Monday, August 11, 2014

हिचकियाँ।

कलम से____

हिचकियाँ।

याद आए कोई जब खास अपना
आए सताए रुलाए उसका सपना
कभी भी किसी को यह न बताना
फिर न आएगा उसका हसीन सपना।

आया था रात कल फिर छेड रहा था
साथ चलने की जिद वो कर रहा था
एक मैं ही थी जो खुद को रोक रही थी
मन था साथ जाने की कह रहा था।

कैसे जाऊँ मैं अब ऊसके निकल साथ
जमाना बहुत है खराब क्या कहेगा
हिम्मत करती हूँ फिर टूट जाती हूँ
मुझसे यह ममुमकिन हो न सकेगा।

क्या मैं करूँ दुविधा आन पड़ी है बड़ी
छोड दुनियां के चलन अब निकल पड़ी
धर धीरज कर मन पक्का निकल मैं पड़ी
राह तक रही लंबी पड़ी है जिदंगी अभी ।

आगई हूँ उस मोड पर जाना पीछे मुमकिन अब नहीं है
बढ़ना ही आगे पडेगा और रास्ता अब कोई नहीं है।
छोड़ दी है नैया
मझधार में मौजों के सहारे
जो होगा अच्छा होगा
मैं हूँ अब उसके सहारे।

//surendrapal singh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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