Thursday, November 13, 2014

अरे भाई, अब तो सरदी आ ही गई।




कलम से____


अरे भाई, अब तो सरदी आ ही गई
कहा था मैंने सुबह चाय के पियाले पर
लौट के देखता हूँ, तो पाता हूँ
निकले पड़े हैं तमाम स्वेटर, मफलर, टोपियां, सूट, कोट पेन्ट वगैरह वगैरह
पूछा जब क्यों, पता लगा
धूप है जो दिखानी
है कपूर की गोलियों की खुशबू भरी हुई
है उसको उड़ाना।

सुन, चुप हो गया
बरामदे में चारपाई बिछा
धूप आने का इंतजार करता रहा।

कुछ देर बाद चाय लेकर वो भी आगईं
पास ही मूढ़ा ड़ालकर बैठ गईं
कहने लगीं, अब कुछ गरम कपड़े बनबा लो
जल्दी पकड़ती है, सरदी तुम्हें
लग न जाये कहीं बचत किया करो
बचत ही तो कर रहा हूँ, इसीलिए नहीं खरीद रहा
क्या करना है काम चल ही रहा
तुम नहीं खरीदो, हम तो खरीदेंगे अपने लिए
चलेंगे बाजार, कहा मैंने, आज ही कल पर न छोड़ेगे
तुम्हें जो चाहिए आज ही खरीदेंगे।

निगाहों में निगाह ड़ालकर बोलीं,
बाहर निकला करो जब
थोडा नीविया लगा लिया करो
वहीं ड्रेसिंग टेबल पर पडी है
खुश्की चेहरे की कुछ कम हो जायेगी
रौनक थोड़ी फिर वापस आ जायेगी
हाथों में हाथ उनका लेकर हमने कहा
रौशन रहें तुम्हारी यह खूबसूरत सी आखें
हमारी जिन्दगी हैं यह
भला हो इनका इन्हें फिर से दिखने लगा है
रौशन रहे दुनियां तुम्हारी हमें क्या करना है
हमें अब यह जहां तुम्हारी नज़रों से देखना है।

चलो हटो भी, अठखेलियां न किया करो
नजरें के तीर इस तरह चलाया न करो
चलना है साथ साथ इस लंबी राह पर
छोड़कर चल न देना बीच में यह डगर।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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