Thursday, January 15, 2015

..............धूप।



कलम से_____

आज बंद दरीचों
के पीछे से
झाँक कर देखूँगी
मुखड़ा तेरा
दो तीन रोज़
से देखा नहीं है
तुम्हें

......................धूप।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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