Thursday, October 16, 2014



कलम से____


तेज रफ्तार जिन्दगी
रुकने लगी है,
उम्र का अहसास
दिलाने लगी है,
चलते चलते थमने सी लगी है
शाम भी डूबने से पहले,
एक पल को ही सही,
रुकने सी लगी है।

तुम से जब मिला था,
साल बहुत गए
उसके बाद बदल गया बहुत हूँ
मिलो कभी अगर 
पहचान न पाओगे शायद
चेहरे की रौनक बुझ सी गई है
एक लौ है, जो जल रही है
राह जीवन की दिखा रही है
कभी कभी
कानों में धीरे से आकर कह रही है
कह देना,
बात कह न पाया था
तुमसे,
कहने को जो रह गई है।


//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

1 comment:

  1. न जाने कब वो आएगें
    कब होगी
    मुलाकात उनसे
    तबतक बंद रहेगी जुबां मेरी।

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