Tuesday, January 13, 2015

ढूंढती फिरती हूँ तुम्हें मैं हर उस जगह कदमों के निशान जहाँ तुम हो छोड़ गए ।

कलम से____

ढूंढती फिरती हूँ तुम्हें मैं हर उस जगह
कदमों के निशान जहाँ तुम हो छोड़ गए ।

रास आती नहीं है अब यह जिन्दगी
मुश्किलें हैं बहुत कैसे करूँ मैं बंदगी ।

आवाज दो बुला लो मुझे हो तुम जहां
पल एक न लूँगी आ जाऊँगी मैं वहाँ ।

मुझे बुला कर तुम न जाने कहाँ खो गए
इस जहाँ में हमको तन्हा क्यों कर गए ।

मिलोगे सुनाएंगे हाले दिल अपना हम
अब न छोडेंगे सनम खाई है ये कसम ।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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