कुछ कहीं, कुछ अनकही !
Friday, November 14, 2014
चचलते चलते।
कलम से____
चलते चलते
उस पड़ाव पर आकर रुक गया
जहाँ आकर महसूस यह हुआ
आगे यहाँ से अब जा न पाऊँगा
गया आगे तो फिर कभी लौट न आ पाऊँगा।
आवाज देकर बुला लिया तुमने
मैं यहाँ से आगे अब न आ पाऊँगा।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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