Tuesday, December 30, 2014

चाहतें हर रोज़ बढ़ती हैं

कलम से______
चाहतें हर रोज़ बढ़ती हैं
जा रहीं
कभी इधर कभी तू उधर चल 
कहता है मेरा मन
पाँव है कि रुकते ही नहीं
चल चला चल
छाँव जहाँ मिल जाए
आँचल की ठहर जाना
बस वहीं
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.

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