Friday, July 18, 2014

कलम से _ _ _ _
23rd May, 2014

Naggar Castle

सुबह के रंगीन सपने,
संगीत की मधुर रागिनी से टूटे,
तकिए के किनारे,
गुलाब की पंखुरी,
रेशा रेशा सहलाते, 
महबूब के कोमल हाथ,
होठों पर सासों की गरमी का, 
वो सुहाना अंदाज,
नया नया सा लग रहा था,
सवेरा,
जीवन की ऐसी हो,
शुरुआत,
क्या इससे भी हसीन ख्वाब, 
हकीकत मे तब्दील हो सकता है,
ऐसा रहा सुबह का,
सुदंर अहसास,
एक सुखद अनुभव।

आगंन में बाहर बैठ,
दिख रहे थे,
दूर बरफ से ढके पहाड,
नीचे नदी से आती,
कल कल की आवाज,
कुल्लू की घाटी से आती,
बाँसुरी की मधुर आवाज,
इन सबके साथ,
एक कप चायपर हो, 
सुदंर सा उनका साथ,
कितना है हसीन,
प्यार भरा,
अहसास।

यहां आने का मन,
अब करे बार बार--------------

//surendrapal singh//

07192014

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