कलम से____
बाबूजी की छड़ी
अचानक आज याद आ गई
बहुत काम करती थी
सहारनपुर से आई थी
चलते फिरते में साथ
हमेशा उनके रहती थी।
सोचा है अबकी बार गांव जाऊँगा
कुछ और नहीं उसे साथ ले आऊँगा
याद आ गईं कुछ पंक्तियाँ जो बचपन में थी पढ़ीं.......
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
(अभी तुरंत ज़रूरत नहीं पड़ रही है पर पड़ेगी कुछ साल बाद)
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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