Saturday, November 1, 2014

रातरानी महकी देर रात तक।







कलम से____

रातरानी महकी रात देर कर,
नींद बैरन हो गई, पारिजात झरता रहा जो रात भर !!

सुबह देर तक नींद आती रही,
मूक निमंत्रण नैन तुम्हारे देते रहे जो रात भर !!

आगोश में थे स्वप्न जो मैंने बुने,
होश मेरे उड़ गए, चैन मैं खो चुका था पास तुम्हें पाकर रात भर !!

देर कर आखँ खुली,
पहली किरण जब पड़ी भाल पर,
प्यार भरी बातें करते बीती हमारी रात जाग कर !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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