कलम से____
गर्दिश ही गर्दिश है चहुँओर छाई हुई
पेडों से भरी अमराई नहीं मिलती।
पढ़ने को बहुत कुछ मिल जाता है
रामायण अब घर में नहीं मिलती।
फर्क कोई नज़र नहीं आता है
हर रोज़ कोई चला जाता है।
बुजुर्गों की ज़रूरत वैसे नहीं पड़ती
शादी ब्याह में ज़रूरत मगर है दिखती।
पूछ लेता है जब कोई गोत्र का नाम
सीधे मुँह आवाज़ नहीं निकलती।
गाँव पता पुरखों को सब भूल बैठे हैं
पत्थरों पर नाम लिखे नहीं मिलते हैं।
चंद मुहरों की तलाश में खुदवा दी हवेली
पत्थरों पर ढूढंने से अब दूब नहीं दिखती।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
गर्दिश ही गर्दिश है चहुँओर छाई हुई
पेडों से भरी अमराई नहीं मिलती।
पढ़ने को बहुत कुछ मिल जाता है
रामायण अब घर में नहीं मिलती।
फर्क कोई नज़र नहीं आता है
हर रोज़ कोई चला जाता है।
बुजुर्गों की ज़रूरत वैसे नहीं पड़ती
शादी ब्याह में ज़रूरत मगर है दिखती।
पूछ लेता है जब कोई गोत्र का नाम
सीधे मुँह आवाज़ नहीं निकलती।
गाँव पता पुरखों को सब भूल बैठे हैं
पत्थरों पर नाम लिखे नहीं मिलते हैं।
चंद मुहरों की तलाश में खुदवा दी हवेली
पत्थरों पर ढूढंने से अब दूब नहीं दिखती।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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