Saturday, October 11, 2014

मंद मंद पवन बह रही ऐसे।



कलम से____


मंद मंद पवन
बह रही ऐसे
ऋतु नूतन आ रही जैसे
कर्णप्रिय स्वर लहरी सी
अनजाने ही कुछ कह जाती
मन पुलकित कर जाती ऐसे !!

अथाह प्रेम की सागर बन
प्रीत हृदय जागृत करने को
आना तुम प्रिये।

तरु पक्षी लौट आते साझं ढ़ले
दीप प्रज्वलित करने हिय में
स्वप्निल श्वेत वस्त्र धारण किये
आना तुम ऐसे प्रिये !!

राह देखती है अखियां मेरी
व्याकुल है मनुवा मेरा
नभ मंडल के तारों को बटोर
आचंल में समेट लाना तुम प्रिये !!


//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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