Monday, August 31, 2015

शौक कुछ अजीब थे लंबे चौड़े दालान वाले घर ही पसंद थे


शौक कुछ अजीब थे
लंबे चौड़े दालान वाले घर ही पसंद थे



शौक कुछ अजीब थे
लंबे चौड़े दालान वाले घर ही पसंद थे
कौन जानता था
वक्त की मार ऐसी होगी 
जो था नसीब में
वह भी न पास होगा
वक्त आखिरी
बहुमंजिला बिल्डिंग में काटना होगा
मन मार लेते हैं
चाँद तारे तक यहाँ दिखाई नहीं देते हैं
लगता है दिवास्वप्न था
गुजर जो गया वो कल था
बुझ गए हैं अरमान
बुझ गए सब दिये
मन अब यहीं लगा के रहते हैं
कभी बालकनी में
कभी राकिंग चेयर पर बैठे रहते हैं
ऊब जाता है मन उनको पास बुला लेते हैं
उनकी आँखों में नमी को देख सहम जाते हैं
तसल्ली दिल को देके खुश हो लेते हैं
वक्त गुजरे अच्छा बस यही दुआ करते है.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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