Wednesday, January 8, 2020

घुमक्कड़ एस पी सिंह


घुमक्कड़
(A saga of the wanderlust)




एस. पी. सिंह


दिल से ....
कुछ बातें जाने अनजाने में ऐसी हो जातीं हैं जो किसी बड़े कथानक की सूत्रधार बनतीं हैं। ‘घुमक्कड़’ कथानक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक दिन मैंने और मेरी श्रीमती जी ने अपनी यादों को खंगालने की क्या सोची समझिये कि उसी समय इस कथानक का जन्म हुआ। हम लोग कई साल पहले युक्रेन गए थे। उस यात्रा की धूमिल सी यादें हमारे ज़हन में बसी हुई थीं। वास्तव में उस ट्रिप पर हम लोगों ने बहुत मौज मस्ती की थी। एक दिन जब कुछ मस्ती भरे क्षणों की यादों के फोटोज अपने फेसबुक की टाइम लाइन पर शेयर किये तो उस पोस्ट को मित्रों का ज़बरदस्त रेस्पॉन्स मिला। बस वही लोगों का अपार रेस्पॉन्स इस कथानक का सूत्रधार बना।
‘घुम्मक्कड़’ को मात्र यात्रा संस्मरण मानकर न पढ़ा जाय वरन इसे एक घुमक्कड़ की प्रेम कहानी के रूप में पढ़ा जाय तो अधिक आनंद आएगा। मैंने इसे बहुत दिल से लिखा है यह एक बहुत ही रोचक कथानक बन पड़ा है। बस इंतज़ार यह है कि इसे घर के सभी सदस्य विशेषकर नौजवान प्रेमी, दंपति, अधेड़ उम्र के युगल और साथ में वे लोग जो स्वयं को बुज़ुर्ग मनाने की गलती कर बैठें हैं एक समान रूप से पढ़ें। प्यार के उस बंधन को इस कथानक में श्रेयता प्राप्त हुई है जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि जीवन के किस मोड़ पर न जाने कौन मिल जाये जिससे ऐसा संबंध निकल आये जिसे न छोड़ा जाए न निभाया जाए। ऐसी विषम परिस्थिति में एक दिल वाला इंसान करे तो भला क्या करे?
जब इतना अवसर मिल ही रहा है तो क्यों न कुछ मैं अपने बारे में भी कह लूँ। मैं स्वभाव से ही उन रूढ़िवादियों में से नहीं हूँ जो अपनी ज़िंदगी सरहदों के भीतर रह कर जीते हैं। मैंने शुरू से ही एक आज़ाद ख़्याल ज़िन्दगी जी है। परिपाटी पर चलना न तो मेरी आदत है और न ही मेरा स्वभाव। मैं शुरू से ख़ुश रहने का प्रयास करता हूँ और चाहता हूँ कि दूसरे लोग भी मेरी तरह ख़ुश रहें। इसलिये मैं नित नए प्रयोग करता रहता हूँ। ‘घुमक्कड़’ भी इसी दिशा में उठाया हुआ एक क़दम है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विशेषकर फेसबुक जैसे सोशल मीडिया आजकल वैसे तो गाली गलौज और अपनी-अपनी राजनीति चमकाने के लिये ख़ूब इस्तेमाल किये जा रहे हैं वहीं कुछ साहित्यकार अभी भी इस कोशिश में हैं कि लोग इस मीडिया के प्लेटफ़ॉर्म से अपनी बात आम आदमी तक पहुँचा सकें। फेसबुक पर काव्य रचनाओं को शेयर करना अब एक आम बात हो गई है। मेरे कई अन्य मित्र जो लिखने पढ़ने के शौक़ीन हैं वे अक़्सर ही अपनी रचनाएँ फेसबुक पर पोस्ट करते रहते हैं। यदा कदा जब मेरे मन के भाव कविता बन कर निकलते हैं तो उन्हें मैं भी फेसबुक पर शेयर करता हूँ। जैसे अन्य लोगों की काव्य रचनाओं को सराहा जाता है ठीक उसी प्रकार मुझे भी मित्रगणों का प्यार मिलता रहा है। घुमक्कड़ भी इसी दिशा में उठाया हुआ एक कदम है।
कुछ साल पहले मैंने टीवी के सीरिअल्स को देखकर यह विचार बनाया कि क्यों न सोशल मीडिया पर ही धारावाहिक को कथानक के रूप में पेश किया जाय। बस इस ख़्याल के आते ही ‘रिंनी खन्ना की कहानी उसकी ज़ुबानी’ नाम से मैंने पहला प्रयोग करने का निश्चय कर उस कथानक का पहला एपिसोड अपनी टाइम लाइन पर पोस्ट किया जिसे मेरी मित्र मंडली द्वारा बहुत पसंद किया गया। बस तबसे मैंने इस नई विधा में धारावाहिक लिखने का मन बनाया। इस तरह कहें तो मेरा यह प्रयास अनूठा ही रहा और एक न एक दिन जैसा कि मैं मानता हूँ, यह मील का पत्थर साबित होगा।
‘रिंनी खन्ना की कहानी उसकी ज़ुबानी’ के बाद तो कुछ अन्य धारावाहिक भी मैंने फेसबुक के लिये लिखे और समय-समय पर पोस्ट किए जो सभी मित्रों द्वारा बहुत सराहे गए। उनमें से जो प्रमुख रहे वे हैं ‘रिंनी खन्ना की कहानी उसकी जुबानी’, ‘मैं उसकी ख़्वाहिश हूँ’ तथा ‘एक थे चंद्रचूड़ सिंह’। इसके अतिरिक्त मैंने एक धारावाहिक अंग्रेजी भाषा में “Hi! Buddies” नाम से भी प्रसारित किया है। ये सभी कथानक जहाँ पेपरबैक में बाज़ार में उपलब्ध हैं जिससे पाठकगण इन्हें अपने समयानुसार पढ़ सकें तथा जो लोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर इन्हें पढ़कर रसास्वादन लेना चाहें तो उनकी सुविधा के लिये उपरोक्त सभी पुस्तकें Amazon Book store पर तथा पेपर बैक में प्रकाशक के पास भी उपलब्ध हैं।
‘घुमक्कड़’ मेरा नव नूतन धारावाहिक है जिसे आप जैसे मित्रों का अपार स्नेह मिला और इसे उन्होंने बेहद पसंद किया है। बस यही संक्षिप्त में ‘घुमक्कड़’ की कहानी है जिसे अब मैं एक पुस्तक के स्वरूप में आपके समक्ष प्रस्तुत करने का दुस्साहस कर रहा हूँ। पसंद आये तो दाद दीजिएगा नहीं तो कूड़े के ढेर में फेंक दीजिएगा।
दूसरा, यहाँ यह कहना अत्यंत आवश्यक है कि इस कथानक की भाषा भी एक आम आदमी की आम भाषा है जिसके लिये मैं अपने सभी साहित्य तथा हिंदी प्रेमियों से मुआफ़ी माँगता हूँ। क्योंकि मेरा ख़ुद का हिंदी का ज्ञान उतना ही सीमित है जितना कि एक आम आदमी का होता है। मैंने हिंदी को मातृभाषा के रूप में उत्तर प्रदेश के इंटरमीडिएट बोर्ड की बारहवीं कक्षा तक ही पढ़ा है, मैंने अलग से हिंदी भाषा में कोई विशिष्ट ज्ञान अर्जित नहीं किया है, अतः कहीं-कहीं कथानक की माँग पर आंग्ल भाषा की शब्दावली का प्रयोग अनायास ही हुआ है। मेरी आप सभी प्रबुद्ध साहित्य प्रेमियों से यही करबद्ध प्रार्थना है कि मेरा यह सोपान अगर आपको पसंद आये तो आशीर्वाद देकर अनुग्रहीत करें। मेरी सभी साहित्य प्रेमियों से करबद्ध प्रार्थना हा कि मेरा यह सोपान अगर आपको पसंद आये तो आशीर्वाद देकर अनुग्रहीत करें।
धन्यवाद सहित,
एस पी सिंह गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश।
01-01-2018
प्रस्तावना
यूँ तो लेखन कार्य बहुत लोग करते हैं, उनके लेखन को पढ़ा भी जाता है लेकिन जब श्री एस पी सिंह लिखते हैं तो यह मात्र औपचारिकता नहीं बल्कि उनकी सारी संवेदनाएँ, सोच, अनुभव उनकी रचना में रच बस जाते हैं। उन्होंने अनेक पुस्तकें और फ़ेसबुक धारावाहिक लिखे हैं और उनकी सारी कृतियाँ मेरी नज़रों से गुज़री हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मैं लगभग उनकी सारी रचनाओं का चश्मदीद हूँ। चाहे ‘रिंनी खन्ना की कहानी उसकी ज़ुबानी’ हो या ‘मैं उसकी ख़्वाहिश हूँ’ की बात की जाए, ये सभी कथानक पाठक को बाँधने में समर्थ और सक्षम हैं।
जहाँ तक घुमक्कड़ धारावाहिक की बात है तो इतना ही कहूँगा कि यह श्री एस पी सिंह की सफलता में एक और कड़ी जुड़ गई है। व्यक्ति का लेखन और उसकी रचनाएँ उसके स्वभाव के अनुरूप ही होती हैं। ठीक यही बात यहाँ इस पुस्तक पर लागू होती है। श्री एस पी सिंह ने दुनिया के कई देशों का भ्रमण किया है, वहाँ की संस्कृति, रहन सहन को बहुत ही नज़दीक से देखा है और उन्हें अपनी कृतियों में उतारने का सफल प्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक पाठकों को यूक्रेन ले जाती है लेकिन लेखक यूक्रेन में कमरे में बंद नहीं है बल्कि वहाँ की हवा में साँस ले कर, वहाँ के जल को पी कर और तमाम जगहों और संस्कृति को देख कर अपने देश से तुलना करता है। कहीं कहीं लेखक को यह महसूस भी होता है कि काश अपने देश में भी ऐसा ही होता। इसप्रकार हम पाते हैं कि लेखक के मन में अपने देश के प्रति प्यार भी है और सुधार की ललक भी।
घुमक्कड़ कहानी में कई पात्र हैं। जैसे यूक्रेन की तान्या और वेरॉका, भारतीय मूल के अमरिंदर और उनकी पत्नी गोगी तथा चंद्र मोहन जो कथानक को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण भूमिका तो लेखक की धर्मपत्नी का है जो लेखक की भावनाओं का सम्मान ही नहीं बल्कि पूजा करती हुई प्रतीत होती हैं। जीवन की गाड़ी इसी भावात्मक प्यार के ईँधन से ही तो चलती है। चुलबुली स्वभाव की वेरॉका और तान्या आतिथ्य में कोई कसर नहीं छोड़तीं। वे दोनों ही कथानक में पूरे माहौल को ख़ुशनुमा बनाए रखती हैं। परंतु जीवन के रास्ते एकदम सीधे नहीं होते। रास्तों का टेढ़ा होना उनका स्वभाव है। लेखक जब दूसरी बार यूक्रेन जाता है तो तान्या का पति गुजर चुका होता है और वेरॉका संसार से चल बसी होती है। इससे कभी न भर सकने वाला अंतराल पैदा हो जाता है। अंतत: वास्तविक जीवन में भी तो यही होता है। समग्र रूप में घुमक्कड़ की कहानी एक घुमक्कड़ की क़लम से निकली हुई कहानी है जो दिल पर छाप छोड़ जाती है।
धन्यवादपूर्वक                                                                                             राम शरण सिंह  
बेंगलूरु                                                                                                                                                                          






















































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