Friday, July 18, 2014

कलम से _ _ _ _

25th May,  2014

Camp: The Castle Naggar, Naggar, Himanchal

चली चलो की बिरया
आ ही गई
हर दिन के सुबह की शाम होनी लाजिम है
हर सफर को मंजिल पर पहुंच खत्म होना ही है
यादगार रहा है ऐ सफर
दिल को छू गया है
ऐ सफर।

पता नहीं आना होगा
फिर कभी
चाहते लाख हों
पूरी होती हैं या नहीं
ऐ किसी और की मर्जी है
मेरी नहीं।
//surendrapal singh//

07192014

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