Tuesday, August 18, 2015

जब राह में मिल जाएंगे राम मेरे पग उनके पखार मैं, जल पी लूँगा !




कलम से____

डिबिया में किया बंद है एक धूप का गोला
मेरा मन होगा तब, मैं खोलूँगा !

आसमान जब नीचे उतरेगा
तब ही अपने पर, मैं खोलूँगा !

पगडंडी ओ गाँव की तू लगती है अपनी सी
पदचापों के गीत सुनाना तुम, मैं सुन लूँगा !

बीहड़ जंगल करीब से देखे हैं बहुतेरे
नीरवता उनकी कांधों पर, मैं ढ़ो लूँगा।

नन्हा बिरवा तुलसी का एक
अपने मन के आँगन में, मैं बो लूँगा !

जब राह में मिल जाएंगे राम मेरे
पग उनके पखार मैं, जल पी लूँगा !

प्रबल ज्वार प्रेम का उमड़ पड़ा है
तटबंध संभालो अब, मैं लव खोलूँगा !

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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