Tuesday, October 14, 2014

दूर बहुत नभ मंडल में।



कलम से____

दूर बहुत
नभ मंडल में
एक दृश्य देख कर
विचार उठा
दूर बहुत देखने को
मन बहुत करता है
फिर लौट वहीं
आसपास रह जाता है
आकर्षण कुछ ऐसा होता है
दिल अपनों में ही उलझा रहता है
अक्सर किस्से मोहब्बतों के
गलियों मोहल्लों के होते हैं
 चादँ और तारों की बातें
हम सपनों में किया करते हैं।

इन्टरनेट के आने से
दुनियां ही बदल गई है
चादँ की छोड़ो
उसके आगे की भी खबर मिल रही है।

मंगल पर यान हमारा
क्या करता है
सब मालूम
होता रहता है।

अपनी दुनियां के आगे
भी दुनियां है
एक नहीं न जाने कितनी दुनियां हैं
लोग वहाँ भी होते होगें
रहते कैसे खाते क्या होगें
दिन दूर नहीं
जब हम उनके साथ बैठेगें
    खाएगें और पियेंगे
  नये लोग मिलेंगे।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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