कलम से____
आज सेना दिवस है। यह रचना सैन्यबलों के साहस और शौर्य को समर्पित है।
कहाँ खो गई वो आवाज जो दम भरती थी
सीना चौड़ा छप्पन इंच का है जो कहती थी ।
कर रहा दिन प्रतिदिन पाकिस्तान गोलाबारी
ठोक दो दुश्मन को कर पूरी एक बार तैय्यारी ।
खिच खिच रोज रोज की हो बंद एक बार हो जाए
फिर शांति अगर वो चाहे उस पर वार्तालाप हो जाए।
पाल रहा सर्प आस्तीन के वह समझ अभी न पाए
बच्चों ने दी कुरबानी फिर भी उसकी समझ न आए।
मरना मारना है खून में इनके आधार ही गलत है
किस किस को भारत समझाए समझ बात न जब आए।
रहा है पिट्ठू अमरीका का सुनता उनकी नहीं है
सामने इनके कुछ भी कहना कारगर नहीं है।
जो जैसी भाषा समझे उस भाषा में अब बात करो
न समझे बने अनाड़ी तो सिर धड़ से कलम करो।
न रहे बांस न बजे बांसरी, कहावत चरितार्थ करो
बहुत किया बरदाश्त लीला इनकी अब समाप्त करो।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
आज सेना दिवस है। यह रचना सैन्यबलों के साहस और शौर्य को समर्पित है।
कहाँ खो गई वो आवाज जो दम भरती थी
सीना चौड़ा छप्पन इंच का है जो कहती थी ।
कर रहा दिन प्रतिदिन पाकिस्तान गोलाबारी
ठोक दो दुश्मन को कर पूरी एक बार तैय्यारी ।
खिच खिच रोज रोज की हो बंद एक बार हो जाए
फिर शांति अगर वो चाहे उस पर वार्तालाप हो जाए।
पाल रहा सर्प आस्तीन के वह समझ अभी न पाए
बच्चों ने दी कुरबानी फिर भी उसकी समझ न आए।
मरना मारना है खून में इनके आधार ही गलत है
किस किस को भारत समझाए समझ बात न जब आए।
रहा है पिट्ठू अमरीका का सुनता उनकी नहीं है
सामने इनके कुछ भी कहना कारगर नहीं है।
जो जैसी भाषा समझे उस भाषा में अब बात करो
न समझे बने अनाड़ी तो सिर धड़ से कलम करो।
न रहे बांस न बजे बांसरी, कहावत चरितार्थ करो
बहुत किया बरदाश्त लीला इनकी अब समाप्त करो।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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