Sunday, November 2, 2014

दो चित्र देखिये ज़रा ध्यान से।




कलम से____


 दो चित्र
देखिये ज़रा ध्यान से
यह कौशांबी पार्क स्थित
मंदिर के बाहर के हैं.....

मेरे पावं ठिठक
कर रुक गये
दरवाजे तक जाकर फिर
आगे न गये......

एक तरफ भीड़ थी
पक्षियों की
दाना ड़ाल दिया
था किसी ने
चुगने चले आये थे
बेचारे सुबह सुबह
भूख के मारे.......

दूसरी ओर
प्रचार था हो रहा
"विवाह संयोग सेवा" का
माता की चौकी लगाने का.....

पेट जिनके भरे होते हैं
तिजोरियों में जिनके हीरे जवाहरात होते हैं
वह लोग यहाँ आया करते हैं
फिर हाथ जोड़
पत्थर के देवता से
मांगने लगते हैं
न जाने कितना मागेंगे
कहाँ साथ यह सब जग के सुख ले जायेंगे
भूखे नंगे आये थे
यह नहीं जानते खाली हाथ आये थे
भूखे नंगे शायद जायेंगे......

निश्चय मैंने किया
बहुत हाथ जोड़ कर मांगा है
अब और नहीं मागूँगा
जो दे न सका अब तक उससे क्या मागूँगा
सुख भौतिक बहुत हुये
मन शांत रहे
चित्त प्रसन्न रहे
मैं स्वयं में ही अब ढूढूंगा
मागं मांग कर और लज्जित नहीं होऊँगा.....

मैं वापस पार्क की बैन्च पर आ बैठा हूँ
मन स्थिर है प्रसन्न है स्वस्थ है
यही आशीर्वाद प्रभु तेरा मेरे लिए बहुत है......


//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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