Friday, July 18, 2014

कलम से _ _ _ _

कुछ हो जाए आज बात,
समधियाने की,
कैसे होता था,
आदर सत्कार,
उस जमाने में।

समधिन ने बुलवाया समधी जी को,
समधी जी ने भी दिया मूछों को ताव,
और जा पहुंचे समधियाने,
खाने पीने के बाद,
समधिन बोलीं " ठाकुर सा हो जाए कुछ दूध सूद"।

समधी जी बोले " बिलकुल हो जाऐ दूध। सूद ने देगे, हम। असल चाहे लेउ बसूल"।

समधिन का जबाव "सूद रहे देउ ।सूद हम मानिव मिलगा हमें, सब जब आप आऐउ हमरे अगंना। दूध हम सिराय रहिन, बेला मा"।

सुनो हो, समधी जी का जबाब " समधिन हमरे लिए दूध न सिरायो बेला मा, ऊमें का होई, अरे दूध सिराओ फूल की परात मा, तबही तो हमार मूछं  कुछ गीली होयी।"

ठाकुर सा ने कहदी चतुराई से अपनी बात।

कुछ ऐसी होती थी उस जमाने की मजाक।

(बेला: बर्तन को कहते हैं जो गोल आकार में होता है और फूल, एक तरह का बढिया मैटल का बना हुआ। दाल, सब्जी, दूध के लिये इस्तेमाल में लाया जाता है।

परात: बहुत बडा गोल चौडे मुहं वाला जो शादी बगैरह में आटा गूदंने के काम आता है।)


//surendrapal singh//

07182014

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