कलम से____
यह शरद ऋतु की चाँदनी !
दूर पत्तों पर चमचमा कर चमकते
कुछ ओस के कण
औ' मन में जागते जाने अनजाने,
सुधि सने कुछ क्षण
मुग्ध हो रहा आकाश जिसके
पाश में विस्तार,
अस्तु कोहरे में सिमट कर
सो गई है करुण यामिनी !
आज अपने में सिहरता
सिकुडता सा
लग रहा है ताल
ओस में भीगी सी
सकुचाई खड़ी है रातरानी
की लचीली ड़ाल,
कोकिला चुप सोचती है
आ रहा मधुमास
छोड़ता है कौन ऐसे में
मिलन की मधुर रागिनी
दूध से नहा कर आ गई हो जैसे
यह शरद ऋतु की चादँनी !
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
Lovely night out in winter.
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