिबा हैं, बड़ी ख़ूब लागे हैं"
कुँवर ने उससे कुछ कहा पर वह कुछ वो समझी तो कुछ नहीं समझी। चलते चलते कुँवर ने उसके बच्चों को मिठाई खाने के लिये पैसे दिए और वहाँ से वापस हो लिये।
रास्ते में 'खजूर' गाँव के प्रधान जी के घर कुँवर सबा को ले गए जिससे सबा को गाँव की ज़िंदगी के रँग ढंग भी देखने को मिल सकें। प्रधान जी के घर पर पहुँचते ही सबा को घर की बहुयें अंदर ले गईं। बड़ी बूढ़ी औरतों ने सबा की बलइयाँ लेकर दुआ और सौ सौ रुपये की मिलनी दी। कुछ देर वहाँ बिता कर कुँवर और सबा किले वापस लौट आये।
महारानी ने कुँवर को आते हुए अपने कक्ष से ही देख लिया था। एक आदमी को भेज उन्होंने सबा और कुँवर को अपने पास बुलवा लिया। दोनो से पूछा कि व कहाँ कहाँ घूमने गए थे। कुँवर महारानी को वह सब जगहों के नाम गिनवा दिए जहाँ जहाँ वे आज गए थे। कुँवर की बात सुनकर महारानी ने सबा को अपने पास बिठाया, उसे पहली बार ऊपर से नीचे तक गहरी नज़र से देखा और बाद में सबा से बोलीं, "मैंने सोचा कि मैं भी तो उसे आज बड़े ध्यान से देख लूँ जिसे देख हमारा कुँवर अपना सब कुछ भूल बैठा है"
कुँवर ने महारानी से कहा, "माँसा अब तुम भी मेरी इस तरह खिंचाई करोगी?"
"नहीं बेटा नहीं ऐसी तो कोई बात मैंने नहीं कही है और न मैं कह सकती हूँ। मैंने तो बस अपनी बेटी सबा को ध्यान से देखा भर है और मेरा दिल उसे आशीर्वाद देने का कर रहा है"
"कौन रोक रहा है आपको"
महारानी ने अपने हाथ के कंगन उतार कर सबा के हाथों में पहना दिये और माथा चूम कर आशीर्वाद दिया। सबा ने भी झुक कर महारानी के पाँव छूने की कोशशि की तो बीच में ही महारानी ने उसे रोक लिया और अपने गले से लगा लिया। कुछ देर बाद वे बोलीं, "जा बेटा जा, जी ले अपनी ज़िंदगी, ये जिंदगी हर किसी को नहीं मिलती, जो नसीब वाले होते हैं उन्हीं को ही मिलती है।.....और नसीब वाले होते हैं वो जिन्हें हम सरीखी माँ और पिता मिलते हैं। जाओ अब आराम करो, तुम दोनों घूमते घूमते थक गए होगे"
कुँवर और सबा महारानी के कक्ष से निकल कर गौहर बेग़म के कक्ष की ओर मुड़ पड़े।
क्रमशः
कथांश:49
अबकी बार खजूरगांव किले में बहुत कुछ घटित हो गया, एक बारगी लगा कि दरिया में जो पानी एक अरसे से ठहरा हुआ था अपने सभी तटबंध तोड़ कर बह गया। तीन चार दिन इस ख़ुशनुमा माहौल में कब गुजर गए किसी को कुछ पता ही न चला। राजा साहब ने जब ये कहा, "कुँवर अबकी बार लौटते में हम तुम्हारे साथ चलेंगे, रास्ते मे हमें बताना कि तुम्हारे इस एरिया के बदलाव के लिये क्या इरादे हैं?"
"जी पिताश्री", कह कर कुँवर ने कांकर लौटने की तैयारी कर ली।
महारानी ने सबा और गौहर बेग़म को अपने साथ यह कह कर कि नाव में धूप लगेगी, सबको अपने साथ कार में बिठाया और कांकर के लिये निकल पड़ीं।
कुँवर जो कि खुद ही मोटर बोट चला रहे थे रास्ते भर राजा साहब को अपनी उन सब विकास से सम्बंधित योजनाओं की जानकारी देते रहे जो उनके दिलों दिमाग़ में इस के क्षेत्र के लोगों की भलाई के लिए थीं। कुछ प्रमुख योजनाओं पर कुँवर काम करना चाह रहे थे वे थीं खजूरगांव और कांकर में राजपरिवार की उस संपत्ति को किसी नामी गिरामी होटल मालिक से बात कर लांग टर्म लीज़ पर देने की बात जिससे कि इन पुरातत्व और ऐतिहासिक विरासत को बचाया जा सके और साथ ही साथ राजपरिवार के आय के स्रोत में भी बृद्धि हो सके। कुँवर ये अच्छी तरह महसूस कर रहे थे कि हर आने वाला चुनाव अपने आप मे एक चैलेंज होगा और लगातार महंगा होता जाएगा। राजनीति में जिस तरह के लोग आना चाह रहे हैं वे किस प्रकार के हैं और जो हैं वे किस तरह की कमाई कर रहे हैं जो उनके बस की बात नहीं है। अतः यह आबश्यक था कि परिवार के आय के स्रोत बढ़ाये जाएं।
कुँवर ने राजा साहब को यह भी बताया कि इस क्षेत्र में पर्यटन के विकास हेतु खजूरगांव और कांकर को नदी मार्ग से कानपुर और इलाहाबाद शहरों से जोड़ दिया जाए जिससे कि जो पर्यटक यहाँ आते हैं उन्हें गत ज़माने के रहन सहन और यहाँ की जनता से मिलने जुलने का मौका मिल सके, दूसरा यह कि वन विभाग से बात कर यहाँ गंगा नदी के एक किनारे पर मगरमच्छों के पालन और बचाव के लिए एक पार्क बना दिया जाय, तीसरा यह कि गंगा नदी के दूसरे किनारे पर एक हिरण, बारहसिंघा, चीतल, काकड़ इत्यादि प्रजातियों के सरंक्षण के लिए एक डियर पार्क बनाया जाय जिससे कि इस क्षेत्र के लोगों का विकास हो सके, चौथा यह कि गंगा नदी के गहरे पानी वाली जगहों में लिफ्ट इर्रीगेशन की योजना पर काम शुरू हो जिससे कि इस इलाके में कृषि और खेती किसानी के काम को बल मिले, पांचवा हर ब्लॉक क्षेत्र में जूनियर हाई स्कूल या हाई स्कूल की व्यवस्था तथा लोगों के लिये स्वास्थ्य केंद्र की व्यवस्था सुनिश्चित हो सके जिससे कि इस क्षेत्र का समग्र विकास हो सके।
कुँवर ने राजा साहब को इस बात की जानकारी भी दी कि प्रधानमंत्री शीघ्र ही अपने क्षेत्र के तथा खुद के अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे पर आने वालीं हैं और अबकी बार हो सकता है कि प्रतापगढ़ में जिस तरह की एक ट्रेक्टर बनाने की योजना पर काम शुरू हो चुका है, लखनऊ में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स की एक इकाई पहले ही चालू की चुकी है उसी चीज को ध्यान रखते हुए रायबरेली और सुल्तानपुर जैसे पिछड़ें क्षेत्रों में भी किसी बड़े उद्योग की योजना की घोषणा की जाए।
राजा साहब ने कुँवर के प्रयासों को सराहा और उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे अपनी योजनाओं को ज़मीन पर पहुँचाने में सफल हों। राजा साहब ने कुँवर से कहा, "खजूरगांव और कांकर के किले और महलों के लिये वे शीघ्र ही कई नामचीन होटल मालिकों से बात कर अपने इलाहाबाद और लखनऊ के रॉयल होटल के तर्ज़ पर कुछ न कुछ इंतज़ाम करते हैं बाद बाकी योजनाओं पर तुम केंद्रीय और राज्य सरकार से लगातार संपर्क में रहो और इन योजनाओं पर काम करने के लिये जोर देते रहो"
"जी पिताश्री, एक बात तो मैं आपको बताना भूल ही गया कि इस क्षेत्र के लिये प्रधानमंत्री कार्यालय शारदा सहायक नहर योजना को शीघ्र ही लागू करने जा रही है जिससे किसानों को बहुत बड़ा लाभ मिलेगा तथा इस क्षेत्र में जल स्रोतों के उद्धार में बहुत मदद मिलेगी"
"अरे यह तो बहुत अच्छी ख़बर है", राजा साहब ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा। ये भी कहा, "जो राज नेता अपने क्षेत्र के जन मानस की भलाई के लिए काम करता है उसे दुनिया और यह समाज बहुत दिनों तक याद करती है"
खजूरगांव से कांकर तक कि मोटर बोट की यात्रा में पिता पुत्र के बीच कुछ और मसलों पर भी बात हुई पर राजा साहब ने सबा को लेकर कोई बात नहीं की। इस बात को सोच कर कुँवर कभी कभी चिंतित होने लगते पर उन्हें यह भी लगता कि जब महारानी ने सबा को अपना आशीर्वाद दे ही दिया है तो देर सबेर उनकी यह मुराद भी पूरी हो ही जायेगी।
इसी ख़्याल में डूबे हुए कुँवर ने मोटर बोट कांकर पहुँच कर ऐश महल की दीवार के किनारे वाले प्लेटफ़ॉर्म पर लगाई राजा साहब और अन्य लोग उतर कर सूर्य महल आ गए।
राजा साहब के वहाँ पहुँचने के पहले ही महारानी, गौहर बेग़म और सबा पहले ही पहुँच गए थे और बैठकर चाय का आंनद ले रहे थे। राजा साहब और कुँवर भी उन्ही के साथ बैठ गए चाय पी और राजा साहब ने कुँवर की योजनाओं पर सबके साथ विचारविमर्श किया और सभी को बताया कि वह कुँवर की प्रगतिवादी सोच से बहुत प्रसन्न हैं। राजा चन्द्रचूड़ सिंह खुद भी प्रगतिवादी विचारधारा के व्यक्ति थे जिस कारण वह आज भी प्रदेश और अवध के क्षेत्र की अन्य पुरानी रियासतों और राजा रजवाड़ों के लिहाज़ में आर्थिक रूप से अधिक मज़बूत थे।
कुछ देर वहाँ रुकने के बाद राजा साहब रानी शारदा देवी के कक्ष की ओर निकल गए। वह अकेली बैठीं कुछ सोच रहीं थीं, राजा साहब ने उनसे पूछा, "किस गहन चिंतन में हैं रानी शरद"
"महाराज जब से शिखा का सम्बंध माणिकपुर राजपरिवार से हुआ है बस एक ही चिंता लगी रहती है कि सब ठीक ठाक हो जाये और शिखा अपनी ससुराल सही सलामत जाकर अपना वैवाहिक जीवन जीने लगे", रानी शारदा देवी ने राजा साहब के प्रश्न के उत्तर में कहा।
"अरे चिंता करना अब छोड़ दीजिए सब ठीक प्रकार से निबट जाएगा", राजा साहब बोले और कुछ देर के लिए चुप हो गए यह सोचने लगे कि खजूरगांव में कुँवर और सबा के सम्बंध में जो उनकी चर्चा महारानी और गौहर बेग़म से हुई थी उसका ज़िक्र रानी शारदा देवी के समक्ष करना उचित होगा या नहीं। इसी उधेड़ बुन में उनका दिमाग़ लगा हुआ था कि रानी साहिबा ने पूछ ही लिया, "हुकुम खजूरगांव के क्या हाल हैं, अबकी बार वहाँ क्या क्या हुआ?"
क्रमशः


कथांश:50
"ऐसा कुछ खास तो नहीं फिर भी इधर उधर की बातचीत हुई। कई गाँव के लोग मिलने आये थे उनसे मुलाक़ात हुई। हाँ एक दिन शाम के खाने के बाद महाराज, महारानी और गौहर बेग़म बैठ कर गुफ़्तगू कर रहे थे तो कुँवर के बारे में ऐसे ही बात चलने लगी तो हमने कहा कि हमें सुबहा है कि कुँवर का रुझान कुछ सबा के प्रति है", राजा साहब ने रानी शारदा देवी को यह सूचना दी।
"आपकी सूचना पर महारानी साहिबा की क्या प्रतिक्रिया रही", रानी शारदा देवी ने पूछा।
"कोई खास नहीं पर वह सबा और कुँवर के मुआमले में यही ख़्याल रखतीं हैं कि अगर वे दोनों एक दूसरे को चाहते हैं तो हम सभी इस रिश्ते को स्वीकार कर सकते हैं। लेकिन अभी कुँवर की ओर से या सबा की ओर से कोई ऐसा इशारा लगता नहीं है इसलिए हमने यही कहा कि हम भी अब अपनी निगाह इस मसले पर रखेंगे"
"महाराज मेरी आपसे एक ही विनती है कि कुँवर की अगर इसमें मर्ज़ी है तो हमें इस रिश्ते को स्वीकार कर लेना चाहिए"
"हम भी यही सोचते हैं। हमें एक ही चिंता सताती रहती है कि इस रिश्ते का अपनी बिरादरी वाले कहीं विरोध न करें क्योंकि हम किसी भी सूरत में कुँवर के राजनीतिक भविष्य के साथ खिलबाड़ नहीं करना चाहेंगे"
"महाराज फिर बीकनेर चलने के प्रोग्राम का क्या करें"
"रानी शरद आप अपनी ओर से तैयारी रखिये हम आपको उचित समय पर सूचित करेंगे कि क्या करना है?"
"मेरा भी यही विचार है और इन परिस्थितियों में यही उचित भी लग रहा है"
राजा साहब ने रानी की बात सुनी तो पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और यह कहते हुए उठ खड़े हुए कि वह अब ऐश महल जा रहे हैं।
इधर शिखा, सबा से मिलने के लिये ऐश महल में पहले ही से वहाँ उपस्थित थीं। शिखा ने सबा से खोद खोद कर यह पूछने का प्रयास किया कि अबकी बार उसके साथ क्या क्या हुआ। सबा ने रिश्तों की नज़ाकत समझते हुए कुछ ऐसा तो नहीं बताया जो कि किसी को बुरा लगता पर यह ज़रूर बताया कि वह कुँवर के साथ किले और महलों में खूब घूमी चाँदनी रात को एक दिन मोटर बोट पर दरिया में वह कुँवर के साथ घूमने गई और उसको वहाँ जाकर बड़ा अच्छा लगा।
जब शिखा और सबा आपस में बात कर रहीं थीं तो वहीं राजा साहब भी आ गए और दोनों से बोले कि वे अब दिल्ली वापसी की तैयारी कर लें क्योंकि कुँवर की एक पार्लियामेंट्री कमेटी की मीटिंग है तो उन्हें दिल्ली जाना पड़ेगा। अबकी बार वे लोग भी उसके साथ चली जाएं तो आराम से दिल्ली पहुँच जायेगीं। शिखा ने राजा साहब से पूछा, "भाई का कब का प्रोग्राम है?"
"तुम उन्हीं से बात कर लो न"
"जी पिताश्री"
शिखा और सबा को बात करता छोड़ राजा साहब गौहर बेग़म के पास आकर बैठ गए और बोले, "बेग़म अब आप ही बताइए कि कुँवर और सबा के मसले में आगे क्या करना है? आपको तो पता ही है कि महारानी ने तो सबा को अपने कंगन पहना कर अपने मन की बात बता दी है"
गौहर बेग़म ने राजा साहब से कहा, "हुकम मेरा तो यह विचार है कि अगर बच्चे एक दूसरे को चाहते हैं तो इनकी शादी की बात आगे बढ़ानी चाहिए"
"आप ही पूछिये एक दिन दोनों को आमने सामने बिठा कर कि उनकी क्या मर्ज़ी है?"
"जी बेहतर। मैं आज ही बात करती हूँ और बाद में आपको बाद में पूरी बात बताऊँगी"
"अच्छा तो हम चलते हैं और कुँवर को हम आपके पास भेजते हैं"
"जी", कह कर गौहर बेग़म ने राजा साहब को ऐश महल से विदा किया। राजा साहब के साथ ही शिखा भी सूर्य महल लौट आई और रानी माँसा को अपने दिल्ली वापस जाने की बात बताई।
कुँवर के आते ही गौहर बेग़म ने सबा को बुलवाया और दोनों को आमने सामने बिठा कर पूछा, "अब बचपना छोड़ कर तुम दोनों मुझे यह बताओ कि तुम एक दूसरे से वाकई मोहब्बत करते हो और शादी के लिये तैयार हो"
सबा ने झट से जवाब दिया, "जी"
"जी, क्या जी साफ साफ बोलो"
"मैं कुँवर से मोहब्बत करती हूँ और उनके साथ शादी के लिये तैयार हूँ"
सबा से पूछ लेने के बाद गौहर बेग़म ने कुँवर की ओर रुख किया, "जी मैं भी" कह कर कुँवर चुप हो गए। गौहर बेग़म ने कुँवर से कहा, "कुँवर आप अपनी मोहब्बत का खुल कर इज़हार कीजिये यह पॉलिटिशियन वाली भाषा मुझे जरा कम समझ आती है"
इस पर कुँवर अपनी जगह से उठे और सबा के पास जाकर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोले, "माँसी मैं सबा से बेहद मोहब्बत करता हूँ बिना उसके अब मैं नहीं रह सकता हूँ"
गौहर बेग़म ने दोनों को अपने पास बुलाया और दोनों की पेशानी चूम कर अपना आशीर्वाद दिया। 
क्रमशः

कथांश:51
कुँवर अनिरुध्द सिंह ने दिल्ली पहुँच कर शिखा और सबा को उनके होस्टल में छोड़ कर वह अपने फ्लैट के लिए निकलने ही वाले थे कि शिखा पूछ बैठी, "भाई, सबा पूछ रही है अब कब मिलने आओगे?"
कुँवर ने भी सबा की ओर देखते हुए कहा, "तुम सबा को बता देना, जब आऊँगा तो बात कर ही जाऊँगा। वैसे मेरी अब वो उम्र नहीं है कि मैं गर्ल्स हॉस्टल के दरवाज़े पर आकर खड़ा रहूँ"
दिल्ली कोई एक नेता आ भर जाए उसके बाद फिर न जीने की न मरने की फुर्सत। कांस्टीट्यूएंसी के इतने काम, सरकारी विभाग अध्यक्षों के साथ मीटिंग, कभी पार्टी हेड क्वार्टर में तो कभी पार्लियामेंट्री कमेटी की मीटिंग।और विशेषरूप से जब कोई एमपी अनिरुध्द सिंह जैसा हो जो अपने काम के प्रति कटिबद्ध हो तो उसके पास अपने व्यक्तिगत सवालों के लिये भी समय नहीं रहता।
देखते देखते समय बीतता रहा इधर प्रधानमंत्री का कार्यक्रम लग गया कि वह अपने क्षेत्र रायबरेली में 9 अप्रैल, 1973 को दौरा करेंगी। अपने इस दौरे के दौरान वह पार्टी वर्कर्स के साथ तो मिलेंगी ही साथ ही साथ जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से भी मुलाक़ात करेंगी। प्रधानमंत्री का कार्यक्रम के साथ ही कुँवर अनिरुध्द सिंह के लिये भी यह दौरा बहुत महत्वपूर्ण था चूँकि जिन जिन योजनाओं पर कुँवर ने काम किया था उसकी सूची तथा उसमें क्या प्रगति हुई उसकी पूरी जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को बना कर भेजनी थी। यह भी तय करना था कि भविष्य में वो कौन से विषय हो सकते हैं जिन पर प्रधानमंत्री जी को अपनी पब्लिक मीटिंग बोलना है।
जब दिल्ली से फुर्सत मिली तो कुँवर अपने क्षेत्र लौट आये जिससे कि वह अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठ कर पूरी योजना बना पाएं कि किस गाँव से कितने लोग प्रधानमंत्री जी की सभा में पहुँचेंगे और उनके खाने पीने और यातायात की क्या व्यवस्था होगी इत्यादि।
निश्चित समय और दिन 9, अप्रैल, 1973 को प्रधानमंत्री जी हेलीकॉप्टर से रायबरेली आईं और गोरा बाज़ार में केंद्रीय विद्द्यालय तथा इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट का उद्घाटन किया और उसके बाद सुल्तानपुर रोड पर इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज लिमिटेड की एक नई 'स्विचिंग फ़ैक्टरी' का शिलान्यास' किया। उसके बाद एक बड़ी जन सभा मे उन तमाम कार्यक्रमों की घोषणा की जो आने वाले दिनों में लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर और प्रतापगढ़ जनपदों में शुरू किये जाने वाले थे जिनसे यह आशा की जा रही तो कि वे आने वाले निकट समय में इस क्षेत्र के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज लिमिटेड की रायबरेली इकाई के प्रथम फेज में लगभग 5, 500 कारीगरों और इंजीनियर्स को नौकरी मिलने की उम्मीद भी जगाई साथ ही साथ कुछ पूरक इकाइयों के आने से भी इस क्षेत्र के तुरत विकास में बड़ी मदद मिलने की उम्मीद थी। इस सभा के अंत में एकत्र जन समूह ने एक स्वर से प्रधानमंत्री के नाम के जयकारे लगाए।
प्रधानमंत्री भी अपनी इस रायबरेली की यात्रा से बहुत प्रसन्न दिखाईं दीं जिसके लिये उन्होंने कार्यकर्ताओं और इस क्षेत्र के सम्मानित नेताओं का हार्दिक धन्यवाद किया।
कुँवर अनिरुध्द सिंह तथा कांग्रेस पार्टी के तमाम कार्यपालकों ने प्रधानमंत्री जी के इस कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया जिसकी क्षेत्र में भूरि भूरि प्रशंशा हुई।
क्रमशः
कुछ कही कुछ अनकही सी अपनी बात:
मित्रो, यह वह वक़्त था जब श्री हेमवतीनंदन बहुगुणा जी केंद्र में संचार मंत्री थे, जिनके प्रयासों से इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज लिमिटेड की नैनी इकाई साठवें दशक के अंत मे शुरू हुई और जिसने कई हज़ार लोगों को नौकरी दी तथा नैनी और इलाहाबाद के औद्योगीकरण में महत्वपूर्ण नाम कमाया।
श्री कमलापति त्रिपाठी जी जो उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। कुछ प्रशासनिक मजबूरियों के चलते जिन्हें केंद्र में भेजने की योजना और बहुगुणा जी को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री पद दिया जाना था। रायबरेली के इस फंक्शन में ये दोनों ही नेता उपस्थिति थे। रायबरेली से दिल्ली लौटने के बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय से उपरोक्त योजना पर अमल किया गया। बहुगुणा जी को इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज लिमिटेड की रायबरेली की इकाई के लिये ज़मीन का अधिग्रहण की जिम्मेदारी और जो भी अन्य सुविधाएँ जो राज्य सरकार द्वारा प्रदान करनी थीं सोंपी गईं थी जिससे कि इस इकाई का काम शीघ्र अति शीघ्र शुरू किया जा सके।
1973-74 में सिविल कंस्ट्रक्शन का काम तेजी से शुरू हुआ और इसके साथ ही शुरू हो गया इंजीनियरिंग स्टाफ की भर्ती का काम। प्रधानमंत्री जी चाहतीं थीं कि उनके अप्रैल, 1976 के दौरे के पहले ही इस इकाई में प्रोडक्शन की प्रक्रिया चालू हो जाय। इसके लिये एक अंतरिम योजना के अंतर्गत स्टोर हेंगर में ही प्लांट मशीनरी लगवाई गई और Strowger प्रणाली का पहला 600 लाइन्स का Max एक्सचेंज बना कर देश को प्रधानमंत्री जी ने अपने कर कमलों से समर्पित किया। यह दिन आईटीआई, रायबरेली इकाई के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।
इस एपिसोड के माध्यम से हम उस युग की यात्रा करने का प्रयास कर रहे हैं जब कि हिंदुस्तान में सिर्फ कार के तीन मॉडल हुआ करते थे, एक एम्बेसडर, दूसरी फिएट और तीसरी स्टैंडर्ड। स्कूटर में वेस्पा, जो बाद में बजाज हो गया था और एक दूसरा ब्रांड था लम्ब्रेटा। स्कूटर इंडिया लिमिटेड का स्कूटर भी चल निकला था। स्कूटर ओर गैस पर एडवांस बुकिंग हुआ करती थी। ब्लैक एंड वाइट टीवी जिसकी पहुँच सिर्फ चंद शहरों तक हुआ करती थी, मोबाइल का तो नामोनिशान नहीं था। रायबरेली से बैंगलोर बात करनी हो तो कॉल बुक करानी पड़ती थी बल्कि बंगलोर कभी कभी तो लाइटेनिंग कॉल तक बुक करनी पड़ती थी। विदेश यात्रा तो बहुत बड़ी लक्सरी हुआ करती थी।
हम सभी इस ऐतिहासिक पलों के सहभागी बने और हमारे वे मित्र जो इस धारावाहिक को पढ़ने का कष्ट कर रहे हैं इस जानकारी और उन पलों को दोबारा याद कर खुश हो रहे होंगे, यही मेरी अभिलाषा है।
अभी कहानी में कई पेंच हैं उनको लेकर मेरा यह धारावाहिक आपको स्वस्थ मनोरंजन देते हुए आगे चलता रहेगा।

कथांश:52

कुँवर तो इस बीच राजनीतिक घटनाओं में इतने व्यस्त रहे कि उन्हें अपनी निज़ी ज़िन्दगी के बारे में सोचने समझने के लिये कुछ समय ही नहीं मिला। इधर राजा साहब के ऊपर राजकुमारी शिखा की शादी को शीघ्र निपटाने का जोर रानी शारदा देवी जी के द्वारा बढ़ाया जा रहा था। इन सब सवालों के बीच से गुजरते हुए एक दिन गौहर बेग़म ने राजा साहब के लिये संदेशा भिजवाया कि अगर मुनासिब हो सके तो वे ऐश महल तशरीफ़ लाएं कुछ ज़रूरी बात करनी है। राजा साहब के आते ही गौहर बेग़म ने कुँवर और सबा की आपसी रज़ामन्दी की बात बता कर राजा साहब को एक बड़ी चितां से जहाँ मुक्त कर दिया वहीं राजा साहब के ऊपर यह बड़ी जिम्मेदारी भी डाल दी कि वे इलाके के राजपूतों और ब्राह्मणों को क्या कह कर समझायेंगे कि वह अपने कुँवर की शादी किसी ऐसी गैर बिरादरी में कर रहे हैं जिसके बारे समाज में यह आम तौर पर कहा जाता हो कि लड़का कहीं से भी व्याह करले पर बस दलितों, पिछड़ी जातियों में और खास तौर पर मुसलमानों के यहाँ तो शादी कभी भूल कर भी न करे।

राजा साहब गौहर बेग़म की खबर पर जहाँ कुछ खुश भी हुए वहीं उनकी समस्या भी विकराल रूप धारण कर उनके सामने आकर खड़ी हो गईं। बाबजूद इसके एक राजा के रूप में कभी भी हार न मानने वाले व्यक्तित्व को धारण करने वाले इस व्यक्ति ने गौहर बेग़म से कहा, "हम दोनों की इच्छाओं के अनुरूप ही काम करेंगे। एक काम करिए आप भोपाल जाइये और हमारी ओर से कुँवर के रिश्ते की बात शौक़त बेग़म से करिए और उनसे यह भी कहिये कि हम इस निकाह के लिये तैयार हैं पर हमारी एक शर्त है कि कुँवर का निकाह शिखा की विदाई के बाद ही सम्भव हो पायेगा क्योंकि हम नहीं जानते हैं कि ये रिश्ता राजा साहब माणिकपुर के गले उतरेगा कि नहीं"

गौहर बेग़म ने राजा साहब की बात से इत्तिफ़ाक़ रखते हुए यह माना कि इन दोनों की शादी के पहले शिखा बेटी की शादी हो जानी चाहिए तब तक इसके बारे में हम कहीं भी इस प्रश्न पर कोई चर्चा समाज में नहीं करेंगे। गौहर बेग़म ने अपनी ओर से प्रस्ताव रखा कि वह जल्दी से जल्दी भोपाल जाने की कोशिश करेंगी।

राजा साहब की बढ़ी हुई उलझनों और उन्हें परेशान देख कर गौहर बेग़म ने राजा साहब के लिये एक जाम बनाया और उनके हाथ मे दिया। राजा साहब ने जब दो तीन जाम पी लिये तो गौहर बेग़म से कहा, "बेग़म हम कुँवर की खुशी के लिये सब कुछ करने को तैयार हैं हम उसे किसी भी हालत में दुःखी नहीं देख सकते हैं"

"मैं इस बात को अच्छी तरह समझती हूँ हुकुम"

"अब सारा दारो मदार आपके ऊपर है"

"आप मुझ पर विश्वाश रखें इस मसले को मैं ठीक ढंग से सुलझा सकूँगी"

"हमें आप पर पूरा भरोसा है", राजा साहब ने यह कहा और खाना खाया और गौहर बेग़म के आगोश में आंखें मूद कर लेट गए। गौहर बेग़म को एक पुराना नगमा याद हो आया। जिसे उन्होंने अपने सुरीले अंदाज़ में जब गाया तो राजा साहब का मन कुछ हल्का हुआ।

अगर मुझसे मोहब्बत है,
मुझे सब अपने ग़म दे दो
इन आँखों का हर एक आँसू,
मुझे मेरी कसम दे दो
अगर मुझसे...

तुम्हारे ग़म को अपना ग़म बना लूँ
तो करार आए
तुम्हारा दर्द सीने में छूपा लू,
तो करार आए
वो हर शय जो तुम्हे दुःख दे,
मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे...

शरीक-ए-जिन्दगी को क्यों,
शरीक-ए-गम नहीं करते
दुखों को बाटकर क्यों,
इन दुखों को कम नहीं करते
तड़प इस दिल की थोड़ी सी,
मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे...

इन आँखों में ना अब मुझको
कभी आँसू नजर आए
सदा हँसती रहे आँखे,
सदा ये होंठ मुसकाये
मुझे अपनी सभी आहे,
सभी दर्द-ओ-आलम दे दो
अगर मुझसे...

नगमा सुनते सुनते राजा साहब को कब नींद आ गई पता ही न लगा जब सुबह आँख खुली तो उन्होंने गौहर बेग़म को सोता पाया।

क्रमशः

कथांश:53

राजा साहब से बात कर के गौहर बेग़म ने भोपाल जाने का प्रोग्राम तय किया कि कांकर से वह भोपाल के लिये निकलेंगी और उधर से सबा रेल गाड़ी से भोपाल पहुँच जाएगी।

सईद गौहर बेग़म से रेलवे स्टेशन पर जब मिला तो गौहर बेग़म ने यही पूछा, "सबा भी पहुँच गई कि नहीं"

सईद के ये कहने पर कि वह सबा को खुद दो घँटे पहले ही रेलवे स्टेशन से शौक़त मंज़िल छोड़ कर आया है। सईद की कुछ समझ मे नहीं आ रहा था कि अचानक ही खालाजान का और सबा का प्रोग्राम भोपाल आने का क्यों बना इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। इस वजह से वह पूछ ही बैठा, "खालाजान कांकर में सब लोग ठीक से हैं, शिखा कैसी है? अचानक ऐसा क्या हो गया कि आपको भोपाल इस तरह जल्दबाज़ी में आन पड़ा?"

"चल पहले हवेली चल वहीं पहुँच कर बात करूँगी" कह कर गौहर बेग़म ने बात टालने की कोशिश की। शौक़त मंज़िल पर पहुँचने पर जो सवाल सईद ने किया वही सवाल शौक़त बेग़म ने किया। गौहर बेग़म ने उनसे भी यही कहा कि पहले मुँह हाथ तो धो लेने दो, कुछ नाश्ता वग़ैरह करवाओ तो फिर आराम से बैठ कर बात करते हैं। कुछ देर बाद जब दोनों बहनें मिलीं तो आपस में बात हुई और गौहर बेग़म ने कहा, "पहले सबा को बुला लो आगे की बातचीत उसकी हाज़िरी में हो, वही बेहतर होगा"

जब तक सबा आती तब तक गौहर बेग़म ने अपनी बात रखते हुए कहा, "आपा पता नहीं हमारी निगाहों के सामने न जाने क्या क्या होता रहा और हमें कुछ पता ही न लगा। हम उससे अनजान बने रहे और दो जवान दिल एक दूसरे से मोहब्बत कर बैठे"

"गौहर तू अपनी बात खुल कर कर बता पहेलियाँ न बुझा"

"आपा मैं जो बात कर रही हूँ, ये उस वक़्त की बात है जब हम लोग पिछली बार आपके यहाँ आये थे तब सबा कुँवर के जज़्बात से खेलते खेलते न जाने कब उसके इतने करीब आ गई कि वह कब उसकी हो गई हमें कुछ पता ही न लगा"

शौकत बेग़म ने गौहर बेग़म से अपने मन की बात कहते हुए कहा, "गौहर तू क्या कह रही है, मुझे तो शक़ था कि शिखा हमारे सईद के पीछे पड़ी हुई थी और इसके बारे में सईद ने एक बार इशारों इशारों में ये बात मुझसे कही भी थी पर मैंने इस पर कभी गौर ही नहीं किया ये मान कर बच्चे हैं ये सब थोड़ा बहुत आपस मे चलता ही रहता है। लेकिन जिस तरह से तू अब बता रही है उससे तो लगता है कि पानी सिर के ऊपर से बह निकला है"

"जी आपा"

इतने में सबा भी आ गई। गौहर बेग़म ने उसे बड़े प्यार से अपने पास बिठाया और पूछा, "कैसी है? पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है?"

"जी खालाजान ठीक चल रही है"

"कितने दिन तक अभी और पढ़ने का इरादा है?"

"जी मैं कुछ समझी नहीं"

"मैं ये पूछ रही हूँ कि बीए पास करने के बाद क्या इरादा है?"

सबा ने एक बार शौकत बेग़म की ओर देखा और धीरे से बोली, "मेरा बस चले तो मैं तो एमए करूँ और उसके बाद पीएचडी भी", सबा ने जवाब देते हुए कहा।

"लगता तो नहीं कि तेरे इरादे आगे पढ़ने वाले हैं"

"आप ऐसे क्यों कह रही हैं, आपको तो मेरे बारे में सब कुछ पता है", सबा ने जवाब देते हुए कहा।

सबा का जवाब सुन कर शौकत बेग़म ने पूछा, "सबा बेटे ऐसे बात नहीं करते हैं। तुम्हारी खाला ये जानना चाह रहीं हैं कि अगर तुम्हें पूरा मौका मिले तो तुम आगे क्या करना चाहोगी?"

"जी अम्मी मैं अभी और पढूँगी"

इस पर गौहर बेग़म ने पूछा, "तूने कभी इस मसले पर कुँवर से बात करी है कि नहीं?"

"जी नहीं खाला जान मेरी कभी उनसे इस मुआमाले में बात नहीं हुई है"

शौकत बेग़म बीच मे टोकते हुए बोल उठीं, "इसका मतलब हम क्या लगाएं कि तू कुँवर से बात तो करती है और खूब हँस हँस कर उनके बहुत करीब जाकर बात भी करती देखी गई है तो उनसे फिर तू किस मसायल पर उनसे बात करती है?"

शौक़त बेग़म के सवाल से जब सबा घिरती नज़र आई तो गौहर बेग़म ने बीच मे कमान सम्हालते हुए कहा, "अब पहेली बुझाने से कोई बात नहीं बनेगी आपा। मैं बताती हूँ कि आपकी बेटी सबा हमारे बेटे कुँवर अनिरुध्द सिंह से इश्क़ करने लगी है और हमारा बेटा भी सबा को दिल दे बैठा है। अब बस हमें ये पता करना है कि ये लोग निकाह कब करना चाहेंगे। मैं भी आपके पास इसी मक़सद से आई हूँ कि अब आप सबा को हमको सौंपने की तैयारी शुरू कर दीजिए"

शौक़त बेग़म ने सबा से पूछा, "सबा तेरी खाला को तो जवाब मैं बाद में दूँगी पर पहले बेटी ये बता कि क्या तू कुँवर से मोहब्बत करती है या नही?"

सबा जब कुछ वक़्त तक चुप रही तो गौहर बेग़म बीच में बोल पड़ीं, "बेटी जब इश्क़ करते हैं तो डरते नहीं है और जो डरते हैं वो इश्क़ नहीं करते"

"बता सबा मैं तेरे मुँह से सुनना चाहती हूँ कि आखिर तेरे दिल में क्या है?"

"जी अम्मी"

"क्या जी अम्मी?", शौक़त बेग़म ने फिर पूछा।

"जी मैं कुँवर से मोहब्बत करती हूँ"

"उनकी क्या मर्ज़ी है?"

"जहाँ तक मैं जानती हूँ वह भी मुझ से बेपनाह मोहब्बत करते हैं और हमारे दिल में कोई खोट नहीं है", कह कर सबा चुप हो गई।

"चल तेरी मर्ज़ी तो जान ली? गौहर चल मैं अपनी बेटी तुझे देने को तैयार हूँ पर एक शर्त पर कि तू अपनी बेटी मुझे दे दे, मेरे सईद के लिये। मेरा सईद शिखा से बेपनाह मोहब्बत करता है"

शौक़त बेग़म की ये बात सुन कर तो गौहर बेग़म के तो तोते ही उड़ गए।

क्रमशः

कथांश:54

गौहर बेग़म की समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब क्या कहें, इसी बीच सबा बोल उठी, "अम्मी पर शिखा की तो सगाई हो चुकी है कुँवर मानवेन्द्र सिंह माणिकपुर के साथ"

गौहर बेग़म की जान में जान आई तो वह बोलीं, "आपा ये बात कभी ज़ाहिर ही नहीं हुई कि सईद के दिल मे शिखा के लिए कुछ चल रहा है, अगर ये पता लग जाता तो आपकी बात मानने में मुझे कोई उज्र नहीं होता। तब हर लिहाज़ में मेरी बेटी सईद की दुल्हन बन सकती थी और सबा मेरी बहू"

वास्तव में दोनों बहनों के सामने ये सवालात इस तरह से उभरे कि वे समझ ही नहीं पा रहीं थीं कि वे इस प्रॉब्लम से कैसे निज़ाद पाएं। एक अजीब सा डर दोनों के दिलों में बैठ गया था। इसके बाबजूद वे दोंनों ही चाहतीं थीं कि कोई बीच का रास्ता निकल आये।

शौक़त बेग़म ने हुकुम के बादशाह का पत्ता अपने पास रखते हुए कहा, "मुझे भी कोई खबर नहीं थी कि सईद शिखा का कुछ चक्कर चल रहा है। ये तो मुझे सईद ने मुझे बाद में बताया कि शिखा उसे बहुत अच्छी लगने लगी है"

गौहर बेग़म ने अपनी बात साफ करते हुए कहा, "आपा अब तो आप शिखा की बात भूल ही जाइये और सबा की बात करिए"

"देख गौहर मैं अभी कुछ नहीं कह सकती हूँ, जब तक कि मैं सईद से इस मसले पर बात न कर लूँ"

"सबा उसकी बहन है इसलिये आपका उससे पूछना बिल्कुल बाजिब है। आने दीजिये सईद से मैं आपके सामने बात कर लूँगी", कह कर गौहर बेग़म ने कुछ देर के लिए बात सम्हाल ली।

शौकत बेग़म ने कहा, "गौहर तेरे बेटे और बेटी ने हमारे घर में तूफान ला दिया"

"आपा मैं तो बहुत खुश हुई थी कि शिखा और सबा की दोस्ती की वज़ह से ही हम ज़माने से दो बिछड़ी हुई बहनें मिल गए थे। उम्मीद पर दुनिया कायम है उम्मीद रखिये आने वाले वक़्त में भी जो होगा अच्छा ही होगा"

"खुदा करे ऐसा ही हो मुझे बड़ा डर लग रहा है कि कहीं कोई तूफान फिर से न खड़ा हो जाय जो हमें फिर से अलग कर दे", कहते हुए शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिये। उन दोनों के माथे पर शिकन की लाइनें साफ दिखाई दे रही थीं और निगाहों में अनजाना सा एक डर।

क्रमशः

कथांश:55

देर रात जब सईद लौटा तो शौक़त और गौहर बेग़म ने मिल कर उसे सारी बात बताई और पूछा, "अब तुम ही बताओ कि क्या किया जाए?"

सईद ने कहा, "ये बात तो बरसों से चली आ रही है कि हिंदू, मुसलमानों की लड़कियां तो अपने घर मे ले लेते हैं पर अपनी बेटियों की शादी मुसलमानों के यहाँ करना पसंद नहीं करते। सबा के मुआमले में भी मुझे यही अहसास हो रहा है और जो लड़कियां अपने आप किसी तरह किसी मुसलमान के यहाँ शादी कर भी लें तो हिंदुओं की पूरी जमात हो हल्ला मचाने लगती है"

गौहर बेग़म ने सईद को बीच मे टोकते हुए बोला, "सईद एक बात बता कि तूने कभी खुल के शिखा से कहा कि तू उससे मोहब्बत करता है? दूसरा यह कि सबा को अगर कुँवर अच्छा लगने लगा तो इसमें कुँवर की क्या गलती? कुँवर ने सबा के साथ कोई ज़बरदस्ती तो नहीं की"

"खालाजान नहीं। मैं सोचता ही रह गया और शिखा को कोई और ले उड़ा। अब मैं क्या करूँ खालाजान?"

"चल सईद एक चीज और बता कि फिर शिखा को कैसे पता लगता कि तू उसे दिल ही दिल चाहने लगा है। भाई, हमारे ज़माने में तो मोहब्बत लोग खुल के किया करते थे कभी इकतरफ़ा नही और अगर किसी ने इकतरफ़ा मोहब्बत किसी से की भी तो उसका कोई मायने ही नहीं", शौक़त बेग़म ने भी सईद से पूछा।

सईद क्या जबाब देता बस इतना ही कह पाया, "मैं सोच रहा था कि अबकी बार मैं सबा से कहता कि एक बार फिर शिखा को किसी बहाने अपने साथ भोपाल छुट्टियों में ले आये तो मैं उससे बात करने की सोच रहा था"

इस पर शौक़त बेग़म ने कहा, "जब चिड़िया चुग गईं खेत तो अब रोने से क्या फ़ायदा?"

गौहर बेग़म ने भी बीच में बोलते हुए कहा, "तू अपने लिये सबा की ज़िंदगी तो कुर्बान नहीं कर सकता है, मेरे बेटे?"

"मैं समझ रहा हूँ खालाजान"

"तो तू सबा के निकाह के लिये तैयार हो जा", गौहर बेग़म ने कहा।

"उसके निकाह के लिए मैं तो कोई भी बात नहीं कह रहा। बस खालाजान एक काम कर दो किसी भी तरह शिखा से एक बार मेरी मुलाक़ात करा दो। उसके बाद भी अगर उसका वही फैसला रहा तो मुझे कोई एतराज़ नहीं होगा"

"तू क्या कह रहा है, कुछ समझ भी है तुझे?", गौहर बेग़म ने बीच मे टोकते हुए कहा, "अगर राजा साहब को ज़रा सा भी शक़ हो गया कि मैं किसी ऐसे मुआमले में शरीक़ हूँ तो तू जानता है कि वह क्या करेंगे? सबसे पहले तो वह मुझे गोली से उड़ा देंगे और मैं नहीं जानती कि उनका शिखा के ऊपर क्या कहर बरपेगा?"

सईद भी अपने दिल से मज़बूर बोल पड़ा, "फिर आप ही बताइए कि मैं क्या करूँ?"

शौक़त बेग़म ने बीचबचाव करते हुए कहा, "बेटा तूने हम सब को मुश्किल में डाल दिया है। अब तू जा खाना। सबा को भी साथ ले ले। हम लोगों को सोचने दे कि कोई हल है इस मसाइल का"

गौहर बेग़म ने भी सईद को याद दिलाया कि राजा साहब के अब्बा ने अपने एक दोस्त को वचन दे दिया था कि वह अपने बेटे की शादी उनकी लड़की से कर देंगे। राजा साहब ने अपने अब्बा की बात न ख़राब हो सिर्फ़ इसलिये महारानी करुणा जी से शादी की। उसके बाद उन्होंने अपनी मन मर्ज़ी की दूसरी शादी रानी शारदा देवी के साथ की।

गौहर बेग़म ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, "राजा साहब के परिवार के लोगों के लिए कोई भी दिया हुआ वचन पत्थर की लकीर के समान है और जब कि शिखा की सगाई कुँवर महेंद्र से हो गई है तो मेरी समझ के तो बाहर की बात है कि अब शिखा के मसले में कुछ भी हो सकता है?"

"जा भाई जा तू खाना खा और सबा को भी खिला दे। हमें अपने हाल पर छोड़ दे", शौक़त बेग़म परेशान हो कर बोल पड़ीं।

क्रमशः

कथांश:56

सईद डाइनिंग हॉल की ओर निकल गया और सबा को खाना खाने के लिये बुलवाया। सबा ने जब सईद को देखा तो बोल उठी, "भाई जान अम्मी और आपा दोनों ही बहुत परेशान नज़र आ रहीं हैं"

"तू चिंता मत कर बड़े लोग मिल कर कुछ न कुछ रास्ता निकाल लेंगे। तू खाना खा", कह कर सईद ने सबा को चुप कराने की कोशिश की।

"भाई जान एक बात तो जरा सोचिए शिखा की तो सगाई हो चुकी है और वह अपनी सगाई से बहुत खुश भी है तो भला क्या ये हमारे लिये अब ठीक होगा कि हम ये कहें कि आप उससे इश्क़ करते हो", सबा ने सईद से कहा।

"सही तो कुछ भी नहीं हो रहा है। तूने कब मुझे बताया कि तू कुँवर से मोहब्बत करने लगी है। क्या ये तेरा फ़र्ज़ नहीं बनता था कि तू मुझे बताती कि तेरा कुँवर से रिश्ता क्या है?"

सबा सईद की बात सुन कर एक बारगी तो चुप रह गई पर उसने सारी हिम्मत जुटा के बोली, "भाई जान क्या मैं एक बात कहूँ अगर आप नाराज़ न हों तो?"

"बोल क्या कहना है, वैसे मेरा मूड ठीक नहीं है पर मैं तेरी हर बात बड़े ध्यान से सुनूँगा क्योंकि तुझे मोहब्बत के बारे में कुछ मुझसे ज्यादा ही पता है"

"मैं नहीं जानती कि मैं कहाँ तक ठीक हूँ या गलत लेकिन फिर भी ये आपसे सबा का वायदा है कि अगर शिखा के दिल के किसी भी कोने में आपके लिये कोई भी मोहब्बत का ज़र्रा है तो मैं तुम्हें उससे मिलवा कर रहूँगी"

"तू क्या करेगी छोड़। इन बातों में अब कुछ नहीं रखा। मेरी किस्मत में जो भी होगा ठीक ही होगा, बस तू अपनी चिंता कर। एक बड़ा भाई होने के नाते मैं तेरे और कुँवर के बीच नहीं आउँगा"

"मैंने भी कुछ सोच समझ कर ही तुमसे वायदा किया है, देखना कि मैं अपना वायदा निभा के रहूँगी", सबा ने सईद को आश्वासन देते हुए कहा।

इसी बीच शौक़त बेग़म और गौहर बेग़म आपस में बातचीत करती रहीं कि इस टेढ़े से सवाल का कोई रास्ता निकल सके। शौक़त बेग़म गौहर बेग़म से बोलीं, "हम लोग कहाँ बैठे ठाले इस चक्कर में फंस गए"

"मेरी भी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं किस तरह इस झँझट से निकल पाऊँगी", गौहर बेग़म ने जवाब देते हुए कहा, "मैं राजा साहब को कौन सा मुहँ दिखाऊँगी?"

शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, "हम लोग बरसों बाद मिले और अब देखो बच्चों के चलते हुए हम किस मुश्किल में फंस गए?"

"आपा वही ऊपर वाला कोई रास्ता निकलेगा। अब मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है"

"चल ठीक है कल बात करेंगे अभी तो खाना खाते हैं", शौक़त बेग़म गौहर बेग़म को साथ ले डाइनिंग हॉल की तरफ चल पड़ीं। सबा और सईद भी वहीं थे। वे सभी साथ साथ खाना खाने लगे पर हरेक के दिल में इन उलझे हुए सवालों को लेकर इतनी उलझनें थीं कि कोई कुछ भी नहीं बोला। खाना खाया और वे सभी अपने अपने कमरे में चली गईं।

क्रमशः

कथांश:57

गौहर बेग़म की आँखों में भला नींद कहाँ आने वाली थी उनको यही चिंता सता रही थी कि राजा साहब का अगर फोन आ गया तो वह उन्हें क्या जवाब देंगी? शौक़त बेग़म जो उनके साथ ही एक बिस्तर पर लेटी हुईं थीं, उन्होंने देखा कि गौहर बेग़म की साँस तेज तेज चल रही है और वह पसीने से लथपथ हैं तो उन्होंने तुरंत सबा और सईद को आवाज़ दी। सईद ने आते ही नब्ज़ देखी तो बोला, "अम्मी खालाजान की तो साँस बहुत तेज चल रही है, लगता है। इन्हें हार्ट अटैक पड़ा है इन्हें तुरंत हॉस्पिटल लेकर चलना होगा"

सईद ने झटपट गाड़ी निकाली और वे सभी गौहर बेग़म को लेकर हमीदिया हॉस्पिटल, मेडिकल कॉलेज की ओर भागे। हॉस्पिटल में इमरजेंसी में भर्ती किसी तरह ले देकर भर्ती कराया और वहाँ के डॉक्टर्स ने उन्हें तुरंत ऑक्सीजन लगाई और आईसीयू में ट्रांसफर कर इंजेक्शन वगैरह दिए। देर रात तीन बजे जब उनकी हालत में कुछ सुधार दिखाई पड़ा तब जाके सबने राहत की साँस ली।

अगली सुबह सईद ने कांकर फोन कर राजा साहब को गौहर बेग़म की बीमारी की ख़बर दी। ख़बर सुनते ही राजा साहब तो सकते में आ गए पर फिर अपने आप को सम्हालते हुए बोले, "कुँवर अभी दिल्ली में है हम उसे तुरंत भोपाल भेजते हैं और शाम तक हम लोग भी किसी न किसी तरह भोपाल पहुँच जाएंगे"

दोपहर की फ्लाइट से कुँवर भोपाल पहुँच गए। एयरपोर्ट से कुँवर सीधे शौक़त मंज़िल गए वहाँ उनको कोई नहीं मिला बस सबा घर पर थी। कुँवर को देखते ही सबा उनके सीने से जा लगी और गौहर बेग़म के आने के बाद जो कुछ भी भोपाल में हुआ उसकी जानकारी कुँवर को दी। डरते डरते यह भी कहा, "कुँवर मैं नहीं जानती कि अब हमारा क्या होगा। अम्मी अभी भी खालाजान की बात मानने को तैयार नहीं हैं"

कुँवर ने सबा को तसल्ली देते हुए कहा, "ये सब बात करने का ये कोई वक़्त नहीं है अभी तो मुझे माँसी की चिंता सता रही है वह कौन से हॉस्पिटल में हैं, मुझे सबसे पहले वहाँ पहुँचना है"

"चलिये मैं आपको वहाँ ले चलती हूँ", कह कर सबा ने कार निकाली और कुँवर को लेकर वह हमीदिया हॉस्पिटल पहुँच गई। कुँवर जब शौक़त बेग़म से मिले तो उनसे यही पूछा, "माँसी का क्या हाल है?"

शौक़त बेग़म ने जवाब में कहा, "अभी तो कुछ कह नहीं सकते डॉक्टर्स ने ऑब्जरवेशन पर रखा हुआ है, आईसीयू में भर्ती है"

"क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ?", कुँवर ने कहा।

कुँवर को लेकर शौक़त बेग़म आईसीयू की ओर बढ़ते हुए सबा से बोलीं, "तू हवेली जा हो सकता है राजा साहब वहाँ पहुँचे कोई तो वहाँ होना चाहिये"

शाम होते होते राजा साहब, महारानी और रानी साहिबा सहित हवाई जहाज से सीधे भोपाल आ पहुँचे। आते ही वे लोग सीधे हमीदिया हॉस्पिटल गए वहाँ गौहर बेग़म की तबियत के बारे में शौक़त बेग़म और कुँवर से जानकारी की। डॉक्टर्स से जब वे मिले तो उन्हें डॉक्टर्स ने बताया कि फ़िलहाल गौहर बेग़म की तबियत स्टेबल है पर वे चौबीस घटों के बाद ही कुछ कह सकेंगे। राजा साहब समेत सभी लोग वहीं हॉस्पिटल में अच्छी खबर का इंतजार करते रहे। डॉक्टर्स ने देर रात देखकर बताया कि गौहर बेग़म के हार्ट को पूरी ब्लड सप्लाई नहीं मिल रही है और लगता है कि उनकी एंजियोग्राफी करनी पड़ेगी तभी वे कुछ कह पाएंगे।

अगले दिन डॉक्टर्स ने गौहर बेग़म की एंजियोग्राफी की और दो स्टेंट डाल कर जो खून के वहाब में धमनियों में रुकाव आ गया था उसे दूर किया। तीन दिनों तक उन्हें ऑब्जरवेशन में रख कर डिस्चार्ज करते हुए सलाह दी कि उन्हें दवाइयाँ रेगुलरली देनी हैं और आराम की सख्त जरूरत है। इसलिए उन्हें कम से कम एक महीने कम्पलीट बेड रेस्ट की सलाह दी।

राजा साहब के यह पूछने पर कि क्या वे उनसे मिल सकते हैं तो डॉक्टर्स ने कहा, "मिलिए पर उनके दिल दिमाग़ पर कोई जोर न आये इसलिये उनसे बातें न करियेगा"

गौहर बेग़म ने अपने पास शौक़त बेग़म, राजा साहब, महारानी, रानी शारदा देवी और कुँवर को देखा तो धीमी आवाज़ में कहा, "अरे आप सभी ने बेकार ही ज़हमत उठाई हमारे दिल का क्या बहुत मजबूत है कुछ भी नहीं होगा। आप किसी तरह की चितां न करें"

महारानी करुणा देवी ने गौहर बेग़म का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए कहा, "चिंता करना अब आप छोड़ दीजिए। अपने सब ग़म आप हमें दे दीजिये। बस आप जल्दी से ठीक हो जाइए और कांकर सही सलामत चलिये"

रानी शारदा देवी ने भी गौहर बेग़म से कहा, "आपके बिना हमारे हुकुम अधूरे हैं। अब आप जल्दी से जल्दी ठीक हो जाइए"

राजा साहब और कुँवर ने न कुछ कह कर भी गौहर बेग़म की आँखों में झाँक कर बहुत कुछ कह दिया।

क्रमशः

कथांश:58

जब तक गौहर बेग़म को डॉक्टर्स ने भोपाल से बाहर जाने की इजाज़त नहीं दी तब तक पूरा कांकर राजपरिवार भोपाल में ही रहा।

इसी बीच जब शौक़त बेग़म को लगा कि गौहर बेग़म से आज वह अपने दिल की बात कह सकतीं हैं तो वह उनसे मिलने उनके कमरे में आईं। उनके दोनों हाथ अपने हथेलियों के बीच लिये उनको प्यार से चूमा और बड़े होने के नाते प्यार से बोलीं, "गौहर ये क्या, तूने इतना बोझ अपने दिल पर डाल लिया। तुझे क्या लगा कि हमें हमारी बेटी की खुशियाँ प्यारी नहीं हैं?"

गौहर बेग़म शौक़त बेग़म के चेहरे को देख मुस्कुरा भर दीं। शौक़त बेग़म को जब लगा कि गौहर के दिल पर अभी भी कोई बोझ है तो वह उनका हाथ लेते हुए बोली, "सबा जितनी मेरी है उससे ज़्यादा वह तेरी है। मेरी बेटी तेरी बहू रानी बनेगी तो क्या मुझे ख़ुशी नहीं होगी? जा दे दिया मैंने अपनी बेटी का हाथ ज़िन्दगी भर के लिये तेरे बेटे के हाथ में। अब ये तेरे ऊपर है कि तू उसे कब अपने घर ले जाती है?"

गौहर बेग़म शौक़त बेग़म की बात सुनी तो उनकी आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बह निकली। कुछ देर बाद जब होश सम्हाल तो बोलीं, "आपा ये ख़ुशी के आँसूँ हैं। अब कम से कम मैं राजा साहब के सामने सिर उठा कर तो जा सकूँगी"

"तुझे कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है, सभी लोग यहीं पर हैं। तू ये खुश ख़बरी अपने आप उनको सुना। मैं उन्हें तुझसे मिलने के लिये भेजती हूँ"

जब सभी लोग अंदर आये तो गौहर बेग़म ने राजा साहब से कहा, "हुकुम आपका काम हो गया"

राजा साहब ने गौहर बेग़म की पेशानी चूम कर उनका शुक्रिया अदा किया और बोले, "हम किस तरह बेग़म आपका शुक्रिया अदा करें कह नहीं सकते, बस आप ठीक हो जाइए और सही सलामत हमारे साथ कांकर चली चलिये"

कुँवर जब गौहर बेग़म से मिले तो उन्होंने भी इतना ही कहा, "चलिये माँसी आपको कांकर चलना है। हमारे बहुत से काम हैं जो अधूरे हैं जो अभी आपके अपने हाथों से ही पूरे करने हैं"

महारानी और रानी साहिबान जब मिलीं तो उनकी आँखें भी नम थीं और उन्होंने भी यही कहा, "बेग़म साहिबा कांकर में सब आपकी राह देख रहे हैं"

क्रमशः

कथांश:59

कुछ दिन बाद राजा साहब सबके साथ गौहर बेग़म को लखनऊ अपने कैसरबाग़ वाले 'कांकर हाउस' पर ले आये। गौहर बेग़म का इलाज़ राजा साहब की इल्तिज़ा पर केजीएमसी मेडिकल कॉलेज के 'लॉरी हार्ट रिसर्च सेंटर' के प्रोफेसर लाल ने अपने हाथ में लिया। इधर राजा साहब माणिकपुर मानवेन्द्र सिंह को जब गौहर बेग़म की तबियत के बारे में और यह पता लगने पर कि कांकर का पूरा राजपरिवार आजकल कैसरबाग़ में है तो उनसे मिलने आये। कांकर राजपरिवार के हालचाल लिये और अपनी ओर से भरपूर मदद आश्वासन दिया।

महारानी और रानी साहिबा एक दिन बीच में समय निकाल कर माणिकपुर हाउस रानी रत्ना से मिलने गईं जिससे कि शिखा की शादी के बारे में बात आगे बढ़ाई जा सके। रानी रत्ना ने उन्हें बताया कि उनके कुल पुरोहित ने शारदीय दशहरे के दिनों में से शष्टमी का दिन कुँवर महेंद्र और राजकुमारी शिखा के विवाह के लिये शुभकारी बताया है। इस पर महारानी करुणा देवी ने रानी रत्ना से कहा कि उन दिनों में कांकर राजपरिवार की प्रथा शारदीय नव दुर्गा के भव्य आयोजन की चली आ रही है इसलिये वे राजा साहब से बात कर बाद में ख़बर करायेंगी। रानी रत्ना ने भी अपनी ओर से यही कहा शुभ विवाह की तिथि तो दोनों परिवारों की सहमति से ही सुनिश्चित होगी।

कुछ दिन लखनऊ में आराम करने के बाद जब प्रोफेसर लाल ने गौहर बेग़म को ख़तरे से बाहर होने का सर्टिफिकेट दे दिया तो उसके बाद राजा साहब मय परिवार कांकर वापस लौट आये।

एक दिन शाम को जब राजा साहब ऐश महल आये तो ख़ानम जान बोल पड़ीं, "हुकुम आप हमारी गौहर को सही सलामत वापस ले आये इसके लिये हम किस मुहँ से आपका शुक्रिया अदा करें। बस एक गुज़ारिश है कि हमारी बेटी को बस आप हमारे पास यहीं रहने दीजिये अब कभी बाहर न भेजिएगा"

राजा साहब ने सोचा कि अब ख़ानम जान को अब क्या बताया जाय कि कितने अहम सवालात को सुलझाने के लिये गौहर बेग़म को मज़बूरी के चलते अकेले उन्होंने भोपाल भेजा था इस सब के बाबजूद राजा साहब ने ख़ानम जान की बात रखते हुए कहा, "जी ख़ानम जान हम आपकी बात का ख़य्याल रखेंगे"

राजा साहब जब गौहर बेग़म से मिले तो उन्होंने उनके बालो को बड़े प्यार से सहलाया, उन्हें बहुत देर तक प्यार भरी निग़ाह से ताकते रहे जब गौहर बेग़म को ये लगा कि राजा साहब कुछ पूछना चाह रहे हैं पर कुछ भी बोल नहीं रहे हैं तो उनसे रहा नहीं गया बेचैन होकर पूछ ही लिया, "आप पूछिये जो भी हमसे पूछना चाहते हैं। हम खुदा से झूठ बोल सकते हैं पर आपसे नहीं"

"बेग़म हम परेशान इस बात से हैं कि आख़िर वह क्या बात थी जो आपके दिल को इतना बड़ा सदमा दे गई कि आपको हार्ट अटैक पड़ गया" राजा साहब ने गौहर बेग़म को अपने सीने से लगा के पूछा।

"मेरा खुदा मेरे साथ है पर हुकुम आप भी अपना दिल मज़बूत कर लीजिए, मैं नहीं चाहती कि आपको कुछ हो"

"ऐसी क्या बात है बेग़म?"

राजा साहब को गौहर बेग़म ने वे सब बातें बताईं जो भोपाल में उनके साथ शौक़त बेग़म, सईद और सबा के बीच हुई थीं। आख़िर में ये भी बताया कि जब मेरी तबियत ठीक हुई और जब शौक़त बेग़म उनसे मिलने आईं तब जाके वह सबा और कुँवर के निकाह के लिए तैयार हुईं।

राजा साहब के चेहरे पर एक शिकन की लहर सी आई पर उस पर काबू करते हुए बोले, "शिखा ने कभी कुछ आपसे कहा, कभी कुछ सबा से सईद के बारे में कुछ कहा?"

"मैंने कहा न हुकुम, मुझे या शौक़त को किसी को भी इसके बाबत कुछ पता नहीं है"

"हम आपकी हर बात पर विश्वास करके ही ये जानना चाहते हैं कि हम से या रानी शरद से शिखा के लालन पालन में कहाँ कुछ कसर रह गई?"

"नहीं हुकुम आपकी और रानी शारदा देवी जी तरफ से शिखा बेटी की परवरिश में कोई नहीं कमी हुई, अगर कोई ऐसी बात होती तो हम यह पक्का जानते हैं कि कोई कुछ न जानता पर हमको हमारी बेटी शिखा नहीं तो सबा हमें कुछ न कुछ ज़रूर बता देती। आप शिखा को लेकर नाहक ही परेशान हो रहे हैं उसने तो कुछ कहा ही नहीं बल्कि वह तो कुँवर महेन्द्र से मिलने के बाद बड़ी खुश थी। सईद का कोई क्या करे अगर वह इकतरफ़ा प्यार करने लगा हो?"

राजा साहब ने बातचीत का रुख बदलते हुए कहा, "छोड़िये भी बस अब हमें यह करना है कि शिखा की शादी जल्द से जल्द हो जाय जिससे यह मसला हमेशा हमेशा के लिये ख़त्म हो जाय"

"जी मेरे ख़य्याल में भी यही वक़्त का तक़ाज़ा है और यही हम लोगों को करना भी चाहिए"

क्रमशः

कथांश:60

राजा साहब ने अपने कुल पुरोहित तथा दुर्गा मंदिर के पुजारी शाश्त्री जी को एकांत में अपने पास बुलाया और शिखा और कुँवर महेंद्र की के विवाह की संभावित तिथियों पर चर्चा की पर ऐसी कोई भी तिथि नहीं निकल रही थी जो निकट भविष्य में हो। जितनी भी तिथियां निकल रहीं थीं वे सब की सब नवंबर के आख़िर या दिसंबर के द्वितीय सप्ताह की निकल रहीं थीं। राजा साहब ने वे सभी तिथियां नोट कर और शाश्त्री जी को समुचित व्यवहार देकर विदा किया।

एक दिन रानी शारदा देवी को लेकर राजा साहब माणिकपुर हाउस, कैसर बाग़ लखनऊ आये और उन्होंने शिखा और कुँवर महेंद्र के विवाह की तिथि दस दिसंबर की तय कर दी। बातों ही बातों में पता चला कि कुँवर भी अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक ही इंगलेंड से भारत लौट पाएंगे। राजा साहब ने अपने मित्र मानवेंद्र सिंह, राजा साहब माणिकपुर को बताया कि अगस्त में रानी शारदा देवी और शिखा का प्रोग्राम भी लंदन जाने का है। अगर कुँवर वहाँ कुछ समय इन लोगों के साथ बिता सकें तो और भी उत्तम होगा। मानवेन्द्र सिंह ने कहा, "क्यों नहीं कुँवर को रानी साहिबा और शिखा से मिल कर प्रसन्नता होगी"

इसके बाद राजा साहब रानी शरद के साथ कांकर लौटने के लिये निकल लिये। रास्ते में जब रानी शारदा देवी ने पूछा, "महाराज ये लंदन जाने की बात बीच में कहाँ से आ गई?"

राजा साहब ने उत्तर दिया, "हम चाहते हैं कि हमारी बेटी इंग्लैंड के माहौल से पहले ही से बाक़िफ़ रहे जिससे उसमें किसी प्रकार की हीन भावना न आये। आप उसके साथ रहेंगी और आप दोंनो के साथ रहेंगे कुँवर अनिरुध्द सिंह जिससे कि आपको कोई प्रॉब्लम न हो"

राजा साहब के तर्क सुन कर रानी शारदा देवी चुप रह गईं।

कुँवर अनिरुध्द सिंह इस बीच अपनी कांस्टीट्यूएंसी का काम निबटाते रहे। आईटीआई लिमिटेड में उन दिनों इंटरव्यू का जोर चल रहा था क्योंकि फैक्टरी के लिये ऑपरेटर्स, सुपरवाइजर्स और इंजीनियर्स की बड़े स्केल पर भरती चल रही थी। उन्होंने आईटीआई लिमिटेड के अफसरों के साथ अपनी जान पहचान बढ़ाने का निश्चय किया जिससे कि अपने क्षेत्र के पढ़े लिखे लड़के लड़कियों को किसी प्रकार से वहाँ नौकरी मिल सके। वैसे भी आईटीआई लिमिटेड के लगने से पूरब-पश्चिम और उत्तर- दक्षिण लगभग सभी प्रान्तों के अफ़सरों और उनके परिवारों के वहाँ आ जाने से मरे से हुए, रायबरेली शहर में जान आ गई थी। लोगों का तो ये कहना था कि जिस तिराहे पर एक ज़माने में गधे घूमा करते थे अब वहाँ कुछ पढ़े लिखे लोग तो कम से कम नज़र आने लगे थे।

कुँवर ने आईटीआई लिमिटेड में जिन लोगों से जान पहचान बढ़ाई उसमें से कुछ वक़्त के कुछ अफ़सर जो शुरू शुरू में आये थे उनमें से प्रमुख थे श्याम लाल आहूजा, कैलाश चंद्र गुप्ता, बहादुर सिंह सोढ़ी, छवि नाथ पांडेय, एस दोराइराज, दिलीप कुमार मित्रा, के यू एस नायडू, उमा शंकर अग्रवाल, एस पी सिंह, त्रिवेणी प्रसाद शर्मा, जी सी रस्तौगी, अनिल गर्ग, एस पी त्रिपाठी और विश्व नाथ गुप्ता वगैरह। एक दिन कुँवर आईटीआई लिमिटेड के अधिकारियों के बीच बैठ कर ऐसे ही बात कर रहे थे तो उन्होंने इस बात को माना कि जब से आईटीआई लिमिटेड का कारखाना यहाँ खुला है बाजार में पैसे का चलन बढ़ा है, लोगों के सोचने का तरीका बदला है अब तो कुछ खाने पीने के लिये रेस्ट्रॉन्ट भी खुल गए हैं, इस शहर में स्कूटर कार भी खूब दिखने लगे हैं। यहाँ तक कि जो लड़के और लड़कियां फ़ैक्टरी में काम कर रहे हैं उनके बीच सम्पर्क भी बढ़ रहा है। धीरे धीरे परिवर्तन की लहर अब रायबरेली और उसके आसपास के क्षेत्रों में दिखाई पड़ने लगी है।

डी के मित्रा और के यू इस नायडू ने, जो स्वयं आर्डिनेंस फैक्टरी जबलपुर से आये थे, तो कुँवर से यहाँ तक कहा कि अगर रायबरेली शहर के वातावरण में आमूलचूल परिवर्तन देखने हों तो प्रधानमंत्री जी को यहाँ आर्मी या एयरफोर्स का कोई बेस खोलना चाहिए। जब सब जगह के खुले दिमाग और विचारों के लोग यहाँ आकर रहेंगे तो एक नई कल्चर आएगी तभी पान की दुकान पर खड़े होकर गप्प करने की लोगों की आदत बदलेगी।

कुँवर ने आश्वासन दिया था कि इस दिशा में वह रक्षा मंत्रालय से बात करेंगे। बाद में पता लगा कि रक्षा मन्त्रालय ने यह मांग यह कह कर ठुकरा दी कि लखनऊ और इलाहाबाद में रक्षा मंत्रालय के बहुतेरे विभाग हैं, इसलिये रायबरेली में वे कोई नई यूनिट नहीं खोल सकते हैं।

आईटीआई लिमिटेड के आ जाने से इस क्षेत्र के लोगों के लिये कोई दिल्ली के लिए सीधी रेल गाड़ी भी नहीं थी। लोगों को पहले लखनऊ जाना पड़ता था। रायबरेली के विधायकों और अन्य लोगों के कहने पर रेल गाड़ी के प्रश्न को लेकर एक समूह ज्ञापन लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जी से मिला। ठीक उसी दिन तत्कालीन रेल मंत्री जी जो कि स्वयं बनारस के रहने वाले थे, वह एक प्रस्ताव बनारस और दिल्ली के बीच सीधे रेल गाड़ी चलाने का लेकर जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जी से मिले। कुछ लोग यह बताते हैं कि प्रधानमंत्री जी ने उनसे केवल यह पूछा कि यह रेल गाड़ी रायबरेली कब पहुँचेगी, वह रेल गाड़ी जिसका नाम ही नाम काशी विश्वनाथ था जो कि सुल्तानपुर होती हुई लखनऊ और बाद में दिल्ली जाने वाली थी उसका रूट बदल कर बाद में तत्कालीन रेल मंत्री जी ने रायबरेली होते हुए किया। ऐसे ही न जाने कितने किस्से हैं जो आज भी रायबरेली के लोग जब मिल बैठते हैं तो बात करते हैं। बाद में दरियापुर में एक शुगर फ़ैक्टरी लगी और रायबरेली से वहाँ तक रेलवे लाइन भी बिछाई गई।

रायबरेली और आसपास के राजनीतिक क्षेत्रों में दो वर्गों राजपूत और ब्राह्मण समाज के बीच हमेशा से ही वर्चस्व की लड़ाई बनी रही और यह आज भी बदस्तूर चालू है। यह कमी प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय भी अच्छी तरह जानते थे। सभी लोग बस इस उधेड़बुन में लगे रहते कि किसी प्रकार ये दोनों समूह कांग्रेस के लिये काम करते रहें। कांग्रेस की अपनी पहुँच हरिजनों और पिछड़े वर्गों के बीच भी ठीक ठाक थी।

राजा चन्द्रचूड़ सिंह जो स्वयं एक कुशल प्रशासक थे इन सब प्रश्नों से ता ज़िंदगी उलझे रहे अब यही हाल कुँवर का भी था। उनकी दूरदृष्टि, बुद्धि और विवेक से वह भी स्थितियों को सम्हालने का प्रयास करते रहे कि राजपूतों और ब्राह्मणों के बीच सामंजस्य बना रहे।

क्रमशः

कथांश:61

कुँवर दिल्ली तो कभी कांकर अपने क्षेत्र के बीच आते जाते रहे। देश की राजनीति में एक अजीब तरह का ठहराव सा आ गया था। उन्ही दिनों 12 जून को प्रधानमंत्री जी के चुनाव को चुनौती देने वाली रिट पिटीशन में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सिन्हा जी का एक जजमेंट क्या आया जिसने भारत की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया। देश मे इमरजेंसी लगा दी गई, प्रेस की आज़ादी छीन ली गई और साधारण नागरिक को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया। देश में एक अजीब तरह का माहौल बन गया था। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट की एक खण्ड पीठ ने प्रधानमंत्री जी को जिस आदेश के तहत चुनाव लड़ने से रोका था उसको अवैध करार कर दिया।

पार्टी बैक फुट पर थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री जी के करीबी सलाहकार और विशेष कर उनके छोटे सुपत्र, जो कि कई सालों से एक कार बनाने की योजना पर काम कर रहे थे, वह भी बीच मे मैदान में कूद पड़े और सरकारी तंत्र को सीधे निर्देश देने लगे। इन सब बातों का घोर विरोध हुआ और सारा विपक्ष एक झंडे तले आ गया। जगह जगह रैलियां निकाली जाने लगीं। इन सबको देख लगभग सभी शीर्ष नेताओं को जेल में डाल दिया गया।

इस राजनीतिक उहापोह की स्थित में राजा साहब की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कुँवर को क्या राय दें कि कुँवर पार्टी के साथ डट कर खड़े रहें या फिलहाल कुछ समय के लिए न्यूट्रल बन के रहें। राजा साहब को कभीकभी लगता था कि यह लड़ाई कोई कांग्रेस पार्टी की नहीं वरन एक व्यक्तिविशेष की होकर राह गई है।

इस अफ़रातफ़री में सबा और शिखा के इम्तिहान का रिजल्ट आया जिसमें शिखा और सबा दोनों ही ने अपनी अपनी परीक्षा फर्स्ट डिवीज़न में पास की। अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए उन्होंने डीयू में ही बने रहने का तय किया।

जुलाई आते ही कॉलेज खुल गए। जिस दिन कुँवर शिखा को छोड़ने उसके हॉस्टल गए तो उनकी मुलाकात सबा से हुई। पिछली मुलाकातों उन दोंनों में तब हुई थी जब गौहर बेग़म हमीदिया हॉस्पिटल भोपाल में भर्ती थीं। इसलिए उन दोनों के बीच कोई खास बात नहीं हुई पर जब वे दोनों दिल्ली में मिले तो सबा ने कुँवर से अकेले में मिलने की इच्छा ज़ाहिर की। कुँवर ने सबा से कहा कि वह शिखा के साथ उनसे उनके फ्लैट पर आ जाये। उससे वहीं बात होगी।

जब शाम को शिखा और सबा कुँवर के फ़्लैट पर पहुँची तो कुँवर वहाँ अकेले ही थे। शिखा से दिन में सबा ने वे सारी बातें बताईं थीं जो भोपाल में गौहर बेग़म के आने के बाद हुईं। उसे यह भी बताया कि सईद भाई उससे बेइंतिहा मोहब्बत करते हैं। ये सब जान कर भी शिखा ने सईद के लिये कुछ नहीं कहा सिवाय इसके, "सबा मुझे तो लगा कि तुम्हारा भाई मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं रखता है इसलिये मैंने उसकी ओर कभी दूसरी निग़ाह से देखा तक नहीं"

शिखा ये जान रही थी कि सबा कुँवर से अकेले में मिलना चाह रही है इसलिये वह पास के शॉपिंग सेंटर से कुछ सामान लेने के बहाने निकल गई। जब तक वह लौट कर आई तो दोनों को अलग अलग सोफ़े पर बैठ देख कुछ उलझन में पड़ गई। सबा शिखा को देखते ही बोली, "कहाँ चली गई थी? मैं तेरा ही इंतज़ार कर रही थी। चल चलें नहीं तो बहुत देर हो गई तो हॉस्टल के गेट भी बंद ही जायेंगे"

शिखा सबा के साथ छेडख़ानी करते हुए बोली, "तो क्या तू यहीं रह जाना भाई के कमरे में"

"चल हट पगली कुँवर नहीं चाहते कि उनके साथ मैं कहीं भी देखी जाऊँ", इतना कहते हुए सबा ने शिखा का हाथ पकड़ा और कुँवर के फ़्लैट से वे दोनों बाहर आकर टैक्सी से अपने हॉस्टल की ओर चलीं गईं।

तय प्रोग्राम के मुताबिक़ अगस्त के महीने में तय प्रोग्राम के तहत रानी शारदा देवी, कुँवर अनिरुध्द और शिखा दस दिन के प्रोग्राम से लंदन पहुँचे। लंदन पहुँच कर कुँवर अनिरुध्द सिंह ने कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह से संपर्क किया और अपने लंदन में होने की सूचना दी। कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से जब उन्हें कोई संतोषजनक उत्तर न मिला तो एक दिन रानी शारदा देवी, कुँवर और शिखा उनसे मिलने उनके फ़्लैट पर ही जा पहुँचे। सभी को एक साथ देख कर पहले तो कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह चकराए फिर उन्होंने सभी को आदर सहित बिठाया।

क्रमशः

कथांश:62

कुँवर महेंद्र ने रानी साहिबा से पूछा, "कैसा लग रहा है आपको लंदन?"

रानी साहिबा ने उत्तर देते हुए कहा, "लंदन का क्या कहना लंदन तो लंदन है जैसा सुना वैसा पाया। परियों के देश सरीखा"

"आप कहाँ कहाँ घूमने गईं?"

"अरे बेटा ये प्रश्न तू मुझसे क्यों पूछ रहा है? पूछना है तो शिखा से पूछ जो तुझसे मिलने के लिए इतनी आतुर थी कि कहने लगी कि मैं कुँवर से लंदन जाकर ही मिलूँगी"

"चलिये अच्छा है इसी बहाने चलिये हमसे कुछ मुलाक़ात हो जाएगी कुछ बातें हो जाएंगी हैं जो कांकर में नहीं हो पाईं थीं यहाँ हो जाएंगी। राजकुमारी शिखा यू आर वेलकम इन लंदन"

"थैंक्स", कह कर शिखा चुप हो गई।

इसके बाद कुँवर अनिरुध्द में और कुँवर महेंद्र में उनकी पढ़ाई लिखाई के बारे में बात होती रही। रानी साहिबा ने कुँवर महेंद्र के घर का निरीक्षण किया कि कुँवर महेंद्र किस अन्दाज़ में यहाँ लंदन में रहते हैं? शिखा ने भी एक पैनी निगाह कुँवर के रहन सहन के ऊपर डाली। जब बहुत देर हो गई तो कुँवर अनिरुध्द ने चलने की इजाज़त चाही। कुँवर ने कहा, "वगैर डिनर किये तो मैं आप लोगों को जाने नहीं दूँगा। बताइये कि आप लोग इंडियन खाना खाना पसंद करेंगे कि यूरोपियन?"

कुँवर अनिरुध्द ने हँसते हुए टालने की कोशशि की और कहा, "रहने दो अभी कुँवर आप ज़िंदगी में बैचलर हैं कहाँ खाना बनाने के चक्कर में पड़ेंगे?"

कुँवर महेंद्र ने कुँवर अनिरुध्द को उत्तर देते हुए कहा, "तो मैं कौन खुद खाना बनाने वाला हूँ मैं भी आप सभी को किसी होटल में ले चलूँगा"

रानी साहिबा के मना करने पर कुँवर महेंद्र ने अपनी ज़िद छोड़ी और रानी साहिबा से वायदा किया कि अगले दिन वह आकर उनसे उनके होटल में अवश्य मिलेंगे। अगले दिन कुँवर महेन्द्र रानी साहिबा से आकर मिले और सभी को घुमाने के लिये ले चलने की बात की पर कुँवर अनिरुध्द ने कहा कि वे और रानी माँ का आज इंडियन एम्बेसी में कुछ काम है इसलिये वह शिखा को अपने साथ ले जाएं। रानी साहिबा ने भी इस पर सहमति जताई।

कुछ देर में जब शिखा तैयार हो गई तो कुँवर महेंद्र उसे अपने साथ ले घूमने के लिये निकल गए।

क्रमशः


कथांश:63

कुँवर अनिरुध्द सिंह रानी माँ के साथ सुबह सुबह जल्दी ही इंडियन एम्बेसी के लिये निकल गए और उनके जाने के बाद जब कुँवर महेंद्र आये तो शिखा तैयार ही हो रही थी। शिखा ने कुँवर से बैठने के लिये यह सोच कर कहा कि पहले ही दिन से उनके ऊपर जोर चले "कुँवर आप बैठिए, मैं अभी तैयार होने में कुछ और वक़्त लूँगी"

जब शिखा तैयार हो गई तो वे दोंनों घूमने के लिये निकल पड़े। अगस्त के महीने में लंदन वैसे भी बहुत प्यारा से लगता है, बसंत का ख़ुशनुमा मौसम जो यहाँ होता है। हल्की हल्की धूप जो खिली होती है, फ़िज़ाओं में मोहब्बत ही मोहब्बत बिखरी होती है। दुनिया भर के टूरिस्ट यहाँ इन्हीं दिनों में सबसे अधिक आते हैं। ऐसे रँगीन मौसम में कुँवर महेंद्र और शिखा दिन भर लंदन में सैर सपाटा करते और शाम को रानी साहिबा और कुँवर अनिरुध्द सिंह के साथ डिनर करते और अपने फ़्लैट पर लौट जाते। यही क्रम शिखा और कुँवर महेंद्र के बीच जब तक शिखा वहाँ रही चलता रहा।

दूसरी ओर रानी माँ के साथ कुँवर अनिरुध्द घूमने निकल जाते। एक दिन कुँवर महेंद्र ने कुँवर अनिरुध्द सिंह से कहा कि अगर वे लोग फ्री हैं तो क्यों न सब लोग मिल कर 'विंबलडन विलेज स्टेबल्स' उनके हॉर्स राइडिंग वाले क्लब में चलें। वहाँ दिन में वे लोग हॉर्स राइडिंग भी कर लेंगे और लंच भी साथ साथ ले लेंगे।

कुँवर अनिरुध्द सिंह को हॉर्स राइडिंग करने का प्रोग्राम अच्छा लगा और उन्होंने यह भी सोचा कि उन्हें और शिखा को बहुत दिन हो गए हैं घुड़सवारी किये हुए तो कुँवर महेंद्र के साथ चलने में कोई एतराज़ नहीं है। अतः सब लोग तैयार हो कर कुँवर महेंद्र के 'विंबलडन विलेज स्टेबल्स' हॉर्स राइडिंग वाले क्लब में आ गए। कुँवर महेंद्र, कुँवर अनिरुध्द सिंह और शिखा ने घुड़सवारी का आनंद उठाया और वहीं लंच किया। लंच के दौरान कुँवर महेंद्र को ख़य्याल आया कि एक बार सबा ने उन्हें भोपाल आने के लिये कहा था तो यह याद कर वह बोल बैठे, "शिखा जब हम कांकर आये थे, उस वक़्त तुम्हारी दोस्त सबा ने जिक्र किया था कि भोपाल में उनके भाई का बहुत बड़ा कारोबार है और तुमने वहीं हॉर्स राइडिंग सीखी भी थी"

"जी मैंने अकेले ने नहीं भाई ने भी भोपाल में उसी के भाई के क्लब में हॉर्स राइडिंग सीखी थी", शिखा ने जबाब दिया।

कुँवर अनिरुध्द सिंह ने भी कहा, "भोपाल में सईद का हॉर्स राइडिंग क्लब हाउस बहुत बढ़िया ऑउटफिट है, यहाँ राइडिंग करने के बाद एक बार वहाँ फिर जाने का मन कर रहा है"

रानी माँ जो चुपचुप सी थीं वह भी अपने कुँवर की बात पर बोल पड़ीं, "तो इसमें बुराई क्या है कुँवर महेंद्र आप जब अक्टूबर में इंडिया आयें तो एक बार कुँवर और शिखा के साथ वहाँ भी चले जाइयेगा। वह भी तो अपना घर जैसा ही है"

"जी रानी माँ। सबा ने मुझे वहाँ आने का निमंत्रण भी दिया था कांकर में जब उससे मुलाक़ात हुई थी", कह कर कुँवर महेंद्र ने भोपाल चलने की बात पर सील लगाते हुए कहा।

इसके बाद जब वे लोग लंच कर के उठ ही रहे थे कि वहाँ कुँवर महेंद्र के कुछ अंग्रेज दोस्त लोग आ गए। उसमें से अधिकतर नौजवान लड़के लड़कियां थे। उनमें से एक लड़की ने कुँवर महेंद्र को अपने सीने से चिपकाया और फिर देर तक किस किया। कुँवर ने उसकी मुलाक़ात रानी माँ, कुँवर अनिरुध्द और शिखा से यह कह कर कराई कि ऐडलेडे स्टीवेन्सन है और लंदन में उनकी सबसे अच्छी दोस्त है। एडिलेड के पिता लार्ड माइकेल स्टीवेंशन की यहाँ की सरकार और उपर हाउस यानी हाउस ऑफ लॉर्ड्स में बहुत इज़्ज़त है। ऐडलेडे स्टीवेन्सन और अपने अन्य दोस्तों से रानी माँ, कुँवर अनिरुध्द सिंह और शिखा का परिचय यह कह कर कराया कि वे उनके इंडिया से आये हुए मेहमान हैं।

इसके बाद वे सभी लोग देर शाम तक वहीं क्लब में रहे कुँवर अनिरुध्द सिंह और कुँवर महेंद्र के दोस्त आपस में खूब मस्ती करते रहे। ऐडलेड स्टीवेन्सन बार बार कुँवर महेंद्र के पास जाती और बात बात में अपनी नज़दीकी जताने की कोशिश करती। इसे देख शिखा के मन में कुछ कुछ होने लगा। ऐडलेड स्टीवेन्सन ने एक बार तो शिखा को लेकर यह भी कहा, "शी लुक्स वेरी प्रिटी एंड क्यूट"

"या शी इस", कह कर कुँवर महेंद्र ने भी बात टालने की कोशिश की। इसी प्रकार वे लोग ख़ूब आपस मे घुल मिल कर बात करते रहे और शाम को कुँवर महेंद्र कुँवर अनिरुध्द, रानी माँ और शिखा को गुड नाईट कह कर उनके होटल में छोड़ गए।

शिखा को कुँवर महेंद्र और एडिलेड स्टीवेंशन के बीच इतनी नज़दीकी कुछ अच्छी नहीं लगी। रानी साहिबा ने भी यही महसूस किया पर दोनों में इस बात को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई।

कुछ दिन और बिताने के बाद कुँवर अनिरुध्द अपनी रानी माँ और शिखा के साथ लंदन से दिल्ली लौट आये।

क्रमशः

कथांश:64

कुँवर तो अपने काम के कारण दिल्ली रुक गए पर रानी साहिबा और शिखा लखनऊ के लिये हवाई जहाज से निकल गए। राजा साहब खुद तो किसी कारणवश लखनऊ नहीं आ पाए पर उन्होंने मुखिया जी को रानी साहिबा और शिखा को सीधे कांकर लाने की व्यवस्था कर दी थी।

कांकर आते ही राजा साहब ने रानी शारदा देवी से मिल कर लंदन के दौरे के हाल चाल पूछे। रानी साहिबा ने सारी बातें विस्तार में बताईं और कुँवर महेंद्र के रहन सहन के बारे में भी चर्चा खुल कर की। जो वह एक बात अपनी ओर से बताना नहीं चाह रहीं थीं वह था कुँवर महेंद्र का वह व्यवहार जो उन्होंने एडिलेड स्टीवेंसन के साथ देखा पर स्त्री हृदय आखिर कब तक वह बात छुपाता जो दिल के कोने में कहीं घर कर गई हो। राजा साहब ने रानी साहिबा की बात सुनकर अनसुनी सी कर दी तब रानी साहिबा से रहा नहीं गया और बोल पड़ीं, "आप मेरी बात पर कान भी नहीं धर रहे हैं और मैं मन भीतर भीतर ही सोच सोच कर परेशान हो रही हूँ कि कहीं कुँवर के मन में एडिलेड स्टीवेंसन कहीं कोई भी जगह है तो मेरी शिखा के वैवाहिक जीवन का क्या होगा?"

रानी शारदा देवी को परेशान देखते हुए राजा साहब बोले, "रानी शरद आप नाहक ही परेशान हो रहीं हैं। अरे कुँवर महेंद्र खानदानी आदमी हैं, अगर इस उम्र में उनके यार दोस्त न होंगे तो क्या हमारी उम्र में पहुँच कर वे अपने शौक़ पूरे करेंगे?"

रानी साहब राजा साहब से बोलीं, "आप राजसी मर्द एक जैसे ही होते हैं। आपने तीन तीन विवाह रचाये तो आप तो इसे यूँ ही कह कर हवा कर देंगे पर हुकुम यह जान लीजिये कि अब वह पुरानी वाली बात नहीं चलेगी। मेरी शिखा किसी दूसरी औरत को कुँवर महेंद्र की ज़िंदगी मे बर्दाश्त नहीं कर पायेगी। उसकी शिक्षा दीक्षा बिल्कुल पुराने ज़माने से अलग अलग है"

"रानी शरद आप परेशान न हों इस विषय में हम राजा मानवेन्द्र सिंह जी से उचित समय आने पर बात कर लेंगे"

"ठीक है हुकुम। मैं यह मसला अब आप पर छोड़ रही हूँ"

राजा साहब बस मुस्कुरा दिये और रानी शारदा देवी के कक्ष से निकल कर सीधे गौहर बेग़म के पास ऐश महल आ गए।

क्रमशः


कथांश:65

गौहर बेग़म राजा साहब के चेहरे को पढ़ कर ही जान लेती थीं कि उनके दिल में क्या चल रहा है। उन्होंने राजा साहब को आराम से बिठाया उनका सिर अपने सीने के पास रख कर उनके बालों को सहलाया और धीरे धीरे चेहरे माथे की मालिश की और जब राजा साहब का मन कुछ हल्का हुआ तो राजा साहब से पूछा, "हुकुम वो कौन सी ऐसी बात है जो आपको नाहक ही परेशान कर रही है?"

"नहीं बेग़म कुछ खास नहीं"

गौहर बेग़म समझ गईं कि राजा साहब अभी कुछ बताने के मूड में नहीं हैं इसलिये उन्होंने भी बातचीत का रुख बदलते हुए कहा, "हुकुम एक नई ताज़ातरीन ग़ज़ल आज पढ़ने को मिली थी उसी को आज अपने सुर देने की कोशशि में लगी हुई थी आपके आने के ज़रा पहले तक"

राजा साहब पूछ ही बैठे, "क्या हुआ फिर आप अपने प्रयासों में सफल हो पाईं या नहीं"

"हमारे लिए तो आप ही हमारे जजमान हैं और हमारे जज भी आप ही सुन कर बताइयेगा कि बात बनी या नहीं"

"इरशाद"

इसके बाद सितार उठा कर गौहर बेग़म ने अलाप के साथ अपने सुर बिखेरने शुरू कर दिए। सात सुरों और मनमोहक शब्दजाल के मध्य जो चीज निकल कर पेश्तर हुई उस पर किसी का भी दिल आ जाये तो कोई बड़ी बात नहीं।

"कुछ तो नया किया है हवा ने पता करो
बरहम हैं क्यूँ चराग़ पुराने पता करो

मेरा भी एक अब्र के टुकड़े पे नाम है
आएगा कब वो प्यास बढ़ाने पता करो

किस किस ने सब्ज़ पेड़ गिराए हैं इस बरस
बारिश ने आँधियों ने हवा ने पता करो

कुछ दिन से मस्लहत का जनाज़ा उठाए हैं
जाएँगे किस तरफ़ ये दीवाने पता करो

शोहरत की रौशनी हो कि नफ़रत की तीरगी
क्या क्या उसे दिया है ख़ुदा ने पता करो

दुनिया पे कोई ऐब लगाने से पेशतर
दुनिया के सारे ऐब पुराने पता करो

'अंजुम' को हाफ़िज़े पे बहुत अपने नाज़ है
खाता है किस अनाज के दाने पता करो"

राजा साहब के मुँह से ये बोल सुनते ही निकला, "सुभानअल्लाह क्या बात है बेग़म आपकी आवाज़ ने इस ग़ज़ल में चार चाँद लगा दिए। दिल ख़ुश हो गया"

सितार एक तरफ हटाते हुए गौहर बेग़म राजा साहब के पास बैठते हुए बोलीं, "हुकुम चलिये अब बता ही दीजिये वो बात जो आपके चेहरे पर शिकन का सबब बन के छाई हुई थी कुछ वक़्त पहले तक"

राजा साहब ने गौहर बेग़म से कहा, "ये बात आपसे भी ताल्लुक़ रखती है इसलिये जरा ध्यान लगा कर सुनियेगा"

गौहर बेग़म को लगा कि पता नहीं अब कुँवर और सबा के रिश्ते को लेकर अब ये कौन सा नया मसायल खड़ा हो गया। राजा साहब ने तरतीवबार वे बातें गौहर बेग़म को बताईं जो आज रानी शारदा देवी ने उनसे अपने लंदन दौरे के बाबत उन्हें बताईं थीं। राजा साहब की बातें सुन कर गौहर बेग़म बोल उठीं, "इसमें परेशान होने की कौन सी बात है हुकुम। ये देख कर हर माँ परेशान ही जाएगी कि उनका होने वाला दामाद उन्हीं जी नज़रों के सामने किसी और के साथ बेजा हरकतें कर रहा है। मेरे ख़य्याल में रानी साहिबा ने अपना शक़ अगर आपसे ज़ाहिर किया है तो इस पर आपको गौर करना चाहिये। इस उम्र में आजकल के बच्चे अक़सर बहक जाते हैं"

क्रमशः

कथांश:66

राजा साहब ने गौहर बेग़म की बातों को तरज़ीह देते हुए निश्चय किया कि इस मसले में यह बेहतर होगा कि वे अपने दोस्त राजा मानवेन्द्र सिंह से बात करने के पहले एक बार शिखा से खुद बात करलें और शिखा को भी अगर कुँवर महेंद्र के व्यवहार या चरित्र में कोई खोट नज़र आता हो तो बात को आगे बढ़ाया जाय। यह सोच कर राजा साहब राजकुमारी शिखा के कक्ष में उससे मिलने चले आये और पूछा, "बता बेटी तेरा इंग्लैंड का ट्रिप कैसा रहा?"

"अच्छा था पिताश्री", कह कर शिखा चुप हो गई।

राजा साहब तो उसके दिल की बात जानना चाह रहे थे तो भला इस छोटे से उत्तर से कैसे तसल्ली करते इसलिए बात को कुरेदते हुए उन्होंने फिर पूछा, "कुँवर महेंद्र तुझे कैसे लगे?"

राजकुमारी शिखा पहले तो समझ न पाई कि पिताश्री की इन बातों के पीछे मक़सद क्या है? जब उन्होंने कुछ खुल कर बात की तो शिखा ने राजा साहब से कहा, "पिताश्री मैं दिल्ली में पढ़ती हूँ और मेरे विचार और माँ के विचार एक से नहीं हो सकते। उनकी सोच अभी भी पुराने ज़माने वाली है। मैं इन बातों को कुछ विशेष महत्व नहीं देती कि एडिलेड स्टीवेंशन कुँवर से इस तरह क्यों व्यवहार कर रही थी। इंग्लैंड में यह सब मामूली सी बात है कि लड़के लड़कियां एक दूसरे से इस तरह व्यवहार करते ही हैं परंतु मैं कुँवर को एक दम क्लीन चिट भी नहीं दे रही। मुझे लगता है कि मुझे उन्हें समझने में कुछ वक़्त लगेगा"

"मैं तुम्हारी बात की कद्र करता हूँ और बहुत खुश हूँ कि तुमने आज अपनी मानसिक परिपक्वता का परिचय दिया", राजा साहब ने इतनी बात कह कर राजकुमारी शिखा के सिर पर हाथ रख कर आर्शीवाद दिया और बोले, "बेटी अब वक़्त कहाँ बचा है, दिसंबर में तो तेरी शादी होनी है"

"मुझे कुछ न कुछ उससे पहले ही करना होगा पिताश्री", राजकुमारी ने राजा साहब से कहा, "अभी वक़्त है। कुँवर इंग्लैंड से अक्टूबर के आखिर में इंडिया आ रहे हैं। मैं एक बार उनसे फिर से मिलना चाहूँगी"

"ये कैसे मुनासिब होगा?"

"मैं नहीं जानती कि यह कैसे मुनासिब होगा पर मुझे अपने भविष्य को देखते हुए कुछ न कुछ करना होगा? आप चिंता न करें मैं कोई न कोई रास्ता खुद ब खुद निकाल ही लूँगी"

राजकुमारी ने यह बात राजा साहब से कही। राजा साहब को भी लगा कि बच्चे अब बच्चे नहीं रहे ज़माना भी अब वह पुराने वाला ज़माना नहीं रहा इसलिये कुछ स्वतंत्रता तो बच्चों को अब देनी ही होगी। राजा साहब ने राजकुमारी से अपनी बातचीत पर विराम लगाते हुए कहा, "जैसा तू ठीक समझे, अब तू बड़ी हो गई है। मुझे तुझ पर भरोसा है जो भी करेगी ठीक करेगी और दोनों राजपरिवारों की इज़्ज़त के अनुकूल ही करेगी। इस बात का ख़य्याल रखना कि राजा साहब मानवेन्द्र सिंह से हमारे बहुत पुराने पारिवारिक सम्बन्ध हैं बस उन सम्बन्धों पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए"

"आप निश्चिन्त रहें पिताश्री और मुझ पर भरोसा रखें मैं कोई भी काम ऐसा नहीं करूँगी जिससे अपने या उनके परिवार की शान में कोई बट्टा लगे"

क्रमशः

कथांश:67

कुँवर अनिरुध्द जब दिल्ली से कांकर लौट कर आये तो एक दिन राजा साहब ने एकांत में उनसे बात की जिससे कि अब वह उनके खुद के तथा शिखा के विवाह के सिलसिले में अंतिम बात कर सकें। जब कुँवर उनके ठीक सामने थे तो राजा साहब ने उनकी आँखों में सीधे देखते हुए कहा, "कुँवर अब वक़्त आ गया है कि तुम्हारा भी विवाह हो और तुम भी अपना घर बसाओ। राजनीति में बहुत दिनों तक अविवाहित रहने से भी लोग गलत मतलब निकालने लगते हैं"

"मैंने तो आपसे कभी कुछ नहीं कहा आप जैसा उचित समझें वैसा निर्णय लें बस मेरी एक ही विनती है कि हमने किसी से वायदा किया है वह वायदा न टूटे बस इसका ख़य्याल रखियेगा क्योंकि मैंने भी आपकी तरह ही किसी को राजपूती वायदा किया है" कुँवर ने अपनी बात रखते हुए कहा।

"मुझे बताओ कि तुमने किससे वायदा किया है मैं तुम्हारी इच्छा और वायदे का पूरा सम्मान रखने की कोशिश करूँगा"

"चलिये फिर ऐश महल चलिये ये बात मैं माँसी के सामने ही करूँगा, मैंने उनसे कहा था कि जब भी अगर मुझे अपने बारे में कोई बात करनी होगी वह उनकी ही हाज़िरी में होगी"

"ऐसी कौन सी बात है कुँवर"

"चलिये आप मेरे साथ चलिये, कम से कम मेरा इतना कहा तो मान लीजिये"

"चलो भाई चलो अगर तुम्हारी यही ज़िद है तो चलो गौहर बेग़म के सामने ही बात करेंगे"

यह कह कर राजा साहब और कुँवर दोनों ही साथ साथ गौहर बेग़म के सामने आ बैठे। राजा साहब ने कुँवर से कहा, "कुँवर अब तो गौहर बेग़म भी यहीं है अब बताओ कि तुम क्या कहना चाह रहे थे?"

गौहर बेग़म कभी राजा साहब की ओर देखतीं तो कभी कुँवर की ओर उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि बाप बेटे में ये क्या हुआ जो दोनों ही उनके सामने आ बैठे हैं। कुँवर ने माँसी के पास बैठते हुए उनके एक हाथ को अपने हाथ मे लिया और बोले, "पिताश्री मैंने सबा से वायदा किया था कि अगर मैं शादी करूँगा तो सिर्फ उससे बस आप मेरी यह इल्तिज़ा है जो कृपया मत ठुकराइयेगा नहीं। ये आपके कुँवर का वायदा था सबा से और मैं नहीं चाहता कि राजपूती वायदे पर और अपने खानदान पर कोई ऊँगली उठा कर कहे कि यह महाराज श्री का परिवार है जहाँ लोग वायदा करके भूल जाते हैं, दगा करते हैं"

राजा साहब पहले तो कुछ चिन्तित से दिखे फिर अचानक जोर से अट्टहास करते हुए बोले, "बस माँगा भी तो कुँवर तुमने बस इतना ही माँगा, ये तो हम गौहर बेग़म से पहले ही कह चुके थे। चलो कुछ और माँग लो आज हम तुमसे बहुत खुश हैं। जिस पिता ने अपने बचपन के दोस्त का वायदा निभाने के लिये तुम्हारी माँ से सिर्फ़ इस बात के लिये शादी की कि उनके पिताश्री महाराज के वचन पर कोई आँच न आये तो तुम्हारे वायदे का कोई मान सम्मान क्यों कर नहीं रखेगा"

"मुझे कुछ और नहीं चाहिए पिताश्री"

"कुँवर बधाई तुम्हें हमारी ओर से हार्दिक बधाई", कह कर गौहर बेग़म ने कुँवर को अपने सीने से चिपका लिया और उनकी पेशानी चूम कर दुआ दी।

क्रमशः

कथांश:68

अब राजा साहब की चिंता यह थी कि किस तरह कुँवर के रिश्ते की बात को राजपूत और ब्राह्मण समाज के प्रमुख लोगों के बीच कैसे पहुँचायें जिससे कि यह बात कुँवर के राजनीतिक भविष्य को लेकर कोई बड़ा प्रश्न न बने। इसके लिये एक दिन उन्होंने सूर्य महल में एक दावत रखी जिसमें कांकर और खजूरगांव क्षेत्र के प्रमुख लोगों को बुलवाया। इसी दावत में उन्होंने अपने हाई कोर्ट के वकील विवेक सिंह को भी बुलवा लिया था। इस दावत के दौरान ही राजा साहब ने कुँवर के सबा से रिश्ते की बात स्वीकारी। कुछ एक लोगों ने यह अवश्य कहा कि कुँवर किसी राजपूती राजघराने से शादी करते तो बेहतर होता एक बराबरी का रिश्ता बनता। इस पर राजा साहब ने शौक़त बेग़म के भोपाल के नबाबी खानदान से ताल्लुक़ातों की बात का ज़िक्र कर कुछ हद तक लोगों की इस जिज्ञासा को शांत किया। दावत के समाप्त होने तक सभी लोगों ने कुँवर के इस सबंध से जो राजनीतिक लाभ होने वाला था उसका भी ज़िक्र किया जैसे कि इस सम्बंध के होने से कांस्टीट्यूएंसी के मुसलमान समाज के वोट मिलने की उम्मीद बढ़ेगी और समाज में यह भी मैसेज जाएगा कि कांकर राजपरिवार सही मायनों में खुले दिलदिमाग़ वाला परिवार है जिसकी सोच सिर्फ़ अपने राजपूत समाज तक सीमित नहीं है।

जब राजा साहब को विश्वाश हो गया कि कहीं से कोई विरोध नहीं होगा तो उसके बाद उन्होंने माणिकपुर राजपरिवार को सूचित करने की ठानी। इसके लिये एक दिन वह और रानी शारदा देवी राजा साहब मानवेन्द्र सिंह और महारानी रत्ना से लखनऊ जाकर मिले और उन्हें सबा और कुँवर अनिरुध्द के रिश्ते के बारे में सूचित किया।

शुरू शुरू में महारानी रत्ना ने कुछ विरोध किया पर जब राजा साहब मानवेन्द्र सिंह ने समझाया कि इसमें बुराई ही क्या है? सबा देखने भालने में सुंदर ही नहीं अति सुंदर है, एक नवाबी ख़ानदान से आती है और सबसे बड़ी बात यह कि कुँवर अनिरुध्द सिंह उसे और वह उनको प्यार करती है। इस सम्बंध से कहीं कोई राजनीतिक नुकसान भी नहीं बल्कि लाभ ही मिलने वाला है। इस सबके बाबजूद राजा साहब माणिकपुर ने एक बात कही कि यह बेहतर होता कि कुँवर महेंद्र भी एक बार भोपाल हो आते और सबा के घर वालों से मिल लेते उनके समाज में रुतवे को समझ लेते तो और भी अच्छा होता। इस पर रानी शारदा देवी ने कहा, "इसमें क्या दिक़्क़त है कुँवर महेंद्र अक्टूबर के आख़िर में लखनऊ आने ही वाले हैं तो एक बार वह और कुँवर अनिरुध्द दोनों ही भोपाल चले जायेंगे और वहाँ सभी से मिल लेंगे। दोनों ही घुड़सवारी के शौकीन भी हैं तो इसी बहाने कुछ शुगल भी हो जाएगा"

राजा साहब चंद्रचूड़ सिंह ने भी रानी शारदा देवी की बात से सहमति जताई और यह तय हो गया कि दोनों कुँवर भोपाल मौका निकाल कर घूम आएंगे।

राजा साहब ने यह बात कांकर लौट कर गौहर बेग़म को बताई तो उन्होंने भी यही कहा कि यह ख़य्याल बेहतर है सभी परिवार वालों के बीच इसी बहाने मुलाक़ात भी हो जाएगी। राजा साहब ने गौहर बेग़म से बस इतनी गुज़ारिश की कि उन दिनों में वह भी कुँवर के साथ भोपाल चलीं जाएं जिससे कि शौक़त बेग़म को कोई उज्र न हो। गौहर बेग़म ने इसे खुशी खुशी कुबूल किया और ये भी कहा, "हुकुम आपने कहा और हमने किया। इसमें कोई खास बात नहीं है मैं शौक़त आपा से बात कर लूँगी। एक बात कहूँ हुकुम कि हम चाहते हैं एक बार महारानी साहिबा भी हमारे साथ भोपाल चलें तो यह बेहतर होगा"

राजा साहब ने गौहर बेग़म की यह बात मानते हुए कहा, "ठीक है तो हम उनसे भी गुज़ारिश कर लेंगे कि वह भी आपके साथ अपने होने वाले समधियाने में एक बार घूम आएं"

जब कुँवर महेंद्र लखनऊ आये तो कुँवर अनिरुध्द सिंह ने उनसे मिल कर भोपाल चलने का प्रोग्राम फाइनल कर दिया। कुँवर महेंद्र ने इच्छा जताई कि अगर राजकुमारी शिखा भी उनके साथ वहाँ चली चलतीं तो और भी बेहतर होता। कुँवर अनिरुध्द सिंह ने कुँवर महेंद्र से कहा, "ये कौन सी बड़ी बात है शिखा भी हम लोगों के साथ चलेगी"

क्रमशः

कथांश:69

गौहर बेग़म के कहने पर राजा साहब ने महारानी से कहा, "गौहर बेग़म चाहती हैं कि जब कुँवर अनिरुध्द और शिखा जब उनके साथ भोपाल में हों तो आप भी अबकी बार उनके साथ चलें"

महारानी करुणा देवी ने राजा साहब को उत्तर देते हुए कहा, "हुकुम हमने भोपाल पिछली बार देख लिया था जब गौहर बेग़म वहाँ हॉस्पिटल में भर्ती थीं। मेरे करने के लिए अभी कुछ भी नहीं हूँ। मैं सोचती हूँ कि मेरा जाना अभी ठीक नहीं होगा। मैं उस समय ही जाना चाहूँगी जब सबा की गोद भराई का कार्यक्रम होगा"

राजा साहब ने महारानी साहिबा की बात सुन कर कहा, "यह भी ठीक है। आप रहने दीजिए हम गौहर बेग़म को समझा देंगे"

तय शुदा प्रोग्राम के तहत दोनो कुँवर गौहर बेग़म के साथ लखनऊ से सीधे भोपाल चले गए। उधर दिल्ली से शिखा और सबा दोंनों ही भोपाल पहुँच गईं। भोपाल रेलवे स्टेशन पर एक बार फिर से जब सईद की मुलाक़ात शिखा से हुई तो उसके दिल में कुछ अजीब सा दर्द उठा पर उसने चेहरे से ज़ाहिर न होने दिया। सईद उनको लेकर शौक़त मंज़िल आ गया वहाँ गौहर बेग़म और कुँवर अनिरुध्द सिंह और कुँवर महेंद्र पहले ही से पहुँचे हुए थे।

शौक़त बेग़म इतने मेहमानों को एक साथ देख कर बेहद खुश थीं। उनकी खुशी का दूसरा कारण यह भी था कि उनका होने वाला दामाद कुँवर अनिरुध्द सिंह भी सभी के साथ जो थे। उन्हें लगा कि यह बेहतर मौका है जब कुँवर महेंद्र सभी लोगों से आपस में एक दूसरे से मिल लेंगे और एक दूसरे के बारे में जान भी लेंगे।

शौक़त बेग़म ने सईद को अलग से बुला कर यह ताकीद भी कर दिया था कि वह शिखा से बराबर की दूरी बनाए रखेगा और उसके लिये किसी तरह की परेशानी का सबब नहीं बनेगा।

कुँवर महेंद्र ने सईद से कहा, "कहाँ हैं भाई आपके घोड़े जिनकी तारीफ़ हमने एक अरसे से सुन रखी है?"

सईद ने भी जवाब में कहा, "चलिये जनाब हमारे अरबी घोड़े पूरी तरह तैयार हैं आपकी ख़िदमत के लिए"

जब सब लोग तैयार हो गए तो वे शौक़त मंज़िल के बाग़ बगीचों के बीच से होते हुए सईद के क्लब हाउस आ पहुँचे। अबकी बार शिखा और सबा के साथ साथ शौक़त और गौहर बेग़म भी सभी के साथ आईं थीं जिससे कि कुँवर महेंद्र को अच्छा लगे।

सईद ने कुँवर महेंद्र से कहा, "जनाब आप खुद ही चुन लीजिये कि आपके लिये कौन सा घोड़ा ठीक रहेगा?"

कुँवर ने अस्तबल का एक चक्कर काट कर एक काले और सफ़ेद चित्ती दार घोड़े के ऊपर हाथ रखा और कहा, "मेरी तो ये चॉइस है"

सईद ने घोड़े की तारीफ़ में कहा, "यह हमारे अस्तबल की शान है और इसका नाम भी शहंशाह है। इसे बड़े प्यार से हमने पाला और बड़ा किया है"

कुँवर अनिरुध्द ने अपने लिये वही पुराने वाला घोड़ा ब्लैक ब्यूटी चुना। शिखा और सबा ने भी अपने अपने लिये एक घोड़ा चुना और रेसिंग ग्राउंड की ओर निकल पड़े। शौक़त और गौहर बेग़म क्लब हाउस में ही बैठ कर इन लोगों की घुड़सवारी के करतब देखती रहीं और आपस में बात भी करती रहीं। बातों बातों में गौहर बेग़म ने पूछ लिया, "आपा अब सईद ठीक है। उसके दिलो दिमाग़ से शिखा का भूत निकल गया कि नहीं"

"गौहर तू तो जानती है कि इश्क़ एक वो बला है जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे। फिर भी सईद के दिल में ये बात मैंने कूट कूट के बिठा दी है कि अब शिखा किसी और की अमानत है और खासतौर पर जब शिखा हमारी मेहमान बन कर अपने होने वाले शौहर के साथ यहाँ आई है तो उसे किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देना है"

"चलिये आपा आपने अपना फ़र्ज़ निभाया। हम लोगों के बस यही हाथ में है बाकी ऊपर वाला जाने किसके दिल में क्या चल रहा है"

सईद के साथ ये सभी लोग बहुत दूर तक निकल गए यहाँ तक कि शौक़त और गौहर बेग़म की निगाहों से भी बहुत दूर थे। घुड़सवारी करते करते कभी कुँवर अनिरुध्द सबा के साथ हो लेते तो कभी कुँवर महेंद्र शिखा के साथ साथ। सईद इन सभी लोगों के साथ साथ अपना घोड़ा दौड़ाता रहता। बीच बीच में जब शिखा को कोई बात करने कुँवर अनिरुध्द के पास आती तो कुँवर महेंद्र सबा के साथ हँसी मज़ाक करते रहते।

क्रमशः

कथांश:70

एक बार ऐसा हुआ कि घोड़ा दौड़ाते दौड़ाते हुए सबा अकेले बहुत दूर चली गई और उसके पीछे पीछे कुँवर महेंद्र भी अपना घोड़ा दौड़ाते चले गए। ये देख कर शिखा और कुँवर अनिरुध्द भी अपना अपना घोड़ा दौड़ाते हुए उनके पीछे पीछे चले आये। जब सब लोग घुड़सवारी कर क्लब हाउस लौटे और शौक़त और गौहर बेग़म के पास आ बैठे और चाय पी रहे थे। तब सबा को एक ओर लर जा कर, शिखा ने सबा से पूछा, "कुँवर महेंद्र बड़ा तेरे पीछे पीछे भाग रहे थे क्या बात है कहीं अब तेरा मन डोल तो नहीं रहा"

सबा शिखा की बात पर नाराज़गी से बोल पड़ी, "छी छी शिखा तू ये बात सोच भी कैसे सकती है। मेरे कुँवर से तेरा कुँवर अच्छा नहीं है। मेरा कुँवर मेरा कुँवर ही नहीं मेरा हुकुम भी है"

"मुझे लगा कि कहीं दिल न बदल गया हो?"

"शिखा तू बहुत पागल लड़की है। तू ऐसा सोच भी कैसे सकती है"

इस पर शिखा ने सबा को लंदन वाली बात बताई, "किस तरह कुँवर महेंद्र से एडिलेड स्टीवेंसन से चिपक रही थी। कैसे बार बार कुँवर महेंद्र को चूम रही थी। कुँवर महेंद्र भी उसे अपने अगल बगल ही रख रहे थे और खुले आम उसको प्यार कर रहे थे। मुझे लगा कि कहीं कुँवर महेंद्र तुझ पर भी डोरे न डाल रहे हों"

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, मैं तो तेरे भाई पर मर मिटी हूँ, अब मेरी ज़िंदगी पर किसी और का कोई अख़्तियार नहीं है"

शिखा सबा की बात सुन कर बोल पड़ी, "इन मर्दों के कोई भरोसा नहीं है कब किसके ऊपर फ़िदा हो जाएं?"

"तेरा भाई ऐसा नहीं है, मैंने उसे करीब से जाना पहचाना है"

"मैं अपने भाई के बारे में नहीं कह रही हूँ, मैं कुँवर महेंद्र के बारे में कह रही हूँ", शिखा बोल उठी।

सबा को शिखा की बातें अच्छी नहीं लग रहीं थीं, "तू यार पहले तो इतनी शक़्क़ी मिज़ाज़ नहीं थी। अब तुझे क्या हो गया है? जब से तू लंदन से लौटी है मुझे बहुत बदली बदली सी दिख रही है"

शिखा कुछ सोच में पड़ गई पर हिम्मत जुटा के बोली, "मैं ऐसी नहीं थी जैसी अब हो गई हूँ। मुझको भी बहुत खराब लगता है जब मैं यह सब तुमसे कहती हूँ। पर मैं करूँ क्या मेरे दिल में एक शक़ का कीड़ा बैठ गया है जो मुझे ये सब सोचने पर मज़बूर करता है?"

"तू अपने भविष्य को लेकर कुछ अधिक ही चिंतित रहने लगी है यह ठीक नहीं है इससे तेरे स्वास्थ्य पर बुरा असर तो पड़ेगा ही और तेरे वैवाहिक जीवन मे भी ख़राबी पैदा करेगा"

शिखा बोली, "मैं जानती हूँ, तू बिल्कुल ठीक कह रही है पर कुँवर महेंद्र को लेकर मैं जितनी उत्साहित थी मैं अब उतनी ही हतोत्साहित महसूस कर रही हूँ"

सबा ने कहा, "शायद इसीलिए अरेंज्ड मैरिज कभी कभी मिसकैरिज हो जाती हैं। दो दिल एक जो एक दूसरे से मोहब्बत करते हैं कम से कम इस तरह एक दूसरे पर अविश्वास नहीं करते"

"सबा तू किस्मत वाली है"

दोंनों सहेलियों में यही सब बात चल ही रहीं थीं कि तभी सईद भी इन लोगों के करीब आ चुका था, शायद अपने दिल के हाथों मजबूर होकर। आते ही उसने शिखा से पूछा, "कैसा रहा आज का मॉर्निंग सेशन"

"ठीक ही था। क्या बात है बड़े उदास उदास से दिखाई दे रहे हो तबियत तो ठीक है?", शिखा ने सईद से पूछा।

इससे पहले कि सईद कुछ बोलता सबा बोल पड़ी, "भाई को क्या हुआ? वह तो हमेशा मस्त रहता है। अपने काम में लगा रहता है, उसे घोड़ों से प्यार है और उसके घोड़ों को उससे"

सईद कुछ अधिक न कह कर बस इतना ही बोला, "क्या करें जब इंसान इंसान से मोहब्बत ही न करे तो जानवर ही अच्छे हैं कम से कम अपने मालिक के प्रति बफादार तो होते हैं"

शिखा सईद की ओर देखती रह गई और वह दूर चला गया।

क्रमशः

कुछ कही-कुछ अनकही सी अपनी बात:

कल हमारे परममित्र बी एन पाण्डेय जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा था कि अब मिलन की बेला में कुँवर महेंद्र और शिखा का मिलन और कुँवर अनिरुध्द का मिलन हो ही जाना चाहिए। उनकी आज्ञा हम अवश्य पालन करेंगे। एक फांस अभी फंसी हुई है बस वह निकल भर जाए। इसी उधेड़बुन में लगा हूँ कि कहीं से कोई रोशनी नज़र भर आये।

बाद बकिया जैसे हमारे प्रभु हमसे जो कहेंगे हम वही करने के लिये वचनबद्ध हैं।

जै श्रीराम।


कथांश:71

शाम के खाने पर सब लोग डाइनिंग टेबल पर इक्कट्ठे हुए तो आपस मे हँसी मज़ाक का दौर चल पड़ा। भोपाल शहर के नवाबी रंगों की बातें भी चलीं। जब भोपाल की बात हो और शौक़त बेग़म भला अपने ख़ानदान की बात न करें ये तो हो ही नहीं सकता। उन्होंने भी नवाबी वक़्त के किस्से खूब सुनाए। अपनी जवानी के वक़्त के, कुछ उसके बाद के कि कैसे कैसे ठाठ हुआ करते थे इस ज़माने में।

कुँवर महेंद्र ने भी अपने इंगलेंड के दिनों के बारे में खूब बढ़चढ़ कर बताया।

शिखा ने भी अपनी उपस्थित बनाये रहने के लिये कांकर के खूब किस्से सुनाए।

कुँवर अनिरुध्द वैसे भी कम बोलते थे और वह आज भी चुप ही बैठे हुए थे। सबा उन्हें ही देखे जा रही थी। उन्हें देख गौहर बेग़म बोलीं, "हमारा कुँवर न जाने किन ख्यालों में डूबा रहता है कि उसके पास खुद के लिये भी वक़्त नहीं है। हमेशा बस पब्लिक के कामों के बारे में सोचता रहता है"

कुँवर अनिरुध्द ने गौहर बेग़म की ओर देखते हुए कहा, "माँसी ऐसी तो बात नहीं है"

"ऐसी ही बात है। पता नहीं निकाह के बाद भी ये हज़रत ऐसे ही रहेंगे कि इनकी देखा देखी सबा को भी चुपचुप रहना पड़ेगा", शौक़त बेग़म बीच में बोल उठीं।

कुँवर अनिरुध्द ने शौक़त बेग़म की ओर देखते हुए कहा, "नहीं ऐसी कोई बात नहीं मैं आपकी बेटी को कभी कोई शिकायत का मौक़ा नहीं दूँगा। बस मेरा आपसे इतना ही वायदा है"

कुँवर महेंद्र ने भी सईद को छेड़ते हुए कहा, "अरे सईद भाई आप कैसे खामोश गुमशुम से बैठे हैं। आप भी कुछ बोलिये। हाँ, एक बात तो बताइए कि आप हमें अपने निकाह में बुलाएंगे या नहीं"

सईद बड़े अनमने से मन से बोल पड़ा, "कुँवर साहब आप लोग बड़ी क़िस्मत वाले हैं जिन्हें अपनी अपनी मंज़िल मिली। हमें तो आसमाँ में दूर तक कोई सितारा नज़र नहीं आता, कैसे कह दूँ कि हम आपको अपने निकाह में बुलाएंगे। हाँ अगर कोई रिश्ता लेकर आ ही गया तो ज़रूर ज़रूर बुलाएंगे"

बेटे के मुँह से इस तरह के बोल सुन कर शौकत बेग़म से रहा न गया और वह बोल पड़ीं, "मेरा चाँद से बेटा है। उसका बढ़िया कारोबार है। माशाअल्लाह अच्छा खासी ख़ानदान से है तू कहे तो सही तेरे लिये एक रिश्ता नहीं हज़ारों आएंगे। इतना ग़मज़दा होने की भी ज़रूरत नहीं है"

गौहर बेग़म ने भी शौक़त बेग़म की बातों से इत्तफ़ाक़ रखते हुए कहा, "बिल्कुल एक नहीं हज़ारों लड़कियां मिलेंगी हमारे सईद के लिये"

"अभी तो एक भी ना मिली है खालाजान", कह कर सईद ने शिखा की ओर बड़े ध्यान से देखा।

बातों का रुख दूसरी ओर ले जाने के लिहाज़ से गौहर बेग़म ने सईद से कहा, "सईद पिछली मर्तबा तूने ज़नाब बशीर बद्र से मुलाक़ात क्या कराई हम तो उनके मुरीद हो गए। क्या ये मुनासिब हो पायेगा कि एक दिन हमें उनकी हवेली पर ले चल"

"क्यों नहीं खालाजान, मैं कल के रोज़ ही बात कर आपको उनके यहाँ ले चलूँगा"

इसके बाद सभी लोगों के बीच देर रात तक हँसी मज़ाक होता रहा। जैसा अमूनन ऐसे बड़े घरों में होता है देर रात तक जागना और सुबह देर तक सोना। सभी लोग अपने अपने कमरों में आराम फरमाने चले गए।

शिखा और सबा एक ही कमरे में साथ साथ थीं। उधर शौक़त बेग़म और गौहर बेग़म एक साथ थीं। दोनो ही कमरों के लोग आपस में देर रात तक गुफ़्तगू करते रहे। दोनों कुँवर अपने अपने कमरों में चैन की नींद सोते रहे।

क्रमशः


कथांश:72

सबा और शिखा दोंनों की आँखों में नींद नहीं थी। दोनों ही अपने अपने ख़यालों में डूबी हुईं थीं। शिखा कुँवर महेंद्र की हरकतों से मन ही मन नाराज़ थी और उधर सबा भी यह बात अच्छी तरह जान रही थी।

सबा को लगा कि उसके पास यह एक आख़िरी मौका है जब कि एक बार सईद के दर्द को शिखा से बयाँ कर वह अपना वायदा निभा सकती है। उसने शिखा से कहा, "शिखा एक बात बता तेरे दिमाग़ में जो कुछ कुँवर महेंद्र को लेकर चल रहा है तो क्या तुझे लगता है कि तू उनके साथ चैन सुकून की ज़िंदगी बिता पाएगी?"

"सबा मैं अभी कुछ नहीं कह सकती। मुझे कुँवर महेंद्र के बारे में न जाने क्यों ऐसे वैसे ख़य्याल आते हैं? मुझे लगता है कि वह कहीं न कहीं ग़लत हैं पर मैं ये हंड्रेड परसेंट स्योरिटी से नहीं कह सकती"

"एक बात और बता अगर तुझे कोई कड़ा फैसला लेना पड़े तो क्या तू उसके लिये तैयार है?"

"क्या मतलब?"

"अगर ये प्रूव हो जाये कि कुँवर महेंद्र ठीक इंसान नहीं है तो क्या तू कुछ तय कर पायेगी कि वह तेरे क़ाबिल नहीं हैं?"

"क्यों नहीं, बिल्कुल मैं अपने भविष्य के लिये जो ठीक समझूँगी वह मैं अवश्य करूँगी"

"तो सुन कल से मैं कुँवर महेंद्र के आसपास रहने की कोशिश करूँगी और तू उन पर अपनी निग़ाह रखना। अगर वह कोई भी ओछी हरक़त करें तो तू जो ठीक समझे वह करना"

शिखा ने कहा, "मैं भी यही सोच रही थी पर समझ नहीं पा रही थी कि मैं ये बात तुझसे कैसे कहूँ?"

"तो ठीक है कल से हमारा प्रोग्राम शुरू होगा। एक बात का ख़्याल रहे कि इन सब चक्कर में कहीं मेरे और तेरे भाई के बीच कोई ग़लतफ़हमी न आ जाये"

"नहीं तू इसकी चिंता मत कर। ये मेरी ज़िमेदारी होगी। शिखा एक बात आख़िरी बार बता, तेरे दिल में कभी किसी और से प्रेम करने की बात नहीं आई?"

"सबा यह कैसा उटपटांग सवाल है?"

"ये इसलिये कि कोई तुझे बहुत प्यार करे और तू उसकी ओर एक नज़र भर के भी न देखे इसलिये"

"देख सबा देखने वाले तो हर जगह खूबसूरत लड़िकयों को घूरते ही रहते हैं तो क्या हम हर उस लड़के से मोहब्बत कर बैठें?"

"शिखा मैंने ये तो नहीं कहा। मेरा मक़सद तुझसे बस इतना जानने भर का था कि क्या तेरे दिल में सईद भाई को लेकर कभी कुछ हुआ?"

"क्या, कभी कुछ नहीं लगा और न उसकी नज़र में मुझे अपने लिये कोई प्यार दिखा !"

"तब चल सो जा। अब सो भी जा। कल देखते हैं कि क्या करना है?"

सुबह सुबह उठ कर कुँवर अनिरुध्द सिंह तो सैर के लिये निकल गए। सबा भी उनके साथ मॉर्निंग वॉक पर चल पड़ी। रास्ते में उसने वे सब बातें उन्हें बताईं जो देर रात उसके और शिखा के बीच हुईं थीं। कुँवर अनिरुध्द ने सबा की योजना के बारे में बात करते हुए पूछा, "क्या ये सब करना ज़रूरी है?"

"मेरे ख़्याल से बहुत ज़रूरी है नहीं तो शिखा की ज़िंदगी खराब ही जायेगी"

कुछ देर बाद कुँवर महेंद्र भी उठ गए। उसके बाद एक एक करके सभी लोग नीचे हाल में सुबह की चाय पर मिले। इसी बीच कुँवर अनिरुध्द और सबा भी मॉर्निंग वॉक से लौट आये। शिखा की पैनी निग़ाह कुँवर महेंद्र पर बनी हुई थी जो ये महसूस कर रही थी कि वह हमेशा सबा की ओर देखा करते हैं जैसे कि उससे कुछ कहना चाह रहे हैं पर कह नहीं पा रहे हैं।

क्रमशः


कथांश:73

जब आज सभी लोग हॉर्स राइडिंग के लिये निकले तो उन सब में सबा सबसे ज्यादा चहक रही थी। उसने आज अपने लिये वही घोड़ा चुना था जो कल कुँवर अनिरूद्ध के पास था। कुँवर महेंद्र अपने कल वाले घोड़े ब्लैक ब्यूटी पर ही थे। कुँवर अनिरुध्द और शिखा जानबूझ कर पीछे पीछे चल रहे थे। सईद इन दोंनों के पीछे अपने घोड़े पर सवार हो चला जा रहा था।

सबा ने जानबूझ कर अपने घोड़े के ऐंड लगाई और उसे दौड़ाते हुए बहुत दूर निकल गई। उसे दूर जाते देख कुँवर महेंद्र एक बार तो पलट कर देखे कि कुँवर अनिरुध्द या शिखा तो उसके पीछे नहीं आ रहे हैं और जब वह सन्तुष्ट हो गए कि वे दोंनों अपने बातचीत में मग्न हैं तो वह अपना घोड़ा दौड़ाते हुए सबा के पीछे तेजी के साथ निकल पड़े।

कुँवर अनिरुध्द और शिखा ने भी अपने अपने घोड़ों के ऐंड लगाई और फर्राटे दार तेजी से कुँवर महेंद्र के पीछे पीछे हो लिए जिससे कि वे उनके ऊपर निग़ाह रख सकें। कुँवर महेंद्र सबा के जब बहुत करीब आ गए तो उन्होंने सबा से पूछा, "आर यू ओके? मुझे लगा कि आपका घोड़ा बेकाबू होकर आपको ले उड़ा"

सबा जो इसी मौके की तलाश में थी बोली, "आई एम परफेक्टली ओके। डोंट वरी अबाउट मी"

"चलिये यह ठीक है मैं आपको लेकर चिंतित हो उठा था"

"आप नाहक ही चिंतित हो उठे"

इतने में कुँवर अनिरुध्द और शिखा भी उनके पास आते हुए देख कर बोले, "हाँ भाई। आपके हमदम कुँवर जब हैं तो हमें चिंता करनी भी नहीं चाहिए"

"जी, बज़ा फ़रमाया"

"बेहतर" कह कर कुँवर महेंद्र कुँवर अनिरुध्द और शिखा को देखते हुए बोले, "डोंट वरी, शी इज फाइन। आई केम आफ्टर हर थिंकिंग शी इज इन डेंजर"

इसके बाद वे सभी अपने अपने घोड़ों को कूल करते हुए धीरे धीरे अक्टूबर की धूप सेंकते हुए क्लब हाउस पर वापस आ गए। वहाँ गौहर और शौक़त बेग़म पहले ही से उनके लौटने की राह देख रहीं थीं। सईद के भी वहाँ आ जाने पर उन लोगों ने एक कप चाय पी और शौक़त मंज़िल अपनी हॉर्स राइडिंग के कम्पलीट हो जाने पर वापस आ गए।

दोपहर के वक़्त शिखा और कुँवर अनिरुध्द जब सबा से मिले तो उन्होंने कुँवर महेंद्र के व्यवहार के बारे में पूछा तो सबा ने बताया, "शिखा मेरे ख़्याल से तुम अपने मन से ये ख़्याल निकाल दो कि कुँवर महेंद्र ख़राब इंसान हैं। वे मेरे साथ एक इज़्ज़तदार आदमी की तरह पेश आये। मैं नहीं कह सकती कि उनकी नीयत में कोई खोट है"

कुँवर अनिरुध्द ने सबा की बात सुन कर शिखा से कहा, "अब तुम ये ख़्याल अपने दिमाग़ से हमेशा हमेशा के लिये निकाल दो। कुँवर महेंद्र के साथ अपने वैवाहिक जीवन की तैयारी करो। चिंता मत करो में हमेशा तुम्हारे साथ हूँ कोई भी ऐसी वैसी बात नहीं होने दूँगा"

सबा ने भी जोर देकर शिखा को समझाया कि कुँवर महेंद्र के प्रति वह अपने मन मे कोई दुर्भावना न लाये। सबा और कुँवर अनिरुध्द की बातें सुन कर शिखा को तसल्ली हुई और वह बोल उठी, "सबा मैं किन शब्दों में तेरा शुक्रिया अदा करूँ मेरी समझ में नहीं आ रहा है। आज तेरी वजह से मेरे दिमाग़ की सारी उनझनें खत्म हो गईं हैं"

कुँवर ने शिखा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "चलो अच्छा हुआ कि समय रहते हम लोगों ने कुँवर महेंद्र के बारे में तेरे शक़ दूर करने में मदद की। सबसे बढ़िया बात तो यह है कि अब तू उनके और क़रीब आने की कोशिश कर"

"जी भइय्या"

जब सईद और सबा का आमना सामना हुआ तो वह सईद से यह कहने में नहीं चुकी कि वह अब शिखा का ख़याल हमेशा हमेशा के लिए निकाल दे। उसके दिल और दिमाग़ में वह नहीं केवल कुँवर महेंद्र बसते हैं।

शाम को सईद सभी लोगों के साथ ज़नाब बशीर बद्र के यहाँ आ पहुँचा। बशीर भाई और उनके घर वालों के बीच एक लंबी बातचीत का दौर चला। बशीर बद्र की भाभी जी ने सईद की मुलाक़ात अपनी एक दोस्त की भांजी शकीला से कराई जो भोपाल यूनिवर्सिटी से एम ए कर रही थी। शकीला से मिल कर सईद का मन कुछ हल्का हुआ। बातचीत में गौहर बेग़म ने बशीर बद्र की एक ग़ज़ल अपने नाम कर ली। उसे वहीं सुर देकर सबको सुना कर सभी का दिल जीत लिया।

होठों पे मुहब्बत के फसाने नहीं आते
साहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने नहीं आते

पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते

दिल उजड़ी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख् हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फो की तरह हैं
ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते

अहबाब भी गैरों की अदा सीख गये हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते

चलते चलते वह हो गया जिसकी उम्मीद किसी को भी न थी। शौक़त बेग़म ने सईद के लिये शकीला का हाथ माँग के सब को सकते में ला दिया। शकीला ने भी सईद से रिश्ते के लिये हाँ क्या भर दी। सब बात आनन फानन में तय हो गईं।

क्रमशः

कथांश:74

देर रात शौक़त मंज़िल आ कर सभी ने सईद को मुबारक़बाद पेश की और उम्मीद ज़ाहिर की कि आने वाले दिन उसके लिये खुशियों भरे हों। शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का तहेदिल से शुक्रिया करते हुए कहा, "तूने अगर बशीर भाई के यहाँ चलने की जिद्द न की होती तो कुछ भी न होता" और फिर कुँवर महेंद्र की ओर पलट कर देखते हुए कहा, "हम तो आपके भी शुक्रगुज़ार हैं कि आप हमारे गरीबखाने पर तशरीफ़ क्या लाये कि हमारे सईद की तो किस्मत ही चमक गई"

कुँवर महेंद्र बोल पड़े, "चलिये सईद भाई भी अब हम लोगों के साथ ही अपना निकाह कर लेंगे"

"कुँवर आपने यह क्या बात कह दी। आपने तो मेरे मुँह की बात छीन ली। मैं तो कहती हूँ कि तीनों शादी एक साथ एक ही जगह हो जाएं कितनी अच्छी बात होगी" शौक़त बेग़म के मुँह से अचानक ही ये बोल निकल पड़े।

दोनों कुँवर, शिखा और सबा तो हवेली के अंदर चली गईं पर शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का हाथ पकड़ते हुए कहा, "गौहर जो बात जुबां से अचानक ही निकल जाए वह सच होकर ही रहती है। एक काम कर तू राजा साहब से बात कर हम लोग सारा इंतज़ाम यहीं 'नूर-ए-सबाह पैलेस' में कर देंगे। बहुत ही आलीशान ढँग से तीनों शादियां एक साथ यहीं से हो जायेंगी"

"आपा, आप कह तो ठीक रहीं हैं पर हुकुम इस बात के लिये तैयार होंगे या नहीं कहना कुछ मुश्किल है" गौहर बेग़म ने शौक़त बेग़म को जवाब देते हुए कहा, "मेरे ख़य्याल में इस पर ठंडे दिमाग़ से सोचने की ज़रूरत है"

शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का हाथ पकड़ा और बोलीं, "चल अंदर चल कर बात करते हैं कोई न कोई तो रास्ता निकले ही आयेगा। सबसे बड़ी बात तो आज ये हो गई कि हमारे सईद के चेहरे की रौनक़ दुबारा वापस आ गई"

देर रात जब दोनों बहनें आसपास ही एक ही बिस्तर पर आराम फरमा रहीं थीं। उस वक़्त गौहर बेग़म ने कहा, "एक काम तो हो सकता है कि तू पहले बशीर भाई के ज़रिए से ये बात तय कर ले कि क्या वे भी शकीला की शादी दिसम्बर में करने के लिये तैयार हैं कि नही?"

"मैं एक दो दिन में उनके यहाँ जाऊँगी तो उनसे बात कर लूँगी"

"मैं राजा साहब से यह तो कह सकती हूँ कि वे दस तारीख़ को शिखा की शादी निपटा कर बाद में किसी भी वक़्त दिसंबर में ही कुँवर अनिरुध्द के निकाह की रस्म सईद के निकाह की रस्म के साथ ही भोपाल में ही अता फरमाएँ और बाद में शानो शौक़त के साथ कुँवर का व्याह हिंदू रीतिरिवाजों से कांकर में रखें। क्योंकि कुँवर के राजनीतिक लोगों का भी ख़य्याल रखना होगा"

"चल ऐसे ही कुछ बात चलाना अगर मान जायें तो ठीक नहीं तो हम ही कांकर चले चलेंगे", शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म की बात रखते हुए कहा।

क्रमशः


कथांश:75

कांकर लौट कर गौहर बेग़म ने राजा साहब से कहा, "हुकुम आपके सब ग़म हमने अपने ऊपर जो लिये थे वे सब के सब ठीक ढँग से सुलझ गए"

और फिर बाद में राजा साहब को वे सारी बातें जो भोपाल में बीतीं एक एक कर सिलसिलेबार सुनाईं। राजा साहब मारे खुशी के फूले नहीं समाए और उन्होंने गौहर बेग़म को अपनी बाहों में लेकर खूब जोरों से घुमाया। जब मन की खुशी काबू में आई तब वे गौहर बेग़म से बोले, "शुक्रिया तो बहुत ही छोटा लफ्ज़ है, आज आप जो चाहें वह माँग लें"

गौहर बेग़म को भी लगा कि इससे उपयुक्त समय और कौन सा होगा तो उन्होंने भी राजा साहब से यह कह कर सब कुछ माँग लिया जिसका वह वायदा शौक़त बेग़म से कर के आईं थी। मसलन शिखा की शादी के बाद कुँवर का निकाह भोपाल में ठीक उसी दिन हो जिस दिन कि सईद का निकाह होना हो और यह कि बाद में कुँवर को व्याह हिंदू रीतिरिवाजों से कांकर में जोर शोर और पूरे राजकीय तरीके से ढोल नगाड़ों के बीच हो।

अक्टूबर में शारदीय दुर्गा पूजन की इस साल विशेष व्यवस्था कांकर में की गई। इस वर्ष भी पूर्व की भाँति अवधूत आश्रम के महहमण्डलेश्वर महाराज हरिद्वार से विशेष रूप से पधारे। हर साल की तरह इस साल भी ब्रम्ह भोज और बिरादरी भोज रखा गया। बिरादरी भोज के अवसर पर कांकर राजपरिवार के कुलपुरोहित शाश्त्री जी ने भी राजकुमारी शिखा और कुँवर महेंद्र की शादी की तिथियों की घोषणा की और बाद में सभी को यह भी सूचित किया कि सभी के आँखों के तारे और कांकर कुँवर तथा खजूरगांव के राणा कुँवर अनिरुध्द सिंह का विवाह भोपाल के राजपरिवार की नवाबज़ादी सबा के साथ होना तय पाया गया है। महामंडलेश्वर ने भी राजकुमारी शिखा और कुँवर अनिरुध्द सिंह को आशीर्वाद दिया। समस्त बिरादरी ने राजपरिवार को इस दुहरी खुशी के लिए मुबारक़बाद दिया और राजकुमारी शिखा और राणा कुँवर अनिरुध्द सिंह को हार्दिक बधाई देते हुए उनके सुंदर भविष्य के लिए प्रार्थना की।

दस दिसंबर को राजकुमारी शिखा का विवाह ख़ूब धूम धाम के बीच कांकर में राजकुमार माणिकपुर कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह के साथ सम्पन्न हुआ। कांकर राजपरिवार ने अपनी चहेती राजकुमारी शिखा बेटी को नम आँखों से विदा किया। विदा होते ही रानी शारदा देवी राजा साहब के सीने से चिपक कर ख़ूब रोईं। महारानी करुणा देवी और गौहर बेग़म ने उन्हें समझाया कि ये रानी शारदा देवी यह समय रोने का नहीं है खुशियाँ मनाने का है। यह तो जग की रीति है कि बेटी व्याह कर पराये घर जाती है। अब तो आप अपने महल की शोभा बढ़ाने के लिये बहू रानी लाने के लिये भोपाल चलने की तैयारी करें।

तयशुदा प्रोग्राम के अनुसार कांकर राजपरिवार और खजूरगांव के ओहदेदार और मंसबदारों के साथ भोपाल के लिये रवाना हो गया। भोपाल में एक शानदार जलसे में सईद का निकाह शकीला के साथ और कुँवर अनिरुध्द का निकाह सबा के साथ जोशोखरोश के साथ पूरा नूर-ए-सबाह पैलेस में सम्पन्न हुआ।

शौक़त बेग़म राजपरिवार के साथ ही भोपाल से कांकर आ गईं। बाद में पूरे राजसी ठाठबाठ के साथ राणा कुँवर अनिरुध्द सिंह का विवाह नवाबजादी सबा के साथ वेद मंत्रों के उच्चारण के बीच संपन्न हुआ। ऐश महल से विदा हुई सबा जिनका पुनः नामकरण कुँवरानी पद्मिनी हुआ। राणा कुँवर अनिरुध्द सिंह और कुँवरानी पद्मिनी के साथ अपनी तीनों माताश्री महारानी करुणा देवी, रानी शारदा देवी और माँसी गौहर बेग़म तथा राजा साहब के साथ शहनाई की मधुर धुन और ढोल नगाड़ों के बीच सूर्य महल में पधारे।

यथोचित स्वागत सम्मान के साथ कुँवर और कुँवरानी अपने कक्ष में आये। कुलपुरोहित शाश्त्री जी ने विधिविधान से पूजा अर्चना कराई और उपस्थित लोगों ने उन्हें हृदय से आशीष दिया।

रात्रि की मधुर बेला में दो दिल मिल रहे थे, चाँद आसमान पर खिलखिला के हँस रहा था। कुँवर अनिरुध्द सिंह कुँवरानी पद्मिनी के चेहरे को अपने सीने पर रख बड़े प्रेम से निहार रहे थे। आज कुँवर ने पहली बार कुँवरानी पद्मिनी के भाल पर पड़ी एक शोख़ लट को हटाते हुए कहा, "पद्मिनी क्या आप मेरी एक इच्छा पूरी करेंगी?"

कुँवरानी पद्मिनी ने पूछा, "क्या मेरे हुकुम?"

"मैं चाहता हूँ कि कल से आप अपना केश विन्यास कुछ इस प्रकार करें कि आपके भाल पर की माँग ठीक बीचोबीच से निकलने की जगह कुछ बाएं की ओर हट के निकले। मेरी दादी साहिबा इस तरह का केश विन्यास करतीं थीं और मुझे वे बहुत अच्छी लगतीं थीं"

"बस इतनी सी बात हुकुम", यह कह कर कुँवरानी पद्मिनी उठीं आईने के सामने आ खड़ी होकर टेडी माँग निकाली और सिंदूरदानी अपने हाथ में ले कुँवर के सामने आ खड़ी हुईं और बोलीं, "लीजिये भर दीजिये इस टेड़ी माँग में मेरे सुहाग का सिंदूर"

क्रमशः

कथांश:76

वैवाहिक कार्यक्रमों से फुरसत पा कुँवर और कुँवरानी पद्मिनी हनीमून के लिये स्पेन और पुर्तगाल के लिए चले गए। कुछ दिन वहाँ बिता कर जब वे लौटे तो कुँवर अपने राजनीतिक काम में लग गए। इधर राजपरिवार में दो दो शादियों के कारण क्षेत्र का जो काम छूट रहा था उस पर अपनी पैनी निगाह रखना शुरू किया।

वक़्त का क्या वह तो अपने हिसाब से चलता ही रहता है। राजनीतिक उटख पटख के बीच 1977 के लोक सभा के चुनावों की घोषणा हो गई। कुँवर की सीट से ही प्रधानमंत्री जी के कनिष्ठ पुत्र ने इलेक्शन लड़ने का मन बनाया जिसके कारण कुँवर की टिकट कट गई। कुँवर अपनी टिकट कटने से दुःखी थे पर राजा साहब ने उन्हें समझाया कि यह वक़्त विरोध का नहीं है बल्कि राजनीतिक सूझबूझ से काम लेने का है। जब कुँवर की मीटिंग प्रधानमंत्री से हुई तो उन्होंने कुँवर के काम की बहुत तारीफ़ करते हुए उन्हें राज्य सभा में नामित करने तथा कैबिनेट में मंत्री पद देने का वायदा कर कुँवर से अपने कनिष्ट पुत्र के लिये मदद की गुहार की।

राजनीति का पहिया कुछ ऐसा चला कि कांग्रेस का समस्त उत्तरी प्रान्तों में सफ़ाया हो गया। प्रधानमंत्री स्वयं रायबरेली से चुनाव हार गईं। प्रधानमंत्री के स्वयं चुनाव हार जाने के कारण कांग्रेस की बहुत किरकिरी हुई। एक सज्जन जो कि रायबरेली के ही थे जब उनसे मज़ाक मज़ाक में किसी ने यह कहा कि कांग्रेस सब जगह से हार जाती उसका ग़म नहीं पर रायबरेली के लिये जिन्होंने इतना कुछ किया कम से कम रायबरेली के लोगों को उनको वोट देकर जीतना ही चाहिए था। इस पर दूसरे सज्जन जो कि रायबरेली के ही रहने वाले थे, उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया, "कांग्रेस अगर रायबरेली से हार गई तो इसमें ताज़्ज़ुब की क्या बात है, रायबरेली के लोग भी तो आखिरकार गेहूँ की रोटी खाते हैं"

वाक़ई में उस समय देश के जिस जिस भाग में गेहूँ खाया जाता था वहाँ से कांग्रेस का बिल्कुल सफाया सा हो गया था।

देश में जनता दल की सरकार बनी। पूर्व प्रधानमंत्री के ऊपर सत्ता के गलत उपयोग के आरोप लगे जिनकी जाँच के लिये शाह कमीशन नियुक्त किया गया, उन्हें जेल में डाल दिया गया। शाह कमीशन के दौरान जो कुछ हुआ सो हुआ परन्तु जनता दल के अंतर्कलह के कारण जनता दल की सरकार मात्र ढाई साल में ही गिर गई और देश मे फिर से 1980 में पुनः चुनाव कराने की घोषणा हो गई।

चुनाव प्रचार में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी पूरी शक्ति झोंक दी। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने धुआँधार प्रचार देश भर में किया। इसी प्रचार के अंतर्गत एक चुनावी सभा को सम्बोन्धन करने हेतु जब पूर्व प्रधानमंत्री जिला गोंडा पहुँची तो वहाँ के लोकसभा के सदस्य कुँवर आनंद सिंह, राजा साहब मनकापुर ने उन्हें अपने जिले के पिछड़ेपन के बारे में बताया। उसी दिन रात्रि विश्राम के लिए वे मनकापुर कोट में रूकीं। उन्होंने राजा साहब कुँवर आनंद सिंह जी से वायदा किया कि अगर कांग्रेस पार्टी सत्ता में दोबारा आती है तो वह इस क्षेत्र के विकास के लिये कोई ठोस कदम अवश्य उठाएंगी।

इन चुनावों में कांग्रेस एक बार फिर से विजय श्री प्राप्त कर केंद्र में सत्ता में आ गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने वायदे के मुताबिक़ कुँवर को कैबिनेट रैंक का मंत्री ही नहीं बनाया बल्कि उन्हें सबसे महत्वपूर्ण विदेश विभाग भी दिया।

इसके बाद कुँवर ने राजनीति में मुड़ कर नहीं देखा और वह प्रधानमंत्री के बहुत ही नज़दीकी मन्त्रियों की श्रेणी में आ गए।

राजा साहब की सूझ बूझ और कुँवर की अपनी मेहनत रँग लाई। इस तरह एक लंबे अंतराल तक कुँवर ने अपने क्षेत्र के साथ साथ रायबरेली के हितों का भी ध्यान रखा।

रायबरेली में आई टी आई यूनिट के एक्सपेंशन के तहत बेल्जियम की बेल टेलीफ़ोन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के साथ सहयोग कर क्रॉस बार टाइप के एक्सचेंज बनाने का काम शुरू किया गया। इसके तहत लगभग पाँच हज़ार लोगों को रोज़गार मिला। 2 अप्रैल, 1984 को प्रधानमंत्री आई टी आई लिमिटेड के प्रांगण में पधारी और उन्होंने क्रॉस बार यूनिट का लोकार्पण कर इसे देश को समर्पित किया। इस मौके पर उन्होंने यह माना कि आई टी आई के लिये क्रॉस बार टेक्नोलॉजी नई नहीं है और यह उनका कोई अंतिम कार्य भी नही है, इसके बाद भी वे कई और काम करने की सोच रहीं हैं।

इसी बीच एक दिन प्रातः काल में कुँवर आनंद सिंह जी प्रधानमंत्री जी से अपनी कांस्टीट्यूएंसी के उत्थान के सम्बन्द्ध में मिले और उन्हें उनका किया हुआ वायदा याद दिलाया। ठीक उसी दिन दोपहर से पहले कैबिनेट मीटिंग में जब आई टी आई लिमिटेड के एक्सपेंशन की योजना लेकर तत्कालीन संचारमंत्री जो केरल प्रदेश के रहने वाले थे अपना प्रस्ताव कैबिनेट के समक्ष रखा। जैसे ही आई टी आई लिमिटेड के विस्तार की योजना के बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री जी को सूचित किया गया जिसके तहत एक प्लांट पलक्कड़ और दूसरा बंगलुरू में लागये जाने का प्रस्ताव था। इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जी ने अपना अंतिम निर्णय लेते हुए कहा, "Let one of these plants be located in district of Gonda of Uttar Pradesh"

बस फिर क्या था और किसकी हिम्मत थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जी की बात को कोई काट सके। उसके बाद आई टी आई के कर्मचारियों और अधिकारियों ने बंगलुरू में प्लांट लगाने के लिये हो हल्ला किया अंततः जो एक कमेटी साइट सिलेक्शन के लिये बनी थी उसने एक एक प्लांट मनकापुर, पल्लकड तथा बंगलुरू में ई एसएस ई 10 B सिस्टम के प्लांट लगाने की संतुति दी।

इस तरह आईटीआई लिमिटेड की तीन यूनिट उत्तर प्रदेश के हिस्से में आ गईं।

रायबरेली में यूपी सरकार का उपक्रम यूपी टायर्स एंड ट्यूब लिमिटेड के साथ साथ स्वदेशी कॉटन मिल तथा पेपर मिल इत्यदि भी इसी समय में वहाँ लगे। दरियापुर में एक शुगर फैक्ट्री भी लगाई गई। फुरसरगंज में सिविल एविएशन अकादमी खोली गई। फिरोज़ गाँधी कॉलेज को अपग्रेड किया गया। कुछ और भी महत्वपूर्ण निर्णयों के कारण अवध क्षेत्र का सर्वांगीण विकास संभव हो सका।

उत्तर प्रदेश में भी सड़को की स्थित में सुधार आने लगा, किसानों की भी स्थित पहले से बेहतर हई, स्कूलों और क्षात्रों के भले के लिये भी ज़ोरदार तरीके से काम शुरू किया गया। कुँवर के कुछ ख़ास प्रोजेक्ट्स जैसे कि बनारस, इलाहाबाद और कानपुर के बीच रिवर क्रूज सेवा शुरू हो गई, गंगा नदी के तट पर एक ओर पिकनिक स्पॉट और मगरमच्छ का ब्रीडिंग सेंटर तथा नदी के दूसरे मुहाने पर एक डियर पार्क शुरू हो चुके थे, तीन लिफ्ट इर्रीगेशन की कैनाल के शुरू हो जाने से किसानों को खेती किसानी के काम में बहुत मदद मिलने लगी।

गंगा नदी को निर्मल बनाने के अंतर्गत डलमऊ के घाट पर विद्दयुत शव दाह की व्यवस्था भी शुरू की जा चुकी थी।

एक दिन राजा साहब को रात्रि के अंतिम प्रहर में स्वप्न आया कि अब यह उचित समय है जब कि उन्हें भी अपने पिताश्री महाराज चूड़ावत सिंह जी के पदचिन्हों पर चलते हुए राजपाट त्याग कर सन्यास ले वानप्रस्थ आश्रम में चले जाना चाहिए।

बस यह विचार मन में आते ही राजा चंद्रचूड़ सिंह ने अगले दिन ही कुँवर अनिरुध्द सिंह का विधवित राज्याभिषेक किया। देर रात गौहर बेग़म के साथ ऐश महल में गुज़ारी उनको समझाया कि वे कुँवर और कुँवरानी को उनके सहारे छोड़ कर जा रहे हैं। अगले दिन भोर में वे अपनी धर्मपत्नियों महारानी करुणा देवी तथा शारदा देवी के साथ कांकर छोड़ कर वन गमन हेतु चले गए।

कांकर में रह गए बस अब राजा कुँवर अनिरुध्द सिंह और उनकी रानी पद्मिनी तथा राजमाता के रूप में गौहर बेग़म। आज के दिन भी कांकर तथा खजूरगांव रियासतों के निवासी राजा चंद्रचूड़ सिंह के क्रिया कलापों की तारीफ़ करते नहीं अघाते और उनके सम्मान में यही कहते है कि अपने क्षेत्र के विकास और लोगों के लिये राजा चन्द्रचूड़ सिंह जी आजीवन ज़ोरशोर के साथ लगे रहे और उनके ही अथक प्रयासों के करण 'कांकर' अवध क्षेत्र में में एक विशिष्ट स्थान रखता है। सभी लोग आज भी यही कहते हैं कि इतने अच्छे शासक और बेहतरीन इंसान के रूप में ऐसे "एक थे चंद्रचूड़ सिंह"।

####समाप्त####

कुछ कही कुछ अनकही अपनी बात:

आज यह कथानक सबकी खुशियों का ध्यान रखते हुए अपने अंतिम पड़ाव तक आ पहुँचा है।

कुछ बातें जो अत्यंत महत्व की हैं। मैं उन्हें यहाँ आप सभी के समक्ष रखना चाहूँगा।

1 राजपूत अपनी आन बान शान के धनी होते थे परंतु आजकल के बदलते परिपेक्ष में यह आदर्श कहीं अपनी स्थित में यह सही है नहीं कहा जा सकता है फिर भी इस कथानक के जुड़े हुए सभी पात्रों के व्यवहार में पुराने आदर्शों का वहन करते हुए दर्शाए गए हैं।

2 समाज के दो महत्वपूर्ण वर्ग (ब्राह्मण और राजपूत) कम से कम रायबरेली और अवध के परिपेक्ष में हमेशा से एक दूसरे के विरोध में रहे जिसके कारण उत्तर प्रदेश में एक नई प्रकार की जातिगत राजनीति को जन्म दिया जिसमें दलित समाज एक तरफ तो पिछड़ा वर्ग एक तरफ हो गया। उच्च वर्ग के कुछ लोग अपने अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिये बंट गए जिसका राजनीतिक लाभ दलित और पिछड़े वर्ग के नेताओं ने सत्ता हथिया कर ख़ूब पूरा किया।

2 राजा चंद्रचूड़ सिंह की तीन तीन रानियां थीं बाबजूद इसके उनके तीनों से एक जैसे सम्बंध थे। किसी भी रानी में कोई द्वेषभाव नहीं था। आजकल एक आदमी अपने वैवाहिक जीवन में अपनी सहधर्मिणी को खुश कर नहीं रह पाते। समाज में परिवर्तन आये लोगों की सोच इस मुआमले में सार्थक हो, लेखक का बस यही प्रयास है न कि Multimarrige के पुराने विचार को सही ठहराना।

3 समाज के जो लोग असरदार होते हैं, उन्हें समाज में एकता के विचार को बल देना चाहिये न कि वे तोड़फोड़ की राजनीति करें।

4 एक नेता को किस तरह का होना चाहिए यह कुँवर अनिरुध्द सिंह के चरित्र के माध्यम से जताने की कोशिश की गई है।

5 आजकल के युवाओं की सोच सकारात्मक हो इसके लिये सभी के चरित्र अपनी अपनी जगह एक उदाहरण हैं।

6 जीवन में एक सोच वाले लोग साथ साथ मिल कर चल सकते हैं यह बात भी कुँवर अनिरुध्द और सबा तथा कुँवर महेंद्र और शिखा के साथ साथ आने से प्रदर्शित होता है।

7 जीवन में शक़ का कीड़ा न लगे इस अहम मुद्दे को भी अपनी तरह से शिखा के मष्तिष्क में चल रहे द्वंद के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की गई है।

8 अंत में वही परिवार तरक्की करते हैं जो मिलजुल कर चलते हैं।

9 इतना कुछ हुआ पर जो न हो सका वह था रायबरेली के बाज़ार में पोस्ट ऑफिस की बिल्डिंग के सामने धोबियाने मोहल्ले के गधों की मन्त्रणा करने की आदत, ढेंचू ढेंचू चिल्ला कर एक दूसरे को बुलाने की आदत और दूसरा पान की दुकान पर खड़े होकर मुँह ऊपर आसमान की ओर करके औओ औओ करना, जगह जगह पान की पीक करना और वहाँ पर खड़े हो देश की राजनीति को चलाना। न बदला घोशियने मोहल्ले में आराम से स्कूटर मोटर साईकल चला पाना। हालांकि यह बात भी रही कि लोग न भूल पाए राम कृपाल की दुकान की जलेबी और समोसे, डॉक्टर फ़ारुखी की होम्योपैथिक की दवाइयां और लालूपुर के ठाकुर धुन्नी सिंह चौहान का चौहान मार्केट, मिली जुली गंगा जमुनी संस्कृत।

......वैसे तो कुछ और भी बातें इस कथानक में होंगी जो पाठक अपनी अपनी सोच पर निर्भर करके मूल्यांकन करता रहेगा।

एक और महत्वपूर्ण बात यह कि यह कथानक हमारे मित्र हरीश चंद्र पाण्डेय जी जो कि इस समय आई टी आई लिमिटेड की रायबरेली इकाई में उच्च पद पर कार्यरत हैं उनके सुझाव और पहल से ही लिखा जा सका। उनको भी मुझे प्रेरित करने के लिये हार्दिक धन्यवाद।

यह कथानक मेरे उन व्यक्तिगत सम्बंधों जो कि मेरे रायबरेली प्रवास (1975 से 1996) के दौरान वहाँ के लोगों के साथ बने उनको भी समर्पित है।

आप सभी लोगों ने इसे अपना प्यार दिया, इसे सराहा और समय समय पर जो सुझाव दिए जिसकी वज़ह से यह अपने सुखद अंत आ पहुँचा। मेरे दिल दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था जिसके तहत यह कथानक सुखांत की जगह दुखांत में समापन होना था परंतु इस कथानक को हर दिन पढ़ने वाले हमारे मित्र सर्वश्री बी एन पाण्डेय, राजन वर्मा, निर्मल गर्ग और भी कई अन्य लोगों की ज़िद और हार्दिक इच्छा थी कि कथानक positive note पर समाप्त हो, अतः मैंने वही किया जो हमारे मित्रों ने चाहा। मैं उनके मार्गदर्शन के लिये मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।

सबसे बड़ी बात तो इस कथानक के साथ यह रही कि यह सुबह सुबह मित्रो के बीच हँसी मज़ाक और चकल्लसबाज़ी का केंद्र बिंदु बन कर रहा।

आने वाले दिनों में "Hi! Buddies" में पुनः मुलाक़ात होगी तब तक नमस्कार, आदाब, सत श्रीकाल, जै श्रीराम, राधे राधे.... इत्यादि इत्यादि।

धन्यवाद।

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