कलम से____
दुनियां सिमट कर
indoor हो गई है
धूप भी झांकती नहीं है
उन दरीचों के पीछे से
बस निगाहें ही
झांका करतीं हैं
बाहर की तरफ
कब
यह कुहासे की भाप
जो हो गई जमा
शीशों से हटे
नाम तुम्हारा जो
कभी रेत पर लिखके
मिटा दिया करता था
लिख दिया है
कुहासे पर......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
दुनियां सिमट कर
indoor हो गई है
धूप भी झांकती नहीं है
उन दरीचों के पीछे से
बस निगाहें ही
झांका करतीं हैं
बाहर की तरफ
कब
यह कुहासे की भाप
जो हो गई जमा
शीशों से हटे
नाम तुम्हारा जो
कभी रेत पर लिखके
मिटा दिया करता था
लिख दिया है
कुहासे पर......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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