Tuesday, January 21, 2020

तमन्ना -----एस पी सिंह


Memories of London;

भावना, हमें लंदन में अपनी यात्रा के दौरान मिली। कुछ देर की मुलाक़ात ने कुछ ऐसी छाप छोड़ी कि मैंने उससे कहा, "मैं एक कथानक तुमको लेकर लिखूंगा"
भावना ने पूछा, "अंकल आप लिखते भी हैं"
मेरे जवाब देने से पहले रमा ने उससे कहा, "तुम्हारे अंकल लिखते ही नहीं बेहद अच्छा लिखते हैं और अभी तक इनकी बीस से उपर पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं"
"अरे वाह। अंकल काेंगरेटुलेशन्स"
रमा के बारे में बताते हुए मैंने भावना से कहा, "तुम्हारी आंटी भी लिखतीं हैं इनकी भी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं"
"वाउ", कहकर भावना ने रमा के गले से लग कर उन्हें मुबारकबाद दी"
"तुम्हारी आंटी फेसबुक पर भी बहुत एक्टिव हैं"
"फिर तो आंटी आप मुझे अपनी फ्रेंड्स लिस्ट में एड कर ही लो"
रमा ने भावना से बात कर उसे तुरंत अपना फ्रेंड बना लिया। जैसे ही भावना ने रमा का फेसबुक का पेज खोला तो उसकी कविताएं पढ़ कर उसने कहा, "आंटी आपका जवाब नहीं आप कितना अच्छा लिखतीं हैं। आपके शेर शायरी पढ़ कर जान ही निकल जाती है"
उसके बाद तो वह हम लोगों के इतने करीब आ गई कि उसने अपने कैमरे से कुहू के कई वीडियो बनाए और फोटो भी खींचे। जब एक दिन लदंन आई के पास आइस क्रीम खाते हुए हम लोग एक दूसरे के फोटो खींच रहे थे पता नहीं मुझे क्या सूझा कि मैंने भावना से पूछा, "अगर मैं अपनी मुलाक़ात को यादगार बनाने के लिए और लदंन की यादों को शब्दों में पिरो कर कुछ लिखूं तो तुम्हें कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं होगा"
"नहीं अंकल आप कैसी बात करते हैं, लिखिए भला मुझे क्या ऑब्जेक्शन होगा। बस एक शर्त है कि जो भी लिखें उसकी एक कॉपी मुझे भी भेजिएगा"
"अवश्य"
"वैसे आपने कोई पुस्तक का नाम सोच रखा है"
"तुम्हें पसंद हो तो 'तमन्ना:' ही नाम रख दूं तो कैसा रहेगा"
"वाउ, इंस्टैंट नेमिंग द बुक"
इस तरह भावना मेरे उपन्यास "तमन्ना" की प्रेरणास्रोत बन गई। जब पुस्तक छप कर मिली तो मैंने भावना को एक कॉपी भेजी जिसे देखकर वह बहुत खुश हुई और एक दिन उसने फोन कर मुझे मुबारकबाद दी। उसके कहने पर मैंने उसे ' घुम्मककड़ ' तथा ' मामू सा ' की प्रतियां भी भेजी यह कह कर पढ़ कर बताना कि कैसी लगीं। उसने पुस्तकों को बहुत चाव से पढ़ा ही नहीं उनकी विवेचना भी करके अपने फेसबुक पर पोस्ट की"
जब अभी हाल में, मैं अपने इंग्लैंड तथा स्कॉटलंड के ट्रिप पर, अपनी यादों को एक बार फिर से समेट कर "तमन्ना" धारावाहिक लिखने के लिए कोई विषय ढूंढ रहा था तो अचानक ही मुझे भावना का ख़्याल हो आया हमने पूरे ट्रिप पर उसके साथ कुछ यादगार पल जिए, ख़ासतौर पर, कुहू और रमा ने बहुत अच्छा वक़्त गुज़ारा था। रमा और भावना के शौक भी तकरीबन एक ही जैसे रहे। दोनों को फोटोग्राफी की बेहद शौक़ीन, यहां तक कि कोच निकल जाए, भीड़ में कहीं खो जाएं तो चिंता नहीं पर फोटो खींचने का काम बराबर बेरोक टोक चलता रहना चाहिए।
बस इन्हीं लोगों के आसपास घूमता हुआ यह कथानक दिनांक 24 जनवरी से फेसबुक पर चल रहा है। कुछ मित्र पढ़ रहे हैं। कुछ नए मित्र जुड़े हैं। पुराने मित्र अब पूजा पाठ में अथवा अपने लोकतंत्र के सबसे बड़े त्यौहार लोक सभा के चुनाव को देखते हुए, राजनीति में व्यस्त हैं, अतः वे लोग हमारे कथानक को पढ़ने का समय नहीं निकाल पा रहे हैं। सभी का हार्दिक आभार।
भावना, तुम्हारा एक बार फिर से बहुत बहुत शुक्रिया।
तुम हमेशा खुश रहो।

तमन्ना
(एक धारावाहिक-एक प्रेम कथा)







22-01-2019
हमारे मित्र श्री राम शरण जी की व्यस्तता को देखते हुए उपरोक्त कथानक का प्रस्तुतीकरण रुका रहा अब जबकि वह अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होने जा रहे हैं तो मैंने भी यह निश्चय किया है कि ‘तमन्ना’ के प्रसारण को अपने मित्रों और पाठकों की झोली में डाल ही दिया जाए।
मित्रों, अपने वायदे के मुताबिक़ मैं अपना नया कथानक “तमन्ना”, मेरी अन्य रचनाओं की तरह ही एक धारावाहिक के रूप में, फेसबुक के लिए खास लेकर आपके समक्ष उपस्थित हो रहा हूँ। मुझे आप सभी से पूरी उम्मीद है कि आप मेरे इस प्रयास को पूर्व की भांति अपना प्रेम तथा सहयोग देकर मुझे प्रोत्साहित करने का कष्ट करेंगे। आपकी टिप्पणियां मुझे धारावाहिक को सुचारू गति और दिशा देने में सहायक होंगी।
दिनांक 24 जनवरी, 2019 से ‘तमन्ना’ आपकी आशाओं और आकांक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करेगा।
सप्रेम एवं धन्यवाद सहित।
एस पी सिंह
23-01-2019
अपने वायदे के मुताबिक़ कल दिनांक 24 जनवरी, 2019 से फेसबुक पर मेरी टाइम लाइन पर पढ़िए और जानिए कि आख़िर वे कौन से चरित्र हैं जो मेरे मानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ गए जिनके बारे में जितना आप जानने के उत्सुक हैं, उससे अधिक कहीं मैं उनके बारे में आपसे चर्चा करने के लिए आतुर हूँ।
.....तो बस कल से हम और आप मिलिते हैं फ़ेसबुक पर मेरी टाइम लाइन पर।
धन्यवाद।
एस पी सिंह

मित्रों,
तमन्ना वास्तव में 2019 में शुरू हुई कहानी है जो अपने मुक़ाम तक न पहुंच सकी कारण मेरी बीच मे अस्वस्थता रही। इसलिए इसे दोबारा प्रसारित किया जा रहा है जिससे कि हमारे मित्रगण इस कथानक में क्या हुआ जान सकें। अबकी बार मेरा प्रयास रहेगा कि इस कथानक को पूरा भी कर सकूं।
आप लोगों को ठीक लगे तो इसे दोबारा पढ़िए अन्यथा नए पाठकों के लिए इसमें बारूद है जो धूम धड़ाका करके रहेगा।
शुभाकांक्षी,
एस पी सिंह
24/01/2020


24-01-2019
सूत्र धार
यह बात पिछले साल की है जब मैं अपने मोबाइल पर चैट कर रहा था कि रमा ने पूछा, “किससे अपने दिल की बात कर रहे हैं?”
“एक वही तो है अब हम जिससे अपने दिल की बात करते हैं”
“कौन”
“वही तो है ऐश (ऐश्ले मार्टिन) और भला कौन होगा?”, ऐश्ले मार्टिन लंदन में रहती थी और उससे मेरी मुलाक़ात फेसबुक के ज़रिए से उस समय हुई जब उसने मेरी कुछ कविताओं को पसंद किया। जब उसकी मैंने टिप्पणी पढ़ी तो मुझे लगा कि यह कैसी अज़ीब लड़की है जो नाम और शक़्ल सूरत से तो ब्रिटिश लगती है पर जिसे हिंदुस्तान और हिंदी भाषा से बहुत प्यार है। शुरुआती मुलाक़ात में लगा कि यह एक आम मुलाक़ात थी लेकिन बाद में धीरे धीरे यह मुलाक़ात एक अज़ीब से रिश्ते में बदल गई जिसे मोहब्बत, प्यार का दर्ज़ा देना सरासर ग़लत होगा और उसे न कोई नाम ही दिया जा सकता था पर कुछ ऐसा था ज़रूर जिसमें हम दोनों के दिल बहुत क़रीब आ चुके थे। कुछ दिनों की मुलाक़ात में ही मैं उसे ऐश कहने लगा और हम लोगों के रिश्ते गहराते चले गए। अच्छी बात थी कि मैं रमा से कभी कोई बात छुपाता नहीं था इसलिए उसने भी कभी मुझे न तो टोका और न रोका बल्कि मुझे उत्साहित किया कि मैं ऐश के साथ अपने इस नए रिश्ते को और प्रगाढ़ करूँ।
रमा ने मेरे यह कहने पर कि कौन, वही है ऐश मेरी ओर देखते हुए कहा, “चलो जब तुम अपनी बात ख़त्म कर लो तो मेरी भी सुन लेना”
रमा की बात सुनकर मुझे लगा कि अनर्थ होने से पहले ही मुझे उसकी बात सुननी चाहिए अतः अपनी चैटिंग बीच में बंद करते हुए मैंने ऐश से माफ़ी यह कह कर माँगी कि बाकी कि आगे की बात मैं अब कल करूँगा अभी मुझे कहीं बाहर जाना है। जब उसकी तरफ से ओके कह कर उसने भी अलविदा कहा तो मैं रमा की ओर मुख़ातिब हुआ और पूछा, “बताओ क्या कह रही हो?”
रमा शरारती अंदाज़ में अपनी आँखों को इधर उधर तरेरते हुए बोली, “एक बात कहूँ अबकी बार क्या तुम मुझे यूरोप दिखाने ले चलोगे”
“तुमने तो मेरे मन की बात कह दी”, मैंने रमा की आंखों में झांकते हुए पूछा, “जहाँ बोलो कहाँ चलना है?”
“बस इंगलैंड और स्कॉटलैंड। …..और कहीं नहीं”
“साथ में फ़्रांस और स्विट्जरलैंड का भी प्रोग्राम बना लेते हैं न”
“नहीं बाबा वह सब छोड़ो बस तुम मुझे इंग्लैंड और स्कॉटलैंड ही दिखा दो”
“जैसा तुम कहो”
“मेरी एक शर्त और है वह यह कि वहाँ हम पति पत्नी के रूप में नहीं जाएंगे बल्कि दोस्त की हैसियत में” मैंने कुछ आश्चर्य भरी नज़रों से जब रमा को देखा तो झट से वह बोल पड़ी, “हम लोग एक रूम शेयर नहीं करेंगे बल्कि अलग अलग रूम में रहेंगे। तुम तुम नहीं रहोगे और मैं भी वो नही जो हूँ। तुम गौरांग और मैं तृप्ती, वह भी उस समय के जब हमारी शादी भी नहीं हुई थी। हम बस एक ही ऑफिस में साथ साथ काम करते थे। मैं उन यादों को दुबारा से जीना चाहती हूं जो हमने एक बार ऑफिस टूर पर रहकर साथ साथ गुजारे थे। बस फर्क इतना रहेगा अब हमारे बीच तीसरा कोई अपनी जगह बनाने की कोशिश में होगा”
“वह भला क्यों?” मैंने रमा से पूछा।
“वह इसलिये कि तुम कुछ दिन अपनी ज़िंदगी जी सको और मैं अपनी”
रमा की बात सुनकर मुझे अटपटा सा लगा इसलिए मैंने रमा से पूछ ही लिया, “मैं कुछ समझा नहीं?”
“बस कुछ और न पूछना बस मेरी बात को पूरा करने का वायदा करो”
मेरे लिए यह बड़े ही असमंजस की स्थिति थी कि मैं क्या करूँ क्या न करूँ चूँकि मैं जानता था कि जब रमा किसी बात की ज़िद करती तो मुझे वह हर हाल में पूरा करना पड़ता था। मैं यह भी जानता था कि वह कभी भी ग़लत सोच नहीं रखती थी और जो भी सोचती थी उसमें कहीं न कहीं मेरे भले की ही सोच होती थी।
“सुनो तो मैं अभी यूके जाने के लिए वीसा के क्या रूल्स हैं उनकी जानकारी ले लेता हूँ और हम एक दो दिन में ही किसी टूर ऑपरेटर से बात कर अपने चलने की व्यवस्था करते हैं”, मैंने अपनी ओर से बात आगे बढ़ाते हुए रमा से कहा।
“एक बात ध्यान रखना कि हम यूरोप उस समय चलें जब वहाँ गर्मियों का मौसम अपने अंतिम चरण में हो और पतझड़ की शरूआत हो”, रमा ने अपने दिल की बात मुझसे कही।
“यह इसलिए कि तुम दो ऋतुओं का आनंद उठा सको। मुझे अच्छी तरह से पता है कि तुमको चिनार के पेड़ों के बदलते हुए रंग कितने अच्छे लगते हैं। मुझे वो दिन याद हैं जब हम श्रीनगर गए हुए थे और तुमने चिनार के बदलते हुए रंगों को देखकर यह कहा था ‘ऐसा लगता है कि जंगल में आग लग गई हो”
“बहुत याद रख़ते हो छोटी से छोटी बातें, मुझे याद है मैंने यह बात तब कही थी जब हम दोनों पहलगाम से सोनमर्ग जा रहे थे”
“फिर तो कम से कम दो महीने का प्रोग्राम बनाना पड़ेगा” मैंने रमा से कहा।
“हमको यहाँ कौन सा पहाड़ तोड़ना है कुछ दिन बदले हुए माहौल में ही रह आएंगे”
“फिर टूर ऑपरेटर से क्या बात करनी है, बस वीसा बनवाते हैं और हवाई जहाज की आने जाने की टिकट कटवा और एक दिन बोरिया बिस्तरा गोल कर चल पड़ते हैं”
“यही ठीक रहेगा बस तुम अपनी ऐश से बात कर लो कि वह हम लोगों के लिए सेंट्रल लंदन में कोई होटल फ़िक्स कर दे’
“ऐश से ही क्यों?”
“वह इसलिए कि मैं चाहती हूँ कि उसे हमारे आने का प्रोग्राम पता रहे”
“भला वह क्यों?”
“वह इसलिए कि हमारा यूके का ट्रिप एक यादगार ट्रिप रहे और तुमको भी अपनी यूक्रेन के विज़िट की तरह लिखने पढ़ने का ख़ूब सारा मटेरियल मिले और फिर तुम ‘घुमक्कड़’ की तरह अपने यात्रा संस्मरण का एक मास्टर पीस उपन्यास लिख सको”
“मैं तुम्हारी बात कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ फिर भी तुम जैसे कहती हो मैं वैसे ही करता हूँ”
आख़िरकार वह दिन भी आ गया जब मैं, मैं न होकर गौरांग बन कर और रमा, रमा न होकर तृप्ती होकर एयर इंडिया की फ्लाइट पर सवार हो लंदन के लिए इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट दिल्ली से रवाना हो गए।
बस अब कल लंदन से बात आगे बढ़ेगी तब तक आप आराम से रहिये पर कहीं जाइएगा नहीं हम लोग शीघ्र मिलते हैं....
क्रमशः


25-01-2019
गतांक से आगे : मित्रों जैसा आपने कल जाना कि मैं और रमा गौरांग और तृप्ति के रूप में आख़िर लंदन पहुंच ही गए। आज जब हम अपना सफर शुरू करें उससे पहले बस यही कहना है कि इस कथानक को केवल एक कहानी मान कर न पढ़ा जाए बल्कि इसे एक यात्रा वृतांत समझ कर पढ़ा जाए। यह भी सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है कि मैंने कल्पना की भी भरपूर उड़ान भरी है।
यह कथानक कैसा बन पड़ा है उसके बारे में तो हमारी और आपकी बातचीत इसकी समाप्ति पर होगी ही लेकिन अगर आप अपनी बात हर एपिसोड के अंत में टिप्पणी लिख कर बता देंगे तो मुझे इस कथानक को आपकी दिखाई हुई दिशा के हिसाब से आगे बढ़ा सकूँगा।
अब आप इस यात्रा का आनंद उठाइये और मुझे अपना काम करने दीजिए।
शुक्रिया।
एस पी सिंह
एपिसोड 1
जैसे ही अपनी सीट के सामने वाले स्क्रीन पर दिखाई दिया कि हवाई जहाज यूके की टेरिट्री में पहुँच गया है तृप्ती ने गौरांग को नींद से जागते हुए कहा, “उठो भी हम लोग अब लंदन पहुँचने ही वाले हैं”
आँखे मलते हुए गौरांग उठा और धीरे से तृप्ती के कान के पास आकर बोला, “रेड वाइन और एयर इंडिया का लज़ीज़ लंच खाने के बाद मुझे होश नहीं रहा”
“कोई करे भी तो क्या करे दिल्ली से लंदन की फ्लाइट भी तो थकाने वाली साढ़े आठ घंटे की जो है”, तृप्ती बोली।
गौरांग ने भी स्क्रीन पर नज़र डाली तो उस समय उनका हवाई जहाज ग्रीन विच सिटी के ऊपर से गुज़र रहा था। इसी बीच उद्घोषणा हुई कि सभी यात्रीगण अपनी अपनी सेफ्टी बेल्ट बांध लें और सीट को सीधा रखें। गौरांग ने तृप्ती से कहा, “इसका मतलब हम लोग अगले कुछ मिनटों में हीथ्रो एयर पोर्ट पर लैंड करेंगे”
तृप्ति जो कि विंडो सीट लेकर बैठी थी उसने अपनी निगाह लन्दन के आकाश पर जमाते हुए कहा, “तुम तो लंदन पहले भी आ चुके हो। मैं पहली बार आ रही हूँ इसलिए मुझे बताते जाना कि कौन कौन सी जगह आसमान से दिखाई पड़ेंगी"
“तुम अपनी निगाह विंडो के उस पार रखो जैसे ही कोई इम्पोर्टेन्ट मोनुमेंट दिखेगा तो मैं तुम्हें उसके बारे में बताऊँगा”
रन वे स्ट्रिप खाली न मिलने के कारण हवाई जहाज को लंदन के ऊपर से होकर गुजरना पड़ा और जैसे ही गौरांग को थेम्स नदी दिखाई दी तो उसने तृप्ती से कहा, “तृप्ती देखो वह थेम्स नदी है। ठीक उसके एक किनारे पर लंदन आई साफ दिखाई पड़ रही है उसके साइड में वेस्टमिंस्टर ब्रिज, बिग बेन और 'अब्बे दिखाई पड़ रहा है। ....और वो देखो लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड”
कुछ पलों में ही बकिंघम पैलेस का कंपाउंड साफ दिखाई दे रहा था उसकी ओर इशारा करके गौरांग ने कहा, “तृप्ती वह देखो बकिंघम पैलेस कितना साफ नजर आ रहा है”
“देख तो रही हूँ, एक मिनट रुको मैं एक फोटो तो खींच लूँ” तृप्ती बोली।
“जल्दी करो नहीं तो तुम फ़ोटो नहीं ले पाओगी”
गौरांग के कहने पर तृप्ती ने अपने मोबाइल से एक नहीं बल्कि कई फ़ोटो लंदन के मशहूर मोनुमेंट की फ़ोटो खींच लीं। अधिक समय नहीं गुज़रा होगा कि उनका हवाई जहाज हीथ्रो के रनवे पर लैंड कर चुका था और टैक्सी करते हुए टर्मिनल 2 के एक पार्किंग लॉट की ओर बढ़ रहा था।
थोड़ी देर बाद हवाई जहाज से एक एक करके सभी यात्रीगण एरोब्रिज के रास्ते बाहर निकल आये। एयर पोर्ट की चुस्त दुरुस्त व्यवस्था देखकर तृप्ती बोल उठी, “लगता है कि यह टर्मिनल अभी हाल फिलहाल में बना है”
“ऐसा नहीं है यह टर्मिनल बहुत पुराना है पर रेनोवेशन का काम कुछ समय पहले ही पूरा हुआ है” गौरांग तृप्ती से बोला।
इमीग्रेशन क्लेरेंस के बाद वे लोग एग्जिट गेट की ओर बढ़ रहे थे। अपना अपना बैगेज कलेक्ट किया और एयर पोर्ट के रास्ते बाहर की ओर चल पड़े। जैसे ही गौरांग और तृप्ती गेट के बाहर आये तो गौरांग की नज़र ऐश्ले पर पड़ी......
क्रमशः
26-01-2019
एपिसोड 2
गातांक से आगे: आपने कल के एपसोड में देखा कि गौरांग और तृप्ती अपन बैगेज लेकर हीथ्रो एयरपोर्ट के टर्मिनल से बाहर निकल कर आने वाले थे और उनके इंतजार में ऐश्ले भी इधर उधर नजरे दौड़ते हुए उत्सुक हो रही थी कि गौरांग कैसा इंसान होगा क्योंकि यह उसकी उसके साथ पहली मुलक़ात होने को थी। वैसे भी बेचैनी बढ़ जाती है जिन्हे आप पहली बार मिलने जा रहे हों।
आगे क्या हुआ, जानिए...
........ ऐश्ले ने गौरांग को देखा तो वह दौड़ कर गौरांग के क़रीब आई, शेकहैंड किया और गौरांग के गाल पर धीरे से एक प्यार भरा चुम्बन लेते हुए बोली, “आई होप फ्लाइट वाज क्वाइट कम्फ़र्टेबल”
“ओह यस इट वाज फाइन। ऐश तुम कैसी हो?” गौरांग जब प्लीजेट्रीज़ एक्सचेंज कर रहा था तो तृप्ती उनकी ओर पास खड़े यह सब देख रही थी। गौरांग को जब महसूस हुआ कि तृप्ती कहीं बुरा न मान जाए तो उसकी ओर रुख करते हुए गौरांग ने तृप्ती का परिचय ऐश्ले से यह कह कर कराया, “ऐश मीट माइ ऑफिस कॉलीग एंड फ्रेंड तृप्ती”
इसके बाद ऐश्ले ने तृप्ती को ऊपर से लेकर नीचे तक देखा और अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, “नाइस टू मीट यू मिस तृप्ती”
तृप्ती ने औपचारिकता पूरी करते हुए और एक दूसरे से गले मिलते हुए ऐश्ले का हालचाल पूछने के बाद कहा, “हम लोग चल सकते हैं न”
“यहाँ से तो चलना ही ठीक होगा, कब तक यहाँ यूँ ही खड़े रहेंगे”, मैंने ऐश के प्रश्न के उत्तर में कहा।
“लंदन में वैसे तो हर व्यक्ति अपनी कार रखता है लेकिन वह चलना केवल ट्यूब से पसंद करता है, इसका मुख्य कारण है कि अब यहाँ की सड़कें भी छोटी पड़ने लगीं हैं, बढ़ती हुई आबादी और उनकी ज़रूरतों को देखते हुए”, ऐश्ले ने मेरी ओर देखते हुए कहा।
मैं उसका मन्तव्य समझ गया और बोला, “मैं जब पिछली मर्तबा आया था तब भी ट्यूब से ही चला करता था। हमें ट्यूब से चलने में ख़ुशी होगी”
इतना कह कर मैंने अपना बैगेज सम्हालते हुए तृप्ती की ओर देखते हुए यह आशा की कि वह भी मेरी तरह अपना बैगेज अपने हाथ में लेकर और हम सभी ट्यूब के स्टेशन की ओर चलें। तृप्ती जो कि यह उम्मीद कर रही थी कि ऐश अपनी कार या टैक्सी से हम लोगों को होटल तक ले चलेगी क्योंकि हम हिंदुस्तान में अभी भी सुख सुविधा से जीवन जीने के आदी जो हैं। तृप्ती ने जब देखा कि गौरांग और ऐश चलने को तैयार थे तो वह भी सभी के साथ हो ली।
रास्ते में मैंने ऐश से कहा, “अगर मुझे सही याद पड़ता है तो टर्मिनल 2 से पहले भी ट्यूब चला करती थी”
“तुम ठीक कह रहे हो ट्यूब अभी भी टर्मिनल 2 से तो चलती ही है अब ट्यूब दूसरे टर्मिनल तक भी जाती है”, ऐश बोली।
ट्यूब स्टेशन के काउंटर पर पहुँच कर जब ऐश हमारे लिए टिकट खरीदने लगी तो गौरांग ने उसे टोकते हुए अपने बैलेट से बीस पौंड का एक नोट निकाल कर उसकी ओर इस इरादे से बढ़ाया कि वह हम सभी के लिए टिकेट ले ले। ऐश ने गौरांग की ओर देखते हुए बस यही कहा, “इसकी कोई आवश्यकता नहीं है वह अपने कार्ड से तीनों को अपने साथ ले चलेगी। मैं तो यहाँ यह समझाने के लिए आई थी कि लंदन को अब कई भागों में बाँट दिया गया है और जो भी यहाँ आता है वह अपनी जरूरत के हिसाब से वीकली सीज़नल कार्ड बनवा लेता है। तुम चाहो तो यह कार्ड अभी ख़रीद सकते हो या बाद में भी”
गौरांग ने उत्तर में कहा, “उसने अभी कोई प्रोग्राम फाइनल नहीं किया है इसलिए यह कहना जल्दबाजी होगा कि हमें किस हिस्से का ट्रेवल कार्ड बनवाना चाहिए”
“यह भी ठीक है, चलो पहले तुम्हारे होटल चलते हैं और तुम्हारी सहूलियत पर प्रोग्राम बनाना ही ठीक होगा”, ऐश बोली।
इसके बाद हम लोग ब्लू ट्यूब के एरिया में आ गए और कुछ ही देर में वे तीनों ट्यूब में सवार हो ग्लॉस्टर ट्यूब स्टेशन के लिये चल पड़े। हीथ्रो एयरपोर्ट टर्मिनल 2 से ग्लॉस्टर ट्यूब स्टेशन की दूरी उन्होंने लगभग 39 मिनट्स में पूरी की। ग्लॉस्टर रोड पर ही ऐश ने उन लोगों के लिए होटल क्राउन प्लाज़ा लंदन की बुकिंग की थी वहाँ तक वे लोग पाँच मिनट पैदल चल कर पहुँच गए। होटल पहुँच कर तृप्ती ने गौरांग से कहा, “हम लोगों को ऐश का हार्दिक धन्यवाद करना चाहिए कि उसने हमारे लिए इतना सुंदर और आरामदायक होटल फ़िक्स किया है”
“ज़रूर ऐश थैंक्स फ़ॉर मेकिंग अवर स्टे कम्फ़र्टेबल”, गौरांग ने ऐश से कहा और पूछा, “यहाँ से तुम्हारा घर कितनी दूर होगा?”
“वाकिंग डिस्टेंस पर। हार्डली 2 किलोमीटर के क़रीब”
“यह जानकर बहुत ख़ुशी हुई”
ऐश उन दोनों लोगों के साथ ही उनके होटल रूम तक आई और जब तक वे लोग अपने अपने रूम में सेटल नहीं हो गए वह उनके साथ ही रही।
“अब तुम लोग आराम करो फ्लाइट के बाद तक गए होगे आज रात आराम करो हम कल सुबह मिलेंगे”, कहकर ऐश ने उन लोगों से विदा लेने की बात कही।
गौरांग ने ऐश का हाथ अपने हाथ में लिया और उससे कहा, “एक कप चाय तो पी लो फिर चली जाना” और तृप्ती से बोला, “तृप्ती तुम मेरे रूम में आ जाना हम वहीं चाय मंगा रहे हैं”
“तुम दोनों चाय पिओ मुझे कुछ देर होगी, मैं फ्रेश होकर तुम्हें जॉइन करतीं हूँ”, तृप्ती ने गौरांग से कहा।
गौरांग ऐश को लेकर अपने रूम में आया और रूम सर्विस को चाय का आर्डर प्लेस किया। जब कुछ देर बाद बेयरर चाय लेकर आया तब तक गौरांग ने कुछ जानकारी ऐश के परिवार के बारे में प्राप्त की। चाय ठंडी न हो जाये इसलिये उन दोनों ने चाय पीना शुरू किया और लेकिन देरी होने के कारण तृप्ती उन्हें जॉइन नहीं कर पाई, उसके पहले ही ऐश गौरांग से गुड नाईट कह कर अपने घर के लिए निकल गई।
क्रमशः

एपिसोड 3
गताकं से आगे: आपने कल देखा कि ऐश्ले तृप्ती का गौरांग के रूम में बहुत देर तक इंतजार करती रही लेकिन जब वह नहीं आई तो वह समझ गई कि वह उसे अवॉयड कर रही है। ऐश्ले ने देर न करके अपने घर लौटने का निश्चय किया और गौरांग के साथ होटल की लॉबी में आई.....
बस उसके आगे..
गौरांग ऐश्ले को छोड़ने होटल की लॉबी तक आया। चलते समय ऐश्ले ने औपचारिकतानुसार गौरांग को बहत ही जेंटल किस किया और कहा, “बाय कल सुबह फिर मिलते हैं। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी”
“मेरा अकेला या मैं अपने साथ तृप्ती को भी ला सकता हूँ”, गौरांग ने शिष्टता के नाते उससे पूछा।
“ओह नो, तृप्ती को भी साथ लेकर आना। मेरे परिवार के सदस्यों को उससे मिलकर बहुत ख़ुशी होगी”
गौरांग कुछ बोला नहीं बस उसे लॉबी से बाहर की ओर जाते हुए देखता रहा। जब वह उसकी नज़रों से ओझल न हो गई तब वह अपने कमरे की ओर मुड़ पड़ा। उसे लगा कि सोने के पहले तृप्ती को यह बता देना चाहिए कि हम दोनों उसके यहाँ नाश्ते पर निमंत्रित हैं इसलिए वह सुबह समय रहते तैयार हो जाए। इसी ख़्याल से उसने उसके रूम के दरवाज़े पर जब नॉक किया। उसने अंदर ही से पूछा, “हु इज इट?”
“मैं हूँ गौरांग दरवाज़ा तो खोलो”
“एक मिनट रुको” कहकर गौरांग को लगा वह शायद ड्रेस ठीक करने के लिए आईने के सामने गई और बाद में दरवाज़ा खोलते हुए बोली, “आओ, अंदर तो आओ, क्या बात है तुम तो अकेले हो। मुझे लगा कि ऐश भी तुम्हारे साथ होगी”
“ऐश तुम्हारा इंतज़ार करती रही और जब तुम मेरे रूम में नहीं आई तो वह बाद में मुझसे यह कहते हुए अपने घर निकल गई कि हम दोनों को सुबह उसके घर नाश्ते पर जाना है। एक काम करना तुम सुबह समय से तैयार हो जाना”
“ठीक है बाबा हो जाऊँगी, अंदर तो आओ बहुत जल्दी में तो नहीं हो”
उसके कहने के बाद गौरांग सामने पड़े सोफे पर बैठ गया और तृप्ती की ओर बड़े ध्यान से देखता रहा। ऐसा करते हुए देखकर तृप्ती ने पूछा, “ क्या हुआ, ऐसे क्या देख रहे हो, क्या पहले कभी नहीं देखा”
“बहुत बार देखा है लेकिन तुम आज बहुत अच्छी लग रही हो”
“मैं तो वही हूँ। यह बात और है कि आज ऐश को देखने के बाद तुम शायद तुलना कर रहे हो कि वह अच्छी है या मैं”
“आखिर तुम्हारा स्त्री मन बोल ही पड़ा”
“मैंने ऐसा क्या कह दिया। यह तो कोई भी आम हिंदुस्तानी औरत पूछेगी ही। मर्दों को गोरी चमड़ी वाले लोग बहुत पसंद जो आते हैं”
इतना सुनकर गौरांग से नहीं रहा गया और बोला, “तुमसे यह उम्मीद न थी। तुम तो यह अच्छी तरह जानती थी कि हम लोगों को ऐश यहाँ लंदन में मिलेगी ही। इसमें ऐसी कौन सी खास बात हो गई”

“बुरा मान गए क्या? ऐश तुम्हें मेरे सामने किस करे और भला मैं यह भी न पूछूँ। यह तुमने कैसे समझ लिया” कहते हुए तृप्ती भी गौरांग के साथ सोफे पर बैठ गई और बोली, “....और बताओ मेरे पीछे तुमने और क्या क्या किया”
“और क्या क्या किया मतलब। कुछ भी तो नहीं बस चाय पी और तुम्हारा इंतज़ार किया। और क्या करना था मुझे”
“मुझे लगा कि शायद कुछ और भी जो तुम मेरी नज़रो के सामने न कर पाते”
“बी अ अर्नेस्ट लेडी, मुझे उसके साथ कुछ करना भी नहीं था”
“चलो छोड़ो भी क्या क्या बात हुई उसने मेरे बारे में पूछा तो होगा”
“ऐसा कुछ खास नहीं मैं उसे तुम्हारे बारे में मैं पहले ही सब कुछ बता चुका था कि हमारे तुम्हारे बीच क्या रिश्ता है? हम लोगों को अलग अलग रूम जो बुक कराना था”
“चलो ठीक है, कोई बात नहीं। डिनर करोगे तो मैं रूम सर्विस को बोलती हूँ कि कुछ यहीं सर्व कर दे”
“नहीं नीचे चलते हैं रेस्तरां में बैठ कर आराम से डिनर करते हैं”
“ठीक है तो चलो”, कहकर तृप्ती उठ खड़ी हो गई उसे देख गौरांग भी उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गया।



क्रमशः
एपिसोड 4
गताकं से आगे: तृप्ती ने कल कुछ ऐसी चुभती हुई बात कह दी जो गौरांग को अच्छी नहीं लगी फिर भी दोनों ने अपने संबंधों को ध्यान में रखते हुए होटल के रेस्टोरेंट में ही डिनर करने का मन बनाया।
आगे...
होटल के रेस्टॉरेंट में बैठकर गौरांग और तृप्ती ने डिनर के लिए बटलर की सलाह पर कुछ ऐसी डिशेज़ सिलेक्ट कीं जो इंग्लिश लोगों में बहुत प्रचलित थीं। डिनर के दौरान तृप्ती ने गौरांग से कहा, “अगर तुम्हें बुरा न लगे तो क्या तुम मुझे बताओगे कि ऐश ने अपने बारे में और क्या बताया?"
“इसमें बुरा लगाने जैसी कोई बात है ही नहीं, अच्छा किया जो तुमने यह पूछ लिया। मैं तो तुम्हें अपनी ओर से यही बताने वाला था। उसने बताया कि उसे इंडिया से बेहद प्यार है”
“इंडियंस से नहीं”, गौरांग की बात को बीच में ही काटते तृप्ती ने पूछा।
“उसे इंडियंस से भी बहुत प्यार है और इसके पीछे उसने बताया कि उसके दादा जी, फिलिप मार्टिन, जब इंडिया में अपना पावर प्लान्ट का बिज़नेस इस्टेब्लिश करने के लिए वहाँ गए थे तब उन्हें लखनऊ में रहने का मौका मिला था। उसी दौरान उनकी मुलाक़ात अनुराधा नाम की एक लड़की से हुई जो वहाँ के हाई कोर्ट के जस्टिस के सी गेरा की बेटी थी। धीरे धीरे यह मित्रता प्रगाढ़ होती गई और एक ऐसे रिश्ते में बदल गई जिसमें उसके दादा जी और अनुराधा ने अपने परिवार की सहमति से कैथोलिक चर्च, हजरतगंज, लखनऊ में शादी रचा ली”
“आगे क्या हुआ”, तृप्ती को अचानक ऐश्ले के परिवार के बारे में उत्सुकता और बढ़ गई।
“कुछ दिन लखनऊ में रहने के बाद ऐश के दादा जी और दादी जी इंग्लैंड लौट आए और उस समय से मार्टिन परिवार यहीं लंदन में ही रह रहा है। लंदन में सेटल होने के पहले इनका परिवार स्टेटफोर्ड में रहा करता था”
“स्टेटफोर्ड वही जगह जहाँ महान कवि शेक्सपियर का घर भी है”
“हाँ, वही स्टेटफोर्ड” गौरांग ने उत्तर देते हुए कहा।
“वहाँ तो हम चलेंगे न”
“ज़रूर चलेंगे। भला लंदन आएं और स्टेटफोर्ड न जाएं यह कैसे हो सकता है। सुनो, अभी ऐश की बात समाप्त नहीं हुई। ऐश की दादी जी के मार्टिन परिवार में आने के साथ एक चीज़ और आई। जो थी अपनी भारतीय परम्पराएं और खाने पीने में भारतीय व्यंजनों की भरमार। ऐश के दादा और दादी जी के चले जाने के बाद भी वे परम्पराएं अब मार्टिन परिवार का अभिन्न हिस्सा बन कर रह गईं हैं”
“ऐश की कहानी तो बिल्कुल हिंदी फिल्मों की तरह मोड़ लिए हुए चल रही है।
“तृप्ती आगे और सुनो तो तुम्हें ताज़्ज़ुब होगा कि इंग्लिश परंपराओं के साथ साथ हिंदुस्तानी परम्पराएं जब मिल जुल गईं तो भला मार्टिन परिवार हिंदी भाषा से प्यार क्यों न करता। लिहाज़ा मार्टिन परिवार में आज भी अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी भी बोली और जानी जाती है। इतना ही नहीं मार्टिन परिवार का हर सदस्य अंग्रेजी के साथ हिंदी भाषा में निपुण हैं”
तृप्ती के मुँह से निकल पड़ा, “इंटरेस्टिंग”
“यस अभी तो कुछ और राज़ हैं वे धीरे धीरे खुलेंगे जब हम उनके साथ मिलेंगे जुलेंगे। शायद इसी ख़्याल से ऐश ने हमको कल सुबह अपने घर पर नाश्ते के लिए बुलाया है”
“हम लोग ऐश के यहाँ कैसे चलेंगे?” तृप्ती ने गौरांग से पूछा।
“पैदल और कैसे। ऐश का घर पास ही में तो है। मैंने ऐश से पूरा रास्ता जान लिया है तुम चिन्ता मत करो”
“इसका मतलब यह हुआ कि कल सुबह मैं समय से पहले ही तैयार हो जाऊँ”
“बिल्कुल मेम साहब”
उनका डिनर भी समाप्ति पर था बस वे लोग कॉफी का इंतज़ार कर रहे थे। कॉफी पीने के बाद वे अपने अपने रूम की ओर चल पड़े। गौरांग ने शरारत भरे अंदाज़ में अपने होठों पर उँगली रख कर किस करते हुए तृप्ती को गुड नाईट कहा।
क्रमशः
गतांक से आगे: गौरांग और तृप्ती ने डिनर अपने होटल में ही किया और बातचीत के दौरान उन लोगों में मार्टिन परिवार के बारे में देर तक चर्चा हुईं। ऐश्ले के दादाजी और दादीजी के बारे में जो ऐश्ले ने गौरांग को बताया था।
आगे जानिए.....
एपिसोड 5
होटल क्राउन प्लाज़ा लंदन के जिस भाग में स्थित था वह जगह वाकई बहुत ही खूबसूरत और सेंट्रली लोकेटेड है। होटल वास्तव में केनसिंगटन एरिया में था और पास ही में बहुत से महत्वपूर्ण मोन्यूमेंट भी थे, जिसमें कुछ थे क्वीनस गार्डन, रॉयल अल्बर्ट हॉल, नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम इत्यादि। गौरांग ने होटल से निकलते समय तृप्ती के कहने पर अपने सिर पर कैप लगा ली थी। वह यह भली भाँति जानता था कि अक्टूबर महीने के आखिरी हफ़्ते की लंदन की सर्दी अगर एक बार जिसे लग गई समझो कि वह कम से कम एक हफ़्ते के लिए गया काम से। गौरांग के कहने पर तृप्ती ने भी अपने सिर को गर्म मफलर से ढक लिया। सुबह सुबह की चहल पहल भरी लंदन की ज़िन्दगी और ठंडे मौसम में पैदल यात्रा कर के अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच पाना अपने आप में ही रोमांच करने वाला अनुभव था। गौरांग ने तृप्ती को एक हाथ अपने हाथ में लिया हुआ था। वे दोनो ग्लौस्टर रोड होते हुए चेल्सी ओल्ड चर्च के पास ही 'द क्रॉस कीज़ अपार्टमेंट्स' के पास ही ऐश्ले के घर तक पहुँच कर उनके घर के दरवाज़े पर लगे काल बेल के स्विच दबाया और इंतज़ार करने लगे। घर का दरवाजा धीरे से खुला। ऐश्ले, गौरांग तथा तृप्ती के स्वागत के लिए स्वयं खड़ी हुई थी। उसने आगे बढ़ कर दोनों से गर्मजोशी से हाथ मिलाया और दोनों के चीक्स पर धीरे से किस किया और बोली, “प्लीज कम इन, आइये मार्टिन हॉउस में आपका स्वागत है”
तृप्ती आगे आगे ऐश्ले के साथ साथ चल रही थी और गौरांग उनके पीछे। एक गलियारे से होते हुए जब वे ड्राइंगरूम में पहुँचे तो उनके स्वागत में ऐश्ले के पिता स्टीव और मॉम एडविना ने उन्हें गले लगा कर स्वागत किया और हिंदी में बात करते हुए बोले, “आपका हमारे इस छोटे से घर में स्वागत है, मुझे मालूम है हिंदुस्तान में घर होते ही नहीं हैं या इतने बड़े जैसे कि कोई महल हो”
स्टीव की इस टिप्पणी पर गौरांग ने उत्तर देते हुए कहा, “शायद आप अपने दादा जी के ज़माने की बात कर रहै हैं जब इंडिया में ब्रटिश रूल हुआ करता था। अब वहाँ पहले जैसे हालात नहीं हैं। अब तो वहाँ भी मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स का चलन हो गया है। आखिर हमारा देश जिसने एक फील्ड में औरों के अपेक्षा तरक्की करी है, तो वह है पापुलेशन। स्वतन्त्रता के बाद हम लोग मात्र 37 करोड़ थे और आज हम 125 करोड़ का आँकड़ा छू रहे हैं। दुनिया के लिए भारत आज एक महत्वपूर्ण मार्किट बन गया है। दुनिया भर के लोग वहाँ आकर इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं। अब हालात पहले जैसे बिल्कुल नहीं हैं”
एडविना ने सभी को हाथ से इशारा करते हुए कहा, “आइये पहले बैठिये, ये सब बातें तो होतीं ही रहेंगी”
तृप्ती ऐश्ले के साथ एक सोफ़े पर और उसके ठीक दूसरी ओर वाले सोफ़े पर गौरांग और स्टीव बैठ गए, उनके ठीक बीच वाले सोफ़े पर एडविना। बातचीत का दौर शुरू करते हुए गौरांग बोला, “आपका घर बहुत ही रॉयल तथा वेल अप्पोइंटेड है”
“शुक्रिया”, एडविना ने कहा और इस घर के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, “यह घर वास्तव में बहुत पुराना है। इसे हमारे पूर्वजों ने इंग्लैंड की रॉयल फैमिली के एक सदस्य से बहुत पहले ख़रीदा था जब वे हिंदुस्तान से बहुतेरी दौलत के साथ आये थे"
“इसकी लोकेशन बहुत उम्दा स्थान पर है हमारे इस घर से मात्र 500 गज़ की दूरी पर थेम्स है, हम लोग अपने आप को बहुत सौभाग्यशाली मानते हैं कि हमें यह सब विरासत में मिला”, यह बात स्टीव ने अपने घर के बारे में बताते हुए कहा।
कुछ देर तक इधर उधर की बात चीत होती रही। एडविना ने जब यह पूछा, “आप लोग क्या बातें ही करके पेट भर लेंगे या कुछ नाश्ता भी करेंगे। आइये नाश्ता आपके इंतज़ार में बेमतलब ही ठंडा हो रहा है।"
ऐश्ले ने तृप्ती का हाथ अपने हाथ में लिया और उसे साथ ले डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ चली। मार्टिन्स तथा गौरांग भी उनके पीछे पीछे डाइनिंग टेबल के किनारे लगी चेयर्स पर आकर बैठ गए। धीरे धीरे करके एक आइटम टेबल पर आते रहे जो टिपिकल इंग्लिश ब्रेकफास्ट के मेनू से चुन चुन कर लिए गए थे। ब्रेकफ़ास्ट के अंत में जब सभी को चाय सर्व की गई तो तृप्ती यह देखकर ताज़्ज़ुब में पड़ गई कि चाय बिल्कुल हिंदुस्तानी वही अदरक वाली। कहने का मतलब यह कि ख़ालिश दूध वाली। चाय के स्वाद से बिल्कुल यह नहीं लगता था कि यह किसी हिंदुस्तानी के हाथों नहीं बनाई गई है क्योंकि उसमें पड़ी इलायची का स्वाद पूरा पूरा जो मिल रहा था। तृप्ती ने एडविना के पर्सनल स्टाफ़ की दिल खोल कर तारीफ़ की। चाय पीने के बाद की चर्चा में जब स्टीव ने यह पूछा, “आप लोगों का यहाँ कितने रोज़ का प्रोग्राम है?”
गौरांग ने उत्तर में कहा, “फ़िलहाल तो हम लंदन में एक सप्ताह के लिए हैं। उसके बाद इंडिया से आने वाले एक ग्रुप के साथ लंदन के बाहर की ओर रुख करेंगे। तय शुदा प्रोग्राम के मुताबिक़ हम लोग स्टेटफोर्ड, मैनचेस्टर, ग्लॉसगौ तक जाने का मन बना कर आये हैं”
“ग्लासगौ तक ही क्यों वहाँ से एडिनबरा क्या नहीं जाएंगे”
“अगर वहाँ नहीं गए तो हमारा यूके का विजिट हाफ ही रह जायेगा”
“तब ठीक है वह जगह वास्तव में देखने योग्य है। स्कॉटलैंड की शान है एडिनबरा”
गौरांग ने अपने बातचीत के दौरान मार्टिन दंपति से यूनाइटेड किंगडम के बारे में ढेर सारी जानकारी हासिल की। तृप्ती भी यह जानकर ख़ुश थी कि प्रोग्राम उन लोगों ने ठीक ढंग से बनाया था। बात जब लंदन घूमने की हुई तो ऐश्ले बोली, “लंदन में इतना कुछ है देखने और समझने के लिए कि एक उम्र भी शायद कम पड़े”
“ऐसा क्या है लंदन में?” तृप्ती ने ऐश्ले से पूछा।
“लंदन आप मेरी नज़र देखिएगा तो ही तो पता लगेगा कि वाकई कितना शानदार, जानदार शहर है लंदन। निराला और अनूठा मेरा लंदन”, ऐश्ले ने उत्तर देकर तृप्ती के मन को शांत किया। तृप्ती को चुप देखकर गौरांग ने ऐश्ले से कहा, “ऐश यह सब तुमने मुझे पहले तो कभी नहीं बताया”
“ऐसी कोई बात हम लोगों के बीच कभी उठी ही नहीं”
ऐश्ले की बात सुनकर गौरांग बोला,“चलो तो हमें किसी का साथ तो मिला। अकेले अकेले जैसे तो नहीं लगेंगे लंदन की गलियों में....”
क्रमशः

एपिसोड 6

बहुत देर इधर उधर की चर्चा होती रही और जब घर के सर्वेंट डानिंग टेबल की सफाई करने के लिए आये तो बाद में एडविना ने प्रस्ताव रखास्टीव आपने अपने इस घर के बारे में बहुत कुछ कहाक्यों न आप एक बार पूरा घर गौरांग और तृप्ती को दिखा दें
अरे मैं तो बातचीत में यह महत्वपूर्ण काम तो भूल ही गयास्टीव ने उत्तर में कहाआइये चलिएऔर इशारे से गौरांग और तृप्ती को अपने साथ लेकर वह घर के गलियारे से होते हुए पीछे के बैक यार्ड गार्डन में ले आए। वहाँ एक कोने में पक्षियों के रहने के लिए उनके पिंजरे बने थे। जिसमें नाना प्रकार के पक्षी थे। उन पक्षियों में सबसे अधिक ध्यान गौरांग ने भारतीय नस्ल के तोते और मोर-मोरनीसफ़ेद रंग के कबूतर की ओर दिया। गौरांग उनकी ओर इशारा करके तृप्ती से बोलालो यहाँ भी हमारे देश के सर्वश्रेष्ट पक्षी उपस्थित हैं
उन पक्षियों को देखकर तृप्ती भी बहुत ख़ुश हुई और पूछ बैठीये यहाँ कैसे आये
एडविना ने जवाब में कहाइसके पीछे की कहानी बहुत ही इंटरेस्टिंग है। स्टीव तुम बताओगे कि मैं बताऊँ
तुम ही बताओ मैं तो पिछले एक घंटे से इन्हें बोर कर रहा हूँ
हुआ यह कि जब हमारी दादीजीदादाजी के साथ इंग्लैंड आने लगीं तो उन्होंने इन पक्षियों को अपने साथ लेकर आने की जिद्द की। हमारे दादाजी जो दादीजी को बहुत प्यार करते थे भला उनकी बात कैसे ठुकरातेलिहाज़ा ये पक्षी उनके साथ यहाँ आ गए
अब तो इन पक्षियों की यह कौन सी पीढ़ी है इसका ज्ञान तो हमें भी नहीं है बस इतना ही याद है कि जितने प्यार के साथ हमारे दादाजी और दादीजी ने इन्हें पाला पोसा तथा हम लोगों को विरासत में दिया तबसे हम लोग भी उसी प्यार से इन्हें पाल पोस रहे हैंस्टीव ने बीच में पड़ते हुए कहा।
क्या बात हैयह जानकर हमारी तबियत ख़ुश हो गईगौरांग बोला।
बेक यार्ड गार्डन बहुत देर बिताने के बाद जब वे लोग वापस घर की और चलने लगे तो स्टीव ने एक और बात बताईलंदन में आजकल सर्वेन्ट्स को अफ्फोर्ड करना कोई आसान काम नहीं पर इस मामले मे भी हमारे दादाजी और दादीजी ने बहुत अच्छा यह काम किया कि वे अपने साथ भारत से एक परिवार लेते आए और तभी से यह नेपाली परिवार हम लोगों के साथ रह रहा है। हमने उनके लिए वो सामने पीछे की बाउंड्री वाल के साथ आउट हाउस में इन्हें रहने ले लिए मकान दिया हुआ हैइस तरह हम यहाँ भी भारत की तरह सभी सुख सुविधाएँ प्राप्त कर रहे हैं
एक लिहाज़ में आप लंदन में रहते हुए भारत के राज के दिनों के पूरे सुख सुविधायों से परिपूर्ण जीवनयापन कर रहे हैंगौरांग ने यह कहते हुए एक नज़र से स्टीव और एडविना की और देखा।
बेक यार्ड गार्डन में तरह तरह के रंग बिरंगे फूल देखने के बाद स्टीव उन्हें लेकर घर के फर्स्ट फ्लोर में ले आये और वहाँ उन्होंने अपना और ऐश्ले का बेड रूम दिखाया। दोनों बेड रूम में क्लासिक ओरिएंटल टीक की फर्निशिंग हो रखी थी जिसे देख गौरांग और तृप्ती की तबियत ख़ुश हो गई। जब वे लोग ऐश्ले के बेड रूम में थे तो ऐश्ले भी वहीं थी उसकी ओर देखकर  गौरांग बोलावंडरफुल फर्निशिं बहुत ही आरामदायक बेड है
दोनों बेड रूम के ठीक सामने एक गलियारे था जिसमें बड़े बड़े शीशे लगे हुए थे जिनके पार सामने बहुत ही मनलुभावन थेम्स नदी  का दृश्य दिखाई पड़ता था। फर्स्ट फ्लोर दिखाने के बाद स्टीव उन्हें घर के नीचे वाले हिस्से में ले आए जिसमें डानिंग हॉल के साथ लगी हुई किचेनलाइब्रेरी और स्टडी रूम था। एक किनारे दो बेड रूम थे।  उन बेड रूम्स को दिखाते समय अचानक ही ऐश्ले ने प्रस्ताव कियाहमारे यहाँ यह दो गेस्ट रूम हैं जो अधिकतर खाली ही रहते हैं। मैं तो यह कहूँगी कि आप लोग भी यहाँ होटल से शिफ़्ट हो जाइए और जितने दिन रहना चाहें आराम से रहिये। यहाँ रह कर आप दोनों लंदन आराम से घूमिये। अगर आप ऐसा करते हैं तो हमारे परिवार को बहुत ख़ुशी होगी
हाँहाँक्यों नहींस्टीव और एडविना दोनों के मुंह से अचानक यह शब्द एक साथ निकले जिन्हें सुनकर तृप्ती बोल उठी, थैंक्स हम लोग यहाँ घूमने आए हैं और आपके उपर बर्डन नहीं बनना चाहेंगे
तृप्ती की बात को दुहराते हुए गौरांग भी बोल पड़ाऐश आपने हमें इतना सम्मान दिया हम आपके बहुत आभारी हैं
एडविना ने तृप्ती और गौरांग की बात सुनकर यह प्रस्ताव रखा‘‘चलिए अभी नहीं तो कोई बात नहीं पर जब आप इंडिया वापस जाने लगें तो कुछ दिन हम लोगों के साथ अवश्य गुज़ारे
बाद में वहां कुछ देर मार्टिन परिवार के साथ गुज़ार कर तृप्ती और गौरांग को लेकर ऐश्ले उन्हें लंदन घुमाने के इरादे से वेस्टमिन्स्टर आ पहुँची....





एपिसोड़ 7

वेस्टमिंस्टर आकर जब ऐश्ले ने बताया कि यह जगह लंदन वासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कारण यह कि यहीं उनका वेस्टमिंस्टर पैलेसपार्लियामेंटसरकारी काम काज के दफ़्तरयहीं बिग बेन हैयहीं 'अब्बे भी है और सबसे बड़ी बात कि यहाँ से बकिंघम पैलेस भी बस कुछ दूरी पर ही है।
तृप्ती ने वेस्टमिंस्टर के ब्रिज से जब इस विहंगम दृश्य को देखा तो वह गौरांग से बोलीयही दृश्य तो मेरी आँखों में बरसों से बसा हुआ था आज यहाँ आकर मेरे मन को संतोष मिला
इधर भी निग़ाह डाल लो उस तरफ लंदन आई है जो चंद साल पहले ही पूरी हुई है और हर वह व्यक्ति जो लंदन घूमने आता है एक बार इस पर चढ़ कर लंदन का नज़ारा लिए वापस नहीं जाता हैऐश्ले ने अपने शहर की तारीफ में कहा।
गौरांग भी बोल उठावेस्टमिंस्टर और उसके आसपास की यहाँ तक कि बकिंघम पैलेस तो उसका देखा हुआ है लेकिन लंदन आई अबकी बार मैं भी देखना चाहूँगा। सुना है रात को लंदन के नज़ारा दखते ही बनता है
तो ऐसा करते हैं कि पहले हम वेस्टमिंस्टर के सभी मॉन्यूमेंट्स देख लेते हैं उसके बाद बकिंघम पैलेस देखना ठीक रहेगा और शाम होते होते हम लोग लोग लंदन आई के पास आ जाएंगे टिकट वग़ैरह खरीद लेंगे और रात आठ बजे के आसपास हम लोग लंदन आई पर सवार हो मेरे प्यारे शहर की छटा को भी देख लेंगेऐश्ले ने सुझाव देते हुए कहा।
गौरांग ने उत्तर देते हुए कहामुझे भी यही ठीक लग रहा है
मुझे कम से कम थेम्स के वेस्टमिंस्टर के सामने वाले किनारे पर बैठने के लिए कुछ समय अवश्य दे देना मैं वहाँ कुछ देर अकेले में गुज़ारना चाहूँगी और डूबते हुए सूरज का नज़ारा हमेशा हमेशा के लिए अपने दिल में बसा कर अपने साथ ले जाऊँगी
अकेले में क्योंऐश्ले और गौरांग ने एक साथ पूछा।
तुम लोग तबतक इस वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर चहलकदमी करना मुझे वहाँ शांत वातावरण में अपने भविष्य की योजनाओं पर विचार करना हैतृप्ती ने जवाब में कहा।
गौरांग को शक़ हुआ कि तृप्ती ऐसी बात क्यों कह रही है उसके मन में आख़िर ऐसा क्या चल रहा है जो उसे और ऐश्ले को साथ साथ कुछ समय बिताने के लिए कह रही है। सोचकर भी गौरांग कुछ बोला नहीं और उसे भी लगा कि वह भी अपने मन की कुछ बात ऐश्ले से कह लेगाकुछ उसकी भी सुन लेगा।
कुछ देर वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर रुकने के बाद वे तीनों बिग बेन के पास से गुजरते हुए जब 'अब्बे की ओर बढ़ रहे थे तो ऐश्ले ने बताया कि पिछले कुछ सालों से कुछ ऊपर से बिग बेन की मरम्मत का काम चल रहा है और शायद अभी तीन चार साल तक और चलेगा। वहाँ के बाद वे 'अब्बे देखने के लिए चर्च में गए और वहाँ कुछ देर शांत वातावरण में सभी ने बैठ कर अपने अपने प्रभु को याद करते हुए कुछ न कुछ मांगा। कुछ ही दूर बकिंघम पैलेस था वे वहाँ भी गए। विक्टोरिया मेमोरियल और बकिंघम पैलेस के गेट के पास खड़े होकर उन लोगों ने फोटोग्राफी की और बाद में हाईड पार्क के नजारे देखने के लिए उधर बढ़ चले। वहाँ बैठकर चारों तरफ जब कोई नज़र घुमाए तो उसकी निगाह में इंग्लिश सभ्यता का वह हिस्सा दिखाई पड़ता है जिस पर आज भी हर इंग्लैंड निवासी का सिर फ़क्र से ऊँचा हो जाता है। इतना मनमोहक दृश्य देखकर तृप्ती बोल उठीमुझे यहाँ की यादगार हमेशा के लिए अपने साथ रखनी हैं इसलिए मुझे फोटोशूट करने देना और कभी भी मुझे टोकना नहीं
यह सुनकर गौरांग बोलायहाँ के मॉन्यूमेंट्स की तुम चाहे जितनी फ़ोटो खींचनातुम्हें कोई नहीं रोकेगा पर बीच बीच में हम लोगों की भी कुछ फोटो खींचती रहना जिससे हमको भी लगे कि हम भी कभी किसी के साथ यहाँ आए थे
ज़रूर मैं यह कैसे भूल सकती हूँ मुझे तुम दोनों को भी तो अपनी यादों में बसा कर जो रखना है......







                                                      
एपिसोड़ 7
गताकं से आगे: ऐश्ले अपने साथ गौरांग और तृप्ती को लेकर वेस्टमिंटर ट्यूब से आ गई जिससे कि वे आज यहां के मॉन्यूमेंट्स को देख सकें। उससे आगे...
वेस्टमिंस्टर आकर जब ऐश्ले ने बताया कि यह जगह लंदन वासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कारण यह कि यहीं उनका वेस्टमिंस्टर पैलेस, पार्लियामेंट, सरकारी काम काज के दफ़्तर, यहीं बिग बेन है, यहीं 'अब्बे भी है और सबसे बड़ी बात कि यहाँ से बकिंघम पैलेस भी बस कुछ दूरी पर ही है।
तृप्ती ने वेस्टमिंस्टर के ब्रिज से जब इस विहंगम दृश्य को देखा तो वह गौरांग से बोली, “यही दृश्य तो मेरी आँखों में बरसों से बसा हुआ था आज यहाँ आकर मेरे मन को संतोष मिला”
“उधर भी निग़ाह डाल लो। उस तरफ लंदन आई है जो चंद साल पहले ही पूरी हुई है और हर वह व्यक्ति जो लंदन घूमने आता है एक बार इस पर चढ़ कर लंदन का नज़ारा लिए वापस नहीं जाता है”, ऐश्ले ने अपने शहर की तारीफ में कहा।
गौरांग भी बोल उठा, “वेस्टमिंस्टर और उसके आसपास की यहाँ तक कि बकिंघम पैलेस तो उसका देखा हुआ है लेकिन लंदन आई अबकी बार मैं भी देखना चाहूँगा। सुना है रात को लंदन के नज़ारा दखते ही बनता है”
“तो ऐसा करते हैं कि पहले हम वेस्टमिंस्टर के सभी मॉन्यूमेंट्स देख लेते हैं उसके बाद बकिंघम पैलेस देखना ठीक रहेगा और शाम होते होते हम लोग लोग लंदन आई के पास आ जाएंगे टिकट वग़ैरह खरीद लेंगे और रात आठ बजे के आसपास हम लोग लंदन आई पर सवार हो मेरे प्यारे शहर की छटा को भी देख लेंगे”, ऐश्ले ने सुझाव देते हुए कहा।
गौरांग ने उत्तर देते हुए कहा, “मुझे भी यही ठीक लग रहा है”
“मुझे कम से कम थेम्स के वेस्टमिंस्टर के सामने वाले किनारे पर बैठने के लिए कुछ समय अवश्य दे देना मैं वहाँ कुछ देर अकेले में गुज़ारना चाहूँगी और डूबते हुए सूरज का नज़ारा हमेशा हमेशा के लिए अपने दिल में बसा कर अपने साथ ले जाऊँगी”
“अकेले में क्यों”, ऐश्ले और गौरांग ने एक साथ पूछा।
“तुम लोग तबतक इस वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर चहलकदमी करना मुझे वहाँ शांत वातावरण में अपने भविष्य की योजनाओं पर विचार करना है”, तृप्ती ने जवाब में कहा।
गौरांग को शक़ हुआ कि तृप्ती ऐसी बात क्यों कह रही है उसके मन में आख़िर ऐसा क्या चल रहा है जो उसे और ऐश्ले को साथ साथ कुछ समय बिताने के लिए कह रही है। सोचकर भी गौरांग कुछ बोला नहीं और उसे भी लगा कि वह भी अपने मन की कुछ बात ऐश्ले से कह लेगा, कुछ उसकी भी सुन लेगा।
कुछ देर वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर रुकने के बाद वे तीनों बिग बेन के पास से गुजरते हुए जब 'अब्बे की ओर बढ़ रहे थे तो ऐश्ले ने बताया कि पिछले कुछ सालों से कुछ ऊपर से बिग बेन की मरम्मत का काम चल रहा है और शायद अभी तीन चार साल तक और चलेगा। वहाँ के बाद वे 'अब्बे देखने के लिए चर्च में गए और वहाँ कुछ देर शांत वातावरण में सभी ने बैठ कर अपने अपने प्रभु को याद करते हुए कुछ न कुछ मांगा। कुछ ही दूर बकिंघम पैलेस था वे वहाँ भी गए। विक्टोरिया मेमोरियल और बकिंघम पैलेस के गेट के पास खड़े होकर उन लोगों ने फोटोग्राफी की और बाद में हाईड पार्क के नजारे देखने के लिए उधर बढ़ चले। वहाँ बैठकर चारों तरफ जब कोई नज़र घुमाए तो उसकी निगाह में इंग्लिश सभ्यता का वह हिस्सा दिखाई पड़ता है जिस पर आज भी हर इंग्लैंड निवासी का सिर फ़क्र से ऊँचा हो जाता है। इतना मनमोहक दृश्य देखकर तृप्ती बोल उठी, “मुझे यहाँ की यादगार हमेशा के लिए अपने साथ रखनी हैं इसलिए मुझे फोटोशूट करने देना और कभी भी मुझे टोकना नहीं"
यह सुनकर गौरांग बोला, “यहाँ के मॉन्यूमेंट्स की तुम चाहे जितनी फ़ोटो खींचना, तुम्हें कोई नहीं रोकेगा पर बीच बीच में हम लोगों की भी कुछ फोटो खींचती रहना जिससे हमको भी लगे कि हम भी कभी किसी के साथ यहाँ आए थे”
“ज़रूर मैं यह कैसे भूल सकती हूँ मुझे तुम दोनों को भी तो अपनी यादों में बसा कर जो रखना है”......
क्रमशः


एपिसोड 8
गतांक से आगे: वेस्टमिंस्टर के आसपास के सभी टूरिस्ट स्पॉट देख चुकने के बाद तीनों वेस्टमिंस्टर लौट आए।
आगे का हाल जानिए...

जब वे लोग सभी जगह घूम कर वापस वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर लौटे तो ऐश्ले ने प्रस्ताव किया, “हमारे पास अभी बहुत समय है। अगर आप लोगों का मन करे और थकान न लग रही हो तो क्या हम फ़ेरी लेकर लंदन टावर ब्रिज तक चल सकते हैं”
गौरांग ने ऐश्ले से पूछा, “वहाँ आने जाने में कितना समय लगेगा”
“कम से कम आने जाने में यही लगभग एक घंटा और उसके बाद लंदन टावर देखने में जितना भी समय लगे वह आपकी अपनी मर्ज़ी पर है कि आप वहाँ क्या देखना चाहेंगे”
“लंदन टावर तो वही किला है जिसमें कोहिनूर रखा हुआ है”, तृप्ती पूछ बैठी।
“एग्ज़क्टली, आपने सही कहा”, ऐश्ले ने जवाब में कहा।
तृप्ती ने मना करते हुए कहा, “तो आज रहने दो फिर कभी, अभी तो हमारे पास बहुत समय है”
“यह भी ठीक है किसी और दिन सही”, ऐश्ले बोली, “आपकी इस बात पर मुझे एक बात याद हो आई जो इस प्रकार है कि जब आप किसी जगह घूमने जाएं तो कभी उस जगह के रहने वाले को अपने साथ न ले जाएं क्योंकि उसके लिए तो सभी जगह देखी हुई होतीं हैं और उसे अपने मेहमान को घुमाने में कोई इंटरेस्ट नहीं होता”
गौरांग को लगा कि ऐश्ले कहीं तृप्ती की बात का बुरा तो नहीं मान गई इसलिए उसने बचाव में कहा, “ऐसा नहीं है तुमने आज जिस तरह वेस्टमिंस्टर हम लोगों को घुमाया और दिखाया है उतना तो कोई प्रोफेशनल टूर गाइड भी नहीं करता”
“अरे इस सबकी कोई आवश्यकता नहीं मैंने तो अपनी बात यूँही कह दी थी”, ऐश्ले बोली।
अब बातचीत पर मौसम का कुछ असर हुआ, क्योंकि अक्टूबर महीने के आख़िर में अगर आप वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर खड़े हैं तो यह निश्चय जानिए कि आपको वहाँ की तेज सरसराती ठंडी हवाओं से बचना ही होगा नहीं तो यह तय मानिए कि लंदन की सर्दी आपको कभी भी बिस्तरे पर आराम करने के लिए मजबूर कर देगी।
“अब सूरज डूबने में कुछ ही वक़्त बचा है तो मैं तो चली थेम्स के दूसरे किनारे पर जहाँ से मैं वो नज़ारा अपने कैमरे में क़ैद कर सकूँ जब सूरज वेस्टमिंस्टर के पैलेस और बिग बेन के पास होता हुआ हमारी आँखों से ओझल हो जाएगा। तुम लोग चाहो तो कहीं कॉफ़ी वगैरह पी लो”, तृप्ती ने गौरांग और ऐश्ले से कहा।
“देखना कहीं तुम खो न जाना। चलो ऐसा करते हैं कि हम लोग ठीक पैंतालीस मिनट के बाद वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर ठीक इसी जगह मिलते हैं, तब तक तुम जाओ अपने जीवन के कुछ पल जी लो”, गौरांग बोला।
तृप्ती ने भी उसी भाषा मे जवाब दिया, “तुम भी कुछ अपनी ज़िंदगी जी लो"।
इसके बाद तृप्ती थेम्स के दूसरे किनारे की ओर बढ़ गई और गौरांग और ऐश्ले दूसरी ओर जहाँ से फेरी चलती है। ऐश्ले ने प्रपोज़ किया कि वहीं पास में ट्यूब का वेस्टमिंस्टर स्टेशन है उसके पास एक अच्छा जॉइंट है हम लोग वहीं चलते हैं और एक एक कप कॉफी पी लेते हैं।
वेस्टमिंस्टर ब्रिज के दूसरी साइड जाकर वे दोनों वहाँ बहुत देर तक लंदन आई और आने जाने वाली फ़ेरियों को देखते रहे। आकाश में जैसे जैसे प्रकाश कम हो रहा था वैसे ही वहाँ जगमग जगमग करके एक के बाद एक लाइट्स ऑन होतीं जा रहीं थी। ऐसे मनोरम वातावरण में ऐश्ले गौरांग की ओर टकटकी लगाए देखे जा रही थी जब यह बात गौरंग ने नोट की तो वह ऐश्ले से पूछ बैठा, “क्या बात है ऐश तुम ठीक से तो हो?”
गौरंग का बस इतना ही पूछना था कि ऐश्ले ने गौरांग को अपने आगोश में लिया और उसके चेहरे के हर हिस्से पर न जाने कितनी ही बार चुम्बन किया और बोली, “मैं नहीं जानती कि तुम्हारा और तृप्ती का क्या रिश्ता है पर अब तुम हमारे रिश्ते को कुछ नाम दे ही दो”
ऐश्ले की भावनाओं की कद्र करते हुए गौरंग ने भी ऐश्ले को अपनी बाहों में लेकर सीने से लगाया और अपने अधर ऐश्ले के अधरों पर रख बहुत देर तक प्यार भरा चुम्बन लिया और बोला, “तृप्ती और मैं एक ऑफिस में साथ साथ काम करते हैं और वह मेरी एक अच्छी दोस्त है इसके अलावा हमारे बीच कोई और रिश्ता फिलहाल तो नहीं है”
“मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास न करने का कोई कारण नहीं दिखाई देता”, यह कहकर ऐश्ले ने गौरंग का हाथ अपने हाथ में लिया और वे वेस्टमिंस्टर ब्रिज के दूसरे किनारे की ओर बढ़ चले....
क्रमशः

एपिसोड 9
गताकं से आगे: तृप्ती ने गौरांग और ऐश्ले को वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर यह कह कर विदाई ली कि वह कुछ समय थेम्स के किनारे बैठ कर अपने जीवन के लिए कुछ रिजॉल्यूशन बनाने हैं। ऐश्ले, गौरांग को अपने इतने क़रीब पा कर कुछ देर के लिए सब कुछ भूल कर उसकी बाहों में झूल गई। जिस प्रकार भावनावश आकर ऐश्ले ने गौरांग को चूमा उसको देख कर गौरांग भी ऐश्ले को आहत नहीं करना चाहता था इसलिए प्रत्युत्तर में उसने भी ऐश्ले को अपने आगोश में लेकर उसके अधरों पर अपने अधर हस्ताक्षर कर दिए।
उसके बाद वे लोग वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर वेस्टमिंस्टर ट्यूब स्टेशन की तरफ आ पहुंचे। आगे फिर क्या हुआ जानने के लिए पढ़िए...
गौरंग और ऐश्ले धीरे धीरे चल कर वेस्टमिंस्टर ब्रिज के छोर तक आकर सीढ़ी से नीचे उतरते हुए वे लोग वेस्टमिंस्टर ट्यूब स्टेशन की ओर चलते गए। वेस्टमिंस्टर ट्यूब स्टेशन के पास ही वहाँ के कैफ़े में जाकर बैठ गए। अपने लिए आर्डर किये हुए स्नैक्स तथा कॉफी का इंतज़ार करने लगे। जब कुछ देर में एक खूबसूरत सी लड़की बेयरर उनकी टेबल पर समान रखकर जाने लगी तो गौरंग ने उसे धन्यवाद दिया। मुस्कुरा कर वह थैंक्स कहती हुई फिर से किचेन की ओर चली गईं और गौरंग उसकी ओर देखता रहा इस पर ऐश्ले ने उससे पूछा, “ क्या तुम्हें वह बहुत अच्छी लगी”
“बड़ा मुश्किल सवाल है। एक नारी ता ज़िंदगी नारी ही रहेगी। दूसरी नारी को हमेशा शक़ की निगाह से देखेगी वह चाहे एक हिंदुस्तानी हो या ब्रिटिश। मैं उसकी ओर देखकर यह एहसास कर रहा था कि हिंदुस्तान में बड़े बड़े होटल्स में तो नवयुवतियों के लिए अवसर हैं लेकिन छोटे छोटे स्ट्रीट साइड वेंडरों के यहाँ अभी भी उनके लिए कोई स्थान नहीं है"
गौरांग की स्त्रियों के बारे में की गई टिप्पणी को इग्नोर करते हुए एश्ले ने पूछा, “यह फ़र्क क्या अभी भी वहाँ प्रचलित है”
“अभी भी वहाँ का वैसा ही हाल है। समाज बदल तो रहा है पर बहुत धीमी रफ़्तार से”
“चलो भूल जाओ कि मैंने तुमसे उस बेयरर लड़की के बारे में कुछ सवाल किया। अपनी कॉफी एन्जॉय करो”
कॉफी पी लेने के बाद जब वे वहाँ से चलने लगे तो ऐश्ले ने अपने हैंड पर्स से हैंकी निकाल कर गौरंग के गालों पर लगे लिपस्टिक के निशान पोंछते हुए कहा, “अब ठीक है, तुम्हें तृप्ती कुछ नहीं कह सकेगी"
“ऐश थैंक्स फ़ॉर कर्टसी बट लेट मी टेल यू दैट आइ एम नॉट अफ्रेड ऑफ हर”
ऐश्ले गौरंग की यह बात सुनकर मन ही मन सोचने लगी कुछ भी हो इंसान पक्के दिलवाला है और उसके लिए उसके दिल में कहीं कुछ तो है। पैंतालीस मिनट होने को थे इसलिए ऐश्ले और गौरंग वहाँ आ पहुँचे और तृप्ती का इंतज़ार करने लगे। कुछ देर में ही तृप्ती भी वहाँ आ पहुँची। गौरंग ने उससे पूछा, “कैसा रहा तुम्हारा थेम्स के किनारे बैठने का एक्सपीरियंस”
“मज़ा आ गया। मैंने वहाँ बैठकर अपनी ज़िंदगी में मुझे क्या करना है उसके बारे में कई रेजौल्युशन बनाये, वहाँ बैठकर मुझे वैसी ही शांति का अनुभव हुआ जैसा कि हम लोग हरिद्वार में गंगा के किनारे बैठकर महसूस करते हैं"
“वाओ”, कहकर ऐश्ले ने कहा, “अगर कोई बात बहुत सीक्रेट नहीं है तो क्या तुम मुझे अपने रेजौल्युशन के बारे में बताओगी”
“ज़रूर पर जब हम किसी दिन अकेले में होंगे तब, गौरंग के सामने नहीं"
“मत बताना, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है”, कहकर गौरंग ने भी तृप्ती से पल्ला झाड़ा।
ऐश्ले कुछ समझ तो नहीं पाई पर दोनों के बीच कोई कटुता पैदा न हो इसलिए उसने कहा, “हम लोग अब लंदन आई की ओर चलें"
गौरांग और तृप्ती कुछ बोले तो नहीं पर ऐश्ले के साथ साथ धीरे धीरे कदमों से लंदन आई की ओर बढ़ चले। वहाँ पहुँच कर गौरांग ने आगे बढ़ कर टिकट विंडो से सभी के लिए टिकट्स लिए और वे लोग लंदन आई की ओर जाने लगे। वहाँ लंबी लाइन लगी हुई थी पर वे लोग भी लाइन में लग गए और अपना टर्न आने का इंतज़ार करने लगे। सिक्योरटी क्लेरेंस के बाद वे लोग अन्य लोगों के साथ लंदन आई के कैप्सूल में चढ़ गए। धीरे धीरे करके लंदन आई अपने सर्कुलर पाथ पर चलती रही। जैसे जैसे वह आगे बढ़ती रही उतना ही सुंदर नज़ारा लंदन सिटी का दिखता रहा, लाखों रँग बिरंगी रोशनियों में नहाया हुआ। जब लंदन आई का कैप्सूल अपने सबसे ऊपरी सतह पर आ पहुंचा वैसे ही तृप्ती ने गौरांग और ऐश्ले की साथ साथ फोटो खींच ली। वह पल कहीं हाथ से निकल न जाए इसलिए जल्दी से गौरांग ने ऐश्ले से कहकर ख़ुद तथा तृप्ती के साथ भी एक फोटो खिंचवाई।
फ़ोटो खींच लेने के बाद ऐश्ले बोली, “वाओ व्हाट अ नाइस कपल”
तृप्ती कुछ बोली तो नहीं पर उसके मन में कई ऐसे सवाल थे जिनका उत्तर वह ख़ुद भी नहीं ढूंढ पा रही थी फिर भी ऊपरी मन से ऐश्ले का धन्यवाद करते हुए कहा, “थैंक्स फ़ॉर कैप्चरिंग अस टुगैदर”
देर रात उन लोगों ने डिनर साथ साथ किया और ऐश्ले उनको उनके होटल में छोड़ कर जाने लगी तो गौरांग ने पूछा, “ऐश आर यू स्योर दैट यू विल रीच होम सेफली”
“ओह यस डोंट वरी लंदन इज सेफ सिटी एंड गुड नाईट”, कहकर ऐश्ले अपने घर के लिए निकल गई।
अपने अपने रूम में जाने के लिए जब गौरांग और तृप्ती लिफ़्ट से जा रहे थे तो तृप्ती बोली, “मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है कुछ देर मेरे साथ बैठ सकोगे?”
क्रमशः
एपिसोड 10
गतांक से आगे: वेस्टमिंस्टर के बाद लदंन आई से वहां का विहंगम दृश्य देखकर तृप्ती बहुत खुश थी इसलिए वह गौरांग को अपने रूम में साथ लेकर आई।
उसके आगे.....
तृप्ती के कहने पर गौरांग उसके साथ उसके रूम में आ तो गया लेकिन वह मन ही मन सोच रहा था कि ऐसी कौनसी बात है जो तृप्ती मुझसे कहना चाहती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह ऐश्ले को लेकर कुछ पूछे जैसा कि उसने पिछली मर्तबा पूछा था कि आज जब वह उससे अकेले में मिला तो उसने उसके साथ क्या किया? वगैरह वगैरह...
जब गौरांग सोफ़े पर बैठ गया तो बेड के एक किनारे बैठकर तृप्ती ने पूछा, “क्या बात है गौरंग मुझसे नहीं पूछोगे कि मैं तुमसे क्या बात करना चाहती हूँ?”
“ज़रूर पूछूँगा लेकिन जब तुमने कहा कि तुम कुछ बात करना चाहती हो तो मैं इन्तज़ार ही कर रहा था कि तुम अपनी ओर से बातचीत का सिलसिला शुरू करोगी”
तृप्ती ने गौरांग की बात सुनकर कहा, “आज मैं जब थेम्स के उस किनारे बैठकर अपनी ज़िंदगी के बारे में सोच रही थी तब मेरे मन में एक ही प्रश्न अहम था और वह था कि जब हमारे बच्चे होंगे तो हम उनका लालन पालन कैसे करेंगे?"
“तुम ही बताओ कि तुमने क्या सोचा”
“मैं तो उन्हें पढ़ने के लिए यहाँ इंग्लैंड भेजूँगी जिससे कि वे बेहतर इंसान बन सकें”
“तृप्ती यह तो बहुत सुंदर प्लान है हमको बस इस प्लान पर अडिग रहना चाहिए”
“मतलब कि हम इतना पैसा कमाने की कोशिश करें जिससे हम उनकी अच्छी परवरिश कर सकें”
“गौरांग मैं भी काम करूँगी और तुम्हारा हाथ बंटाने की कोशिश करूँगी”
“अगर तुम्हारा साथ मिलेगा तो मुझे लगता है कि हम अपने उद्देश्य में अवश्य सफल हो सकेंगे”
“एक बात और...”, तृप्ती बोली।
“वह क्या”
“हम लोगों को बच्चों की फ़ौज नहीं खड़ी करनी है अपने यहाँ वैसे ही आबादी 125 करोड़ का आंकड़ा छू रही है, हम एक ही बच्चा चाहते हैं वह चाहे पुत्र हो या पुत्री”
“मेरे लिए पुत्री और पुत्र एक समान हैं। इस तरह हम उस बच्चे को अपना पूरा प्यार दे सकेंगे”
“तो तय रहा”
“बिल्कुल तय रहा”, गौरांग ने यह कहकर तृप्ती को आश्वस्त किया।

जब तृप्ती चुप हो गई और कुछ न बोली, “तो मैं अब चलूँ बहुत थकान लग रही है”
“हूँ, ठीक है, चलो तुम आराम करो मैं भी आज खुल के सोना चाहती हूँ चूँकि तुमने मेरे मन की बात मान जो ली है”
“तो मैं चलूँ...”
तृप्ती अचानक पूछ बैठी, “कुछ चाहिए क्या?”
“क्या”
“ज़रा करीब तो आओ”, कहकर तृप्ती खड़ी होते हुए बोली और उसने गौरांग को अपने आगोश में भरा। जब तक गौरांग समझ पाता कि यह सब आखिर क्यों? उससे पहले ही तृप्ती ने अनेक बार गौरांग के चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी और बोली, “मैं कोई किसी इंग्लिश वुमन से कम हूँ”
गौरांग के दिल में फिर से वही सवाल उठ खड़ा हुआ कि कहीं तृप्ती उसको और ऐश्ले की लेकर कुछ सोच तो नहीं रही है। इसी बीच तृप्ती ने उसे धीरे से धक्का देते हुए कहा, “अब चलो भी तुम्हें तो नींद आ रही थी, मैं भी अब चैन की नींद सोऊँगी। बस एक बात मैं इस विजिट में ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटीज को देखना चाहूँगी वादा करो कि तुम मुझे वहाँ ले जाओगे”
“वादा रहा, हम लोग कल ही वहाँ चलने का प्रोग्राम बनाते हैं”, कुछ देर रुकने के बाद गौरांग ने तृप्ती से एक बार फिर पूछा, “क्या बोलती हो मैं चलूँ या रुकूँ”
“चलो भी। अभी तुम्हें और कुछ नहीं मिलने वाला जितना मिला वह बोनस था क्योंकि तुमने मुझे यूके घूमाने का वादा जो पूरा किया”, कहकर तृप्ती ने गौरांग को अपने रूम से बाहर जाने पर बाध्य कर दिया और दरवाज़े को सेक्युरेडली बोल्ट कर दिया।
गौरांग तृप्ती के रूम से निकल कर अपने रूम में जाते वक़्त सोच रहा था कि बच्चू बच गए तृप्ती ने कुछ और नहीं पूछा नहीं तो मैं उसे क्या जवाब देता। इन्ही सब ख्यालातों के चलते हुए वह अपने रूम में आया और कपड़े बदल कर सोने के लिए बेड पर लेट गया।
क्रमशः
एपिसोड 11
मित्रों,
आप सभी से एक विशिष्ट बात कहनी है कि यह धारााहिक भी मेरे अन्य धारावाहिकों की तरह मेरी यात्राओं के संस्मरणों को इस तरह पिरो कर आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास है जिससे आपको यह कथानक रुचिकर लगे। अगर आप यह कथानक पढ़ रहे हैं तो इसके बारे में अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
धारावाहिक का लिखना एक विशिष्ट कला है जो लेखक को पाठकों से संबद्ध बनाए रहने के लिए प्रेरित करती है, पाठकों की पसंद या ना पसंद का ज्ञान लेखक को होना चाहिए तभी कहानी रोचक और आपके मनभावन बनती है।
अतः आप से गुज़ारिश है कि आप अपनी टिप्पणी अवश्य लिखें.....
धन्यवाद सहित।
गतांक से आगे: तृप्ती ने जब गौरांग से ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज चलने का वायदा ले लिया उसके बाद प्यार से उसे अपने रूम से विदा किया।
आगे जानिए....
अगले दिन सुबह सुबह ऐश्ले का फोन गौरंग के पास आया और उसने यह जानना चाहा कि आज का क्या प्रोग्राम है गौरांग ने उत्तर में कहा,“आज हम लोग ऑक्सफ़ोर्ड जाना चाहते हैं”
“कोई खास काम है”
“नहीं बस ऐसे ही...”
“अगर किसी का एडमिशन कराने का प्रोग्राम हो तो बता देना डैड वहाँ की मैनेजिंग कमेटी के मेंबर हैं वह किसी भी कॉलेज में एडमिशन दिला सकते हैं"
“यह तो तुमने बहुत अच्छी खबर दी”
“वैसे तुम किसके एडमिशन की बात सोच रहे थे”
“मैं नहीं तृप्ती सोच रही थी”
“पर उसकी तो अभी शादी भी नहीं हुई तो उसके बच्चे कैसे हैं, क्या वह डिवोर्सी है”
“नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। अभी न तो उसकी शादी हुई है और न वह डिवोर्सी है। वह अपने होने वाले बच्चे के लिए अभी से प्लान बना रही है”
“इज शी प्रेग्नेंट”
“ओह नो, वह अपनी ज़िंदगी बहुत प्लान करके जीती है”
“यह तो बहुत अच्छी बात है”, ऐश्ले ने यह कहते हुए पूछा, “क्या तुम मुझे अपने साथ ले चलना चाहोगे या तुम दोनों अपने आप जाओगे”
गौरांग ने जवाब दिया, “तुम अगर बिजी नहीं है तो हमारे साथ चल सकती हो। अगर बिजी हो तो रहने दो, हम अकेले ही चले जायेंगे”
“तुम्हें वहाँ कैसे जाना है? पता है या ऐसे ही...”
“ढूंढ लूँगा, पढ़ा लिखा हूँ, तुम रहने ही दो”
इसके बाद ऐश्ले ने गौरांग को ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी कैसे जाना ठीक रहेगा, वह डिटेल्स में समझा दिया। उसके बाद जब तृप्ती गौरांग के पास तैयार होकर आई तो गौरांग ने ऐश्ले से क्या बात हुई उसे सिलसिलेवार बताया। गौरांग की बात सुनकर तृप्ती बोली, “कुछ भी कहो तुम्हारी दोस्त दिखावटी नहीं वह तुम्हें बहुत चाहती है इसलिए उसने तुम्हें वहाँ कैसे जाना है वगैरह ठीक से समझा दिया वरना आजकल कौन चिंता करता है"
“चाहती तो तुम भी बहुत हो मुझे”
“वह तो है, कोई शक़"
“कम से कम मुझे तो नहीं”, गौरांग बोला, “चलो चलें पहले हम लोग ब्रेकफ़ास्ट कर लेते हैं और फिर वहीं से ऑक्सफ़ोर्ड सिटी के लिए निकल चलेंगे”
“यह ठीक रहेगा, चलो चलें”, कहकर गौरांग को साथ ले तृप्ती नीचे होटल के रेस्टोरेंट में आ गई। वहाँ उन्होंने नाश्ता किया और ऑक्सफ़ोर्ड के लिए निकल पड़े। गौरांग ने रास्ते में कहा, “ऐसा करते हैं कि वहाँ जाने के लिए तो हम बस से चलते हैं वहाँ पहुँचने में डेढ़ घंटे करीबन लगेंगे 56 मील दूर है और वापस लौटते समय हम ट्रेन ले लेंगे जिससे हम कंट्री साइड भी देख सकेंगे।
“हाँ, मुझे भी यही ठीक लगता है”, तृप्ती ने भी गौरांग की बात से सहमति जगाई।
वे लोग जब बस से ऑक्सफ़ोर्ड जा रहे थे तो रास्ते उन्होंने बहुत सी वे जगह देखीं जिन्हें देखने के लिए उन्हें अपना एक दिन ख़राब करना पड़ता। सेंट्रल लंदन से होती हुई उनकी बस व्हाइट सिटी, नॉर्थला फ़ील्ड्स की हरियाली, एस्टन रोवन्त नेशनल नेचर रिज़र्व को पार करते हुए वेस्टर्न एवेन्यू वेस्टर्न एम 40 हाईवे से ऑक्सफ़ोर्ड पहुंची।
ऑक्सफ़ोर्ड सिटी में बहुत कुछ था देखने के लिए और समझने के लिए। वहाँ उन्होंने पहुँच कर एक टूर ऑपरेटर से बात की तो पता चला कि उन लोगों को वहाँ कम से कम तीन दिन का प्रोग्राम बना कर आना चाहिए था। जब गौरंग ने यह पूछा, “हमारे पास केवल सात आठ घंटे हैं इतने में हम क्या देख सकते हैं?”
टूर ऑपरेटर ने कहा, “वैसे तो यहाँ लोग अक़्सर गाइडेड वॉकिंग टूर पसंद करते हैं लेकिन आपके पास वक़्त कम है इसलिए मैं सुझाव दूँगा कि आप एक टैक्सी ले लें। एक गाइड के साथ कुछ महत्वपूर्ण स्थान देखकर शाम को लंदन वापस हो लें”
“यही ठीक रहेगा.....”, गौरांग बोला।
क्रमशः
एपिसोड 12
अपनी बात: कल एक मित्र ने यह सुझाव दिया कि कथानक तब और अच्छा लगेगा जब इसमें भारत की घटनाओं का भी सम्मिश्रण किया जाए। मैंने यह सुझाव मान लिया है और बीच बीच में इस कथानक में अब अपने देश की घटनाओं का जिक्र कुछ इस तरह आता रहेगा जिससे कि मूल कथानक की आत्मा भी बनी रहे और पाठक को भी पढ़ने में आंनद प्राप्त हो।
यही लाभ होता है जब पाठक कोई फीडबैक देते हैं।
धन्यवाद।
गतांक से आगे: गौरंग ने जैसे कि टूर ऑपरेटर ने सजेस्ट किया वही किया, उसने एक टैक्सी ली और हैरी के साथ ऑक्सफोर्ड को देखने के इरादे से वह और तृप्ती निकल पड़े।
आगे जानिए...
हैरी नाम के एक गाइड के साथ वे लोग एक टैक्सी से ऑक्सफ़ोर्ड सिटी के गाइडड टूर पर निकल पड़े। टैक्सी में बैठते ही हैरी ने पूछा, “सर आप यहाँ किस मक़सद से आए हैं अगर यह मुझे पता चल जाए तो मुझे आपको ऑक्सफ़ोर्ड सिटी को उस लिहाज़ से दिखाने में आसानी होगी”
इससे पहले कि गौरांग कुछ भी कहता तृप्ती उससे पहले ही बोल पड़ी, “मिस्टर हैरी हमारा यहाँ आने का मक़सद है कि हम अपने बच्चे को कहाँ पढ़ा लिखा सकते हैं जिससे वह एक बेहतर इंसान बने”
“मैडम आपका बच्चा अभी कितना बड़ा है”
“अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई हम बस अभी से आने वाले बच्चे के भविष्य की प्लानिंग कर रहे हैं”, गौरांग बोला।
हैरी जो कि ड्राइवर के साथ बैठा हुआ था उसने गौरांग और तृप्ती की ओर देखा और बोला, “सर एंड मैडम आप दोंनो को मेरा सलाम”
“क्यों ऐसा क्या हुआ”
“सर आप लोग इंडियन हैं, इसलिए ऐसा सोच सकते हैं। यहाँ के लोग तो बच्चों को पैदा करके उनको अपना कैरियर सेलेक्ट स्वयं तय करने के लिए छोड़ देते हैं, यही फ़र्क है ब्रिटश और इंडियन पेरेंट्स में। मैंने अपनी जिंदगी में कई इंडियंस को देखा है जिन्होंने अपने बच्चों को यहाँ पढ़ाया और वे बाद में सक्सेसफुल होने के साथ साथ अच्छे इंसान भी बने”, हैरी ने बड़े ही अदब के साथ यह कहा।
तृप्ती ने जवाब देते हुए कहा, “हमारा भी यही मक़सद है”
“क्या मैं यह समझूँ कि आप ऑक्सफ़ोर्ड सिटी को एक्सप्लोर करने के साथ साथ यहाँ के कॉलेजेस को भी देखना चाहेंगे”
“हैरी आपने बिल्कुल सही कहा”
“आप आराम से बैठिये पहले तो मैं आपको यहाँ के इतिहास के बारे में बताऊँगा और कुछ ऐतिहासिक भवनों को बाहर से दिखाऊँगा क्योंकि आपके पास बहुत ही लिमिटेड समय है"
“यही ठीक रहेगा”, गौरांग ने हैरी से कहा।
“देखिए ऑक्सफ़ोर्ड सिटी की स्थापना लगभग 911 ईसवी के आसपास जब हई और उसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफ़ोर्ड 1167 ईसवी  में उस वक़्त के इंग्लैंड के किंग के सहयोग से हुई थी। उस समय इंसान को पढ़ने लिखने की अहमियत पता न थी उस लिहाज़ में हम सब ब्रिटिश नागरिकों को इस पर नाज़ है। दूसरा यहाँ जाने माने कॉलेजेस हैं जिसमें पढ़ने के बाद लोग अच्छे प्रशासक, इंजीनियर, डॉक्टर, साइंस दां, लॉयर्स इत्यादि बने। यहाँ कई देशों के राज्य प्रमुखों के बच्चे भी पढने आते हैं”
ऑक्सफ़ोर्ड सिटी और यूनिवर्सिटी के बारे में विस्तार से बताने के बाद सबसे पहले हैरी गौरांग तथा तृप्ती को ऑक्सफ़ोर्ड कैसल दिखाने ले गया, उसके बाद वह उन्हें शहर के अन्य प्रमुख स्थानों पर जिसमें कि म्यूजियम और ऐतिहासिक हॉल वग़ैरह थे, कुछ समय उसने नदी के किनारे होते हुए कई कॉलेजेस के भवनों को भी बाहर से दिखाया जिसमें मशहूर ट्रिनिटी कॉलेज शामिल था।
दोपहर को उनके साथ ‘द चेरवेल बोट हाउस’ रेस्टोरेंट में लंच कराया और आख़िर में चर्च दिखाते हुए कहा, “बच्चे भगवान को न भूल जाएं इसलिए इस शहर में कई महत्वपूर्ण चर्च भी हैं जिसमें से आप एक मशहूर चर्च सेंटक्राइस्ट चर्च नार्थ गेट के सामने सामने खड़े हैं”
ऑक्सफ़ोर्ड सिटी घुमाने के बाद अंत में हैरी ने गौरांग और तृप्ती को रेलवे स्टेशन छोड़ते हुए उनका धन्यवाद किया और दुआ माँगी कि उनके बच्चे बड़े होकर यहाँ पढ़ने आएं और जीवन में खूब तरक़्क़ी करें। चलते चलते गौरांग ने भी हैरी की तारीफ़ करते हुए कहा, “मिस्टर हैरी आप बहुत अच्छे गाइड तो हैं ही उसके साथ ही नेकदिल इंसान भी हैं, हम आपके शुक्रगुज़ार हैं कि आपने हमें अपने शहर की विरासतों के बारे में बताया ही नहीं उन्हें दिखाया भी। हम जब कभी फिर आएंगे तो आपसे मिलने की तमन्ना रहेगी”
“थैंक्स मैं भी आपसे मिलना चाहूँगा बस ऊपर वाले से यही दुआ है कि तब तक मैं ज़िंदा रहूँ”, हैरी ने बहुत ही अदब से कहा।
गौरांग ने हैरी की बात सुनकर कहा, “हम अवश्य मिलेंगे”
गौरांग ने ट्रेन की टिकट ख़रीदी और समय रहते हुए अपनी कोच में आकर साथ साथ बैठ गए। तृप्ती धीरे से गौरांग से बोली, “घूमते घूमते आज तो थकक गए”
“थकान तो मुझे भी हो रही है पर कर क्या सकते हैं जब घूमने के लिए निकले हैं तो इतना तो बर्दास्त करना ही होगा”
“चलो कोई बात नहीं। हम जिस मक़सद से यहाँ आए थे कम से कम वह तो पूरा हुआ”
गौरांग तृप्ती से बोला, “इसका मतलब यह हुआ कि तुमने यह डिसाइड कर लिया कि हमारा बच्चा या बच्ची कहाँ पढ़ेगी”
“यह तो मैं अभी नहीं कह सकती पर हाँ इतना ज़रूर तय कर लिया है कि वह जो भी हो लड़का या लड़की उसे पोस्ट ग्रेजुएशन यहीं से करना होगा’, तृप्ती बोली।
“देखते हैं पहले बच्चे को होने तो दो”
“पहले शादी तो कर लो फिर देखते हैं”
“शादी ही भला क्यों? जो काम हमें करना है वह तो हम आज भी कर सकते हैं”
“क्या मतलब है तुम्हारा?”, तृप्ती ने पूछा।
“यह तो आज रात को बताऊँगा”
“हे मिस्टर हम हिंदुस्तानी हैं कोई अंग्रेज नहीं”
गौरांग शरारती मूड में था उसने तृप्ती को चिढ़ाने के लिए कहा, “अभी तो मेरे पास एक अंग्रेजी मैम भी है”
“हे मिस्टर होश में रहो और अपनी लिमिट में रहो। तुम पर पहला अधिकार मेरा है”
“जानता हूँ बाबा। मैं तो मज़ाक कर रहा था”
आँखों में आँसू लिए हुए तृप्ती बोली, “यह मज़ाक़ ही रहे उसके आगे कुछ और नहीं”
गौरांग ने तृप्ती का हाथ अपने हाथ में लिया और प्यार से सहलाते हुए कहा, “तुम मज़ाक़ करो तो कोई बात नहीं अगर मैं करूँ तो तुम परेशान क्यों हो जाती हो”
“इसलिए कि मैं तुम्हें चाहती हूँ और मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है”
“जानता हूँ। मैं भी सिर्फ़ प्यार तुमसे करता हूँ"
क्रमशः




एपिसोड 13
गतांक से आगे: तृप्ती ने गौरांग से सेंटिमेनल बातें करके यह आश्वासन ले ही लिया कि वह भी उससे उतना ही प्यार करता है जितना कि वह। अब आगे जानिए कि तृप्ती, गौरांग तथा ऐश्ले के प्रेम के इस त्रिकोण में गौरांग की मनोदशा क्या है........
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अगले रोज़ सुबह सुबह कल की तरह ऐश्ले का फ़ोन गौरांग के पास आया, “गौरांग तुम्हारा आज का क्या प्रोग्राम है”
“मैं तुम्हें कुछ देर बाद बताऊँ”, गौरांग ने ऐश्ले से पूछा।
“कोई बात नहीं आराम से बता देना, मैं आज घर पर ही हूँ”
“ऐश मुझे दस मिनट दो”
“ठीक है। यह तो बताओ कि तुम्हारा ऑक्सफ़ोर्ड में काम हुआ कि नहीं”
“हमारा विजिट बहुत बढ़िया रहा लेकिन अगर हम दो तीन रोज़ के लिए वहाँ गए होते तो बेहतर होता”
“मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि हमारे यहाँ देखने समझने के लिए बहुत कुछ है हर छोटे से छोटे शहर में कुछ न कुछ है”
“मैं तुम्हें फोन करता हूँ”
“आई विल वेट फॉर योर कॉल”, कहकर ऐश्ले ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया।
गौरांग ने तुरंत तृप्ती को इंटरनल फ़ोन पर बात कर पता किया, “क्या हम लोग आज कैम्ब्रिज देखने चलेंगे?"
“नहीं मैं कल ऑक्सफ़ोर्ड जाकर बहुत थकान महसूस कर रही हूँ’, तृप्ती ने उत्तर दिया।
“ओके ठीक है तो मैं ऐश को बता देता हूँ”
“बता दो। क्या उसका फ़ोन आया था”
“हाँ, कुछ मिनट पहले ही”
“एक काम करो आज हम लोग क्रूज से ग्रीनविच और टॉवर ऑफ लंदन देखने क्यों न चलें उस दिन ऐश्ले कह भी रही थी”, तृप्ती ने गौरांग से कहा।
“ठीक है तो मैं उसको दोपहर के बाद आने के लिए कह देता हूँ”
“ठीक है”
लंच करके गौरांग और तृप्ती ऐश्ले का इंतजार ही कर रहे थे और जैसे ही वह उनके होटल में आई तो उसके साथ वे ट्यूब से वेस्टमिंस्टर के लिए रवाना हो गए। रास्ते में तृप्ती ने ऐश्ले से पहली बार खुल कर बात करी। तृप्ती को यह विश्वास हो गया था कि कोई चाहे जितनी भी कोशिश कर ले गौरांग उसका है और उसे कोई छीन नहीं सकता। ऐश्ले तृप्ती के इस व्यवहार से अचंभित थी लेकिन वह चुप ही रही। वेस्टमिंस्टर पहुँच कर गौरांग क्रूज की ग्रीनविच तक की टिकट खरीदी। क्रूज में एक तरफ तृप्ती और दूसरी ओर गौरांग और बीच में एश्ले खुद बैठी जिससे कि ऐश्ले कोई बात बताए तो तृप्ती और गौरांग एक साथ सुन सकें।
एक हूटर के साथ कैप्टन ने अन्नोउंस किया कि क्रूज शीघ्र ही अपनी यात्रा पर निकल पड़ेगा। यह भी बताया कि आपकी मदद के लिए क्रूज पर एक क्वालिफाइड गाइड भी हैं जो आपको यात्रा की कमेंट्री देंगे अगर आपको कुछ पूछना हो तो अपना हाथ उठाइये और हमारा गाइड या अन्य स्टाफ आपकी मदद करने के लिए तुरंत हाज़िर होगा।
जैसे ही क्रूज ने अपना सफर शुरू किया गाइड ने गुड आफ्टरनून कह कर सभी का स्वागत किया और रास्ते में पड़ने वाले सभी मोनुमेंट के बारे में बताना शुरू किया,”सबसे पहले हमारी क्रूज अपने पहले स्टॉप जो कि लंदन आई के नाम से जाना जाता है वहाँ कुछ देर के लिए रुकेगा और जो पैसेंजर वहाँ से आना चाहें उनको साथ लेकर आगे लंदन टावर ब्रिज स्टॉप के लिए चल देगा"
बीच में गाइड ने थेम्स के दोनों ओर बने हुए भवनों और मौनमेंट्स की जानकारी भी दी। जैसे ही उनका क्रूज कुछ आगे बढ़ा तो उसने बताया, “वेस्टमिंस्टर से ग्रीनविच पियर तक कुल मिला कर आठ ब्रिज आते हैं। लंदन टावर इस रो में आठवां ब्रिज। यहाँ से लंदन टावर तक अभी हाल में बना हुआ मिलेनियम ब्रिज एक देखने वाला इंजीनियरिंग मार्बल है। इस ब्रिज का निर्माण रिकॉर्ड टाइम में पूरा किया गया अन्यथा थेम्स के ऊपर पड़ने वाले सभी ब्रिज बनाने में देरी हुई। एक और ब्रिज जिसे दुनिया लंदन ब्रिज के नाम से जानती है आज से 600 साल पहले बनाया गया था इसका अभी मेजर रिपेयर किया है और इसे मॉडर्न आउटलुक दिया गया है। गाइड ने यह भी बताया कि एक और ब्रिज है जिस से मेन रेलवे तथा ट्यूब का आना जाना होता है और साथ में नॉर्मल ट्रैफिक भी चलता रहता है इसलिए यह ब्रिज थेम्स के ऊपर पड़ने वाले सभी ब्रिजों से महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है"
गाइड ने यह भी बताया कि जो लोग चाहें वे डेक पर भी जा सकते हैं वहाँ अभी सीट्स खाली हैं। जो लोग बियर या चाय कॉफी पीने चाहें तो क्रूज की किचेन उन्हें ये सब और दूसरे खाने पीने के समान सर्व करने में सक्षम है। गाइड के अनोउन्समेंट के बाद हम तीनों डेक पर चले गए और वहाँ से अपने फ़ेरी के सफर को एन्जॉय करते रहे।
क्रूज थेम्स नदी के बीच से होकर जा रहा था लेकिन जब कभी कोई दूसरी क्रूज सामने से आता तो उसको जगह देने के लिये एक तरफ हो जा ता। थेम्स नदी का पानी इतना साफ सुथरा था कि जिसे देखकर तृप्ती बोल उठी, “काश हमारे यहाँ नदियों का रख रखाव और प्रंबंधन ठीक होता तो कोलकता से दिल्ली तक आराम से फ़ेरी से सामान ढोया जा सकता था”
जाते वक़्त वे लोग ग्रीनविच तक गए और वहाँ कुछ समय साइटसीइंग की और लौटते समय लंदन टावर ब्रिज के पास आकर टर्मिनल पर उतर गए। ऊपर आकर टावर ऑफ लदंन फोर्ट देखा। वहाँ कोहिनूर और राज परिवार के अन्य हीरे जवाहरात देख कर मन खुश हो गया। उन लोगों ने देखा कि जितने भी टूरिस्ट्स वहाँ आये हुए थे वे एक दूसरे की खूब फ़ोटो खींच रहे थे। तृप्ती ने अबकी बार गौरांग और ऐश्ले कई फ़ोटो खींची उसी तरह ऐश्ले ने गौरांग और तृप्ती की।
तकरीबन दो घंटे से ऊपर वहाँ घूमने के बाद वे लोग वेस्टमिंस्टर लौट आए। कुछ देर ट्रफलगर स्क्वायर पर गुज़ार कर वे ऐश्ले के साथ उसके घर डिनर के लिए चले आये। ट्रफलगर स्क्वायर को देखकर तृप्ती का मन बाग बाग हो गया लेकिन वे लोग उस दिन वहाँ अधिक देर तक नहीं रह पाए क्योंकि उनको आज ऐश्ले के डैड ने अपने यहाँ डिनर के लिए बुलाया हुआ था।
क्रमशः
एपिसोड 14 ( A )
गतांक से आगे: टॉवर ऑफ लदंन और लदंन टॉवर ब्रिज वगैरह घूमने और मौज मस्ती पिकैडली एस्कुएर में करने के बाद जब गौरांग और तृप्ती मार्टिन परिवार के साथ डिनर कर रहे थे, तब वहां क्या दिलचस्प बातें हुईं जानिए:
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उस दिन की शाम की बात है जब सब लोग ड्राइंगरूम में बैठकर गपशप कर रहे थे। एश्ले चुपचाप उठी और एक कैबिनेट से कुछ पुराने फोटो एल्बम निकाल कर लाई और बोली के इन फोटो में मेरे दादाजी तथा दादीजी की यादें बसी हुई है। उसके बाद ऐश्ल ने एक एल्बम अपने पिता स्टीव की तरफ बढ़ाया और बोली, “डेड आप ही बताइए इन पुरानी यादगार फोटो के बारे में”
स्टीव ने वो एल्बम अपने हाथ में लेते हुए कहा, "मेरे दादाजी जब अपने बड़े भाई के साथ हिंदुस्तान में मार्टिन बर्न नाम से बिजनेस सेट अप करने के सिलसिले में लखनऊ गए हुए थे जहां उनको ऐश बाग़ में एक पावर हाउस बनाना था। उन दिनो में हिंदुस्तान में विद्युत उत्पादन और वितरण की वह प्रणाली विकसित नहीं हुई थी जो कि आज है। उस ज़माने में सरकार छोटे बड़े शहरों में विद्युत प्रदान करने के लिए उत्पादन एवम वितरण के लिए लाइसेंस दिया करती थी। हमारे दादा लोगों ने यूपी में लखनऊ, इलाहाबाद, आगरा तथा मेरठ में और मध्य प्रदेश में जबलपुर तथा सागर शहरों के लिए विद्युत आपूर्ति का लाइसेंस प्राप्त किया था। हमारे बड़े दादाजी ने अपनी कंपनी का हेड क्वार्टर 12 मिशन रो स्ट्रीट, कोलकता में खोला था चूँकि उस समय कोलकता इंडिया की बिज़नेस कैपिटल मानी जाती थी। उसी सिलसिले में हमारे दादा फिलप मार्टिन लखनऊ में रहकर वहाँ का काम देख रहे थे। हमारे दादाजी ने वहाँ रहते हुए अमीनाबाद मार्किट के एक साइड में डायरेक्ट कर्रेंट सप्लाई करने के लिए पॉवर प्लांट लगाया था। बाद में उन्होंने ऐश बाग़ में थर्मल पावर प्लांट लगाया”
“वेरी इंटरेस्टिंग”, कहकर गौरांग ने मार्टिन परिवार के पावर प्लांट लगाने के प्रयासों को सराहा।
गौरांग की बात पर स्टीव बोले, “कोई भी बिज़नेस परमानेंट नहीं होती यह बात मेरे दादाजी हमेशा कहते थे। जब हमारे दादाजी आगरा शहर में भी पावर हाउस का काम ख़त्म कर लिया था उस समय एक घटना घटी"
गौरांग ने पूछा, “क्या”
“मेरठ शहर के एक उद्द्योगपति जिसने बिजली का बिल अदा नहीं किया था और उनकी कंपनी डिफ़ॉल्ट में चल रही थी। जब यह बात हमारे दादाजी को पता चली तो उन्होंने तुरंत उस उद्द्योगपति को फोन कर कहा ‘या तो आप बिल का भुगतान करिये नहीं तो डिस्कनेक्शन के लिए तैयार हो जाइए’। उस उद्द्योगपति ने न तो बिल का भुगतान किया और उसने हमारे दादाजी को यह कह कर धमकाया कि यूपी के चीफ मिनिस्टर उसके रिश्तेदार हैं वह दादाजी की शिकायत उनसे कह कर उनकी पावर कंपनी का लाइसेंस कैंसिल करवा देगा’। मेरे दादाजी को गुस्सा आया और उन्होंने उस उद्द्योगपति की कंपनी के कनेक्शन को डिसकनेक्ट करा दिया। बाद में जब चीफ मिनिस्टर के यहाँ से दादाजी के ऊपर दवाब डाला गया कि वह उस उद्द्योगपति की कंपनी का कनेक्शन चालू करवा दें तो हमारे दादाजी ने जवाब दिया ‘इट्स अगेंस्ट द रूल्स एंड कनेक्शन विल नॉट बि रेस्टोरड’। बस इसी बात पर यूपी सरकार ने हमारे दादाजी की कंपनी का लाइसेंस कैंसिल कर दिया। उसके बाद हमारे दादाजी इंडिया से अपना बिजनेस बंद करके इंग्लैंड बापस लौट आए”
“क्या बात है, दादाजी ने सही काम किया। मुझे यह जानकर बहुत ख़ुशी हुई, अन्याय के विरुद्ध उसी प्रकार जवाब देना था जो उन्होंने दिया”, गौरांग स्टीव की बात सुनकर बोला।
इतना बता लेने के बाद स्टीव पल दो पल के लिए रुके और फिर अपनी बात जारी रखते हुए बोले, “यह उन दिनों की बात है जब एक दिन सरकारी फंक्शन में मेरे दादा की मुलाकात मिस्टर जस्टिस केसी गेरा से हुई जो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में जज थे। उनके साथ उनकी पत्नी और उनकी पुत्री जिसका के नाम अनुराधा गेरा था वह भी वहीं थी। अनुराधा को देख कर पहली ही नजर में मेरे दादाजी उस पर फिदा हो गए और मन ही मन उनसे प्यार करने लगे। जब कभी उन्हें अवसर प्राप्त होता तो वह गेरा साहब के यहां चले जाते और वहां घंटों बिताते। धीरे धीरे मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता रहा और मेरे दादाजी अनुराधा गेरा के बहुत करीब आ गए। उस समय मेरी दादी जी अनुराधा गेरा लखनऊ यूनिवर्सिटी से एंसिएंट हिस्ट्री से एम ए की पढ़ाई कर रहीं थीं। मेरी दादी जी हर रोज यूनिवर्सिटी अपने घर माल एवेन्यू से बाइसिकल से जाया करती थीं। उस जमाने में यूनिवर्सिटी के रास्ते में गोमती नदी पर एक पुल बना हुआ था जोकि मंकी ब्रिज के नाम से बहुत विख्यात था। उस ब्रिज का नाम मंकी ब्रिज शायद इसलिए पड़ा होगा क्योंकि यूनिवर्सिटी की तरफ एक हनुमान जी का मंदिर हुआ करता था”
ऐश्ल अपने पिता को बीच में टोकते हुए बोली, “डेड आप लोगों को यह नहीं बताएंगे के दादाजी, दादीजी का पीछा करने के लिए हर रोज मंकी ब्रिज पर खड़े रहते और जब भी वे उन्हें दिखाई देती तो उनके साथ यूनिवर्सिटी तक आते और वहां नहर के किनारे बैठ कर काफी लंबी बात चीत करते”
“हाँ क्यों नहीं बताऊंगा मेरी दादीजी या दादाजी ने अपने जीवन में कोई गलत काम नहीं किया था इसलिए मैं उन बातों को क्यों छुपाना चाहूंगा। धीरे धीरे यह मुलाकात यूनिवर्सिटी से हट कर बड़े इमामबाड़े तो कभी छोटे इमामबाड़े में होने लगीं” इतना कहकर स्टीव ने दादाजी और दादीजी की कई ब्लैक एंड व्हाइट फोटो जो वहां कभी खिंचाई थीं दिखाईं और बोले, “उन दोनों का जब कभी मन करता तो वे लोग गोल मार्केट चौक चले जाते और वहां मिठाई आइसक्रीम वगैरह खाते”
जब चौक मोहल्ले की बात उठी तो गौरांग अपने आप को न रोक पाया और उसने स्टीव से पूछा, “आपके पास क्या उन दोनों की कोई फोटो है?”
“हाँ है न” कहकर स्टीव ने एक नहीं कई फ़ोटो अपने दादाजी तथा दादीजी को कभी मिठाई खाते हुए तो कभी आइस क्रीम खाते हुए की दिखाईं जिन्हें देखकर गौरांग बोला, “लखनऊ आज भी नहीं बदला ठीक वैसे ही है जैसे कि उस ज़माने में रहा होगा। यह देखिए इस फोटो में जो बिल्डिंग दिखाई पड़ रही है वह वहां के मशहूर जुएल्लर्स खुन खुन जी की है जो लगभग उसी बीच बनी होगी”
गौरांग की बात सुनकर स्टीव ने पूछा, “आपको लगता है लखनऊ शहर की अच्छी खासी नॉलेज है”
क्रमशः





एपिसोड 14(B)
गतांक से आगे: स्टीव ने जब अपने दादाजी और दादीजी के मिलन की अजीबो गरीब वाकया गौरांग और तृप्ती को सुनाया तो न जाने कितने ही मोहब्बत के ख़्वाब उनकी आंखों में तैर गए। बातों बातों में पुराने फोटोज देखते हुए जब ज़िक्र छोटा इमामबाड़ा और बड़ा इमामबाड़ा, हुसैनाबाद क्लॉक टॉवर, छतर मंजिल, कैसर बाग़, रेसीडेंसी, ला मार्ट कॉलेज, हजरतगंज, अमीनाबाद, चौक, लखनऊ के पुराने ज़माने का हो आया तो गौरांग के मुंह से निकल पड़ा, वाह वाह...
आगे जानिए कि फिर क्या हुआ...
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“वाह वाह क्या बात है”
“इतना ही नहीं जब कभी उन्हें समय मिलता और वे गोमती नदी पर बने शाही पुल के आसपास होते तो मेरे दादाजी, दादीजी से कहते कि शानो शौकत में यह शाही पुल किसी तरह लदंन के वेस्टमिंस्टर के ब्रिज से कम नहीं है”
“वाउ! लखनऊ के शाही पुल के लिए इतनी बड़ी बात अगर कोई लदंन निवासी कहे तो यह वास्तव में बहुत बड़ी बात है”
उसके बाद स्टीव ने गोल मार्केट चौक की तस्वीर दिखाईं और बोले, “उन दोनों का जब कभी मन करता तो वे लोग गोल मार्केट चौक चले जाते और राम आसरे की मिठाई, चाट, लखनऊ की विशिष्ट पहचान वाले मलाई मक्खन वगैरह खाते”
जब चौक मोहल्ले की बात उठी तो गौरांग अपने आप को न रोक पाया और उसने स्टीव से पूछा, “आपके पास क्या उन दोनों की कोई फोटो है?”
“हाँ है न” कहकर स्टीव ने एक नहीं कई फ़ोटो अपने दादाजी तथा दादीजी की फोटो दिखाकर गौरांग को बताया कि उनकी और भी कई फोटोज कभी मिठाई खाते हुए तो कभी आइस क्रीम खाते हुए थीं पर वे समय की मार झेलते झेलते खराब हो गईं बस उनकी अब यादें शेष हैं”
फोटोज को देखकर गौरांग बोला, “लखनऊ आज भी नहीं बदला ठीक वैसे ही है जैसे कि उस ज़माने में रहा होगा। यह देखिए इस फोटो में जो बिल्डिंग दिखाई पड़ रहीं हैं वह वहां के मशहूर बड़े इमामबाड़े की है जिसमें कुछ लोग बग्घी पर सवार हैं। बग्घी उन दिनों इधर उधर जाने के लिए रईस इस्तेमाल किया करते थे। चौक में जुएल्लर्स खुनखुन जी की कोठी है, क्या उसकी भी कोई फोटो है तो दिखाइए वह उस ज़माने में भी वैसी ही रही होगी जैसी कि आज”
गौरांग की बात सुनकर स्टीव ने पूछा, “खुनखुन जी की कोठी की तो लगता है कि कोई फोटो नहीं है। लगता है लखनऊ शहर की अच्छी खासी नॉलेज है”
“मैं वहाँ पैदा हुआ और पढ़ा लिखा हूं शायद इसलिए मैं लखनऊ को और लखनऊ मुझे अच्छी तरह से जानते पहचानते हैं”
“इसका मतलब क्या मैं यह समझूँ कि लखनऊ में कोई खास बदलाव नहीं आया”, स्टीव ने पूछा।
“जी नहीं। लखनऊ अब बहुत बदल गया है। लखनऊ शहर के बाहरी इलाकों में बहुत काम हुआ है और वहाँ नई नई कॉलोनी बस गई हैं। आलमबाग की तरफ अब तो लखनऊ सरोजिनी नगर से भी आगे निकल गया है और दूसरी ओर गोमती नदी के उस पार जहां निशात गंज हुआ करता था उस ओर इंदिरा नगर, गोमती नगर इत्यादि बनते बनते अब लखनऊ की सरहद बाराबंकी को छूने लगी है”
“अरे वाह वहाँ की संस्कृति वही है या उसमें भी कुछ बदलाव आया है”
“अरे साहब अब लखनऊ में वह पुरानी नजाकत, नफासत और बोलने का वो लहजा, वो अदब, अब कहां दिखाई पड़ता है। उर्दू जुबान का इस्तेमाल बहुत कम इलाकों में होता है और अधिकतर नए इलाकों में हिंदी या अंग्रेजी बोली जाती है”
“हमारे दादाजी को इंडिया छोड़ने का बहुत ग़म हुआ पर कोई कर भी क्या सकता है, जब बिजनेस ही बंद हो गया तो दादाजी वहाँ क्या करते"
गौरांग स्टीव की बात सुनकर पूछ बैठा, “ऐसा क्या हुआ कि उन्हें इंग्लैंड वापस आना पड़ा”
गौरांग की बात पर स्टीव बोले,"मेरे दादाजी हमेशा से यह कहते रहे कि कोई भी बिज़नेस परमानेंट नहीं होता यह बात मेरे दादाजी हमेशा कहते थे। जब हमारे दादाजी ने आगरा शहर में भी पावर हाउस का काम ख़त्म कर लिया था उस समय एक घटना घटी"
गौरांग ने पूछा, “क्या”
“जब मार्टिन बर्कोन का लाइसेंस जो कई शहरों में मिला था उसे यूपी सरकार ने कैंसल कर दिया, उसके बाद हमारे दादाजी को इंडिया से अपना बिजनेस बंद करके इंग्लैंड बापस आना पड़ा”
“क्या बात है दादाजी....। मेरे विचार में दादाजी ने भारत में रहते हुए वहां की प्रगति के लिए बहुत कुछ किया लेकन जब सरकारी तंत्र ही विरुद्ध हो जाए तो भला कोई क्या करे”, गौरांग स्टीव की बात सुनकर बोला।
“मेरा बहुत मन करता है कि मै भी एक बार लखनऊ जाकर देखूं कि वह हमारे दादाजी और दादीजी के दिल के इतने करीब कैसे आया जहां दोनों परिवारों की सहमति से मेरे दादाजी ने मेरी दादी जी के साथ कैथोलिक चर्च हजरतगंज में शादी रचाई थी और अपनी ज़िंदगी का अहम हिस्सा वहीं जिया था”
स्टीव की बात सुनकर ऐश्ले बोल उठी, “डैड आप जाएं और मैं न जाऊं ऐसा तो हो नहीं सकता। मैं भी आपके साथ इंडिया चलूँगी और देखूँगी हमारे हमारे पूर्वजों ने क्या क्या काम किए और इंडिया उनके दिल के करीब कैसे आया”
“चलेंगे जरूर चलेंगे और अभी नहीं कुछ दिन बाद”
“चलिए ना हमारे साथ ही चलिए। जब हम अपने इस ट्रिप के बाद इंडिया चलेंगे उस वक्त आप भी हमारे साथ चलिए”, गौरांग बोला।
“हिंदुस्तान के बदले हुए चेहरे को देखने की 'तमन्ना' फिर से जोर मारने लगी है। ठीक है देखते हैं कि यह मुमकिन हो पाएगा या नहीं। एडविना तुम भी चलोगी हमारे साथ”, स्टीव ने एडविना से पूछा।
“चलूँगी बाबा मै भी चलूंगी, यहाँ मेरे पास ऐसा कौन सा काम है जो मेरे न रहने से पूरा नहीं होगा”
“चलो तो यह तय रहा”, स्टीव ने यह कहकर गौरांग से बढ़कर हाथ मिलाया और कहा, “बस एक शर्त है कि आप लोग अपने इंग्लैंड दौरे के आखिरी में हमारे मेहमान बनकर यहाँ रहेंगे”
“ओके”, कहकर गौरांग ने मार्टिन परिवार को तसल्ली दी।
क्रमशः


एपिसोड 15
गतांक से आगे: दादाजी और दादीजी के बीच अंतरंग रिश्तों और लखनऊ के बारे में सभी के साथ बहुत देर तक चर्चा होती रही। चलिए आप भी जुड़िए और जानिए कि फिर क्या हुआ?
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बातचीत का दौरान ऐश्ले ने पूछा, “गौरांग आपका कल का क्या प्रोग्राम।है”
“तुम सजेस्ट करो कि हम लोगों को कहाँ जाना चाहिए”
“यह तो इस बात पर डिपेंड करता है कि आप लोगों का क्या इंट्रेस्ट है”
“हमने अभी तक जो भी देखा वह अविस्मरणीय था और उन यादों को लेकर हम हमेशा ख़ुशी महसूस करेंगे’, तृप्ती बीच में बोली, “लंदन आई, थेम्स पर क्रूज की मौज, वेस्टमिंस्टर, 'अब्बे, बकिंघम पैलेस और ऑक्सफ़ोर्ड बाकई बहुत अच्छे लगे”
“क्या हम रॉयल फ़ैमिली से कनेक्टेड कोई और मोन्यूमेंट देख सकते हैं?, ,गौरांग ने पूछा।“
क्यों नहीं रॉयल फ़ैमिली के लिए यहाँ बहुत सारी प्रॉपर्टीज हैं लेकिन उन सबमें सबसे भव्य है विंडसर कैसल जो कि क्वीन की प्राइवेट प्रॉपर्टी है”, स्टीव ने बताया।
“डैड मैं सोच रही थी कि वह ये लोग अपने विजिट के अंत में देखें जिससे कि वहाँ की यादें इनके मन को एक लंबे अरसे तक गुनगुनातीं रहें”, ऐश्ले ने सुझाव देते हुए कहा।
“यह भी ठीक है, ऐसा क्यों न करें फिर हम इन्हें यहाँ के मैग्निफिसिएंट सेंट पॉल’स कैथेड्रल, मेथोडिस्ट सेंट्रल हॉल, आल हैलो’स-बाय-द-टॉवर, सेंट जेम्सचर्च और द ब्रिटश म्यूजियम और एक लंबी लिस्ट है म्यूजियम देखने के लिए”, स्टीव ने सुझाव दिया।
ऐश्ले ने अपनी ओर से सुझाव दते हुए कहा, “उससे पहले मैं चाहती हूँ कि एक दिन मैं इन्हें हैम्पटन कोर्ट, केनिंगस्टन पैलेस, अल्बर्ट हॉल क्यों न दिखा दूँ”
“साथ में वहाँ के आसपास के चर्च, चैपल भी दिखा देना”, स्टीव बोले।
ऐश्ले बोल उठी, “लॉर्ड्स का क्रिकेट स्टेडियम भी तो है”
इतनी लंबी लिस्ट जानकर तृप्ती बोल पड़ी, “बस बस हमारे पास बस कुल दो तीन दिन और हैं उसके बाद हम लोग ग्रुप ट्रिप में स्कॉटलैंड के लिए निकल जाएंगे’
“एक एक कर देखते हैं कि हम कितने मौनुमेंट्स देख सकते हैं”, गौरांग बोल पड़ा।
“तुम कुछ भी कहो कुछ समय हम लोग यहाँ की ज़िंदगी का एहसास भी करना चाहेंगे”, तृप्ती ने अपनी फरमाइश कर दी, “......और शॉपिंग भी”
गौरांग ने तृप्ती से कहा, “हाँ भाई सब कुछ एक ही ट्रिप में कुछ अगले ट्रिप के लिए भी छोड़ दो”
एडविना ने सुझाव दिया कि, “अभी तीन दिन बाकी हैं तो मेरी समझ से उतना ही प्रोग्राम बनाया जाए जिसे पूरा किया जा सके”
स्टीव ने भी एडविना के मशवरे से अपनी सहमति व्यक्त करते हुए कहा, “मेरे विचार से एडविना का सुझाव मनाने योग्य है”
इसके बाद गौरांग ने ऐश्ले की ओर देखते हुए कहा, “ऐसा करते हैं कल हम लोग सबसे पहले सेंट पॉल’'स कैथेड्रल देखने जाएंगे क्योंकि उस चर्च में प्रिंसेस और हार्ट थ्रोब लेडी डायना का विवाह प्रिंस चार्ल्स से हुआ था। उसके बाद देखते हैं कि कितना समय मिलता है उसी प्रकार डिसाइड करेंगे”
“यही ठीक रहेगा”, ऐश्ले ने भी अपनी सहमति गौरांग के विचार से जताई।
इसके बाद बहुत देर रात तक गौरांग और तृप्ती की मार्टिन परिवार के साथ बहुत से अन्य प्रश्नों जिसमें अहम थे यूरोप के बदलते हुए हालात में यूके में क्या बदलाव के लिए ब्रिटिश तैयार हैं वग़ैरह वग़ैरह। जब गुड नाईट कहने का समय आया तो ऐश्ले बोली, “एक मिनट रुको मैं अपनी कार से आप लोगों को होटल तक छोड़ दूँगी”
“रहने भी दो हम लोग टहलते टहलते हुए निकल जाएंगे”
“गौरांग तुम यह न सोच बैठो कि हमारे यहाँ कार नहीं है इसलिए। वैसे भी रात के समय ट्रैफिक कम ही मिलेगा”
“एज़ इट सुइट्स यू”, गौरांग ने ऐश्ले से कहा।
अगले दिन जब ऐश्ले गौरांग और तृप्ती के होटल में उन्हें लेने आई तो गौरांग बोला, “आओ एक कप चाय पीना चाहोगी”
“रहने भी दो”
“आओ न सिर्फ एक चाय कुछ और नहीं....”, कहकर गौरांग ऐश के साथ होटल के रेस्टॉरेंट में बैठ गए।
ऐश्ले ने पूछा, “तृप्ती कहाँ है”
“वह बस हमें जॉइन करने ही वाली है”
“ओके”, कहकर ऐश्ले बहुत ही प्यार भरे लहजे में गौरांग की आँखों में देखते हुए बोली, “तुम्हें मालूम है आज जहाँ हम चल रहे हैं वहाँ मैं तुम्हें एक बार फिर से आने का निमंत्रण दूँगी जब मैं मैरिज गाउन वह भी एक लंबी ट्रैन वाला पहनूँगी”
“ठीक वैसा जैसा कि लेडी डायना ने पहना था”, मुस्कुराते हुए गौरांग बोला।
“बिल्कुल वैसा तो नहीं पर कुछ कुछ उसी जैसा उस दिन मेरे डैड और मॉम के अलावा और भी कई फ़ैमिली फ्रेंड्स रहेंगे”
“ठीक है मैं भी अपना सबसे बढ़िया सूट पहन कर तुम्हारा इंतज़ार करूँगा”
जब गौरांग ने यह कहा तो ऐश्ले ने उसका दायाँ हाथ अपने हाथ में लेकर चूमा और बोली, “मुझे यही उम्मीद है”
इसी बीच तृप्ती वहाँ आ गई और उसने गौरांग का हाथ ऐश्ले के हाथ में देख लिया पर उसने अभी कुछ भी कहना ठीक नहीं समझा इसलिए उसने ऐसे दर्शाया जैसे कि उसने कुछ देखा ही नहीं। ऐश्ले ने तृप्ती को देखते ही गुड मॉर्निंग कहा और पूछा, “तृप्ती तुम चाय पीना चाहोगी”
“नहीं, मैंने ब्रेकफ़ास्ट के साथ पी थी”, तृप्ती ने पूछा, “,चलें”
“हाँ चलो चलें”, गौरांग बोला और वे तीनों होटल से निकल पड़े।
वे लोग सीधे सेंट पॉल’'स कैथेड्रल आए और वहाँ बहुत देर तक बाहर ही खड़े होकर चर्च के आर्किटेक्ट को निहारते रहे। बाद में वे लोग चर्च में अंदर आए और वहाँ कुछ देर बैठकर अपने अपने प्रभु को याद किया। वे लोग जब वहाँ थे तो ऐश्ले ने एक हाथ गौरांग के हाथ पर रख कर उसे अपनी ओर आकर्षित किया और कहा, “याद रखना तुमने यहाँ यीशु और मदर मैरी के सामने कुछ प्रोमिस किया है”
तृप्ती ने उनकी बातें नहीं सुनी क्योंकि वह अपनी प्रार्थना में तल्लीन थी। वहाँ से बाहर निकल कर ऐश्ले ने गौरांग और तृप्ती के कुछ फ़ोटो खींचे ठीक उसी तरह तृप्ती ने कुछ फोटो गौरांग और ऐश्ले के खींचे। वहाँ तकरीबन आधा घंटे से अधिक बिता कर वे लोग कुछ समय फेस्टीवल गार्डन में बैठे और उसके बाद पास ही के म्यूजियम ऑफ लंदन देखने चले गए।
क्रमशः


एपिसोड 17
गतांक से आगे: सेंट पॉल चर्च में आज बहुत कुछ ऐसा हुआ जिस पर किसी की नजर पड़ी तो किसी को अपनी मन मुराद चीज मिली। जानिए फिर आगे क्या हुआ.....
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लंदन में रहते हुए तृप्ती और गौरांग ने कई म्यूजियम देखे। इधर उधर सड़को की खाक़ भी छानी। साथ ही साथ वहाँ का रहन सहन, लोगों से बातचीत की, कभी इस रेस्टॉरेंट में बैठकर तो कभी दूसरे रेस्टॉरेंट में बैठकर फ़िश न चिप्स का मज़ा उठाया। एक दिन तो ऐश्ले के कहने पर तीनो लोगों ने अल्बर्ट हॉल में एक कॉन्सर्ट भी देखा। कहने का मतलब खूब एन्जॉय किया कभी कभी तृप्ती और गौरांग में बहस भी हो जाती जब उसे कोई सामान बाजार में इधर उधर घूमते हुए पसंद आ जाता और वह उसे खरीदने की जिद्द करती। गौरांग उससे यही कहता कि अभी वे लोग जिस मक़सद से यहाँ आए हैं, घूमलें शॉपिंग बाद में करना ठीक होगा। लेकिन तृप्ती हमेशा कहकर अपनी बात मनवा लेती कि पता नहीं दोबारा वह सामान नज़र में पड़ेगा भी या नहीं। एक बार तो झुँझला कर गौरांग ने तृप्ती के इस क्रेज को देखते हुए एश्ले से कहा, ”इंडियन वीमेन को आप खाना खाने को न दो चलेगा लेकिन अगर वह शॉपिंग स्प्री पर है तो उसे न टोको”
गौरांग की बात सुनकर ऐश्ले बोल पड़ी, “व्हाई इंडियन वीमेन यह बात तो वर्ल्ड ओवर सभी लेडीज पर लागू होती है”
ऐश्ले के इस कथन पर तृप्ती ने अँगूठा दिखाकर गौरांग को खूब चिढ़ाया और कहा, “मर्द कभी भी स्त्री के मन को नहीं समझ पाएंगे”
“छोड़ो भी अब तुम इस समान को लेकर ढोती रहना। मैं तुम्हारा वजन उठाने वाला नहीं”, गौरांग ने भी तृप्ती को चिढ़ाते हुए कहा।
दोनों को बच्चों की तरह एक दूसरे को चिढ़ाते हुए देख ऐश्ले ने कहा, “कोई बात नहीं आप लोगों के पास जो एक्सट्रा लगेज हो वह आप हमारे यहाँ छोड़ दीजियेगा और इंडिया वापस जाते हुए ले ले लीजिएगा”
तृप्ती गौरांग से बोली, “देखा एक स्त्री दूसरी स्त्री की किस तरह मदद करने को तैयार रहती है और एक तुम हो...”
तृप्ती की बात सुनकर गौरांग मन ही मन सोचने लगा जब एक स्त्री दूसरी स्त्री की मदद स्वेच्छा से गृहीत करती है लेकिन जब वही स्त्रियां न जाने क्यों एक दूसरे का समझने में ग़लती क्यों करतीं हैं। प्यार ही तो है जो किसी को भी किसी से हो सकता है।
उसके बाद वे लोग होटल आए और जो समान उनको अपने साथ आगे सफर पर नहीं ले जाना था उसे ऐश्ले के घर छोड़ने के लिए टैक्सी से गए। स्टीव और एडविना ने उन्हें अपने यहाँ रोक लिया और डिनर करा कर ही उन्हें छोड़ा। बाद में ऐश्ले उन्हें उनके होटल पर ड्राप करने जब आई तो गौरांग ने उससे कहा, “अब तो हम लोगों को हर हाल में लौटते समय तुम्हारे यहाँ रुकना ही पड़ेगा”
“मैं क्या तुमको इतनी आसानी से वगैर मिले हुए जाने देती”, ऐश्ले बोली, “अच्छा यह बताओ कि मैं तुम्हें कहाँ पिकप करने के लिए आऊँ”
“हम अपने टूर ऑपरेटर से बात करके बाद में बता देंगे”, तृप्ती बोली।
“मैं तुम्हें फोन करूँगा”, गौरांग ने ऐश्ले से विदा लेते हुए कहा।
चलते समय ऐश्ले ने दोनों को किस किया और अपनी कार स्टार्ट की और वह अपने घर की ओर चल पड़ी। एश्ले की कार को दूर जाते हुए गौरांग ऐश्ले को वेव करता रहा और तृप्ती अपनी निगाह गौरांग के ऊपर लगा कर उसे ही देखते रही।
क्रमश


एपिसोड 18
गतांक से आगे: एश्ले ने गौरांग और तृप्ती को उनको उनके होटल पर छोड़ा और अगले रोज मिलने का वायदा कर के वह अपने घर के लिए निकल गई। आगे जानिए कि क्या हुआ...
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अगली सुबह गौरांग और तृप्ती अपने होटल से चेक आउट करके हीथ्रो एयरपोर्ट के पास' होटल नॉवटेल, हॉलिडे ' इन चेन के रिसेप्शन एरिया में पहुँच कर टूर गाइड कुलकर्णी से मिले जो इन लोगों का इंतज़ार ही कर रहे थे। कुलकर्णी ने उठकर हमारा स्वागत करते हुए कहा, “आइये आप ब्रेकफ़ास्ट कर लीजिए उसके बाद हम लोग यहाँ से लगभग नौ बजे निकलेंगे। मैं आपका इंट्रोडक्शन ग्रुप के अन्य सदस्यों से भी करा दूँगा”
गौरंग ने जब पूछा, "हमारे ग्रुप में कितने लोग हैं और क्या वे सब लंदन आ चुके हैं”
“जी वे सब लंदन पहुँच गए हैं। बाकी सब तो इसी होटल में हैं। लेकिन एक फैमिली जो दुबई से दो रोज़ पहले ही आ गए थी वह पास ही के एक होटल में रुके हुए हैं और वे भी बस पहुँचने वाले ही हैं। हमारे ग्रुप में कुल मिला कर 20 मेंबर्स हैं। मैं सुविधानुसार इतने बड़े ग्रुप को दो सब ग्रुप में बाँट दूँगा जिससे कि सभी को सुविधा होगी”
गौरांग और तृप्ती ने वहीं होटल में ब्रेकफ़ास्ट किया और जब सभी लोग वहाँ आगये तो उनसे मुलाक़ात भी की। जब सब लोग चार्टर्ड बस में बैठ गए तो कुलकर्णी ने स्वयं को इंट्रोड्यूस करते हुए अपने दूसरे साथी देसाई को परिचय कराया और उसके बाद कोच कैप्टन लुईस का जो पुर्तगाल का निवासी था लेकिन लंदन में यहाँ आकर जॉब करता था, उसकी माँ यहीं लंदन की रहने वाली थी और उसके पिता एक पुर्तगाली।
इसके बाद कुलकर्णी ने दो ग्रुप के फार्मेशन की घोषणा की और एके दूसरे से परिचय कराया। परिचय कराते समय कुलकर्णी ने यह भी कहा, “कोशिश तो हमने पूरी की है कि इन ग्रुपों में वे लोग शादी शुदा हों वे एक साथ ही रहें। बच्चे अपने मां और पिता के साथ रहें। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आए तो अलग अलग हैं पर वे किसी विशेष कारण वश किसी के साथ रहना चाहते हैं तो कृपया वे लोग उन्हें पहले ही बता दें”
जब सबने अपनी अपनी चॉइस बता दी तो कुलकर्णी ने दो ग्रुप बना दिए।
गौरांग तथा तृप्ती दोनों ने अपना अपना प्रिफरेंस साथ साथ रहने का कुलकर्णी को बताया और यह रिक्वेस्ट भी कि उन्हें एक ही ग्रुप में रखा जाए। उनके के ग्रुप में दो फैमिली और थीं। वे दोनों एक कोहली और दूसरी वर्मा दिल्ली की रहने वालीं थीं। कोहली जी लगभग पचास इक्कावन साल के और वर्मा लगभग यही चालीस पैंतालीस के आसपास रहे होंगे और उन दोनों के दो दो बच्चे साथ थे। कोहली जी की बेटी बड़ी जिसकी उम्र यही सत्तरह अठारह की रही होगी, जिसका नाम था वंदना। बेटे का नाम था रोहन, जिसकी उम्र यही चौदह पंद्रह के आसपास होगी । वर्मा जी के दो बेटे थे, बड़े का नाम रमेश और छोटे का नाम सुरेश था। वे दोनों यही आठ या नौ साल के रहे होंगे। दोनों लोगों ने एक दूसरे का परिचय कराते हुए एक दूसरे के बारे में बताया। जब नंबर वंदना का आया तो वह तपाक से बढ़ कर तृप्ती और बाद में गौरांग से मिली। गौरांग से मिलते समय उसकी आंखों में कुछ अजीब सी चमक थी जो कि अक्सर अल्हड़पन के दिनों में लड़कियों की आंखों में होती है।
जब कुलकर्णी ने यह सब कर लिया तो उसने कुछ कायदे कानून बताए जो हर व्यक्ति को फॉलो करने थे जिससे कि यह ट्रिप सबके लिए एक यादगार ट्रिप बन सके। सबसे जो अहम बात थी कि हर व्यक्ति की समय का ध्यान रखना चाहिए और जितना समय ग्रुप गाइड तय करे उतने समय में सबको बस पर वापस आ जाना चाहिए जिससे कि बस टाइम से अगले डेस्टिनेशन के लिए चल सके।
बस जब ये सब फॉर्मेलिटीज कंप्लीट हो गईं तो बस अपने पहले डेस्टिनेशन स्टेटफोर्ड अपॉन एवन के लिए चल पड़ी। गौरांग और तृप्ती कुलकर्णी की सीट के ठीक पीछे वाली सीट पर बैठ गए जिससे कि अगर उन्हें कोई बात पूछनी हो तो चलती हुई बस में भी पूछ सकें। लंदन से स्टेटफोर्ड अपॉन एवोन की दूरी लगभग 160 मील थी जो वे लोग दो घंटे में पूरा करने की कोशिश में थे। स्टेटफोर्ड अपॉन एवोन पहुँच कर बस हाईवे से शहर के अंदर मुड़ी और शहर के ठीक बीचोबीच एक छोटे से पार्किंग लॉट में आकर खड़ी हो गई। बस के रुकने के बाद कुलकर्णी ने अनोउन्स किया कि बस वहाँ ढाई घंटे रुकेगी और ठीक ढेड़ बजे अपने अगले डेस्टिनेशन मेनचेस्टर के लिए चल पड़ेगी। सभी लोग समय का ध्यान रखें और समय रहते बस स्टॉप पर वापस लौट आएं।
दोनों ग्रुप्स अपने अपने ग्रुप लीडर के साथ निकल पड़े। स्टेटफोर्ड अपॉन एवन के बारे में बताते हुए गौरांग और तृप्ती के ग्रुप लीडर देसाई ने बताया, “यह एक छोटा लेकिन बहुत ही मशहूर शहर है क्योंकि यहाँ विलियम शेक्सपियर का जन्म ही नहीं हुआ बल्कि यहीं रहते हुए उन्होंने कई महान रचनाओं को पूरा किया जो कि इंग्लिश लिटरेचर की मास्टरपीस मानी जाती हैं। आइए आप लोग मेरे पीछे पीछे चलिए और इस जगह को मेरे साथ एक्सप्लोर करिये। अगर आपको कुछ पूछना हो तो बड़े आराम से अपनी बात पूछिये”
सब लोग देसाई के पीछे चलते हुए रास्ते में सबसे पहले हम मेनचेस्टर पहुँचने के पहले स्टॉफफोर्ड रुकना था। यह वही जगह थी जहाँ शेक्सपियर ने जन्म लिया और अपने जीवनकाल में कई महान गाथाओ की संरचना की। वे लोग वहाँ के मार्किट में आ गए ठीक वहाँ जहाँ शेक्सपियर का घर था, जिसमें उनका जन्म हुआ और जीवनयापन किया। वहीं उन्होंने महान रचनाओं को रचा।
तृप्ती ने वहाँ ख़ूब सारे फ़ोटो खींचे। जब वे लोग घूमते घामते मार्किट में आगे बड़े तो स्ट्रेटफोर्ड की रौनक देखी। छोटा सा मार्केट था पर बहुत ही साफ सुथरा।वे लोग टेढ़े मेढ़े रास्तों से गुज़रते हुए उस चैपल के सामने कुछ देर के लिये रुके। जहाँ शेक्सपियर जैसी महान हस्तियां पूजा अर्चना के लिए जातीं रहीं होंगी। चैपल से कुछ दूर ही वह लाइब्रेरी थी जहाँ बैठ कर शेक्सपियर ने बहुत काम किया था।
शेक्सपियर के बारे में जितना भी कहा जाए वह कम ही रहेगा। शेक्सपियर को अक्सर ही लोग इंग्लैंड का राष्ट्रीय कवि और "Bard of Avon" कह कर पुकारते थे। उनका जन्म अप्रैल, 1564 और मृत्यु 23 April, 1616 में हुई।
स्ट्रेटफोर्ड शहर एवोन नदी के किनारे बसा हुआ एक मध्युगीन शहर था। इसलिए कुछ समय निकाल कर सभी लोगों ने Avon में बोट राइड का मज़ा उठाया। गौरांग और तृप्ती तो वैसे इंजीनियरिंग के छात्र रहे फिर भी उनके साहित्य से दूर रहते हुए कुछ विशेष सम्बंध बना रहा। इस तरह उनकी स्ट्रेटफोर्ड की यात्रा किसी धार्मिक स्थल से कम नहीं रही। उन्हें सबसे अधिक खुशी तो इस बात की थी कि वे अपने जीवन के इस भाग में इस महान लेखक के शहर में आकर ख़ुशी का अनुभव कर रही थे।
जब वे लोग वहाँ के सभी दर्शनीय स्थलों को देख चुके तो देसाई ने सभी को यह लिबर्टी दी कि वे अपनी मर्ज़ी का लंच ले सकते हैं और उसके बाद समय से बस स्टॉप पर वापस लौट जाएं।
मार्किट में वापस आकर गौरांग और तृप्ती ने एक रेस्टोरेंट में बैठ कर लंच लेने का मन बनाया। हम लोगों ने अपने लिए एक विंडो के पास वाली टेबल सेलेक्ट की और वेटर को बुला कर पहले ठंडी ठंडी बियर लाने का आर्डर दिया। जब वह आर्डर लेकर जाने लगा तो गौरांग ने बहुत विनम्र भाव से उससे कहा कि क्या वह उन लोगों को पानी पिला सकता है। उसका उत्तर था, “क्यों नहीं”
इसके बाद वह सभी के लिए पानी दे गया। गौरांग को जोर की प्यास लगी थी इसलिए उसने वेटर स एक ग्लास पानी और मंगवाया। जब गौरांग ने तीसरी बार पानी लाने के लिए कहा तो उसे कुछ ताज़्ज़ुब हुआ और बोला, “आप लोग इंडिया से हैं और खूब पानी पीते हैं यह स्वास्थ्य के लिए एक अच्छी बात है”
वेटर की बात पर गौरांग मुस्कुरा भर दिया इतने में ही उनकी ठंडी ठंडी बियर आ गई और सभी ने इंग्लिश बियर का आनंद उठाया।..और उस दिन दोनों ने इंग्लैंड की नेशनल डिश फ़िश एन्ड चिप्स का स्वाद लिया। बाद में तृप्ती के कहने पर दोनों ने आइस क्रीम भी ली।
आखिर में घूमते हुए वे लोग वहाँ आ पहुँचे जहाँ उनकी बस खड़ी थी उसमें बैठ कर वे लोग शहर की सड़कों से होते हुए हाईवे पर आ गए जो उन्हें उनके अगले डेस्टिनेशन मेनचेस्टर तक ले जाने वाली थी...
स्ट्रेटफोर्ड से वे लोग निकल कर दो घंटे की ड्राइव के बाद सीधे पहुँचे मैनचेस्टर। मैनचेस्टर का नाम सुनते ही हर भारतवासी के मन में ब्रिटिश टाइम के Cawonpore (अब कानपुर) की यादें ताज़ा हो जातीं हैं। एक वक़्त में मैनचेस्टर का टेक्सटाइल उद्योग इतना ज़बरदस्त और मशहूर था कि दुनिया भर में इसकी धाक थी। जैसी कि ऊँची ऊँची चिमनी वाली फैक्टरियां कानपुर में दिखाई पड़तीं हैं वैसी ही अभी भी कुछ दो एक मैनचेस्टर में भी देखी जा सकती हैं। मैनचेस्टर भी धीरे धीरे बदलाव के दर्द से गुज़र रहा है। मैनचेस्टर ने बहुत कुछ झेला, जिसकी वजह से वहाँ की टेक्सटाइल इंडस्ट्री चौपट हो गई। मैनचेस्टर शिकार हुआ आयरिश रिपब्लिकन आर्मी, आयरलैण्ड की मुक्ति के लिये गठित क्रान्तिकारी सैनिकों का संगठन था जिसका लक्ष्य आयरलैण्ड को ब्रिटेन से पूर्णतः मुक्त कराना था। बहुत नुकसान झेल चुका मैनचेस्टर के टेक्सटाईल बिज़नेस का भारी नुकसान हुआ। ब्रिटेन का टेक्सटाईल की दुनिया में कभी जो नाम था लगभग ख़त्म सा हो गया। पुरानी फैक्टरियों की जगह अब नए नए उद्योग वहाँ पुनः अपनी ज़मीन तलाश रहे हैं। आबूधाबी के शेख मैनचेस्टर और बिरिमिंघम में ज़बरदस्त इन्वेस्टमेंट करके यहाँ की तस्वीर बदल देने के प्रयासों में लोकल उद्योगपति के साथ मिलकर प्रयासरत हैं। आबूधाबी ने मैनचेस्टर फुटबॉल स्टेडियम बनवा कर इस शहर को नई पहचान देने की कोशिश की है।

बाद में दोनों ग्रुप कुछ देर के लिए टाउन हॉल एरिया में घुमाते रहे। लगभग आधे घंटे के बाद जब वे लोग कोच में वापस तो वे लोग अगले स्पॉट को देखने के लिए चलपड़े। मेनचेस्टर के मशहूर फुटबॉल स्टेडियम के सामने खड़े हुए थे तब कुलकर्णी ने उन्हें बताया, "आबूधाबी के शेख मेनचेस्टर और बिरमिन्घम में ज़बरदस्त इन्वेस्टमेंट क्र रहे हैं। इस स्टेडियम को बनाकर उन्होंने मेनचेस्टर शहर को नई पहचान दी है। आपको एक बात और बतानी है कि स्टेडियम की कैंटीन बहुत अच्छी है। वहाँ बहुत लज़ीज़ खाने पीने का सामान मिलता है इसलिए आप लोग वहाँ कुछ समय अवश्य बिताइएगा। बस एक शर्त है कि एक घंटे में कोच पर वापस आ जाइएगा"
गौरांग और तृप्ती ने जब वहाँ के लोगों से बात करने पर पता लगा कि लंदन के इन्वेस्टमेंट के 3% appreciation के खिलाफ मैनचेस्टर में आबूधाबी 6-7% appreciation की आस लगाकर धड़ाके के साथ पूँजी निवेश कर रहा है। फुटबॉल स्टेडियम से चल कर उनकी कोच नदी किनारे आकर खाड़ी हो।गई सभी लोग कोच से उतर कर दरिया किनारे घुमने और मेनचेस्टर की छाता देखने के लिए चले गए। River Med-lock जो कि Greater Manchester, England की नदी है, जो Old-ham से निकल कर दक्षिण की ओर बहती हुई 10 मील की यात्रा तय कर River Ir-well से Manchester city center के पास आकर मिलती है और फिर यहाँ की शोभा बनती है। थेम्स की तरह यहाँ भी नदी के जल भराव की पूरी देखभाल की जा रही है यहाँ के लोगों का यह प्रयास है कि यह नदी भी थेम्स की तरह साफ़ सुथरी बनी रहे। नदी किनारे उन लोगों ने कुछ वक़्त गुज़ारा। नदी के दोनों ओर मैनचेस्टर की Sky line तेजी से बदल रही है पुरानी भूरे रंग की ईंटों की जगह अब धीरे-धीरे ग्लास हाउस वाली बिल्डिंगें बनती चली जा रहीं हैं। गौरांग और तृप्ती के ठीक सामने ही बीबीसी का नया स्टूडियो भी इसी तारतम्य में बना था जिसका आर्किटेक्चर अपने आप में अनूठा था।
कुछ देर बिता कर वे डिनर के लिए ट्रफोर्ड पब्लिक हाल चले आये जहाँ उन्हें इंडियन खाना खाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। डिनर के बाद वे लोग बाद में हॉलिडे इन् होटल में रात्रि विश्राम के लिए रुके।
अगले दिन सुबह….
क्रमशः



एपिसोड 19
अपनी बात: हर कहानी के पीछे एक ऐसा व्यक्तित्व होता है जो कुछ लिखने को प्रेरित कर जाता है मैंने अपनी कल की एक पोस्ट में उसकी मुलाक़ात आपसे कराई थी। उसका नाम है भावना। आज उसकी एंट्री भी इस कथानक में अपने ढंग से हो रही है एक्जेक्टली वैसे तो नहीं जैसे कि वह हमसे टूर पर मिली थी। दूसरी बात यह कथानक सही कहूं तो कोई प्रेम गाथा नहीं है बेसिकली हमारे इंग्लैंड और स्कॉटैंड के दौरे की दास्तां है। प्रेम का एंगल तो इसलिए जोड़ा गया है कि जिससे मैं अपने पाठकों को साथ लेकर चल सकूं।
बस इतना ही.....

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गतांक से आगे: अगले दिन के तयशुदा प्रोग्राम के हिसाब से वे लोग एक दिन मैनचेस्टर में ही रुक कर वहां के कई मशहूर मोनुमेंट्स और गार्डेंस देखने वाले थे। जैसे ही कोच अपने आगे के सफर के लिए निकली। रास्ते में क्या कुछ जानिए....
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रास्ते में जब कोच मैनचेस्टर सिटी के कई मशहूर मॉन्यूमेंट्स को दिखाने के लिए निकली की तब गौरांग और तृप्ती के ठीक पीछे वाली सीट पर वंदना और रोहन, कोहली परिवार के बच्चे बैठे हुए थे। रास्ते भर वंदना और तृप्ती एक दूसरे से लगातार बात करते चले जा रहे थे। जब कोच बीच में एक रोड साइड प्लाज़ा पर रुकी तो वे लोग कॉफी पीने के लिये शॉपिंग प्लाजा में गये। वंदना और रोहन भी अपने डैड और मॉम से परमिशन लेकर तृप्ती के साथ चलने लगे। बच्चों को साथ देख गौरांग ने आगे बढ़कर चार कप कैपिचिनो कॉफी लिए और वे लोग सभी एक साथ बैठकर कॉफी पीने लगे। इसी बीच वंदना गौरांग से बोली, “आप चुप चुप से क्यों रहते हैं”
“ऐसी तो कोई बात नहीं है। मैं तो तुम लोगों की बातें सुनकर ही खुश हो रहा हूँ”
गौरांग की बात पर तृप्ती बोल पड़ी, “लो तुमने इनसे इतना भर पूछ क्या लिया अब देखना कि यह इतनी बात करेंगे कि तुम्हारी बोलती ही बंद हो जाएगी’
“क्या ऐसा होने वाला है”, वंदना गौरांग की ओर देखते हुए बोली।
“बिल्कु ऐसे ही होने वाला है”, यह उत्तर गौरांग ने वंदना को दिया।
उसके बाद तो गौरांग ने वंदना से उसके बारे में इतने सवाल किए कि वह क्या कर रही है, उसके क्या क्या इंटरेस्ट हैं वगैरह वगैरह। गौरांग की बातें सुनकर वंदना ने भी न जाने कितने ही सवाल गौरांग से उसके प्रोफेशन के बारे में तथा तृप्ती के साथ उसकी क्या रिलेशनशिप है वगैरह भी। चाय पीने के बाद सभी लोग फ्रेश होने के बाद कोच में सफर जारी रखने के लिए लौट आए।
इधर उधर की बातों के बाद जब बात एक बार फिर से मैनचेस्टर की हुई तो वंदना गौरांग से बोली, “मैनचेस्टर का नाम सुनते ही Cawonpore(अब कानपुर) की यादें ताज़ा हो जातीं हैं’
गौरांग ने वंदना को बताया, “एक वक़्त में मैनचेस्टर का टेक्सटाइल उद्योग इतना ज़बरदस्त और मशहूर था कि दुनिया भर में इसकी धाक थी अब तो यहां का उद्योग एकदम चरमरा गया है लेकिन अच्छी बात यह है कि अब वहां बाहरी लोग पैसा लगा रहे हैं।”
तृप्ती ने भी गौरांग की बातों पर कहा, “कौन नहीं चाहता कि उसके पास भी यू के में कोई न कोई प्रॉपर्टी हो। ऐसा करो कि तुम भी कुछ इन्वेस्टमेंट कर ही लो”
इसके बाद वंदना ने तंज कसते हुए गौरांग से कहा, “लगता है कि आपके पास बेशुमार दौलत है और आप भी यहाँ इन्वेस्टमेंट करने की सोच रहे हैं”
“पैसे वैसे तो नहीं हैं पर इन्वेस्टमेंट का आईडिया बुरा नहीं है” गौरांग से मुख़ातिब होते हुए तृप्ती बोली, “तुम मुझसे कुछ पैसे उधार ले लो पर इंट्रेस्ट देना होगा”
“यह बात ठीक है, मैं उस पैसे को यहाँ इन्वेस्ट करने की बात करता हूँ”
दिन भर वे लोग मैनचेस्टर के मशहूर मॉन्यूमेंट्स और गार्डेंस देख के जब रात को अपने होटल वापस पहुंचे तो गौरांग तृप्ती से बोला, “आज तो घूमते घूमते थक गए”
तृप्ती तो उस शाम को गौरांग को छेड़ने की उम्मीद लगाए बैठी थी। देर रात को जब तृप्ती और गौरांग मिले तो तृप्ती बोली, “गौरांग तुम्हारे चेहरे में कुछ बात तो है जिसे देखकर लड़कियां फ़िदा हो जातीं हैं”
“तुमने अब यह कौन सा नया सुर छेड़ दिया”
तृप्ती की जुबान पर आखिर कर वह बात आ ही गई जो एक साधारण भारतीय नारी की सोच होती हैं अब आगे जानिए कि आगे क्या हुआ...
“मैं तो वही कह रही हूँ जो मैंने देखा है। ऑफिस में वहाँ कइयों की नज़र तुम पर लगी हुई है, यहाँ इंग्लैंड में ऐश्ले की और अब एक और चाहने वाली वंदना मिल गई”, तृप्ती ने गौरांग को चिढ़ाते हुए कहा।
गौरांग ने अपना भला इसी में समझा कि वह कुछ न बोले नहीं तो बेमतलब ही ये मुद्दे एक नई बहस की शुरुआत की वजह बन जाएगी। गौरांग ने चुपचाप, “गुड नाईट” कहा और तृप्ती के रूम से आकर अपने रूम में आकर कपड़े चेंज करने लगा उसी बीच ऐश्ले का फ़ोन आ गया तो उससे हेलो कह कर पूछा, “ऐश तुम कैसी हो”
“नॉट सो वेल”

“क्यों, क्या हुआ”
“कुछ ख़ास नहीं बस कल रात ठीक से सो न सकी”
“आखिर क्यों"
“यह तुम पूछ रहे हो। जिससे मिलने के लिए मैं बरसों से इन्तज़ार कर रही थी वह आया भी तो अपनी एक दोस्त के साथ। मैंने क्या क्या सपने नहीं देखे थे कि जब तुम यहाँ आओगे तो मैं यह करूँगी, मैं वो करूंगी। लेकिन मेरा सोचा हुआ सब चौपट हो गया"
“............”, गौरांग चुपचाप ऐश्ले की बात सुनता रहा।
“मैंने तो अपने डैड से भी बात कर ली थी। मेरी मॉम तो पहले से तैयार थीं। बस तुमसे पूछना बाकी था”
“मुझसे क्या पूछना बाकी था"
“यही कि तुम भी मुझे उतना ही प्यार करते हो कि नहीं जितना कि मैं तुमसे.....”
“ओह माइ गौड़”
“क्या हुआ”
“कुछ भी नहीं। मैं नहीं जानता था कि तुम इतना आगे बढ़ चुकी हो”
“यह तुम क्या कह रहे हो मैंने तो अपने दिल की बात तुमसे बहुत पहले ही कह दी थी। एक काम करो जब तुम्हारा स्कॉटलैंड का विजिट पूरा हो जाए तो उसके बाद तुम मेरे यहाँ रुकना। मैं, डैड और मॉम तुमको लेकर वेल्स चलेंगे जहाँ हमारे डैड ने एक कंट्री होम ख़रीदा है वहाँ हम लोग ख़ूब मौज करेंगे”
“वह तो ठीक है लेकिन.....”, गौरांग बहुत मुश्किल से इतना ही बोल पाया।
“सुनो तुम्हारे बारे में मेरे डैड और मॉम क्या कहते हैं”
“क्या"
“यही कि इंडियंस लव में बहुत वफ़ादार होते हैं”
बात तो बढ़ती ही जा रही थी और गौरांग समझ नहीं पा रहा था कि वह अपने आप को इस परिस्थिति से अब कैसे निकले। फ़िलहाल के लिये उसने यही ठीक समझा कि किसी तरह ऐश्ले को समझाना होगा कि वह ख्वाबों की दुनिया में है। यह सोचकर उसने अभी यही कहना ठीक समझा, “माइ डिअर ऐश शैल वी टॉक अबाउट इट लेटर। आइएम फीलिग वेरी टायर्ड एंड विश कुड स्लीप फ़ॉर सम टाइम”
“ओह आई एम वेरी सॉरी वी शॉल टॉक अबाउट इट लेटर’, ऐश्ले उधर से बोली, “चलो जाओ सो भी जाओ हम लोग बाद में बात करते हैं”
“गुड नाईट कहकर, “गौरांग ने जान छुड़ाना ही ठीक समझा।
उस रात गौरांग आराम से सो नहीं सका उसे लगा कि बैठे ठाले उसने अपनी जान कहाँ जंजाल में फंसा दी। वह इस बात को लेकर और भी परेशान हो गया कि तृप्ती के दिमाग़ में वंदना को लेकर एक बबंडर और शुरू हो गया है। आज तो वह किसी तरह उससे अपना पिंड छुड़ा कर भाग आया अब आने वाले दिनों में वह क्या करे।
क्रमशः



एपिसोड 20
गतांक से आगे:कल के एपिसोड में आपने पढ़ा कि अपनी ही बेवकूफी की वजह से गौरांग कितनी बड़ी समस्या में फंस गया। उसको रात भर चैन की नींद भी नहीं आईं। जैसे कहावत है कि जब सहारे टूट जाते हैं तो भगवान जो करता है उसे ही अपना प्रारब्ध मान कर जीना चाहिए।
आगे जानिए कि घटनापटल पर अब क्या होने वाला है...
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उन्होंने अगले रोज़ सुबह जब गौरांग और तृप्ती कोहली परिवार से ब्रेकफ़ास्ट टेबल पर मिले तो एक दूसरे को गुड मॉर्निंग विश किया। गौरांग को देखते ही वंदना बच्चों की तरह अपनी ख़ुशी का इज़हार करते हुए बोली, “मॉम गौरांग जी के पास इतने सारे पैसे हैं कि वह मेनचेस्टर में इन्वेस्टमेंट करने की सोच रहे हैं”
वंदना की मॉम ने उससे पूछा, “तुझे कैसे पता”
“उन्होंने खुद ही कल बताया था”
“लगता है तूने उन्हें भी अपनी बातों में फंसा लिया” यह कहकर वंदना की मॉम ने बहुत कुछ बता दिया।
“मैंने”
“और क्या मैंने”, वंदना की मॉम ने गौरांग तथा तृप्ती की ओर पलटते हुए कहा, “आप लोग बुरा न मानियेगा, हमारी बेटी कुछ अधिक ही बातूनी है”
“वह तो मैं कल ही समझ गई थी”, तृप्ती ने जवाब में कहा, “जिस तरह वह हम लोगों से इंटरैक्शन कर रही थी। मुझे उसके स्वभाव का पता चल गया था कि वह बहुत ही चुलबुली है”
“चुलबुली के साथ साथ यह शैतान भी है”, वंदना की मॉम बोली।
“बच्चे ऐसे ही अच्छे लगते है”, तृप्ती ने गौरांग की ओर देखा और पूछा, “तुम्हारा क्या ख़्याल है”
गौरांग जो अभी तक चुप बैठ हुआ था अचानक ऐसे प्रश्न पर सकपका गया और बोला, “तुमने सही कहा। बचपन में मैं भी ऐसा ही था”
“अच्छा जी। अब क्या हो गया है जो तुम सीरियस रहते हो”
“तृप्ती यह कैसा सवाल है जैसे जैसे रेस्पोंसबिलिटीज़ बढ़ती जाती हैं सभी की नेचर में बदलाव आता जाता है”, गौरांग ने तृप्ती के प्रश्न के उत्तर में यह कहकर बातचीत का सिलसिला दूसरे डायरेक्शन में करते हुए कहा, “यहाँ से ग्लासगौ पहुँचने में कितना समय लगेगा”
“यही तक़रीब ढाई से तीन घंटे अगर हम बीच में और कहीं रुकते नहीं है तो”, वंदना बोल पड़ी।
उसके बाद उन लोगों में इधर उधर की बातें होतीं रहीं जिसमें वंदना के डैड ने भी कई जोक्स सुना कर वातावरण को कुछ हल्का किया। ब्रेकफ़ास्ट के बाद वे लोग कोच में आकर बैठ गए। आज भी वंदना और उसके भाई ने वही सीट लीं, ठीक तृप्ती और गौरांग के ठीक पीछे। गौरांग ने तृप्ती से कहा भी, “क्या हम यहीं बैठें या कहीं दूसरी सीट पर”
“इस सीट को क्या हुआ। बैठो हम लोग यहाँ बैठेंगे तो बच्चों का दिल भी लगा रहेगा”
जैसे ही सब लोग बस में बैठ गए और कुलकर्णी के चेक करने के बाद उनकी कोच अगले डेस्टिनेशन के लिए चल पड़ी।
होटल से नाश्ता करके वे लोग करीब साढ़े आठ बजे सबेरे-सबेरे अपने अगले गंतव्य स्थान ग्लॉसगौ के लिए निकल पड़े। मैनचेस्टर से ग्लॉसगौ की दूरी लगभग 319 मील थी जो उन्होंने लगभग साढ़े तीन घंटों में पूरी की।
चलने के पहले ही हमने यह चेक किया था कि दिन में आज का मौसम कैसा रहने वाला है। हम लोगों को एक अंदाज़ा मिल गया था आज मौसम में वह कल जैसी सर्दी तो बनी रहेगी कभी कभी बरसात तो कभी खिली खिली धूप दिखाई पड़ने वाली थी। इंग्लैंड पार करने के कुछ देर ही बाद स्कॉटलैंड में हमें बारिश देखने को मिली। इससे हमारी यात्रा और भी रोमांचपूर्ण हो गई थी।
इंग्लैंड से वे कब स्कॉटलैंड में प्रवेश कर गए पता ही न लगा। कहने को तो दोंनो हिस्से यूनाइटेड किंगडम के हिस्से हैं लेकिन दोनों ही दो अलग अलग देश हैं। न तो वहाँ कोई टोल टैक्स, न कोई वेलकम गेट था। बस जो था एक हल्का सा बदलाब वह था जहाँ इंग्लैंड वाला हिस्सा समतल धरती जैसा तो स्कॉटलैंड वाला हिस्सा ऊँचा नीचा जिसे वहाँ की भाषा में हाई लैंड कहा जाता हैं और हरी भरी छोटी छोटी पहाड़ियों से भरपूर। तृप्ती की प्रसन्नता उस समय दोगुनी हो गई जब उसने उन पहाड़ियों के पेड़ों पतझड़ के पहले पड़ाव के रंगों में देखा तो उसके मुँह से अचानक ही निकल पड़ा, “इसी दृश्य को तो देखने की मैं लालायित थी”
“अभी तो कुछ नहीं तुमने ध्यान नहीं दिया होगा लंदन आई के पास एक चिनार का पेड़ था उसके पत्ते तो पीले ही चुके थे”, गौरांग बोला, “अभी क्या कुछ और आगे बढ़ने पर तुमको जंगलो में ऐसा लगेगा जैसे कि उनमें आग लग गई हो। इस इलाके मौसम के इस बदलाव को देखकर तृप्ती बहुत आनंदित हुई और उसने गौरांग के पास और सटकर बैठ कर बोली, “अब आएगा असली मज़ा जिसके लिए हम यहाँ आए हैं”
गौरांग ने तृप्ती को बताया, “अक्सर ही इस इलाके में ऑटम नवंबर के पहले सप्ताह से शुरू हो जाता है। .....और प्रकृति के इन बदलते हुए रंगों को देखने के लिए हम जैसे एनथुजीयास्ट यहाँ आते हैं”
गौरांग ने भी प्यार जताते हुए तृप्ती को अपनी बाहों में लेकर उसकी तबियत तो खुश की ही साथ ही साथ यह भी जताने कि कोशिश की कि उनके बीच कोई और नहीं आ सकता है।
तृप्ती के पीछे वाली सीट पर वंदना और उसका भाई बैठे हुए थे। एक बार वंदना ने कोशिश भी की कि वह गौरांग से बात करे पर वह अपने प्रयास में सफल न हो पाई तब उसने तृप्ती से बात करने की कोशिश में कहा, “तृप्ती आंटी आज तो पैसा वसूल मौसम है, आज तो आप को बहुत अच्छा लग रहा होगा”
“बिल्कुल अच्छा लग रहा है। यही सब तो देखने के लिए हम लोग इंडिया से यहाँ आये हुए हैं”, तृप्ती ने उत्तर में कहा।
तृप्ती के इस तरह के उत्तर से वंदना कुछ निराश सी हो गई और फिर अपने भाई से बातचीत करती रही।
गौरांग ने तृप्ती ने वहाँ के दृश्यों को देखकर कहा, “खिड़की से बाहर झाँकने पर लगता कि हम लोग वास्तव में स्वर्ग में आ गए हैं। दूर दूर तक फैले हुए हरे भरे खेत और उनमें चरते हुए पशु जिनमें अधिकतर गाय, भेड़ और घोड़े देखने को मिले। मज़ाल कि एक भी जानवर हाईवे के रास्ते में आ जाए। सब के सब खेतों में बनी बाउंडरी के अंदर ही रहते"
गाड़ी की स्पीड -कभी कभी तो 180 किमी भी टच कर जाती थी। रास्ते भर हमने किसी को हॉर्न बजाते हुए नहीं सुना। सभी लोग अपनी अपनी लेन में गाड़ी चलाते अगर किसी को आगे जाना भी होता तो वह दाहिने बनी लेन में आकर आगे बढ़ जाता। बस एक चीज जो कॉमन लगी वह थी वहाँ की लेफ्ट हैंड ड्राइव सिस्टम जो ठीक अपने भारत की तरह ही था।
गौरांग ने तृप्ती से कहा, “मैंने यूरोप के अन्य देशों में बहुत भ्रमण किया है और हमेशा यह महसूस किया कि राइट हैंड ड्राइव से लेफ्ट हैंड ड्राइव सिस्टम बहुत ठीक है। मुझे जब कभी किसी ने गाड़ी चलाने के लिये यूरोप के दूसरे देश में कहा गया तो मैंने तुरंत मना कर दिया। मैं जानता था कि हम लोग अपना माइंडसेट इतना जल्दी नहीं बदल सकते हैं और राइट हैंड ड्राइव सिस्टम में गाड़ी चला पाना एक भारतीय के लिए हमेशा पेचीदा भरा प्रश्न ही रहता है। वैसे भी बाहरी देश में इंटरनेशनल ड्राइविंग लाइसेंस न हो तो कभी भी गाड़ी नहीं चलानी चाहिए। कानून का परिपालन हर हालत में करना चाहिए”
बीच रास्ते में वे लोग कुछ देर के लिए हाईवे पर एक जॉइंट पर कुछ देर रुके। वहाँ के हाईवे जॉइंट्स ठीक वैसे ही थे जैसे कि यमुना एक्सप्रेसवे पर देखने को मिलते हैं। उस लिहाज़ में हम भारतवासियों ने विदेशों से बहुत कुछ सीखा है और बहुत कुछ सीखना अभी बाकी है खासतौर पर इस तरह के जॉइंट्स पर फ़्रेशरूम्स की साफ सफ़ाई में बहुत काम किया जाना बाकी है।
तृप्ती ने जॉइंट्स पर अपनी टिप्पणी देते हुए गौरांग से कहा, "एक बात यहां यह कहने वाली हैजो हम लोगों को समझने की कोशिश करनी चाहिए कि हम भारतीयों को अभी इस तरह की फैसिलिटीज इस्तेमाल करने की अक्ल नहीं है”
“तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो। देखा नहीं था कि कुलकर्णी ने कितने ध्यानपूर्वक यह सबको बताया था कि सभी लोगों को होटल के फ्रेश रूम यूज़ करते समय इस चीज का ध्यान रखें कि पानी फ्रेशरूम में स्पिल न हों। यहाँ तक भी उसने बताया कि जिस होटल में बाथरूम में रूम की ओर शीशा लगा हो उस पर पर्दा डाल कर ही अपने कपड़े वग़ैरह उतारिये नहीं तो रूम में बैठा हुआ इंसान आपको नेकेड देख सकता है”
“तुम्हारा तो मन करता होगा कि जब तुम मेरे रूम में हो तो मुझसे ऐसी गलती हो जाए”
“देख भी लूँगा तो क्या हो जाएगा एक न एक दिन तो तुम्हें मैं उस रूप में देखूँगा ही”
“हटो नॉटी कहीं के”, तृप्ती ने गौरांग से कहा, “जब हम किसी चीज का सही प्रयोग नहीं करेंगे तो भला कोई ऐसी फैसिलिटीज की मेंटेनेंस कोई कैसे कर सकेगा। वहाँ के जॉइंट्स पर सारी की सारी फैसिलिटीज एक छत के नीचे होतीं हैं”, तृप्ती ने भी गौरांग की बात से हाँ से हाँ मिलाते हुए कहा, "हमारे यहाँ अभी भी इस प्रकार के जॉइंट्स में बहुत इम्प्रूवमेंट की गुंजाइश है”
फ्रेश होने के बाद एक कप गरमा गरम चाय पीने के बाद वे फिर से अपने सफ़र पर आगे बढ़ लिए।
क्रमशः




एपिसोड 21
गतांक से आगे: स्कॉटलैंड के पेड़ों के पतझड़ से पहले की अवस्था को देखते देखते आखिर गौरांग की कोच ग्लॉसगौ के दरवाज़े पर आ पहुंची। उसके आगे देखिए कि फिर क्या हुआ….
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जब ग्लॉसगौ शहर के चर्च और कई ऊँची-ऊँची बिल्डिंग्स क्षितिज पर नज़र आने लगीं तो हमारे कैप्टन ने कोच की स्पीड कम की और धीरे-धीरे चलते हुए वे लोग शहर के टाउन हॉल के पास की पार्किंग में आकर रुके। नवंबर का महीना हो तो यूरोप में जहाँ वहाँ आपको लोग नाचते गाते मिल जाएंगे। ग्लॉसगौ शहर घूमने के लिए हम लोगों ने एक गाइड की मदद ली। स्कोटिश लोग बोलते तो अंग्रेजी ही हैं पर उनके बोलने का एक्सेंट अंग्रेजों से भी फ़र्क होता है कहा जाये तो थोड़ा मुश्किल इसलिए जब वह वहाँ की जगहों के बारे में डिटेल्स में समझाता तो भारतीयों को उसकी बातों को बहुत ध्यान से सुनना पड़ता था।
टाउन हॉल पर कोई म्यूजिकल इवेंट होने को थी इसलिए वे लोग बिल्डिंग्स के बाहर रह कर बहुत देर फोटोग्राफी करते रहे। तृप्ती के कहने पर वंदना गौरांग के और तृप्ती के कई फोटो खींचे। बाद में वंदना ने अपने भाई रोहन से कह कर गौरांग तथा तृप्ती के साथ अपने फोटो भी खिंचाए। उसने गौरांग और तृप्ती के यह कह कर मोबाइल नंबर भी ले लिए कि वह उनके फोटो उनको व्हाट्स एप पर भेज देगी। जब वे लोग घूम रहे थे तो एक बार वंदना गौरांग के पास आकर बोली, “अंकल अब तो मेरे पास आपका मोबाइल नंबर है तो दिल्ली पहुंच कर मैं आपको फोन करूं तो प्लीज मेरे कॉल को अटेंड कर लीजिएगा
गौरांग जो एक रोज़ पहले ही तृप्ती से वंदना को लेकर बहुत कुछ सुन चुका था वह कुछ बोला तो नहीं पर मन ही मन उसने यह निर्णय कर लिया कि अगर वंदना उसे कभी फोन करेगी तो वह उससे बात तो कर ही लेगा।
बाद में उन लोगों ने वहाँ के कुछ और दर्शनीय स्थल देखे जिनमें प्रमुख थे वहाँ का ग्लॉसगौ कैथेड्रल-सेंट मुंगो चर्च ऑफ स्कॉटलैंड चर्च। दोनों ही चर्च का आर्किटेक्चर पुरातन होते हुए भी बहुत ही मन लुभावना था। पहाड़ी पर बने हुए पुराने जमाने के कैसल की बैकग्राउंड की भी कई फ़ोटो ली। उनके गाइड देसाई ने बताया कि इस चर्च में महारानी विक्टोरिया जब आईं थीं तब यहाँ विशेष आयोजन किया गया था। उनके इस विजिट को यादगार बनाने के लिए चर्च कंपाउंड में विक्टोरिया हॉल में उनकी एक आदमक़द मूर्ति भी लगाई गई थी।
चर्च देख लेने के बाद वे लोग ग्लॉसगौ यूनिवर्सिटी के कैंपस को देखने गए। ग्लॉसगौ यूनिवर्सिटी सन 1415 में एस्टेब्लिश की गई थी और पूरे विश्व मे अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। इसी यूनिवर्सिटी में बहुत से जाने माने हस्तियों ने शिक्षा प्राप्त की और वे यूनाइटेड किंगडम के प्राइम मिनिस्टर बने। कई साइंसिस्ट ने यहीं इसी यूनिवर्सिटी में रहते हुए कई शोध कार्य अंजाम दिये और नोबल प्राइज हासिल किए। इन्ही मशहूर साइंसदानों के बीच थे सर् जेम्स वाट जिन्होंने स्टीम इंजिन का निर्माण किया और संसार में अमृत्व प्राप्त किया। ऐसे ही लोगों में से एक थे लार्ड केल्विन, एडमस्मिथ, हेनरी फुल्ड्सन्द, विलियम रेमसे और भी न जाने कितने जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में नाम रौशन की।
ग्लासगौ यूनिवर्सिटी के कंपाउंड में घूमते हुए तृप्ती ने गौरांग का हाथ अपने हाथ में लिया और बोली, “यहाँ की ग्लॉसगौ यूनिवर्सिटी के कॉलेज कंपाउंड्स भी ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की तरह ही बहुत खूबसूरत हैं’
तृप्ती की बात पर गौरांग ने उसे बताया, “मेरे एक अंकल ए आर सिंह ने यहीं से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी”
जब वे लोग यूनिवर्सिटी कंपाउंड में घूम घूम कर विभिन्न भवनों को देख रहे थे तो उनको केल्विन ग्रोव, आर्ट गैलरी एंड म्यूज़ियम देखकर बहुत अच्छा लगा। इतनी पुरानी इमारत और उसके रख रखाव को देखकर उनकी तबीयत ख़ुश हो गई।
यूनिवर्सिटी कॉलेजेस के कैंपस देख लेने के बाद वे लोग ग्लॉसगौ के एक फ़ैशनेबल मार्किट में आ गए बहुत देर इधर उधर घूमे और मस्ती की। ...और बाद में एक बहुत ही पुराने और नामी गिरामी रेस्टोरेंट में बैठकर लंच लिया। मार्किट में इधर उधर घूमे। कई मॉल भी देखे। अपने ग्लॉसगौ विजिट को यादगार बनाने के लिए तृप्ती ने अपने लिए कुछ शॉपिंग भी की। एक शर्ट और ट्रोउजर गौरांग को भी खरादने को मजबूर कर दिया। बाद में मौसम का आनंद उठाते हुए शाम के समय उन लोगों ने रोड साइड ओपन रेस्टॉरेंट में बैठ कर कैपिचिनो कॉफी पीने का शौक़ भी पूरा किया। वहाँ वे दोनों बहुत देर तक बैठे और आते जाते लोगों को देखकर वहाँ की लाइफ स्टाइल को समझने की कोशिश की। वहाँ के लोगों के चेहरे पर ख़ुशी के भाव देखकर तृप्ती बोल उठी, “यहाँ के लोगों को देखकर इतना अच्छा लगा कि लोग कमाते हैं, खाते पीते हैं और ख़ुश रहते हैं।
यहां के लोग मेहनत करते हैं और खूब ऐश करते हैं। अपने यहाँ के लोगों की तरह नहीं कि ख़ुद तो जिएंगे नहीं बस नाती पोतों के लिए धन संचय करके जाना है। हम लोग बातें तो ख़ूब करते हैं कहावत भी खूब सुनाते हैं कि ‘पूत सपूत तो क्यों धन संचय, पूत कपूत तो क्यों धन संचय’ लेकिन इस सिध्दांत पर अमल करने वाले बिरले ही मिलते हैं। यहाँ लोग अपनी जिंदगी जीते हैं और एक स्टेज के बाद उनके बच्चे इंडिपेंडेंट लाइफ जीते हैं। पश्चिमी देशों की शायद यही जीवन पद्धति है। उनके यहाँ सोशल सिक्युरिटी एक बहुत बड़ा असेट है जिसके कारण कोई अपने बुढ़ापे की चिंता नहीं करता है”, कहकर गौरांग ने भी अपने दिल की भड़ास हिंदुस्तानी तौर तरीकों पर उतारी।
“लगता है कि तुम ऐश के घर वालों की लाइफ स्टाइल से बहुत प्रभावित हो”, तृप्ती ने गौरांग की आँखों की गहराई में झांकते हुए कहा,”....... और उसके साथ यहीं रहने का प्लान बना रहे हो” 

गौरांग ने तृप्ती को अपने आगोश में लेते हुए कहा, "नहीं मैं इतना अवश्य कहूँगा कि मैं जब जब यूरोप आया तो यही महसूस किया कि यहीं का होकर रह जाउँ"
"चलो हम लोग यहीं शिफ़्ट कर जाते हैं"
"तृप्ती यह उतना आसान भी नहीं। यहां रहने के लिए आपके पास अच्छी खासी इनकम का ज़रिया होना चाहिए। हमने अभी तक तो कोई खास बैंक बैलेंस भी नहीं बनाया"
"तुम अपने बैंक एकाउंट के साथ मेरा एकाउंट भी लिंक कर लो"

तृप्ती की बात पर गौरांग ने प्यार भरी नजरों से देखा और कहा, "आज मेरा मन शैम्पेन पीने का मन कर रहा है"
“तो चलो न सामने ही तो बार है", यादों के झरोखों में झाँखते हुए तृप्ती ने कहा, "हां मुझे भी याद है और पिछली बार शैम्पेन हम लोगों ने ताज मानसिंह में ली थी"
इसके बाद तो न जाने उन दोनों ने एक दूसरे को उन पलों की याद दिलाई जो उन्होंने कभी साथ गुज़ारे थे....बातों बातों में तृप्ती ने गौरांग के प्यार की गहराई को न समझते हुए कटाक्ष करते हुए कहा, "गौरांग तुम चाहो तो एश का एकाउंट भी लिंक कर सकते हो और मन करे तो यहीं रह भी सकते हो। मैं कुछ नहीं कहूँगी"
क्रमशः
एपिसोड 22
गतांक से आगे: जब आप विदेश यात्रा पर हों तो दिल का मचल जाना, निग़ाह किसी और की ओर उठ जाना एक साधारण सी बात है। लेकिन यह छोटी सी दिखने वाली घटना बहुत बड़ा रूप ले लेती है तो मुशिकल खड़ी हो जाती है।
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Happy Valentine Day
गौरांग, तृप्ती की यह बात को बर्दाश्त नहीं कर पाया और क्रोध में आकर उसने भी तृप्ती से कह दिया, “तृप्ती तुम यह सब बात करके हर बार आहत करती रहती हो और मैं तुमसे कुछ कहता नहीं इसका यह मतलब न लगा बैठना कि मैं तुम्हारे पीछे ही पड़ा हूँ। तुम्हारे पास अभी भी समय है कि तुम अपने लिए कोई और ढूंढ लो”
गौरांग के गुस्से को देखकर तृप्ती एक दम ठंडी पड़ गई और गौरांग को अपनी बाहों में सिमेट कर बोली, “जानूँ क्या बात है आज तो तुम नाराज़ हो गए। मैंने तो तुमसे वह मज़ाक में कहा था”
“तुम बात ही ऐसी करती हो कि किसी भी व्यक्ति को गुस्सा आएगा जिसमें थोड़ा भी आत्मसम्मान शेष है”
“चलो बाबा मुझे अबकी बार माफ कर दो। अब मैं तुमसे जीवन में कभी ऐसा मज़ाक नहीं करूँगी”
गौरांग कुछ बोला नहीं और स्वयं को तृप्ती की बाहों से छुड़ाने का प्रयास करने तृप्ती को तब एहसास हुआ कि कभी कभी आदमी को कोई बात चुभ जाती है तो वह गौरांग की तरह ही व्यवहार करता है अतः उसने एक बार फिर गिड़गिड़ाते हुए कान पकड़ कर गौरांग से माफ़ी माँगी। गौरांग ने उससे कुछ कहा नहीं लेकिन वह तृप्ती से छिटक कर बस में पीछे खाली पड़ी सीट पर जा बैठा। तृप्ती भी अपनी सीट से उठी और उसके बगल में जा बैठी और उसने गौरांग के हाथ अपने हथेली के बीच दबाकर बच्चों की तरह निरीह प्राणी की तरह उसकी आँखों में झांका तब जाकर कहीं गौरांग के मन का क्रोध कहीं शांत हुआ।
यह सब देखकर वंदना अपने भाई से बोली, “लगता है कि अंकल और आंटी में किसी बात को लेकर कहा सुनी हो गई है”
वंदना के भाई ने उसे समझाते हुए कहा, “तू छोड़ यह सब होता रहता है। अपने डैड भी तो कभी कभी मॉम से नाराज़ हो जाते हैं”
वंदना के मन में आ रहा था कि वह गौरांग और ट्रप्ती के बीच आकर उनको समझाए लेकिन जब उसने भाई की बात को बहुत ध्यान से सुना तो उसे लगा कि उसे अपने भाई की बात माननी चाहिए। यह सोच कर वह चुपचाप खिड़की के शीशे के उस पार बस को पहाड़ियों के बीच से गुजरते हुए चुपचाप देखती रही।
जब सूरज ढलने को हुआ तो उन लोग की बस होलीडे इन् ग्लॉसगौ – ईस्ट कार्बाइड होटल में आकर उसके बस स्टॉप पर आकर रुकी जहाँ उनके रुकने की व्यवस्था थी। वहाँ उनको दो दिन रुकना था इसलिए गौरांग ने बस से अपना और तृप्ती का सामान निकाला और होटल के रिसेप्शन एरिया की ओर बढ़ने लगा तब तृप्ती ने उससे अपना बैगेज माँगते हुए कहा, “बाबा इतना भी बुरा नहीं माना करते वेसबब ही ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है”
बड़ी मुश्किल से तृप्ती ने गौरांग के हाथ से अपना बैगेज लिया और गौरांग के पीछे पीछे वह रिसेप्शन एरिया में आ गई।
उस रात शाम को जब डिनर के लिए गौरांग ने तृप्ती को न तो फोन किया और न उससे यह कहा कि डिनर का क्या करना है तो तृप्ती ही गौरांग के रूम में आई और बोली, “क्या बात है डिनर नहीं करना है? चलो उठो आज हम लोग डिनर होटल के ही रेस्टॉरेंट में करेंगे मैंने रिसेप्शन से बात की आजकी रात वहाँ कैबरे डांस का भी प्रोग्राम है”
तृप्ती को लगा कि वह इस तरह की बात बना कर वह डिनर के लिए गौरांग को मना लेगी। तृप्ती के लाख कहने पर जब गौरांग नहीं माना तो तृप्ती यह कह कर उसके रूम से बाहर जाने लगी, “आई एम वाइंडिंग अप माइ टूर एंड रिटर्निंग टू इंडिया टुमारो इटसेल्फ”
तृप्ती के इस कदम से गौरांग एक दम हिल गया और बोला, “डोंट बि सिली, लेट अस अंडरस्टैंड वन थिंग वेरी वेल दैट वी आर टू इंडिविदुअल्स एंड वी नीड अवर स्पेस टू मूव अराउंड फ्रीली विदआउट हर्टिंग ऐनी वन”
“मैं मानती हूँ बाबा कि हम अब पुराने ज़माने के हिददुस्तानी के दोस्त नहीं हैं समय बदल रहा इसलिए हम लोगों की चॉइस अलग अलग हो सकती है और यह भी हमको अब एक दूसरे के साथ एडजस्ट करना सीखना होगा”
“मैं बस इतना कह रहा हूँ कि हम दोनों एक दूसरे को समझें और एक दूसरे की लाइफ में एक लिमिट तक ही इंटरफियर करें”
“मैं समझ गई बाबा अब कभी कभी भी दुबारा आज जैसी ग़लती नहीं करूँगी”
“..................”, तृप्ती की बात सुनकर गौरांग चुप हो गया तो तृप्ती को लगा कि उसका गुस्सा ठंडा हो गया तो उसने वार्डरोब से बढ़िया सी एक ड्रेस गौरांग के लिए निकाली और बोली, “मैं यह जानती हूँ कि यह तुम्हारी पसंदीदा ड्रेस है, लो और चेंज करके तैयार हो जाओ मैं तुम्हारा इंतज़ार अपने रूम में कर रही हूँ”
तृप्ती के इतना कहने पर गौरांग उठा और तृप्ती के हाथ से ड्रेस ले ली और उसके रूम के बाहर जाते ही चेंज की। अपने रूम से निकलने के पहले उसने अपने मोबाइल को फ्लाइट मोड़ में कर दिया जिससे कि अगर ऐश्ले का फोन इस बीच न आए। वह नहीं चाहता था कि अभी एक बबाल से छुटकारा मिल पाया है कहीं दूसरा बोम्बशेल न गिर जाए। तृप्ती के रूम के दरवाजे पर जब गौरांग ने नॉक किया तो ख़ुशी से तृप्ती ने दरवाजा खोला और पूछा, “गौरांग तुम तैयार हो तो चलें डिनर के लिए”
“चलो”, कहकर गौरांग तृप्ती के साथ होटल के रेस्टॉरेंट की ओर चल पड़े। तृप्ती ने सुर्ख लाल रंग का एक गुलाब का फूल गौरांग को देते हुए कहा, “तुम्हें शायद याद न हो लेकिन तुमने मुझे हमारे पहले वेलेंटाइन डे एक गुलाब की कली दी थी। आज यह गुलाब का फूल उस बात का द्योतक है कि हमारा प्यार परिपक्व होकर कली से फूल बन गया है”
“मुझे याद है यही नहीं मुझे उस दिन की एक एक बात याद है। उस दिन हम लोग ताज में डिनर करने गए थे और मैंने कहा था 'आज की शाम मेरी ज़िन्दगी की सबसे हसीन शाम है”
“हां मुझे भी याद है और उस दिन हम लोगों ने पहली बार शैम्पेन पी थी”
इसके बाद तो न जाने उन दोनों ने एक दूसरे को उन पलों की याद दिलाई जो उन्होंने कभी साथ गुज़रे थे”
क्रमशः





एपिसोड 23
गतांक से आगे: पिछले रोज़ आपने पढ़ा कि गौरांग जो कि तृप्ती से नाराज़ था। तृप्ती के मनाने और माफ़ी मांगने पर शाम को डिनर करने ही नहीं गया बल्कि अपने पुराने दिनों की याद ताज़ा करके जब वे लोग अपने होटल रूम में आए तो...
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देर रात जब डिनर करके तृप्ती और गौरांग अपने रूम में लौटने लगे तो गौरांग ने तृप्ती को अपने आगोश में लिया और उसको उसके रूम में छोड़कर जाने से पहले उसे प्यार भरा किस किया और बोला, “जानता हूँ कि तुम किसी यूरोपियन लड़की से कम नहीं हो इसलिए यह लिबर्टी लेने की हिमाकत की है”
“इट्स ऑलराइट”, तृप्ती ने कहकर गौरांग को, “गुड नाईट” उसे विदा किया।
तृप्ती ने आराम से उस रात गुज़ारी क्योंकि वे लोग एडिनबरा में दो रात रुकने वाले थे इस कारण समान की पैकिंग वगैरह करनी ही न थी।
इधर गौरांग भी अपने रूम में आया और चेंज करके बिस्तर पर जब लेट गया तो मोबाइल चेक किया तो उसने देखा कि ऐश्ले ने एक बार नहीं बल्कि कई बार उसे फोन किया था। मन ही मन वह सोच रहा था कि वह ऐश्ले को इतनी रात गए फोन करे या नहीं कि इसी बीच फिरसे ऐश्ले का फोन जब आया तो उसे उसका जवाब देते हुए बोला, “हेलो”
“दिस इज ऐश”, उधर से आवाज़ आई और उससे ऐश्ले ने पूछा, “होप नॉट डिस्टर्बड यू इन योर स्लीप”
“नॉट एट आल”, गौरांग ने उत्तर में कहा, “मैं सो नहीं रहा था बस अभी अभी डिनर करके रूम में लौटा हूँ”
“सो लेट”
“यस आज होटल की एनिवर्सरी थी तो कुछ डांस वगैरह का प्रोग्राम था”
इसके बाद दोनों में आधे घँटे से भी ऊपर बातचीत हुई और कॉल डिसकनेक्ट करते हुए गौरांग ने ऐश्ले को ‘गुड नाईट एंड स्लीप वेल’ कहा।
अगले दिन टूर ऑपरेटर ने सभी के लिए एक फ्री डे रखा था जिससे कि हर कोई आराम से अपने हिसाब से ग्लॉसगौ घूम सके। गौरांग और तृप्ती भी आराम से देर से सो कर उठे। दिन में गयारह बजे के आसपास वे लोग अपने होटल से निकलने के लिए तैयार थे कि रिसेप्शन एरिया में उनकी मुलाकात कोहली परिवार से हुई तो मिस्टर कोहली ने गौरांग से पूछा, “होप आल इज वेल”
“यस मिस्टर कोहली आल इज वेल”
“दैट्स बैटर, फैमिली में ऐसा होता ही रहता है”
गौरांग पहले तो कोहली जी के प्रश्न से सकपका गया अपने को सम्हालते हुए उसने कोहली से कहा, “जी आप बजा फरमा रहे हैं। जब दो लोग हैं तो थोड़ा बहुत दोनों के बीच कुछ न कुछ होता ही रहता है”, उसके बाद उसने पूछा, “आज आप लोगों का क्या प्रोग्राम है”
“कोई ख़ास नहीं हम लोग अभी सीधे कॉपोरेशन बिल्डिंग जा रहे हैं और दिन भर इधर उधर घूम कर मार्केटिंग करेंगे और क्या बस इतना ही बहुत है”, मिस्टर कोहली ने जवाब दिया।
तृप्ती ने उनसे कहा, “हम लोग भी वहीं रहेंगे। चलिये साथ साथ ही निकलते हैं’
तृप्ती की बात सुनकर गौरांग को अच्छा लगा कि वंदना को लेकर उसके दिमाग में अब कोई फितूर नहीं चल रहा है। बीच बीच में जब कभी मिसेज कोहली और तृप्ती जब आपस में बात कर रहे होते तो वन्दना मौक़ा निकाल कर गौरांग से अंकल अंकल कह कर बातचीत करने कोई न कोई बहाना निकाल ही लेती थी। गौरांग समझ नहीं पा रहा था कि आखिर वंदना उससे क्या चाहती है। उसने कई बार सोचा कि वह उससे पूछे कि उसके दिल में क्या चल रहा है पर तृप्ती को अपने आसपास पाकर वह चुप ही रहा।
दिन में वे लोग मिलकर इधर उधर घूमते रहे ग्लॉसगौ की लाइफ तृप्ती का आनंद उठाया। देर रात वे लोग डिनर खाकर ही होटल लौटे और जल्दी ही सो गए क्योंकि अगले दिन उन्हें एडिनबरा के लिए निकलना जो था।
उस रात रुक-रुक कर बारिश होती रही जिससे मौसम में सर्दी की चटख की तल्ख़ी आगई थी। सभी लोगों ने सर्दी से बचने की अच्छी तरह तैयारी की और बस में बैठकर एडिनबरा के लिए निकल पड़े। एडिनबरा पहुँच कर कुलकर्णी ने दो लोकल गाइड और लिए जिससे कि वे लोग ट्रुप को एडिनबरा के ऐतिहासिक स्थल कायदे से दिखा सकें। सबसे पहले गाइड उन्हें एक ऐसे स्थान पर ले गया जहाँ से पहाड़ी पर बनी कैसल उन लोगों की निग़ाह के ठीक सामने थी जहाँ कुछ देर रुक कर उस कैसल का इतिहास जाना और उसके बाद सभी के कैमरों में वे यादगार पल एक एक कर क़ैद होने लगे। तृप्ती की जितनी भी तारीफ़ की जाए वह कम ही है रहेगी उसने कैसल की बहुत खूबसूरत पिक्स शूट कीं।
रॉयल माइल जो कि कैसल से शुरू होकर वहाँ के मार्किट के बीच से होता हुआवह रास्ता था जहाँ इन दिनों में आप वग़ैर अपना कंधा छिलवाये हुए चल हीनहीं सकते। गौरांग जैसे नौजवानों के लिए और क्या चाहिए उसकी तो मौज ही मौज थी। लेकिन अचानक तेज बारिश होने लगी तो गौरांग तृप्ती से बोला, “अगर हम लोग हजरतगंज, लखनऊ की तरह गंजिंग कर पाते तो मज़ा ही आ जाता। पर करें क्या अचानक बारिश होने लगी और हमें अपने कंधे छिलवाने का मौक़ा ही न मिला”
तृप्ती ने पिछले दिन की बात सोचकर कुछ भी नहीं कहा उसने चुप ही रहना बेहतर समझा। वहाँ से वे लोग क़लाइड नदी पार कर शहर के बाहरी छोर पर आकर आर्थर सीट पहाड़ी की ओर चल पड़े जिस पर हर स्कोटिश नाज़ करता है। इसी पहाड़ी के लिए रॉबर्ट लुइस स्टीवेंसन ने लिखा था, "A hill for magnitude, a mountain in virtue of its bold design"
वहाँ पहाड़ी पर कुछ समय बिताते हुए उनकी बस जब आगे की ओर बढ़ने लगी तो गौरांग ने तृप्ती से कहा, “यहाँ आकर आज मुझे इंटरमीडिएट के दिनों में इंगलिश विषय मे पढ़ी हुई रोबर्ट लुइस स्टीवेंसन की "Green Carvan Seari" कहानी याद हो आई जिसे पढ़ाते वक़्त हमारे इंग्लिश के प्रोफ़ेसर मेहरा साहब बहुत भावुक होकर प्रकृति के साथ इंसान के संबंधों की बातें बताते थे”
वहाँ का शांत वातावरण, धीरे-धीरे चलती हुई मस्त हवा किसी का भी दिल जीतने के लिए बहुत थी। उन लोगों के लिए यही बहुत था कि हमें वहाँ कुछ देर रुक कर सुहावने मौसम का आनंद उठाया वहाँ से एडिनबरा शहर के मनोहारी दृश्य देखे।
वहाँ से लौटते में वे लोग वहाँ के “The Palace of Holyroodhouse”,यूनाइटेड किंगडम की महारानी का ऑफिशियल निवास है और वे जब कभी इडिंनबरा आतीं हैं तो यहीं रुकतीं हैं।
वापस घूम घामकर वे लोग एडिनबरा Royal Mile की शानदार मार्किट की रौनक देखते हुए Natianal Museum के पास आकर रुके। वहाँ से पैदल ही चल कर वे लोग कैसल की ओर चल पड़े। पहाड़ी पर पत्थर की बनी यह इमारत मुझे तो किसी राजा या रानी के महल से अधिक एक आर्मी के लिए बना स्थान अधिक लगा। एडिनबरा कैसल देखने के बाद तृप्ती गौरांग से बोली, “सही कहा जाए तो इस कैसल में ऐसा कुछ अधिक नहीं जैसा कि हमारे यहाँ के राजस्थान के मशहूर जैसलमेर का सोनार किल्ला, जोधपुर का मेहरानगढ़, मेवाड़, उदयपुर काचित्तौड़गढ़ इत्यादि। लेकिन किसी भी तरह का कंपेरिजन करना ठीक नहीं होगा इसलिए यही मानकर चलना चाहिए कि यह पुरानी इमारत एडिनबरा की शान है और यहाँ के हर निवासी को इस पर नाज़ है”
बहुत देर वहाँ पर बने अन्य भवनों की बनावट देखने के बाद वे अपने गाइड के साथ उस स्पॉट पर आए जहाँ से हर रोज़ फ़िक्स टाइम पर तोप दागी जाती थी कहावत के अनुसार जिससे एडिनबरा के लोग अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे। अब यह बात मात्र एक कहावत थी या सही में इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।
गौरांग और तृप्ती के मतलब की बात जो इस कैसल में थी वह थी वहाँ पर Scotch Whisky की एक दुकान जिसमें स्कॉटलैंड की बनी एक से एक बढ़ कर wine and whisky रखीं हुईं थीं। सबसे बड़ी बात थी कि आप पहले टेस्ट करिये फिर जो आपको जो अच्छी लगे वह खरीदिए। न भी खरीदना चाहें तो भी वहाँ वे विभिन्न वैरायटी की स्कॉच ट्राय कर सकते हैं। दोंनो ने भी अधिक तो नहीं दो तीन वैरायटी की स्कॉच ट्राय की और यादगार के बतौर दो बोतल सिंगल माल्ट व्हिस्की आख़िरकार ख़रीदली।
कैसल के गेट के पास बने ओपन स्पेस में उस दिन शाम को कोई म्यूजिकल प्रोग्राम का आयोजन होना था जिसकी तैयारी जोर शोर से चल रही थी। उन लोगों ने कुछ समय वहाँ बिताया और फिर सिटी होटल एंड फ्रेंडली बार में आकर दमदार लंच और एक एक बियर के साथ लिया। दोपहर के बाद वे लोग वहाँ के मार्किट में घूमते रहे और स्कोटिश लोगों के क्रिया कलापों के बारे में जानकारी हासिल की। उन्हें वहीं पता लगा कि स्कॉटलैंड की अपनी करेंसी है जो ब्रिटश पोंड्स से अलग है। ब्रिटश पोंड्स तो स्कॉटलैंड में चलते थे लेकिन स्कोटिश पोंड्स इंग्लैंड में नहीं चलते थे। इसलिए शॉपिंग के बाद जितने भी स्कोटिश पोंड्स बचे थे उनको ब्रिटश पोंड्स में बदला जिससे कि वह करेंसी बेकार न हो जाय।
गौरांग और तृप्ती का बहुत ही यादगार वक़्त एडिनबरा में गुज़रा और आख़िर में चलते चलाते म्यूजियम के सामने कुछ स्कोटिश लड़के लड़कियां म्यूजिक की धुन पर डांस कर रहे थे। वे लोग कुछ देर वहाँ रुककर उनका प्रोग्राम देखते रहे। देर शाम ही हम लोग अपने बेस कैम्प होटल हॉलिडे इन् में लौट आए। ग्लॉसगौ की तरह ही उनको एडिनबरा में भी एक स्पेयर दिन मिला जो उन्होंने आपस में बात करके मौज मस्ती के माहौल में गुजारा।
क्रमशः





एपिसोड 24
गतांक से आगे: डिनर के बाद तृप्ती को उसके रूम में छोड़कर जब गौरांग अपने रूम में आया तो रात के दस बज गए थे और दिन भर इडिनबरा की गलियों की खाक छानने के बाद उसे थकान अलग से लग रही थी।
उसके बाद.....
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लगभग रात दस बजे जब ऐश्ले का फ़ोन आया तो गौरांग गहरी नींद में था लेकिन यह देखकर कि फोन करने वाला कोई और नहीं ऐश है, तो उसने जवाब में ‘हेलो’ कहा और बहुत देर तक बात की। ऐश्ले ने बातों ही बातों में यह पता कर लिया कि गौरांग और तृप्ती को उनका टूर ऑपरेटर किस किस जगह ले जाने वाला है तो ऐश्ले ने गौरांग से कहा, “इसका मतलब तुम्हें अभी लंदन तक लौटने में तीन दिन और लगेंगे”
जब गौरांग ने उत्तर में ‘हाँ’ कहा तो ऐश्ले एक दम बिफर कर रो पड़ी और बोली, “अब यह दूरी मुझसे बर्दाश्त नहीं होती। अगर तुम्हें कोई ऑब्जेक्शन न हो तो क्या मैं तुमसे प्रेस्टन के होटल हॉलिडे इन् में मिल सकती हूँ”
“अरे प्रेस्टन तो लंदन से बहुत दूर है। मैं उसके अगले रोज़ शाम को तो लंदन पहुँच ही रहा हूँ इसलिए तुम प्रेस्टन आकर क्या करोगी। ऐसा करो कि तुम मुझे साढ़े छह बजे शाम को हॉलिडे इन् होटल में मिलो वहाँ से हम दोनों साथ चल कर तुम्हारे घर ही चले चलेंगे”
“बहुत देर हो जाएगी”
गौरांग ऐश्ले की बात सुनकर चिंतित हो उठा कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। बहुत सोच समझ कर उसने निर्णय लिया कि ऐश्ले को समझाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। उसने ऐश्ले से कहा, "कुछ भी देरी नहीं होगी। यह मेरा तुमसे प्रॉमिस है”
“यह बताओ कि तुम हमारे यहाँ कितने दिन रुकोगे”
“जितने दिन तुम कहोगी”
“वेरी गुड। मैं तुम्हारा इंतज़ार होटल हॉलिडे इन् में ही करूँगी”
“ओके बाय बाय बेबी एंड स्लीप वेल”, कह कर गौरांग ने फोन बंद किया और ख़ुद भी सोने की कोशिश करने लगा पर अब आँखों में नींद कहाँ। उसे अब चिंता सताने लगी कि कहने को तो उसने ऐश्ले से कह दिया पर वह अपना वायदा निभाएगा कैसे। वह तो सोच में पड़ गया कि अब आगे वह किसके साथ निबाहे तृप्ती का साथ दे या ऐश्ले का। रात भर वह इसी उधेड़बुन में लगा रहा पर कोई रास्ता उस दिखाई नहीं दिया। इन्ही सब विचारों में जब वह उलझा हुआ था तो न जाने कब उसकी आँख लग गई।
सुबह जब वह उठा तो सात बज चुके थे। उसे तब ख़्याल आया कि उसे तो साढ़े आठ बजे ट्रूप के साथ निकलना है तो वह जल्दी से तैयार हुआ। समान पैक किया और रिसेप्शन पर आकर तृप्ती का इंतजार करने लगा। ब्रेकफ़ास्ट करके जब सब लोग कोच में सवार हो गए तो कुलकर्णी ने उस दिन का प्रोग्राम बताते हुए कहा, “फ्रेंड्स आज हम अपने तय शुदा प्रोग्राम के हिसाब से स्कॉटलैंड के लेक डिस्ट्रिक्ट की मशहूर लेक लॉच लोमण्ड चलेंगे। रात को हम लोग प्रेस्टन में रुकेंगे और उसके बाद कल सुबह हम लोग Windermere (विन्दरमियर), अगला स्टॉप हम लोगों का होगा Grasmere (ग्रासस्मियर) जहाँ मशहूर विलियम वर्ड्सवर्थ ने रह कर एक से बढ़ कर एक साहित्यिक रचना का सृजन किया। अंत में हम लोग होटल हॉलिडे इन् प्रेस्टन में रुकेंगे”
“लॉच लोमण्ड में हम लोग कितना समय रुकेंगे", कोहली जी ने कुलकर्णी से पूछा।
“प्रोग्राम के मुताबिक़ कुल तीन घंटे। पैंतालीस मिनट लेक में फ़ेरी के लिए और बाकी का समय तकरीबन दो घंटे वहाँ के नजारे देखने के लिए। मैं यह आप सभी को बता दूँ कि लॉच लोमण्ड दुनिया का सबसे बढ़िया पिकनिक स्पॉट है और यहाँ टूरिस्टों की भीड़ साल भर लगी रहती है”
ढाई घंटे से रास्ते का सफर तय करके आखिर में उनकी कोच लॉच लोमण्ड पहुँच ही गई। कुछ देर बाद जब हमारी कोच एक जगह आकर कोच कैप्टन लुइस ने रोकी तो सभी लोग गाड़ी से अपनी अपनी जर्किन पहनकर, हाथों में रेन कोटस और अम्ब्रेला लेकर उतरे। लॉच लोमण्ड की विशालकाय पहाड़ों से घिरी हुई झील उन लोगों की निग़ाह के ठीक सामने थी। बस वे लोग उस नज़ारे को पल भर के लिए देखते ही रह गए। तृप्ती को तो लगा कि उसका जीवन सफल हो गया। लॉच लोमण्ड की पहाड़ियों पर प्रकृति की अनुपम छटा बिखरी हुई थी। पतझड़ के मौसम में जंगलो पर जहाँ तक नज़र जाती बस रंग बिरंगे दृश्य दिखाई दे रहे थे। तृप्ती ने गौरांग के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए कहा, “आज मेरे आँखों के सामने बिल्कुल वैसे ही नज़ारे हैं जैसी कि मैंने कल्पना की थी”
“मुझे खुशी है कि तुम प्रकृति के इस अनुपम और मनोहारी दृश्यों को देख पा रही हो”, गौरांग ने भी प्यार भरी नजरों से तृप्ती को देखते हुए कहा।
“मुझे अब कुछ मिले या न मिले मेरे मन की मुराद पूरी हो गई”
“मुझे भी बेहद ख़ुशी हुई है”
अगले पल ही तृप्ती ने वंदना से कह कर खुद के न जाने कितने ही फ़ोटो खिंचवा डाले और न जाने कितने वीडियो बना डाले। मैंने उनसे कहा कि रुको मैं क्रूज की टिकेट्स लेकर आता हूँ तो उन्होंने कहा, "आप जाओ हम लोग यहीं शूट कर रहे हैं"
जब से मोबाइल्स में कैमरे की क्वालिटी अच्छी हो गई है फ़ोटो खींचना लगता है कि कुछ लोगों की एक बहुत बड़ी हॉबी बन गई है। तृप्ती को वैसे भी फ़ोटो खींचने और खिंचवाने का अंदाज़ ही अलग है जो वह सोचती है कि जिस जगह हम अपने यादगारपल बिता रहे हैं, जिस जगह हम घूमने आए हैं वे सब कुछ दिनों में यादों में तो रहेंगे पर धूमिल होते जाएंगे। बस उन्हें अपने पास एक लंबे समय तक संजोए रहने का एक ही तरीका है कि उन मधुर पलों को फोटोज़ और वीडिओज़ में क़ैद कर लिया जाए।
गौरांग जब टिकट लेकर लौटा तो वंदना मुझसे बोली, "अंकल चुपचाप खड़े हो जाओ और फ़ोटो खिंचवालो नहीं तो इंडिया वापस चल कर कहोगे कि आँटी ने आपकी फ़ोटो तो खींची ही नहीं"
गौरांग भी चुपचाप जैसे वंदना ने कहा था वैसे ही खड़ा हो गया और उसने उसकी कुछ फोटो भी खींच ली तो कुछ अकेले कुछ तृप्ती के साथ। तृप्ती ने वंदना का दिल रखने के लिए गौरांग और उसकी फोटोज ही नहीं खींची गई, बल्कि तृप्ती ने कुछ वीडियो भी बनाये।
जब क्रूज का समय हो गया तो हम लोग अन्य लोगो के साथ क्रूज पर सवार हो गए। धीरे धीरे क्रूज झील के गहरे पानी में उतर कर आगे बढ़ने लगा। कुछ ही देर बीती होगी कि रेनू हमारे साथ काम करने वाली एक दोस्त की कही हुई की बात सही हो गई और बारिश होने लगी। गौरांग कुछ देर तो छाता लगाकर डेक पर रहा पर जब वहाँ रह पाना मेरे लिए दूभर हो गया तो बाद में केबिन में आ गया। तृप्ती की दीवानगी का तो यह आलम था कि वह बारिश में भी छाता लगाकर डेक पर खड़े हो इधर उधर के नज़ारों को देखती रही।
डेक से नीचे केबिन में आते ही गौरांग की नज़र कोहली जी पर पड़ी जो पहले ही से वहाँ बैठा बियर पी रहे थे। उन्होंने गौरांग को ओर इशारा कर पूछा पर गौरांग ने बियर के लिए मना कर दिया लेकिन चाय पीने की इच्छा अवश्य जताई। उन्होंने गौरांग कर लिए चाय की व्यवस्था की। गौरांग ने जैसे ही चाय का पहला घूँट अपने गले के नीचे उतारा नहीं कि उसने कोहली जी से कहा, "यह कहने में मुझे कोई उज्र नहीं है कि इस ट्रिप पर दूसरी बार इंडियन स्टाइल की चाय इस क्रूज पर मिली, बस कमी है तो एक कि इसमें चीनी नहीं थी”
गौरांग ने वेटर को शुगर लाने के लिए कहा और अपने मन मुताबिक़ चीनी चाय में डाली और चाय का आनंद उठाने लगा। गौरांग चाय सिप करने के साथ बीच बीच में कोहली जी से बात करता रहा और बाहर झाँकते हुए आसपास के दृश्यों का आंनद लेते रहे । जैसे जैसे क्रूज आगे बढ़ता रहा उनकी निगाह शीशे से बहार जाकर इंग्लिश स्टाइल के बने खूबसूरत बंगलो और रिसोर्ट पर जब पड़ी तो कोहली जी बोल उठे, “रहने का असली मज़ा तो यहाँ है”
एक बारगी तो गौरांग को लगा कि काश उसका का जन्म भी यहीं हुआ होता तो जीवन कितना सुखदायक होता। सपने हमेशा सपने ही रहते हैं ठीक इस प्रकार की ख्वाहिशें भी सिर्फ़ ख्वाहिशें ही बन कर रह जातीं हैं। उसके दिल के एक कोने से आवाज़ आई पगले तुझे तो अभी निर्णय करना है कि तुझे ऐश्ले अधिक सूट करेगी या तृप्ती। ऐश्ले के साथ रहने पर वह ख़्याल कर सकता है कि बाद में कभी एक बंगलो यहाँ खरीद ले पर तृप्ती का विचार आते हो अगले ही क्षण गौरांग ने यह बात अपने दिमाग से निकाल दी और शीशे के उस पार झील के किनारे पर बने स्टाइलिश बंगलो को हसरत भरी निगाहों से देखने लगा।
इतने में ही बारिश कुछ तेज़ हो गई। उस समय तृप्ती और वंदना भी डेक से नीचे केबिन में आ गए। तृप्ती गौरांग के पास आकर बैठ गईं और उसे चाय पीते देख उसने भी चाय पीने की इच्छा जताई तो कोहली जी ने उनके लिए भी चाय का आर्डर दिया। इसी बीच गौरांग ने महसूस किया कि अब क्रूज झील के आखिरी छोर पर जाकर जब वापसी यात्रा की तैयारी कर रहा था कि अचानक बादल का एक घना टुकड़ा नीचे आया और केबिन तक में उसका असर देखने को मिला। किसी तरह क्रूज के कैप्टन ने क्रूज को सम्हाला। इस तरह रोमांच भरे माहौल में शुरू हुई उनकी वापसी यात्रा।
गौरांग तथा तृप्ती के में ऑफिस में साथ काम करने वाली दोस्त रेनू ने पहले ही ताकीद कर दिया था कि क्रूज के दौरान हो सकता है कि उनको कई मौसमी झटके झेलने पड़ें..... और उसकी यह बात सच भी साबित हुई जबकि अचानक ही बदली का एक टुकड़ा उनके क्रूज के केबिन में दाखिल हो गया उस वक़्त सभी को अपनी अपनी जर्किन निकाल कर पहननी पड़ी, यही तो यूरोप की खसूसियत है कि पल भर में धूप तो पल में छाँह और गज़ब की ठंड।
जब क्रूज अपने एंकरइंग पॉइंट पर आकर रुका तो वे लोग और ग्रुप के सभी लोग एक एक करके सावधानी से नीचे उतरे। कुछ देर लॉच लोमण्ड की गलियों में बिता कर फिर अपनी बस में सवार हो अगले डेस्टिनेशन के लिए चल पड़े।
गौरांग को लुइस के वे शब्द याद हो आये जो उसने गौरांग से और तृप्ती से यात्रा की शुरुआत में ही कहे थे। आज का अभी तक का सफ़र तो बाकई यादगार बन कर रह गया था। दोनों ने लुइस को दिल से शुक्रिया कहा और पूछ लिया, "अब अपना अगला डेस्टिनेशन कौन सा है"
"आप सीट बेल्ट बाँध कर आराम से बैठिए मैं आपको वहाँ लेकर चल ही रहा हूँ"
क्रमशः




एपिसोड 25
गतांक से आगे: लॉच लोमंड लेक सिटी घूमने के वे बाद सभी लोग कोच से ब्लैक पूल सिटी की ओर चल पड़े। रास्ते में एक रोड साइड जॉइंट पर रुक कर लंच किया।
इस बीच क्या क्या हुआ जानिए...

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लोगों के कोच में बैठते ही लुइस ने जीपीएस में जब डाटा फीड किया जो कि गौरांग न देख लिया तो वह लुइस से पूछ बैठा कि क्या वे लोग ब्लैक पूल जा रहे हैं।
"जी हाँ", लुइस का जवाब था।
"वहाँ ऐसा क्या है जो हम लोग देख सकेंगे", गौरांग का अगला प्रश्न था।
गौरांग के प्रश्न के उत्तर में ब्लैक पूल के बारे में बताते हुए लुइस बताया, “ब्लैक पूल दरअसल एक सी रिसॉर्ट टाउन है जो यूनाइटेड किंगडम के वेस्टर्न कोस्ट पर स्थित है। गर्मियों के दिनों में यहाँ इंग्लैंड से ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों से टूरिस्ट आते हैं और एन्जॉय करते हैं”
“पर आजकल तो वहाँ ठंड होगी”
“जी बिल्कुल, आपने सही कहा”
“तो फिर हम वहाँ आखिर क्यों जा रहे हैं”
“वहाँ बहुत कुछ और भी है देखने के लिए शायद इसलिए। आपके इस प्रश्न का उत्तर कुलकर्णी ही बेहतर दे सकते हैं”
“ओके मैं उनसे ही इसके बारे में बात कर लूँगा”, यह कह कर जब गौरांग कुलकर्णी की ओर मुख़ातिब होना चाह रहा था तो तृप्ती बोली, “बैठो भी क्यों इतने उतावले हो रहे हो। हो सकता है कि ब्लैक पूल रास्ते में पड़ता हो”
तृप्ती की यह बात सुनकर, गौरांग को भी लगा कि वह बेमतलब ही ब्लैक पूल को लेकर उत्तेजित हो रहा हूं। इतने में पीछे बैठी हुई वंदना गौरांग से पूछ बैठी, “अंकल क्या पता लगा”
“किसके बारे में”
“वही ब्लैक पूल के बारे में”
“कुछ भी नहीं”
“चलिये यह तो अच्छा हुआ जब किसी जगह के बारे में कुछ पता न हो और वहां चलने का मन करे तो ऐसा लगता है कि जैसे ब्लैक होल में चले जा रहे हैं”
वंदना की बात को सुनकर तृप्ती ने उसे उत्तर दिया, “वंदना ब्लैक होल नहीं पूल”
“आँटी वही, मेरा मतलब भी वही था”
बस जब ब्लैक पूल शहर में दाख़िल हुई तो वहाँ के सी बीच रिसॉर्ट देखकर सभी की तबियत ख़ुश हो गई, सी बीच के अलावा वहाँ और भी बहुत कुछ था देखने के लिए। यह जानकर गौरांग तो खुश हुआ ही साथ साथ तृप्ती को भी बहुत अच्छा लगा। जैसे ही कोच एक रिसोर्ट के सामने रुकी तो कुलकर्णी ने अनाउंस किया, “वेल लेडीज एंड जेंटलमैन हम लोग यहाँ केवल दो घंटे रुकेंगे और आप इसी बीच यहाँ कुछ दर्शनीय स्थल हैं उसमे से खास है दुनिया का लकड़ी का बना हुआ अकेला और सबसे पहला रोलर कोस्टर है,जो यहीं पास में ही है”
कोच से उतर कर कुछ लोग सीधे रोलर कोस्टर देखने के लिए निकल पड़े, कुछ लोग सी बीच की ओर बढ़ गए, कुछ रिसॉर्ट देखने के लिए वहीं रह गए। गौरांग, तृप्ती को लेकर सी बीच की ओर निकल पड़ा था। रास्ते में गौरांग ने तृप्ती से कहा, “बहुत सर्दी है न”
“आओ मेरे आगोश में आओ, मैं तुम्हें गरम कर दूँ”
“यहाँ अभी नहीं पर आज रात को”
“छोड़ो भी अभी ऐसा ख़्याल अपने ज़हन में लाना भी नहीं”
कुछ देर वहाँ बिता कर रिसॉर्ट में लौट आए और वहाँ के रेस्टॉरेंट में चाय पी और फिर कोच में आकर बैठ गए और इंतज़ार करने लगे कि दूसरे लोग भी वापस आ जाएं तो वे लोग प्रेस्टन के लिए प्रस्थान करें। हॉलिडे इन् प्रेस्टन में रात्रिकालीन रुकने का प्रोग्राम तो पहले ही से तय था।
प्रेस्टन से बस सीधे लंदन जाने का प्रोग्राम था। लेकिन लुइस ने कुछ ऐसा कह दिया कि सब ने प्रेस्टन से लंदन न जाकर विन्दरमियर जाने का मन बना लिया। प्रेस्टन विन्दरमियर की दूरी 55 मील के क़रीब थी जो उन्होंने लगभग 1 घँटे में पूरी की। जंगलात और पहाड़ी इलाकों के बीच से उनकी कोच धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी। वक़्त था तो गौरांग ने लुइस से पूछा, "लुइस आप यूके में किस जगह के रहने वाले हैं"
मुस्कराते हुए उसने कहा, "मैं यूके से नहीं हूँ। मैं पुर्तगाली हूँ। ....और मेरा वास्तविक घर लिस्बन में है। मेरी माँ एक ब्रिटश नागरिक थीं और पिता पुर्तगाली। वे दोनों अब साथ साथ नहीं हैं। मैं अधिकतर अपनी माँ के पास तो कभी कभी अपने पिता के पास रहता हूँ। चूँकि मेरी माँ लंदन में ही रहती हैं तो आप कह सकते हैं कि मैं भी लंदन में ही रहता हूँ"
लुइस ने यह सब इतनी आसानी से कह दिया और गौरांग चुपचाप सुनता रहा। उसे लगा अगर ऐसी कोई घटना किसी हिंदुस्तानी के साथ हो जाती तो वह किस प्रकार इस पर कपड़ा डालने की कोशिश करता। गौरांग को चुप देख लुइस बोला, "क्या हुआ आपको यह सब अजीब लगा। हम लोगों को नहीं लगता है। यह सब यहाँ वेस्ट में होता ही रहता है"
गौरांग को लगा कि उसने ग़लत विषय पर लुइस को छेड़ दिया। इसलिए विषय बदलने के लिए गौरांग ने लुइस से लिस्बन के बारे में ख़ूबसारी जानकारी हासिल की। लुइस ने अंत में यही कह, “लंदन बहुत बड़ा है, लिस्बन उतना नहीं फिर भी लिस्बन और लंदन को जो दो चीज एक बनातीं हैं वे हैं उनकी ऐतिहासिक विरासत। इस लिहाज में लिस्बन भी देखने और कुछ दिन गुजारने के लिए बढ़िया डेस्टिनेशन है"
"सोच रहा हूँ, अगर मौक़ा मिलेगा और ईश्वर का आशीर्वाद रहा तो मैं स्पेन के साथ लिस्बन, पुर्तगाल जाना चाहूँगा", गौरांग ने कहा।
"आप हिंदुस्तानी लोग ईश्वर में बहुत विश्वास करते हैं"
गौरांग ने कुछ कहा तो नहीं सहमति में सिर हिला कर उसे बताया। गौरांग की बात समझ कर वह बोला, "आपके लिए मैं प्रार्थना करूँगा कि आप अपनी पत्नी के साथ वहाँ की यात्रा अवश्य करें"
"धन्यवाद'', कहकर मैंने फिर उसे बताया, "मेरे साथ जो है वह मेरी पत्नी नहीं हैं। हम लोग अभी केवल दोस्त हैं पर शीघ्र ही शादी करने वाले हैं”
लुइस ने गौरांग की ओर देखा और बोला, "एक बात कहूँ आप बुरा तो न मानियेगा"
"कहो न लुइस, ऐसी क्या बात है? मैं तुम्हारी किसी भी बात का बुरा नहीं मानूँगा"
"आपकी होने वाली पत्नी बहुत सुंदर दिखतीं हैं"
"तुम्हारी जो तबियत में आये वह कहो", गौरांग भी अपनी अंग्रेज तबियत के अनुसार लुइस से कहा, "यह तो कॉम्प्लीमेंट है व्हाई डोंट यू स्पीक टू हर”
लुइस ने तृप्ती की ओर देखकर कहा, "मैम यू लुक वेरी चारमिंग एंड ब्यूटीफुल”
तृप्ती ने मुस्कुरा कर लुइस से उत्तर में कहा, "थैंक्स मिसटर लुइस”
बातचीत में वक़्त का पता ही न चला और उनकी कोच विन्दरमियर पहुँच गई। विन्दरमियर के मार्केट से जब वे गुज़र रहे थे तो गौरांग ने महसूस किया कि वाकई यह बहुत खूबसूरत जगह है। गौरांग का मन किया कि वह गाड़ी से उतर कर चहलकदमी करता हुआ बाजार की रौनक का मज़ा लेता हुआ पैदल चले। लुइस ने कोच लेक के पास आकर खड़ी कर दी और बोला, "यह पास वाली जो दुकान है यहाँ बहुत अच्छे सोविनियर मिलते हैं। मैं सिफारिश करूँगा कि आप यहाँ से यादगार के बतौर कुछ अवश्य खरीदिएगा। यहाँ के कुछ कूपन मेरे पास पड़े हैं जिससे आपको दस परसेंट तक डिस्काउंट भी मिल जाएगा”
गौरांग ने लुइस से वे कूपन ले लिए और तृप्ती से कहा, "देखना कोई चीज अच्छी लगे तो ले लेना”
जब वे विन्दरमियर पहुंचे तो लगा कि जन्नत में आ गए। विन्दरमियर यूनाइटेड किंगडम के लेकडिस्ट्रक्ट में है और बहुत ही खूबसूरत जगह है। वहाँ की कुल पापुलेशन मात्र पांच हज़ार है और हर साल एक करोड़ लोग बतौर टूरिस्ट यहाँ आते हैं। जब उनकी कोच विन्दरमियर से चलने लगी तो विन्दरमियर के बारे में जब गौरांग के मुहँ से निकला, “इसके बारे में और क्या कहा जाए बस इतना ही काफी है कि काश हम लोग कुछ दिन रुक सकते”
गौरांग को लगा जैसे कि वे लोग अपना कुछ वहीं छोड़ आये हैं जिसे दोबारा पाने के लिए एक बार विन्दरमियर आना पड़ेगा। यह जानते हुए भी कि यहाँ आना उतना आसान नहीं फिर भी गौरांग के दिल में एक हूक सी विन्दरमियर लिए हमेशा उठती रहेगी। तृप्ती भी मन ही मन गौरांग की बात से सहमत थी पर वह कुछ भी बोली नहीं।
गौरांग ने वहाँ की खूबसूरती देखते हुए तृप्ती से कहा, “पहाड़ों के बीच चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली, छोटी सी मार्केट, साफ सुथरी जगह जहाँ ज़रूरत की हर चीज मिलती हो बस इसके सिवाय क्या चाहिए एक आराम से ज़िंदगी बसर करने के लिए”
गौरांग की बात सुनकर तृप्ती का मन तो यही कर रहा था कि बस ठहर जाते हैं पर अगले ही क्षण यह याद करके कि अगर गौरांग को यहीं आकर रहना है तो वह उसके साथ क्यों आना चाहेगा उससे बेहतर विकल्प तो ऐश्ले होगी। यह सोचकर वह बोली, “अपना हिंदुस्तान भी रहने के लिए कोई खराब जगह नहीं है”
गौरांग ने तृप्ती की बात सुनी तो पर कुछ भी कहने से वह बचता रहा पर उसने इतना ज़रूर कहा, “कुछ और अधिक कहना बस इतनी खूबसूरत जगह के बारे में मुमकिन नहीं हो पा रहा है। जब फोटोज़ वहाँ की कहानी कहने पर आमादा हों तो भला शब्द छोटे ही पड़ जाते हैं। तुम मेरी बात की अहमियत को बाद में समझोगी”
विन्दरमियर से चल कर वे लोग ग्रासस्मियर आ गए जो मुश्किल से आठ मील दूर था। यहाँ आकर लगा कि अबकी बार इंग्लैंड आने का मक़सद पूरा हुआ। ग्रासस्मियर विलियम वर्ड्सवर्थ का होम टाउन है। वहाँ लोगों से बात करने पर पता लगा कि विलियम वर्ड्सवर्थ यहाँ के रहने वाले न थे पर प्रकृति के प्यार ने उन्हें यहाँ रहने को मजबूर कर दिया और उन्होंने अपनी डोव कॉटेज में रह कर न जाने कितनी ही सुंदर रचनाएं इस दुनिया को हमेशा के लिए दीं। तृप्ती यह बात याद कर बोल उठी, "बचपन में मैंने अकेले ही नहीं, मुझे उम्मीद है कि तुमने भी विलियम वर्ड्सवर्थ को पढ़ा होगा”
“विलियम वर्ड्सवर्थ को किसने नहीं पढ़ा है, मैंने भी उन्हें खूब पढ़ा है”
ग्रासस्मियर से निकल कर उनकी कोच हम लोग सीधे होटल हॉलिडे इन् हीथ्रो में ही आकर रुके। ग्रासस्मियर से लंदन तक हम लोगों ने 280 मील का सफ़र तकरीबन 6 घँटों में पूरा किया। बीच में एक जगह ब्रेक भी लिया।
हॉलिडे इन् होटल, हीथ्रो में पहले ही से ऐश्ले उन लोगों को अपने साथ घर लाने के लिए पहुँची हुई थी।
एपिसोड 27
गतांक से आगे: Windermere और Grasmere घूम चुकने के बाद जब गौरांग और तृप्ती की कोच हॉलिडे इन हीथ्रो पहुंच कर पार्किंग में खड़ी हो गई तो गौरांग ने ऐश्ले को फोन किया। आगे जानिए फिर आगे क्या हुआ......
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संडे होने के कारण ट्रैफिक कम होने की वजह से ऐश्ले अपनी कार से ही आकर हॉलिडे इन्, के रिसेस्प्शन एरिया में आकर बैठी हुई थी जब गौरांग का उसके पास फ़ोन आया, “ऐश तुम कहाँ हो”
“मैं तो हॉलिडे इन् होटल के रिसेस्प्शन एरिया में तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ”
“हम लोग अभी अभी यहाँ पहुँचे हैं”
“तुम रुको मैं वहीं आ रही हूँ”, कहकर ऐश्ले होटल के बाहर आई और जहाँ तृप्ती और गौरांग की कोच के पास जाकर उसने उनका बैगेज निकलवा कर अपनी कार के बूट में रखकर वहाँ से अपने घर के लिए चल पड़ी। रास्ते में ऐश्ले ने पूछा, “तुम लोगों का ट्रिप कैसा रहा”
“वेरी एंजॉयबल”, कहकर गौरांग ने उत्तर दिया। तृप्ती भी बोल उठी, “बहुत मज़ा आया, बस एक ही कमी खली वह तुम्हारी अगर तुम साथ में होती तो हम और भी एंजॉय करते”
“मुझे भी लगता है कि मुझे भी तुम्हारे साथ चलना चाहिए था। मे वि सम टाइम नेक्स्ट टाइम....’, ऐश्ले तृप्ती से बोली।
रास्ते में ऐश्ले गौरांग और तृप्ती से और भी इधर उधर की बातें करती रही जैसे कि उन्होंने क्या क्या किया, कौन कौन मिला वगैरह वगैरह। गौरांग तो चुप रहा जानता था कि तृप्ती कुछ न कुछ बोलेगी ही और वैसा ही हुआ, “ऐश्ले तुम्हें बताऊँ कि गौरांग के चेहरे में कुछ तो खास है जो हर किसी को एट्रेक्ट करता है। इस ट्रिप में भी यही हुआ कि एक नौजवान लड़की थी वंदना, वह हमारे एक कोपैसेंजर की बेटी थी, उसने न जाने गौरांग में क्या देखा कि वह तो इसके पीछे ही पड़ गई”
तृप्ती की बात सुनकर गौरांग ने कहा, “तृप्ती क्यों बेकार ही ऐश के माइंड को पौलुयूट कर रही हो”
“पौलुयूट कर रही हूँ तुम्हारा क्या मतलब है। मैं तो केवल इतना ही बता रही हूँ कि वह तुम्हारे पीछे पड़ गई थी जहाँ जहाँ तुम जाते थे वह वहीं पीछे पीछे चली आती थी”, तृप्ती बोली।
“इसके आगे भी कोई बात और है बताने वाली या बस इतना ही"
“गौरांग बस इतना ही और कुछ भी नहीं सिर्फ़ यह कि वह तुम्हें अंकल कह कर बात करती रहती थी”
गौरांग और ऐश्ले ने पलट कर तृप्ती की ओर देखा तो वह खिलखिला कर हँस पड़ी। ऐश्ले ने तृप्ती की ओर देखते हुए कहा, “मैंने भी जब गौरांग की फोटो को पहली बार फेसबुक पर देखी और बाद में जब इसकी लिखी हुई कविता पढ़ी, उसी समय मैंने निर्णय किया कि यह आदमी विश्वास करने योग्य है। उसी समय ही मैंने इसे अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी। माइ लक इसने मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट भी कर ली। बस तब से हम लोग लगातार एक दूसरे से सम्पर्क में हूँ”
“जानती हूँ”, तृप्ती ऐश्ले से बोली!
“वह कैसे”
“ऐसे कि ये सब मुझे गौरांग ने बताया था"
“ओह इसका मतलब यह हुआ कि वह अपनी कोई बात सीक्रेट नहीं रखता।.......और यह अच्छी बात है। जिनका दिल साफ होता है वही लोग इस तरह का व्यवहार करते हैं"
तृप्ती ने जब यह सब ऐश्ले के मुँह से सुना तो उसके मुँह से निकल पड़ा, “वाओ'
कुछ देर में ही वे मार्टिन हॉउस पहुँच गए और तृप्ती और गौरांग को नीचे वाले गेस्ट रूम्स में उनका समान रखवा दिया गया। स्टीव और एडविना ने उनसे मिलकर खुशी जताई कि वे लोग उनके यहाँ मेहमान बन कर आए। यह उन्हें अच्छा लगा। रात को डिनर पर भी सभी लोग आपस में खुल कर मिले। जब एडविना ने तृप्ती से पूछा, “कल का क्या प्रोग्राम है”
“जिसे जाना हो वह जाए”, तृप्ती ने कहा, “मैं तो कल पूरा दिन आपके साथ रहने वाली हूँ मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना जो है”
“आई फील प्रिविलेजड”
देर रात कॉफी पीने के बाद में स्टीव और एडविना यह कहकर उनको गुड नाईट कहा, “आज आप लोग आराम करिए सफर की थकान पता नहीं लगती लेकिन बहुत टैक्सिंग होती है”
क्रमशः


एपिसोड 26
गतांक : तृप्ती ने जैसा कहा वैसा किया। एक दिन मार्टिन परिवार के साथ बिताया। अगले दिन प्रोग्राम के अनुसार वे सभी विंडसर कैसल देखने गए। आगे आप जानिए कि क्या हुआ....
#######
अगले दिन तृप्ती दिनभर एडविना के साथ रही। एडविना के साथ रहकर उसने बहुत कुछ नई डिशेज़ बनाना सीखीं। जब वे डिशेज़ लंच में परोसी गईं तो सभी ने उनकी तारीफ की। स्टीव ने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए तृप्ती से पूछा, “क्या तुम्हें लखनवी स्टाइल की मुगल बिरयानी बनाना आती है"
“मिस्टर स्टीव दरअसल मैं दिल्ली से हूँ इसलिए मुझे उतना अच्छा मुगलई खाना बनाना नहीं आता है फिर भी मैं आज शाम को गौरांग के साथ मिलकर कुछ डिशेज़ बनाऊँगी जो मुझे विश्वास है कि आपको पसंद आएंगी”
“चलो तुम बनाओ और मैं सीखने की कोशिश करूँगी”, एडविना ने कहा।
बीच बीच में जब एडविना को समय मिलता तो वह तृप्ती से हिंदुस्तानी शादी से संबंधित जानकारी के लिए सवाल करती रहती। एडविना ने जब यह पूछा, "मैंने पढ़ा है कि शादी को लेकर अभी भी हिंदुस्तान में बहुत दकियानूसी सोच है। मेरा मतलब तुम समझ गई होगी कि वहां जाति बिरादरी वगैरह को अधिक मान्यता प्राप्त है"
"एक लिहाज़ में है और नहीं भी। जहां शिक्षा का अभाव है उन क्षेत्रों में जाति बिरादरी को अभी भी महत्व दिया जाता है लेकिन आजकल पढ़े लिखे लोगों में यह चलन गिर रहा है"
"मैं यह इसलिए कह रही हूं क्योंकि हम लोगों की दादीजी बताया करतीं थीं कि जब उन्होंने दादाजी से शादी करने का निर्णय लिया तो वहां के समाज में उसकी बहुत चर्चा हुई। हमारी दादीजी और दादाजी के सामने किसी की नहीं चली और उन्होंने चर्च में शादी की"
"हां, यह बात तो ऐश्ले के डैड हमें पहले ही बता चुके हैं। यह बात आप ऐसे समझिए कि अगर गौरांग मुझसे शादी करना चाहता है तो मैं उससे शादी कर लूंगी यह जानते हुए कि वह एक राजपूत परिवार से आता है और मैं एक ब्राह्मण परिवार से। थोड़ी बहुत चर्चा लोग करेंगे पर बाद में सब ठीक हो जाएगा"
"तृप्ती क्या तुम गौरांग के साथ शादी करना चाहती हो"
"मैं अभी कुछ भी नहीं कह सकती सिवाय इसके कि अभी तो हम दोनों एक अच्छे दोस्त हैं। यह बात दूसरी है कि गौरांग मुझे बहुत अच्छा लगता है"
एडविना ने तृप्ती से यह जानकर राहत की सांस ली कि गौरांग और तृप्ती के बीच अभी कुछ ऐसा नहीं चल रहा है जिससे वह यह कह सके कि वे शादी करेंगे ही। दिन भर घर पर ही रहकर गौरांग और तृप्ती ने मार्टिन परिवार के साथ एक दूसरे के और करीब आने की कोशिश की। जब एडविना ने तृप्ती से पूछा, “तुम्हारा आगे का क्या प्लान है”
“बस तीन चार दिन और फिर इंडिया वापस चले जायेंगे”
इस पर ऐश्ले बोली, “ऐसे कैसे चले जायेंगे, मुझसे तुम दोनों ने वायदा किया था कि तुम मेरे साथ कुछ दिनों के लिए वेल्स चलोगे”
“तुम कहती हो तो हम ऐसा करते हैं कि हम अपने ऑफिस में इन्फॉर्मेशन देकर अपनी छुट्टी बढ़वा लेते हैं। हम तुम्हारे साथ किये वायदे को अवश्य निभाएंगे”
“यह ठीक रहेगा”, एश्ले ने ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा।
इसके बाद जब रात को तृप्ती और गौरांग को कुछ समय मिला तो उन्होंने आपस में बात कर अपनी छुट्टी बढ़ाने का निर्णय किया। जैसा कि पहले ही तय हो चुका था उसके हिसाब से अगले दिन ऐश्ले गौरांग और तृप्ती को लेकर विंडसर कैसल देखने के लिए निकल गए।
विंडसर जाने के लिए ऐश्ले ने अपनी कार से चलना ठीक समझा इसलिए वे सुबह सुबह दस बजे तक विंडसर पहुँच गए। जैसे ही उनकी कार विंडसर के ईटन स्टेशन के पार्किंग में पहुँची यह देख कर तबियत ख़ुश हो गई कि लंबी लंबी वॉल्वो बसें अपने अपने सुनिश्चित स्थान पर खड़ीं हुईं थीं। कहीं कोई बदइंतज़ामी नहीं लगी। बस के पार्क करते ही बस ड्राइवर को वहाँ यह बताना होता है कि उसकी बस कितनी देर तक वहाँ खड़ी होगी और वक़्त समाप्त होने पर बस ड्राइवर को अपनी बस पार्किंग लॉट से बाहर ले जानी ही पड़ेगी।
बहरहाल कार से उतर कर जब वे आगे बढ़े तो पता लगा कि विंडसर कैसल पहुँचने के लिए प्लेटफार्म पार करना पड़ेगा। सीढ़ियों से न चढ़ना पड़े इसलिए पास ही लगी लिफ़्ट का सहारा लिया। यह देखकर गौरांग ने कहा, “जहाँ भीड़ कम होगी वहाँ सभी प्रकार के सुख तथा सुविधाओं को प्रदान करने में सरकार की भी पहल दिखाई देती है लेकिन कोई करे तो क्या करे जब जनसंख्या 140 करोड़ हो”
तृप्ती ने गौरांग की बात पर कहा, “छोड़ो भी अपने देश की कमियां गिनाना जब वहाँ पहुँचेंगे तब वहाँ की बात करेंगे”
ऐश्ले जो दोनों की बात सुन रही थी बोली, “आप लोगों की बातचीत से लगता है कि भारत में अभी बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर की बहुत कमी है”
“कुछ तो कमी है और कुछ लोग चीजों का इस्तेमाल करना नहीं जानते इसलिए जहाँ फैसिलिटीज़ हैं भी तो वे ठीक से काम नहीं करतीं”, गौरांग ने ऐश्ले की ओर देखते हुए कहा।
“तुम कुछ भी कहो लेकिन मुझे वहाँ के लोगों की रंगबिरंगी पोशाकें देख कर बहुत अच्छा लगता है"
“ऐश एक काम करो तुम हमारे साथ ही इंडिया चलो”, तृप्ती ने ऐश्ले को सुझाव दिया।
“सोचती हूँ, डैड और मॉम से बात करूँगी"
जब वे लोग ईटन स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुँच कर उन्हें लगा कि वे किसी म्यूज़ियम में आ गए हैं। स्टेशन पर पुराने ज़माने का स्टीम इंजन नुमाइश में खड़ा हुआ था। किसी गाड़ी का समय नहीं था इसलिए प्लेटफार्म पर कोई विशेष गहमागहमी अपने यहाँ के प्लेटफ़ॉर्म की तरह न दिखी। प्लेटफार्म के एक किनारे साइकिलों के लिए पार्किंग को देखकर तबियत ख़ुश हो गई। तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में अकेले सफर करने के इस माध्यम की इतनी इज़्ज़त अफ़जाई, समझ के बिल्कुल परे की बात लगी। इंडिया में तो एक बार जो कार पर चढ़ा नहीं कि बायसिकल की ओर उसने पलट कर कभी उसे देखा ही नहीं।
ख़ैर जब वे ईटन स्टेशन के बाहर आये तो स्टेशन से ही लगा हुआ मार्किट था। एक से एक आलीशान दुकानें, साजो सामान से भरी हुईं जिसे देख किसी भी हिंदुस्तानी ख़ासतौर पर महिला का दिल ही डोल जाए। इंडिया की महिलाओं के लिए प्राथमिकता ख़रीददारी की अधिक होती है बजाय जिस जगह को देखने आए हैं उसमें कम।
विंडसर कैसल के गेट से अंदर घुसते ही वहाँ के सजे सजाए मुस्तैद गार्ड्स को देखकर तबियत ख़ुश ही गई। टिकेट्स खरीदने और कैसल में अंदर पहुँचने तक कड़ी सुरक्षा व्यवस्था से होकर उन सभी की गुज़रना पड़ा। देर हुई पर ठीक लगी क्योंकि जहाँ इंग्लैंड की महारानी का व्यक्तिगत निवास हो तो वहाँ की सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद होनी ही चाहिए।
विंडसर कैसल एक पहाड़ी पर स्थित है। वे लोग कैसल को बाहर की ओर से ही देख पाए क्योंकि ऑटम वेकेशन के लिए क्वीन वहाँ आईं हुईं थीं। वैसे भी कैसल के बाहरी भाग को ही पब्लिक को देखने की इज़ाज़त होती है। बाद में कुछ समय विंडसर मार्किट में इधर उधर घूम कर बिताया। गौरांग ने इस व्यवस्था पर कहा, “कितना अच्छा होता कि हम लोग कैसल के भीतरी भाग को भी देख पाते”
“जितना मिल रहा है उसमें खुश रहने की आदत डाल लो मिस्टर गौरांग”, तृप्ती बोली।
गौरांग ने पहले ऐश्ले और बाद में तृप्ती की ओर देखते हुए कहा, “मिल तो कुछ अधिक ही रहा है”
विंडसर कैसल देखने के बाद जब उनकी चाय पीने की इच्छा हुई तो वे लोग कैसल कंपाउंड में ही एक रेस्टोरेंट में ही चाय पीने चले गए। गौरांग ने जब यह जानना चाहा कि यह रेस्टोरेंट कितना पुरातन है तो उस रेस्टोरेंट के मालिक ने एक छोटी सी प्रिंटेड स्लिप उसके हाथ में रख दी और यह कहा कि यह रेस्टोरेंट 16 वीं शताब्दी का है और वहाँ के राजपरिवार का उसे आश्रय प्राप्त रहा है।
यह जानकर अच्छा लगा कि चलो वे भी आज एक कप चाय इस रेस्टोरेंट में बैठकर पीकर स्वयं को सौभाग्यशाली समझ सकेंगे। इस रेस्टोरेंट की एक एक चीज को जब ध्यान से देखा तो एहसास हुआ कि वास्तव में यहाँ के लोग अपनी पुरानी विरासत से कितना प्यार करते हैं और उन्हें कितना सम्हाल कर रखते हैं।
गौरांग ने जब उनका रेस्ट रूम उपयोग करना चाहा तो उसे तीसरी मंजिल तक जाने के लिए कहा गया। गौरांग लकड़ी की बनी हर सीढ़ी पर पाँव जमा कर किसी तरह ऊपर तक पहुँच तो गया और ताज़्ज़ुब तो उस वक़्त हुआ जब कि रेस्ट रूम की हर फिटिंग पर ध्यान गया। सभी फिटिंग पुराने वक़्त की थीं यहाँ तक कि बिजली के स्विचेस भी वही काले वाले टम्बलर स्विचेज थे जो उन्होंने अपने बचपन में अपने घरों में इस्तेमाल होते हुए देखे थे। इन सबको देखकर लगा कि हम लोग किसी म्यूजियम में हैं। बहरहाल गौरांग जैसे संभलकर ऊपर गया था ठीक उसी प्रकार वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गया।
जब वे लोग इस रेस्टोरेंट में पहुँचे तो वहाँ एक विदेशी परिवार पहले ही से वहाँ बैठा हुआ था जो अपने लंच का इंतजार कर रहा था। परिवार में कुल मिला कर चार सदस्य थे। पति पत्नी तथा उनके दो छोटे छोटे बच्चे, उन्होंने हमारी ओर मुस्कुरा कर देखा, इन लोगों ने भी रिटर्न स्माइल दी। बाद में गौरांग, तृप्ती और ऐश्ले कुछ देर वहाँ बैठे। कुछ नाश्ता किया और चाय पी और बाद में वे रेस्टोरेंट के बाहर आ गये। वहाँ से घूमते घामते वे लोग उस चैपल को भी देखने गए जिसे देखकर ऐश्ले ने कहा, "हाल में ही प्रिस हैरी तथा मार्केल मेघम की शादी यहीं से हुई थी”
चैपल देखने के बाद एश्ले ने गौरांग से पूछा, "क्या तुम ईटन बोर्डिंग स्कूल देखना चाहोगे जहां प्रिंसेस डायना की डैथ के बाद प्रिंस विलियम और हैरी को क्वीन ने बोर्डिंग में रखा था जिससे कि उनकी परवरिश सही ढंग से हो सके"
गौरांग कुछ कहता उससे पहले तृप्ती बोल पड़ी, "हां ज़रूर मैं तो वह बोर्डिंग स्कूल देखना चाहूंगी"
इसके बाद एश्ले उन्हें ईटन बोर्डिग स्कूल दिखाने ले गई। जिसे देखकर तृप्ती तो बहुत ख़ुश हुई उसे लगा कि यह उसके बच्चे के लिए सही जगह रहेगी अगर वह बचपन से ही इंग्लैंड के वातावण में रहकर पढ़ेगा। वे लोग घर लौटने के पहले कुछ समय के लिए पिकैड़ली स्कुऐर में रुके, कुछ शॉपिंग की देर शाम तक वो लोग घर लौट पाए।
क्रमशः


एपिसोड 29
डाइनिंग टेबल पर मार्टिन परिवार के सदस्य इंतज़ार कर रहे थे कि गौरांग और तृप्ती उनको जॉइन करें तो सभी एक साथ ब्रेकफ़ास्ट कर सकें। कुछ देर बाद जब वे लोग आये तो दोनों ने एक साथ सभी को गुड मॉर्निंग किया। नाश्ते के दौरान तृप्ती ने मार्टिन परिवार को अपने निर्णय से अवगत किया कि वह कल शाम इंडिया वापस जा रही है लेकिन गौरांग अभी कुछ दिन यहाँ रुकेगा। यह समाचार सुनते ही ऐश्ले के चेहरे पर ख़ुशी की एक लहर सी दौड़ गई पर उसने एक भी शब्द नहीं कहना उचित नहीं समझा। एडविना ने ज़रूर यह कहा, “अगर आप दोनों ही रुक सकते तो बेहतर होता, हमें आप लोगों की सेवा करने का अवसर मिलता”
जब वे नाश्ता करके उठने लगे तो ऐश्ले बोली, “ऐसा करते हैं कि फिर आज हम शॉपिंग के लिए क्यों न चलें?"
“बिल्कुल ठीक”, तृप्ती बोली, “आज हम शॉपिंग के लिए ज़रूर चलेंगे’
जब वे तीनों घर से निकलने लगे तो एश्ले ने सुझाव देते हुए कहा, “अभी शॉपिंग के लिए निकलना जल्दी होगा क्यों न हम रास्ते में सेंट पॉल चर्च न देखते हुए चलें?"
तृप्ती ने तुरंत ऐश्ले की बात मानते हुए कहा, “गुड आइडिया”
इसके बाद वे लोग जब अल्बर्ट हॉल के पास से गुज़र रहे थे तो ऐश्ले ने बताया कि वैसे तो यहाँ कई मेमोरेबल परफॉर्मेंस हुईं हैं लेकिन यहाँ के भारतीयों को जो सबसे अधिक पसंद आई तो वह थी जब यहाँ लता मंगेशकर का एक कॉन्सर्ट हुआ था जिसमें उन्होंने वह गीत गाया था जिसको सुनकर अच्छे अच्छे लोगों की आंखे नम हो गईं थीं। शायद वह गीत इंडिया चीन के 1962 युद्ध के दिनों के बाद का था। उसके बोल कुछ इस प्रकार से थे..."
इससे पहले कि एश्ले कुछ और बोलती, गौरांग ने गीत के बोल सुनाते हुए कहा, "ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी..."
एश्ले ने गीत के बोल सुनकर कहा, "यू आर राइट यही गीत था जिसके बारे में मेरे दादाजी भी बहुत संवेदनशील हो जाते थे। दादाजी का तो कहना ही क्या"
"प्रदीप जी की कलम से निकला वह एक ऐसा गीत था जिसे लता मंगेशकर जी की आवाज़ में सुनकर पंडित जवाहरलाल नेहरू की आंखों से आँसू बह निकले थे", तृप्ती ने एश्ले की बात सुनकर कहा।
एश्ले बोली, "हम लोग मौक़ा होगा तो कोई न कोई कॉन्सर्ट देखने ज़रूर चलेंगे"
"अब कब समय मिलेगा, खुदा ही जाने", तृप्ती ने एश्ले की बात का उत्तर देते हुए कहा।
गौरांग ने कहा, "देखते हैं क्या पता कुछ समय मिल जाये"
बाद में वे लोग संत पॉल चर्च को देखने गए। जब वे चर्च में अंदर प्रेयर हॉल में थे तो तृप्ती ने ऐश्ले से पूछा, “यह तो वही चर्च है जहाँ प्रिंस चार्ल्स और लेडी डायना की शादी हुई थी”
“हाँ, बिल्कुल सही। उसके बाद किसी अन्य शाही जोड़े की शादी के लिए इस चर्च को नहीं चुना गया और शायद आगे भी कभी न चुना जाएगा”, ऐश्ले बोली, “प्रभु का क्या लेना देना उन्होंने ने तो दोनों को आशीष दिया था पर उन्हें क्या पता था कि उनकी शादी के पहले दिन ही से कोई तीसरा था जो कारण बना उनके डाइवोर्स का”
“ओह दैट्स ट्रैजिक स्टोरी। पर मेरे विचार में प्रिंस ने कैमला से डायना की डेथ के बाद शादी करके ठीक ही किया”, गौरांग बोला।
तृप्ती बोली, “उन दिनों में जिस तरह शाही परिवार ने विशेष रूप में क्वीन ने अपने व्यवहार को संतुलित किया वह भी इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा”
“यह तो सही बात है। क्वीन ने लेडी डायना के दोनों बच्चों का जिस तरह लालन पालन किया वह भी एक मिसाल बन कर रह गया है। शाही परिवार से लोग इसी तरह के व्यवहार की उम्मीद रखते भी हैं”, ऐश्ले ने बताया। चर्च से निकल कर वे सीधे ऑक्सफ़ोर्ड स्ट्रीट गए और वहाँ शॉपिंग की। वे लोग बाद में किंग्स स्ट्रीट भी गए।
तीनों लोग अपने अपने हाथों में शॉपिंग के बैग्स लेकर देर शाम घर लौटे।
अगला पूरा दिन गौरांग तथा तृप्ती ने मार्टिन परिवार के साथ हँसी ख़ुशी के माहौल में गुजारा और शाम के वक़्त एयर इंडिया की फ्लाइट पकड़ने तृप्ती के साथ साथ उसे छोड़ने के लिए गौरांग और ऐश्ले उसे छोड़ने आए। एयरपोर्ट पर जब तृप्ती अंदर जाने लगी तो वह गौरांग से बड़े प्यार से बोली, “ऐश एक बहुत अच्छी लड़की है, उसके साथ तुम ख़ुशनुमा माहौल में वेल्स घूमने ज़रूर जाना और मुझे वहाँ से फोन करना”
गौरांग अंदर ही अंदर समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे इसी बीच तृप्ती ने उसको धीरे से किस किया और बोली, “......याद रखना कि मैं किसी फॉरेनर लेडी से कम नहीं हूँ”
अगले ही पल तृप्ती, ऐश्ले से भी गले लग कर मिली और फेयरवेल किस किया और तेजी से बाय बाय कहकर वह एयरपोर्ट के अंदर चली गई.....
क्रमशः
एपिसोड 30

गताकं से आगे: तृप्ती को हीथ्रो एयरपोर्ट पर एयर इंडिया की फ्लाइट से विदा करके ऐश्ले और गौरांग वापस लौट रहे थे जब कि....

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लौटते समय ऐश्ले ने नोट किया कि गौरांग कुछ चिंतित है इसलिए उसके हाथ को अपने हाथ में लेते हुए बोली, “समझ सकती हूँ कि तुम्हें इस वक़्त कितना खराब लग रहा होगा। तुम दोनों इस सफर पर साथ साथ आए थे और तृप्ती को बीच मे ही वापस इंडिया जाना पड़ा”

गौरांग कुछ बोला नहीं और ट्यूब में बैठे हुए वह खिड़की के उस पार देखता रहा। देर रात गौरांग ने मार्टिन परिवार के साथ डिनर लिया और अपने रूम में आकर लेट गया। कुछ समय ही बीता होगा कि उसके दरवाज़े पर किसी ने नॉक किया। उठकर गौरांग ने दरवाजा खोला तो देखा कि ऐश्ले उसके सामने है तो उसको अंदर बुलाते हुए बोला, “कम इन ऐश, प्लीज कम इन”

“उम्मीद है कि मैं तुम्हे डिस्टर्ब नहीं कर रही हूँ”

“नहीं बिल्कुल नहीं। आओ बैठो”, कहकर ऐश्ले को अपने साथ ही सोफ़े पर बैठने के लिए कहा।

कुछ देर तक दोनों बिल्कुल शांत रहे जैसे कि उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहा जाए। जब कुछ वक़्त गुज़रा तो गौरांग ने ही बातचीत की शुरूआत करते हुए पूछा, “क्या हम लोग वेल्स जाएंगे?”

“ओह सॉरी मैं उसी के बारे में बात करने के लिए आई थी लेकिन तुमको उदास देखकर मैं चुप रह गई”

“बताओ कब चलना है?”

“अगर तुम चाहो तो हम सुबह ही वेल्स के लिए निकल सकते हैं। डैड और मॉम हमें दो एक दिन बाद जॉइन करेंगे क्योंकि उनको यहाँ कुछ काम जो निपटाने हैं”

गौरांग चुपचाप ऐश्ले की आंखों की गहराई को पढ़ने की कोशिश करता रहा और जब उसे लगा कि वह एक सामान्य लड़की की तरह व्यवहार कर रही है तो उसने ऐश्ले से कहा, “ऐश हम दोनों वहाँ अकेले ही होंगे कोई बात तो नहीं”

हँसते हुए ऐश्ले बोली, “एक लड़की के लिए अपने प्रेमी के साथ अकेले में रहने का अपना ही सुख ही है। खुले आसमान तले प्यार करना। खुल कर अपने प्रेम का इजहार करना। इस सबके लिए पूरी छूट"

गौरांग ऐश्ले की बात सुनकर चुप ही रहा लेकिन उसकी नजरें ऐश के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश में थीं जब ऐश्ले बोल उठी, "इससे बढ़कर एक प्रेमी युगल को क्या चाहिए। तुम यूरोप में हो कुछ समय के लिए भूल भी जाओ कि तुम हिंदुस्तान में हो”

गौरांग के दिल में कई ख्याल चल रहे थे पर उसकी जुबां पर आकर ये शब्द अपने आप ही ऐश्ले की कही बात के जबाव में अचानक ही निकल गए, "यह तो मैं तभी भूल गया था जब हिंदुस्तान की सरज़मी को छोड़ रहा था"

“ये हुई न कुछ मर्दों वाली बात”

“हम लोग कितने बजे निकलेंगे”

“आराम से कोई जल्दी नहीं है। वही ब्रेकफ़ास्ट के बाद”, ऐश्ले ने गौरांग को उत्तर देते हुए कहा, "...और कोई साथ होगा"

“बस अपना शोफर रॉबिन”

दोनों के बीच देर रात तक बातें होती रहीं जब ऐश्ले को लगा कि गौरांग की आंखों में नींद समाने लगी है तो उठते हुए बोली, “ओके तो हम अब कल मिलते हैं”

यह सुनकर गौरांग खड़ा हो गया और ऐश को "गुड नाइट" कहा।

ऐश्ले ने उठते हुए यही कहा, “ यह भी भला गुड नाइट कहने का कोई ढ़ंग है”

कुछ गौरांग कहता उससे पहले ही ऐश्ले ने उसे अपनी बाहों में भरकर उसके अधरों को किस किया और रूम के बाहर जाते हुए बोली, “गुड नाइट बडी, सी यू टुमोरो”

“गुड नाइट”, गौरांग ने कहकर ऐश्ले को अपने रूम से विदा किया।

अगले रोज़ रॉबिन उन दोनों को लेकर वेल्स की ओर चल पड़ा। बढ़िया औडी की पिछली सीट पर बैठकर गौरांग और ऐश्ले ने आपस में बात करते हुए वेल्स तक का सफर तय किया। मार्टिन परिवार के कंट्री होम पहुँच कर ऐश्ले ने पूछा, " कैसा लगा हमारा कंट्री होम"

"लाजबाव मेरी आशाओं से बहुत अधिक आलीशान वास्तव में यहाँ आकर तबियत खुश हो गई"

क्रमशः




एपिसोड 31
गतांक से आगे: लदंन से पहुंच कर ऐश्ले और गौरांग वेल्स में मार्टिन परिवार के कंट्री होम में पहुंच गए। उसके आगे......
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मार्टिन परिवार के कंट्री होम पर पहुँच कर ऐश्ले ने पूछा, “कैसा लगा हमारा कंट्री होम”
“लाजबाव मेरी आशाओं से कुछ नहीं बहुत अधिक आलीशान। तबियत ख़ुश हो गई”, गौरांग ने ऐश्ले से उसके कंट्री होम की तारीफ करते हुए कहा.....
ऐश्ले ने गौरांग को बताया कि जब उसके दादाजी फिलिप मार्टिन ने हिंदुस्तान से लौट कर आने के बाद अपने शौक़ पूरे करने के लिए तो खरीदी थी। जिसमें वह आौर मेरी दादीजी अनुराधा बहुत दिनों तक आराम से रहे। बाद में वे लोग लदंन शिफ्ट हो गए और उन्होंने अपना नया बिजनेस शुरू किया।
मार्टिन परिवार के कंट्री होम की जितनी भी तारीफ की जाए वह कम ही पड़ेगी। वहाँ ऐसा क्या नहीं था जो रॉयल न हो। पचास एकड़ में फैली हुई प्रोपर्टी जिसमें हॉर्स राइडिंग, स्विमिंग या यूं कहा जाए कि ऐसी कौन सी फैसिलिटी जो होनी चाहिए उसकी व्यवस्था तो थी ही उसके साथ साथ खाने पीने के लिए जो भी फ्रूट्स एंड वेजिटेबल्स चाहिए होते थे, उनको भी वहीं उगाया जाता था। कंट्री होम के आगे पीछे मनमोहक बगीचा और दूर तक जहाँ तक निगाह जाए वहाँ तक हरियाली ही हरियाली।
ख़िदमत के लिए नौकर चाकर सब के सब प्रोपेर्टी के पिछले हिस्से में बने आउट हाउसेस में रहते थे। अगर यह कहा जाए कि सुख सुविधा का हर वह समान उपलब्ध था जो कि साधारण रूप से किसी को चाहिए। कंट्री होम में दाखिल होते ही विलासिता अपनी चरम सीमा पर साफ दिखाई पड़ती थी।
ऐश्ले ने स्टाफ को पहले ही अपने और गौरांग के आने की सूचना दे दी थी इसलिए वे सभी उनके स्वागत के लिए नज़रें बिछाए इंतज़ार कर रहे थे। कंट्री होम के बड़े से रिसेप्शन हॉल में गौरांग की मुलाक़ात ऐश्ले ने वहाँ के स्टाफ से एक एक कर के कराई। उसके बाद वे दोनों फर्स्ट फ्लोर पर अपने अपने रूम में आराम और फ्रेश होने के लिए चले गए।
जब वे दोबारा मिले तो लंच का समय हो गया था इसलिए ऐश्ले ने अपने प्राइवेट डाइनिंग रूम में लंच का इंतज़ाम किया हुआ था।
गौरांग तो मार्टिन परिवार के रहन सहन से इतना प्रभावित था कि उसकी तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे। जब कभी कोई बात ऐश्ले कहती तो गौरांग बस वाओ वाओ कहते रहा। लंच करने के बाद ऐश्ले ने पूछा, “क्या तुम सी शोर तक चलना चाहेगा क्योंकि शाम के समय सर्दी हो जायेगी”
“ठीक है। चलो चलें जब यहाँ आये हैं तो कुछ मौज भी हो जाए”
“आज रात देखते हैं कि तुम मस्ती के मूड में होगे भी कि नहीं”
ऐश्ले की बात सुनकर गौरांग कुछ बोला तो नहीं पर उसके मन ही मन एक शंका ज़रूर पैदा हो गई कि आखिर रात के समय ऐश्ले क्या करने वाली है जिसके लिए वह उसके मूड की बात कर रही है। जब गौरांग को कुछ न सूझा तो उसने सोचा जो भी होना होगा वह होकर रहेगा अभी से उन पलों के बारे में सोचने से क्या लाभ।
गौरांग ने ऐश्ले से पूछा, “सी शोर बहुत दूर तो नहीं है”
“इतना पास भी नहीं है पर मैं चाहूँगी कि हम लोग पैदल ही चलें जिससे कि मौसम के नज़ारों को भी देखते चलें”
“चलो जैसे तुम्हारा मन करे”
ऐश्ले ने गौरांग का हाथ अपने हाथ में लिया और कंट्री होम के पीछे वाले गार्डन के बीच से होते हुए वे दोंनो सी शोर की ओर बढ़ने लगे। तकरीबन आधा घंटे से कुछ अधिक समय के बाद वे सी शोर के करीब आ गए।
वेल्स यूनाइटेड किंगडम का हिस्सा होते हुए भी एक तरह कहा जाए तो कुछ मायनो में एक ऑटोनोमस देश है। वेल्स के उत्तरी पश्चिमी भाग में आइरिश सी कोस्ट है और दक्षिण में इंग्लिश चैनल है जो अपने आप में अद्वितीय है। वहाँ पहुँच कर ऐश्ले और गौरांग शूज उतारे और आराम से समुद्र की रेती पर ही बैठ गए।
कुछ देर बाद ऐश्ले गौरांग के करीब आकर सीने पर सिर रखकर ऐसे बैठ गई जिसमें उसकी निगाहें उसकी आँखों की गहराइयों में कुछ ढूंढ़ रही हों। उसके दिल में उस समय बेशुमार ख्याल और ख़्वाब आ रहे थे। शांत मन से ऐश्ले ने अपने मन की बात कहते हुए कहा, “आज के दिन के लिए मैं बरसों से इंतज़ार करती रही हूँ और मैं अपने आप को बहुत खुशनसीब मानती हूँ कि मैं आज अपने सपनों के राजकुमार के पहलू में बैठकर इस सुहावनी फिज़ाओं का आनंद ले रही हूँ जिसे मैंने दिल की गहराइयों से प्यार किया है”
भावनाओं के आवेश में गौरांग के मुंह से अनायास ही निकल गया, “मैने भी बहुत इंतज़ार किया इस पल के लिए...."
कुछ देर चुप रहने के बाद ऐश्ले ने कहा, “मैंने डैड और मॉम से जब भी तुम्हारे बारे में बात की तो उन्होंने हमेशा यही कहा कि पहले मैं तुमसे मिल तो लूँ। कुछ अपनी बात कर लूँ। कुछ तुम्हारे दिल की बात सुन लूँ। तुम्हें अच्छी तरह से जान तो लूँ", कुछ देर रुकने के बाद वह बोली, "अच्छा है कि वे लोग यहाँ कल आ जाएंगे और तुमसे बात करेंगे”
“ऐश किस बारे में”
“हम लोगों के बारे में और किसके बारे में”, ऐश्ले ने यह कहते हुए पूछा, “आज जब तृप्ती यहाँ नहीं है तो क्या मैं यह बात तुमसे दोबारा पूछ सकती हूँ कि तुम उसे प्यार तो नहीं करते हो। तुम दोनों के बीच अगर कुछ भी है जो मुझे अभी बता दो। मैं नहीं चाहती कि हम लोगों के बीच कोई तीसरा हो जैसे कि प्रिंस चार्ल्स और लेडी डायना के बीच कोई आ गया था”
बहुत सोच समझ कर गौरांग बोला, “ऐश मैंने तुमसे पहले भी मेरे और तृप्ती के संबंधों के बारे में बताया था कि हम लोगों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है। बस हम दोनों एक ऑफिस में काम करते हैं”
“गौरांग मैं एक ब्रिटिश लड़की हूँ ज़रूर पर संस्कारों से मैं एक भारतीय लड़की जैसी हूँ क्योंकि मेरा लालन पालन भारतीय परंपराओं को ध्यान में रखते हुए हुआ है। मैं अपनी दादीजी से बहुत प्रभावित रही हूँ और इस लिहाज से मैं किसी दूसरे का हक़ छीनना नहीं चाहती हूँ”
“मैंने तो वही बताया है जो हक़ीक़त है”
इतना सुनते ही ऐश्ले गौरांग के पहलू से उठ खड़ी हुई। ख़ुशी से पागल हो वह वे हिचक नाचने लगी। उसे इतना खुश देख पल भर के लिए तो गौरांग भी उसके साथ देने के लिए उठ खड़ा हुआ।उसने ऐश्ले को अपनी बाहों में भर कर उसके होठों पर अपने होठ रखकर किस किया।
दोनों ने बहुत देर तक अपने अपने सपनों के बारे में बात की। यह भी तय किया कि वे आने वाले दिनों में एक दूसरे के और करीब आकर अपने दिल की बात करेंगे जिससे कि कल के लिए कुछ न रह जाए।
जब सुरमई शाम में सूरज पश्चिमी समुद्री तट के पीछे डूबने की तैयारी करने लगा तब वे धीरे धीरे एक दूसरे का हाथ अपने हाथों में ले एक दूसरे की आँखों में झाँकते हुए, एक दूसरे को अपनी बाहों में सिमटे हुए कंट्री होम की ओर वापस हो चले....
क्रमशः


एपिसोड32
गतांक से आगे: ऐश्ले के कंट्री होम में आकर जहां गौरांग भौचक्का रह गया था तो दूसरी ओर ऐश्ले शाम होने का इंतजार कर रही थी।
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गौरांग जब ऐश्ले के कंट्री होम की साज सज्जा देखकर और मार्टिन परिवार की विलासिता भरे जीवन के बारे में जानकर मंत्र मुग्ध हो गया कि कहां उसकी गुड़गांव में एक छोटी सी नौकरी और कहां इनकी आलीशान और विलासितापूर्ण ज़िंदगी। वह मन ही मन सोच रहा था कि अगर वह ऐश्ले के प्यार का साथ निभाने के बारे में तय करता है तो उसकी ज़िंदगी में भी वही सब ऐशो आराम होंगे जो एश्ले की ज़िंदगी में हैं। लेकिन जब वह यह सोचता कि उसका खुद का वजूद कुछ भी न होगा बल्कि उसे ऐश्ले के रहमो करम पर ज़िंदा रहना होगा। गौरांग जब अपने संबंधों को तृप्ती से जोड़ कर देखता तो उसे लगता कि माना कि जिंदगी में उतने ऐशो आराम तो नहीं होंगे पर वह अपने देश और अपने लोगों के बीच सिर उठा कर तो रह सकेगा। गौरांग के लिए परिस्थितियां कुछ ऐसी बन गईं थीं कि इस तरह के विचार उठना स्वाभाविक ही था। तृप्ती के बारे में जब गौरांग सोचता तो उसे लगता कि आखिर उसकी इसमें क्या खता उसने भी तो उससे प्रेम किया। वह यह भी मानता था कि कभी कभी वह तृप्ती जिस तरह का व्यवहार करती है जो उसके मन को आहत कर जाता है तो वह यह सोचने पर मजबूर हो जाता कि ऐश्ले की इसमें कोई गलती नहीं वह तो उसे दिलोजान से चाहती है। तब उसे लगता है कि तृप्ती से कहीं अधिक ऐश्ले अधिक समझदार है।
गौरांग यह भी समझ रहा था कि कोई स्त्री वह चाहे हिंदुस्तानी हो या विदेशी कभी भी अपने प्यार को किसी और के साथ बांट कर नहीं रह सकती। इस लिहाज़ से तृप्ती की मानसिक स्थिति को समझते हुए अगर वह उस तरह का व्यवहार करती है तो उसमें उसकी कोई गलती नहीं है। गौरांग को कभी कभी यह भी लगता था कि जिस परिवेश से वह आता है उस परिवेश के लिहाज़ से वह स्वयं को किसी तरह ऐश्ले के क़ाबिल नहीं समझता।
गौरांग बहुत बड़ी दुविधा में था कि वह क्या करे इसलिए उसने यह सोचा कि जैसे ही उसे अवसर प्राप्त होता है वह इस विषय में ऐश्ले से बात कर अपनी पोजीशन क्लियर कर देगा। गौरांग को इस बात का एहसास था कि उसकी ज़िंदगी में तृप्ती ने इतने दिनों से साथ साथ रहते हुए जो अपने लिए जगह बना ली है उसे भूल जाना भी उसके लिए इतना आसान नहीं था। लेकिन अगले पल जब वह अपने भविष्य को लेकर सोचता तो उसे लगता कि अगर वह ऐश्ले के साथ अपनी ज़िंदगी जीने की बात सोचता है तो उसका यह कदम उसके लिए चमत्कार भरा होगा। इसी दुविधा में जब गौरांग डूबा हुआ था तो ठीक इसके विपरीत ऐश्ले अपने और गौरांग के साथ ज़िन्दगी जीने के स्वप्न देख रही थी कि जैसे उसकी दादीजी ने उसके दादाजी को प्यार दिया ठीक उसी तरह एक हिंदुस्तानी होने के नाते गौरांग भी उसे उतना ही प्रेम करेगा।
वह जब अपने रूम में रहकर यह सब सोच रहा था तब ठीक इसके विपरीत उस समय ऐश्ले अपनी खुशियों के पलों को जीते हुएअपने कुक्स को यह बता रही थी कि उस दिन की शाम उसकी जिंदगी की सबसे खूबसूरत शाम है इसलिए वे इंग्लिश डिशेज़ के साथ साथ कुछ स्पेशल इंडियन डिशेज़ भी बनाएं। एक बटलर को साथ ले वह कंट्री होम के सेलर में गई और वहाँ से एक 21 साल पुरानी रॉयल सैलूट की बोतल निकालने को कहा।
जब ऐश्ले डिनर के लिए गौरांग को बुलाने के लिए आई तो वह एक दम स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लग रही थी। हाथ में गुलाब की एक कली लिए हुए नीले रंग का गाउन पहने ऐश्ले जब गौरांग के सामने आई तो उसे लगा कि जैसे कोई स्वर्ग से कोई अप्सरा उतर आई हो। ऐश्ले को अपनी बाहों में भरकर गौरांग ने उसकी ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए कहा, “यू लुक लाइक अ प्रिंसेस ऑसम”
ऐश्ले ने भी गौरांग की आँखों में देखकर उसको किस करते हुए कहा, “यू आर प्रिंस ऑफ माइ ड्रीम्स”
ऐश्ले ने अपने हाथ से उस शाम को एक यादगार शाम बनाते हुए रॉयल सैलूट खोली और दोनों ने एक दूसरे से चियर्स कह कर जाम अपने होठों से लगाए। कुछ देर बाद ऐश्ले ने गौरांग के साथ इंग्लिश धुन पर डांस किया। बातों बातों में ऐश्ले ने गौरांग से यह वायदा भी ले लिया कि वह जैसे ही मुमकिन होगा तो वह एक बार फिर से लंदन आएगा। गौरांग अपने मन की बात एश्ले से कह भी नहीं पाया उसके मन में उठते हुए कई सवालों का कोई जवाब उसके पास जो नहीं था। ऐश्ले ने बार बार उससे और तृप्ती के संबंधों के बारे में बात की और उसने हर बार यही कहा कि तृप्ती उसके साथ ऑफिस में काम करती है इसके अलावा उन दोनों के बीच कुछ भी नहीं है।
ऐश्ले सातवें आसमान पर सवार हो अपनी कल की ज़िंदगी के बारे में बेहतरीन ख़्वाब बुन रही थी। डिनर के बाद वे दोनों कुछ देर बाहर घूमने के लिए निकल गए। रास्ते भर ऐश्ले गौरांग से प्यार भरी बात करती रही। ऐश्ले के दिलो दिमाग में उसकी अपनी दादीजी की वह बात घर कर गई थी कि प्यार जिससे भी करो तो उसे अंत तक ईमानदारी से निबाहो। देर रात जब वे वापस लौटे और ऐश्ले उसे गुड नाईट कहने के लिए गौरांग की ओर मुड़ी और उसे अपनी बाहों में भर कर किस किया तब गौरांग को लगा कि उसे ऐश्ले को सब कुछ बता देना चाहिए कि तृप्ती ने पहले ही उसके जीवन में अपनी जगह बना ली है इसलिए जब ऐश्ले अपने बेड रूम की ओर मुड़ी तो गौरांग ने कहा, “ऐश अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही हो तो क्या मैं तुम्हारे साथ कुछ बात कर सकता हूँ”
“बाय आल मीन्स प्लीज कम इन”, कहकर ऐश्ले ने बेडरूम का दरवाज़ा खोला और वे अंदर आकर बातचीत के लिए कुछ इस तरह बैठे कि उनके शरीर एक दूसरे से बहुत करीब थे। रात के ग्यारह बजे चुके थे और दीवार पर लगी घड़ी टिक टिक कर आगे बढ़ती जा रही थी। उस रात कुछ ऐसा हुआ जब रात के दो बजे तो गौरांग ने एश्ले के होठों पर प्यार भरा चुंबन लिया और उससे फिर मिलने का वायदा किया। एश्ले ने गौरांग को अपनी बाहों में प्यार से भर कर के उसकी आँखों की गहराई में झाँखते हुए यही कहा, "आज की रात तुम मेरे साथ यहीं रह जाते तो मुझे बहुत ख़ुशी होती"

गौरांग को लगा कि यह उचित समय नहीं है इसलिए उसने केवल इतना ही कहा, “छोड़ो भी अभी क्या जल्दी है। मैं फिर कभी तुमसे बात कर लूंगा ऐसी कोई ज़रूरी बात नहीं थी”
“आओ जब तुम आ ही गए हो तो बैठो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है”, ऐश्ले ने गौरांग से कहा।
गौरांग ऐश्ले की ओर मुंह करके इंतजार करने लगा कि ऐश्ले कुछ कहे। ऐश्ले ने गौरांग का हाथ अपने हाथ में लिया और उसे अपने साथ बेड पर लिटाते हुए बोली, “पहले तुम यह वायदा करो कि मेरी बात का बुरा नहीं मानोगे”
“वायदा रहा”
“इंडिया के बारे में मैंने बहुत कुछ पढ़ा है। वहां के साहित्य को भी समझने की किसी हद तक कोशिश की है लेकिन मैं यह नहीं जान पाई कि इंडिया क्या एक रहने लायक जगह है”
“हर किसी को अपने देश से प्यार होता है उस लिहाज़ से मैं कहूंगा कि इंडिया रहने लायक ही नहीं बल्कि एक खूबसरत देश है”
“वाउ तुम मुझे अपने साथ ले चलोगे”
“तुम कब चलना चाहती हो”
“तुम कल मुझसे शादी करो तो मैं तुम्हारे साथ अगले दिन ही चली चलूंगी”
“तुम्हारे डैड और मौम तो बाद में आने का प्रोग्राम बना रहे हैं”
“एक बार मैं जब तुम्हारी पत्नी बन जाऊंगी तो मैं वह करूंगी जो तुम चाहोगे”
“हम लोग इतनी जल्दी शादी कैसे कर सकते हैं”
“क्यों हमारे यहां लड़का लड़की राज़ी हो तो शादी तुरंत हो सकती है”
“ऐसे कैसे होगा हम लोगों को तैयारी तो करनी पड़ेगी”
“छोड़ो भी यहां सब रेडी मेड आइटम्स होते हैं बस तुम एक बार बस हां तो कह दो”
"कुछ दिन रुको मुझे एक बार इंडिया जाने दो मैं वायदा करता हूँ कि मैं लौट कर आऊँगा", गौरांग ने एश्ले को अपने आग़ोश में लेते हुए कहा।
एश्ले ने गौरांग को अपनी बाहों में जकड़ कर उसको कई बार किस किया और कहा, "मुझे डर लग रहा है कि मैं कहीं तुम्हें खो न दूँ"
"मैं तो तुम्हारे साथ हूँ तुम्हारी गुंदाज़ बाहों के नागपाश से निकल कर कहाँ जाऊँगा? मेरे लिए इस दुनियां में कोई नहीं है। अभी मुझे चलने दो"
बाहों के बंधन से छूट गौरांग ने एश्ले के चेहरे को अपनी ओर करते हुए कहा, "तुमसे मिलना तो होगा लेकिन आज नहीं कल जब तुम्हारे डैड और मॉम यहां होंगे। आज मुझे चलने दो", कहकर गौरांग ने एश्ले से अलविदा कहा और धीरे से दरवाज़ा खोल कर वह अपने बेड रूम में चला गया। आते ही उसके बदन पर जितने भी कपड़े थे एक एक कर उतार फेंके और अपने आप को क्विल्ट से ढक कर सोने की कोशिश करता रहा। बहुत देर बाद उसकी आंखें नींद से बोझिल होकर कब बंद हो गईं उसे पता ही न लगा।
दूसरी ओर एश्ले की आंखों से नींद बहुत दूर चली गई थी उसको बस यही लग रहा था कि अगर आज उसने गौरांग को अपना नहीं बनाया तो वह अपना हाथ छिटक कर दूर ही नहीं हमेशा के लिए उससे दूर चला जाएगा। एश्ले को पहली बार एहसास हुआ कि गौरांग तृप्ती को बहुत प्यार करता है और वह अपनी इस सच्चाई को झुठलाने की कोशिश में है। इसी पेशोपशिस में घड़ी की सुनियाँ अपनी रफ़्तार से टिक टिक कर के चलतीं रहीं।
सुबह के चार बजे होंगे जब गौरांग गहरी नींद में सो रहा था। एश्ले उसके रूम में धीरे से दाखिल हुई। एक तरफ से क्विल्ट हटा कर गौरांग से चिपक कर लेट गई....एश्ले ने गौरांग के चेहरे को अपनी ओर किया और उसे जेंटल किस किया। गौरांग अचानक नींद से जाग गया ...एश्ले के प्रेम के आवेग के दरिये में बहने से गौरांग अपने आप को नहीं रोक पाया और उसे लगा कि उसके तन बदन में आग सी लगी हुई है...
कृमश:



तमन्ना के एपिसोड को देखने के लिए जब आज फेसबुक की मेमोरी खोली तो बस पिछले साल की एक तस्वीर नज़र आई जिसमें तमन्ना का ज़िक्र भर था।

"तमन्ना" का प्रसारण मुझे पिछले वर्ष आज ही के दिन अपने स्वास्थ्य से सबंधित समस्याओं के कारण बीच में ही रोक देना पड़ा था। लेकिन इस कथानक की टीस दिल में इस क़दर छाई हुई थी कि हमेशा यही लगता था कि काश वह दिन जल्दी से आये तो हम अपने अधूरे काम को पूरा कर सकें और अपने उस वायदे को निभाएं जो हमने लंदन के दौरे में अपने कैमरे में क़ैद करते वक़्त किसी से किया था।

यह कथानक मेरे दिल के इतना क़रीब है कि मैं इसे बीच में छोड़ भी नहीं सकता था। इसलिए मैंने पूरे एक साल इंतज़ार किया कि जब "तमन्ना" मुझे दोबारा फेसबुक मेमोरी में दिखाई पड़े तब इसे मैं पूरा अवश्य करूँ। बस इस ख़्याल से आज के बाद "तमन्ना" की कहानी वहीं से शुरू हो रही है जहां यह पिछले साल छूट गई थी।

मेरी उन मित्रों से यह पुरज़ोर गुज़ारिश है कि वह इस कथानक को पढ़ें अवश्य। गौरांग, तृप्ती और एश्ले के बीच ऐसा उलझ कर रहा गया है कि उसे अपनी समस्या का उत्तर नहीं मिल रहा है। अब देखना यह होगा कि वह भविष्य की योजनाओं को कौन सा स्वरूप देता है जिससे कि वह अपनी "तमन्ना" तो पूरी कर सके साथ ही साथ तृप्ती और एश्ले को भी मझदार में भी न छोड़े।

कल तक मैं एपिसोड 32 दोबारा पोस्ट कर चुका हूँ। अगला एपिसोड 33 लिखना अभी बाक़ी है इसलिए नया एपिसोड कल ही सुबह ही प्रस्तुत कर सकूँगा। कुछ वक़्त चाहिए और आपकी इज़ाज़त भी कि कल कुछ देर से ही सही पर अपनी "तमन्ना" को बीच में छोड़ने वाला नहीं हूँ जो कहानी शुरू की थी उसे उसके लॉजिकल अंत तक पहुंचाना ही है। किसी से वायदा जो किया था...

धन्यवाद सहित।

एसपी सिंह
24/02/2020


सारांश:
गौरांग और तृप्ती एक ऑफिस में गुड़गांव में साथ साथ काम करते थे। वे यूनाइटेड किंगडम घूमने के इरादे से लंदन आते हैं। लंदन पहुंच कर गौरांग की मुलाक़ात अपनी दोस्त एश्ले से होती है। एश्ले के साथ वे उसके माता पिता स्टीव और एडविना मार्टिन से मिलने उसके घर जाते हैं। बातों ही बातों में गौरांग और तृप्ती को पता लगता है कि एश्ले के दादा फिलिप मार्टिन ने जब वह हिंदुस्तान में पावर सप्लाई के बिजनेस में थे तो उनकी मुलाकात लखनऊ की एक अनुराधा नाम की एक लड़की से हुई और दोनों को प्यार हो गया। बाद में वे लोग इंग्लैंड वापस आ गए और लंदन के साथ साथ वेल्स में इस्टेट्स ख़रीदीं और बिज़नेस की शुरूआत की थी।
इंग्लैंड और स्कॉटलैंड घूमने के पश्चात तृप्ती हिंदुस्तान वापस चली गई। एश्ले गौरांग को लेकर उसे वेल्स घुमाने के इरादे से मार्टिन इस्टेट में आई हुई थी। एश्ले बहुत पहले ही से गौरांग से प्यार करने लगी थी लेकिन जब गौरांग तृप्ती के साथ यूनाइटेड किंगडम घूमने आया तो उसे उन लोगों को लेकर यह शंका होने लगी कि तृप्ती कहीं गौरांग से प्यार तो नहीं करती। गौरांग जो ख़ुद तृप्ती और एश्ले को लेकर दुविधा में था कि वह इधर जाए या उधर जाए। उसे एक हिंदुस्तानी होने के नाते तृप्ती पसंद थी। लेकिन इंग्लैंड के शाही रहन सहन और मार्टिन परिवार की सम्पन्नता को लेकर वह एश्ले को भी चाहता था। तृप्ती ने गौरांग के साथ अपने इंग्लैंड के दौरे से पहले ही मिलकर एक सपना देखा था कि जब उनके संतान होगी तो वे इंग्लैंड में पढ़ाने लिखाने की कोशिश करेंगे। एश्ले और तृप्ती में होड़ लगी हुई थी कि उसे कौन हासिल करता है। एश्ले और गौरांग के साथ मार्टिन इस्टेट में मिलकर क्या गुल खिलाते हैं इस पर भी नज़र बनी रहेगी।
आगे की कहानी अब आपकी नजर है....
एश्ले ने गौरांग के चेहरे को अपनी ओर किया और उसे good morning किस किया। गौरांग नींद से जागा...प्रेम के आवेग के दरिये में बहने से वे दोनों अपने आप को रोक नहीं पाए.....
एपिसोड 33
जब सुबह डाइनिंग टेबल पर एश्ले और गौरांग ब्रेकफास्ट के लिए नहीं आये तो हेड वेट्रेस ने एश्ले के रूम को धीरे से टैप किया और जब उसे कोई जवाब नहीं मिला तो उसने फिर गौरांग के रूम पर नॉक किया तो गौरांग ने उठ कर दरवाज़ा खोला और कहा, "बेबी यहीं है हम दोनों के लिए बेड टी यहीं भिजवा दीजिये"
वापस बेड के पास लौटकर गौरांग ने एश्ले के चेहरे की ओर झुकते हुए बड़े प्यार से किस किया। रात भर जगने और गौरांग को हमेशा के लिए अपना बना लेने की ख़्वाहिश पूरी कर लेने के बाद वह बहुत चैन की नींद से सो रही थी। जैसे ही एश्ले ने आंख खोली तो उसकी पहली नज़र गौरांग के चेहरे पर पड़ी। ख़ुशी के मारे से वह उसी हालत में उसके सीने से लग कर रह गई और बोली, "जितना मैं आज ख़ुश हूँ उतना ख़ुश तो कोई भी इस पूरे जहां में नहीं होगा। मुझे उम्मीद है कि मैंने तुम्हें भी ख़ुश किया है"
गौरांग ने एश्ले को धीरे से किस करते हुए कहा, "मैं भी बहुत ख़ुश हूँ और भगवान का शुक्रिया अदा करता हूँ कि उसने हमें मिलाया"
कुछ देर बाद वे दोनों जब ड्रेस अप होकर दोबारा मिले तो उन्होंने साथ साथ ब्रेकफास्ट किया। दोपहर से पहले वे लोग तैयार होकर कार्डिफ़ (Cardiff ), वेल्स की राजधानी घूमने निकल गए।
यूनाइटेड किंगडम का हर हिस्सा अपने आप में बहुत खूबसूरत है और कार्डिफ़ का तो कहना ही क्या। हर जगह हरियाली ही हरियाली। छोटे छोटे पर्वतों की श्रंखला, पश्चिम दिशा में अटलांटिक महासागर। जिधर भी निग़ाह जाती है मन प्रसन्न हो जाता है।
रॉबिन उन दोनों लेकर सबसे पहले कार्डिफ़ कैसल दिखाने ले गया जो एक वक़्त में रोमन किला हुआ करता था। बाद में जिसे पुरातन काल की विक्टोरियन गोथेक शैली में निर्माण कराया गया जो आज वेल्स की सबसे अच्छे ढंग से संजो कर रखी गई इमारत है, जिसे कार्डिफ़ आने वाला हर यात्री देखने आता है। कार्डिफ़ वे पर कुछ समय बिताने के बाद क्लेयतों होटल में लंच करने के लिए चले गए।
दोपहर के बाद वे नेशनल वेल्स म्यूजियम में गए और इधर उधर घूमते हुए उन्होंने वहां से एश्ले ने गौरांग की पसंद के कुछ सोवेनियर्स खरीदे जिससे कि वेल्स की यात्रा गौरांग की यादों में बनी रहे।
एश्ले और गौरांग देर रात बाहर से डिनर करके ही लौटे। गौरांग और एश्ले ने वह रात साथ ही बिताई। अगले दिन जब एश्ले के डैड और मॉम वहां आये तो दोनों ने उनका प्रसन्नतापूर्वक स्वागत किया। एश्ले तो अपनी मॉम एडविना से इस क़दर गले से लग कर मिली जैसे कि वह उनसे बहुत अरसे बाद मिल रही हो। एडविना को लगा कि गौरांग और एश्ले आपस मिलकर बेहद ख़ुश हैं। एडविना ने एश्ले की आंखों में झांक कर देखा और पूछा, "ऐश तुम ख़ुश तो हो"
"जी मॉम इतनी ख़ुश हूँ कि मैं आपको बता नहीं सकती हूँ"
गौरांग की ओर से देखकर एडविना ने उससे कहा, "गौरांग तुम भी ख़ुश दिख रहे हो"
"जी मैं भी बहुत ख़ुश हूँ"
जब ऐश्ले के मॉम और डैड लंच के वक़्त मिले तो गौरांग से उन्होंने लंबी बातचीत की। बातों बातों में ऐश्ले के डैड ने यह पता कर लिया कि गौरांग इस दुनियां में अकेला है। उसके माता पिता को गुज़रे हुए एक ज़माना हो चुका है। यह जानकर स्टीव और एडविना कुछ चिंतित हुए। लेकिन जब गौरांग ने उन्हें अपने पारवारिक पृष्टभूमि के बारे में बताया कि वह एक सम्मानित पारिवारिक से संबंध रखता है तो उन्होंने उसकी प्रोफेशनल लाइफ के बारे में पूछा, "मिस्टर गौरांग आपका प्रोफेशनल लाइफ के बारे में कुछ बताइए"
"मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ। दिल्ली के पास गुड़गांव में एक अमेरिकन कंपनी के लिए मेडिकल सॉफ्टवेयर डेवलप करने का काम करता हूँ"
जब उन्होंने यह जानना चाहा कि उसकी सेलरी और पर्क वगैरह क्या इतने हैं कि वह उसमें अपना गुज़ारा कर सकता है। गौरांग का उत्तर था कि वह बहुत आलीशान ज़िंदगी तो नहीं पर एक आम आदमी से बेहतर ही नहीं बहुत बढ़िया ज़िंदगी जी रहा है। ऐश्ले के डैड ने जब यह पूछा, "क्या आप यह सोचते हैं कि आप हमारी बेटी को वह ज़िंदगी दे पाएंगे जिसकी कि वह आदी है"
"शायद हां", गौरांग का उत्तर था, "शायद नहीं भी"
गौरांग के इस उत्तर को सुनकर स्टीव ने एडविना की ओर देखा और फिर एक नजर ऐश्ले की ओर देखा वह भी शायद यह जानना चाह रही थी कि विवाह के बाद क्या वह खुश रह पाएगी।
"एक प्रश्न का उत्तर और दीजिए कि अगर ऐश्ले आपसे कहे कि आप यहां इंग्लैंड में शिफ़्ट हो जाइए तो आपका क्या उत्तर होगा"
कुछ देर सोचने के बाद गौरांग ने उत्तर में कहा, "मैं शायद यह न कर सकूंगा। मैं अपने देश से बहुत प्यार करता हूँ। भारत को छोड़कर यहां आने की बात मैं सोच भी नहीं सकता"
ऐश्ले के डैड और मॉम को अपनी बेटी के भविष्य की बेहद चिंता थी क्योंकि वे इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि ऐश्ले गौरांग से वगैर मिले न जाने क्या कर बैठे। एश्ले अपनी मोहब्बत में इस कदर पागल हो गई है कि अगर वे आज उसे समझाने के प्रयास भी करेंगे तो उसकी ओर से केवल विरोध और केवल विरोध ही होगा। इसलिए वे यह समझना चाह रहे थे कि अगर वह यहां आ जाए तो वह उनकी संपदा और बिजनेस एंपायर का मालिक होने के साथ साथ अपने सपनों को पूरा करते हुए आराम की जिंदगी जी सकता है। जब गौरांग की ऐश्ले के डैड और मॉम से सहमत न बन सकी तो ऐश्ले की मन की बात रखने के लिए सभी ने मिल कर यह तय किया कि वे भी कुछ ही दिनों में इंडिया चलेंगे।
बातचीत में इतना अहम मुद्दा आ खड़ा हुआ कि ऐश्ले के डैड को लगा कि उन्हें कुछ एंटरटेनमेंट की बात भी करनी चाहिए। ऐश्ले ने डैड और मॉम के साथ मिलकर शाम को हॉर्स राइडिंग का प्रोग्राम बनाया। उन्हें आश्चर्य जब हुआ कि गौरांग ने उन्हें बताया कि वह एक अच्छा घुड़सवार है। उस रोज़ घुड़सवारी के लिए ऐश्ले से मिलकर उसने अपने लिए सफेद रंग का गठी हुई काठी वाले घोड़े को पसंद किया और वे चारों लोग एक लंबी राइड के लिए निकल पड़े।
बीच में जब ऐश्ले को मौका मिला तो उसने गौरांग से पूछा, "तुमने हॉर्स राइडिंग कहां सीखी"
"हॉर्स राइडिंग और अन्य खेल कूद उसके खून में शामिल हैं"
"वह कैसे"
"वह ऐसे कि जिस परिवार से मैं संबंध रखता है वह कोई छोटा मोटा अदना सा परिवार नहीं है। वह लखनऊ शहर के पास ही "माल" गांव के एक इज्ज़तदार जमींदार परिवार से आता है। उसके एक चचेरे दादाजी भारत के स्वतंत्रता के संग्राम के दिनों में चंद्र शेखर "आज़ाद" की पार्टी में शरीक़ होकर न जाने कितनी बार अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ मोर्चा सम्हाला था। भगत सिंह, सुखदेव, अशफ़ाक उल्ला के साथ मिलकर मशहूर 'काकोरी' कांड में अहम रोल अदा किया। स्वतंत्रता के बाद मेरे परिवार के कई सदस्य भारत की मिलिट्री में उच्च पदों पर काम करते हुए देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी है। भारत सरकार की ओर से उन्हें उचित सम्मान भी प्राप्त हुआ है। अभी भी गांव में हमारी पुरानी हवेली है जो अब बहुत ही जर्जर स्थित में आ चुकी है और रहने के योग्य नहीं है। मेरे पिता ने गांव से बाहर आकर लखनऊ यूनिवर्सिटी से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और सरकारी पद पर रहते हुए उन्होंने लखनऊ के चौक मोहल्ले में एक घर भी बनवाया जिसमें किराए पर बहुत से लोग आज भी रहते हैं। एक बात और मेरे दादाजी ने अपनी सारी ज़मीन संपदा विनोबा भावे जी के भूदान आंदोलन में भैंट कर दी थी जिससे गांव के भूमिहीन, निर्धन और गरीब लोग अपना जीवनयापन कर सकें"
ऐश्ले ने गौरांग की बातें सुनकर आश्चर्य से कहा, "लखनऊ यूनिवर्सिटी में तुम्हारे दादाजी भी पढ़ते थे जहां से मेरी दादीजी ने एम. ए. पास किया था। मैं यह बात अपने डैड और मॉम को ज़रूर बताऊंगी"
बाद में ऐश्ले की मुलाक़ात जब अपने डैड और मॉम से हुई तो उसने वे सब बातें उन्हें बताई जो गौरांग ने उससे कहीं थीं।
ऐश्ले से गौरांग के बारे में यह सब जानकर उसके डैड और मॉम बहुत ख़ुश हुए। ऐश्ले के डैड ने कहा, "यह तो बहुत अच्छी बात है। हम जब भारत चलेंगे तो उसके गांव भी अवश्य चलेंगे"
ऐश्ले ने यह बात लौट कर गौरांग को बताई जिसे सुनकर गौरांग बोला, "मोस्ट वेलकम"
डिनर पर स्टीव और एडविना ने गौरांग से एश्ले को लेकर खुल कर बात की और उन्होंने मिलकर यह तय किया कि क्रिसमस से पहले ही वे लोग इंडिया आएंगे और गौरांग के रिश्तेदारों से मिलकर आगे की बात करेंगे। गौरांग मार्टिन परिवार के साथ कुछ दिन रुक कर उन लोगों के साथ लंदन लौट आया और एक दिन जब तृप्ती का फोन आया तो बोला, "....और कैसी हो?"
"मैं तो ठीक हूँ तुम बताओ कि तुम कैसे हो?"
"जब आऊंगा तो बताऊँगा कि मैं यहां कैसे रहा"
"उम्मीद है कि वहां सब ठीक होगा। ऐश कैसी है? वह तो तुम्हें वहां पाकर बहुत ख़ुश होगी"
"....हूँ"
"क्या हूँ....?"
"....हूँ सब ठीक से हैं"
"क्या हुआ कुछ हुआ क्या"
"कहा न वहां आकर बताऊँगा", .....और गौरांग ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया।
परेशान होकर तृप्ती ने फिर फोन लगाया लेकिन गौरांग ने फोन नहीं लिया।

क्रमशः



एपिसोड 34
गतांक से आगे: तृप्ती ने जब गौरांग को फोन किया और एश्ले के बारे में जानकारी लेनी चाही तो झुंझला के उसने फोन बंद कर दिया। तृप्ती ने उसे कई बार फ़ोन किया लेकिन गौरांग ने फोन नहीं उठाया।
######
लंदन में गौरांग ने एश्ले के साथ जम कर शॉपिंग की। एक दिन वे जब Harrods में थे तब गौरांग ने एक डायमंड नेकलेस पसंद किया और उसने एश्ले से पूछा, "कैसा है?"
"बहुत अच्छा। मुझे भी पसंद आ रहा है। क्या बोलते हो ले लिया जाए"
एश्ले ने उस डायमंड नेकलेस की कीमत जानकर गौरांग की ओर देखा तो उसकी जान सूख गई और सोचने लगा कि अगर एश्ले ने उससे यह डायमंड नेकलेस खरीदने के लिए कहा तो वह क्या करेगा? एश्ले बहुत चतुर थी इसलिए उसने गौरांग की दिक्कत समझ ली और बोली, "तुम चिंता नहीं करो यह डायमंड नेकलेस मुझे अपने लिए नहीं चाहिये"
"फिर किसके लिए लेना है"
"तृप्ती के लिए। मेरी तरफ से उसको हमारे यहां आने के लिए गिफ़्ट है"
एश्ले की बात सुनकर गौरांग की जान में जान आई और उसने कहा, "क्यों इतना महंगी गिफ़्ट ख़रीद रही हो वह भी तृप्ती के लिए"
"तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे कि वह तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं है। जानती हूँ कि वह तुम्हें बहुत चाहती है और तुम उसे"
"........."
इससे पहले कि गौरांग कुछ भी कहे एश्ले ने अपनी ओर से कहा, "तृप्ती तुम्हें बहुत चाहती है यह मैं बहुत पहले ही जान गई थी। मैं जानती थी कि हिंदुस्तान में अभी भी एक लड़की एक लड़के के साथ वह भी अकेले ऐसे ही नहीं यूरोप घूमने के लिए निकल पड़ती। लेकिन मैं तुम्हें बहुत प्यार करतीं हूँ और तुम्हें किसी भी तरह खोना नहीं चाहूँगी इसलिए उस रात......"
एश्ले की इस बात पर गौरांग ने उसके होठों पर उंगली रखते हुए उसे चुप रहने के लिए इशारा किया लेकिन एश्ले अपनी बात हर हाल में गौरांग से कहना चाहती थी इसलिए बोली, "तुम्हें इंडिया पहुंच कर लगे कि तृप्ती तुम्हारे लिए एक बेहतर लाइफ पार्टनर है तो तुम उसके साथ चले जाना और अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारे लिए मैं बेहतर लाइफ पार्टनर हूँ तो लंदन लौट आना। मैं, डैड और मॉम इंडिया अब तभी जाएंगे जब मैं तुम्हारे साथ चर्च में अपनी पसंद का मेरिज गाउन पहनकर तुम्हारे सामने खड़ी हो सकूँगी"
गौरांग बहुत बड़ी मुश्किल में आ गया था और नहीं समझ पा रहा था कि एश्ले को क्या कहे। बस उसने यही कहा, "वह क्रिसमस से पहले लौट आने की कोशिश करेगा"
जितने दिन गौरांग लंदन में रहा ऐश उसके साथ उसकी परछाईं बन कर रही। यहां तक कि अब तो वह अपने माता पिता के सामने भी गौरांग से इस तरह सट कर रहती थी कि जैसे गौरांग ने उसे अपना लाइफ पार्टनर बना लिया हो। कुछ दिन रहकर गौरांग ने एक दिन दिल्ली की फ्लाइट बुक करने की बात जब एश्ले से की तो वह चुपचाप रह गई। जिस दिन गौरांग को दिल्ली के लिए निकलना था, एयरपोर्ट पर उसे छोड़ने के लिए एश्ले आई हुई थी और गौरांग को अपने गले से लगाकर चूमते हुए कहा, "मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी...."
दिल्ली पहुंच कर गौरांग ने एयरपोर्ट से टैक्सी की और सीधे तृप्ती के फ़्लैट पर जा पहुंचा। जैसे ही कॉल बेल दबाई तो तृप्ती ने दरवाज़ा खोला। एक निग़ाह से गौरांग को ऊपर से लेकर नीचे तक देखा और पलटकर अंदर चली गई। परेशान गौरांग तृप्ती के पीछे उसके बेड रूम में आ पहुंचा और उसका चेहरा अपनी ओर करते हुए और वगैर कुछ बोले उसने वह सब कुछ कह दिया जो वह कहना चाहता था। उसके बाद एश्ले का भेजा हुआ डायमंड नेकलेस तृप्ती के गले में पहना दिया। गौरांग को लगा कि वह उसके लिए इतनी महंगी गिफ़्ट लेकर आया है तो सब ठीक ही होगा। उसके बाद गौरांग और तृप्ती में बहुत देर तक मार्टिन परिवार को लेकर बातचीज होती रही। एश्ले की बात आई तो गौरांग ने चुप रहना ही पसंद किया लेकिन तृप्ती ने उसे बताया, "ऐश का फोन आया था। उसने मुझे सब कुछ बता दिया है। तुम फ़िक़्र मत करो तुम जैसे भी हो मेरे हो। किसी ने तुम्हें यूज भी कर लिया है तब भी मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। तुम लंदन से लौट आये हो मेरे लिए यही बहुत है"
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प्रस्तावना :
तमन्ना कथानक की 34 वें एपिसोड की समाप्ति पर हमारे कुछ उन मित्रों ने जो कभी लाइक अथवा टिप्पणी नहीं लिखते उन्होंने मुझे फोन कर पूछा कि "तमन्ना" कथानक को क्या 34 वें एपिसोड पर ही समाप्त कर दिया?
मैंने जब उनसे पूछा आपको ऐसा क्यों लगा तो उत्तर में मुझे कहा गया कि उन्हें यह प्रतीत हुआ कि आजकल मैं मुख्य मुद्दों से बचने की कोशिश करता हूँ इसलिए इस कहानी को इस मोड़ पर लाकर छोड़ दिया होगा। मेरा मन किया कि उनसे यह कह दूँ कि आजकल मुद्दों पर चर्चा होती ही कहां है। आजकल भारत की राजनीति ने जीवन के हर पहलू को इतना प्रभावित किया है कि जुमलों पर चर्चा होती है। लेकिन हिम्मत न हुई क्योंकि मेरा यह उसूल रहा है कि किसी भी मित्र को कभी भी आहत नहीं करना चाहिए बल्कि उनकी हर टिप्पणी का स्वागत करना चाहिए।
मैंने अपने मित्रों की टिप्पणियों का जवाब अपने ढंग से दिया है। हो सकता है कि कुछ मित्रों को कथानक का यह भाग रास न आये।
हार्दिक धन्यवाद।
एसपी सिंह
27/02/2020


अपनी बात : बिना किसी लागलगाव के मैं अपनी बात शुरू करता हूँ। गौरांग लंदन से दिल्ली लौट तो आया लेकिन अबकी बार उसका बहुत कुछ वहीं छूट गया। एश्ले ने चलते चलते उससे जब यह कह दिया, "तृप्ती तुम्हें बहुत चाहती है यह वह बहुत पहले ही जान गई थी। वह भली भांति जानती थी कि हिंदुस्तान में अभी भी एक लड़की एक लड़के के साथ वह भी अकेले ऐसे ही नहीं यूरोप घूमने के लिए निकल पड़ती लेकिन मैं तुम्हें बहुत प्यार करतीं हूँ और तुम्हें किसी भी तरह खोना नहीं चाहतीं थी इसलिए उस रात......"
गौरांग ने एश्ले को उस वक़्त कुछ भी कहने से रोक तो दिया था लेकिन जब एश्ले ने यह कहा कि वह हर हाल में अपनी बात कहकर ही मानेगी तो गौरांग के पास कोई और चारा ही नहीं था सिवाय उसे चुपचाप सुनने के। लंदन एयरपोर्ट पर सी ऑफ करने के पहले एश्ले ने उससे कहा था, "तुम्हें इंडिया पहुंच कर लगे कि तृप्ती तुम्हारे लिए एक बेहतर लाइफ पार्टनर है तो तुम उसके साथ चले जाना और अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारे लिए मैं बेहतर लाइफ पार्टनर हूँ तो लंदन लौट आना। मैं, डैड और मॉम इंडिया अब तभी जाएंगे जब मैं तुम्हारे साथ चर्च में अपनी पसंद का मेरिज गाउन पहनकर तुम्हारे सामने खड़ी हो सकूँगी"
गौरांग ने जब तृप्ती का चेहरा अपनी ओर करते हुए उससे चेहरे को अपनी ओर किया और वगैर कुछ बोले सब कुछ कह दिया जो वह कहना चाहता था और उसके बाद एश्ले का भेजा हुआ डायमंड नेकलेस तृप्ती के गले में पहना दिया। तृप्ती को लगा कि वह उसके लिए इतनी महंगी गिफ़्ट लेकर आया है तो सब ठीक ही होगा। उसके बाद गौरांग और तृप्ती में बहुत देर तक मार्टिन परिवार को लेकर बातचीज होती रही।
उस वक़्त गौरांग मुश्किल में फंस गया जब तृप्ती ने उससे यह कहा, "ऐश का फोन आया था। उसने मुझे सब कुछ बता दिया है। तुम फ़िक़्र न करो तुम जैसे भी मेरे हो और लंदन से वापस लौट आये हो मेरे लिए यही बहुत है"
बस उसके आगे...
एपिसोड 35
गौरांग ने अपना सूटकेस खोलते हुए उसमें से वे सब आइटम एक एक करके निकाले जो वह तृप्ती के लिए लेकर आया था और तृप्ती से पूछा, "क्या मैं यह समझूँ कि तुमने मुझे मुआफ़ कर दिया"
"तुम्हारे मुंह से 'मुआफ़ी' जैसा शब्द अच्छा नहीं लगता। तुम शेर हो शेर दिल होकर ही रहो। तुमने एश्ले के साथ वही किया तो उन हालातों में एक शेर को करना चाहिए था"
तृप्ती की बात को सुनकर गौरांग अचंभित तो था लेकिन जान नहीं पा रहा था कि वह आगे क्या कहे कि इतने में तृप्ती ने गौरांग के चेहरे को अपने दोनों से जोर से जकड़ कर अपनी ओर करते हुए कहा, "तुम मुझसे शादी करो या न करो यह तुम्हारी मर्ज़ी लेकिन मेरा एक काम कर दो। मुझे एक बच्चा चाहिए और वह भी तुमसे किसी और से नहीं। इसलिए वायदा करो कि तुम मेरा यह काम करोगे"
इतना कहकर तृप्ती ने गौरांग के शरीर के हर अंग पर अपना अधिकार जताते हुए गौरांग को चूम कर अचंभित कर दिया। हतप्रभ सा गौरांग कुछ समझ पाता तेजी से चलता हुआ घटनाचक्र कोई और अनहोनी न करवा दे वगैर कुछ कहे गौरांग ने सारे के सारे आइटम एक एक करके निकाल कर तृप्ती के सामने रखते हुए कहा, "यह सब तुम्हारे लिए"
....और अपने सूटकेस को बंद करके उठते हुए कहा, "मैं चलता हूँ तुमसे फिर मिलूँगा"
"कहाँ जाओगे, आज की रात यहीं रुको। आज यह हमारे जश्न की रात है। मैंने जश्न का पूरा सामान संजो कर रखा हुआ है। शैम्पेन की बोतल, बढ़िया डिनर और उसके बाद वही....जो ऐश और तुम्हारे बीच हुआ। मैंने तुमसे लंदन में कहा था न कि मैं किसी गोरी मेम से कम नहीं हूँ इसलिए तुम आज कहीं नहीं जाओगे। रुको मैं बस फ्रेश होकर तैयार हो आतीं हूँ। तुम भी फ़्रेश हो जाओ", कहकर तृप्ती ने गौरांग की शर्ट के सभी बटन खोल दिये।
फ़्रेश होकर तृप्ती जल्दी से तैयार हुई और गौरांग को जबर्दस्ती फ़्रेश होने के लिए भेजकर उसने डाइनिंग टेबल सजाई। शैम्पेन की बोतल निकाल कर डाइनिंग टेबल पर रखी। शैम्पेन पीने के लिए खास तौर पर लाये गए हाई नैक दो ग्लास भी सजाए। दो मोमबत्ती भी स्टैंड पर लगा दीं। जब सब कुछ ठीक ठाक ढंग से टेबल सज गई तो तृप्ती ने मोमबत्तियां जलाते हुए आवाज़ देकर पूछा, "गौरांग कितनी देर लगेगी"
गौरांग ने कोई जवाब नहीं दिया बस कुछ देर बाद फ्रेश होकर बाहर आया तो तृप्ती ने उसे अपनी बाहों में भरा और उसके हाथ में शैम्पेन की बोतल को थमाते हुए बोली, "योर प्लेज़र गौरांग"
गौरांग ने टक से शैम्पेन खोलकर तृप्ती को दी। तृप्ती ने गौरंग और अपने लिए दो जाम बनाए। चियर्स करके जाम अपने होठों से लगाया। उस रात तृप्ती और गौरांग ने अपने रिश्ते को नया नाम दिया... गौरांग उस रात तृप्ती के पास ही रहा।
अगले रोज़ सुबह ही गौरांग अपने फ़्लैट पर पहुंच सका।
क्रमशः

गतांक से आगे:
... गौरांग उस रात तृप्ती के पास ही रहा। अगले रोज़ सुबह ही गौरांग अपने फ़्लैट पर पहुंच सका।
एपिसोड 36
एक तो लंदन से दिल्ली तक के हवाई यात्रा की थकान दूसरा तृप्ती की ज़िद के आगे गौरांग की मज़बूरी। जब गौरांग अपने फ्लैट पर पहुंचा तो वगैर कपड़े बदले हुए बिस्तर पर बेजान होकर गिर पड़ा। ऐसी हालत में उसे नींद आ गई। बीच में एश्ले के कई मर्तबा फोन आए पर उसकी हिम्मत ही न पड़ी कि वह उससे बात कर सके। जब तृप्ती का फोन आया तो बड़ी मज़बूरी में उसने फोन उठाया और बोला, "हेलो!"
"क्या हुआ बड़े बेजान सी आवाज़ में जवाब दिया"
"कुछ नहीं सफर की थकान और नींद न पूरी होने के कारण मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है"
"मैं आऊँ क्या?"
"तुम आकर क्या करोगी। तुम्हें तो ऑफिस भी जाना होगा"
"वो तो है"
"चलो मेरे बॉस को भी बता देना कि मैं दिल्ली वापस आ गया हूँ कल से ड्यूटी रिज्यूम करूँगा"
"ठीक है बता दूँगी और कुछ"
"और कुछ भी नहीं", तृप्ती कुछ देर रुकी फिर बोली, "सुनो एक बात बतानी थी"
"क्या?"
"ऐश का फोन आया था"
"मेरे पास भी आया था लेकिन मैंने जवाब नहीं दिया"
"मेरी जान अपनी जानू से इतनी बेवफ़ाई ठीक नहीं उससे बात कर लेना। तुम्हारे बारे में पूछ रही थी कि तुम ठीक से पहुंच गए या नहीं"
"तुमने क्या कहा?"
"वही जो मुझे कहना चाहिए था"
"क्या?"
कुटिल हंसी हंसते हुए तृप्ती ने जवाब दिया, "मैंने उसे बताया कि तुम रात को मेरे साथ थे। ..... और मैंने उससे वही कहा जो हमारे तुम्हारे बीच हुआ। ऐश एक बहुत अच्छी लड़की है मुझसे उसने कभी भी कुछ नहीं छिपाया तो मैं उसे क्या बताती मैंने भी वही बताया जो हक़ीक़त में हम लोगों के बीच हुआ?"
तृप्ती की बात सुनकर गौरांग सिर पकड़ कर बैठ गया तो तृप्ती ने उससे यही कहा, "तुम वही करना जो तुम्हें अच्छा लगे। मेरी ओर से तुम्हारे ऊपर कोई बंदिश नहीं है। मेरा एक सपना था जिसे मैंने थेम्स नदी के किनारे बैठ कर तब देखा था जब तुम और ऐश वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर सैर कर रहे थे। बस मेरी एक ही ख़्वाहिश है वह पूरी कर देना। हम लोगों का वह चाहे बेटी हो या बेटा। उसको लंदन में रखकर पढ़ा देना। उसे एक बेहतर इंसान बनाना"
गौरांग को लगा कि वह कहां दो महिलाओं के बीच फंस गया है। वह इसी सोच विचार में था कि अब उसे क्या करना चाहिए कि एश्ले का फोन आ गया। बहुत सोच विचार कर उसने फोन का जवाब दिया, "हाइ! बेबी"
"तुम इंडिया सही सलामत तो पहुंच गए यही पूछना था"
गौरांग के उत्तर में कहा, "फ्लाइट आधे घंटे लेट थी बाकी और तो सब ठीक रहा"
"कुछ और..."
"हाँ। मैं तुम्हारी गिफ़्ट देने एयरपोर्ट से सीधा तृप्ती के यहां चला गया था। उसे तुम्हारा भेज हुआ डायमंड नेकलेस बहुत पसंद आया"
"उसने कुछ कहा क्या?"
"हां यही कि मैंने और तुमने वेल्स में खूब एन्जॉय किया"
"उसे मैंने ही बताया था", कहकर एश्ले मुस्करा दी।
"ठीक किया। हमने जो न्यू रिलेशनशिप बनाई उसके बारे में तृप्ती को पता रहना चाहिए"
"उसने फिर तुमसे क्या कहा?"
"यही कि मैं चाहे तुम्हारा बन कर रहूँ या उसका। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसे एक बच्चा चाहिए वह भी मेरा जिससे कि वह अपनी ज़िंदगी उसके सहारे गुज़ार सके"
"तुमने क्या कहा?"
"कहा नहीं। जो चाहिए था उसे दे दिया"
एश्ले ने गौरांग की बात सुनकर उससे पूछा, "तुम आगे क्या करोगे? कुछ सोचा"
"हां, सोच लिया। मुझे आगे क्या करना है"
"क्या करोगे?"
"बाद में बताऊँगा"
क्रमशः
गतांक से आगे: तृप्ती और एश्ले ने अपनी अपनी बात कह ली। अपने मन मर्ज़ी के माफ़िक गौरांग का इस्तेमाल कर लिया। किसी ने अपने बेपनाह इश्क़ की बात कर के तो किसी ने अपना वायदा निभाने की दुहाई देकर अपनी बात कर ली। अब गौरांग क्या करे?
एपिसोड 37
दिन भर वगैर कुछ खाये पिये गौरांग अपने बिस्तर पर लेट कर माथे पर हाथ रख कर सोचता रहा कि उसको जो तृप्ती ने कहना था कह दिया, जो एश्ले ने कहना था कह दिया लेकिन उन दोनों ने उसका पक्ष तो सुना ही नहीं। फिर उसे लगा कि कहीं न कहीं चूक उससे भी हो गई जिससे वह जटिल रिश्तों के चक्रव्यूह में फंस गया।
अगर तृप्ती उसके ऊपर हर छोटी बात पर शक़ न करती तो वह शायद एश्ले के इतने करीब न आया होता। गौरंग को एश्ले से यह शिकायत थी कि जब वह यह जानती थी कि उसका और तृप्ती का सम्बंध कोई साधारण नहीं असाधारण सा रहा तब भी एश्ले ने उसके साथ एक मर्द और औरत के रिश्ते बनाये। तृप्ती का व्यवहार भी उसे असाधारण सा लगा जब उसके लंदन लौटने पर यह कहा, "एश्ले का फोन आया और उसने मुझे सब कुछ बता दिया है तुम फ़िक़्र न करो तुम जैसे भी मेरे हो और लंदन से लौट आये हो मेरे लिए यही बहुत है"
गौरंग ने यह महसूस किया कि यहां तक जो हुआ वह तो ठीक था लेकिन तृप्ती का यह व्यवहार उसे चिंतित कर रहा था और उसके कहे हुए शब्द उसका सुख चैन छीन चुके थे जब तृप्ती ने उसने यह कहा था 'तुम मुझसे शादी करो या न करो यह तुम्हारी मर्ज़ी लेकिन मेरा एक काम कर दो। मुझे एक बच्चा चाहिए और वह भी तुमसे किसी और से नहीं इसलिए वायदा करो कि तुम मेरा यह काम करोगे'।
उसके बाद जो कुछ भी हुआ वह सब कुछ कुल मिलाकर गौरांग की समझ के बाहर होता जा रहा था। तृप्ती ने तो उसे मज़बूर कर दिया कि वह उसके साथ वह सब करे जिससे कि तृप्ती वो पा सके जो उसकी गौरांग से चाहत थी।
सोचते सोचते जब वह किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया तो परेशान होकर अपनी दिमाग़ी उलझन से निजात पाने के लिए अपने सूटकेस से स्कॉच की वह बोतल निकाली जो एश्ले ने उसे अपने प्यार की निशानी के बतौर दी थी। एक ही घूँट में वह आधे से अधिक स्कॉच पी गया जिससे वह बेहोश सा होकर अपने बिस्तर पर औंधे मुंह गिर पड़ा।
जब दिमाग़ इंसान के सामने में कोई प्रश्न इतनी बड़ी उलझन बन कर उसे परेशान करने लगे तो किसी के भी दिमाग़ का कचूमर निकल जाना स्वाभाविक बात है। कई घंटों की गहन नींद से जब गौरांग उभरा तो उसने पूरी समस्या पर लॉजिकली सोचना शुरू किया। वह यह भलीभांति जानता था कि तृप्ती ने बहुतेरे सपने संजोए हुए थे कि वे एक दूसरे से शादी करेंगे और साथ साथ जीवन यापन करेंगे और जब उसके बेटा या बेटी होगी तो उसे वह लंदन के स्कूल में पढ़ाएगी। गौरांग यह भी जान रहा था कि वह और तृप्ती दोनों मिलकर भी चाहे जितना कमा लें पर बच्चों को लंदन में बोर्डिंग में रखकर पढ़ा पाना और उसे एक अच्छा इंसान बना पाना उनके बस की बात नहीं। यह सोचकर उसने मन बनाया कि दो एक महीनों में तृप्ती को समझा बुझाकर वह लंदन एश्ले के पास वापस चला जाएगा। ...और जब वह वहां रहेगा तो अपने बच्चे की पढ़ाई लिखाई के अलावा उसके लालन पालन पर भी नज़र रख पायेगा। लेकिन जब उसके मन में यह ख़्याल आया कि कल जब एश्ले के बच्चे होंगे तो क्या एश्ले उसके बच्चे के लालन पालन में क्या कोई हाथ बंटा पाएगी। बहुत सोच विचार कर उसने यह मन बनाया कि तृप्ती की प्रेग्नेंसी कन्फर्म होने के बाद वह अपना वसेक्टोमी ऑपेरशन करा लेगा जिससे कि यह खतरा भी टल जाएगा। लेकिन जब उसने यह सोचा कि अगर इसी बीच एश्ले के प्रेग्नेंट होने की कोई खबर आगई तो वह बहुत बड़ी मुश्किल में फंस जाएगा। अंत में उसने मन बनाया कि वह आज ही किसी लेडी गानोकॉलोजिस्ट से मिलकर यह पता करेगा कि प्रेग्नेंसी कितने दिन बाद कन्फर्म होती है। डॉक्टर की सलाह मिल जाने पर और तृप्ती और एश्ले की प्रेग्नेंसी कन्फर्म होने के बाद ही वह यह तय करेगा कि उसे आगे क्या करना है।
जब गौरांग को लगा तब उसने अगले दिन से ऑफिस जाना शुरू किया और उसने अपना व्यवहार तृप्ती के साथ पूर्व की तरह ही रखा। तृप्ती ने जब जब शादी की बात चलाई तो वह उसे टालता रहा। इसी बीच तृप्ती गौरांग को कभी अपने फ़्लैट पर रुकने को मजबूर कर लेती तो कभी वह खुद गौरांग के फ़्लैट में जाकर रुक जाती लेकिन दुनियांदारी के लिहाज़ से वे अभी भी अलग अलग ही बने रहे।
जब डॉक्टर का बताया हुआ समय निकल गया तो एक दिन तृप्ती ने उसे बताया कि उसको मतली सी लग रही है तो गौरांग उसे लेडी डॉक्टर के पास ले गया और टेस्ट कराया तो रिजल्ट पॉजिटिव पाया। डॉक्टर ने जब गौरांग को मुबारकबाद दी और कहा, "आप एक प्राउड फादर बनने वाले हैं। अब आप बीच बीच में आकर अपनी वाइफ को दिखा दिया करियेगा"
"तृप्ती मेरी दोस्त है अभी हमने शादी नहीं की है"
"कोई बात नहीं आजकल तो यह आम बात है। आजकल के युवा साथ साथ रहना पसंद करते हैं इसलिए इट्स ऑल राइट"
तृप्ती गौरांग को उस दिन उसे अपने फ़्लैट पर ले गई और जब तृप्ती ने उससे पूछा, "तुमने क्या सोचा"
गौरांग यह भलीभांति जानता था कि एश्ले ने उसे बताया था कि वह गौरांग के साथ कई रातें बिता चुकी है। लेकिन फिर भी उसने तृप्ती ने गौरांग से पूछा, "किसके बारे में"
"अपनी शादी के बारे में"
"अभी तक तो कुछ नहीं लेकिन मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे और ऐश के बीच फंस कर रह गया हूँ"
गौरांग की दुविधा को समझते हुए तृप्ती ने उससे कहा, "मेरी तरफ से तुम्हारे ऊपर कोई दवाब नहीं तुम अगर शादी करना चाहो तो करो। नहीं करनी है तो मत करो। मुझे तुमसे वह मिल गया जो मुझे चाहिए था। मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनना चाहती थी। मैं वह बन कर रहूँगी"
तृप्ती की बात चुपचाप गौरांग ने सुनी और कुछ भी नहीं कहा और तृप्ती के सिर पर हाथ रखकर उसे आश्वस्त करके अपने फ़्लैट पर लौट आया। वह जब अपने फ़्लैट पर कपड़े चेंज कर लेटा हुआ सोच रहा था उसी बीच एश्ले का फोन आया। गौरांग उम्मीद कर रहा था कि अगर एश्ले प्रेग्नेंट हो गई होगी तो वह उसे ज़रूर बताएगी और उसे मजबूर करेगी कि वह उसके साथ शादी अब कर ले। बहुत देर बात करने के बाद भी जब एश्ले ने उसे कुछ नहीं बताया तो मजबूर होकर उससे पूछना पड़ा, "ऐश क्या तुम डॉक्टर के पास गई थी"
"किस बात के लिए। मुझे डॉक्टर के पास जाकर क्या करना है। तुम बताओ कि ऐसी बात क्यों कर रहे हो"
गौरांग को तब लगा कि एश्ले की तरफ से कोई खबर नहीं है।इसका मतलब साफ है कि उसकी ओर से डरने की कोई बात नहीं है। जहां तक बात तृप्ती की प्रेग्नेंसी को लेकर थी उसने अभी यही ठीक समझा कि वह एश्ले को कुछ भी नहीं बताएगा जब वक़्त आएगा उस वक़्त देखा जाएगा। गौरांग जानता था कि वह एश्ले को अपनी दिक़्क़त ठीक से समझा सकेगा और उसका विश्वास भी जीत सकेगा। इसलिए जब एश्ले ने उससे एक दिन पूछा, "तुमने फिर क्या सोचा"
"मैं लंदन वापस आ रहा हूँ"
"इज इट? यू मीन यू विल वेड मी", अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए एश्ले ने कहा, "आई एम लकी। आई फील सॉरी फ़ॉर द यंग लेडी"
"तुमको अफ़सोस क्यों हो रहा है?"
"जब मिलूँगी तब बताऊँगी", और लगे हाथ यह भी पूछ लिया, "लंदन कब आ रहे हो"
"लेट मी वाइंड अप हियर। आई थिंक आई विल बि विद यू बाई नेक्स्ट मंथ"
"इट मीन्स वी कैन गेट मैरिड बॉय क्रिसमस"
"थिंक सो"
"मैं आज इतना ख़ुश हूँ, गौरांग कि मैं तुम्हें बता नहीं सकती"
"होना भी चाहिए। तुम्हारी मुराद जो पूरी हुई"
"मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी"
"बेबी मैं जल्दी ही तुम्हारे साथ होऊंगा"
"यू आर वेलकम डिअर। थैंक यू सो वेरी मच"
"मैं कल सुबह तुमसे बात करूँगा"
"ओके", कहकर एश्ले ने कॉल डिसकनेक्ट किया...


क्रमशः

गतांक से आगे: एश्ले से गौरांग की फोन पर बात हुई और उसने अपने मन की कह दी कि वह लंदन वापस आ रहा है।
एपिसोड 39
उचित समय आने पर गौरांग एक दिन डॉक्टर के पास गया और अपना वसेक्टोमी ऑपेरशन ही कराकर लौटा और उसने अपने ऑपरेशन की बात तृप्ती को जब बताई तो तृप्ती ने उससे पूछा, "तुमने यह सब क्यों कराया"
"मैं जब अपने बच्चे को तुमसे पा रहा हूँ तो मैं किसी और से बच्चा पैदा होने के चांसेज क्यों लूँ"
"क्या मतलब? क्या तुम यह ऐश के लिए कह रहे हो"
"हां"
"इसका मतलब तुमने लंदन जाने का मन बना लिया है"
"हां, मैंने ऐश को बता दिया है"
"क्या", तृप्ती ने पलट कर पूछा।
"यही कि तुम प्रेग्नेंट हो। उसके बाबजूद भी वह मुझसे शादी करना चाहती है" , गौरंग ने तृप्ती को बताया।
"मैंने तुम्हें बहुत मुश्किल में डाल दिया। अगर तुम कहो तो एमटीपी करा लूँ और बच्चे को इसी स्टेज पर ख़त्म कर दूँ"
"नहीं तुम यह सब कुछ नहीं कर रही हो बल्कि तुम डिलीवरी के लिए लंदन आ रही हो। मैं चाहता हूँ कि आने वाला बच्चा एक ब्रिटिश सिटीजन बने और मैं उसकी देख भाल कर सकूं उसे ऑक्सफोर्ड में पढ़ा सकूँ। उसे एक बेहतर इंसान बना सकूँ"
"गौरांग क्या तुमने यह सब ऐश से डिस्कस किया है"
"हां सब कुछ"
"उसने क्या कहा?"
"यही कि उसे इससे कोई प्रॉब्लम नहीं है"
"क्या तुमने उसे यह भी बता दिया है कि तुम ऑपरेशन करा चुके हो"
"ऑपेरशन की बात ही नहीं बल्कि नॉन रिवर्सेबिल ऑपेरशन के बारे में...."
"उस सबके बाबजूद वह तुमसे शादी के लिए तैयार है"
"उसका कहना है कि वह बस मुझे चाहती है और हर हाल में मुझे वह अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाना चाहती है"
"ओह! इतना सब कुछ। गौरांग एक बात समझ लो कि अगर तुम एश्ले से शादी करोगे तो मैं तुम्हारी ज़िंदगी से दूर ही रहूँगी"
"तृप्ती तुमने वह पाया जो चाहा। मेरा बच्चा। मुझे वह दे देना जो मुझे चाहिए कि मेरा बच्चा मेरे साथ रहे और खूब पढ़े लिखे और एक अच्छा इंसान बने"
इसके पहले तृप्ती कुछ कहती गौरांग ने तृप्ती के दोनों हाथों को लेकर चूमा और कहा, "तुम हमारी इच्छा पूरी करोगी"
"तुम्हारे इस 'हमारी' शब्द में क्या ऐश शरीक़ है"
"हां, मेरे इन शब्दों में ऐश भी शरीक़ है। हालात ने हमें जिस मोड़ पर ला छोड़ा है वहां से हमें अपने लिए नए रास्ते बनाने होंगे। हम लोग बदले हुए ज़माने के पेरेंट्स बन कर दिखाएंगे कि जीवन में एडजस्टमेंट अपने अपने ख्वाबों के लिए किस हद तक किया जा सकता है"
क्रमशः
गतांक से: कल के एपिसोड के बारे में कुछ कहा सकता है तो केवल इतना कि इस कथानक के मुख्य चरित्रों एश्ले, तृप्ती एवम गौरांग को वह मिला जो उन्होंने चाहा। आगे की कहानी सूत्रधार की जुबां से......

एपिसोड 40

एक दिन शाम को मैं जब अपनी स्कॉच लेकर आराम से अपनी चेयर पर बैठा हुआ कि रमा फ़िश फ्राई करके ले आई। फ़िश देखते ही मुझे अपने यूनाइटेड किंगडम के ट्रिप की याद हो आई। मैंने रमा से कहा, "तुमने बहुत ज़िद की थी कि मैं तुम्हें यूके और स्कॉटलैंड घुमा दूँ। देखो मैंने अपना वायदा पूरा किया"

"अब क्या आपको दिल से शुकिया कहूँ"

"कह दोगी तो कुछ घिस नहीं जाएगा। क्या पता फिर से आने वाले सालों में यूरोप का एक ट्रिप और लग जाये"

रमा ने आँख तरेरते हुए कहा, "वह तो लगना ही है। अबकी बार मुझे फ्रांस और स्विट्जरलैंड घुमा देना"

"मैं तो पिछले साल ही ले जाना चाह रहा था लेकिन तुम्हीं ने मना कर दिया था", मैंने भी अपनी बात रखते हुए कहा।

"मैं बहुत क्राउडेड विज़िट नहीं चाहती थी। देखो बुरा न मानना, मैं दिल से चाहती थी कि तुम ऐश से मिल सको"

"सुनो मेरी ज़िंदगी में कोई ऐश वैश नहीं है। जो भी है वह बस तुम हो"

मेरी बात सुनकर रमा का चेहरा खिल उठा और मेरे कानों के पास आकर बोला, "यह तो मैं जानती हूँ बस तुम्हारे मुंह से सुनकर अच्छा लगता है"

मैंने जब रमा को अपनी बाहों में लेने की कोशिश की तो वह बोल उठी, "हटो छोड़ो भी ये छिछोरी बातें, कुहू घर में है"

"कुहू को क्यों बीच में लाती हो। जब तुम्हारा मन करे तो मेरा क़र्ज़ उतार देना"

"पति पत्नी के बीच कोई लेन देन का व्यापार थोड़े ही होता है। वह तो अटूट प्रेम का रिश्ता होता है"

रमा की यह बात सुनकर मेरा अंतस भीग गया। मैं उसकी ओर एक टक निगाह से देखता रहा। मैंने रमा से पूछा, "तुम यह बताओ कि अबकी बार सूत्रधार बनकर तुम 'तृप्ती,गौरांग और एश्ले' को लेकर जो कहानी लिखवाना चाह रहीं थीं वह कहानी तुम्हें कैसी लगी?"

"सही मायने में कहूँ तो मुझे तृप्ती से हमदर्दी है"

"हरेक हिंदुस्तानी को तृप्ती से हमदर्दी होगी ही....लेकिन ऐश से क्यों नहीं"

"ऐश से भी हमदर्दी है। क्यों न होगी। वह भी तो एक स्त्री है। आख़िर उसकी भी कुछ तमन्नाएं थीं"

मैंने सोचा आज रमा ने अच्छा अवसर दे दिया है तो आज मैं तृप्ती, ऐश और गौरांग के आपसी उलझे हुए रिश्तों पर अपनी सोच उसके सामने खुल कर रखूँ। यह विचार आते ही मैंने कुछ देर के लिए अपनी आंखें बंद कीं जैसे मैं ऐश और तृप्ती के चरित्र को गौरांग के नज़रिए से देख सकूँ। मैंने अपने विचारों को समेट कर अपनी बात रमा के समक्ष कुछ इस तरह से रखी, "तृप्ती, गौरांग को बहुत प्यार करती थी इसमें कोई शक़ नहीं। तृप्ती ने सपने भी संजोए थे कि वे लोग शादी करेंगे। बाद में किस प्रकार अपना जीवन यापन करेंगे। यहां तक कि तृप्ती ने तो यह भी सोच लिया था कि वह केवल एक बच्चे को पाकर प्रसन्न रहेगी। वह चाहे बेटा हो या बेटी। गौरांग के मन में भी यही था कि वह तृप्ती के साथ विवाह करके आराम से ज़िन्दगी बसर करेगा लेकिन.... "

"लेकिन क्या....मुझे समझाओ", कहकर रमा ने मुझसे यह समझना चाहा, "आख़िर चूक हुई तो फिर किससे?"

"तृप्ती, गौरांग से बहुत प्यार तो करती थी लेकिन उसके मन में हमेशा शक़ बना रहता था कि गौरांग कहीं किसी और को प्यार न कर बैठे। तुम्हें याद होगा जब ग्लॉसगौ से एडिनबरा के रास्ते के सफ़र में वंदना, गौरंग के क़रीब आने लगी थी तो गौरांग ने किस तरह का व्यवहार किया था। वह तृप्ती से इतना नाराज़ हो गया था कि कोच में पीछे जाकर अकेले ही बैठ गया। तृप्ती का व्यवहार वंदना के पिता श्री की निग़ाह में भी आ गया था इसलिए उन्होंने गौरांग से पूछा था 'उसके और तृप्ती के बीच सब ठीक तो है'।गौरांग ने उनकी शंका समाधान यह कह कर किया कि 'सब ठीक है'। इस पर वंदना के पिता श्री ने यही कहा था कि 'दो प्यार करने वालों के बीच यह सब होता ही रहता है'। वैसे भी बीच बीच में तृप्ती गौरांग से कुछ ऐसा कह देती थी जिसे गौरांग पचा नहीं पाता था और मन ही मन क्षोभ से भर जाता था। जब लंदन में ऐश, तृप्ती और गौरांग के बीच आई तो यही शक़ तृप्ती और गौरांग के रिश्तों में एक कसक बन कर चुभता रहा। ऐश तो दीवानी थी, गौरांग के लिए। गौरांग यह बात अच्छी तरह जानता था। गौरांग ऐश के प्यार को ठुकरा कर उसे हमेशा के लिए नहीं खो देना चाहता था। वह तृप्ती के साथ रहते हुए अपने मित्रवत संबंध ऐश के साथ भी बनाये रखना चाहता था। गौरांग को पूर्ण विश्वास था कि मौका पड़ने पर जब वह ऐश को अपने और तृप्ती के बारे में वह सब कुछ बता देगा। लेकिन हालात कुछ ऐसे बनते चले गए कि गौरांग अपनी बात ऐश से कह नहीं पाया। ऐश यह भलीभांति जान चुकी थी कि गौरांग तृप्ती से बहुत प्यार करता है। ऐश उसे किसी भी हाल में खोना नहीं चाहती थी। वह यह भी जानती थी कि अगर गौरांग एक बार हिंदुस्तान चला जायेगा तो वह उसके हाथ से निकल जाएगा। इसलिए जब उसे वेल्स के अपने कंट्री होम में निवास के दौरान अवसर मिला तो उसने अपने शरीर को गौरांग के हवाले करके गेंद अपने पाले में कर ली। जब गौरांग लंदन से दिल्ली के लिए फ्लाइट से निकला तो ऐश ने अपनी विजय श्री की गाथा के बारे में तृप्ती को फोन करके सब कुछ साफ साफ बता भी दिया। जब गौरांग दिल्ली वापस आने पर तृप्ती से मिलने गया तो वह ख़ुद नहीं जानता था कि उसे क्या करना चाहिए"

"तुम यह कैसे कह सकते हो?", रमा ने पूछा।

"मैं यह बात इसलिए कह सकता हूँ कि गौरांग ने ऐश का दिया हुआ डायमंड नेकलेस जब तृप्ती के गले में पहनाया तो उसने यही सोचा था कि वह यह करके ऐश के लिए तृप्ती के हृदय में आभार की भावना जागृत कर सकेगा। गौरांग नहीं जानता था कि उसके और एश्ले के बीच एश्ले के वेल्स के कंट्री होम में हुआ उसकी कोई भनक भी तृप्ती को है। इसलिए जब तृप्ती ने उससे कहा कि 'वह लंदन से वापस लौट आया है उसके लिए यही बहुत है'। इसके बाद तो फिर ताश के पत्तों का खेल खेलते हुए तृप्ती ने भी अपने मन की बात पूरी करने के लिए वही किया जो ऐश ने गौरांग के साथ वेल्स के कंट्री होम में किया। तृप्ती यह जान चुकी थी कि वह यह लड़ाई हार चुकी है इसलिए उसने यही ठीक समझा कि वह गौरांग के बच्चे की मां बनकर संतुष्ट रहे"

"........", रमा कुछ भी नहीं बोली लेकिन अपनी प्रतिक्रियाओं से यह ज़ाहिर कर दिया कि वह यह मेरी दलील से सहमत नहीं है। तब मैंने गौरांग का पक्ष रखते हुए कहा, "तुम्हें याद होगा कि गौरांग ने यह इंतज़ार किया कि क्या तृप्ती प्रेग्नेंट है अथवा नहीं। जब गायनोकॉलोजिस्ट ने कन्फर्म कर दिया कि तृप्ती प्रेग्नेंट है तो उसने मन ही मन यह निर्णय लिया कि वह अपने उन सभी कर्तव्यों का निर्वहन करेगा जिससे कि तृप्ती के बच्चे का लालन पालन वह उस तरह से कर सके जिसका सपना तृप्ती ने संजोया था"

"तृप्ती ने क्या सोचा था"

"यही कि उन दोनों का बच्चा ऑक्सफोर्ड में रहकर पढ़े लिखे और एक अच्छा इंसान बने। गौरांग ने अपनी क्षमताओं को भलीभांति जानते हुए यही ठीक समझा कि वह एश्ले की अपनाले जिससे कि उसे किसी भी प्रकार की दिक़्क़त बच्चे के जीवन के लिए न हो। इसीलिए उसने अपना नॉन रिवर्सेबिल वसेक्टोमी का ऑपेरशन कराने का मन बना लिया। रमा, तृप्ती और एश्ले के बीच एक बात ध्यान देने वाली यह है कि दोनो ने अपने पत्ते सही वक़्त पर इस्तेमाल किए और एक दूसरे को बताते भी रहीं"

रमा ने मुझसे अपनी सहमति जताते हुए कहा, "तुम्हारी यह बात तो सर्वथा सत्य है। ....और शायद इसी कारण वे तीनों आज भी एक सफ़ल ज़िंदगी जीने के क़ाबिल बन सके"

"मैं तो बस इतना ही कहना चाहूँगा कि ग़लती किसी की भी नहीं थी अगर कुछ थी तो गौरांग की। बस कहानी का अंत इससे अलावा कुछ और हो ही नहीं सकता था"

"सुखद अंत तो रहा लेकिन तीनों लोगों की ज़िंदगी एक दूसरे से हमेशा के उलझी रहेगी जो उनके मधुर सम्बंधो का कारण भी बनी रहेगी"

रमा की बात पर मेरे मुंह से ये शब्द अपने आप ही निकल पड़े, "यह बात न भूल जाना कि तृप्ती ने गौरांग से यह साफ कह दिया था कि वह ऐश और उसके रिश्ते में कभी भी तीसरे की हैसियत से बीच में दखलंदाजी नहीं करेगी। तुम यह तो मानोगी कि कभी कभी ऐसे हालात बन जाते हैं जिन पर किसी का भी अधिकार नहीं रहता। मेरी समझ में अंत में तीनों के बीच जो हुआ में वह ठीक ही हुआ। न तो कोई हारा, न कोई जीता ....और तीनों की 'तमन्ना' भी पूरी हुईं"

################समाप्त################

"And, if you love me, as I think you do, let's kiss and part, for we have much to do..."

- William Shakespeare

"तमन्ना"

एक धारावाहिक



समापन: मित्रों, कुछ हाल के महीनों में हमारे लिखने पढ़ने के शौक़ ने "गुज़र गाह", "खूसट बुढ्ढे", "साधु" और "क़तरा क़तरा" जैसे कथानक आपकी सेवा में मैं बैक टु बैक पेश किये। मुझे यह प्रसन्नता है कि ये सबके सब कथानक आपको पसंद आए।

"तमन्ना" कथानक के बारे में जैसा कि मैंने पूर्व में भी बताया था कि यह बीच में अधूरा छूट गया था। इसलिए इसे पूरा करके मुझे बेहद ख़ुशी महसूस हो रही है। "तमन्ना" कथानक की भूमिका मेरे दिल में अचानक ही उस समय बनी थी जब मेरी और रमा की मुलाकात भावना गेरा से अपने लंदन के ट्रिप में हुई थी। भावना भी देश विदेश अपने माता पिता के साथ तो कभी अकेले कहीं न कहीं घूमने निकल जाती है। लंदन वाले ट्रिप में वह हम लोगों के साथ अकेली थी। कोई साथ हो गया था तो एक और लड़की जो वह भी अकेली थी। वे दोनों उस ट्रिप पर अच्छी दोस्त बन गईं। बाद में भावना हम लोगों के साथ इस तरह घुल मिल गई। उसने कई वीडियो कुहू के बनाये और कई फ़ोटो भी खींचीं जो हमारे पास आज भी सुरक्षित हैं।

हमारा क्या है, प्रभु की कृपा से हर साल कहीं न कहीं निकल जाते हैं। 2019 में कुहू अमेरिका चली गई थी इसलिए हम कहीं न जा सके। हमारी हर यात्रा के अनुभवों को हमने बड़े संजोकर रखा है।जहां एक तरफ हम अपने शौक़ पूरा करते हैं तो दूसरी ओर अपनी यात्राओं की यादों को एक एक करके कथानक की कड़ियों में पिरोकर अपने मित्रों में परोस देते हैं। इस तरह हमें आप सभी का प्यार और आशीर्वाद प्रप्त होता है और हमें असीम संतोष।

यूनाइटेड किंगडम की यात्रा के दौरान गौरांग, तृप्ती, एश्ले कई और चरित्र "तमन्ना" कथानक के माध्यम से सजीव होकर हम लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बने। आज जब यह कथानक अपनी समाप्ति पर है तो यह मेरा कर्तव्य बनता है कि इस कथानक से संबंधित जो शंकाएं किसी के मन में हों उन्हें दूर किया जाए। इसका सबसे सुंदर तरीका यही है कि वे प्रश्न इस कथानक के सूत्रधारों की चर्चा में शरीक़ हों। इसके बाबजूद भी किसी के कोई प्रश्न हैं तो पूछिये हम सहजता से उनका उत्तर देंगे।

एसपी सिंह,
02/03/2020


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